Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 11 भारती का सपूत

Balbharti Maharashtra State Board Hindi Yuvakbharati 11th Digest Chapter 11 भारती का सपूत Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

Maharashtra State Board 11th Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 11 भारती का सपूत

11th Hindi Digest Chapter 11 भारती का सपूत Textbook Questions and Answers

आकलन

1.
प्रश्न अ.
‘आप क्यों ऐसों के लिए सिर खपाते हैं…’ वाक्य में ऐसों’ का प्रयोग इनके लिए किया गया है…
(a) …………………………………………
(b) …………………………………………
(c) …………………………………………
उत्तर :
(a) विश्वेश्वर प्रसाद
(b) वेणीप्रसाद
(c) शत्रु

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प्रश्न आ.
लिखिए –
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 11 भारती का सपूत 3
उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 11 भारती का सपूत 12

प्रश्न इ.
अंतर लिखिए –
मिशन के स्कूल – भारतीय स्कूल
(a) …………………………. (a) ………………………….
(b) …………………………. (b) ………………………….
उत्तर :

मिशन के स्कूल  भारतीय स्कूल
(1) जहाँ अंग्रेजी पढ़ाई जाती है पर भारतीय संस्कृति नहीं पढ़ाई जाती।  (1) भारतीय भाषा पढ़ाकर भारतीय संस्कृति से अवगत कराया जाता है।
(2) अंग्रेजी पढाकर हिंदओं को काले साहब बनाया जाता है।  (2) भारतीय एकता और अखंडता का निर्माण किया जाता है।

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शब्द संपदा

2. निम्नलिखित शब्दों के भिन्नार्थक अर्थ लिखकर उनसे अर्थपूर्ण वाक्य तैयार कीजिए :

(1) दिया : ……………………………………………..
उत्तर :
देना : भारतेंदु ने समाज को भारतीय संस्कृति का संदेश दिया है।

दीया : ……………………………………………..
उत्तर :
दीप : दीया जलते ही आलोक (प्रकाश) होता है।

(2) सदेह : ……………………………………………..
उत्तर :
देह के साथ, सशरीर : कहा जाता है संत तुकाराम का सदेह वैकुंठ गमन हुआ था।

संदेह : ……………………………………………..
उत्तर :
शंका : अच्छे इन्सान पर संदेह करना बुरी बात है।

(3) जलज : ……………………………………………..
उत्तर :
जल में जन्मा कमल : कीचड़ में जलज खिलते हैं।

जलद : ……………………………………………..
उत्तर :
बादल : आकाश में जलद छाए हुए थे।

(4) अपत्य : ……………………………………………..
उत्तर :
संतान : दो अपत्य के बजाय आज एक अपत्य ही पर्याप्त है।

अपथ्य : ……………………………………………..
उत्तर :
अहितकर : अपथ्य भोजन से दूर रहना चाहिए।

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(5) उद्दाम : ……………………………………………..
उत्तर :
निरंकुश : आज की पीढ़ी उद्दाम हो रही है।

उद्यम : ……………………………………………..
उत्तर :
उद्योग, पुरुषार्थ : उद्यम से वर्तमान और भविष्य दोनों में अच्छा परिवर्तन आता है।

अभिव्यक्ति

3.
प्रश्न अ.
‘भाषा राष्ट्र के विकास में सहायक होती है’, इसपर अपना मत लिखिए।
उत्तर :
किसी भी राष्ट्र का विकास उस देश की एकता और अखंडता पर निर्भर करता है। एकता और अखंडता देश की भाषा पर निर्भर होती है। जिस देश में एक राष्ट्रभाषा होती है, देश के सभी लोग एक भाषा में बोलते हैं और अपना व्यवहार एक ही भाषा में करते हैं। परिणाम स्वरूप देश के अनेक प्रश्न अपने आप हल हो जाते हैं। आज भारत देश का विचार किया जाय तो भारत देश से अंग्रेज चले गए, पर अंग्रेजी भाषा की हुकूमत नहीं गई।

अंग्रेजी एक वैज्ञानिक भाषा है, उसे बिल्कुल विरोध नहीं है। परंतु वह भाषा देश की एकता को नहीं बना सकती। देश के सभी लोग इसे बोल नहीं पाते, नाही समझ सकते हैं। हिंदी भारत की बोलचाल की भाषा है, देश के अधिक से अधिक लोग जिसे बोलते हैं, समझते हैं, अपना सारा व्यवहार जिसमें कर सकते हैं। इसलिए देश के विकास में भाषा का महत्वपूर्ण स्थान है। भारत के अनेक प्रश्न केवल भाषा से दूर हो सकते हैं।

भाषानिहाय प्रांतरचना करने से अनेक राज्यों में संघर्ष दिखाई देता है। राज्यों के लोगों में राज्य विभाजन के साथ स्वतंत्र राज्य निर्मिति का विचार पनपता है। क्षेत्रीय स्वार्थ को तिलांजली देकर पृथकता की भावना का अंतिम संस्कार कर देना चाहिए। एक देश-एक भाषा का होना देश की एकता और अखंडता के लिए बहुत जरूरी है। देश की राष्ट्रीयता को बनाए रखने के लिए भी देश में एक ही राष्ट्रभाषा होना जरूरी है।

आज भारत में राष्ट्रीय एकता, अखंडता, सीमा, स्वतंत्र राष्ट्र निर्माण का प्रयास आदि सारे प्रश्नों का मूल भाषा ही है। इसलिए राष्ट्र का विकास करना है तो देश में एक राष्ट्रभाषा का होना जरूरी है और वही भाषा होनी चाहिए जिसमें हमारी संस्कृति छिपी है जिसे हम बोल पाते हैं, समझ सकते हैं।।

प्रश्न आ.
‘व्यक्ति की करनी और कथनी में अंतर होता है’, इस उक्ति पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
आज समाज में ऐसे अनेक लोग हैं, जो होते कुछ हैं, और दिखाते कुछ हैं। ऐसे बहुरुपियों की संख्या बढ़ रही है। ऐसे ही लोग समाज को धोखा देते हैं। कथनी और करनी एक होना, आदर्श व्यक्ति की निशानी है। ‘जान जाए पर वचन न जाए’ भारत की यही संस्कृति है। आज राजनीति में इसके विपरीत नजर आता है। चुनाव जब आता है तब हमारे नेता कहते कुछ हैं और चुनाव समाप्त होते ही करते कुछ हैं।

इनकी कथनी और करनी कभी एक नहीं होती, हमेशा कथनी और करनी में अंतर होता है। समाज को शिक्षा देने वाला चाहे वह नेता हो, या अध्यापक, वह पत्रकार हो, या समाज-सुधारक हो, या फिर प्रशासकीय अधिकारी हो इन सब पर देश का भविष्य निर्भर है।

व्यसनाधिनता को दूर करने के लिए उपदेश देने वाला अध्यापक छात्रों को व्यसन के दोष बताता है और वह खुद सिगरेट पीता है तो गलत है। आपपर आने वाली पीढ़ी का भविष्य निर्भर है। आप खुद आदर्श पर कायम रहो। समाज को आदर्श देने वालों में अगर करनी और कथनी में अंतर है तो समाज पर इसका कोई असर नहीं होता।

आज अनेक दोष है, जिसे दूर करने के लिए अनेक लोग उपदेश देते हैं, सलाह देते हैं, पर वह खुद उन दोषों से दूर नहीं हटे हैं। करनी और कथनी में अंतर यह आज की विडंबना है।

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4. पाठ पर आधारित लघूत्तरी प्रश्न

प्रश्न अ.
भारतेंदु ने कुल के गर्व को दुहराने के बजाय देश के गर्व को दुहराया….’ पाठ के आधार पर बताइए।
उत्तर :
भारतेंदु जी हरिश्चंद्र जी का जन्म उच्च कुल में हुआ था। भारतेंदु जी के जन्म के समय उच्च वर्गों का समाज पर बहुत बड़ा असर था। उच्च कुलों का ही सम्मान था। यहाँ तक की देश की सामाजिक सत्ता उस वक्त देश के उच्च कुल के ही हाथ में थी।

परिस्थिति यह थी कि उस वक्त समाज वर्गों में बँट गया था। निम्न वर्ग के लोगों के लिए किसी प्रकार के कोई भी अधिकार नहीं थे। वे शिक्षा से काफी दूर थे, परिणामवश निम्न वर्ग के लोगों में अज्ञान, अंधविश्वास, कुरीति, कुपरंपरा, जिससे निर्माण होनेवाला दारिद्र्य काफी बड़ी मात्रा में नजर आता था।

भारतेंदु जी का जन्म भले ही उच्च कुल में क्यों न हुआ पर बचपन से उनके मन में निम्नवर्ग के प्रति आदर था। सामाजिक विषमता को दूर करने के लिए भारतेंदु जी ने हिंदी स्कूलों का निर्माण किया जिसमें उन्होंने भारतीय संस्कृति, संस्कार, भारतीय भाषा को सिखाने का प्रयास किया।

भारतेंदु जी अपने कुल से सम्मानित न होकर उनके पास जो प्रतिभा थी उनसे सम्मानित व्यक्ति बने थे। साथ ही साथ निम्न वर्ग के लिए उन्होंने जो काम किया यह उसका परिचायक है।

भारतेंदु जी का साहित्य, उनकी सामाजिक सेवा का कार्य, पत्रकारिता के माध्यम से लोगों को जगाने का काम, अंग्रेजी स्कूलों से निर्माण होने वाले कालेसाहब जो अपनों पर ही हुकूमत करते थे, इनका विरोध किया। उनके कार्य इस बात का परिचय देते हैं कि भारतेंदु जी ने कुल के गर्व को दुहराने के बजाय देश के गर्व को दुहराया है।

देश, धर्म, साहित्य, दारिद्र्य मोचन, अपमानिता नारी के उद्धार के लिए उन्होंने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया था।

प्रश्न आ.
‘भारती का सपूत के आधार पर भारतेंदु की उदार प्रवृत्ति का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
‘भारती का सपूत’ जीवनीपरक उपन्यास है। भारतेंदु जी के जीवन और कार्य को आने वाली पीढ़ी के सामने रखना लेखक का उद्देश्य है। प्रस्तुत पाठ से भारतेंदु जी की उदार प्रवृत्ति स्पष्ट नजर आती है। भारतेंदु जी भले ही उच्च कुल में पैदा हुए हो पर उन्होंने अपना पूर्ण जीवन सामान्य लोगों के लिए बिताया है। साहित्य के क्षेत्र में हिंदी गद्य का निर्माण करके हिंदी भाषा को जनमानस की भाषा बनाने का काम किया।

अंग्रेजी और हिंदी स्कूल खोलकर भारतेंदु जी ने निम्न वर्ग के अज्ञान, अंधश्रद्धा और कुरीतियों को दूर करने का प्रयास किया। स्कूल में आने वाले छात्रों के लिए वह बिना शुल्क लिए पढ़ाते थे। साथ-ही-साथ छात्रों को किताबें और कलम मुफ्त में देते थे। इतना ही नहीं छात्रों के लिए खाना भी देते थे।

यह उनकी उदार प्रवृत्ति का उदाहरण है। अनेक प्रकार की पत्रिकाओं से समाज को जगाकर लोगों का दारिद्र्य दूर किया। शिक्षा, साहित्य, समाजसेवा, पत्रकारिता आदि सभी क्षेत्रों से भारतेंदु जी ने जन मानस के लिए जो कार्य किया है वह सब उनकी उदार प्रवृत्ति का परिचायक है।

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साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान

5. जानकारी दीजिए:

प्रश्न अ.
रांगेय राघव जी की रचनाओं के नाम –
…………………………………………………………………
…………………………………………………………………
उत्तर :
उपन्यास – विषाद मठ, उबाल, राह न रुकी, देवकी का बेटा, घरौंदा, कब तक पुकारूँ, आखिरी आवाज आदि कहानी संग्रह – पंच परमेश्वर, अवसाद का छल, गूंगे, प्रवासी, घिसटता कंबल, नारी का विक्षोभ, देवदासी आदि।

प्रश्न आ.
भारतेंदु द्वारा रचित साहित्य –
…………………………………………………………………
…………………………………………………………………
उत्तर :
काव्य कृतियाँ – भक्त सर्वस्व, प्रेममालिका, प्रेम-तरंग, वर्षा-विनोद, कष्ण – चरित्र प्रमुख निबंध – कालचक्र, कश्मीर, कुसुम, जातिय संगीत, स्वर्ग में विचार सभा नाटक – सत्य हरिश्चंद्र, श्री चंद्रावली, भारत दुर्दशा अँधेर नगरी, प्रेमजोगिनी आत्मकथा – ‘एक कहानी – कुछ आप बीती, कुछ जग बीती’ उपन्यास – पूर्णप्रकाश, चंद्रप्रभा यात्रा वृत्तांत – सरयू पार की यात्रा, लखनऊ

Yuvakbharati Hindi 11th Textbook Solutions Chapter 11 भारती का सपूत Additional Important Questions and Answers

कृतिपत्रिका
(अ) निम्नलिखित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

गद्यांश : भारतेंदु के जन्म के समय उच्च वर्गों का बहुत बड़ा ………… मुफ्त दवा बँटती थी। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 56)

प्रश्न 1.
तालिका पूर्ण कीजिए :

भारतेंदु जी के जीवन की महत्त्वपूर्ण घटनाएँ भारतेंदु जी की उम्र
(i) कविताएँ रचना शुरू किया ………………………………….
(ii) मन्नोदेवी से विवाह ………………………………….
(iii) नौजवानों का संघ बनाना ………………………………….
(iv) वाद-विवाद सभा की स्थापना ………………………………….

उत्तर :

भारतेंदु जी के जीवन की महत्त्वपूर्ण घटनाएँ भारतेंदु जी की उम्र
(i) कविताएँ रचना शुरू किया पाँच वर्ष
(ii) मन्नोदेवी से विवाह तेरह वर्ष
(iii) नौजवानों का संघ बनाना सत्रह वर्ष
(iv) वाद-विवाद सभा की स्थापना अठारह वर्ष

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प्रश्न 2.
कारण लिखिए :
(i) भारतेंदु जी को महत्त्व दिया गया ………………………………
उत्तर :
भारतेंदु जी को महत्त्व दिया गया उसका कारण उच्च कुल नहीं बल्कि उनकी प्रतिभा थी।

(ii) भारतेंदु जी ने वाद-विवाद सभा स्थापित की ………………………………
उत्तर :
भाततेंदु जी ने वाद-विवाद सभा स्थापित की क्योंकि वे भाषा और समाज का सुधार करना चाहते थे।

प्रश्न 3.
निम्न समोच्चारित भिन्नार्थक शब्दों के अर्थ लिखिए :
(i) प्रधान / प्रदान
(ii) दिन / दीन
उत्तर :
प्रधान : मुख्य
प्रदान : देने की क्रिया या भाव
दिन : दिवस
दीन : गरीब

प्रश्न 4.
‘दीन-दुखियों की सेवा ही ईश्वर सेवा है’, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
जो मनुष्य स्वयं के सुख हेतु जीता है वह स्वार्थी होता है परंतु जो परोपकार करता है, दीन-दुखियों की सेवा करता है वह महात्मा होता है। जरूरत मंदों की सेवा ही ईश्वर की सच्ची इबादत है। कर्म ही एक व्यक्ति की पहचान है। गरीबों का मित्र बनकर सेवा करना या बीमार व्यक्तियों की देखभाल करना, समाज का कल्याण करने में जीवन बिताना एक अर्थ में ईश्वर की पूजा करना ही है। क्योंकि इन्हीं दीन-दुखियारों की बस्ती में ईश्वर का वास होता है।

मानव सेवा ही ‘माधव’ सेवा है। दीनों की सेवा करके एक व्यक्ति ईश्वर को प्रसन्न कर पाता है और ईश्वर का अनुग्रह प्राप्त कर लेता है। इसीलिए तो कहा गया है कि,

भलाई बाँटने वाले कभी मोहताज नहीं होते,
हर दुख की दवा उनके पास होती है।’

जो ईश्वर सेवा करना चाहते हैं उन्हें हर समय दूसरे की भलाई के बारे में सोचना चाहिए बेसहारा लोगों को सहारा देना चाहिए। दूसरों का दुख बाँटने वाले का जीवन कभी व्यर्थ नहीं जाता।

(आ) निम्नलिखित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

गद्यांश : क्योंकि हम लोगों के पास धन है ………… मुफ्त खाना भी बँटवाने लगे। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 57)

प्रश्न 1.
प्रवाह तालिका पूर्ण कीजिए :
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उत्तर :
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प्रश्न 2.
कृति पूर्ण कीजिए :
(i) भारतेंदु द्वारा खोले स्कूल में दी गई सुविधाएँ –
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 11 भारती का सपूत 6
उत्तर :
भारतेंदु द्वारा खोले स्कूल में दी गई सुविधाएँ –
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 11 भारती का सपूत 7

(ii) मदरसे में अध्यापन करने वाले व्यक्ति –
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 11 भारती का सपूत 8
उत्तर :
मदरसे में अध्यापन करने वाले व्यक्ति –
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 11 भारती का सपूत 9

प्रश्न 3.
(i) लिंग बदलकर लिखिए :
उत्तर :
(1) देवर – ……………………………………
(2) अध्यापक – ……………………………………
उत्तर :
(1) देवर – देवरानी
(2) अध्यापक – अध्यापिका

(ii) वचन वदलिए :
(1) लड़के – ……………………………………
(2) फसल – ……………………………………
उत्तर :
(1) लड़के – लड़का
(2) फसल – फसलें

प्रश्न 4.
‘भारतीय संस्कृति’ इस विषय पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
भारतीय संस्कृति विश्व की सर्वाधिक प्राचीन संस्कृति है। वह सर्वाधिक संपन्न और समृद्ध है। ‘अनेकता में एकता’ इसकी सबसे बड़ी विशेषता है। इसमें सहस्त्रो धर्म ग्रंथ, सैकंड़ों आचार ग्रंथ, वेद, पुराण, देवी-देवता, गुरु, महंत और उनकी विभिन्न मान्यताएँ हैं; परंतु हम एक ही परमेश्वर को मानते हैं।

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इसकी अन्य विशेषता है इसका लचीलापन। इसमें समन्वय का एक अनोखा गुण विद्यमान है। इसीलिए आस्तिक-नास्तिक, मूर्तिपूजक व विरोधी, मंदिर, मस्जिद, गिरिजाघर, अलग-अलग भाषाएँ, पितृसत्तात्मक व मातृसत्तात्मक परिवार सभी को सुंदर पुष्पों के रूप में मानकर भारतीय संस्कृति सुगंध से भरपूर उपवन बनी है। वह हमें एक-दूसरे का आदर करना सिखाती है। सत्य, नैतिकता, ईमानदारी जैसे जीवन मूल्यों को महत्त्व देती है।

यह विश्व की एकमात्र ऐसी संस्कृति है जो विश्वशांति एवं विश्वबंधुत्व का संदेश देती है। यह एक ऐसा गुलदस्ता है जो विभिन्न विचारों के फूलों से सुसज्जित और स्नेह की डोरी में बँधा हुआ है।

(इ) निम्नलिखित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

गद्यांश : मल्लिका ने देखा तो आँखें फटी रह ………… क्या वह मनुष्य था! (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 58)

प्रश्न 1.
संजाल पूर्ण कीजिए :
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उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 11 भारती का सपूत 11

प्रश्न 2.
सह-संबंध लिखिए :
(1) कुलीन – याचक को ना नहीं कर सकता था।
(2) धनी – देश में सुधार करता घूमता रहा।
(3) निर्भीक – जो मनुष्यों से प्रेम करना जानता था।
(4) दानी – उन्मुक्त हाथों से लोगों की मदद करता था।
उत्तर :
(1) कुलीन – जो मनुष्यों से प्रेम करना जानता था।
(2) धनी – उन्मुक्त हाथों से लोगों की मदद करता था।
(3) निर्भीक – देश में सुधार करता घूमता रहा।
(4) दानी – याचक को ना नहीं कर सकता था।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों को प्रत्यय लगाकर नया शब्द बनाइए
(1) कुल – ………………………………….
(2) धर्म – ………………………………….
(3) देश – ………………………………….
(4) भारत – ………………………………….
उत्तर :
(1) कुलीन
(2) धार्मिक
(3) देशी
(4) भारतीय

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प्रश्न 4.
‘देश के प्रति मेरा कर्तव्य’ अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
देश के प्रति हम सब की कुछ जिम्मेदारियाँ और कर्तव्य हैं जो हमें निभाने चाहिए। हमें हमारे राष्ट्र को, राष्ट्र ध्वज को तथा राष्ट्र गान को सम्मान देना चाहिए। देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए। देश के कानून का कठोरता से पालन करना चाहिए।

हमारी राष्ट्रीय थाती एवं सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा करनी चाहिए। पर्यावरण को साफसुथरा रखना हमारा कर्तव्य है। हमारी प्राकृतिक संपदा की सुरक्षा करना भी हमारा कर्तव्य है। अपनी योग्यता, रुचि, अभिरुचि के अनुरूप देश के विकास में योगदान देना चाहिए। हमें बुद्धिमानी से मतदान कर नेता चुनना चाहिए। हमें अपने करों का भुगतान समय पर करना चाहिए।

देश का उज्ज्वल भविष्य हमारे हाथ में है इस बात को सदैव याद रखकर अपने कर्तव्य ईमानदारी से निभाना ही देशभक्ति है। हमारी सोच सकारात्मक हो। हमें शिक्षा का प्रचार-प्रसार करके श्रम शक्ति का बेहतर उपयोग करना चाहिए और वैज्ञानिक सोच अपनाकर अग्रसर होना चाहिए।

भारती का सपूत Summary in Hindi

भारती का सपूत लेखक परिचय :

रांगेय राघव जी का जन्म 17 जनवरी 1923 को श्री रंगाचार्य के घर उत्तर प्रदेश में हुआ। आपकी पूर्ण शिक्षा आगरा में हुई। वहीं से आपने पी.एच.डी की उपाधि प्राप्त की। आंचलिक ऐतिहासिक तथा जीवनीपरक उपन्यास लिखने वाले रांगेय राघव जी के उपन्यासों में भारतीय समाज का यथार्थ (actual) चित्रण प्राप्त है। आपने साहित्य की लगभग सभी विधाओं में सृजनात्मक (creative) लेखन करके हिंदी साहित्य को समृद्धि (prosperity) प्रदान की है।

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 11 भारती का सपूत1

आपने मातृभाषा हिंदी से ही देशवासियों के मन में देश के प्रति निष्ठा और स्वतंत्रता का संकल्प जगाया। सबसे पहले कविता के क्षेत्र में कदम रखा पर महानता मिली गद्य लेखक के रूप में। 1946 में प्रकाशित ‘घरौंदा’ उपन्यास के जरिए आप प्रगतिशील कथाकार के रूप में चर्चित हुए।

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 11 भारती का सपूत

1962 में आपको कैंसर रोग पीड़ित बताया गया। उसी वर्ष 12 सिंतबर को आप मुंबई में देह त्यागी। पुरस्कार : हिंदुस्तान अकादमी, डालमिया पुरस्कार, मरणोपरांत (1966) महात्मा गांधी पुरस्कार।

भारती का सपूत प्रमख कतियाँ :

उपन्यास – विषाद मठ, उबाल, राह न रुकी, बारी बरणा खोल दो, देवकी का बेटा, रत्ना की बात, भारती का सपूत, यशोधरा जीत गई, घरौंदा, लोई का ताना, कब तक पुकारूँ, राई और पर्वत, आखिरी आवाज आदि। कहानी संग्रह – पंच परमेश्वर, अवसाद का छल, गूंगे, प्रवासी, घिसटता कंबल, नारी का विक्षोभ, देवदासी, जाति और पेशा आदि

भारती का सपूत विधा का परिचय :

‘उपन्यास’ वह गद्य कथानक है जिस के द्वारा जीवन तथा समाज की व्यापक व्याख्या की जा सकती है। उपन्यास को आधुनिक युग की देन कहना अधिक समुचित होगा। साहित्य में गद्य का प्रयोग जीवन के यथार्थ चित्रण का द्योतक है। साधारण बोलचाल की भाषा द्वारा लेखक के लिए अपने पात्रों, उनकी समस्याओं तथा उनके जीवन की व्यापक पृष्ठभूमि से प्रत्यक्ष संबंध स्थापित करना आसान हो गया है।

उपन्यास हमारे जीवन का प्रतिबिंब होता है, जिसको प्रस्तुत करने में कल्पना का प्रयोग आवश्यक है। मानव जीवन का सजीव चित्रण उपन्यास है। उपन्यास महान सत्यों और नैतिक आदर्शों का एक अत्यंत मूल्यवान साधन है।

भारती का सपूत विषय प्रवेश :

जीवन में अनेक ऐसी महान विभूतियाँ होती है, जिनका स्मरण करके हम आने वाली पीढ़ी के सामने उनका आदर्श रख सकते हैं। प्रस्तुत जीवनपरक उपन्यास में हिंदी गद्य के जनक तथा पिता भारतेंदु हरिश्चंद्र जी के जन्मदिन के अवसर पर अध्यापक रत्नहास ने लोगों को निमंत्रित करके एक तरफ उनके प्रति श्रद्धा जताई तो दूसरी तरफ निमंत्रित लोगों के सामने भारतेंदु जी के जीवन के अनेक पहलुओं को उजागर किया।

भारतीय भाषा और संस्कृति, अंग्रेजी स्कूलों का दुष्परिणाम, हिंदी अंग्रेजी पाठशाला निर्माण, बचपन से ही साहित्य के प्रति रुझान, पिता का आदर्श, आदि कार्यों का लेखा-जोखा रखकर श्रद्धा प्रकट करना और जीवन में प्रेरणा लेना पाठ का उद्देश्य है। केवल 34 वर्ष 4 महीने जिंदगी जीने वाले भारतेंदु जी का जीवन आदर्शवत (idealizing) है।

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 11 भारती का सपूत

भारती का सपूत पाठ का परिचय :

‘भारती का सपूत’ रांगेय राघव लिखित जीवनीपरक उपन्यास का अंश है। प्रस्तुत जीवनी परक उपन्यास में हिंदी गद्य भाषा के जनक भारतेंदु हरिश्चंद्र जी के जीवन को आधार बनाकर, उनके जीवन के कुछ पहलुओं को उजागर किया गया है। बचपन से ही साहित्य एवं शिक्षा के प्रति रुझान ने भारतेंदु जी को हिंदी साहित्य जगत का देदीप्यमान इंदु अर्थात चंद्रमा बना दिया।

अंग्रेजों की नीतियाँ, सामाजिक कुरीतियाँ, एवं अशिक्षा के खिलाफ भारतेंदु जी द्वारा जगाई अलख को उपन्यासकार ने अपनी लेखनी से और भी प्रज्वलित किया है।

भारती का सपूत सारांश :

‘भारती का सपूत’ जीवनीपरक उपन्यास है। इसमें भारतेंदु जी के जीवन के अनेक पहलुओं का वर्णन किया है। भारतेंदु जी का जीवन आने वाली पीढ़ी के लिए एक प्रेरणा है। इसलिए अध्यापक रत्नहार जी ने भारतेंदु जी के जन्मदिन के अवसर पर लोगों को बुलाकर उनके प्रति श्रद्धा जताई तो दूसरी तरफ उनके जीवन का बखान करके लोगों में प्रेरणा निर्माण की।

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भारतेंदु जी के पिता कवि थे, उसका असर बचपन में ही भारतेंदु जी पर पड़ा और 5 वर्ष की उम्र में ही भारतेंदु जी कविता लिखने लगे। उनका जन्म उच्च कुल में हुआ था, जिसका प्रभाव समाज पर था। परंतु भारतेंदु जी कुल के कारण महान नहीं बने बल्कि उनके कार्य से महान बने थे।

भारतेंदु जी की शादी 13 वर्ष की उम्र में मन्नो देवी से हुई। 17 वर्ष की उम्र में उन्होंने नौजवानों का संघ बनाया था। उसके बाद वाद-विवाद सभा का निर्माण किया। इस सभा का उद्देश्य भाषा और समाज का सुधार करना था। 18 वर्ष की आयु में बनारस इन्स्टिट्युट और ब्रह्मामृत वार्षिक सभा के प्रधान सहायक रहे। कविवचन-सुधा नामक पत्रिका का निर्माण किया। होम्योपैथिक चिकित्सालय निर्माण करके लोगों को मुफ्त इलाज किया और दवाएँ दीं।

