Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.2 मध्ययुगीन काव्य (आ) बाल लीला

Balbharti Maharashtra State Board Hindi Yuvakbharati 11th Digest Chapter 5.2 मध्ययुगीन काव्य (आ) बाल लीला Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

Maharashtra State Board 11th Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.2 मध्ययुगीन काव्य (आ) बाल लीला

11th Hindi Digest Chapter 5.2 मध्ययुगीन काव्य (आ) बाल लीला Textbook Questions and Answers

आकलन

1. लिखिए :

प्रश्न अ.
यशोदा अपने पुत्र को शांत करती हुई कहती हैं –
………………………………………………………….
………………………………………………………….
उत्तर :
हे चंदा जल्दी से आ जाओ। तुम्हें मेरा लाल बुला रहा है। मेरा लाल मधु मेवा स्वयं भी खाएगा और तुम्हें भी खिलाएगा।

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प्रश्न आ.
निम्नलिखित शब्दों से संबंधित पद में समाहित एक-एक पंक्ति लिखिए –
(१) फल : ………………………………………………………….
(२) व्यंजन : ………………………………………………………….
(३) पान : ………………………………………………………….
उत्तर :
(a) फल : खारिक दाख खोपरा खीरा।
केरा आम ऊख रस सीरा।।

(b) व्यंजन : रचि पिराक लड्डू दधि आनौं।
तुमकौं भावत पुरी संधानौ।।

(c) पान : तब तमोल रचि तुमहिं खवावौं।
सूरदास पनवारौ पावौं।।

काव्य सौंदर्य

2.
प्रश्न अ.
निम्नलिखित पंक्तियों का भाव सौंदर्य स्पष्ट कीजिए –
“जलपुट आनि धरनि पर राख्यौ।
गहि आन्यौ वह चंद दिखावै॥”
उत्तर :
बालक कृष्ण को माता यशोदा कह तो देती है कि, “तुम जल्दी से चुप हो जाओ। मैं चंद्रमा को तुम्हारे साथ खेलने के लिए बुला रही हूँ।” पर अब यह चंद्रमा बालक कृष्ण की पकड़ में आए कैसे..? गहि आन्यौ… पंक्ति में माँ का बड़ा ही सुंदर भाव प्रकट हुआ है।

माँ अपनी युक्ति लगाती है – बड़े बर्तन में पानी रखकर चंद्रमा को अपने आँगन में उतार लेती है। यशोदा कहती है यह लो लल्ला, पकड़ लाई चंद्रमा को.. यहाँ चंद्रमा का मानवीकरण किया गया है। वात्सल्य रस की निष्पत्ति हुई है।

प्रश्न आ.
निम्नलिखित पंक्तियों का भावार्थ स्पष्ट कीजिए –
“रचि पिराक, लड्डू, दधि आनौं।
तुमको भावत पुरी संधानौं।”
उत्तर :
प्रस्तुत पंक्तियाँ सूरदास जी द्वारा रचित बाल लीला पद से ली गई हैं। इस पद में माता यशोदा कृष्ण को जलपान करने की मनुहार करती है। कहती है – “देखो तुम्हारे लिए क्या-क्या बना लाई हूँ। मैं एक नहीं तुम्हारी पसंद के सभी व्यंजन एक साथ बना लाई हूँ। गुझिया, लड्डू, पूरी, अचार और दही भी लाई हूँ।

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अभिव्यक्ति

3. ‘माँ ममता का सागर होती है’, इस उक्ति में निहित विचार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
ईश्वर सभी जगह नहीं पहुँच सकता, इसलिए उसने माँ का निर्माण किया है। माँ की ममता ही व्यक्ति को जीवन में सबल और सार्थक बनाती है। माँ की ममता व्यक्ति के जीवन की वह नींव है जिसके आधार पर ही वह जीवन की इमारत खड़ी करता है। माँ की तुलना किसी से नहीं की जा सकती। वह अमूल्य हीरा है, निच्छल, निष्कपट, पवित्र। उसका प्यार व्यक्ति को धनवान बना देता है। माँ की ममता के बारे में जितना भी कुछ कहा जाए सब कम है। जैसे सागर की गहराई को नहीं नापा जा सकता वैसे ही माँ की ममता को भी कुछ शब्दों में बयाँ नहीं किया जा सकता।

रसास्वादन

4. बाल हठ और वात्सल्य के आधार पर सूर के पदों का रसास्वादन कीजिए।
उत्तर :
(i) शीर्षक : बाल लीला
(ii) रचनाकार : संत सूरदास

(iii) केंद्रीय कल्पना : प्रस्तुत कविता में कविवर्य संत सूरदास जी ने कृष्ण के बाल हठ एवं यशोदा मैया की वात्सल्य मूर्ति को अंकित किया है। प्रथम पद में यशोदा मैया कृष्ण का चाँद पाने का हठ भी पूरा करती है तो द्वितीय पद में यशोदा कृष्ण को कलेवा कराने हेतु दुलारती दिखाई देती है। कृष्ण की पसंद के विभिन्न स्वादिष्ट व्यंजन सामने रखकर वह कृष्ण की मनुहार कर रही है।

(iv) रस-अलंकार : प्रस्तुत पद गेय शैली में लिखे गए हैं। इनमें वात्सल्य रस की निष्पत्ति हुई है।

(v) प्रतीक विधान : सूरदास स्वयं को माता यशोदा मानते हैं और अपने आराध्य को बालक कृष्ण समझकर कृष्ण के बाल हठ को पूरा कर रहे हैं तथा उन्हें भोजन कराने का प्रयत्न कर रहे हैं।

(vi) कल्पना : प्रथम पद में चाँद को शरीर धारण कर कृष्ण के साथ खेलने की कल्पना की है।

(vii) पसंद की पंक्तियाँ तथा प्रभाव :
‘जलपुट आनि धरनी पर राख्यौ, गहि आन्यौ वह चंद दिखावै।
सूरदास प्रभु हँसि मुसक्याने, बार-बार दोऊ कर नावै।।

सूरदास जी इस पद में कह रहे हैं कि यशोदा हाथ में पानी का बरतन उठाकर लाई है। वे चंद्रमा से कहती हैं कि, ‘तुम शरीर धारण कर आ जाओ।’ फिर उन्होंने जल का पात्र भूमि पर रख दिया और कृष्ण से कहा, “देखो मैं वह चंद्रमा पकड़ लाई हूँ। तब सूरदास के प्रभु कृष्ण हँस पड़े और मुस्कराते हुए उस पात्र में बार-बार दोनों हाथ डालने लगे। कितनी सुंदर कल्पना की है यहाँ सूरदास जी ने।