भारतेंदु जी के काल में अंग्रेजी स्कूल थे, जिसका परिणाम – लोग काले साहेब बनकर अपनों पर ही हुकूमत करते थे इसलिए भारतेंदु जी ने हिंदी तथा अंग्रेजी पाठशालाओं का निर्माण किया, जिससे भारतीय संस्कृति तथा भाषा का विकास हो सकें।

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 11 भारती का सपूत

केवल 34 वर्ष 4 महीने की आयु में भारतेंदु जी आखरी दिनों में बिस्तर पर पड़े थे, परंतु फिर भी देश के प्रति उनकी निष्ठा बनी थी। उन्होंने साहित्य, देश, धर्म, दारिद्र्यमोचन, कला और अपमानित नारी के उद्धार के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया था।

भारती का सपूत शब्दार्थ :

  • कौतूहल = जिज्ञासा
  • तारतम्य = सामंजस्य
  • तादात्म्य = अभिन्नता, एकरूपता
  • क्षीणकाय = दुर्बल, जर्जर शरीर
  • कौतुहल = जिज्ञासा (curiosity),
  • तारतम्य = सांमजस्य (sequence),
  • तादात्म्य = एकरूपता (equability),
  • क्षीणकाय = दुर्बल, जर्जर शरीर (weak body),
  • हुकूमत = अधिकार, सत्ता (regime),
  • पुरखों = पूर्वज (ancestor),
  • उन्मुक्त = स्वच्छंद, स्वतंत्र (freelance),
  • न्यौछावर = कुरबान (sacrifice),
  • दोगलो = नाजायज, (जो विवाहेतर संबंध से उत्पन्न) (illegitimate)

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 10 महत्त्वाकांक्षा और लोभ

Balbharti Maharashtra State Board Hindi Yuvakbharati 11th Digest Chapter 10 महत्त्वाकांक्षा और लोभ Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

Maharashtra State Board 11th Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 10 महत्त्वाकांक्षा और लोभ

11th Hindi Digest Chapter 10 महत्त्वाकांक्षा और लोभ Textbook Questions and Answers

आकलन

1. लिखिए :

प्रश्न अ.
मछुवा-मछुवी की दिनचर्या –
……………………………………………………..
……………………………………………………..
उत्तर :
मछुवा दिन भर मछलियाँ पकड़ता।
मछुवी दिन भर दूसरा काम करती।

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 10 महत्त्वाकांक्षा और लोभ

प्रश्न आ.
मछुवा-मछुवी की कहानी का अंत –
……………………………………………………..
……………………………………………………..
उत्तर :
मछली रूष्ट हो गई।
मछुवा-मछुवी का राजवैभव छिन लिया गया।
दोनों फिर से अपनी टूटी-फूटी झोपड़ी में रहने लगे।

प्रश्न इ.
लेखक द्वारा बताई गईं मनुष्य स्वभाव की विशेषताएँ –
(1) ……………………………………………………..
(2) ……………………………………………………..
(3) ……………………………………………………..
उत्तर :
(1) अपने दोषों को छिपाकर दूसरों पर दोषारोपण करना।
(2) अपने ही कामों को महत्त्व देना, दूसरों के नहीं।
(3) अपने द्वारा किए गए उपकार को निस्संकोच बताना परंतु दूसरों के द्वारा की गई सेवा को न बतलाना।

शब्द संपदा

2. निम्नलिखित शब्दों के लिए उचित शब्द समूह का चयन कीजिए :

(1) अभक्ष्य : जो खाने के अयोग्य हो / जो खाया नहीं गया।
उत्तर :
जो खाने के अयोग्य हो।

(2) अदृश्य : जो दिखाई न दे / जो दिखाई नहीं देता।
उत्तर :
जो दिखाई न दे।

(3) अजेय : जिसे जीता न जा सके / जिसे जितना कठिन हो
उत्तर :
जिसे जीता न जा सके।

(4) शोषित : जिसका शोषण किया गया है जो शोषण करता है।
उत्तर :
जिसका शोषण किया गया है।

(5) कृशकाय : जिसका शरीर कुश के समान हो / जो बहुत दुबला-पतला हो।
उत्तर :
जिसका शरीर कुश के समान हो।

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(6) सर्वज्ञ : जो सब कुछ जानता हो / जो सब जगह व्याप्त है।
उत्तर :
जो सब कुछ जानता हो।

(7) समदर्शी : जो सबको समान देखता है / जो सबको समान दृष्टि से देखता है।
उत्तर :
जो सबको समान दृष्टि से देखता है।

(8) मितभाषी : जो कम बोलता है / जो मीठा बोलता है।
उत्तर :
जो कम बोलता है।

अभिव्यक्ति

3.
प्रश्न अ.
‘अति से तो अमृत भी जहर बन जाता है, इस कथन पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर :
‘अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप।
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।।’

अर्थात ‘अति’ हर जगह नुकसानदायी ही है। अति लालसा मनुष्य के जीवन में पतन के द्वार खोल देती है। कुछ पाने की आशा में वह अपना सब कुछ गँवा देता है। अपने नैतिक मूल्यों को अनदेखा कर मनुष्य सारी मर्यादाएँ तोड़कर इच्छापूर्ति में लग जाता है। पाठ में दी गई कहानी के मछुवा-मछुवी की तरह ही जो वैभव मिला था उसे फिर से गँवा बैठते हैं।

दुनिया गवाह है प्रकृति के साथ हमने जो ‘अति किया और कर रहे हैं उसका परिणाम आज प्रदूषण के रूप में भुगत रहे हैं। गुड़ के एक छोटे से टुकड़े का सेवन और स्वाद अच्छा होता है परंतु इस छोटे टुकड़े को बड़े टुकड़े में बदलकर उसका सेवन करने से शरीर में विकार ही उत्पन्न होंगे।

एक गुब्बारे में उसकी क्षमता से अधिक हवा भरने की कोशिश की तो परिणाम क्या होगा कहने की आवश्यकता नहीं है। जो दवा उचित अनुपान से ली गई तो अमृत के समान हमारी सेहत ठीक करती है वही दवा अगर अधिक मात्रा में ली गई तो उसके दुष्परिणाम जान लेवा ही सिद्ध होंगे।

अमृत भी जहर बन जाएगा यह बात त्रिकालाबाधित सत्य है। अत: ‘अति सर्वत्र वर्जयेत’ ध्यान में रखना है और ‘अति’ से बचना चाहिए।

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प्रश्न आ.
‘महत्त्वाकांक्षाओं का कभी अंत नहीं होता’, इस वास्तविकता को अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
प्रगति के लिए महत्त्वाकांक्षी होना उचित है परंतु इनका कोई अंत नहीं है। एक के पूरा होते ही दूसरी महत्त्वाकांक्षा जन्म ले लेती है। इच्छा, कामना, लालसा, महत्त्वाकांक्षा ये सभी तृष्णा के पर्यायवाची शब्द हैं। इन्हीं कारणों से मनुष्य नैतिक या अनैतिक मार्ग से भी क्यों न हो उसे पूरा करने में लग जाता है।

सपने देखना एक सहज प्रवृत्ति है परंतु उन्हें साकार न होते देख तनावग्रस्त होना गलत है। क्योंकि हम दूसरों के आधार पर अपना आकलन करने लगते हैं। दूसरों से आगे निकलना ही हमारे लिए महत्त्वपूर्ण बन जाता है। फिर वह खेल-कूद हो, पढ़ाई-लिखाई हो, घर-गृहस्थी हो या अन्य कुछ।

विचार, ज्ञान, पैसा, प्रतिष्ठा, बल, बुद्धि आदि में दूसरों से श्रेष्ठ बनने की महत्त्वाकांक्षा हममें जागती ही रहती है। वह हमें लोभ के माया जाल में फँसाती रहती है। उदाहरणार्थ – एक छोटा सा घर बनाने की महत्त्वाकांक्षा से जब अपना घर बनता है।

तब हमारे घर के सामने किसी का बड़ा घर बनते ही हमें अपने घर का आनंद होने की बजाय सामने वाले घर के समान अपना घर नहीं इस बात का दुःख होता है और हम उसी प्रकार के घर को बनाने की महत्त्वाकांक्षा में लग जाते हैं।

कितना भी मिला, कितना भी पाया तो भी मनुष्य संतुष्ट नहीं होता; महत्त्वाकांक्षा कभी समाप्त नहीं होती। यही जीवन की वास्तविकता है।

पाठ पर आधारित लघूत्तरी प्रश्न।

4.
प्रश्न अ.
प्रस्तुत निबंध में निहित मानवीय भावों से संबंधित विचार लिखिए।
उत्तर :
‘महत्त्वाकांक्षा और लोभ’ इस निबंध में लेखक श्री. पदुमलाल बख्शी जी ने महत्त्वाकांक्षा के साथ-साथ असंतोष, अति लालसा, स्वयं को शक्तिमान बनाने की उत्कट अभिलाषा तथा कृतघ्नता के दुष्परिणाम को प्रस्तुत किया है। जो सुलभता से प्राप्त होता है उसके प्रति अर्थात प्राप्य के प्रति विरक्ति का भाव तथा अप्राप्य की लालसा मनुष्य को किस तरह लोभ में फँसाती है इसे कहानी द्वारा स्पष्ट किया है।

मछुवा और मछुवी को मछली के वरदान से घर, धन, राजकीय वैभव प्राप्ति के साथ-साथ मछुवी रानी बनी और सेवा में नौकर-चाकर भी प्राप्त हुए। इतना सब-कुछ प्राप्त होने से जो मिला है, उससे संतुष्ट होना चाहिए था। पर मानवीय प्रवृत्ति ऐसी है कि जो कभी संतुष्ट रहने नहीं देती, जो अप्राप्य है उसे पाने का प्रयास करती रहती है। अति महत्त्वाकांक्षा ने सूर्य, चंद्र, मेघ को अपने वश में करने की लालसा ने उनका जीवन समाप्त किया।

मानवीय भावों को अपने वश में रखना सही है पर हम उसे अपने वश में रख नहीं पाते यही हकीकत है।

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प्रश्न आ.
पाठ के आधार पर कृतघ्नता, असंतोष के संबंध में लेखक की धारणा लिखिए।
उत्तर :
पाठ की कहानी में देवी मछली की कृतघ्नता लेखक ने स्पष्ट की है। मछुवे ने देवी मछली की मदद निस्वार्थ भाव से की थी।

पत्नी के कहने पर उसने कुछ याचना की थी और उसे पूरा करके देवी मछली ने मछुए की पत्नी में अभिलाषा पैदा की थी। परंतु उसके सामने मछुवे ने पत्नी की ऐसी इच्छा प्रकट की थी जो वह पूरा नहीं कर सकती थी तब उसने सारा वैभव, धन सबकुछ वापस ले लिया और गरीबी में रहने का शाप दे दिया।

वरदान का अंत इस प्रकार अभिशाप में परिणत हो गया। देवी होते हुए भी उसमें त्याग, प्रेम, कृतज्ञता, क्षमा, दया जैसी भावनाएँ नहीं थी। वह कृतघ्न थी जो एक देवी को शोभा नहीं देता।

मछुवे की पत्नी में जो असंतोष था वह मानवी स्वभाव है। क्योंकि जब तक मनोवांछित फल मिलता नहीं तब तक उसे पाने के लिए मन लालायित रहता है परंतु जब वह वस्तु प्राप्त हो जाती है तब हमें दूसरी उससे भी बड़ी और महत्त्वपूर्ण वस्तु प्राप्त करने की इच्छा जाग जाती है और असंतोष की भावना मन में बनी रहती है। मछली ने पहले घर माँगा था। फिर खाने-पीने की तकलीफ है इसलिए धन माँगा था। लालसा बढ़ जाने पर राज वैभव माँगा था।

उसके पास महल, बाग, नौकर-चाकर आ जाने पर उसने सूर्य, चंद्र, मेघ आदि पर हुक्म करने की इच्छा व्यक्त की थी। अति लालसा और असंतोष के कारण ही जो कुछ उसने पाया था उसे खोना पड़ा था।

जो मछुवा-मछुवी वर्तमान में संतोष से जी रहे थे, टूटी-फूटी झोपड़ी में भी संतुष्ट थे उनमें असंतोष के भाव पैदा होने के कारण ही राज-वैभव भी उन्हें संतुष्ट नहीं कर पाया। मन की अनंत इच्छाओं का परिणाम ऐसा ही भयानक होता है यही लेखक का कहना है।

साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान

5. जानकारी दीजिए:

प्रश्न अ.
पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी के निबंधों की प्रमुख विशेषताएँ –
(१) …………………………………………..
(२) …………………………………………..
उत्तर :
(1) कहानी जैसी मनोरंजकता
(2) जीवन की सच्चाइयों की बड़ी सरलता से अभिव्यक्ति

प्रश्न आ.
अन्य निबंधकारों के नाम –
उत्तर :

  • राँगेय राघव
  • रामधारीसिंह ‘दिनकर’
  • हजारीप्रसाद द्विवेदी
  • गुणाकर मुळे
  • रवींद्रनाथ त्यागी

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6. दी गई शब्द पहेली से सुप्रसिद्ध रचनाकारों के नाम ढूंढकर उनकी सूची तैयार कीजिए :
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 10 महत्त्वाकांक्षा और लोभ 1
उत्तर :

  1. महादेवी वर्मा
  2. मीरा
  3. रांगेय राघव
  4. पंत (सुमित्रानंदन)
  5. कमलेश्वर
  6. प्रेमचंद
  7. निराला (सूर्यकांत त्रिपाठी)
  8. नीरज (गोपालदास सक्सेना)
  9. सूरदास
  10. प्रसाद (हरिशंकर)
  11. जैनेंद्र कुमार

Yuvakbharati Hindi 11th Textbook Solutions Chapter 10 महत्त्वाकांक्षा और लोभ Additional Important Questions and Answers

कृतिपत्रिका

(अ) निम्नलिखित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

गद्यांश : पर एक दिन एक घटना हो गई …………………………………. मछली उन्हें खाकर उसपर और भी प्रसन्न होती। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 50-51)

प्रश्न 1.
कारण लिखिए :
(i) मछली ने मछुवे को पुकारा –
(1) ………………………………..
(2) ………………………………..
उत्तर :
(1) नदी के किनारे लता में मछली फँसी थी।
(2) मछली अपने जीवनदान के लिए पुकार रही थी।

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(ii) मछली को आनंद हुआ –
(1) ………………………………..
(2) ………………………………..
उत्तर :
(1) मछुवे ने मछली को पानी में छोड़ा।
(2) आटे की गोलियाँ खिलाई।

प्रश्न 2.
उत्तर लिखिए :
(i) मछली यहाँ फँसी थी – ………………………………..
(ii) नदी के पास था – ………………………………..
(iii) मछलियाँ पकड़ने आया था – ………………………………..
(iv) यहाँ खूब पानी था – ………………………………..
उत्तर :
(i) लताओं में
(ii) एक गड्ढा
(iii) मछुवा
(iv) नदी में

प्रश्न 3.
(i) विलोम शब्द लिखिए :
(1) तैरना : ………………………………
उत्तर :
डूबना

(ii) सुरक्षित शब्द सुरक्षा + इत अर्थात ‘इत’ प्रत्यय लगाकर वना है। ‘इत’ प्रत्यययुक्त अन्य शब्द लिखिए:
(1) …………………………………
(2) …………………………………
उत्तर :
(1) शिक्षा + इत = शिक्षित
(2) सीमा + इत = सीमित

प्रश्न 4.
अभिलाषा पूर्ति के आनंद को अपने अनुभव द्वारा व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
हर मनुष्य को सुख की अभिलाषा रहती है। सुख-दुख का संबंध मनुष्य के शरीर से होता है जबकि आनंद का संबंध उसकी आत्मा से होता है। हम जो भी कर्म करते हैं फल की आशा हमें होती ही है और मनोनुकूल फल पाकर हमारा मन आनंदित हो उठता है।

प्रकृति के सौंदर्य का रसपान मेरे लिए सबसे बड़ा आनंद है। दैनंदिन जीवन की चिंताओं से दूर प्रकृति की गोद में बैठकर मौज-मस्ती करने में जो आनंद है वह शायद ही किसी अन्य साधन से मिलता होगा। कामकाज की थकान क्षण में काफूर हो जाती है।

ऋषि-मुनियों की आध्यात्मिक चेतना यहाँ जागृत होती रही और हमारी संस्कृति का विकास हुआ। कवियों के अंत:स्थल से काव्य की अभिव्यक्ति हुई। एक कवि ने क्या खूब लिखा है –

‘पर्वतों की श्रृंखलाओं में ये कौन सा जादू है छिपा,
ऐसा लगा मुझे जीवन का सबसे हँसीन पल मिला।’

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(आ) निम्नलिखित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

गद्यांश : मछुवा नदी के तट पर ………………………………… मछली से यही माँगो। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 51)

प्रश्न 1.
संजाल पूर्ण कीजिए :
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 10 महत्त्वाकांक्षा और लोभ 2
उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 10 महत्त्वाकांक्षा और लोभ 3

प्रश्न 2.
कारण लिखिए :
(i) घर होने से लाभ नहीं हुआ क्योंकि …………………………………
उत्तर :
घर होने से लाभ नहीं हुआ क्योंकि खाने-पीने की तकलीफ थी।

(ii) धन प्राप्त होने से लाभ नहीं हुआ क्योंकि …………………………………
उत्तर :
धन प्राप्त होने से लाभ नहीं हुआ क्योंकि मछवी को राजवैभव चाहिए था।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों को उपसर्ग लगाकर सही शब्द वनाओ।
(i) दिन :
(ii) घर
(ii) धन
(iv) एक
उत्तर :
(i) दुर्दिन
(ii) बेघर
(iii) निर्धन
(iv) अनेक.

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प्रश्न 4.
‘लालच बुरी वात है’ इस विषय पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
जब कभी इंसान लालच करता है वह अपना ही नुकसान कर बैठता है। लालच के कारण हमारी संपत्ति, रिश्ते-नाते सब बिगड़ जाते हैं। लालच में पड़कर एक भाई अपने भाई को, पति-पत्नी एक दूसरे को धोखा देते हैं। इतना ही नहीं तो कोई गद्दार अपनी मातृभूमि को भी धोखा दे सकता है।

ऐसा करने वाले सभी अंत में स्वयं का ही नुकसान कर बैठते हैं। लालच के चलते गलत काम करके मुसीबत में फंसने वाले कितने ही लोग हमें आस-पास ही देखने मिल जाएँगे। लालच इंसान को इंसान नहीं रहने देती। लालच ऐसी बुरी बला है कि हमें सफलता के रास्ते से दूर ले जाती है।

सत्तालिप्सा, धनलोलुपता, पदलोलुपता के चलते मनुष्य मानवता को भी ताक पर रख देता है। इतिहास इसका गवाह है। अत: लालच से हमेशा दूर रहकर नैतिक पतन से बचना चाहिए और सफलता की ओर अग्रसर होना चाहिए।

(इ) निम्नलिखित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

गद्यांश : यदि मैं मछुवा होता तो ……………………………………….. उपकार की भावना नहीं है, क्षमा नहीं, दया नहीं है। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 52)

प्रश्न 1.
संजाल पूर्ण कीजिए :
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 10 महत्त्वाकांक्षा और लोभ 4
उत्तर :
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प्रश्न 2.
परिणाम लिखिए :

(i) मछुवी को मछली की दैवी शक्ति पर विश्वास हो जाने का परिणाम –
उत्तर :
मछुवी को मछली की दैवी शक्ति पर विश्वास हो जाने का परिणाम यह हुआ कि मछुवी ने ऐसी इच्छा प्रकट कर दी जो पूरी करना असंभव था।

(ii) देवी समझकर याचना करने का परिणाम –
उत्तर :
देवी समझकर याचना करने का परिणाम यह हुआ कि मछुवे की पत्नी के मन में अभिलाषाएँ पैदा हुई।

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प्रश्न 3.
पर्यायवाची शब्द लिखिए :
(i) हृदय : ……………………………………………..
(ii) विश्वास : ……………………………………………..
उत्तर :
(i) हिय, उर, दिल
(ii) यकीन, आस्था, भरोसा

अभिव्यक्ति :
प्रश्न 1.
‘अति से तो अमृत भी जहर वन जाता है’ इस कथन पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर :
संत कबीर कहते है,

‘अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप।
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।।’

अर्थात ‘अति’ हर जगह नुकसानदायी ही है। अति लालसा मनुष्य के जीवन में पतन के द्वार खोल देती है। कुछ पाने की आशा में वह अपना सब कुछ गँवा देता है। अपने नैतिक मूल्यों को अनदेखा कर मनुष्य सारी मर्यादाएँ तोड़कर इच्छापूर्ति में लग जाता है। पाठ में दी गई कहानी के मछुवा-मछुवी की तरह ही जो वैभव मिला था उसे फिर से गँवा बैठते हैं।

दुनिया गवाह है प्रकृति के साथ हमने जो ‘अति किया और कर रहे हैं उसका परिणाम आज प्रदूषण के रूप में भुगत रहे हैं। गुड़ के एक छोटे से टुकड़े का सेवन और स्वाद अच्छा होता है परंतु इस छोटे टुकड़े को बड़े टुकड़े में बदलकर उसका सेवन करने से शरीर में विकार ही उत्पन्न होंगे।

एक गुब्बारे में उसकी क्षमता से अधिक हवा भरने की कोशिश की तो परिणाम क्या होगा कहने की आवश्यकता नहीं है। जो दवा उचित अनुपान से ली गई तो अमृत के समान हमारी सेहत ठीक करती है वही दवा अगर अधिक मात्रा में ली गई तो उसके दुष्परिणाम जान लेवा ही सिद्ध होंगे।

अमृत भी जहर बन जाएगा यह बात त्रिकालाबाधित सत्य है। अत: ‘अति सर्वत्र वर्ज येत’ ध्यान में रखना है और ‘अति’ से बचना चाहिए।

महत्त्वाकांक्षा और लोभ Summary in Hindi

महत्त्वाकांक्षा और लोभ लेखक परिचय :

पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी का जन्म 27 मई 1894 को खैरागढ़ (छत्तीसगढ़) में हुआ। शिक्षा के उपरांत आप साहित्य के क्षेत्र में आए। साहित्य क्षेत्र में आपकी निबंध, उपन्यास तथा समीक्षात्मक ग्रंथों में अलग पहचान दिखाई देती है। जीवन के कठीन सिद्धांत अर्थात तत्वों को दृष्टांत के सहारे स्पष्ट करने की आपकी शैली अद्वितीय है। आपका साहित्य समाज का दर्पण (mirror) ही नहीं बल्कि दीपक है।

जीवन की सच्चाइयों को बड़ी सरलता से व्यक्त करना तथा कहानी-सी मनोरंजकता के साथ प्रस्तुति आपके साहित्य की विशेष शैली बनी है। साहित्य और समाज सेवा में आपका जीवन बीता और 1971 में आपने इस संसार से बिदा ली।

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 10 महत्त्वाकांक्षा और लोभ

महत्त्वाकांक्षा और लोभ प्रमुख कृतियाँ :

‘कथा चक्र’ (उपन्यास), “हिंदी साहित्य विमर्श’ और ‘विश्व साहित्य’ (समीक्षात्मक ग्रंथ), बख्शी ग्रंथावली, ‘पंचपात्र’, ‘पद्यवन’, ‘कुछ’, और कुछ (निबंध संग्रह)

महत्त्वाकांक्षा और लोभ विधा का परिचय :

‘निबंध’ एक गद्य विधा है। किसी विषय का यथार्थ चित्रण जिसमें किया जाता है। निबंध इस गद्य विधा से जीवन के तत्वों को बड़ी सरलता के साथ समाज के सामने रखा जाता है। वर्तमान परिस्थितियों का काफी सूक्ष्म चित्रण निबंध जैसी विधा में किया जाता है।

आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ आदि निबंधकारों ने इस विधा को उच्च कोटी पर पहुँचा दिया है।

महत्त्वाकांक्षा और लोभ विषय प्रवेश :

ज्ञात से अज्ञात की ओर इसी शिक्षा प्रणाली की तरह प्रस्तुत निबंध में जीवन के तत्वों को आरंभ में काल्पनिक कथा से जोड़ दिया है। मछुवा और मछुवी की काल्पनिक कहानी हमें सरलता से समझा देती है कि, जीवन की अति महत्त्वाकांक्षा, अति लालसा, सर्वशक्तिमान होने की अभिलाषा जीवन को परास्त (defeated) करती है।

महत्त्वाकांक्षा और लोभ परिणामत:

मछुवा-मछुवी का सामान्य जीवन, मछली का वरदान, अभिलाषाओं का जागृत होना, मानवीय भावों को वश में न रखना, वरदान शाप में परिणत होना – मानवीय भावों के इस खेल में क्या सही, क्या गलत, दोष मछली का या मछुवी का – यही निबंध के चिंतन विषय हैं।

महत्त्वाकांक्षा और लोभ पाठ परिचय :

‘अति से तो अमृत भी जहर बन जाता है’ जीवन के इसी तथ्य को उजागर करने वाले इस निबंध में अति महत्त्वाकांक्षा के साथ असंतोष, अति लालसा, लोभ, स्वयं को सर्वशक्तिमान बना लेने की उत्कट अभिलाषा जीवन को परास्त कर देती है।

जो मिला है, जितना मिला है, उसी में संतुष्ट रहने के बजाय अधिक पाने की अभिलाषा मनुष्य को लोभ के जाल में फँसाती है। मछली के वरदान से मछुवा-मछुवी को घर मिला, धन मिला, राजकीय वैभव मिलने से मछुवी रानी भी बनी।

पर हिरण्यकश्यप की तरह सर्वशक्तिमान होने की अभिलाषा से उन्होंने सूर्य, चंद्र, तथा मेघ को अपनी आज्ञा में रहने का वरदान माँगा। मछली अप्रसन्न होकर शाप देती है – ‘जा-जा, अपनी उसी झोपड़ी में रह।’ वरदान शाप में परिणत होते ही मछुवा-मछुवी झोंपड़ी में रहने लगे।

यहाँ एक तरफ अभिलाषा है। अभिलाषाओं को जगाने वाली मछली है। मानवीय भावों के इस खेल में दोष किसका? यही तो निबंध का सार है।

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महत्त्वाकांक्षा और लोभ पाठ का सारांश :

अप्राप्य की लालसा हमेशा मानव मन को लोभ के जाल में फँसाती रहती है और जीवन को तहस-नहस कर डालती है। जीवन के इसी सिद्धांत को इस निबंध में दृष्टांत द्वारा समझाया है।

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 10 महत्त्वाकांक्षा और लोभ 6

एक कछुवा और कछुवी अपनी टूटी-फूटी झोंपड़ी में अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे। मछुवा दिनभर मछलियाँ पकड़ता तो मछुवी दिन भर दूसरा काम करती थी तब कहीं खाने को मिलता था। यही उनका वर्तमान था, उन्हें न आशा थी, न कोई लालसा।

मछुवा एक दिन मछली पकड़ने नदी के किनारे गया। वहाँ नदी के किनारे एक छोटी सी मछली लताओं में फँसी थी। मछली ने मछुवे को देखकर पुकारा और मदद माँगी कि, मुझे पानी में छोड़ दो। मछुवे ने निस्वार्थ भाव से मछली को पानी में छोड़ा।

मछली ने पहले गड्ढे के पानी में, फिर नदी के पानी में छोड़ने की बात की। मछुवे ने वैसा ही किया। फिर मछली ने मछुवे को नदी के किनारे रोज आकर बैठने की बात की ताकि उसका मन बहल जाए। मछुवा वैसा ही करता रहा।

पत्नी के पूछने पर मछुवे ने पूरी घटना बता दी। पत्नी ने कहा तुम कुछ नहीं समझते, वह मछली कोई साधारण नहीं है। मछली के रूप में कोई देवी होगी। उससे कुछ माँग लो।