(viii) कविता पसंद आने के कारण : मुझे यह कविता पसंद है, क्योंकि यहाँ वात्सल्य रस के साथ-साथ सूरदास जी का अपने आराध्य के प्रति भक्ति भाव भी स्पष्ट दिखाई देता है। उन्होंने अपने आराध्य को बालक के रूप में देखा और माता के समान स्नेह देते हुए भक्ति की है। माँ के जैसे ही वे कृष्ण को कहते हैं, “उठिए स्याम कलेऊ की जै।” यही भक्ति की चरम सीमा है।

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साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान

5. जानकारी दीजिए:

प्रश्न अ.
संत सूरदास के प्रमुख ग्रंथ –
उत्तर :
‘सूरसागर’, ‘सूर सारावली’

प्रश्न आ.
संत सूरदास की रचनाओं के प्रमुख विषय –
उत्तर :
कृष्ण की बाललीलाएँ (वात्सल्य रस)
सगुण और निर्गुण भक्ति (भक्ति रस)
वियोग श्रृंगार (श्रृंगार रस)

रस

हास्य – जब काव्य में किसी की विचित्र वेशभूषा, अटपटी आकृति, क्रियाकलाप, रूप-रंग, वाणी एवं व्यवहार को देखकर, सुनकर, पढ़कर हृदय में हास का भाव उत्पन्न होता है, वहाँ हास्य रस की निर्मिति होती है।
उदा. –
(१) तंबुरा ले मंच पर बैठे प्रेमप्रताप,
साज मिले पंद्रह मिनट, घंटा भर आलाप।
घंटा भर आलाप, राग में मारा गोता,
धीरे-धीरे खिसक चुके थे सारे श्रोता।।
– काका हाथरसी

(२) मैं ऐसा शूर वीर हूँ, पापड़ तोड़ सकता हूँ।
अगर गुस्सा आ जाए तो कागज मरोड़ सकता हूँ।।
– अजमेरी लाल महावीर

वात्सल्य – जब काव्य में अपनों से छोटों के प्रति स्नेह या ममत्व भाव अभिव्यक्त होता है, वहाँ वात्सल्य रस की निर्मिति होती है।
उदा. –
(१) जसोदा हरि पालनैं झुलावै।
हलरावे दुलराइ मल्हावै, जोइ सोइ कछु गावै।।
– सूरदास

(२) ठुमक चलत रामचंद्र, बाजत पैंजनियाँ।
किलकि किलकि उठत धाय, गिरत भूमि लटपटाय।
धाय मात गोद लेत, दशरथ की रनियाँ।।
– तुलसीदास

Yuvakbharati Hindi 11th Textbook Solutions Chapter 5.2 मध्ययुगीन काव्य (आ) बाल लीला Additional Important Questions and Answers

कृतिपत्रिका

(अ) निम्नलिखित पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

पद्यांश : बार-बार ……………………………………………………………………………………………………………. दोऊ कर नावें (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 24)

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प्रश्न 1.
संजाल पूर्ण कीजिए :
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.2 मध्ययुगीन काव्य (आ) बाल लीला 1
उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.2 मध्ययुगीन काव्य (आ) बाल लीला 2

प्रश्न 2.
आशय स्पष्ट कीजिए :
(i) “गहि आन्यो वह चंद दिखावै”
उत्तर :
माँ यशोदा कृष्ण को समझा रही है पहले तो वह कहती है कि, “देखो मेरे लाल, तुम कभी रोना मत। तुम्हें खेलने के लिए मैं चंद्रमा को धरती पर बुलाऊँगी।” चंद्रमा का और बाल मन का कुछ प्राकृतिक आकर्षण है। प्रत्येक छोटा बालक चंद्रमा को प्राप्त करने (हाथ से छूने की) की अभिलाषा रखता है।

माँ यशोदा एक बड़े बर्तन में पानी भरकर आँगन में रख देती है और कृष्ण से कहती है, “मेरे लाल ये देखो मैं चंद्रमा को पकड़ लाई, अब जितनी देर तक मन करे उतनी देर तक तुम चंद्रमा के साथ खेल सकते हो।’ इस पंक्ति में चंद्रमा को धरती पर ले आने का भाव व्यक्त हुआ है।

प्रश्न 3.
पद्यांश का भावार्थ अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
यशोदा अपने पुत्र कृष्ण को चुप करा रही है। स्वभावत: जब बच्चे रोने लगते हैं तो माताएँ कुछ कहकर या लोरी सुनाकर उन्हें चुप कराने का प्रयास करती हैं। वैसे ही माता यशोदा कहती है कि, “तुम जल्दी से, चुप हो जाओ, मैं चंदा को बुला रही हूँ। अगर तुम रोते रहे तो चंद्रमा नीचे नहीं आएगा।

आ जाओ, चंदा जल्दी से आ जाओ। मेरा लाल तुम्हें बुला रहा है। स्वयं भी छप्पन भोग खाएगा और तुम्हें भी खिलाएगा।” यशोदा कृष्ण की पसंदीदा मक्खन, मिसरी, मेवा का नाम इसलिए लेती है कि यह सुनते ही कृष्ण चुप हो जाएँगे। “मेरे लल्ला को तुम्हारे साथ खेलना बहुत अच्छा लगेगा, हाँ, तुम चिंता ना करो, मेरा लाल तुम्हे अपने हाथ (हथेली) पर ही रखकर खेलेगा, नीचे तो कभी नहीं उतारेगा।”

यशोदा आँगन में पानी से भरा पात्र रखकर कृष्ण को चंद्रमा दिखाती है। कहती है, “लाल यह देखो, मैं चंद्रमा को पकड़कर ले आई।” सूरदास जी कहते हैं – ऐसा सुनकर मेरे प्रभु श्रीकृष्ण हँस पड़े और मुस्कराते हुए उस पात्र में बार-बार दोनों हाथ डालने लगे।

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(आ) निम्नलिखित पद्यांश पढ़कर दी गई सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

पद्यांश : उठिए स्याम ……………………………………………………………………………………………………………. पनवारौ पावौं (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 24)

प्रश्न 1.
जाल पूर्ण क्रीजिए :
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उत्तर :
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प्रश्न 2.
रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए :
(i) खोवा ………….. खाहु बलिहारी।
(ii) तुमकौं ……………. पुरी संधानौं।।
उत्तर :
सहित
भावत

प्रश्न 3.
पद्यांश का भावार्थ अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
प्रस्तुत पद्यांश “बाल-लीला” कविता से लिया गया है। इसके रचयिता सूरदास जी हैं। इस पद में माता यशोदा कृष्ण का लाड़ प्यार कैसे करती है, कैसे उनको जलपान कराती है आदि का विस्तार पूर्वक संवेदनाओं एवं भावनाओं के साथ वर्णन किया है।

माता यशोदा कहती है – “हे स्याम, मेरे मनमोहन उठो, जल्दी उठकर कलेवा (जलपान) कर लो। मेरे जीवन का आधार तो तुम ही हो। अर्थात् तुम्हें देखकर ही तो मैं जीवित हूँ। देखो, तुम्हारे जलपान के लिए नाना प्रकार के व्यंजन लाई हूँ।

छुहारा, दाख, खोपरा, आम, केला, ईख का रस, पूड़ी, अचार जो तुम्हें बहुत ही प्रिय है वह सब कुछ। जब पूरे व्यंजन खत्म कर दोगे तो मैं तुम्हें पान भी खिलाऊँगी।” यह माता-पुत्र के संवाद को सुनकर सूरदास जी अत्यंत प्रसन्न हो जाते हैं। मन-ही-मन आनंदित होते हैं कि अब उनको पान खिलाई मिलें।

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मध्ययुगीन काव्य (आ) बाल लीला Summary in Hindi

मध्ययुगीन काव्य (आ) बाल लीला कवि परिचय :

संत सूरदास जी का जन्म 1478 को दिल्ली के पास सीही नामक गाँव में हुआ। आरंभ में आप आगरा और मथुरा के बीच यमुना के किनारे गऊ घाट पर रहे। वहीं आप की भेंट वल्लभाचार्य से हुई। अष्टछाप कवियों की सगुण भक्ति काव्य-धारा के आप अकेले ऐसे कवि हैं जिनकी भक्ति में साख्य, वात्सल्य और माधुर्य भाव निहित हैं। कृष्ण की बाल-लीला तथा वात्सल्य भाव का सजीव चित्रण आपकी रचना का मुख्य विषय है।

मध्ययुगीन काव्य (आ) बाल लीला प्रमुख रचनाएँ :

‘सूर सागर’, ‘सूरसारावली’ तथा साहित्य लहरी आदि।

मध्ययुगीन काव्य (आ) बाल लीला काव्य विधा :

‘पद’ काव्य की एक गेय शैली है। हिंदी साहित्य में ‘पद शैली’ की दो निश्चित परंपराएँ मिलती हैं, एक संतो के ‘सबद’ की और दूसरी परंपरा कृष्णभक्तों की ‘पद शैली’ है। इसका आधार लोकगीतों की शैली है। भक्ति-भावना की अभिव्यक्ति के लिए पद शैली का प्रयोग किया जाता है।

मध्ययुगीन काव्य (आ) बाल लीला विषय प्रवेश :

प्रस्तुत पदों में कृष्ण के बाल हठ और माँ यशोदा की ममतामयी छबि को प्रस्तुत किया है। प्रथम पद में चाँद की छबि दिखाकर यशोदा कृष्ण को बहला लेती है। चाँद को देखकर कृष्ण मुस्करा उठते हैं जिसे देख माँ यशोदा बलिहारी जाती है। द्वितीय पद में माँ यशोदा कृष्ण को कलेवा करने के लिए मनुहार कर रही है उनकी पसंद के विभिन्न स्वदिष्ट व्यंजन उनके सामने रखकर वह खाने के लिए मनहार कर रही है।

मध्ययुगीन काव्य (आ) बाल लीला सारांश :

(कविता की व्याख्या) : यशोदा अपने पुत्र को प्यार करते हुए चुप करा रही हैं। वे बार-बार कृष्ण को समझाती है और कहती हैं कि – “अरे चंदा हमारे घर आ जा। तुम्हें मेरा लाल बुला रहा है। यह मधु, मेवा, ढेर सारे पकवान स्वयं भी खाएगा और तुम्हें भी खिलाएगा।

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मेरा लाल (कृष्ण) तुम्हें हाथ पर ही रखकर खेलेगा, तुम्हें जमीन पर बिल्कुल नहीं बिठाएगा।” माँ यशोदा बर्तन में पानी भरकर उठाती है और कहती है, “हे चंद्रमा, तुम इस पात्र में आकर बैठ जाओ। मेरा लाल तुम्हारे साथ खेलकर अत्यंत प्रसन्न हो जाएगा।”

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यशोदा उस जल पात्र को नीचे रख देती है और कृष्ण से कहती है – “देख बेटा ! मैं चंद्रमा को पकड़ लाई हूँ।” सूरदास जी कहते हैं, मेरे प्रभु श्रीकृष्ण चंद्रमा को जल पात्र में देखकर हँस पड़ते हैं। मुस्कराते हुए उस जल पात्र में बार-बार दोनों हाथ डालकर चंद्रमा को हाथ में लेने का (उठाकर खेलने के लिए) प्रयास करने लगते हैं।

प्रस्तुत पंक्तियों में बाल-हठ और माता के ममत्व का भावपूर्ण वर्णन मिलता है।

हे मेरे मनमोहन, मेरे लाल, उठो, कलेवा (नाश्ता) कर लो। माँ यशोदा अपने हृदय की बात कहती है, अपने मनोभाव को व्यक्त करती हुई कहती है – “मैं मनमोहन को देखकर ही तो जीती हूँ” अर्थात् कृष्ण के बिना मेरा जीवन अधूरा है। मेरे जीवन का लक्ष्य ही कृष्ण है।

हे लाल, देखो तो सही; मैं तुम्हारे पसंद के बहुत से व्यंजन लाई हूँ। गुझिया, लड्डू, पूरी, अचार वह सब कुछ जो तुम्हें पसंद हैं। पहले तुम कलेवा कर लो, फिर मैं तुम्हें पान बनाकर खिलाऊँगी।

कवि का यहाँ यही अभिप्राय है कि माँ किस तरह अपनी संतान से स्नेह करती है। उसके जीवन का उद्देश्य ही अपनी संतान को सदा प्रसन्न रखना रहता है। पान खिलाने की बात सुनकर महाकवि सूरदास अत्यंत प्रसन्न हो जाते हैं। सूरदास पान खिलाई के अवसर पर विशेष उपहार की कल्पना करते हैं और वह उपहार है “कृष्ण भक्ति”।

विशेष शुभ अवसर पर विशेष व्यक्ति को पान खिलाया जाता है। यह एक भारतीय परंपरा है। बदले में उपहार के तौर पर कुछ ना कुछ भेंट दी जाती है। उसे नेग भी कहते हैं। सूरदास जी को भला प्रभु भक्ति के अलावा अन्य (नेग) उपहार से क्या लेना देना? यही भक्ति की चरम सीमा है।