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पत्नी के कहने पर मछुवे ने मछली से अपने लिए घर माँगा। मछली के वरदान से मछुवे का घर बन गया। मछुवी में लोभ जागा। उसने सोचा घर होने से क्या होगा? धन चाहिए। फिर उसने धन माँगा तो धन मिला पर मछुवी की महत्त्वाकांक्षा बढ़ गई। उसने राजवैभव माँगा। फिर राजवैभव मिल गया।

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उसका लोभ बढ़ा और उसने फिर रानी होने की अभिलाषा रखी। मछुवी राजमहल में रानी बन गई। अति लोभ से मछुवी ने अपने पति से कहलवाकर मछली से – सूर्य, चंद्र, मेघ पर अपने अधिकार में होने की माँग की। मछली ने रुष्ट होकर कहा – “जा – जा अपनी उसी झोपड़ी में रह।”

मछली के इसी शाप से सब समाप्त होकर मछुवा और मछुवी अपनी उसी – टूटी-फूटी झोंपड़ी मे आ गए। कथा समाप्त हो गई।

प्रस्तुत निबंध से लेखक बताना चाहते हैं कि मछुवा और मछुवी की कही कथा सच नहीं थी पर लोगों के मनोरथों की कथा सच है।

महत्त्वाकांक्षा और लोभ शब्दार्थ :

  • रुष्ट = अप्रसन्न, नाराज
  • मनोरथ = इच्छा, कामना
  • व्यग्रता = अधीरता
  • परिणत = रूपांतरित
  • रुष्ट = अप्रसन्न, नाराज (angry),
  • मनोरथ = इच्छा, कामना (desire),
  • व्यग्रता = अधीरता, बैचेनी (anxiety),
  • निर्बुद्धि = अल्पमति, अज्ञानी, नासमझी (ignorance),
  • अप्राप्य = जो प्राप्त नहीं (inaccessible),
  • परिणत = रूपांतरित (converting)

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 9 गजलें (अ) दोस्ती (आ) मौजूद

Balbharti Maharashtra State Board Hindi Yuvakbharati 11th Digest Chapter 9 गजलें (अ) दोस्ती (आ) मौजूद Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

Maharashtra State Board 11th Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 9 गजलें (अ) दोस्ती (आ) मौजूद

11th Hindi Digest Chapter 9 गजलें (अ) दोस्ती (आ) मौजूद Textbook Questions and Answers

आकलन

1. लिखिए :

प्रश्न अ.
गजलकार के अनुसार दोस्ती का अर्थ –
उत्तर :
दोस्ती को महसूस किया जाता है। दोस्ती में छोटा-बड़ा अमीर-गरीब इस तरह का भेद-भाव नहीं होता। जिससे दोस्ती की जाती है उसके गुण-अवगुण से हम परिचित होते हैं। एक-दूसरे के सुख-दुःख में सहयोग देते हैं। एक दोस्त हमदर्द, मार्गदर्शक, पथ प्रदर्शक होता है। अच्छी-बुरी बातें मान-सम्मान, पद-अधिकार, संपत्ति आदि बातों से कहीं ऊपर दोस्ती होती है। एक-दूसरे के मन की बात बिना बोले ही समझ में आती है। सभी रिश्तों से ऊपर दोस्ती का रिश्ता होता है।

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प्रश्न आ.
कवि ने इनसे सावधान किया है –
उत्तर :

  • बुराइयाँ, शत्रु, तथाकथित लोग (धनी-मानी, अमीर-राजा आदि।)
  • कुप्रवृत्तियों के लोग, कड़वी सच्ची बातें, दुःख
  • आपदाएँ-विपदाएँ, समस्याएँ, कठिनाइयाँ आदि अभावजन्य बातें।

प्रश्न इ.
प्रकृति से संबंधित शब्द तथा उनके लिए कविता में आए संदर्भ –
शब्द – संदर्भ
(a) ……………………… – ………………………
(b) ……………………… – ………………………
(c) ……………………… – ………………………
(d) ……………………… – ………………………
उत्तर :
शब्द – संदर्भ
(1) तूफाँ – तूफाँ तो इस शहर में अक्सर आता है।
(2) सैलाब – आँखों में सैलाब का मंजर आता है।
(3) बादल – सूखे बादल होंठों पर कुछ लिखते हैं।
(4) समंदर – पानी पीने रोज समंदर आता है।

काव्य सौंदर्य

2.
प्रश्न अ.
गजल में प्रयुक्त विरोधाभासवाली दो पंक्तियाँ ढूँढ़कर उनका अर्थ लिखिए।
उत्तर :
याद कर देवताओं के अवतार
हम फकीरों का सिलसिला भी मान।
अर्थ : दोस्त भले ही अपनों से तथाकथित बड़े लोगों से ताल्लुक रखता हो पर, हम जैसे साधारण गरीबों की बात भी माननी चाहिए।

प्रश्न आ.
‘कागज की पोशाक शब्द की प्रतीकात्मकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
समाचार पत्र में बाते प्रकाशित होना, श्वेत-सफेद बगुलों जैसे अवसरवादियों पर प्रस्तुत पंक्ति में व्यंग्य किया है। हाथी के दाँत दिखाने के और तथा खाने के और होते हैं, कथनी और करनी में अंतर रखना – अखबार इन सबका भंडाफोड़ करता है।

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अभिव्यक्ति

3.
प्रश्न अ.
‘जीवन की सर्वोत्तम पूँजी मित्रता है, इसपर अपना मंतव्य लिखिए।
उत्तर :
मित्रता या दोस्ती दो या अधिक व्यक्तियों के बीच पारस्परिक लगाव का संबंध है। जब दो दिल एक-दूसरे के प्रति सच्ची अत्मीयता से भरे होते हैं, तब उस संबंध को मित्रता कहते हैं। यह संगठन की तुलना में अधिक सशक्त वैयक्तिक बंधन है। जीवन में मित्रों के चुनाव की उपयुक्तता पर उसके जीवन की सफलता निर्भर हो जाती है; क्योंकि संगति का गुप्त प्रभाव हमारे आचरण पर बड़ा भारी पड़ता है।

हमें अपने मित्रों से यह आशा रखनी चाहिए कि वे उत्तम संकल्पों में दृढ़ रहेंगे, दोष और त्रुटियों से हमें बचाएँगे, जब हम कुमार्ग पर पैर रखेंगे, तब वे हमें सचेत करेंगे, जब हम हतोत्साहित होंगे तब हमें उत्साहित करेंगे। सारांश यह है कि वे हमें जीवन निर्वाह करने में हर तरह से सहायता करें।

सच्ची मित्रता में उत्तम से उत्तम वैद्य की-सी निपुणता और परख होती है, माँ जैसा धैर्य और कोमलता होती है। ऐसी ही मित्रता करने का प्रयत्न करना चाहिए।

प्रश्न आ.
‘आधुनिक युग में बढ़ती प्रदर्शन प्रवृत्ति विषय पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
प्रदर्शन एक ऐसा शब्द है जो युवाओं, वृद्धों, महिलाओं व बच्चों में समान रूप से लोकप्रिय है। कपड़ों, खाद्य पदार्थों, फास्ट फूड, नृत्य (पश्चिमी धुनों पर), विवाहों, समारोहों इत्यादि पर प्रदर्शन की अमिट छाप दिखाई पड़ती है। प्रदर्शन कभी स्थिर नही रहता। यह एक परिवर्तनवादी नशा है, जो सिर पर चढ़कर बोलता है। यदि किसी महिला ने पुरानी स्टाइल या डिझाइन की साडी या लहंगा पहना हो तो संभव है कि उसे “Out of Fashion” की संज्ञा दी जाए। यह संभव है कि अगली किसी पार्टी पर उसे आमंत्रित ही न किया जाए।

आज के दौर में जो व्यक्ति “आऊट ऑफ फैशन” हो जाता है उसकी मार्केट वैल्यू” गिर जाती है। अत: उसे स्वयं को भौतिकवाद की दौड़ में अपना स्थान सुनिश्चित करने हेतु कपड़ों, खानपान, घर, बच्चों, जीवनसाथी व दफ्तर, कारोबार, आदि के संदर्भ में नवीनतम प्रदर्शन की वस्तुओं, सुविधाओं, और विचारों को अपनाना पड़ता है। पदर्शन एक भेड़चाल की तरह है।

मेरे विचार में फैशनेबल होना बुरा नहीं है। परंतु दकियानुसी कपड़ों को प्रदर्शन करना या कम-से-कम वस्त्र पहनने का नाम भी तो फैशन नहीं है। इस में युवा पीढ़ी कुछ ज्यादा ही संजीदा है। वक्त के साथ बदलते प्रदर्शन पर यह पीढ़ी न सिर्फ नजर रखती है बल्कि उसे अपनाने में भी देर नहीं करती।

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रसास्वादन

4. गजल में निहित जीवन के विविध भावों को आत्मसात करते हुए रसास्वादन कीजिए।
उत्तर :
(i) शीर्षक : दोस्ती, मौजूद
(ii) रचनाकार : डॉ. राहत इंदौरी

(iii) केंद्रीय कल्पना : डॉ. राहत इंदौरी जी के ‘दो कदम और सही’ गजल संग्रह से ‘दोस्ती’ गजल ली गई है जिसमें गजलकार दोस्ती का अर्थ और महत्त्व से हमें परिचित कराते हैं। दूसरी गजल ‘मौजूद’ गजल संग्रह से संकलित है जो हौसला निर्माण करने वाली, उत्साह दिलाने वाली, सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता को जगाने वाली गजल है। इस गजल में जिंदगी के अलग-अलग रंगों का इजहार खूबसूरती से किया गया है। जीवन में दोस्त हमदर्द, मार्गदर्शक, होता है। एक-दूसरे के मन की बात बिना बोले ही समझ जाते हैं। एक-दूसरे के सुख-दुःख में सहभागी होते हैं। जीवन में दोस्त का स्थान महत्त्वपूर्ण होता है।

(iv) रस-अलंकार : प्रस्तुत कविता गजल है जिसका हर शेर स्वयंपूर्ण है। नए रदीफ, नई बहर, नए मजमून, नया शिल्प का जादू इन गजलों में बिखरा हुआ है।

(v) प्रतीक विधान : प्रस्तुत गजलों में जिंदगी के अलग-अलग रंगों का खूबसूरत इजहार है। संवेदनशीलता, सकारात्मकता, हौसला और उत्साह जगाने में ये गजलें सफल हुई हैं।

(vi) कल्पना : कवि ने कागजों के बीच की खामोशियाँ पढ़ने की कल्पना की है, जो हमारी संवेदनशीलता को जगाती है। कातिल कागज का पोशाक पहनने वाला व्यक्ति अर्थात स्वार्थी, झूठा और दोगला व्यवहार करने वाला व्यक्ति जिससे हमें सर्तक, सावधान रहने की बात कही है।

(vii) पसंद की पंकितयां तथ प्रभाव
‘सूख चुका हूँ फिर भी मेरे साहिल पर
पानी पीने रोज समंदर आता है।’
अर्थात शक्ति क्षीण हो जाने के बाद भी देने का उत्साह कम नहीं हुआ है और जो भीड़ रूपी समुंदर किनारे पर पानी पीने आता है उनको पानी देने का हौसला भी गजलकार रखते हैं। यही है जीवन की सकारात्मकता का इजहार।

(viii) कविता पसंद आने के कारण : मुझे इन गजलों की संवेदनशीलता और सकारात्मकता अच्छी लगती है। वर्तमान स्थिति पर कसा व्यंग्य भी मुझे प्रभावित करता है और सावधान रहने के लिए प्रेरित करता है। गजल की असली कसौटी उसकी प्रभावोत्पादकता होती है जिसमें गजलकार सफल हुए है।

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साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान

5. जानकारी दीजिए:

प्रश्न अ.
डॉ. राहत इंदौरी जी की गजलों की विशेषताएँ –
उत्तर :

  • जीवन और जगत के विभिन्न पहलुओं पर गजलें की हैं।
  • वर्तमान परिवेश पर जो टिप्पणी उन्होंने अपनी गजलों में की है, वो आज की राजनीति, सांप्रदायिकता, धार्मिक पाखंड और पर्यावरण पर बड़े ही मार्मिक भाव से की है।
  • छोटी-बड़ी बहर की गजल में उनका प्रतीक और बिंब विद्यमान है, जो नितांत मौलिक और अद्वितीय है।
  • नए रदीफ, नई बहर, नए मजमून, नया शिल्प उनकी गजलों में जादू की तरह बिखरा है।

प्रश्न आ.
अन्य गजलकारों के नाम
उत्तर :
मिर्जा असदुल्ला खाँ ‘गालिब’, दुष्यंत कुमार, वसीम बरेलवी, निदा फाजली, राजेंद्रनाथ रहबर, रतन पॅडोरवी, गुलजार।

अलंकार

यमक – काव्य में एक ही शब्द की आवृत्ति हो तथा प्रत्येक बार उस शब्द का अर्थ भिन्न हो, वहाँ यमक अलंकार होता है।
उदा. –
(१) कनक-कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय।
इहिं खाए बौराय नर, उहि पाए बौराय।
– बिहारी

(२) तीन बेर खाती है,
सो तीन बेर खाती हैं।
– भूषण

श्लेष – जहाँ किसी काव्य में एक शब्द के एक से अधिक अर्थ निकलते हों, वहाँ श्लेष अलंकार होता है।
उदा. –
(१) रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।
पानी गएन ऊबरे, मोती मानुस चून॥
– रहीम

(२) चिर जीवौ जोरी जुरै, क्यों न सनेह गंभीर।
को घटि ये वृषभानुजा, वे हलधर के बीर॥
– बिहारी

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कृतिपत्रिका
(अ) पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

पदयांश : दोस्त है तो ……………………………………………………………………………………………………………….. हर्फ का सदा भी मान। (पाठ्य पुस्तक पृष्ठ क्र. 46)

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प्रश्न 1.
लिखिए :
उत्तर :
(i) दिल को समझना है – …………………………………
(ii) याद करना है – …………………………………
(iii) इन्हें पढ़ना है – …………………………………
(iv) इनका सिलसिला मानना है – …………………………………
उत्तर :
(i) सबसे बड़ा हरीफ
(ii) देवताओं के अवतार
(iii) कागजों की खामोशियाँ
(iv) फकीरों का

प्रश्न 2.
(i) निम्नलिखित विधान सत्य है या असत्य लिखिए :
(1) कवि ने एक-एक वाक्य को सदा मानने के लिए कहा है – …………………………………….
(2) कवि कभी-कभी सच भी बोल देता है – …………………………………….
उत्तर :
(1) असत्य
(2) सत्य

(ii) सही विकल्प चुनकर पंक्ति पूर्ण कीजिए :
(1) इस संग को …………………………. भी मान (खदा / सदा)
(2) मुझसे …………………………. भी कर, बुरा भी मान (दोस्ती / शिकवा)
उत्तर :
(1) खुदा
(2) शिकवा

प्रश्न 3.
पद्यांश का भावार्थ अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
प्रस्तुत पद्यांश कवि डॉ. राहत इंदौरी जी लिखित गजल है जिसमें कवि ने दोस्ती का अर्थ और महत्त्व समझाया है। कवि कहते हैं कि अगर तुम मुझे अपना दोस्त मानते हो तो मेरे विचारों को भी मानना पड़ेगा। कुछ विचारों पर आप नाराजगी व्यक्त भी कर सकते हो, लेकिन कुछ विचार तुम्हें मानने ही पड़ेंगे।

मनुष्य के दिल को सबसे बड़ा शत्रु मान लेना चाहिए। हमें पत्थर को भी खुदा मानना चाहिए। युगों के अनुसार देवताओं के अवतार माने जाते हैं लेकिन साधुओं की, फकीरों की भी लंबी परंपरा हमारे समाज में पाई जाती है। कागजों के बीच के शब्दों का स्वर हमें सुनाई देना चाहिए। हमें संवेदनशील होना चाहिए।

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(आ) पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ पूर्ण कीजिए :

पद्यांश : तूफाँ तो इस शहर ……………………………………………………………………………………………………………………… बाहर आता है। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 47)

प्रश्न 1.
सहसंबंध लिखिए :
उत्तर :

  • दाँत – जहरीले
  • साँप का – मंत्र
  • आँखों में – सैलाब
  • तकरीरो में – जौहर

प्रश्न 2.
पद्यांश के आधार पर दो ऐसे प्रश्न वनाइए जिनके उत्तर निम्न शब्द हों :
(i) तूफाँ – ……………………………..
(ii) होंठ – ……………………………..
उत्तर :
(i) तूफाँ – इस शहर में अक्सर कौन आता है ?
(ii) होंठ – सूखे बादल किस पर कुछ लिखते हैं ?

प्रश्न 3.
पद्यांश का भावार्थ अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
प्रस्तुत पद्यांश कवि डॉ. राहत इंदौरी जी लिखित गजल है। गजलकार मनुष्य के दोगलेपन पर व्यंग्य कसते हुए कहते हैं कि हमारे शहर में तूफान तो हमेशा आते हैं, पता नहीं अब वह किसे बरबाद करेगा। कोई भी उसके चपेट में आ सकता है। हमारे जीवन में संकट हमेशा आते हैं, उन संकटों से लड़ने के लिए हमें हमेशा तैयार रहना पड़ेगा।

हमे हमेशा सतर्क और चौकन्ना रहना पड़ेगा भले ही उनके दाँत जहरीले होंगे लेकिन हमें भी उस जहर का इलाज करना आना चाहिए।

सूखे हुए बादल (हमारी भ्रष्ट व्यवस्था) हमारे भाग्य (होंठों) पर कुछ प्रभाव जरूर छोड़ जाते हैं। इसके कारण आँखों में सैलाब का दृश्य नजर आता है जो सारी व्यवस्था को नष्ट कर नया भविष्य दे सकता है। कोई व्यक्ति जब अपने विचार बयाँ।

करता है, तब उसकी योग्यता का पता चलता है।

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(इ) पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ पूर्ण कीजिए

पद्यांश : बचकर रहना, एक कातिल …………………………………………………………………………………………. ख्वाब मयस्सर आता है। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 47)

प्रश्न 1.
उचित जोड़ियाँ मिलाइए :
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‘क’  ‘ख’
(1) ……………………..  ……………………..
(2) ……………………..  ……………………..
(3) ……………………..  ……………………..
(4) ……………………..  ……………………..

उत्तर :

(1) कागज पोशाक
(2) जहन तअफ्फन
(3) कपड़ा इत्र
(4) आँख ख्वाब

प्रश्न 2.
कारण लिखिए :
(i) बचकर रहना है क्योंकि ………………………………..
(ii) रहमत पर फैलाए मिलने आती है क्योंकि ………………………………..
उत्तर :
(i) बचकर रहना है क्योंकि इस बस्ती में एक कातिल कागज की पोशाक पहनकर हत्याएँ करने आता है।
(ii) रहमत पर फैलाए मिलने आती है क्योंकि हमारी पलकों पर कोई पयंबर आता है।

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प्रश्न 3.
पद्यांश का भावार्थ अपने शब्दों में लिखिए :
उत्तर :
प्रस्तुत पद्यांश डॉ. राहत इंदौरी जी लिखित एक गजल है। गजलकार हमें वर्तमान स्थिति से अवगत कराते हुए सतर्क रहने का परामर्श दे रहे हैं। वे कह रहे हैं कि एक हत्यारा इस बस्ती में कागज की पोशाक पहनकर हत्याएँ करने आता है। व्यक्ति हमेशा अपने कर्मों की दुर्गंध अपने मस्तिष्क में भरता है।

जो दूसरों के बारे में बुरा सोचता है उसका कभी भला नहीं होता। जहाँ दया, सहानुभूति, प्रेम, अपनापन जैसी भावनाएँ होती हैं वहीं पर ईश्वर की रहमत बरसती है। कवि स्वयं भी सूखे हुए जलाशय की तरह सूखा बना है परंतु प्यास बुझाने की आस लिए समुंदर प्रतिदिन उसके किनारे पर आता है अर्थात शक्ति क्षीण हो जाने पर भी मदद करने वाले के पास मदद माँगने वालों की भीड़ लगी रहती है।

अपने सपनों को साकार करने के लिए कड़ी मेहनत करनी चाहिए। हमारे सपने जब साकार होते हैं, पूर्ण होते हैं तब आँखों को सुकून मिलता है।

गजलें (अ) दोस्ती (आ) मौजूद Summary in Hindi

गजलें (अ) दोस्ती (आ) मौजूद कवि परिचय :

राहत इंदौरी जी का जन्म इंदौर में 1 जनवरी 1950 में कपड़ा मिल के कर्मचारी रफ्तुल्लाह कुरैशी और मकबुल उन निशा बेगम के यहाँ हुआ। उनकी प्राथमिक शिक्षा नूतन स्कूल इंदौर में हुई। उन्होंने इस्लामिया करीमिया कॉलेज इंदौर से 1973 में अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी की और 1975 में बरकतउल्लाह विश्वविद्यालय भोपाल से उर्दू साहित्य में एम.ए. किया।

तत्पश्चात 1985 में मध्य प्रदेश के भौज मुक्त विश्वविद्यालय से उर्दू साहित्य में पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की। आप एक भारतीय उर्दू शायर और हिंदी फिल्मों के गीतकार हैं। आप देवी अहिल्या विश्वविद्यालय इंदौर में उर्दू साहित्य के प्राध्यापक भी रह चुके हैं।

आप उन चंद शायरों में से एक हैं जिनकी गजलों ने मुशायरों (poet conference) को साहित्यिक स्तर और सम्मान प्रदान किया है। आपकी गजलों में आधुनिक प्रतीक और बिंब (image) विद्यमान हैं, जो जीवन की वास्तविकता दर्शाते हैं।

गजलें (अ) दोस्ती (आ) मौजूद प्रमुख कृतियाँ :

धूप-धूप, नाराज, चाँद पागल है, रुत, मौजूद, धूप बहुत है, दो कदम और सही (गजल संग्रह) आदि। काव्य परिचय : पहली गजल में दोस्ती का अर्थ और उसके महत्त्व को गजलकार ने स्पष्ट किया है। दूसरी गजल में गजलकार ने वर्तमान स्थिति का चित्रण किया है।

प्रस्तुत गजलें नया हौसला निर्माण करने वाली, उत्साह दिलाने वाली, सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता को जगाने वाली है, जिसमें जिंदगी के अलग-अलग रंगों का खूबसूरत इजहार (express) है।

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गजलें (अ) दोस्ती (आ) मौजूद सारांश :

(अ) दोस्ती : दोस्ती का मतलब समझाते हुए कवि कहते हैं कि अगर सच्चे दिल से तुम मुझे दोस्त समझते हो तो मेरे विचारों को भी मान लीजिए। विश्वास रखना मैं हरदम तुम्हारी भलाई के बारे में ही सोचूंगा। मेरे सभी विचार तुम्हारे विचारों के साथ मेल खाएँगे। मेरा कोई विचार तुम्हें पसंद नहीं आया तो तुम शिकायत (नाराजगी व्यक्त) कर सकते हो, शायद मेरे विचार तुम्हें बुरे भी लग सकते हैं, लेकिन मेरे कुछ विचार तुम्हें मानने भी पड़ेंगे।

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कवि कहते हैं कि मनुष्य के हृदय (दिल) को हमें सबसे बड़ा शत्रु मान लेना चाहिए। हमें पत्थर को भी खुदा (ईश्वर) मानना चाहिए।

कवि यह कहना चाहते हैं कि दुनिया ने मुझपर यह ठप्पा लगा दिया है कि मैं हमेशा झूठ ही बोलता हूँ। यह मुझे स्वीकार है कि ज्यादातर मैं झूठ बोलता हूँ लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मैं हमेशा झूठ ही बोलता हूँ। कभी-कभार मैं सच भी बोलता हूँ। इसलिए मेरी आप से बिनती है कि कभी-कभी तो मेरी बातों पर विश्वास रखना, अन्यथा पता नहीं उसमें तुम्हारा ही नुकसान होगा।

कवि कहते हैं कि युगों के अनुसार देवताओं के भिन्न अवतार माने जाते हैं लेकिन साधुओं, फकिरों की भी लंबी परंपरा हमारे समाज में पाई जाती है। वही वैराग्य धारण कर समाज की सेवा करने का व्रत लेते हैं। कई सालों से हम फकिरों के इस व्रत का अनुसरण करते चले आ रहे हैं।

कवि कहते हैं कि कागजों के बीच खामोशियाँ होती हैं, उन्हें हमें पढ़ना आना चाहिए। तब एक-एक शब्द भी अपना कहा कुछ कहता है। उन शब्दों के स्वर हमें सुनाई देने चाहिए। हमे संवेदनशील होना चाहिए।

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कवि कहते हैं कि किसी को परखने में, किसी की परीक्षा लेने में कोई बुराई नहीं है। हमें अपने कर्तव्यों को, उत्तरदायित्वों को पूर्ण करना चाहिए और मुझे भी तुम परखो और मुझे भला मानकर मेरी कुछ बातें भी माननी पड़ेंगी। आपको मेरी बातें आज शायद कटु, बुरी लगे, लेकिन उसमें आपकी भलाई ही छिपी होगी।

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कवि कहते हैं कि आए हुए संकट को पार लगाना ही जिंदगी है। जो संकट, दुःख जीवन में मिले हैं उससे बाहर निकलने का. रास्ता तो हमें अवश्य ढूँढ़ना होगा। लेकिन उसके साथ-साथ दुःख ने हमें पनाह दी इसलिए उसके आभार भी प्रकट करने चाहिए क्योंकि दुःख के छत ने ही हमें सुख का अहसास करा दिया। जिंदगी में अगर हमेशा ही सुख मिलता रहे तो जीवन रुचिहीन होगा। दुःख ही वह बात है जो हमें सूख का मूल्य (महत्व) समझा देती है।

(आ) मौजूद : कवि कहते हैं कि इस शहर में अक्सर तूफान आते रहते हैं। आने वाला तूफान शहर को नेस्तनाबूद (destroyed) करने पर तुला रहता है। तूफान के कारण शहर का नक्शा बदल जाता है। हर तरफ नुकसान का मंजर छाया रहता है, कई जाने चली जाती है। इस हालत की आदत-सी हो गई है।

जब-तक जिंदा है तब तक चिंतामुक्त, तनावरहित जीवन जिएँगे। देखते हैं कल के तूफान में किसका नंबर आता है, किसके दिन भर गए हैं। तब तक तो खुशी-खुशी से जिएँगे। – कवि कहते हैं कि आज सच्चे मित्रों का मिलना बड़ा कठिन हुआ है। जिसे हम दोस्त मानते हैं, वही हमारा सबसे बड़ा दुश्मन हो सकता है। हमे हमेशा सतर्क और चौकन्ना रहना पड़ेगा। भले ही उनके दाँत जहरीले होंगे लेकिन हमें भी उस जहर का इलाज करना आना चाहिए।

कवि कहते हैं कि सूखे हुए बादल (हमारी भ्रष्ट व्यवस्था) हमारे भाग्य (होठों) पर कुछ प्रभाव जरूर छोड़ जाते हैं। इस के कारण गुस्सा आँखों में सैलाब (बाढ़) सा नजर आता है, वह सारी व्यवस्था को नष्ट कर नया भविष्य दे सकता है।

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कवि कहते हैं कि कोई व्यक्ति जब अपने विचार बयान करता है, तब उसकी योग्यता, कौशल का पता चलता है। उस व्यक्ति के हृदय में क्या चल रहा है वह सब होठों पर आ जाता है। शब्दों के बिना हमारा चातुर्य बेकार है।

कवि कहते हैं कि मनुष्य को हमेशा सावधान, सतर्क रहना चाहिए। इस बस्ती में एक कातिल (killer) कागज (झूठा, दोगला) का पोशाक पहनकर (स्वार्थ) हत्याएँ करने आता है। मनुष्य जैसा दिखता है, वैसा नहीं होता। वह किसी को भी धोखा देकर अपना स्वार्थ पूरा करता है।

कवि कहते हैं कुछ व्यक्ति हमेशा अपने कर्मों की दुर्गंध (बुराई) अपने मस्तिष्क में भरते रहते हैं। दूसरों के लिए वे गड्ढा खोदते हैं लेकिन खुद उस गड्ढे में जाकर गिरते हैं। जब हम अपने कपड़ों पर इत्र लगाते हैं, तो उसकी सुगंध दूसरों को आने से पहले स्वयं को आती है। दूसरों का बुरा सोचने पर खुदका बुरा होता है।

कवि कहते हैं कि दया, कृपा, इंसानियत के दो बड़े पहलू हैं। लेकिन यह तभी मुमकिन है जब हम ईश्वरी सत्ता देख पाते हैं। दूरसों के प्रति दया, परसुख हम तभी देख पाएँगे जब हमारी आँखों में ईश्वरी दृष्टि होगी।

कवि कहते हैं अनुभवि व्यक्ति या दूसरों की मदद करने वाला व्यक्ति थकने पर, उसकी शक्ति क्षीण हो जाने पर वह कुछ नहीं कर सकता किंतु उसके अनुभवों (दयालु वृत्ति) से जो ज्ञान प्राप्त होता है उसे प्राप्त करने के लिए उसके पास हमेशा भीड़ लगी रहती है।

कवि कहते हैं कि जो आँखें ख्वाब (सपने) देखती हैं, वह सपने अगर प्रत्यक्ष में उतरते हैं तो उन आँखों की नींद गायब हो जाती है। अर्थात वह बहुत सुखी और सफल बन जाता है। अपने सपनों को प्राप्त करने के लिए हमें कड़ी मेहनत करनी चाहिए।

गजलें (अ) दोस्ती (आ) मौजूद शब्दार्थ:

  • हरीफ = शत्रु
  • सदा = आवाज
  • तअफ्फुन = दुर्गंध
  • संग = पत्थर
  • मंजर = दृश्य
  • जहन = मस्तिष्क
  • गाहे-गाहे = कभी-कभी
  • तकरीर = बातचीत
  • साहिल = किनारा
  • हर्फ = अक्षर
  • जौहर = कौशल
  • मयस्सर = प्राप्त
  • दोस्ती : शिकवा – शिकायत (complaint),
  • हरीफ – शत्रु, दुश्मन (enemy),
  • संग – पत्थर (stone),
  • गाहे – गाहे – कभी-कभी (sometimes),
  • हर्फ – अक्षर, शब्द (word),
  • सदा – आवाज (voice),
  • आजमाइश – अजमाकर देखना (trial),
  • फर्ज – विश्वास (trust),
  • तरकीब – उपाय, युक्ति, तरीका (remedy)
  • मौजूद : तूफाँ – तूफान (storm),
  • मंतर – मंत्र, मंजर – दृश्य (view),
  • सैलाब – बाढ़ (flood), Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 9 गजलें (अ) दोस्ती (आ) मौजूद
  • तकरीर – बातचीत (chating),
  • जौहर – कौशल, गुण (skill),
  • तअफ्फुन – दुर्गंध (odour),
  • जहन – मस्तिष्क (brain),
  • रहमत – दया – (mercy),
  • पयंबर – देवदूत, ईश्वर (angel),
  • साहिल – किनारा, तट (edge),
  • ख्वाब – सपना (dream),
  • मयस्सर – प्राप्त होना (get)

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 पंद्रह अगस्त

Balbharti Maharashtra State Board Hindi Yuvakbharati 11th Digest Chapter 3 पंद्रह अगस्त Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

Maharashtra State Board 11th Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 पंद्रह अगस्त

11th Hindi Digest Chapter 3 पंद्रह अगस्त Textbook Questions and Answers

आकलन
1.