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मध्ययुगीन काव्य (आ) बाल लीला शब्दार्थ:

  • बोधति = समझाती है
  • खैहे = खाएगा
  • तोहि = तुम्हें
  • बासन = पात्र, बर्तन
  • गहि = पकड़
  • नावै = डालते हैं
  • कलेऊ = जलपान, कलेवा
  • संधानौं = अचार
  • जी जै = जी रही हूँ
  • खारिक = छुहारा
  • दाख = किशमिश
  • सफरी = अमरूद
  • खुबानी = जरदालू
  • सुहारी = पूड़ी
  • पिराक = गुझिया जैसा एक पकवान
  • पनवारौ = पान खिलाई
  • सुत = पुत्र (son),
  • बोधति = समझाती है (to make one understand),
  • खैहै = भोजन करना, खाना (to eat),
  • हाथहि = हाथ पर ही (on the palm),
  • तोहिं = तुम्हें (for you),
  • नैंकु = बिल्कुल नहीं (कभी नहीं) (never),
  • धरनी = जमीन (पृथ्वी) (earth),
  • वासन = पात्र, बर्तन (vessel),
  • गहि = पकड़ (caught),
  • कर = हाथ (hand),
  • ना₹ = डालते हैं (to put),
  • कलेऊ = जलपान, कलेवा (breakfast),
  • ऊख = गन्ना (sugarcane),
  • संधानौ = अचार (pickle),
  • जी जै = जी रही हूँ (to be alive),
  • खारिक = छुहारा (dates),
  • दाख = किशमिश (raisin),
  • सफरी = अमरूद (guava), Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.2 मध्ययुगीन काव्य (आ) बाल लीला
  • खुबानी = जरदालू, एक गुठलीदार फल या मेवा (apricoat),
  • सुहारी = पूड़ी (a deep fried chapatti),
  • पिराक = गुझिया जैसा एक मीठा पकवान (sweet dish),
  • पनवारौ = पान खिलाई (auspiciously giving betel leaf for eating)

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 मध्ययुगीन काव्य (अ) भक्ति महिमा

Balbharti Maharashtra State Board Hindi Yuvakbharati 11th Digest Chapter 5.1 मध्ययुगीन काव्य (अ) भक्ति महिमा Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

Maharashtra State Board 11th Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 मध्ययुगीन काव्य (अ) भक्ति महिमा

11th Hindi Digest Chapter 5.1 मध्ययुगीन काव्य (अ) भक्ति महिमा Textbook Questions and Answers

आकलन

1. सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ पूर्ण कीजिए :

प्रश्न अ.
(a) अंतर स्पष्ट कीजिए –
माया रस – रामरस
……………………… – ………………………
उत्तर :
माया रस – राम रस
पत्थर जैसा हृदय – मक्खन जैसा हृदय

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प्रश्न 2.
लिखिए –

‘मैं ही मुझको मारता’ से तात्पर्य ………………………
उत्तर :
मनुष्य स्वयं ही स्वयं का शत्रु है। अगर वह इस मैं (अहंकार) रूपी शत्रु को मार देता है तो वह इस संसार में विजेता हो जाता है।

प्रश्न आ.
सहसंबंध जोड़कर अर्थपूर्ण वाक्य बनाइए –
(1) पाती प्रेम की (2) साईं
(1) काहै को दुख दीजिए (2) बिरला
उत्तर :
(1) प्रेम की पाती कोई बिरला ही पढ़ पाता है।
(2) मूर्ख ! तू क्यों किसी को दुःख देता है, प्रभु तो सभी प्राणियों में निवास करता है।

काव्य सौंदर्य

2.
प्रश्न अ.
“जिनकी रख्या तूं करै ते उबरे करतार”, इस पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
हे परमात्मा जिस पर आपकी कृपा होती है वही इस भवसागर से पार हो पाता है। अन्य तो इस संसार के मायाजाल में फँसकर रह जाते हैं। अर्थात् मनुष्य जन्म दुर्लभ है और परमात्मा प्राप्ति मंजिल। सदैव मनुष्य को इस सत्य का ध्यान रखना चाहिए।

प्रश्न आ.
‘संत दादू के मतानुसार ईश्वर सबमें है’, इस आशय को व्यक्त करने वाली पंक्तियाँ ढूँढ़कर उनका भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
“काहै कौं दुख दीजिए, साईं है सब माहिं।
दादू एकै आत्मा, दूजा कोई नाहिं।।”

किसी भी प्राणी को किसी भी तरह का कष्ट, दुख, पीड़ा नहीं पहुँचानी चाहिए क्योंकि सभी प्राणी में वही परमात्मा निवास करता है जो हमारे मनुष्य जीवन का लक्ष्य है। हे जीव ! उस परमात्मा के अलावा वहाँ दूसरा कोई नहीं है। सबकी आत्मा एक है। कबीर दास जी भी यही कहते हैं –

“घट – घट में वही साईं रमता
कटुक वचन मत बोल रे”

अभिव्यक्ति

3.
प्रश्न अ.
‘अहंकार मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु हैं, इस उक्ति पर अपने विचार स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
अहंकार मनुष्य के लिए एक घातक बीमारी के समान है। यह ऐसा रोग है कि व्यक्ति को मेले में भी अकेला कर देता है। जिसके पास रहता है उसी का विनाश करता है। यह अहंकार मनुष्य के जीवन का लक्ष्य भटका देता है। इस लिए मनुष्य को सदा इससे सतर्क रहना चाहिए।

प्रश्न आ.
‘प्रेम और स्नेह मनुष्य जीवन का आधार हैं’, इस संदर्भ में अपना मत लिखिए।
उत्तर :
प्रेम ही जीव-जगत का सार है। अध्यात्मिक और भौतिक दोनों ही क्षेत्र में प्रेम और स्नेह दो ऐसे स्तंभ हैं जिनके सहारे मनुष्य अपना जीवन सार्थक कर सकता है। वेद-पुराण, इतिहास, श्रेष्ठ समाज यही कहता है कि जिसने प्रेम और स्नेह प्राप्त कर लिया उसने इस धरती पर ही अमृत का पान कर लिया।

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रसास्वादन

प्रश्न 4.
ईश्वर भक्ति तथा प्रेम के आधार पर साखी के प्रथम छह पदों का रसास्वादन कीजिए।
उत्तर :
(i) शीर्षक : भक्ति महिमा
(ii) रचनाकार : संत दादू दयाल