प्रश्न अ.
संकल्पना स्पष्ट कीजिए –
(a) नये स्वर्ग का प्रथम चरण
उत्तर :
स्वतंत्रता प्राप्त करना हमारा स्वर्ग प्राप्त करने जैसे लक्ष्य था हमें अभी अनेक कार्य करने शेष हैं। कवि यह संकेत करते हैं कि स्वतंत्रता प्राप्त हो गई “अब सब काम खत्म हो गया” ऐसा सोचकर विश्राम नहीं करना है। वास्तव में अभी-अभी तो हमारा कार्य आरंभ हुआ है। हमारे देश को स्वर्ग बनाना है यही हमारा लक्ष्य है और आजादी उसका प्रथम चरण है।

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(b) विषम शृंखलाएँ
उत्तर :
बड़ी कठिनाई से हमने आज़ादी प्राप्त की है। गुलामी की बेड़ियाँ तोड़ पाएँ हैं। हमारे देश की सीमा हर ओर से आज़ाद है।

(c) युग बंदिनी हवाएँ
उत्तर :
हे देशवासियो, यह ध्यान रहे कि इस विश्व में तूफान की तरह तेजी से बंदी बनाने वाली हवाएँ चल रही हैं। अर्थात कई देशों से आक्रमण का खतरा हमारे देश पर बढ़ गया है। ऐसी दुर्घटना को रोकने का उत्तरदायित्व हमारा है।

प्रश्न आ.
लिखिए –
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 पंद्रह अगस्त 7
उत्तर :
(1) शोषण से मृत है समाज
(2) कमजोर हमारा घर है।

काव्य सौंदर्य

2. आशय लिखिए :

प्रश्न अ.
“ऊँची हुई मशाल हमारी ………………………………………………… हमारा घर है।”
उत्तर :
आज़ादी प्राप्त करने के बाद हमारी जिम्मेदारी और अधिक बढ़ गई है। हमारा रास्ता और कठिन हो गया है। माना कि शत्रु चला गया है पर वह अपनी पराजय से अत्यंत विकल (restless) हुआ है। कोई न कोई कूटनीति उसके मन मस्तिष्क में चल रही होगी। हमारा जनसमुदाय इतने सालों की गुलामी से सामाजिक, आर्थिक एवं मानसिक रूप से कमजोर हो गया है इसलिए अपनी मशाल अर्थात अपनी सतर्कता और अधिक बढ़ा दो।

प्रश्न आ.
“युग बंदिनी हवाएँ ………………………………………………… टूट रहीं प्रतिमाएँ।”
उत्तर :
जहाँ हमने आज़ादी प्राप्त करके देश की सभी सीमाओं को स्वतंत्र कर लिया है। वही ब्रिटिश सरकार अपनी पराजय से विकल है। वह हमारे देश की उन्नति के विरूद्ध कूटनीति भी कर रही होगी। देश को जाति, धर्म, भाषा और प्रांत के नाम पर कमजोर, अलग-थलग करना जैसी समस्या देश में उत्पन्न हो सकती है।

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अभिव्यक्ति

3.
प्रश्न अ.
‘देश की रक्षा-मेरा कर्तव्य’, इसपर अपना मत स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
“जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं,
वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं.” (गयाप्रसाद शुक्ल ‘सनेही’)

देश की रक्षा किसी व्यक्ति का केवल कर्तव्य ही नहीं बल्कि उसका धर्म भी होता है। व्यक्ति द्वारा कोई भी ऐसा कार्य नहीं होना चाहिए जिससे देश धर्म में बाधा पहुँचे। हमारा देश सबसे सर्वोपरि (above all) है। कोई भी लाभ और हानि हमारे देश को सीमित नहीं कर सकती।

देश के प्रति पूरी निष्ठा होनी चाहिए। देश केवल भूभाग नहीं है। देश का आर्थिक विकास व वृद्धि, साफ-सफाई, सुशासन, भेदभाव न करना, कानून का पालन करना आदि जिम्मेदारियाँ निभाना हमारा कर्तव्य है। एक जिम्मेदार नागरिक बनकर हमें ऐसे कार्य करने चाहिए जिससे देश की आन, बान और शान में वृद्धि हो। हमारी राष्ट्रीय धरोहर (heritage) और सार्वजनिक संपत्ति का सम्मान और रक्षा करना भी हमारा कर्तव्य है।

देश के कानून का पालन और सम्मान करना चाहिए। हमें अपने करों का समय पर सही तरीके से भुगतान करना चाहिए। देश को प्रदूषण मुक्त करने में सहयोग देना, पर्यावरण संतुलन हेतु वृक्षारोपण (plantation) करना जैसे कार्यों में रुचि दिखाना भी देश की रक्षा करना ही है; इस तथ्य को स्वयं समझना और औरों को समझाना भी हमारा कर्तव्य है।

प्रश्न आ.
‘देश के विकास में युवकों का योगदान’, इस विषय पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
किसी भी देश की तीन प्रकार की संपत्ति से देश की उन्नति का आकलन लगाया जाता है। वह संपत्ति है – धन संपत्ति, युवा संपत्ति और संस्कृति संपत्ति। जिस देश के पास ये तीनों संपत्तियाँ विद्यमान हैं उस देश को तीनों लोकों का सुख प्राप्त है।

युवा देश की ऐसी संपत्ति है, जो देश को उन्नति के उच्चतम शिखर तक पहुँचा सकती है। इतिहास और शास्त्र दोनों ही इस बात के गवाह हैं, चाहे वे सतयुग, त्रेता, द्वापर के युवा हो चाहे वर्तमान काल के युवा। जो भी सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक सकारात्मक परिवर्तन होता है उसमें युवाओं का हिस्सा अधिकाधिक होता है।

युवा शक्ति देश और समाज की रीढ़ होती है। वे देश और समाज को नए शिखर पर ले जाते हैं। उनमें गहन (intensive) ऊर्जा और महत्त्वाकांक्षाएँ (ambitions) होती हैं। उनकी आँखों में इंद्रधनुषी स्वप्न होते हैं। उनके योगदान से देश उन्नति के पथ पर अग्रसर (proceed) होगा।

क्योंकि युवा ही वर्तमान का निर्माता और भविष्य का नियामक (regulator) होता है। अत: समस्त भारतीय युवाओं को यह संकल्प लेना चाहिए कि राष्ट्र के सम्मुख जितनी भी चुनौतियाँ हैं हम उनका डटकर सामना करेंगे।

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 पंद्रह अगस्त

रसास्वादन

4. स्वतंत्रता का वास्तविक अर्थ समझते हुए प्रस्तुत गीत का रसास्वादन कीजिए।
उत्तर :
(i) शीर्षक : पंद्रह अगस्त
(ii) रचनाकार : गिरीजाकुमार माथुर ‘पंद्रह अगस्त’ कविता कवि गिरिजाकुमार माथुर द्वारा लिखा एक गीत है।
(iii) केंद्रीय कल्पना : स्वतंत्रता के पश्चात देश में चारों ओर उल्लास छाया है और साथ ही इस स्वतंत्रता को बरकरार रखने हेतु सावधान एवं सतर्क रहना जरूरी है यह आह्वान भी है।
(iv) रस-अलंकार : कविता में वीर रस की निष्पत्ति के साथ साथ लयात्मकता का सुंदर प्रयोग हर अंतरे में स्पष्ट झलकता है। जैसे – छोर, हिलोर (wave), डोर (string), कोर (edge) जैसे शब्दों का प्रयोग हो या दिशाएँ, हवाएँ, सीमाएँ, प्रतिमाएँ या फिर डगर, डर, घर, अमर जैसे शब्दों के प्रयोग से गेयता (singable) साध्य हुई है। ‘पहरुए सावधान रहना’ मुखड़ा हर अंतरे के बाद आया है।

(v) प्रतीक विधान : देशवासियों को देश के पहरेदार बनकर सावधान रहने की बात कवि कह रहे हैं।

(vi) कल्पना : कवि ने स्वतंत्रता को स्वर्ग का प्रथम चरण माना है और अनेकों लक्ष्य पाने की कल्पना की है।
(vii) पसंद की पंक्तियाँ तथा प्रभाव : ‘किंतु आ रही नई जिंदगी
यह विश्वास अमर है,
जनगंगा में ज्वार
लहर तुम प्रवाहमान रहना’

इन पंक्तियों में स्वतंत्रता का वास्तविक अर्थ समझाने का प्रयास कवि ने किया है। देश में चारों ओर उल्लास है, जनगंगा में ज्वार है। परंतु जब शोषित पीड़ित और मृतप्राय समाज का पुनरुत्थान होगा तभी सही मायने में देश आजाद होगा। किंतु हमारा यह विश्वास कि हमारे जीवन में एक नई शुरुआत हो गई है हमारा मनोबल बढ़ाता है और इस बल को कभी टूटने नहीं देना है। जनशक्ति की लहर बनकर प्रगति की ओर आगे बढ़ना है।

(viii) कविता पसंद आने के कारण : कविता के ये भाव मन में उल्लास भर देते हैं और कविता की गेयता कविता गुनगुनाने पर बाध्य करती हुई आनंद की प्राप्ति कराने में सक्षम है।

साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान
जानकारी दीजिए:

5.
प्रश्न अ.
गिरिजाकुमार माथुर जी के काव्यसंग्रह –
उत्तर :
धूप के धान
मैं वक्त के हूँ सामने

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 पंद्रह अगस्त

प्रश्न आ.
‘तार सप्तक’ के दो कवियों के नाम –
उत्तर :
प्रभाकर माचवे
भारतभूषण अग्रवाल

रस
वीर रस – किसी पद में वर्णित प्रसंग हमारे हृदय में ओज, उमंग, उत्साह का भाव उत्पन्न करते हैं, तब वीर रस का निर्माण होता है। ये भाव शत्रुओं के प्रति विद्रोह, अधर्म, अत्याचार का विनाश, असहायों को कष्ट से मुक्ति दिलाने में व्यंजित होते हैं।
उदा. –
(१) साजि चतुरंग सैन, अंग में उमंग धरि।
सरजा सिवाजी, जंग जीतन चलत है।
भूषण भनत नाद, बिहद नगारन के
नदी-नद मद, गैबरन के रलत है।
– भूषण

(२) दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में वह तलवार पुरानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झाँसीवाली रानी थी।
– सुभद्राकुमारी चौहान

भयानक रस – जब काव्य में भयानक वस्तुओं या दृश्यों के प्रत्यक्षीकरण के फलस्वरूप हृदय में भय का भाव उत्पन्न होता है, तब भयानक रस की अभिव्यंजना होती है।
उदा. –
(१) प्रथम टंकारि झुकि झारि संसार-मद चंडको दंड रह्यो मंडि नवखंड को।
चालि अचला अचल घालि दिगपालबल पालि रिषिराज के वचन परचंड कों।
बांधि बर स्वर्ग को साधि अपवर्ग धनु भंग को सब्ध गयो भेदि ब्रह्मांड कों।
– केशवदास

(२) उधर गरजती सिंधु लहरिया, कुटिल काल के जालों-सी।
चली आ रही है, फेन उगलती, फन फैलाए व्यालों-सी।।
– जयशंकर प्रसाद

Yuvakbharati Hindi 11th Textbook Solutions Chapter 3 पंद्रह अगस्त Additional Important Questions and Answers

कृतिपत्रिका

(अ) पन्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

पदयांश : आज जीत की ……………………………………………………….. बने अंबुधि महान रहना। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 9-10)

प्रश्न 1.
जाल पूर्ण कीजिए :
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 पंद्रह अगस्त 1
उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 पंद्रह अगस्त 2

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 पंद्रह अगस्त

प्रश्न 2.
विधान सत्य है या असत्य लिखिए :
उत्तर :
(i) इस जनमंथन से उठ आई है पहली रतन हिलोर। – सत्य
(ii) नए स्वर्ग का अंतिम चरण। – असत्य

प्रश्न 3.
पद्यांश का भावार्थ सरल हिंदी में लिखिए।
उत्तर :
प्रस्तुत पद्यांश ‘तारसप्तक’ (सात कवियों का एक मंडल) के प्रमुख कवि गिरिजा कुमार माथुर जी की कविता ‘पंद्रह अगस्त’ से लिया गया है। कवि आज़ादी के बाद देशवासियों को संबोधित करते हुए कहते हैं – हे देशवासियो !….. हमारा देश अभीअभी आज़ाद हुआ है। अब इसकी सुरक्षा की सभी तरह की जिम्मेदारी हमारी है। इसलिए हमें और अधिक सावधान रहना पड़ेगा। स्वतंत्रता हमारे जीवन का पहला लक्ष्य था, जो अभी पूरा हुआ है। शेष उद्देश्य तो अभी भी बाकी है। कवि कहते हैं कि हमें समुद्र की तरह मन में गहराई एवं हृदय में विशालता रखनी होगी।

(आ) एद्याश पड़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

पद्यांश : विषम श्रृंखलाएँ टूटी ……………………………………………………….. तुम दीप्तिमान रहना। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 10)

प्रश्न 1.
लिखिए :
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 पंद्रह अगस्त 3
उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 पंद्रह अगस्त 4

प्रश्न 2.
निम्न शब्दों के लिए पद्यांश में आए शब्द लिखिए :
(i) आँधी – ……………………………………….
(iii) मूर्ति – ……………………………………….
(iii) चंद्र – ……………………………………….
(iv) पहेरदार – ……………………………………….
उत्तर :
(i) प्रभंजन
(ii) प्रतिमा
(iii) इंदु
(iv) पहरुए

प्रश्न 3.
पद्यांश का भावार्थ अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
प्रस्तुत पद्यांश कवि गिरिजाकुमार माथुर जी की कविता ‘पंद्रह अगस्त’ से लिया गया है। प्रस्तुत पद्यांश में कवि कह रहे हैं कि परतंत्रता (dependance) की बेड़ियाँ टूट गई हैं और आजादी की खुली हवा देश में बहने लगी है। युगों से गुलामी सहने वाले स्वतंत्र होते ही दिशाहीन, लक्ष्यहीन हो गए हैं।

विभाजन के कारण वे सीमाओं में सीमटकर अपना होश खो बैठे हैं। दुर्बल हो गए हैं। ऐसे में अधिक सतर्कता की आवश्यकता है। कहीं आपस में लड़कर हम एक-दूसरे को ही नुकसान न पहुँचा दें इस बात का ख्याल रखना होगा। चंद्र के समान शीतल रोशनी फैलाकर देशवासियों को रास्ता दिखाने का काम कवि हमें करने को कह रहे हैं।

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(इ) पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

पद्यांश : ऊँची हुई मशाल’……………………………………….. तुम प्रवाहमान रहना। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 10)

प्रश्न 1.
प्रवाह तालिका पूर्ण कीजिए :
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 पंद्रह अगस्त 5
उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 पंद्रह अगस्त 6

प्रश्न 2.
पद्यांश के आधार पर दो ऐसे प्रश्न तैयार कीजिए जिनके उत्तर निम्न शब्द हो :
(i) ज्वार : ………………………………….
(ii) लहर : ………………………………….
उत्तर :
(i) जनगंगा में क्या है?
(ii) किसे प्रवाहमान रहना है?

प्रश्न 3.
पद्यांश द्वारा मिलने वाला संदेश लिखिए।
उत्तर :
प्रस्तुत पद्यांश गिरिजाकुमार माथुर जी की कविता ‘पंद्रह अगस्त’ से लिया गया है। प्रस्तुत पद्यांश में तत्काल मिली हुई स्वतंत्रता की कवि चिंता करता है इसलिए देशवासियों को सतर्क रहने का आह्वान किया है। देश में एकता, अखंडता और भाई-चारे को बनाए रखने के लिए सजग किया है।

कवि देशवासियों को सावधान रहने के लिए कहते हैं। उनका कहना हैं कि शत्रु भले ही हमारे देश को छोड़कर चला गया है, पर पलटकर वार करें तो उसके प्रत्युत्तर के लिए सतर्क रहना चाहिए। धर्म, जाति और संप्रदाय के नाम पर हमें आपसी विवाद से बचना चाहिए।

रस:

वीर रस – किसी पद में वर्णित हमारे प्रसंग हृदय में ओज, उमंग, उत्साह का भाव उत्पन्न करते हैं, तब वीर रस का निर्माण होता है। ये भाव शत्रुओं के प्रति विद्रोह, अधर्म, अत्याचार का विनाश, असहायों को कष्ट से मुक्ति दिलाने में व्यंजित (express) होते हैं।
उदा. :
(1) साजि चतुरंग सैन, अंग में उमंग धरि।
सरजा सिवाजी, जंग जीतन चलत है।
भूषण भनत नाद, बिहद नगारन के
नदी-नद मद, गैबरन के रलत है।
– भूषण

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(2) दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में वह तलवार पुरानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झाँसीवाली रानी थी।
– सुभद्राकुमारी चौहान

भयानक रस – जब काव्य में भयानक वस्तुओं या दृश्यों के प्रत्यक्षीकरण के फलस्वरूप हृदय में भय का भाव उत्पन्न होता है, तब भयानक रस की अभिव्यंजना होती है।
उदा. :
(1) प्रथम टंकारि झुकि झारि संसार-मद चंडको दंड रह्यो मंडि नवखंड कों।
चालि अचला अचल घालि दिगपालबल पालि रिषिराज के वचन परचंड को।
बांधि बर स्वर्ग को साधि अपवर्ग धनु भंग को सब्ध गयो भेदि ब्रह्मांड कों। – केशवदास

(2) उधर गरजती सिंधु लहरिया, कुटिल काल के जालों-सी।
चली आ रही है, फेन उगलती, फन फैलाए व्यालों-सी।।
– जयशंकर प्रसाद

पंद्रह अगस्त Summary in Hindi

पंद्रह अगस्त कवि परिचय :

गिरिजाकुमार माथुर जी का जन्म 22 अगस्त 1919 को अशोक नगर (मध्य प्रदेश) में हुआ था। आपकी आरंभिक शिक्षा झाँसी में हुई थी। आपने लखनऊ विश्वविद्यालय से एम. ए. (अंग्रेजी) एवं एल. एल. बी. की शिक्षा प्राप्त की। कुछ समय तक आपने वकालत की तत्पश्चात दिल्ली में आकाशवाणी में काम किया। कुछ समय तक दूरदर्शन में भी काम किया और वहीं से सेवा निवृत (retired) हुए। माथुर जी की मृत्यु 10 जनवरी 1994 में हुई।

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 पंद्रह अगस्त 8

स्वतंत्रता प्राप्ति के दिनों में हिंदी साहित्यकारों में जो प्रमुख कवि थे, उनमें गिरिजाकुमार माथुर जी का नाम अग्रणी (leading) है।

पंद्रह अगस्त प्रमुख रचनाएँ :

‘मंजीर’, ‘नाश और निर्माण’, ‘धूप के धान’, ‘शिलापंख चमकीले’, ‘जो बँध नहीं सका’, ‘साक्षी रहे वर्तमान’, ‘भीतरी नदी की यात्रा’, ‘मैं वक्त के हूँ सामने’ (काव्य संग्रह), ‘जन्म कैद’ (नाटक) आदि।

पंद्रह अगस्त काव्य विधा :

यह ‘गीत’ विधा है। इसमें एक मुखड़ा (first line) होता है और दो या तीन अंतरे (stanza) होते हैं। इसमें परंपरागत भावबोध तथा शिल्प प्रस्तुत किया जाता है। कवि इस प्रकार की अभिव्यक्ति में प्रतीक, बिंब तथा उपमान का प्रयोग करता है।

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पंद्रह अगस्त विषय प्रवेश :

प्रस्तुत गीत में कवि ने स्वतंत्रता के हर्ष और उल्लास को उत्साह पूर्वक अभिव्यक्त (expressed) किया है। कवि देशवासियों एवं सैनिकों को अत्यंत जागरूक रहने का आवाहन कर रहा है।

पंद्रह अगस्त सारांश :

(कविता का भावार्थ) : प्रस्तुत कविता आज़ादी के बाद देश के प्रत्येक नागरिक को संबोधित करती है। कवि देशवासियों को पहरेदार के समान सावधान रहने के लिए कहता है। कवि का कहना है कि हे देशवासियो, यह हमारी विजय की पहली रात है। आज से देश की सभी तरह की सुरक्षा का उत्तरदायित्व हमारा है। हमें उस निश्चल दीपक की भाँति (जो विपरीत समय में भी अपनी रोशनी से अंधकार को ललकारता रहता है।) अपने देश पर आने वाली सभी समस्याओं को दूर भगा देना है।

कविता में प्रथम स्वर्ग का तात्पर्य – पहला लक्ष्य पहली प्राप्ति है, जिसे हमने सामूहिक प्रयास से प्राप्त किया है। कवि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद शेष कार्यों की ओर संकेत करते हैं। हमारे सामने अनेक लक्ष्य शेष हैं। देशवासियों ने शारीरिक, मानसिक और आर्थिक पीड़ा को बहुत लंबे समय तक सहन किया है।

देश अपने अपमान को अभी भुला नहीं पाया है। इसलिए आज़ादी के बाद हमारी जिम्मेदारी और अधिक बढ़ गई है। हमें समुद्र की भाँति मन में गहराई और विशालता रखनी होगी। हमें पहले से भी और अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता है।

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बड़े संघर्ष के बाद मिली आज़ादी के बाद भी अभी बड़ी-बड़ी चुनौतियाँ अपना ताल ठोक (challenging) रही हैं। हमारे देश पर अनेक देश की ओर से खतरे मँडरा रहे हैं। ब्रिटिश सरकार ने हमें कमजोर करने के लिए कई प्रकार के जाल बिछाए हैं। हमें जाति, धर्म और प्रांत के नाम पर अलग-अलग बाँटने का प्रयास किया है। यह हमारी प्रगति के लिए रुकावट है।

आज ब्रिटिश सरकार का सिंहासन ध्वस्त हो गया है। लोगों में आक्रोश है। अगर हम सावधान न रहे तो हम आपस में ही लड़कर एक दूसरे को नुकसान पहुँचा सकते हैं। इसलिए इस-हर्ष-विषाद (griet) की घड़ी में हमें अत्यंत सावधान रहने की आवश्यकता है। जिस प्रकार चाँद की रोशनी अँधेरे में भी पथिक (passenger) को रास्ता दिखाती है ठीक उसी प्रकार हे पहरुए तुम्हें भी सबको रास्ता दिखाना है।

कवि का कहना है कि यह सही है कि हमें स्वतंत्रता मिल गई है। शत्रु सामने से चला गया है पर पीछे से वह कौन सा खेल खेलेगा हमें पता नहीं है। इससे बचने के लिए हमें पहले से भी और अधिक सतर्क रहना होगा। सालों-साल की गुलामी ने हमारे जन समुदाय को शारीरिक, मानसिक, आर्थिक और सांस्कृतिक सभी ओर से अत्यंत दुर्बल बना दिया है।

किंतु हमारा यह एक विश्वास, है कि हमारे जीवन की एक नई शुरुआत हो गई है, यह सोचकर हमारा मनोबल बढ़ जाता है। जैसे समुद्र की लहरें एकजुट होकर समुद्र में ज्वार ला देती हैं हमें भी उन समुद्री लहरों की तरह ही एक-साथ होकर आगे बढ़ते रहना है। हे पहरुए ! उपरोक्त कार्य के लिए तुम्हें अत्यंत सावधान रहना होगा।

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पंद्रह अगस्त शब्दार्थ:

  • पहरुए = पहरेदार, प्रहरी
  • पतवार = नाव खेने का साधन
  • अंबुधि = सागर, समुद्र
  • प्रभंजन = आँधी, तूफान
  • इंदु = चंद्रमा
  • दीप्तिमान = प्रकाशमान, कांतिमान, प्रभायुक्त
  • पहरूए = पहरेदार, प्रहरी (security person),
  • अचल = स्थिर (stable),
  • प्रथम = पहला (first),
  • छोर = किनारा (end),
  • विगत = बीता हुआ कल (past),
  • पतवार = नाव खेने का साधन (paddle),
  • अंबुधि = समुद्र, सागर (ocean),
  • प्रभंजन = आँधी, तूफान (storm),
  • इंदु = चंद्रमा (moon),
  • दीप्तिमान = प्रभायुक्त, प्रकाशमान (radiant)

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 प्रेरणा

Balbharti Maharashtra State Board Hindi Yuvakbharati 11th Digest Chapter 1 प्रेरणा Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

Maharashtra State Board 11th Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 प्रेरणा

11th Hindi Digest Chapter 1 प्रेरणा Textbook Questions and Answers

कृति-स्वाध्याय एवं उत्तर

आकलन

1. सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

प्रश्न अ.
कारण लिखिए –

(a) माँ, मेरी आवाज सुनकर रोती है –
उत्तर :
माँ, मेरी आवाज सुनकर रोती है क्योंकि उसकी ममता आँसुओं के रूप में फूट पड़ती है।

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 प्रेरणा

(b) बच्चों को माता-पिता का प्यार टुकड़ों में मिलता है –
उत्तर :
बच्चों को माता-पिता का प्यार टुकड़ों में मिलता है क्योंकि माता-पिता पर काम पर जाने की मजबूरी है।

(c) कवि की उम्र बढ़ती ही नहीं है –
उत्तर :
कवि की उम्र बढ़ती ही नहीं है क्योंकि उसने अपनी आँखों में स्वयं को एक बालक के रूप में पाया।

प्रश्न आ.
लिखिए –

(a)
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 प्रेरणा 3
उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 प्रेरणा 2

काव्य सौंदर्य

2.

प्रश्न अ.
ममत्व का भाव प्रकट करने वाली कोई भी एक त्रिवेणी ढूँढ़कर उसका अर्थ लिखिए।
उत्तर :
‘माँ मेरी बे-वजह ही रोती है
फोन पर जब भी बात होती है
फोन रखने पर मैं भी रोता हूँ।’

प्रस्तुत त्रिवेणी में ममत्व का भाव प्रकट हुआ है। जब कभी कवि अपनी माँ को फोन करता है तब पुत्र की आवाज सुनकर माँ की ममता रो पड़ती है। कवि भले ही इसे बे-वजह रोना कहता है, परंतु सच्चाई तो यही है कि कवि भी फोन रखने के बाद रोता है क्योंकि माता और पुत्र दोनों एक-दूसरे के स्नेह के लिए तरसते हैं और उनका एक-दूसरे के प्रति स्नेह आँसुओं के रूप में आँखों से बहने लगता है।

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 प्रेरणा

प्रश्न आ.
निम्न पंक्तियों में से प्रतीकात्मक पंक्ति छाँटकर उसे स्पष्ट कीजिए –
(a) चलते-चलते जो कभी गिर जाओ
(b) रात की कोख ही से सुबह जनम लेती है
(c) अपनी आँखों में जब भी देखा है
उत्तर :
‘रात की कोख से सुबह जनम लेती है’ यह पंक्ति प्रतीकात्मक (symbolic) पंक्ति है। यहाँ रात दुख एवं अँधेरे का प्रतीक है और सुबह सुख एवं उजाले का प्रतीक है। सुख और दुख का आना-जाना दिन और रात के समान है। दोनों स्थायी रूप से जीवन में कभी नहीं रहते। जैसे रात के बाद दिन का आना निश्चित है वैसे ही दुख के बाद सुख का आना भी निश्चित है। अत: दुखसुख दोनों का सहर्ष (readily) स्वागत करते हुए जिंदगी में आगे बढ़ना चाहिए।

अभिव्यक्ति

3.

प्रश्न अ.
पालनाघर की आवश्यकता पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
आज कामकाजी महिलाओं को घर से बाहर जाना पड़ता है और यह समय की माँग भी है कि पति-पत्नी दोनों अपने परिवार नैया की पतवार सँभालें। ऐसी स्थिति में इनके छोटे बच्चों को परेशानी होती है। कभी-कभी इसका परिणाम इनके कार्य पर भी पड़ता है। ऐसे में कामकाजी महिलाओं के बच्चों के लिए पालनाघर की सुविधा आवश्यक है। पालनाघर में बच्चों को घर जैसी देखरेख और सुरक्षा मिलती है।

अगर पालनाघर में बच्चे को घर जैसा माहौल मिलता हो तो महिलाएँ निश्चित होकर आत्मनिर्भर बनने के लिए कदम उठा पाती हैं। भारत की आधी आबादी महिलाओं की है। अत: महिलाएँ अगर श्रम में योगदान दें तो भारत का विकास तेजी से होगा। पालनाघर की सुविधा मुहैया कराने से महिलाओं की भागीदारी बढ़ेगी और देश के विकास पर इसका असर अवश्य दिखाई देगा। उन्हें बच्चों की देखभाल करने के लिए काम छोड़ने की नौबत नहीं आएगी।

घरेलु आमदनी में भी इजाफा (increase) होगा। परिणामत: बच्चों की सेहत और शिक्षा में भी सुधार होगा। संक्षेप में महिलाओं का काम करना महत्त्वपूर्ण है ताकि उन्हें अलग पहचान मिले और इसके लिए पालनाघर की सुविधा अगर उनके कार्य-स्थल के आस-पास हो तो सोने पे सुहागा हो सकता है।

प्रश्न आ.
नौकरीपेशा अभिभावकों के बच्चों के पालन की समस्या पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
आजकल माता-पिता दोनों का नौकरी करना बहुत ही आम बात है। ऐसे में उनके बच्चों के पालन की समस्या उभर आती है। बच्चों की तरफ पूरा-पूरा ध्यान दे पाना उनके लिए मुश्किल होता है। नौकरी और बच्चों का लालन-पालन दोनों में संतुलन बनाना कठिन हो जाता है।

बच्चों की परवरिश उनके लिए एक समस्या बन जाती है। वास्तव में कामकाजी माता-पिता के पास अक्सर समय की कमी होती है। समय का उचित नियोजन करके इस समस्या से निजात (escape) पाया जा सकता है। अपने छोटे-छोटे कार्यों में बच्चों को सम्मिलित कर लेने से बच्चों को भी अहमियत मिल जाती है और बच्चे जिम्मेदार भी बन जाते हैं। घर का समय बच्चों को देकर उन्हें खुश रखा जा सकता है।

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 प्रेरणा

उन्हें अच्छी आदतें सिखाने का समय मिल जाता है। माता-पिता के जीवन में बच्चे महत्त्वपूर्ण हैं इस बात का एहसास दिलाया जा सकता है। अक्सर कामकाजी माता-पिता के बच्चों के मन में यह भावना पनपती (flourish) रहती है कि माता-पिता के लिए काम ही महत्त्वपूर्ण है और वे बच्चों से प्यार नहीं करते। कई बार दफ्तर की परेशानियाँ घर तक ले आते हैं और अपना क्रोध वे बच्चों पर निकाल देते हैं।

ऐसे में डर के कारण बच्चे अभिभावकों से दूर हो जाते हैं। इस स्थिति से बचने की कोशिश अभिभावक अवश्य करें। बच्चों की बातें चाव से सुनना, दफ्तर की बातें उन्हें बताना, साथ में भोजन करना, छुट्टी के दिन घूमने ले जाना जैसी छोटी-छोटी बातें भी कामकाजी अभिभावक और बच्चों का रिश्ता मजबूत करती हैं। इस प्रकार समस्या हैं तो उसके उपाय भी है जिन पर अवश्य अमल करना चाहिए।

रसास्वादन

4. आधुनिक जीवन शैली के कारण निर्मित समस्याओं से जूझने की प्रेरणा इन त्रिवेणियों से मिलती है, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
(i) शीर्षक : प्रेरणा
(ii) रचनाकार : त्रिपुरारि
(iii) केंद्रीय कल्पना : अर्थ प्रधान एवं अतिव्यस्त आधुनिक जीवन शैली अपनाने के कारण आज मनुष्य न चाहते हुए भी अकेला पड़ गया है। तनाव में जी रहा है। मानसिक असंतुलन, चिंता, उदासी, सूनापन आदि से चारों ओर से घिरा है। भाग-दौड़ भरी जिंदगी में आगे निकलने की होड़ लगी हैं और उसके रिश्ते पीछे छूट रहे हैं। जिंदगी की आपाधापी में जुटे माता-पिता के बच्चों को स्नेह भी टुकड़ों में मिलता है।

जीवन की इन समस्याओं को उजागर करते हुए त्रिपुरारि जी ने अपनी त्रिवेणियों में माँ के ममत्व और पिता की गरिमा को भी व्यक्त किया है। जीवन में आगे निकलने की होड़ में चोट खाकर गिरने पर भी सँभलकर फिर से चलने की, आगे बढ़ने की सलाह दी है।

(iv) रस-अलंकार : तीन पंक्तियों के मुक्त छंद में इस कविता की त्रिवेणियाँ लिखी हुई हैं।

(v) प्रतीक विधान : जीवन के प्रति सकारात्मकता का विधान है – पेड़ में बीज और बीज में पेड़ छुपा है। यहाँ बीज हमारी भावनाओं का प्रतीक है और उसे आँसुओं के जल से सींचकर खुशियों का वृक्ष फलता फूलता है।

(vi) कल्पना : खुद के भीतर छिपे बालक को जीवित रखने की कल्पना हमें तनाव, कुंठा से मुक्ति देगी।

(vii) पंसद की पंक्तियाँ तथा प्रभाव :
‘चाहे कितनी ही मुश्किलें आएँ
छोड़ना मत उम्मीद का दामन
नाउम्मीदी तो मौत है प्यारे।’
यह त्रिवेणी मुझे पसंद है क्योंकि सचमुच कठिनाइयों से घबराकर निराश व्यक्ति जीते जी मर जाता है। हर अंधेरी काली रात के बाद सुबह उजाला लेकर अवश्य आता है। ठीक इसी तरह दुख के बाद सुख का आना निश्चित है इस उम्मीद के साथ जीना चाहिए। यही जीवन के प्रति सकारात्मकता है।

(viii) कविता पसंद आने के कारण : सामयिक स्थितियाँ, रिश्ते और जीवन के प्रति सकारात्मकता कविता का मुख्य विषय है जो प्रेरणादायी है। त्रिपुरारि जी की ये त्रिवेणियाँ हमें जीने की कला सिखाती है, इसीलिए मुझे कविता पसंद है।

साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान

5. जानकारी दीजिए:

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 प्रेरणा

प्रश्न अ.
त्रिवेणी’ काव्य प्रकार की विशेषताएँ –
(a) ……………………………………………..
(b) ……………………………………………..
उत्तर :
(a) तीन पंक्तियों का मुक्त छंद है।
(b) मात्र तीन पंक्तियों में कल्पना और यथार्थ (reality) की अभिव्यक्ति (expression) होती है।

प्रश्न आ.
त्रिपुरारि जी की अन्य रचनाएँ –
(a) ……………………………………………..
(b) ……………………………………………..
उत्तर :
(a) नींद की नदी (कविता संग्रह)
(b) नॉर्थ कैंपस (कहानी संग्रह)

रस

काव्यशास्त्र में आचार्यों ने रस को काव्य की आत्मा माना है। विभाव, अनुभाव, व्यभिचारी (संचारी) भाव और स्थायी भाव रस के अंग हैं और इन अंगों अर्थात तत्त्वों के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है।

साहित्यशास्त्र में नौ प्रकार के रस माने गए हैं। कालांतर में अन्य दो रसों को सम्मिलित किया गया है।

रस  स्थायी भाव
(१) शृंगार  प्रेम
(७) भयानक  भय
(२) शांत  शांति
(८) बीभत्स  घृणा
(३) करुण  शोक
(९) अद्भुत  आश्चर्य
(४) हास्य  हास
(१०) वात्सल्य  ममत्व
(५) वीर  उत्साह
(११) भक्ति  भक्ति
(६) रौद्र  क्रोध

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करुण रस :
किसी प्रियजन या इष्ट के कष्ट, शोक, दुख, मृत्युजनित प्रसंग के कारण अथवा किसी प्रकार की अनिष्ट आशंका के फलस्वरूप हृदय में पीड़ा या क्षोभ का भाव उत्पन्न होता है, वहाँ करुण रस की अभिव्यंजना होती है।
उदा. –
(१) वह आता –
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता।
पेट – पीठ दोनों मिलकर हैं एक,
– मैथिलीशरण गुप्त

(२) अबला जीवन हाय ! तुम्हारी यही कहानी,
आँचल में है दूध और आँखों में पानी।
चल रहा लकुटिया टेक
मुट्ठी भर दाने को भूख मिटाने को,
मुँह फटी झोली फैलाता।
– सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’

Yuvakbharati Hindi 11th Textbook Solutions Chapter 1 प्रेरणा Additional Important Questions and Answers

कृतिपत्रिका

(अ) निम्नलिखित पठित पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

पद्यांश : माँ मेरी बे-वजह ………………………………………… टुकड़ों में मिले हैं माँ-बाप (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 1)

प्रश्न 1.
कारण लिखिए :

(i) माँ, मेरी आवाज सुनकर रोती है –
उत्तर :
माँ, मेरी आवाज सुनकर रोती है क्योंकि उसकी ममता आँसुओं के रूप में फूट पड़ती है।

(ii) बच्चों को माता-पिता का प्यार टुकड़ों में मिलता है –
उत्तर :
बच्चों को माता-पिता का प्यार टुकड़ों में मिलता है क्योंकि माता-पिता पर काम पर जाने की मजबूरी है।

प्रश्न 2.
पर्यायवाची शब्द लिखिए :
उत्तर :
(i) माँ = …………………………. , ………………………….
उत्तर :
जननी, माता, धात्री

(ii) रात = …………………………. , ………………………….
उत्तर :
रजनी, निशा, यामिनी

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प्रश्न 3.
पद्यांश की द्वितीय त्रिवेणी का भावार्थ लिखिए।
उत्तर :
प्रस्तुत पद्यांश कवि त्रिपुरारि जी लिखित त्रिवेणी संग्रह ‘साँस के सिक्के’ से लिया गया है। इस त्रिवेणी में पिता की गरिमा व्यक्त करते हुए कवि कह रहे हैं कि पिता को कठोर हृदय का समझने की भूल हम सब करते हैं। परंतु सच्चाई यही है कि वह ऊपर से जितने सख्त नजर आते हैं भीतर से उतने ही कोमल होते हैं।

जब संतान को चोट लगती है तो पिता का कोमल हृदय भी तड़प उठता है। हर पिता में इस तरह कोई माँ भी छुपी होती है अर्थात पिता भी अपनी संतान से उतना ही प्यार करता है, जितना कि एक माँ। दोनों के स्नेह में कोई तुलना नहीं होनी चाहिए।

(आ) निम्नलिखित पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

पद्यांश : चाहे कितना भी हो घनघोर अंधेरा ……………………………………………… जहाँ पर भी कदम रखोगे। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 2)

प्रश्न 1.
परिणाम लिखिए :

(i) अँधेरा होने पर भी आस रखने का परिणाम
उत्तर :
अँधेरा होने पर भी आस रखने से किसी दिन उजाला अवश्य होता है।

(i) एक ही दीप से आगाज-ए-सफर कर लेने का परिणाम –
उत्तर :
एक ही दीप से आगाज-ए-सफर कर लेने से जहाँ भी कदम रखते हैं वहाँ रोशनी हो जाती है।

प्रश्न 2.
पद्यांश से विलोम शब्द की जोड़ियाँ ढूँढ़कर लिखिए :
उत्तर :
(i) …………………………… x ……………………………
अंधेरा x उजाला x …….

(ii) …………………………… x ……………………………
पास x दूर

प्रश्न 3.
पद्यांश की किसी एक त्रिवेणी का काव्य सौंदर्य लिखिए :
उत्तर :
प्रस्तुत पद्यांश ‘प्रेरणा’ कविता से लिया गया है। कवि त्रिपुरारि जी लिखित साँस के सिक्के ‘त्रिवेणी संग्रह’ में ये त्रिवेणियाँ संकलित (consalidated) हैं। दिए गए पद्यांश की द्वितीय त्रिवेणी में वीर रस की निर्मिति (build up) हुई है। प्राप्त परिस्थितियों में भी उत्साह के साथ आगे बढ़ने की कोशिश यहाँ दिखाई देती है। अपनी आयु के कुछ पल उधार लेकर ही सही हसरत के बीज बोने का साहस करके सपनों को साकार करने की बात वीरतापूर्ण है। निराशा के बादलों के बीच आशा का संचार इस त्रिवेणी की विशेषता है।

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(इ) निम्नलिखित पठित पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

पद्यांश : अपनी आँखों में जब भी …………………………………………….. नाउम्मीदी तो मौत है प्यारे। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 2)

प्रश्न 1.
उचित जोड़ियाँ मिलाइए :
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 प्रेरणा 1

‘अ’ ‘आ’
(1) …………………………… ……………………………
(2) …………………………… ……………………………
(3) …………………………… ……………………………
(4) …………………………… ……………………………

उत्तर :

‘अ’  ‘आ’
(1) सच्चा  ज्ञानी
(2) पेड़  बीज
(3) ना उम्मीदी  मौत
(4) एक शय  आँसू-खुशियाँ

प्रश्न 2.
पद्यांश की प्रथम त्रिवेणी का भावार्थ लिखिए।
उत्तर :
प्रस्तुत पद्यांश त्रिवेणी विधा में लिखी कविता ‘प्रेरणा’ से लिया गया है। कवि त्रिपुरारि जी ने पद्यांश की प्रथम त्रिवेणी में हमारे अंदर छिपे बालक को जीवित रखने की सलाह दी है। उन्होंने जब भी स्वयं की आँखों में देखा स्वयं को एक बच्चे की तरह ही पाया और उन्हें लगा कि दुनिया उन्हें बड़ा बनाकर दुनियादारी निभाने पर मजबूर करती है।

इसकी वजह से जीवन की अबोधता (innocence), मासूमियत नष्ट हो जाती है और मन अशांत हो जाता है। इससे छुटकारा पाना है तो कभी अपने भीतर छिपे बालक को मरने नहीं देना चाहिए।

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स्वाध्याय
आकलन : 1. सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

(अ) कारण लिखिए –

प्रश्न 1.
घनघोर अँधेरे में भी उजाले की आस रखनी चाहिए –
उत्तर :
घनघोर अँधेरे में भी उजाले की आस रखनी चाहिए क्योंकि रात की कोख से ही सुबह का जन्म होता है।

प्रश्न 2.
उम्मीद का दामन नहीं छोड़ना चाहिए –
उत्तर :
उम्मीद का दामन नहीं छोड़ना चाहिए क्योंकि नाउम्मीदी मौत के समान है।

(आ) लिखिए –
उत्तर:
काव्य सौंदर्य :

व्याकरण

रस :

काव्यशास्त्र (poetics) में आचार्यों ने रस को काव्य की आत्मा माना है। विभाव, अनुभाव, व्यभिचारी (संचारी) भाव और स्थायी भाव रस के अंग हैं और इन अंगों अर्थात तत्त्वों के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है। साहित्यशास्त्र में नौ प्रकार के रस माने गए हैं। कालांतर (afterward) में अन्य दो रसों को सम्मिलित किया गया है।

रस  स्थायी भाव
(1) शृंगार  प्रेम
(2) शांत  शांति
(3) करुण  शोक
(4) हास्य  हास
(5) वीर  उत्साह
(6) रौद्र  क्रोध
(7) भयानक  भय
(8) बीभत्स  घृणा
(9) अद्भुत  आश्चर्य
(10) वात्सल्य  ममत्व
(11) भक्ति  भक्ति

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1. शृंगार रस :
इसे रसराज कहा गया है। यह संयोग और वियोग इन दो भागों में विभाजित है। जब किसी काव्य में नायक नायिका के प्रेम, मिलने-बिछड़ने आदि का वर्णन होता है तो वह शृंगार रस कहलाता है।

उदा.
(i) रे मन आज परीक्षा मेरी।
सब अपना सौभाग्य मनावें।
दरस परस नि:श्रेयस पावें।
उद्धारक (redeemer) चाहें तो आवें।
यही रहे यह चेरी। – मैथिलीशरण गुप्त

(ii) बतरस लालच लाल की मुरली धरि लुकाय।
सौंह करै, भौहनि हँस, दैन कहै, नटि जाय।
– बिहारी

2. शांत रस :
जब कभी काव्य को पढ़कर मन में असीम शांति का एवं दुनिया से मोह खत्म होने का भाव उत्पन्न हो तो शांत रस की अनुभूति होती है। ज्ञान की प्राप्ति और संसार से वैराग्य होने पर शांत रस की उत्पत्ति होती है।

उदा.
(i) जब मैं था हरि नाहिं अब हरि है मैं नाहिं
सब अँधियारा मिट गया जब दीपक देख्या माहिं
– कबीर

(ii) देखी मैंने आज जरा!
हो जावेगी क्या ऐसी मेरी यशोधरा?
हाय! मिलेगा मिट्टी में वह वर्ण सुवर्ण खरा?
सूख जावेगा मेरा उपवन जो है आज हरा?
– मैथिलीशरण गुप्त

3. करुण रस :
किसी प्रियजन या इष्ट के कष्ट, शोक, दुख, मृत्युजनित प्रसंग के कारण अथवा किसी प्रकार की अनिष्ट (undesired) आशंका के फलस्वरूप हृदय में पीड़ा या क्षोभ का भाव उत्पन्न होता है, वहाँ करुण रस की अभिव्यंजना (expression) होती है।

उदा.
(i) वह आता –
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता।
पेट-पीठ दोनों मिलकर हैं एक,
चल रहा लकुटिया टेक
मुट्ठी भर दाने को, भूख मिटाने को, मुँह फटी झोली फैलाता।
– सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’

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(ii) अबला जीवन हाय ! तुम्हारी यही कहानी,
आँचल में है दूध और आँखों में पानी।
– मैथिलीशरण गुप्त

4. हास्य रस :
जब किसी काव्य को पढ़कर हँसी आ जाती है तब हास्य रस की उत्पत्ति होती है। सभी रसों में यह रस सबसे अधिक सुखात्मक रस है।
उदा.
(i) हाथी जैसा देह, गेंडे जैसी चाल।
तरबूजे सी खोपड़ी, खरबूजे से गाल।।

(ii) बुरे समय को देखकर गंजे तू क्यों रोय।
किसी भी हालत में तेरा बाल न बाँका होय।।

5. वीर रस :
शत्रु को मिटाने, दीन-दुखियों का उद्धार करने, धर्म की स्थापना, उद्धार करने आदि में जो मन में उत्साह उमड़ता है वही वीर रस की उत्पत्ति होती है।

उदा.
(i) सच है, विपत्ति जब आती है।
कायर को ही दहलाती (horror) है,
सूरमा नहीं विचलित होते,
क्षण एक नहीं धीरज खोते,
कर शपथ विघ्नों को गले लगाते हैं,
काँटों में राह बनाते हैं।
– रामधारी सिंह दिनकर

(ii) तू न थकेगा कभी,
तू न रुकेगा कभी,
तू न मुड़ेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ,
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ।
– हरिवंशराय बच्चन

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6. रौद्र रस :
अपमान, निंदा आदि से मन में क्रोध उत्पन्न होता है तब रौद्र रस की उत्पत्ति होती है।

उदा.
(i) अस कहि रघुपति चाप बढ़ावा,
यह मत लछिमन के मन भावा।
संधानेहु प्रभु बिसिख कराला,
उठि ऊदधि उर अंतर ज्वाला।।
– तुलसीदास

(ii) उस काल मारे क्रोध के तन काँपने उसका लगा
मानो हवा के जोर से सोता हुआ सागर जगा।
मैथिलीशरण गुप्त

7. भयानक रस :
भयोत्पादक वस्तुओं को देखने या सुनने से अथवा शत्रु आदि के अनिष्ठ आचरण से भयानक रस की
निष्पत्ति होती है। इसका स्थायी भाव भय है। अंतर्गत कंपन, पसीना छूटना, मुँह सूखना, चिंता आदि भाव भय के कारण उत्पन्न होते हैं।

उदा.
(i) अखिल यौवन के रंग उभार, हड्डियों के हिलते कंकाल
कचो के चिकने काले, व्याल, केंचुली, काँस, सिबार।
– सुमित्रानंदन पंत

(ii) एक ओर अजगर हिं लखि, एक ओर मृगराय
विकल बटोही बीच ही, पर्यो मूरछा खाय।

8. बीभत्स रस :
वीभत्स यानि घृणा इसका स्थायी भाव है। घृणित वस्तुओं घृणित चीजों या घृणित व्यक्तियों को देखकर, उनके संबंध में सुनकर मन में उत्पन्न होने वाली घृणा या ग्लानी बीभत्स रस को पुष्टि करती है।

उदा.
(i) आँखें निकाल उड़ जाते, क्षण भर उड़कर आ जाते
शव जीभ खींचकर कौए, चुभला-चभलाकर खाते
भोजन में श्वान लगे मुरदे थे भू पर लेटे
खा माँस चाट लेते थे, चटनी सैम बहते बहते बेटे
– श्यामनारायण पांडेय

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 प्रेरणा

(ii) विष्टा पूय रुधिर कच हाडा
बरबई कबहु उपल बहु छाडा।
– तुलसीदास

9. अद्भुत रस :
इसका स्थायी भाव आश्चर्य है। जब व्यक्ति के मन में विचित्र अथवा आश्चर्यजनक वस्तुओं को देखकर विस्मय उत्पन्न होता है तो अद्भुत रस की निष्पत्ति होती है।

उदा.
(i) देख यशोदा शिशु के मुख में सकल विश्व की माया
क्षणभर को वह बनी अचेतन (unconscious), हिल न सकी कोमल काया।
– सूरदास

(ii) पड़ी अचानक नदी अपार, घोड़ा कैसे उतरे पार।
राणा ने सोचा इस पार तब तक चेतक था उस पार।।
– श्यामनारायण पांडेय

10. वात्सल्य रस :
माता का पुत्र के प्रति प्रेम, बड़ों का बच्चों के प्रति प्रेम, गुरु का शिष्य के प्रति प्रेम की अभिव्यक्ति से वात्सल्य रस की निष्पत्ति होती है। ममत्व, अनुराग, स्नेह इस रस का स्थायी भाव है।
उदा.
(i) वह मेरी गोदी की शोभा, सुख सुहाग की है लाली,
शाही शान भिखारिन की है मनोकामना मतवाली।
– सुभद्राकुमारी चौहान

(ii) सुत मुख देखि जसोदा फूली।
हरषति देख दूध की द॑तिया,
प्रेम मगन तन की सुधि भूली।
– सूरदास

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 प्रेरणा

11. भक्ति रस :
इस रस में ईश्वर के प्रति अनुराग का, प्रेम का वर्णन होता है। श्रद्धा, स्मृति, मति, धृति, उत्साह आदि भाव इसमें समाविष्ट होते हैं। भक्ति भाव के मूल में दास्य, साख्य, वात्सल्य, माधुर्य भक्ति भाव समाविष्ट हैं।

उदा.
(i) अँसुवन जल सिंची-सिंची प्रेम-बेलि बोई
मीरा की लगन लागी, होनी हो सो होई
– मीरा

(ii) कहत कबीर सुनहु रे लाई
हरि बिन राखनहार न कोई।
– कबीर

प्रेरणा Summary in Hindi

प्रेरणा कवि परिचय :

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 प्रेरणा 4

एरौत (बिहार) (5 दिसंबर, 1988) में जन्मे त्रिपुरारि कुमार शर्मा जी एक कवि, लेखक, संपादक (editor) और अनुवादक (translater) हैं। शिक्षा, रचनात्मक लेखन और पत्रकारिता के क्षेत्र में सफलतापूर्वक कार्य करते हुए ‘त्रिवेणी’ काव्य (poetry) रचना में अपनी विशेष पहचान बना चुके हैं। नींद की नदी’, ‘नॉर्थ कैंपस, साँस के सिक्के आदि आपकी प्रमुख कृतियाँ हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी कविताएँ, कहानियाँ, लेख आदि प्रकाशित हुए हैं।

प्रेरणा कविता का परिचय :

प्रस्तुत रचना ‘त्रिवेणी’ विधा में लिखी कविता है। ‘त्रिवेणी’ एक तीन पंक्तियों वाली कविता है जिसे प्रसिद्ध गीतकार और कवि गुलजार साहब ने विकसित (develop) किया है। शब्दों की किफायत और एहसासों की अमीरी इस विधा की विशेषता है। एक चलचित्र की तरह इसकी पहली दो पंक्तियाँ कहानी को गढ़ती है और तीसरी पंक्ति कहानी की परिपूर्णता को अभिव्यक्त करते हुए क्लाइमेक्स व्यक्त कराती है। प्रस्तुत त्रिवेणियों में त्रिपुरारि जी ने कहीं माँ की ममता, पिता का गौरव तो कहीं जीवन की कठोर सच्चाई को व्यक्त करते हुए मुश्किलों का डटकर सामना करने की सलाह दी है और उम्मीद का दामन पकड़कर आगे बढ़ने का मशवरा दिया है।

प्रेरणा कविता का भावार्थ (purport) :