(iii) केंद्रीय कल्पना : इन साखियों में कवि संत दादू दयाल जी ने ईश्वर भक्ति का मार्ग बताया है। ईश्वर को पूजने के लिए कहीं बाहर जाने की आवश्यकता नहीं है। ईश्वर मन के भीतर ही है। नामस्मरण करने से हमें मोक्ष प्राप्त होगा। वेद-पुराण पढ़ने से जीवन का सच्चा मार्ग नहीं मिलता बल्कि हृदय में जीवन और जगत के लिए प्रेम होना चाहिए यही कल्पना यहाँ कवि ने हमारे सामने रखी है।

(iv) रस-अलंकार : प्रस्तुत कविता नीति और ज्ञानोपदेश देने वाली साखियाँ हैं जो दोहा छंद में लिखी गई हैं।
(v) प्रतीक विधान : ईश्वर भक्ति, नामस्मरण, जीवन और जगत से प्रेम, अहंकार का त्याग करने से मोक्ष मिलेगा यही विधान कवि ने अपने दोहों में किया है।

(vi) कल्पना : संत दादू दयाल जी ने हृदय एक सँकरा महल है, ऐसी कल्पना की है और प्रभु और अहंकार दोनों उसमें एक साथ नहीं रह सकते ऐसा बताया है। अहंकार को त्यागने का संदेश देने के लिए कवि ने यह कल्पना की है।

(vii) पसंद की पंक्तियाँ तथा प्रभाव : इन साखियों में मेरी पसंदीदा साखी है –
‘जहाँ राम तहँ मैं नहीं, मैं तहँ नाहीं राम।
दादू महल बारीक है, वै कूँ नाही ठाम।।’

साखी का भाव दिल को छू लेता है और अहंकार को त्यागने का संदेश देता है। क्योंकि राम अर्थात ईश्वर और ‘मैं’ अर्थात अहंकार दोनों एक साथ नहीं रह सकते। मनुष्य का हृदय एक सँकरा महल है जहाँ अहंकार और ईश्वर एक साथ नहीं रह सकते। अहंकारी व्यक्ति ईश्वर से दूर हो जाता है। अत: अहंकार का त्याग कर के ही मनुष्य प्रभुमय हो सकता है। मनुष्य का बैरी उसका अहंकार है। है जो उसे प्रभु से मिलने नहीं देता। इसीलिए अहंकार का त्याग करना अनिवार्य है।

(viii) कविता पसंद आने के कारण : नीति ज्ञानोपदेश और संसार का व्यावहारिक ज्ञान देने वाली ये साखियाँ हैं जो हमें अहंकार को त्यागकर सभी को एक समान मानने की प्रेरणा देती हैं। इसीलिए मुझे यह कविता पसंद है। इनकी गेयता भी मुझे अच्छी लगती है।

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साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान

5. जानकारी दीजिए :

प्रश्न अ.
निर्गुण शाखा के संत कवि –
उत्तर :
संत कबीर, कमाल, रैदास, धर्मदास, गुरुनानक, दादू दयाल, सुंदरदास, रज्जब, मलूकदास।

प्रश्न आ.
संत दादू के साहित्यिक जीवन का मुख्य लक्ष्य
उत्तर :
संत परंपरा के अनुसार दादू दयाल की रचनाओं में जात-पाँत का निराकरण, छोटा-बड़ा, अमीर-गरीब, हिंदु-मुसलमानों की एकता आदि विषयों पर विचार मिलते हैं। संत दादू के साहित्यिक पद तर्क-प्रेरित न होकर हृदय-प्रेरित हैं।

6. निम्नलिखित वाक्य शुद्ध करके फिर से लिखिए –

प्रश्न 1.
बाबु साहब ईश्वर के लिए मुझ पे दया कीजिए।
उत्तर :
बाबू साहब ईश्वर के लिए मुझपर दया कीजिए।

प्रश्न 2.
उसे तो मछुवे पर दया करना चाहिए था।
उत्तर :
उसे तो मछुवे पर दया करनी चाहिए थी।

प्रश्न 3.
उसे तुम्हारे शक्ती पर विश्वास हो गया।
उत्तर :
उसे तुम्हारी शक्ति पर विश्वास हो गया।

प्रश्न 4.
वह निर्भीक व्यक्ती देश में सुधार करता घूमता था।
उत्तर :
वह निर्भीक व्यक्ति देश में सुधार करते घूमता था।

प्रश्न 5.
मल्लिका ने देखी तो आँखें फटी रह गया।
उत्तर :
मल्लिका ने देखा तो आँखें फटी रह गई।

प्रश्न 6.
यहाँ तक पहुँचते-पहुँचते मार्च पर भारा अप्रैल लग जायेगी।
उत्तर :
यहाँ तक पहुँचते-पहुँचते मार्च तो क्या बारह अप्रैल लग जाएगा।

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 मध्ययुगीन काव्य (अ) भक्ति महिमा

प्रश्न 7.
हमारा तो सबसे प्रीती है।
उत्तर :
हमारी तो सबसे प्रीति है।

प्रश्न 8.
तुम जूठे साबित होगा।
उत्तर :
तुम झूठे साबित होंगे।

प्रश्न 9.
तूम ने दीपक जेब में क्यों रख लिया?
उत्तर :
तुमने दीपक जेब में क्यों रख लिए?

प्रश्न 10.
इसकी काम आएगा।
उत्तर :
इसके काम आएगा।

Yuvakbharati Hindi 11th Textbook Solutions Chapter 5.1 मध्ययुगीन काव्य (अ) भक्ति महिमा Additional Important Questions and Answers

कृतिपत्रिका

(अ) निम्नलिखित पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

पद्यांश : माखण मन ……………………………………………….. प्रेम बिना क्या होइ। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 20)

प्रश्न 1.
(i) चौखट में उत्तर लिखिए :
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 मध्ययुगीन काव्य (अ) भक्ति महिमा 1
उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 मध्ययुगीन काव्य (अ) भक्ति महिमा 2

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 मध्ययुगीन काव्य (अ) भक्ति महिमा 3
उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 मध्ययुगीन काव्य (अ) भक्ति महिमा 4

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प्रश्न 2.
कारण लिखिए :

(i) अहंकार का त्याग करना अनिवार्य है –
उत्तर :
अहंकार का त्याग करना अनिवार्य है क्योंकि हृदय रूपी सँकरे (narrow) महल में प्रभु और अहंकार का एक साथ वास नहीं हो सकता।

(ii) प्रभु स्मरण के सिवा अन्य मार्ग दुगर्म हैं –
उत्तर :
प्रभु स्मरण के सिवा अन्य मार्ग दुर्गम हैं क्योंकि भक्ति का संबल (support) लेकर ही भवसागर आसानी से पार किया जा सकता है और अन्य मार्ग डूबो देते हैं।

प्रश्न 3.
प्रस्तुत पद्यांश का भावार्थ अपने शब्दों में लिखिए :
उत्तर :
मनुष्य जीवन में एक रामरस ही सार्थक होता है।

अन्य तो भवसागर में डुबोने वाला ही होता है। राम की प्राप्ति केवल प्रेम की नाव पर ही बैठकर प्राप्त हो सकती है। अहंकार मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। भक्ति के सहारे ही भवसागर पार किया जा सकता है। जीवन के उद्धार के लिए अन्य सभी मार्ग दुर्गम हैं।

प्रेम की पत्री वही पढ़ सकता है जिसके हृदय में प्रेम है। यदि हृदय में जीवन और जगत के लिए प्रेम नहीं तो वेद-पुराण आदि पुस्तकें पढ़ने से क्या लाभ?

(आ) निम्नलिखित पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

पद्यांश : कागद काले करि मुए, ……………………………………………….. इनका मोल न तोल।। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 20)

प्रश्न 1.
परिणाम लिखिए :

(i) प्रभु का एक अक्षर पढ़ने का परिणाम –
उत्तर :
प्रभु का एक अक्षर पढ़ने का परिणाम – वह सुजान हो गया।

(ii) वेद-पुराण का गहन अध्ययन करने का परिणाम –
उत्तर :
वेद-पुराण का गहन अध्ययन करने का परिणाम – कागज़ काले हुए लेकिन जीवन का सच्चा मार्ग नहीं मिला।

प्रश्न 2.
लिखिए :
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 मध्ययुगीन काव्य (अ) भक्ति महिमा 5
उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 मध्ययुगीन काव्य (अ) भक्ति महिमा 6

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(आ) उत्तर लिखिए :
(i) मेरा बैरी – …………………………………
(ii) सब में बसा है – …………………………………
उत्तर :
(i) अहंकार
(ii) साईं / ईश्वर / परमात्मा

प्रश्न 3.
पद्यांश की प्रथम दो साखियों का भावार्थ लिखिए :
उत्तर :
संत दादू दयाल जी अपनी साखियों में प्रभु के नामस्मरण का महत्त्व समझा रहे हैं। वे कहते हैं कि कितने ही लोगों ने वेद-पुरानों का गहन अध्ययन किया और उनकी व्याख्या करते हुए कागज काले किए, ग्रंथ लिख दिए। परंतु उन्हें जीवन का सच्चा मार्ग नहीं मिला। वे भवसागर में भटकते रहे।

जिसने प्रिय प्रभु का एक अक्षर ही पढ़ लिया, वह सुजान पंडित हो गया। मनुष्य को उसका अहंकार ही मारता है, दूसरा कोई नहीं। अहंकार का त्याग करने पर ही ईश्वर की प्राप्ति होती है। अपने अहंकार को मारकर ही मनुष्य मरजीवा हो सकता है अर्थात वैरागी बन सकता है।

अपने लौकिक बंधन तोड़कर स्वयं पर जीत पा सकता है। अहंकार के आवरण से बाहर निकलकर ही जीवन की सार्थकता मनुष्य समझ पाएगा।

मध्ययुगीन काव्य (अ) भक्ति महिमा Summary in Hindi

मध्ययुगीन काव्य (अ) भक्ति महिमा कवि परिचय :

संत दादू दयाल का जन्म 1544 को अहमदाबाद (गुजरात) में हुआ। आपके गुरु का नाम बुड्ढन था। आपने जिस संप्रदाय की स्थापना की वह ‘दादू पंथ’ के नाम से विख्यात हुआ संत परंपरा के अनुसार आपका दृष्टिकोण भी – “सर्वे भवंतु सुखिन:’ का रहा है।

समाज में व्याप्त सामाजिक कुरीतियाँ, अंधविश्वास और जातिगत ऊँच-नीच के विरोध में आपकी साखियाँ (एक काव्य प्रकार) एवं पद प्रस्तुत हैं।

आपके पद समाज, समता एवं एकता के पक्ष में हैं। आपने कबीर की भाँति अपने उपास्य को निर्गुण और निराकार (formless) माना है। संत दादू दयाल की मृत्यु-1603 में हुई।

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प्रमुख रचनाएँ :

‘अनभैवाणी’, ‘कायाबेलि’ आदि।

मध्ययुगीन काव्य (अ) भक्ति महिमा काव्य विधा :

‘साखी’ साक्षी का अपभ्रंश है जो वस्तुतः दोहा छंद में ही लिखी जाती है। साखी का अर्थ है – साक्ष्य, प्रत्यक्ष ज्ञान। निर्गुण संत संप्रदाय का अधिकांश साहित्य साखी में ही लिखा गया है। जिसमें गुरुभक्ति और ज्ञान उपदेशों का समावेश है।

मध्ययुगीन काव्य (अ) भक्ति महिमा विषय प्रवेश :

प्रस्तुत साखी में संत कवि ने गुरु महिमा का वर्णन किया है। ईश्वर पूजन के लिए बाह्य संसाधन (exterior resources) की आवश्यकता नहीं है। ईश्वर के अलावा सांसारिक अंधकार को दूर करने वाला अन्य कोई नहीं है। नाम स्मरण से पत्थर हृदय भी मक्खन सा मुलायम हो जाता है।

अंहकार मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। बिना इसका त्याग किए ईश्वर की प्राप्ति नहीं हो सकती। जिसकी रक्षा ईश्वर करता है, वही इस भवसागर से पार हो सकता है। ईश्वर एक ही है और वही एक ईश्वर सभी प्राणियों में समान रूप से निवास करता है अर्थात् सभी को एक समान मानना चाहिए।

मध्ययुगीन काव्य (अ) भक्ति महिमा सारांश (कविता का भावार्थ) :

मायामोह में रहने वाले व्यक्ति का हृदय पत्थर के समान हो जाता है। ईश्वर भक्ति में लीन रहने वाले मनुष्य का हृदय ईश्वर प्रेम से भरा रहता है। मनुष्य को सदा अहंकार से दूर रहना चाहिए। प्रभु प्राप्ति में अहंकार बहुत बड़ी बाधा है। ईश्वर कीर्तन में दादू मग्न हो जाते हैं। उनको ऐसा लगता है कि उनके मुँह से ताल (rhythm) बजने की आवाज आ रही है, उनके प्रभु उनके समक्ष प्रस्तुत है।