जीवन की आपाधापी में माता-पुत्र बिछड़ जाते हैं। दोनों ही एक-दूसरे के स्नेह के लिए तरसते हैं। पुत्र माँ से फोन पर बात करता है तब पुत्र की आवाज सुनकर ही माँ की ममता आँसुओं के रूप में फूट पड़ती है। माँ को रोते देखकर पुत्र को लगता है माँ बे-वजह ही रोती है। परंतु जब फोन पर बातचीत पूरी हो जाती है और पुत्र फोन रखता है तो वह भी अपनी भावनाएँ रोक नहीं पाता और रोता है।

पिता माँ की अपेक्षा कठोर हृदय के होते हैं ऐसा लोग कहते हैं, परंतु उनका हृदय भी कोमल ही होता है। जब संतान को चोट लगती है तो वह तड़प उठते हैं। यह इस बात का सबूत है कि पिता में भी कोई माँ छुपी होती है अर्थात स्नेह की बात आती है तो माँ के ममत्व (mother’s love) को अधिक अहमियत दी जाती है परंतु पिता भी अपनी संतान से उतना ही स्नेह करते हैं जितना कि एक माँ।

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 प्रेरणा

जीवन की जरूरतें पूरी करने हेतु माता-पिता दोनों काम पर जाते हैं। कभी-कभी शिफ्ट में ड्युटी करने वाले अभिभावक (guardian) अपनी ड्युटी इस तरह से लेने की कोशिश करते कि दोनों में से एक बच्चे के साथ रहे। ऐसे में पिता महीनों तक दिन की शिफ्ट जाता है और माता महीनों तक रात की शिफ्ट जाती है। बच्चे को दोनों का स्नेह ऐसी स्थिति में टुकड़ों में ही मिलता है। नन्हा बच्चा जब माँ का स्नेह पाता है तब पिता नहीं होते और पिता का स्नेह पाता है तब माँ काम पर गई होती है।

उगते सूरज का स्वागत सभी करते हैं, परंतु डूबते सूरज के प्रति उदासीनता दिखलाते हैं। कवि का मशवरा है कि डूबते सूरज को भी नहीं भूलना चाहिए क्योंकि, डूबना-उगना तो केवल नजरों का धोखा है। सूरज तो आसमान में ही है। हमारी धरती ही सूरज की परिक्रमा करते हुए हमें सूरज के डूबने-उगने का आभास कराती है अर्थात सच्चाई से मुख न मोड़कर हमें हर स्थिति में तटस्थ रहना चाहिए।

जीवन पथ पर चलते-चलते कभी-कभी गिर भी गए तो खुद को सँभालकर आगे बढ़ना चाहिए। गिरने पर जो चोट लगती है वह हमें जीवन का नया पाठ सिखाती है क्योंकि ठोकर खाकर ही हमें जीने की कला का सबक मिलता है। अनुभव से बड़ा कोई शिक्षक नहीं। बस, जीवन चलने का नाम है, आगे बढ़ने का नाम है इसे याद रखना होगा।

जीवन पथ पर आगे बढ़ते समय कभी मार्ग में घनघोर अँधकार छाया हुआ मिले लेकिन तब भी हमें उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए। किसी दिन उजाला अवश्य होगा यही आशा रखते हुए आगे बढ़ना चाहिए क्योंकि रात की कोख से ही सुबह जन्म लेती है। इस त्रिवेणी में कवि हमें निराशा के अंधकार से आशा के उजाले की ओर ले जाना चाहते हैं और इस सत्य से अवगत (aware) कराते हैं कि जीवन में दुःख के बाद सुख अवश्य आता है। सुख-दुख, दिन-रात की तरह आते-जाते रहते हैं इसीलिए दुख की स्थिति में निराश नहीं होना चाहिए।

अपनी आयु के कुछ पल उधार लेकर मैंने हसरत के बीज बोए क्योंकि विचारों की जमीन मेरे पास पहले से थी अर्थात (means) हमारे सपनों को पूरा करने के लिए आयु कम ही पड़ती है। परंतु सपने अवश्य देखने चाहिए और उन्हें पूरा करने की कोशिश भी करनी चाहिए।

मंजिल बहुत दूर है यह सोचकर हमें यात्रा रोकनी नहीं चाहिए बल्कि छोटे से दीपक की धुंधली सी रोशनी में भी यात्रा आरंभ कर लेनी चाहिए क्योंकि हिम्मत से आगे बढ़ने वाले यात्री के कदम जहाँ भी पड़ेंगे वहाँ रोशनी होगी और मंजिल का मार्ग प्रशस्त (wide) होगा। कवि हमें सकारात्मक सोच से जीवन में आगे बढ़ने का मशवरा दे रहे हैं।

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 प्रेरणा

मैंने जब कभी अपनी आँखों में देखा स्वयं को एक बालक की तरह अबोध, (innocent) निष्पाप पाया। इससे तो यही सिद्ध होता है कि उम्र बढ़ती ही नहीं। वास्तव में उम्र बढ़ती है वैसे-वैसे हम मासुमियत खो देते हैं और दुनियादारी निभाते-निभाते हमारे भीतर छिपे बालक को बड़ा बुजुर्ग, अनुभवी बनाकर जीवन की सुंदरता का गला घोट देते हैं। मन को अशांत, तनाव पूर्ण, कुंठा (frustration) ग्रस्त बना देते हैं। इससे मुक्ति पाना है तो खुद के भीतर छिपे बालक को जीवित रखना चाहिए।

आँसू और खुशियाँ एक ही वस्तु के दो नाम हैं। जैसे पेड़ में बीज छुपा है और बीज में पेड़ वैसे ही आँसू में खुशी और खुशी में आँसू छिपे होते हैं। जो इस बात को समझ गया वही सच्चा ज्ञानी है क्योंकि आँसू और खुशियाँ जीवन के दो अंग हैं और ये जीवन में आते-जाते रहते हैं। हर खुशी में आँसू छिपे हैं जो हमारी भावनाओं के प्रतीक (symbol) हैं और आँसुओं के जल से सींचकर खुशियों का वृक्ष फलता-फूलता है।

जीवन में कितनी ही कठिनाइयाँ क्यों न आए हमें उम्मीद का दामन कभी नहीं छोड़ना चाहिए। क्योंकि नाउम्मीदी तो मृत्यु के समान है अर्थात् कठिनाइयों से घबराकर निराशा का दामन थामने वाला जीते जी मर जाता है। जैसे हर अँधेरी रात के बाद सुबह अवश्य आती है वैसे ही दुख के बाद सुख का आना निश्चित है। इस सकारात्मकता (positivity) के साथ जीना ही जिंदगी है। सुख-दुख की स्थिति में स्थिर रहना ही मनुष्य की सच्ची पहचान है इस तथ्य को कभी नहीं भूलना चाहिए।

प्रेरणा शब्दार्थ:

  • घनघोर = घना
  • हसरत = चाह, इच्छा
  • आगाज-ए-सफर = यात्रा का आरंभ
  • शय = वस्तु, चीज
  • सख्त = कठोर (strict),
  • नाजुक = कोमल (sensitive),
  • महज = केवल, मात्र (just),
  • चोट = आघात, प्रहार, घाव (hurt),
  • घनघोर = घना, डरावना (dense),
  • आस = आशा, भरोसा (hope),
  • कोख = पेट, गर्भाशय (womb),
  • लम्हा = पल, क्षण (moment),
  • हसरत = चाह, इच्छा (desire),
  • खयाल = स्मृति, विचार (idea),
  • आगाज-ए-सफर = यात्रा का आरंभ (set off),
  • शय = वस्तु, चीज (thing), Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 प्रेरणा
  • दामन = आँचल, पल्लु (fringe),
  • जरा = थोड़ा सा (little bit)

Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 5 परिमळ

Balbharti Maharashtra State Board Marathi Yuvakbharati 11th Digest Chapter 5 परिमळ Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

Maharashtra State Board 11th Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 5 परिमळ

11th Marathi Digest Chapter 5 परिमळ Textbook Questions and Answers

कृती

1. अ. कृती करा.

प्रश्न 1.
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 5 परिमळ 1
उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 5 परिमळ 4

प्रश्न 2.
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 5 परिमळ 2
उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 5 परिमळ 5

प्रश्न 3.
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 5 परिमळ 3
उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 5 परिमळ 6

आ. खलील घटनांचे पाठाच्या आधारे परिणाम लिहा.

प्रश्न 1.
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उत्तर :

घटना परिणाम
1. कोकिळ पक्ष्याने तोंड उघडणे संगीत वाहू लागणे
2. प्राजक्ताची कळी उमलणे सुगंध दरवळणे
3. जातीच्या कवीचे हृदय ताल धरून बसलेले असणे. शब्द जीभेवर लीलया येणे

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इ. तुलना करा.

प्रश्न 1.
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उत्तर :

मुद्दे माणूस प्राणी
1. वर्तणूक कृतघ्न कृतज्ञ
2. इमानिपणा स्वार्थी निःस्वार्थी

ई. खालील आशयाची कवितेची उदाहरणे पाठातून शोधून लिहा.

प्रश्न 1.
शब्दांची मौज वाटेल, अशी बहिणाबाईंनी दिलेली उदाहरणे
उत्तर :
1. ‘पर्गटले दोन पानं,
जसे हात जोडीसन’

2. ‘आधी हाताला चटके,
तव्हा मियते भाकर’ ‘नही ऊन, वारा थंडी,
आली पंढरीची दिंडी’

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प्रश्न 2.
बहिणाबाईंची प्राणिमात्रांविषयीची कृतज्ञता
उत्तर :

  • गाय न् म्हैस चारा खाऊन दूध देतात – दूध देणे
  • कुत्रा आपले शेपूट इमानीपणाच्या भावनेने हालवतो – इमानी

2. व्याकरण.

प्रश्न अ.
प्रस्तुत पाठात दिलेल्या कवितेच्या उदाहरणांतून यमक जुळणाऱ्या शब्दांच्या पाच जोड्या शोधून लिहा…
उत्तर :
यमक जुळणाऱ्या शब्दांच्या पाच जोड्या :

  • पीठी – व्होटी
  • जीव – हीव
  • थंडी – दिंडी
  • घाई – पुन्याई
  • नक्कल – अक्कल

प्रश्न आ.
शब्दसमूहांचा अर्थ स्पष्ट करा.

  1. बावनकशी सोने
  2. करमाची रेखा
  3. सोन्याची खाण
  4. चतकोर चोपडी

उत्तर :

  1. बावनकशी सोने – अस्सल, खरे
  2. करमाची रेखा – नशीबाचा फेरा, नियतीचा खेळ
  3. सोन्याची खाण – भरभराट, विपुल प्रमाणात
  4. चतकोर चोपड़ी – पुस्तक किंवा वहीचा काही भाग

प्रश्न इ.
खालील वाक्प्रचारांचा अर्थ लिहून वाक्यांत उपयोग करा.
1. तोंडात बोटे घालणे.
2. तोंडात मूग धरून बसणे.
उत्तर :
1. तोंडात बोटे घालणे – अर्थ : आश्चर्यचकित होणे, विस्मय वाटणे.
वाक्य : अपंग मुलाने धावण्याची शर्यत जिंकल्याने सर्वांनी तोंडात बोटे घातली.

2. तोंडात मूग धरून बसणे – अर्थ : काहीही न बोलणे, गप्प बसणे.
वाक्य : सरांनी अवघड प्रश्न विचारताच सर्व मुले तोंडात मूग धरून बसली.

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प्रश्न ई
खालील शब्दांना उपसर्ग व प्रत्यय लावून शब्द तयार करा.
उदा., वाद-विवाद, संवाद, निर्विवाद, वादक, वादी
(अ) अर्थ – ……………
(आ) कृपा – ……………
(इ) धर्म – …………….
(ई) बोध – …………….
(उ) गुण – ……………..
उत्तर :
(अ) अनर्थ, अर्थहीन, अर्थपूर्ण
(आ) अवकृपा, कृपाळू
(इ) अधर्म, स्वधर्म, धार्मिक, धर्मवीर
(ई) अबोध, बोधामृत
(उ) अवगुण, सगुण, निर्गुण, गुणी, गुणवान

3. स्वमत.

प्रश्न अ
‘बहिणाबाईंचे साहित्य जुन्यात चमकणारे व नव्यात झळकणारे आहे’, हे लेखकाचे विचार तुमच्या शब्दांत स्पष्ट करा.
उत्तर :
बहिणाबाई या एक अशिक्षित शेतकरी स्त्री असूनही त्यांची रचना तोंडात बोट घालायला लावणारी आहे. बहिणाबाईंचा जिव्हाळा जबर आहे. त्यांच्या शब्दाशब्दांतून प्रतिभा झिरपते. त्यांचे काव्य सरस व सोज्वळ आहे. बहिणाबाई यांची कविता इंग्रजी वळणाच्या सौंदर्यवादी भावकवितेच्या परंपरेला छेद देणारी अस्सल मराठी वळणाची ग्रामीण कविता आहे.

जुन्यात चमकणारी ही कविता आहे, बहिणाबाई यांनी आपली कविता थेट संत कवितेच्या आणि तत्त्वकवितेच्या परंपरेला जोडली आहे, त्यांच्या कवितेत या परंपरेतला भक्तिभाव, तत्त्वचिंतन आणि हितोपदेश आपल्याला दिसतो. ही लोकगीताच्या अंगाने जाणारी कविता आहे. नवकवितेच्या जवळ जाणारी त्यांची कविता आहे. त्यांच्या कवितेत निसर्ग, ग्रामीण जीवन व कृषिसंस्कृतीचे अस्सल दर्शन घडते. शेतकरी हा कर्मयोगी आहे आणि त्याच्या कामात उदात्तता आहे असे सांगणाऱ्या या कविता आहेत.

क्तिकविता आहे. त्यात पारंपरिक तत्वकवितेच्या खुणा सर्वत्र विखुरलेल्या दिसतात. ‘उदा. देव अजब गारोडी’ तसेच ‘मानसा मानसा कधी व्हशीन मानूस!’ यांसारख्या आधुनिक कवितेतून मानवतेचा संदेश देणारी त्यांची कविता आहे.

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प्रश्न आ.
‘बहिणाबाई शेताला निघाल्या, की काव्य आपले निघालेच त्यांच्याबरोबर.’, या विधानाचा तुम्हांला समजलेला अर्थ सविस्तर लिहा.
उत्तर :
बहिणाबाईंची कविता ही अर्वाचीन मराठीतील पहिली ग्रामीण कविता होय. ती या अर्थाने की, ती ग्रामीण जीवनातूनच मोहोरून आली आहे. त्यांच्या कवितेतून ग्रामीण जीवन अंतर्बाहय रसरसलेले आहे. ‘देव अजब गारोडी’ या कवितेत पेरणीनंतर धरित्रीच्या कुशीतून जे चैतन्य ओसंडते त्याचे अतिशय प्रभावी दर्शन घडते. ‘येहेरीत दोन मोटा’ यातून कृषिजीवनाचे दर्शन तर घडतेच पण त्यातील दोन्हीमध्ये पाणी एक यातून कणा आणि चाक वेगळे असले तरी त्याची गती एकच आहे हे दिसून येते.

त्यांची कविता निसर्गाशी समरस होणारी, ग्रामीण जीवनाचे दर्शन घडवणारी आहे. तान्या सोपानाला झोपवून बहिणाबाई शेतात निघाल्या की त्यांच्या काव्यप्रतिभेला धुमारे फुटू लागत आणि त्यातून ग्रामीण, कृषिजीवनाचे दर्शन घडविणारी कविता जन्माला येई. वाटेत दिसलेल्या वडाच्या झाडावर ‘हिरवे हिरवे पानं’ सारखी रचना सहज आकाराला येते. शेतातील कापणी, मळणी या शेतातील कामांबरोबरच मोठ्या, भाविक व कष्टाळू शेतकऱ्याचे जीवन त्यांच्या कवितेतून प्रतिबिंबीत होताना दिसते. थोडक्यात बहिणाबाईंची कविता ही अस्सल ग्रामीण जीवनाचे दर्शन घडविणारी कविता आहे. शेतात राबणारा शेतकरी आणि कृषिसंस्कृती यांचं अनोखं असणार नातं त्यांच्या कवितेत दिसून येते.

प्रश्न इ.
“मानसा मानसा, कधी व्हशीन मानूस!’ या उद्गारातून व्यक्त झालेला बहिणाबाईंचा विचार तुमच्या शब्दांत स्पष्ट करा.
उत्तर :
बहिणाबाईनी कवितेतून माणसाचा मतलबीपणा आणि त्याच्या स्वार्थी वृत्तीचे वास्तव दर्शन घडविले आहे. बहिणाबाई आणि स्वार्थी वृत्तीची सर्वाधिक चीड आहे. त्या माणसाला संतापून म्हणतात ‘मानसा मानसा, कधी व्हशीन मानूस!’ ‘माणसा तुला नियत नाही रे’, माणसापेक्षा गोठ्यातील जनावर बरे, गाय न म्हैस चारा खाऊन दूध देतात. पण माणसाचे एकदा पोट भरले की माणस उपकार विसरून जातो. कुत्र्यामध्ये इमानीपणा आहे पण माणूस फक्त मतलबासाठी मान डोलावतो.

माणूस केवळ लोभामुळे माणूस असूनही काणूस म्हणजे पशू झाला आहे. त्याची स्वार्थी प्रवृत्ती सर्वत्र दिसून येते. माणस स्वतःच्या फायद्यासाठी एकमेकांशी भांडत आहे. मानवता आज संपुष्टात आली आहे. अखिल मानवजातीच्या कल्याणासाठी बहिणाबाई ‘मानसा मानसा, कधी व्हशीन मानूस’? अशी आर्त हाक देतात, संत महात्म्यांनीही मानवतेच्या कल्याणासाठी तळमळ व्यक्त केली आहे. आज माणूस पशूसारखे वागतोय. माणसातला माणूस कधी जागा होतोय? हीच खरी आजची समस्या आहे. स्वार्थासाठी माणूस माणूसपण विसरत आहे. या समस्येचा साक्षात्कार बहिणाबाईसारख्या खानदेशातील एका अशिक्षित शेतकरी महिलेला व्हावा हे त्यांच्यातील नैसर्गिक प्रतिभेचं लेणं आहे.

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4. अभिव्यक्ती.

प्रश्न अ.
प्र. के. अत्रे यांच्या प्रस्तावना लेखनाची तुम्हाला जाणवलेली वैशिष्ट्ये लिहा.
उत्तर :
एखादया शेतात मोहरांचा हंडा अचानक सापडावा तसा बहिणाबाईच्या काव्याचा शोध महाराष्ट्राला लागला. बहिणाबाईचा जिव्हाळा जबर आहे. त्यांच्या शब्दाशब्दांतून प्रतिभा नुसती झिरपते आहे असे सरस आणि सोज्वळ काव्य आहे. जुन्यात चमकेल व नव्यात झळकेल असे त्याचे तेज आहे. प्र. के. अत्रे यांच्यासारख्या मर्मज्ञ, प्रतिभावंताची बहिणाबाई चौधरी यांच्या गीतकाव्यासंबंधीची ही प्रतिक्रिया होय. बहिणाबाई चौधरी यांच्या कवितेचे प्र. के. अत्रे केवळ प्रस्तावनाकारच नव्हते तर ते प्रकाशकही होते.

प्र. के. अत्रे यांची लिहिलेली प्रस्तावना ही बहिणाबाईंच्या असामान्य काव्यप्रतिभेची ओळख करून देणारी आहे. त्यांनी बहिणाबाईंच्या ओघवत्या व भावपूर्ण शब्दांची काव्यप्रतिभा आपल्या प्रस्तावनेतून उलगडून दाखवली आहे. बहिणाबाईंची ग्रामीण जीवनाशी जोडलेली नाळ, निसर्गाशी असलेली समरसता, कृषिजीवनाचे संदर्भ हा त्यांच्या काव्याचा विषय. प्र. के. अत्रे यांनी बहिणाबाईंचे हे सूक्ष्म व अचूक निरीक्षण यांतील आत्मियता लीलया वर्णिली आहे. माणसातील लोप पावत चाललेल्या माणुसकीचे वर्णन करणाऱ्या कवितेवर अत्रे यांनी प्रकाश टाकला आहे. अत्रे यांनी आपल्या प्रस्तावनेतून बहिणाबाईच्या अनेक कवितांचा अर्थ उलगडून दाखविला आहे.

बहिणाबाईंची कविता हे बावनकशी सोने आहे. ते महाराष्ट्रासमोर आणण्यासाठी अत्रे यांनी स्वतः त्या कवितांचे प्रकाशन केले. अत्रे यांनी बहिणाबाईची काव्यप्रतिभा जाणून आपल्या प्रस्तावनेत बहिणाबाईंचे निसर्गप्रेम, कृषी, शेतकरी त्यांचे अपार कष्ट यांचे वर्णन केले आहे. बहिणाबाईच्या ‘संसार’, ‘स्त्रियांची दुःखे’, ‘माणसातला स्वार्थ’ या कवितांवर अतिशय मार्मिक असे भाष्य केले आहे. प्राणिमात्रांचा प्रामाणिकपणा आणि माणसांचा कृतघ्नपणा या बहिणाबाईंच्या कवितेतून अत्रे यांनी नेमकेपणाने त्यांतील भाव उलगडून दाखविला आहे.

अत्रे यांची प्रस्तावना ही अतिशय प्रतिभावंत साहित्यिकाची प्रस्तावना आहे. बहिणाबाईंच्या काव्यातील तळमळ, माणसाच्या कल्याणाची आस शेतकरी व त्याचे अपार कष्ट या काव्य आशयाचा सुरेल परामर्श अत्रे यांनी घेतला आहे. थोडक्यात अत्रे यांच्या प्रस्तावनेने ‘बहिणाबाईंची गाणी’ या पुस्तकाला एक आगळी वेगळी झळाळी लाभली आहे.

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प्रश्न आ.
बहिणाबाईंच्या काव्यातील भाषेची वैशिष्ट्ये लिहा.
उत्तर :
बहिणाबाई चौधरी यांनी लिहिलेल्या कविता ह्या निसर्ग, कृषिसंस्कृती, ग्रामीण जीवन, शेतकरी, शेती, मानवता, प्राणिमात्रांची कृतज्ञता या विषयांशी संबंधित आहेत, बहिणाबाई या अशिक्षित खेड्यातील स्त्री असूनही त्यांच्या काव्यातला जिव्हाळा जबर आहे. त्यांच्या शब्दाशब्दांतून प्रतिभा नुसती झिरपते आहे. त्यांचे काव्य सरळ आणि सोज्वळ आहे.

बहिणाबाईंनी वहाडी, खानदेशी ग्रामीण, बोली भाषेत लिहिलेल्या कवितांना वेगळाच गोडवा आहे. बहिणाबाई कधीही शाळेत गेल्या नव्हत्या. गावातील मंदिरे याच त्यांच्या शाळा असे असतानाही त्यांनी केलेल्या रचना त्यांच्या प्रतिभेचे दर्शन घडवितात. बोली भाषेच्या जिव्हाळ्याने त्यांची कविता आपलीशी वाटते, वहाडी खानदेशी भाषेचे काव्याभिव्यक्तीचे सामर्थ्य फार उंचीचे आहे.

बहिणाबाईंच्या भाषेत जिव्हाळा आहे, तळमळ आहे. माणसाच्या उत्कर्षाची आस त्यांना लागली आहे. ग्रामीण भाषेमुळे, बोलीमुळे शेतकरी, निसर्ग, मानवता या आशयाशी एकरूप होणारी त्यांची कविता वाचकांचे लक्ष वेधून घेते. बहिणाबाई काव्य करताना कुठेही अडखळत असलेल्या, शब्दांसाठी थांबलेल्या अशा दिसत नाहीत. ओघवते असे त्यांचे काव्य आहे. याचे कारण म्हणजे त्यांचे म्हणून जे एक अनुभवविश्व होते. त्या अनुभवाची म्हणून जी भाषा होती ती त्यांना पूर्णत: परिचित होती, नव्हे त्यावर त्यांचे प्रभुत्व होते. म्हणूनच त्यांच्या कवितेच्या हातात भाषा हवी तशी वाकते, आकार घेते व अर्थाभिव्यक्ती साधते. या अर्थाने बहिणाबाई या भाषाप्रभूत्व ठरतात.

प्रश्न इ.
माणसातील माणुसकीचा तुम्ही घेतलेला अनुभव शब्दबद्ध करा.
उत्तर :
अलिकडच्या काळात माणसातील माणुसकी लोप पावत चालली आहे. प्रत्येक माणूस आत्मकेंद्री बनत चालला आहे. माणूस आज पशू होऊन एकमेकांशी झगडत आहे. पण पशू मात्र आपला इमानीपणा दाखवत आहे. माणूस हा स्वार्थी, आत्मकेंद्री बनत चालला असताना आजही समाजात माणुसकी शिल्लक आहे अशी अनेक उदाहरणे देता येतील. पैसा म्हटला की प्रत्येकाला त्याची हाव असते.

कोणत्याही मार्गाने का होईना पण पैसा मिळाला पाहिजे ही प्रवृत्ती सर्वत्र आढळते. पण मी अनुभवलेल्या एका प्रसंगातून आजही माणुसकीचा झरा वाहतो आहे याचे दर्शन घडते. आमच्या कॉलेजमध्ये घडलेला प्रसंग, एका गरीब विद्यायनि शैक्षणिक फी, वहया, पुस्तकांसाठी आणलेले पैसे त्याच्याकडून हरवले. तो विदयार्थी ढसाढसा रडत होता. कारण ते पैसे त्याच्या आई वडिलांनी मजुरी करून मिळवलेले होते. हे पैसे मिळाले नाहीत तर आपले शिक्षण थांबणार या चिंतेने त्याला ग्रासले होते. आमच्या कॉलेजमध्ये अतिशय कमी पगारावर काम करणाऱ्या एका सेवकाला हे पैसे सापडले व त्याने ते त्या गरीब मलाला परत केले.

त्या गरीब मुलाला पैसे परत मिळण्याचा खूप आनंद झाला. खरं तर त्या सेवकाला सापडलेल्या पैशाच्या पाकीटाचा मोह झाला नाही. तीन महिन्यांच्या पगाराइतकी ती रक्कम असूनही तो मोह टाळून त्याने ते पैशाचे पाकीट परत केले. ही घटना माणुसकीचा झरा अजूनही आटलेला नाही याचे दयोतक आहे.

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प्रकल्प.

प्रश्न 1.
‘बहिणाबाईंची गाणी’ मिळवून निवेदनासह काव्यवाचनाचा कार्यक्रम सादर करा.

प्रश्न 2.
तुमच्या परिसरातील ओव्या/लोकगीते मिळवून संग्रह करा.

11th Marathi Book Answers Chapter 5 परिमळ Additional Important Questions and Answers

खालील उताऱ्याच्या आधारे सूचनेनुसार कृती करा.

प्रश्न 1.
बहिणाईच्या काव्याचा आविष्कार – [ ]
उत्तर :
बहिणाबाईंच्या काव्याचा आविष्कार – सुभाषितांचा

प्रश्न 2.
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 5 परिमळ 11
उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 5 परिमळ 12

खालील कृती सोडवा.

प्रश्न 1.
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 5 परिमळ 9
उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 5 परिमळ 10

प्रश्न 2.
बहिणाबाईंना प्राप्त झालेली प्रतिभा
……………………….
उत्तर :
बहिणाबाईंना प्राप्त झालेली प्रतिभा एखादया बुद्धिमान तत्त्वज्ञानी किंवा महाकवीची

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कोष्टक पूर्ण करा.

प्रश्न 1.

  1. शेतकरी जीवन ……….
  2. …………. तिला रात म्हणू नये
  3. इमानाला जो विसरला …………
  4. ……………. शेवटी रिकामेच होणार

उत्तर:

  1. शेतकरी जीवन → कष्टाचे
  2. भुकेल्या पोटी जी → तिला रात म्हणू नये माणसाला निजवते
  3. इमानाला जो विसरला → त्याला नेक म्हणू नये
  4. पोट कितीही भरले तरी → शेवटी रिकामेच होणार

स्वमत :

प्रश्न 1.
शेतकऱ्यांचे जीवन म्हणजे कष्टाचे हा विचार तुमच्या शब्दात स्पष्ट करा.
उत्तर :
‘बहिणाबाईंची गाणी’ या पुस्तकात बहिणाबाई चौधरी यांनी कृषी, ग्रामीण जीवन, शेती आणि शेतकरी यांचे चित्रण केले आहे. बहिणाबाईंची कविता अस्सल शेती आणि शेतकऱ्यांचे भावविश्व उलगडून दाखवणारी आहे. शेतकऱ्यांचे जीवन म्हणजे कष्टाचे. ऊन, वारा व पाऊस यांची तमा न बागळता शेतकरी रात्रंदिवस राबत असतो. सर्वसामान्य माणसे शेतकऱ्याच्या जीवावर दोन वेळा पोटभर जेवतात. शेतकरी शेतातच राबतो आणि त्याची माती शेतातच होते. शेतात पेरणी, कापणी व उफणणी या काळात शेतकरी राबराब राबतो.