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भक्ति के सहारे ही संसार को पार किया जा सकता है। प्रभु स्मरण के अतिरिक्त संसार पार के अन्य मार्ग केवल भ्रम है। प्रेम ही जीवन और संसार का सार है। प्रेम नहीं तो संपूर्ण वेद वेदांत का अध्ययन निर्रथक है। वेद पुराण की व्याख्या करने वाले जाने कितने लोगों ने कितने कागज़ भर डाले पर प्रभु का सानिध्य (nearness) नहीं मिल पाया। जिसने प्रभु प्रेम का अक्षर आत्मसात कर लिया वह पंडित हो गया। अहंकार ही मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है।

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जिसने अहंकार पर विजय प्राप्त कर लिया वह विजेता हो जाता है। परमात्मा जिसका हाथ पकड़ लेता है वही इस संसार रूपी सागर से पार हो सकता है। शेष तो भवसागर में डूब ही मरते हैं। सज्जन व्यक्ति ही प्रभु कृपा का पात्र होता है।

आत्मा में ही परमात्मा का निवास होता है इसलिए किसी को भी किसी तरह का कष्ट, दुःख मत पहुँचाना।

इस संसार में दो ही ऐसे रत्न हैं जिनकी किसी से भी कोई तुलना नहीं है। पहला रत्न है – सबका मालिक, स्वामी, प्रभु, परमात्मा और दूसरा रत्न है – संकीर्तन करने वाला संतजन। इन्हीं दो रत्नों के बल पर, सामर्थ्य पर जीवन और जगत सुंदर बन जाता है। ये दोनों ही रत्न ऐसे हैं जिनका मोल-तोल नहीं हो सकता।

मध्ययुगीन काव्य (अ) भक्ति महिमा शब्दार्थ :

  • माखण = मक्खन (butter),
  • पाहण = पत्थर (stone),
  • मैं = अहंकार (ego),
  • बारीक = सँकरा (narrow),
  • द्वै = दोनों (माया और राम) (both),
  • ठाम = स्थान, जगह (place),
  • सुरति = याद, स्मरण (memory),
  • दीनदयाल = परमात्मा (god),
  • बाँचे = पढ़ना (to read),
  • केते = कितने, बहुत (many),
  • एकै = एक ही (only one),
  • आखर = अक्षर (letter),
  • सुजान = चतुर, विद्वान (clever),
  • बैरी = शत्रु (enemy), Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 मध्ययुगीन काव्य (अ) भक्ति महिमा
  • मरजीवा = जीवित होते हुए भी मरा हुआ, वैरागी (hermit),
  • रढया = रक्षा करना (protect, save),
  • करतार = सृष्टिकर्ता (god),
  • संसार = माया, मोह (world),
  • अमोल = जिसका कोई मोल न हो, अनमोल, अमूल्य। (priceless)
  • पाहण = पत्थर
  • सुरति = याद, स्मरण
  • बाँचे = पढ़ना
  • मरजीवा = जीवित होते हुए भी मरा हुआ, वैरागी
  • करतार = सृष्टिकर्ता
  • रख्या = रक्षा करना

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 मेरा भला करने वालों से बचाएँ

Balbharti Maharashtra State Board Hindi Yuvakbharati 11th Digest Chapter 4 मेरा भला करने वालों से बचाएँ Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

Maharashtra State Board 11th Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 मेरा भला करने वालों से बचाएँ

11th Hindi Digest Chapter 4 मेरा भला करने वालों से बचाएँ Textbook Questions and Answers

आकलन

1.
प्रश्न अ.
लिखिए :
(a) लेखक की चिंता करने वाले –
उत्तर :
मुस्कुराती चहचहाती लड़कियों के झुंड, सभी तरह के इलाज करने वाले, क्रेडिट कार्ड वाले, हलवाई, वॉटर फिल्टर वाले लोग।

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(b) लेखक का योग के प्रति मोह भंग हो गया है –
उत्तर :
क्योंकि उनके ठहाकों का राज लेखक की समझ में आ गया।

प्रश्न आ.
कारण लिखिए –
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 मेरा भला करने वालों से बचाएँ 1
उत्तर :
(i) पार्क में घूमने जाते हैं तब योग संस्थान वाले घेर लेते हैं।
(ii) फिल्म देखने जाते हैं तो टिकट के साथ खाने का सामान शामिल कर लिया जाता है।
(iii) मनोरंजन के लिए टी.वी. ऑन करते हैं तो समाचार चैनल खबरों के नाम पर डराते हैं।

शब्द संपदा

प्रश्न अ.
उपसर्गयुक्त शब्द लिखिए –
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 मेरा भला करने वालों से बचाएँ 2
उत्तर:
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 मेरा भला करने वालों से बचाएँ 10

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प्रश्न आ.
प्रत्यययुक्त शब्द लिखिए
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 मेरा भला करने वालों से बचाएँ 3
उत्तर:
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 मेरा भला करने वालों से बचाएँ 11

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अभिव्यक्ति
३. मुफ्त में मिलने वाली चीजों के प्रति लोगों की मानसिकता को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
वस्तुओं के दाम बढ़ गए हैं। बाजार में वस्तु बेचने वालों के बीच होड़ मची है। हर कोई अपनी वस्तु बेचने के लिए उतावला हो रहा है। हर कोई चाहता है कि, वह लोगों को यह समझा दें कि, औरों से उसकी वस्तु कितनी अच्छी है। अपनी वस्तुओं का बखान वह बढ़ा-चढ़ाकर कर रहा है।

आज एक ही प्रकार की वस्तुओं के अलग-अलग उत्पादक है। उत्पादन करने वाली हर कंपनी अपनी वस्तु को दूसरे से हटकर अधिक अच्छे तरीके से दूसरों के गले में बाँध देना चाहते हैं। ग्राहक आकर्षित हो इसलिए वे ‘फ्री’ का फंडा अपनाते हैं, चाहे उसका दर्जा कैसा भी क्यों न हो।

वस्तु का दर्जा पहचाने बगैर मुफ्त में मिलने वाली वस्तुओं के प्रति लोगों का आकर्षण दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है, इसका फायदा उत्पादन करने वाली कंपनियाँ ले रही हैं। लोग हैं कि, फ्री की वस्तु पाने के लिए वस्तुओं की खरीदारी कर अपने को चतुर एवं सयाने समझने लगे हैं। इस फ्री के चक्कर में लोग न जाने कितनी अनावश्यक वस्तुएँ खरीदते हैं।