त्याने पिकवलेल्या मालाला योग्य भाव मिळेल याची शाश्वती नसते. पण जगाचा पोशिंदा असणारा हा भोळा, भाविक व कष्टाळू शेतकरी आयुष्यभर काळ्या आईची सेवा करतो. शेतकऱ्यांच्या संसाराची करुण कहाणी अनेक काव्यात दिसून येते. शेतकरी खळं करत असताना त्याला एक आस लागलेली असते ती म्हणजे यातून मिळणाऱ्या उत्पन्नातून आपला मोडलेला संसार पुन्हा उभा राहील पण तसे घडतेच असे नाही. निसर्गाचा लहरीपणा, कर्ज, हमीभाव पिकांवर पडणारी कीड या दुष्टचक्रात शेतकरी अडकला आहे आणि त्यातून ज्यांना बाहेर पडता येत नाही ते आत्महत्या करतात. असे कष्टाळू शेतकऱ्याचे जीवन संघर्षाने भरलेले आहे.

अभिव्यक्ती:

प्रश्न 1.
‘कशाला काय म्हणू नाही’ या काव्यातील सुभाषितांचा अर्थ लिहा.
उत्तर :
बहिणाबाई चौधरी यांच्या ‘बहिणाबाईची गाणी’ या पुस्तकात अनेक विषयांवरील काव्य आहे. मराठी वाड़मयात अमर होतील अशी अनेकात अनेक सुभाषिते आली आहेत. सुभाषितांचे एक शेतच पिकलेले आहे असे वाटते. ज्यातून कापूस येत नाही त्याला बॉड म्हणू नये, बोंडाची मुख्य अशी ओळख म्हणजे त्यातील कापूस नसेल तर त्या बोंडाला काय अर्थ उरणार? भुकेच्या पोटी माणसाला निजवते तिला रात कशी म्हणणार ? माणसाच्या पोटात अन्न नसेल तर त्याला झोप येणारच नाही, माणसाचा हात हा दानधर्मासाठी असतो असे म्हटले जाते.

इतरांना मदत, दान करताना तुमचा हात आखडत असेल, तुमचा स्वार्थ आडवा येत असेल तर त्या हाताचा काय उपयोग? इमानीपणा जर एखादा विसरत असेल तर त्याला नेक, प्रामाणिक कसे म्हणणार? तुम्ही नेक प्रामाणिक असाल तर तुमच्यात इमान असणारच, जन्मदात्या आई वडिलांची सेवा करणे हे मलाचे कर्तव्य आहे.

जर एखादा लेक जन्मदात्या आई वडिलांची सेवा न करता त्यांना त्रास देत असेल तर त्याला लेक म्हणता येणार नाही. भाव असेल तर भक्ती येईल. (मनी नाही भाव देवा मला पाव) या उक्तीप्रमाणे भावहीन भक्ती फळाला येत नाही. तुमच्यात उत्साह नसेल तर तुमची शक्ती निरर्थक आहे. कारण जिच्यामध्ये चेव नाही तिला शक्ती म्हणू नये. अशाप्रकारे वेगवेगळ्या सुभाषितांमधून बहिणाबाईंनी जीवनविषयक तत्त्वज्ञान उलगडून दाखविले आहे. जे आजच्या काळातही लागू आहे.

स्वाध्यायासाठी कृती ‘चालू दे रे रगडनं तुझ्या पायाची पुन्याई’ या बहिणाबाईंच्या काव्याचा तुम्हाला समजलेला अर्थ लिहा. वृक्षांची कृतज्ञता तुमच्या शब्दात स्पष्ट करा. बहिणाबाईचा जीवनाकडे पाहण्याचा दृष्टिकोन तुमच्या शब्दात लिहा. बहिणाबाईनी सांगितलेले मानवी जीवनाचे रहस्य शब्दबद्ध करा. शेतातील खळ्याचे बहिणाबाईंनी केलेले वर्णन स्पष्ट करा. ‘मन पाखरू पाखरू’ या ओळीतील भावसौंदर्य उलगडून दाखवा.

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परिमळ Summary in Marathi

प्रस्तावनाः

नामवंत लेखक, कवी, नाटककार, चित्रपट कथालेखक, शिक्षणतज्ज्ञ म्हणून महाराष्ट्राला ज्ञात असणारे प्र.के.अत्रे यांनी ‘बहिणाबाईची गाणी’ या काव्यसंग्रहाला प्रस्तावना लिहिली. या प्रस्तावनेतून प्र.के.अत्रे यांनी बहिणाबाई चौधरी यांच्या काव्यप्रतिभेची ओळख करून देताना त्यांच्या कवितेतील ग्रामीण जीवन, कृषिजीवन यांचे संदर्भ उलगडून दाखविले आहेत. बहिणाबाईच्या कवितेतून माणुसकी, निसर्गाशी समरसता, श्रद्धा आणि खेड्यातील समूह जीवनाचे दर्शन घडते. त्यांच्या कवितेत खानदेशी बोलीचा गोडवा विशेषत्वाने जाणवतो.

पाठाचा परिचय :

शास्त्राप्रमाणे वाङ्मयात शोध क्वचितच लागतात. एखादया शेतात मोहरांचा हंडा सापडावा तसा बहिणाबाईंच्या काव्याचा शोध लागला. लक्ष्मीबाई टिळकांच्या ‘स्मृतीचित्रा’सारखाच बहिणाबाईचा जिव्हाळा जबर आहे. बहिणाबाईंचे काव्य सरस आणि सोज्वळ आहे. असे काव्य मराठी भाषेत फार थोडे आहे आणि त्यातील मौज म्हणजे एका निरक्षर स्त्रीने रचलेले हे काव्य तोंडात बोट घालायला लावणारे, ‘जुन्यात चमकणारे आणि नव्यात झळकणारे’ असे आहे.

सुप्रसिद्ध मराठी कवी सोपानदेव चौधरी यांच्या या मातोश्री. माजघरात सोन्याची खाण दडावी तसे यहिणाबाईंचे काव्य, खानदेशी वहाडी भाषेमधील अडाणी आईच्या ओव्यांचे महाराष्ट्र कौतुक करील की नाही म्हणून सोपानदेव चौधरी गप्प होते.

सोपानदेव चौधरी यांनी चतकोर चोपडीतून एक कविता प्र.के.अत्रे यांना वाचून दाखविली. या कवितेतून शेतकऱ्याच्या कष्टाचे वर्णन केले आहे, त्या कविता म्हणजे बावनकशी सोने असून ते महाराष्ट्रासमोर यायला हवे या उद्देशाने प्र. के. अत्रे यांनी हे काव्य प्रसिद्ध करण्याचे ठरविले.

प्रतिभा हे कवीला लाभलेले निसर्गाचे देणे, ते उपजतच असते. कोकिळ पक्ष्याच्या तोंडून संगीत वाहू लागते. प्राजक्ताची कळी सुगंध घेऊन येते तसे जातिवंत कवीचे आहे. सृष्टीतील सौंदर्य आणि जीवनातील संगीताशी ती कविता एकरूप होते. डोंगराच्या कपारीतून जसा झरा उचंबळतो तसे काव्य एकसारखे हदयातून उसळ्या घेते. यातूनच जगातील अमरकाव्ये जन्मास येतात.

बहिणाबाईची प्रतिभा वेगळीच, त्यात धरित्रीच्या कुशीत झोपलेले बियाणे कसे प्रकट होते याचे वर्णन येते. तारुण्यात सौभाग्य गमावलेल्या स्त्रीचे हृदयभेदक करुण काव्य हे असामान्य काव्याचे वैशिष्ट्य होय. सकाळी उठून बहिणाबाई जात्यावर बसल्या की ओठातून काव्य सांडू लागते. घरोट्यातून पाठ जसे बाहर पडत तसे बहिणाबाईच गाण पोटातून आठावर यत. स्वयपाकघरात चूल प म्हणत माझा जीव घेवू नकोस. संसाराची रहस्य उलगडताना त्यातील कष्टमय जीवनाचे चित्रण त्यांच्या काव्यात दिसून येते. तान्हुल्या सोपानाला शेतावर घेऊन जाताना वडाच्या झाडाचे आणि त्याच्या लाल फळाचे सुंदर चित्रण काव्यातून येते. वारा आणि थंडीची पर्वा न करणाऱ्या वारकऱ्याचे दर्शन त्यांच्या काव्यात घडते.

ठणी व सुगीच्या दिवसातील शेतकऱ्याची लगबग, कष्टमय जीवन हा त्यांच्या काव्याचा विषय. पण एवढाच त्यांच्या काव्याचा विषय नसून जीवनाकडे बघण्याचे स्पष्ट तत्त्वज्ञान हे त्यांच्यातील बुद्धिमान, तत्त्वज्ञानी, महाकवीची प्रतिभा असण्याची जाणीव होते.

त्यांच्या काव्यांचा आविष्कार सुभाषितांचा आणि आत्मा उपरोधी विनोदाचा आहे. ‘कशाला काय म्हणू नाही’ या सुभाषितातून ‘ज्यातून कापूस येत नाही त्याला बोंडू म्हणू नये’, ‘भुकेल्या पोटास निजवणारी रात्र नसते’. ‘दानासाठी आखडणारे ते हात नाहीत’, ‘इमानाला विसरणारा नेक नसतो’. ‘जन्मदात्यास भोवणारा लेक कसा’ ? ‘जिच्यात भाव नाही तिला भक्ती म्हणू नये’. यातून त्यांची भाषा आणि विचारांची श्रीमंती दिसते.

मन पाखरू पाखरू त्याची काय सांगू मात ? मन हे पाखरासारखे आहे. एका क्षणात जमिनीवरून आभाळात जाणार असा भाषा आणि विचारांचा सुरेख मेळ त्यांच्या काव्यात दिसून येतो.

जीवनाचे खरे रहस्य शुद्ध प्रेमात आहे. स्वार्थात नाही. माणसाने मतलबी होऊ नये. भुकेल्या पोटाला अन्न मिळावे म्हणून पिके ऊन, वारा, पाऊस सहन करत शेतात उभी असतात. माणूस स्वार्थी असून खोटेनाटे व्यवहार करतो. बोरीबाभळी उपकाराच्या भावनेतून शेताला काटेरी कुंपण करतात. पोट कितीही खाल्ले तरी शेवटी रिकामे राहणार आणि शरीरसुद्धा एक दिवस निघून जाणार, जे शिल्लक राहते ते हदयाचं नातं, शुद्ध आणि निःस्वार्थी प्रेम यापेक्षा वेगळं काय असणार?
बहिणाबाईंना सर्वाधिक चीड कशाची असेल तर ती माणसाच्या कृतघ्नपणाची, माणसांना संतापून त्या म्हणतात, माणसाला नियत नाही.

माणसापेक्षा गोठ्यातील जनावरे बरी, ती चारा खाऊन दूध देतात. माणसे उपकार विसरून जातात. कुत्रा इमानीपणाने वागतो, लोभामुळे माणूस काणूस म्हणजे पशू झाला आहे. स्वार्थाचा वणवा आज सर्वत्र पसरला आहे. माणूसे पशू होऊन एकमेकांशी भांडत आहेत. मानवता नष्ट होत चालली आहे. ‘मानसा, मानसा कधी व्हशीन मानस!’ मानवतेच्या कल्याणासाठी झटणाऱ्या संतमहात्म्याच्या अंत:करणातन हीच सल बाहेर पडत आहे. माणसाने माणूस कसे व्हायचे हा प्रश्न मानवजातीपुढे आहे. या समस्येचा साक्षात्कार बहिणाबाईना होतो ही त्यांच्या प्रतिभा सामर्थ्याची खरी ओळख आहे.

बहिणाबाईची चुलत सासू ‘भिवराई’ या विनोदी व नकलाकार होत्या. नाव ठेवून नक्कल करता करता सर्वांना हसविण्याची त्यांची पद्धत म्हणजे हसवून शहाणे करणे हा हेतू. यातून बहिणाबाईंच्या विनोदात उपरोध, सहानुभूती आणि मायेचा ओलावा दिसतो, बहिणाबाईंचे काव्य रचना व भाषेच्या दृष्टीने अत्यंत आधुनिक असून प्रत्येक काव्यात एक संपूर्ण घटना किंवा विचार आहे. थोडक्यात एखादी भावना जास्त प्रभावाने कशी व्यक्त करता येईल याकडे त्यांनी लक्ष दिलेले आहे. बहिणाबाईचे मराठी भाषेवरचे प्रभुत्व केवळ अद्भुतच आहे.

बहिणाबाईंनी आपल्या काव्यात रस आणि ध्वनीच्या दृष्टीने कुठेही ओढाताण किंवा विरस होणार नाही अशा कौशल्याने सोपे व सुंदर शब्द वापरले आहेत. त्यांच्या खानदेशी वहाडी भाषेने काव्याची लज्जत वाढविली आहे. ‘अशी कशी वेडी ग माये’, अशी कशी येळी माये, किंवा ‘पानी लौकीचं नित्तय त्याले अनीताची गोडी’. या भाषेत लडिवाळपणा भासतो.

मराठी मनास भुरळ घालील आणि स्तब्ध करून टाकील असे भाषेचे, विचारांचे आणि कल्पनेचे विलक्षण माधुर्य त्यांच्या काव्यात शिगोशीग भरलेले आहे. मानवतेला त्यांनी दिलेल्या ‘मानसा मानसा, कधी व्हशीन मानूस’ ! हया अमर संदेशाने तर मराठी साहित्यामध्ये त्यांचे स्थान अढळ करून ठेवलेले आहे.

Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 5 परिमळ

समानार्थी शब्द / पर्यायी शब्द :

  1. परिमळ – सुगंध – (fragrance).
  2. प्रतिभा – काव्य निर्माण करण्याची असलेली उपजत क्षमता – (intelligence, imaginative power).
  3. सोन्याची खाण – भरभराट, विपुल प्रमाणात, येहेर – विहिर – (well).
  4. चतकोर चोपड़ी – वही किंवा पुस्तकाचा काही भाग – (notebook).
  5. मोट – जुन्या काळी विहिरीतून पाणी काढण्याचे चामड्याचे एक साधन.
  6. अधाशी – हावरटपणा, एखादी गोष्ट आपल्यालाच मिळावी हा हेतू – (greedy).
  7. बावनकशी सोने – अत्युत्तम खरे सोने.
  8. कृतघ्न – उपकाराची जाणीव नसलेला – (ungrateful).
  9. काणूस – पशू – (animal)
  10. लपे – लपणे – (hide).
  11. अहिराणी भाषेत ‘ळ’ ऐवजी ‘य’ वापरतात.
  12. खेयता – खेळता.
  13. घरोटा – जातं.
  14. व्होट – ओठ – (lip).
  15. चुल्हया – चूल.
  16. फयं – फळ – (fruits).
  17. आभाय – आभाळ – (sky).

Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions व्याकरण शब्दांच्या जाती

Balbharti Maharashtra State Board Marathi Yuvakbharati 11th Digest व्याकरण शब्दांच्या जाती Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

Maharashtra State Board 11th Marathi Yuvakbharati Solutions व्याकरण शब्दांच्या जाती

शब्दांच्या जाती

  • शब्द व शब्दांच्या जाती:
  • ठराविक क्रमाने आलेल्या अक्षरांच्या समूहास काही अर्थ प्राप्त झाला तर त्यास शब्द असे म्हणतात.
  • शब्दांचे विकारी (सव्यय – व्यय – बदल) व अविकारी (अव्यय – बदल न होणारे) असे दोन प्रकार आहेत.
  • नाम, सर्वनाम, विशेषण व क्रियापदाच्या मूळ रूपात लिंग, वचन, विभक्ती व काळानुसार बदल होतात म्हणून त्यांना विकारी शब्द असे म्हणतात.
  • लिंग तीन प्रकारची आहेत – पुल्लिंग, स्त्रीलिंग व नपुसकलिंग.
  • वचनाचे दोन प्रकार आहेत – एकवचन, अनेकवचन.
  • नाम / सर्वनामांचा वाक्यातील क्रियापदाशी / इतर शब्दांशी असणारा संबंध ज्या विकारांनी दर्शविला जातो त्यास विभक्ती असे म्हणतात.
  • विभक्ती प्रत्यय लावण्यापूर्वी नामाच्या / सर्वनामांच्या रूपात जो बदल होतो त्यास सामान्यरूप असे म्हणतात.
  • क्रियाविशेषण, शब्दयोगी, उभयान्वयी व केवलप्रयोगी अव्ययांच्या रूपात कोणताच बदल होत नाही. म्हणून त्यांना अविकारी शब्द असे म्हणतात.

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11th Marathi Book Answers व्याकरण शब्दांच्या जाती Additional Important Questions and Answers

1. अधोरेखित केलेल्या शब्दांच्या जाती ओळखा.

प्रश्न 1.
उषावहिनींनी एकशेबावन्नाव्यांदा आरशात पाहिलं.
उत्तरः
उषावहिनी – विशेषनाम

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प्रश्न 2.
तो कधी खाली पडत नाही.
उत्तरः
तो – सर्वनाम

प्रश्न 3.
काही पुस्तकं आपल्याला झपाटून टाकतात.
उत्तरः
पुस्तकं – सामान्यनाम

प्रश्न 4.
त्यात सहानुभूतीचा आणि कारुण्याचा ओलावा ओथंबलेला आहे.
उत्तरः
आणि – उभयान्वयी अव्यय

प्रश्न 5.
माझा एक कलावंत मित्र एका अपघातात मरण पावला होता.
उत्तरः
माझा – सार्वनामिक विशेषण

प्रश्न 6.
पुष्कळशी त्यांच्याबरोबर गेली.
उत्तरः
पुष्कळशी – क्रियाविशेषण अव्यय

प्रश्न 7.
अगदी पहिली आठवण अशी, की आपणास दुपट्यात घट्ट गंडाळून ठेवले आहे.
उत्तरः
की – उभयान्वयी अव्यय

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प्रश्न 8.
तिथे संवाद नसतो.
उत्तरः
तिथे – क्रियाविशेषण अव्यय

प्रश्न 9.
उषावहिनींनी घड्याळाकडे पाहिलं.
उत्तरः
कडे – शब्दयोगी अव्यय

प्रश्न 10.
मोहरीएवढ्या बिजापासून प्रचंड अश्वत्थ वृक्ष उभा रहावा तशी ही कादंबरी वाढत गेली.
उत्तरः
पासून – शब्दयोगी अव्यय

प्रश्न 11.
अलंकारामुळे कवितेला सौंदर्य प्राप्त होते.
उत्तरः
सौंदर्य – भाववाचक नाम

प्रश्न 12.
हे हायस्कूल शंभर वर्षांवर जुनं आहे.
उत्तरः
शंभर – संख्यावाचक विशेषण

प्रश्न 13.
कुत्रा आपले शेपूट इमानीपणाच्या भावनेने हलवतो.
उत्तरः
इमानीपणाच्या – गुणवाचक विशेषण

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प्रश्न 14.
त्याच्या वाचनाचा वेग उत्तम होता.
उत्तरः
उत्तम – विशेषण

प्रश्न 15.
समाधानी चर्येनं मामू स्टुलावरून खाली उतरतो.
उत्तरः
समाधानी – भाववाचक नाम

प्रश्न 16.
मामूनं केलेल्या कष्टमय चाकरीचं फळ म्हणून असेल, पण त्याची सगळीच मुलं गुणवान निघालीत.
उत्तरः
पण – उभयान्वयी अव्यय

प्रश्न 17.
ड्रायव्हर वर आला.
उत्तरः
वर – क्रियाविशेषण अव्यय

प्रश्न 18.
शीऽ, ही कसली साडी?
उत्तरः
शी – केवलप्रयोगी अव्यय

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2. सूचनेनुसार सोडवा.

प्रश्न 1.
निशाने सर्व सूत्रे आपल्या हातात घेतली. (क्रियापदाचा प्रकार ओळखा) – ………………………………
उत्तरः
सकर्मक क्रियापद

प्रश्न 2.
भूमीवरही फार मोठा भार पडू लागला. (क्रियापदाचा प्रकार ओळखा) – ………………………………
उत्तरः
संयुक्त क्रियापद

Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions व्याकरण शब्दसिद्धी

Balbharti Maharashtra State Board Marathi Yuvakbharati 11th Digest व्याकरण शब्दसिद्धी Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

Maharashtra State Board 11th Marathi Yuvakbharati Solutions व्याकरण शब्दसिद्धी

11th Marathi Guide व्याकरण शब्दसिद्धी Textbook Questions and Answers

शब्दसिद्धी

भाषा व्यवहारामध्ये म्हणजेच लिहिताना वा बोलताना आपण नानाविध शब्दांचा वापर करतो. आपल्या भाषिक व्यवहारातील सर्वच शब्द आपल्या मूळ मराठी भाषेतील असतीलच असे नाही. बऱ्याचदा मूळ भाषेतील शब्दांपासून आपण नवनवीन शब्द बनतो. केव्हा केव्हा इतर भाषेतील शब्दांचाही स्वाभाविकपणे आपण वापर करतो. बऱ्याचदा तो शब्द दुसऱ्या भाषेतील आहे हेही आपल्या लक्षात येत नाही.

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इतर भाषेतीलही काही शब्द मराठीत असे रुळले आहेत की त्यांचे वेगळेपणही बऱ्याचदा लक्षात न घेता तो आपल्याच भाषेतील शब्द आहे या पद्धतीने आपण त्याचा वापर करत असतो. यासाठीच आपल्या भाषेतील मूळ शब्द कोणते? आपल्या भाषेत रुळलेले कोणते शब्द आपण इतर भाषांमधून जसेच्या तसे घेतले आहेत वा कोणत्या शब्द रूपात कसा बदल केला आहे हे समजून घेणे भाषेच्या अभ्यासात अत्यंत महत्त्वाचे आहे.

भाषेतील शब्द कसा बनतो वा सिद्ध होतो या प्रक्रियेलाच शब्दसिद्धी असे म्हणतात.
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काही उपसर्गघटित शब्द :

उपसर्ग व त्याचा अर्थ  उपसर्गघटित साधित शब्दांची उदाहरणे
अति (= फार / पलीकडे)  अतिशय, अतिरेक, अतिक्रम, अतिलोभी, अतिसार इ.
आ (= पासून / पर्यंत / पलीकडे)  आजन्म, आमरण, आक्रमण, आक्रोश इ. Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions व्याकरण शब्दसिद्धी
सु (= चांगले / सोपे)  सुग्रास, सुभाषित, सुकर, सुगम, सुशिक्षित इ.
अव (= हीन / कमी)  अवघड, अवजड, अवकळा, अवदसा, अवलक्षण इ.
दर (= प्रत्येक)  दररोज, दरसाल, दरमहा, दरमजल, दरशेकडा इ.
आड (= लहान / गौण)  आडनाव, आडवाट, आडकाठी, आडवळण, आडदांड इ.
दुर्, दुस् (= वाईट / दुष्ट)  दुर्गुण, दुर्दशा, दुर्जन, दुर्लभ, दुराचरण, दुर्लक्ष इ.
प्रति (= उलट / फिरून)  प्रतिकार, प्रतिबिंब, प्रतिदिन, प्रतिकूल, प्रत्येक इ.
वि (= विशेष / शिवाय)  विख्यात, विज्ञान, विधवा, विसंगती, विपत्ती इ.
भर (= मुख्य / पूर्ण)  भरधाव, भरजरी, भरदिवसा, भरचौकात, भरलोकात, भरपेट इ.
अनु (= मागून / सारखे)  अनुकरण, अनुक्रम, अनुभव, अनुवाद, अनुमती इ.
उत् (= श्रेष्ठ / उंच)  उत्कर्ष, उन्नती, उत्तीर्ण, उत्तम, उत्प्रेक्षा इ.
अभि (= पूर्वी/ जवळ)  अभिनय, अभिनंदन, अभिरुची, अभिप्राय, अभिमुख इ.
गैर (= वाचून / विना)  गैरहजर, गैरशिस्त, गैरसमज, गैरसोय, गैरहिशोबी इ.
सर (= मुख्य)  सरकार, सरपंच, सरहद्द, सरदार, सरनौबत इ.
बे (= वाचून / शिवाय / रहित)  बेडर, बेअब्रू, बेदम, बेईमान, बेइज्जत, बेशरम, इ.
ना (= अभाव)  नाउमेद, नाराज, नापसंत, नालायक, नाकबूल इ.
प्र (= अधिक / पुढे)  प्रताप, प्रबल, प्रगती, प्रवाह, प्रदोष, प्रस्थान, प्रसिद्ध इ.
बद (= वाईट)  बदनाम, बदसूर, बदफैली, बदलौकिक इ.
हर (= प्रत्येक)  हररोज, हरघडी, हरदम, हरकाम, Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions व्याकरण शब्दसिद्धी

काही प्रत्ययघटित शब्द

1. कृदन्ते / धातुसाधिते : धातूस कृतप्रलय लागून तयार होणारे नवीन शब्द.

प्रत्यय  धातुसाधित शब्द (उदाहरणे)
अक  लेखक, पाचक, रक्षक, भक्षक, गायक, वाहक इ.
अनीय  श्रवणीय, मननीय, रमणीय, वंदनीय, पूजनीय इ.
आई  खोदाई, चराई, उजळाई, शिलाई, अंगाई इ.
रा  लाजरा, बुजरा, हसरा, कापरा, दुखरा इ.
ऊन  करून, देऊन, बसून, हसून इ.
अना  प्रार्थना, वेदना, कल्पना, तुलना, वंदना इ.
 धरण, जळण, तळण, चढण, भांडण, लोळण इ.
तव्य  कर्तव्य, तालव्य, भवितव्य इ. Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions व्याकरण शब्दसिद्धी
आळू  झोपाळू, लाजाळू, कनवाळू, विसराळू इ.
णावळ  खाणावळ, जेवणावळ, धुणावळ, लिहिणावळ इ.

2. तद्धिते / शब्दसाधितेः धातूखेरीज अन्यशब्दांना प्रत्यय लागून तयार होणारे नवीन शब्द

प्रत्यय  शब्द साधिते (उदाहरणे)
इक  कायिक, वाचिक, मानसिक, धार्मिक, लौकिक इ.
कर  सुखकर, खेळकर, खोडकर, दिनकर, प्रभाकर इ.
की  माणुसकी, भावकी, गावकी, शेतकी, उनाडकी इ.
खोर  भांडखोर, चिडखोर, चहाडखोर, चेष्टेखोर, मस्तीखोर इ.
दार  दुकानदार, फौजदार, जमिनदार, इमानदार, धारदार, डौलदार इ.
कट  तेलकट, मातकट, धुरकट, मळकट, पोरकट इ.
गर, गार  सौदागर, जादूगार, गुन्हेगार, माहितगार, कामगार इ.
खाना  कारखाना, तोफखाना, दवाखाना, हत्तीखाना, दारूखाना इ.
नामा  करारनामा, हुकूमनामा, पंचनामा, जाहीरनामा इ.
आई  लढाई, नवलाई, दांडगाई, शिष्टाई, खोदाई. इ. Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions व्याकरण शब्दसिद्धी

Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 5.5 व्याकरण शब्दभेद

Balbharti Maharashtra State Board Marathi Yuvakbharati 11th Digest Bhag 5.5 व्याकरण शब्दभेद Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

Maharashtra State Board 11th Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 5.5 व्याकरण शब्दभेद

11th Marathi Digest Chapter 5.5 व्याकरण शब्दभेद Textbook Questions and Answers

कृती

प्रश्न 1.
शब्दांतील उच्चार साधर्म्यावरून कृती करा.
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 5.5 शब्दभेद 1
उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 5.5 शब्दभेद 11

Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 5.5 व्याकरण शब्दभेद

प्रश्न 2.
शब्दलेखनातील सूक्ष्म बदल.
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 5.5 शब्दभेद 2
उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 5.5 शब्दभेद 12

प्रश्न 3.
संदर्भानुसार शब्दप्रयोजन.
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 5.5 शब्दभेद 3
उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 5.5 शब्दभेद 13

Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 5.5 व्याकरण शब्दभेद

प्रश्न 4.
अक्षर फरकाने अर्थबदल.
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 5.5 शब्दभेद 4
उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 5.5 शब्दभेद 14

11th Marathi Book Answers Chapter 5.5 व्याकरण शब्दभेद Additional Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
शब्दांतील उच्चार साधर्म्यानुसार कृती करा.
उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 5.5 शब्दभेद 15

प्रश्न 2.
शब्दलेखनातील सूक्ष्म बदलानुसार कृती करा.
उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 5.5 शब्दभेद 16

Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 5.5 व्याकरण शब्दभेद

प्रश्न 3.
संदर्भानुसार शब्दप्रयोजन कृती करा.
उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 5.5 शब्दभेद 17

प्रश्न 4.
अक्षरफरकाने होणारा अर्थबदल कृती करा.
उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 5.5 शब्दभेद 18

शब्दभेद प्रास्ताविक:

दैनदिन जीवनात आपण भाषेतील अनेकविध शब्दांचा वापर अगदी सहजतेने करत असतो. चांगले बोलणे व चांगले लिहिणे यांसाठी शब्दज्ञानाची आवश्यकता असते. शब्दज्ञान, त्या शब्दाचा विशिष्ट अर्थ, सूक्ष्म अर्थच्छटा, शब्दांचे योग्य लेखन, शब्दांच्या अचूक संदर्भाचे ज्ञान आवश्यक आहे. प्रभावी अभिव्यक्तीसाठी शब्दज्ञानाची आवश्यकता आहे.

शब्दांच्या योग्य ज्ञानाअभावी आपले बोलणे व लिहिणे प्रभावशाली होत नाही. म्हणूनच शब्दभेद समजून घेणे आवश्यक आहे. चांगले बोलणे हे चांगले ऐकण्यातून आकारास येते. चांगले ऐकणे म्हणजे श्रवण, समजून बोलणे म्हणजे भाषण, आकलन करून ग्रहण करणे म्हणजे वाचन आणि या तिहींचा समन्वय म्हणजे लेखन.

शब्दभेदाचे आकलन जर नीट झाले नाही, तर अर्थभेद, अर्थहानी आणि अर्थविसंगती होते. म्हणूनच शब्दभेद समजून घेणे आवश्यक आहे.

1. शब्दांचे उच्चार साधर्म्य

शब्दाच्या उच्चारातून व लेखनातून जेव्हा सूक्ष्म बदल जाणवतात व अर्थाच्या दृष्टीने खूप फरक निदर्शनास येतात तेव्हा तिथे शब्दभेद असतो.

Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 5.5 शब्दभेद 5

Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 5.5 व्याकरण शब्दभेद

भाषेतील दोन शब्दांच्या उच्चारात काहीसे साधर्म्य (सारखेपणा) असते. परंतु संदर्भ साधर्म्य अजिबात नसते. दोन शब्दांचा उच्चार वरवर जरी सारखा वाटत असला तरी योग्य संदर्भ पूर्णपणे जाणून न घेतल्यामुळे शब्दांचा योग्य प्रकारे वापर केला जात नाही.
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 5.5 शब्दभेद 6

यांसारखे अन्य काही शब्द

  • कळ – वेदना, भांडणाचे मूळ
  • घाट – डोंगरातील वळणाचा रस्ता, नदीवरील पायऱ्यांचे बांधकाम
  • तट – किनारा, किल्ल्याची संरक्षक भिंत.
  • दर्प – वास, गर्व
  • पात्र – लायक, नाटकातील भूमिका, भांडे
  • वार – दिवस, धारदार शस्त्राचा घाव, लांबी मोजण्याचे एकक.
  • सुमन – फूल, निर्मळ मन

Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 5.5 व्याकरण शब्दभेद

2. शब्दलेखनातील सूक्ष्म बदल

भाषा विषयात शुद्धलेखनाचे महत्त्व अनन्यसाधारण आहे. शब्दलेखन करताना हस्व – दीर्घ, अनुस्वार, काना, मात्रा यांकडे जाणीवपूर्वक लक्ष दयावे. शब्दलेखनात चूक झाली तर बराचसा चुकीचा अर्थ प्राप्त होतो.
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यांसारखे अन्य काही शब्द

  • अध्ययन – शिकारी, अध्यापन – शिकविणे
  • खत – पिकाला घालायचे खत, खंत – काळजी
  • गृह – घर, ग्रह – सूर्यमालेतील ग्रह.
  • पिक – कोकिळ पक्षी, पीक – शेतात उत्पन्न आलेले धान्य
  • मास – महिना, मांस – प्राण्यांचे मांस वदन – तोंड, वंदन – नमस्कार
  • शिव – शंकर, शीव – सीमा
  • सन – वर्ष, सण – उत्सव
  • सुर – देव, सूर – स्वर
  • तण – गवत, तन – शरीर

Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 5.5 व्याकरण शब्दभेद

3. शब्दांच्या संदर्भाची अचूक जाण

बोलताना वा लेखन करताना कोणता शब्द कोठे वापरावा याबद्दल काही संकेत असतात. या संकेतांना विशिष्ट अशा संदर्भाची पार्श्वभूमी असते. संदर्भ आणि संकेत यांत अंतर पडल्यास अर्थातही फरक पडतो. बोलण्या, लिहिण्यातली ही अर्थविसंगती मनाला खटकते.
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4. शब्दांच्या लेखनात एखादया अक्षराचा फरक

दोन शब्दांच्या एखादया अक्षराचा जरी फरक असला तरी अर्थात खूप मोठा फरक पडतो. हा फरक समजण्यासाठी शब्दांच्या अर्थाची योग्य जाण असणे आवश्यक आहे.
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 5.5 शब्दभेद 9
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 5.5 शब्दभेद 10

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 6 कलम का सिपाही

Balbharti Maharashtra State Board Hindi Yuvakbharati 11th Digest Chapter 6 कलम का सिपाही Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

Maharashtra State Board 11th Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 6 कलम का सिपाही

11th Hindi Digest Chapter 6 कलम का सिपाही Textbook Questions and Answers

आकलन

1. लिखिए :

प्रश्न अ.
प्रेमचंद का व्यक्तित्व अधिक विकसित होता है, जब
(a) …………………………………………………………….
(b) …………………………………………………………….
उत्तर :
(a) वह निम्न मध्यवर्ग और कृषक वर्ग का चित्रण करते हुए अपने युग की प्रतिगामी शक्तियों का विरोध करते हैं।
(b) एक श्रेष्ठ विचारक और समाज सुधारक के रूप में प्रकट होते हैं।

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 6 कलम का सिपाही

प्रश्न आ.
प्रेमचंद लिखित निम्नलिखित रचनाओं का वर्गीकरण कीजिए – (कफन, प्रतिज्ञा, बूढ़ी काकी, निर्मला, नमक का दरोगा, गोदान, रंगभूमि, सेवासदन)

कहानी उपन्यास
…………………….. ……………………..
…………………….. ……………………..
…………………….. ……………………..
…………………….. ……………………..

उत्तर :

कहानी  उपन्यास
कफन  निर्मला
प्रतिज्ञा  गोदान
बूढ़ी काकी  रंगभूमि
नमक का दरोगा  सेवासदन

प्रश्न इ.
निम्नलिखित पात्रों की विशेषताएँ –
(a) होरी
(b) अलोपीदीन
(c) वंशीधर
उत्तर :
(a) होरी – भूख, बीमारी, उपेक्षा और मौत से लड़नेवाला।
(b) अलोपीदीन – कालाबाजारी, समाज का ठेकेदार।
(c) वंशीधर – शोषक को गिरफ्तार करने वाला, ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ।

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शब्द संपदा

2. निम्नलिखित भिन्नार्थक शब्दों के अर्थ लिखिए :

(1) अपत्य –
अपथ्य –

(2) कृपण –
कृपाण –

(3) श्वेत –
स्वेद –

(4) पवन –
पावन –

(5) वस्तु –
वास्तु –

(6) व्रण –
वर्ण –

(7) शोक –
शौक –

(8) दमन –
दामन –
दामन
उत्तर :
(1) अपत्य – संतान
अपथ्य – प्रतिकूल

(2) कृपण – कंजूस
कृपाण – तलवार

(3) श्वेत – सफेद
स्वेद – पसीना

(4) पवन – हवा
पावन – पवित्र

(5) वस्तु – किसी भी चीज का आधार, सत्य
वास्तु – मकान बनाने योग्य स्थान, गृह

(6) व्रण – निशान
वर्ण – रंग

(7) शोक – दुःख
शौक – अभिरूचि

(8) दमन – दबाने या बलपूर्वक शांत करने का काम
दामन – पहाड़ के नीचे की जमीन, आँचल, पल्ला

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अभिव्यक्ति

3.
प्रश्न अ.
‘वर्तमान कृषक जीवन की व्यथा’, इस कथन पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
सदियों पहले किसानों की जो दुरावस्था और परेशानियाँ थीं उनमें और आज की परिस्थितियों में कुछ भी परिवर्तन नहीं है। फर्क सिर्फ इतना है कि पहले बीज से लेकर मजदूर तक सब कुछ आसानी से और कम व्यय में मिलता था; जबकि आज इन सब के दाम बढ गए हैं।

जितना दाम लगता है उतने बड़े पैमाने पर अनाज़ उगता भी नहीं और उसके दाम भी उतने नहीं मिलते। बारिश के कारण पहले की तरह आज भी परेशानी उसके सामने है।

बाजार में अन्य वस्तुओं के दाम दुगुने हो नहीं बल्कि चौगुने बढ़े हैं; जबकि अनाज़ के दामों में उतने बड़े पैमाने पर बढ़ोत्तरी नहीं हुई है। परिणामत: अपनी निजी आवश्यकताओं की पूर्ति करते समय किसान परेशान हो रहा है।

प्रश्न आ.
‘ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा सफलता के सोपान हैं’, इस विषय पर अपना मत लिखिए।
उत्तर:
ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इन्हीं के बलबूते पर मनुष्य अपने जीवन में यश एवं सफलता प्राप्त कर सकता है। कोई भी काम श्रेष्ठ या कनिष्ठ नहीं होता। काम करने से ही व्यक्ति की प्रतिष्ठा होती है।

व्यक्ति ईमानदार तो है किंतु कर्तव्य के प्रति आनाकानी करता है या कर्तव्य सही समय पर करता है परंतु ईमानदार नहीं है, तो वह अपने जीवन में कभी कामयाब नहीं हो सकता।।

4. पाठ पर आधारित लघूत्तरी प्रश्न :

प्रश्न अ.
रूपक के आधार पर प्रेमचंद जी की साहित्यिक विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
प्रेमचंद जी के साहित्य में सामाजिक जीवन की विशालता, अभिव्यक्ति का खरापन, पात्रों की विविधता, सामाजिक अन्याय का घोर विरोध, मानवीय मूल्यों से मित्रता तथा संवेदना पाई जाती है। युग की चुनौतियों को सामाजिक धरातल पर उन्होंने स्वीकारा और नकारा भी।

प्रेमचंद जी का साहित्य लोगों को अन्याय से जूझने की शक्ति प्रदान करता है। उनका साहित्य समय की धडकनों से जुड़ा सजग, आदर्शवादी है। ऐसा लगता है, आज भी वे जीवन से जुड़े हुए युगजीवी हैं और युगांतर तक मानवसंगी दिखाई पड़ते हैं। उनके कहानी और नाटकों में व्याप्त माननीय संवेदना उनके साहित्य की विशेषता मानी जाती है।

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प्रश्न आ.
पाठ के आधार पर ग्रामीण और शहरी जीवन की समस्याओं को रेखांकित कीजिए।
उत्तर :
प्रेमचंद जी स्वयं ग्रामीण माहौल में पैदा हुए, पले, गरीबी में जीवनयापन किया। उनके अधिकांश उपन्यास और कहानियों में देहाती जीवन का ही चित्रण मिलता है। ‘गोदान’ उपन्यास, ‘कफन’, ‘ईदगाह’, बूढ़ी काकी’ आदि कहानियों में ग्रामीण जीवन का चित्रण मिलता है।

‘प्रतिज्ञा’, ‘निर्मला’, ‘सेवासदन’ में शहरी जीवन से जुड़ी समस्याओं का चित्रण मिलता है। इन उपन्यासों में हमें भारतीय नारी की समस्या का चित्रण मिलता है। ‘निर्मला एक ऐसी स्त्री है जो परंपराओं, रुढ़ियों, धर्म और कर्मकांडों से जुड़ी हुई है। इस प्रकार ग्रामीण और शहरी जीवन की समस्याओं को रेखांकित किया है।

साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान

5. जानकारी दीजिए :

प्रश्न अ.
डॉ. सुनील केशव देवधर जी लिखित रचनाएँ –
उत्तर :
मत खींचो अंतर रेखाएँ (काव्य संग्रह), मोहन से महात्मा, आकाश में घूमते शब्द (रूपक संग्रह) संवाद अभी शेष है, संवादों के आईने में (साक्षात्कार) (आ) रेडिओ रूपक की विशेषताएँ – उत्तर : इसके प्रस्तुतीकरण का ढंग सहज, प्रवाही, संवादात्मक होता है।

प्रश्न आ.
रेडियो रूपक की विशेषताएँ –

6. कोष्ठक की सूचना के अनुसार काल परिवर्तन करके वाक्य फिर से लिखिए –

(1) मछुवा नदी के तट पर पहुँचा। (सामान्य वर्तमानकाल)
उत्तर :
मछुवा नदी के तट पर पहुँचता है।

(2) एक बड़े पेड़ की छाँह में उन्होंने वास किया। (अपूर्ण वर्तमानकाल)
उत्तर :
एक बड़े पेड़ की छाँह में वे वास कर रहे हैं।

(3) आदमी यह देखकर डर गया। (पूर्ण वर्तमानकाल)
उत्तर :
आदमी यह देखकर डर गया है।

(4) वे वास्तविकता की ओर अग्रसर हो रहे हैं। (सामान्य भूतकाल)
उत्तर :
वे वास्तविकता की ओर अग्रसर हए।

(5) उन लोगों को अपनी ही मेहनत से धन कमाना पड़ता है। (अपूर्ण भूतकाल)
उत्तर :
उन लोगों को अपनी ही मेहनत से धन कमाना पड़ रहा था।

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(6) बबन उसे सलाम करता है। (पूर्ण भूतकाल)
उत्तर :
बबन ने उसे सलाम किया था।

(7) हम स्वयं ही आपके पास आ रहे थे। (सामान्य भविष्यकाल)
उत्तर :
हम स्वयं ही आपके पास आएँगे।

(8) साहित्यकार अपने सामयिक वातावरण से प्रभावित हो रहा है। (सामान्य भूतकाल)
उत्तर :
साहित्यकार अपने सामयिक वातावरण से प्रभावित हुआ।

(9) आकाश का प्यार मेघों के रूप में धरती पर बरसने लगता है। (पूर्ण वर्तमानकाल)
उत्तर :
आकाश का प्यार मेघों के रूप में धरती पर बरसा है।

(10) आप सबको जीत सकते हैं। (सामान्य भविष्यकाल)
उत्तर :
आप सबको जीत सकेंगे।

Yuvakbharati Hindi 11th Textbook Solutions Chapter 6 कलम का सिपाही Additional Important Questions and Answers

कृतिपत्रिका

(अ) निम्नलिखित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

गद्यांश- “आज जब हम ………………………………………………………………………………………………………. में प्रासंगिक हैं। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 28-29)

प्रश्न 1.
संजाल पूर्ण कीजिए :
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 6 कलम का सिपाही 1
उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 6 कलम का सिपाही 2

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प्रश्न 2.
कृति पूर्ण कीजिए :
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 6 कलम का सिपाही 3
उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 6 कलम का सिपाही 4

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उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 6 कलम का सिपाही 6

प्रश्न 3.
विलोम शब्द लिखिए :
(1) विश्वास x ……………………………..
(2) उत्साह x ……………………………..
(3) गतिशील x ……………………………..
(4) जिए x ……………………………..
उत्तर:
(1) विश्वास x अविश्वास
(2) उत्साह x निरूत्साह
(3) गतिशील x गतिहीन
(4) जिए x मरे

प्रश्न 4.
‘वर्तमान कृषक जीवन की व्यथा’ अपने शब्दों में लिखिए :
उत्तर :
सदियों पहले किसानों की जो दुरावस्था और परेशानियाँ थीं उनमें और आज की परिस्थितियों में कुछ भी परिवर्तन नहीं है। फर्क सिर्फ इतना है कि पहले बीज से लेकर मजदूर तक सब कुछ आसानी से और कम व्यय में मिलता था; जबकि आज इन सब के दाम बढ गए हैं।

जितना दाम लगता है उतने बड़े पैमाने पर अनाज़ उगता भी नहीं और उसके दाम भी उतने नहीं मिलते। बारिश के कारण पहले की तरह आज भी परेशानी उसके सामने है। बाजार में अन्य वस्तुओं के दाम दुगुने ही नहीं बल्कि चौगुने बढ़े हैं; जबकि अनाज़ के दामों में उतने बड़े पैमाने पर बढ़ोत्तरी नहीं हुई है। परिणामत: अपनी निजी आवश्यकताओं की पूर्ति करते समय किसान परेशान हो रहा है।

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(आ) निम्नलिखित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

गद्यांश- जहाँ तक मैंने प्रेमचंद को …………………………………………………………………………………………. हाँ यह तो ठीक ही है। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 30-31)

प्रश्न 1.
संजाल पूर्ण कीजिए :
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 6 कलम का सिपाही 7
उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 6 कलम का सिपाही 8

प्रश्न 2.
कृति पूर्ण कीजिए :
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 6 कलम का सिपाही 9
उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 6 कलम का सिपाही 10

प्रश्न 3.
निम्न शब्दों का वर्गीकरण कीजिए : (निरुद्देश्य, प्रभावित, भारतीय, प्रत्येक)
उपसर्गयुक्त शब्द – प्रत्यययुक्त शब्द
(1) ……………. – …………………
(2) ……………. – …………………
उत्तर :
उपसर्गयुक्त शब्द – प्रत्यययुक्त शब्द
(1) निरुद्देश्य – (2) प्रत्येक
(2) प्रभावित – (2) भारतीय

प्रश्न 4.
‘आज की भारतीय नारी’ विषय पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
आज भी भारतीय नारी का सफर चुनौतियों से भरपूर है परंतु आज उसमें चुनौतियों से लड़ने का साहस अवश्य है। आज की शिक्षित नारी ने आत्मविश्वास के बल पर दुनिया में अपनी अलग पहचान बना ली है। परिवार और करियर दोनों में तालमेल बिठाते हुए आगे बढ़ना निश्चय ही प्रशंसनीय है।

विभिन्न परीक्षाओं के नतीजे जब सामने आते हैं तब लड़कियाँ बाजी मार जाती है। मेहनत और मेधा शक्ति के बल पर वे आगे बढ़ रही हैं। हर क्षेत्र में वह पुरुषों की तरह ही सफलता पा रही है फिर वह क्षेत्र सामाजिक हो, राजनीतिक हो, आर्थिक हो या ज्ञान-विज्ञान का। वास्तव में नारी देश की शक्ति है।

भारतीय संस्कृति में नारी को दुर्गा और लक्ष्मी का रूप मानकर सम्मान दिया है। किसी कवि ने खूब कहा हैं, जिसके हाथ में झूले की डोर, वह सारी दुनिया का उद्धार करने का सामर्थ्य रखती है।’ यह कथन अतिशयोक्ति पूर्ण निश्चित ही नहीं है।

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(इ) निम्नलिखित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

गद्यांश – आलोपीदीन : बाबू जी कहिए …………………………………………………………………………………….. यह समझता क्या है मुझे। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 29)

प्रश्न 1.
संजाल पूर्ण कीजिए :
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 6 कलम का सिपाही 11
उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 6 कलम का सिपाही 12

प्रश्न 2.
कारण लिखिए :
(i) आलोपीदीन रिश्वत दे रहे थे ………………………………..
उत्तर :
आलोपीदीन रिश्वत दे रहे थे ताकि इज्जत माटी में न मिले।

(ii) वंशीधर रिश्वत नहीं ले रहे थे ………………………………..
उत्तर :
वंशीधर रिश्वत नहीं ले रहे थे क्योंकि वे उन सरकारी अफसरों में से नहीं थे जो कौड़ियों पर अपना ईमान बेच दें।

प्रश्न 3.
(क) कृदंत रूप लिखिए :
उत्तर :
(i) चढ़ना – ………………………………..
(i) चढ़ना – चढ़ावा / चढ़ाई
(ii) चाहना – चाह / चाहत

(ख) वचन बदलिए :
(i) गाड़ियाँ – ………………………………..
(ii) बात – ………………………………..
उत्तर :
(i) गाड़ियाँ – गाड़ी
(ii) बात – बातें

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प्रश्न 4.
‘ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा सफलता के सोपान हैं’, इस विषय पर अपना मत लिखिए
उत्तरः
ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इन्हीं के बलबूते पर मनुष्य अपने जीवन में यश एवं सफलता प्राप्त कर सकता है। कोई भी काम श्रेष्ठ या कनिष्ठ नहीं होता। काम करने से ही व्यक्ति की प्रतिष्ठा होती है। व्यक्ति ईमानदार तो है किंतु कर्तव्य के प्रति आनाकानी करता है या कर्तव्य सही समय पर करता है परंतु ईमानदार नहीं हैं, तो वह अपने जीवन में कभी कामयाब नहीं हो सकता।

कलम का सिपाही Summary in Hindi

कलम का सिपाही लेखक परिचय :

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बहुमुखी (multifaceted) प्रतिभा के धनी डॉ. सुनील देवधर जी ने साहित्य की विविध (various) विधाओं (genres) के साथ-साथ राजभाषा एवं कार्यालयीन हिंदी भाषा की विभिन्न विधाओं में लेखन कार्य किया है। आपकी निवेदन शैली किसी भी समारोह को सजीव बनाती है। आपकी ‘मोहन से महात्मा’ रचना महाराष्ट्र राज्य, हिंदी साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत रचना है।

कलम का सिपाही प्रमुख कृतियाँ :

‘मत खींचो अंतर रेखाएँ’ (कविता संग्रह) ‘मोहन से महात्मा’, ‘आकाश में घूमते शब्द’ (रूपक संग्रह) ‘संवाद अभी शेष हैं,’ ‘संवादों के आईने में’ (साक्षात्कार) आदि।

कलम का सिपाही विधा का परिचय :

‘रेडियो रूपक’ एक विशेष विधा है, जिसका विकास नाटक से हुआ है। दृश्य-अदृश्य जगत के किसी भी विषय, वस्तु या घटना पर रूपक लिखा जा सकता है। इसके प्रस्तुतीकरण का ढंग सहज, प्रवाही तथा संवादात्मक (interactive) होता है। विकास की वास्तविकताओं को उजागर करते हुए जनमानस को इन गतिविधियों में सहयोगी बनने की प्रेरणा देना रेडियो रूपक का उद्देश्य होता है।

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कलम का सिपाही विषय प्रवेश :

किसान और मजदूर वर्ग के मसीहा प्रेमचंद जी के जीवन के मूल तत्वों और सत्य को सामंजस्यपूर्ण (harmonious) दृष्टि से प्रस्तुत करना यह उद्देश्य है। लेखक ने यहाँ साहित्यकार प्रेमचंद जी के व्यक्तित्व और कृतित्व (creativity) को रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है।

कलम का सिपाही सारांश :

प्रेमचंद जी के उपन्यास तथा कहानियों में सामयिक (modern) जीवन की विशालता, अभिव्यक्ति (expression) का खरापन, पात्रों की विविधता (variation), सामाजिक अन्याय का विरोध, मानवीय मूल्यों से मित्रता और संवेदना हैं। ‘धन के शत्रु और किसान वर्ग के मसीहा’ – ऐसे ही मुंशी प्रेमचंद जी का परिचय दिया जाता है।

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प्रेमचंद जी ने सामाजिक समस्याओं के और मान्यताओं के जीते-जागते चित्र उपस्थित किए, जो मध्यम वर्ग, किसान, मजदूर, पूँजीपति समाज के दलित और शोषित व्यक्तियों के जीवन को संचलित करते हैं। इनके साहित्य का मूल स्वर है – ‘डरो मत’। उन्होंने युग को जूझना और लड़ना सिखाया है।

मानव जीवन से जुड़े हुए लेखक युगजीवी और युगांतर तक मानवसंगी दिखाई पड़ते हैं। चाहे शिक्षा संबंधी आयोजन हो या विचार गोष्टी (forum) अथवा संभाषण, प्रेमचंद जी की विचारधारा, उनके साहित्य तथा प्रासंगिकता पर चर्चा होती है। यही उनके साहित्य की विशेषता है।

प्रेमचंद जी के साहित्य रचना लिखने के कई सालों बाद आज भी हम किसान, पिछड़े वर्ग और शोषित वर्ग के कल्याण की जिम्मेदारी अनुभव कर रहे हैं। अपने युग की प्रतिगामी (retrogressive) शक्तियों का विरोध करने वाले प्रेमचंद जी एक श्रेष्ठ विचारक और समाज सुधारक नजर आते हैं।

जीवन के प्रति इनका दृष्टिकोण ‘कफन’ और ‘पूस की रात’ कहानियों में नया मोड़ लाता है; तो ‘गोदान’ उपन्यास में नए साँचे में ढलने लगता है। इनके साहित्य से कभी वे मानवतावादी, सुधारवादी, प्रगतिवादी तो कभी गांधीवादी लगे किंतु वे हमेशा वादातीत रहे।

उनके पात्र चाहे वह होरी हो, अलोपीदीन हो, या वंशीधर समाज के अलग-अलग क्षेत्र के व्यक्तित्व का प्रतिनिधित्व करते नजर आते हैं।

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 6 कलम का सिपाही

युग चेतना के लिए उन्होने ‘जागरण’ निकाला, विभिन्न भाषाओं के साहित्य को एक-दूसरे से परिचित कराने के लिए ‘हंस’ का प्रकाशन किया। उनका प्रगतिशील आंदोलन, विचारोत्तेजक निबंध, व्याख्यान आदि ने साहित्य भाषा और साहित्यकार के दायित्व की ओर जनसाधारण का ध्यान आकर्षित किया और साथ ही संदर्भ और समाधान भी दिए और इशारा भी किया है।

उनके द्वारा लिखे गए गोदान, कफन, ईदगाह, बूढ़ी बाकी में देहाती जीवन का चित्रण है; तो ‘प्रतिज्ञा’, ‘निर्मला’ और ‘सेवासदन’ उपन्यास में शहरी जीवन का चित्रण मिलता है। उनके साहित्य का मूल उद्देश्य उस समाज के क्रमिक विकास के दर्शन कराना है जो सामाजिक रुढ़ियों पर आधारित है।

लोगों की जरूरतें पूरी करने और विकास की सुविधाएँ निर्माण करने का अवसर निर्माण करने वाले समाज व्यवस्था की चाह उन्हें थी। न कि सिर्फ प्रेमचंद जी का साहित्य ही कालजयी नहीं हैं, बल्कि वे स्वयं भी कालजयी हैं।

कलम का सिपाही शब्दार्थ :

  • चालान = दंड
  • हिरासत = कैद
  • वस्तुवादी = भौतिकवादी
  • अनुप्राणित = प्रेरित, समर्थित
  • मसीहा = दूत (angel),
  • चालान = दंड (penalty),
  • सृजन = निर्माण (creation),
  • प्रलोभन = लालच (greed),
  • युगांतर = अन्य युग, दायित्त्व = जिम्मेदारी (responsibility),
  • वस्तुवादी = भौतिकवादी (materialist),
  • अनुप्राणित = प्रेरित, समर्पित (animated),
  • महकमा = कचहरी (department),
  • प्रस्फुटित = विकसित (erupted),
  • हिरासत = कैद (custody), Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 6 कलम का सिपाही
  • परिणत = प्रौढ़, पुष्ट (resulted)