पाठ पर आधारित लघूत्तरी प्रश्न

4.
प्रश्न अ.
पाठ के आधार पर ग्राहकों की वर्तमान स्थिति का चित्रण कीजिए।
उत्तर :
वर्तमान युग में भला करने वाले लोगों से लेखक बेहद परेशान हैं। हर कोई यह दावा कर रहा है कि, वे लोगों के फायदे के बारे में सोचते हैं। मुफ्त में वस्तु दे रहे हैं। इन सब के लिए विज्ञापनों की भरमार हो रही है। अस्पताल वाले भी हर तरह का इलाज करने के लिए तैयार हैं।

आपका मोटापा कम करने की चिंता जितनी आपको नहीं है, उतनी स्लिमिंग सेंटरवालों को है। आप बेझिझक कोई भी और कितनी भी महँगी वस्तु खरीद सकते हैं। बैंक की ओर से क्रेडिट कार्ड वाला आपको डेबिट कार्ड दे रहा है। आपके स्वास्थ्य की चिंता वॉटर फिल्टर वालों को अधिक है।

योग संस्थान वाले आपको हँसाकर आपके स्वास्थ्य में सुधार लाना चाहते हैं। भारत माँ का सपूत लोगों के हित के लिए सस्ते में मॉल में कपड़े बेच रहा है। ‘सेल’ फोन वाला मुफ्त में सिम कार्ड बेच रहा है। आज ‘मुफ्त के चक्कर’ में लोग फँसते हैं।

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प्रश्न आ.
अखबार के दफ्तर से आए दो युवाओं से मिले लेखक के अनुभवों को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
अखबार के दफ्तर से लेखक से मिलने दो युवा आए थे। उन्होंने लेखक से कहा कि, वे फिल्में दिखाते हैं, राय पाने के लिए आमंत्रित करेंगे। लेखक को खुश होते देखकर उन्होंने फौरन अपना काम शुरू कर दिया। जैसे ही लेखक को किसी काम में व्यस्त पाया फौरन उन्होंने लेखक के सामने हस्ताक्षर करने के लिए कागज आगे किए।

कागजातों में क्या लिखा है ये पढ़े बगैर ही हस्ताक्षर वाली जगह दिखाकर हस्ताक्षर करवाए। कुछ ही दिनों में लेखक को एक क्रेडिट कार्ड मिला। पूछताछ करने पर पता चला कि, उनका किसी विदेशी बँक से काँट्रेक्ट था। अपना लक्ष्य पूरा करवाने के लिए उन्होंने यह क्रेडिट कार्ड बनवाया था।

साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान

5.
जानकारी दीजिए:

प्रश्न अ.
राजेंद्र सहगल जी की साहित्यिक कृतियाँ –
(a) ……………………………
(b) ……………………………
उत्तर :
(a) असत्य की तलाश
(b) धर्म बिका बाजार में

प्रश्न आ.
अन्य व्यंग्य रचनाकारों के नाम –
…………………………… ……………………………
…………………………… ……………………………
उत्तर :

  • श्रीलाल शुक्ल,
  • हरिशंकर परसाई,
  • के. पी. सक्सेना,
  • रविंद्रनाथ त्यागी।

6. निम्नलिखित रसों के उदाहरण लिखिए :

(a) वीर
…………………………………………………………
…………………………………………………………

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(b) करुण
…………………………………………………………
…………………………………………………………

(c) भयानक
…………………………………………………………
…………………………………………………………
उत्तर :
(a) वीर :
उदा. : लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।
– सुभद्राकुमारी चौहान

(b) करुण :
उदा. : पेट-पीठ दोनों मिलकर हैं एक,
चल रहा लकुटिया टेक,
मुट्ठी भर दाने को, भूख मिटाने को,
मुँह फटी पुरानी झोली को फैलाता,
दो टुक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता।
– सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’

(c) भयानक :
उदा. : बेचैन हैं हवाएँ, सब ओर बेकली है,
कोई नहीं बताता, किश्ती किधर चली है?
मँझधार है, भँवर है या पास है किनारा?
यह नाश आ रहा या सौभाग्य का सितारा?
– रामधारी सिंह ‘दिनकर’

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कृतिपत्रिका

(अ) निम्नलिखित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

गद्यांश : इधर मैं कई दिनों से ………………………………………….. वक्त नहीं बचेगा। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 13)

प्रश्न 1.
संजाल पूर्ण कीजिए :
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 मेरा भला करने वालों से बचाएँ 4
उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 मेरा भला करने वालों से बचाएँ 5

प्रश्न 2.
परिणाम लिखिए :
(i) क्रेडिट कार्ड के साथ डेविट कार्ड मिलने का परिणाम ……………………………….
उत्तर :
क्रेडिट कार्ड के साथ डेबिट कार्ड मिलने से पैसे खर्च करने या नकद खर्च करने की जरूरत नहीं पड़ती।

(ii) अखबार के साथ आए पैंफलेट पढ़ने का परिणाम ……………………………….
उत्तर :
अखबार के साथ आए पैंफलेट पढ़ने बैठे तो अखबार पढ़ने के लिए वक्त नहीं बचता।

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(क) गद्यांश में इन शब्दों के लिए प्रयुक्त अंग्रेजी शब्द :
(i) मुफ्त ……………………………….
(ii) पतला होना ……………………………….
(iii) लघु पुस्तक ……………………………….
(iv) स्वहस्त लेख ……………………………….
उत्तर :
(i) मुफ्त = फ्री
(ii) पतला होना = स्लिमिंग
(iii) लघु पुस्तक = पैंफलेट
(iv) स्वहस्त लेख = आटोग्राफ उदा.

(ख) विलोम शब्द लिखिए :
(i) भला
(ii) मोटा
उत्तर :
(i) भला x वुरा
(ii) मोटा x पतला

प्रश्न 3.
‘विज्ञापन हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
अखबार, पैंफलेट, दूरदर्शन, बड़े-बड़े पोस्टर इन सब के माध्यम से विज्ञापन मनुष्य पर हावी हो रहे हैं। हर एक विज्ञापन हमें बताता है कि, वह हमारे लिए कैसे उपयोगी है। पहले कोई चीज खरीदने के लिए हमें यहाँ-वहाँ पूछताछ करनी पड़ती थी।

जानकार लोगों से राय लेनी पड़ती थी कि हमारे लिए कौन सी लाभदायक है? किंतु आज वस्तुओं को खरीदने से पहले उसमें क्या है, यह हमें मालूम पड़ जाता है। उस वस्तु में जिन पदार्थों का उपयोग किया गया है – वह है क्या यह जान लेने की जरूरत पड़ती है।

पहले लोगों को उधार सामान खरीदना अच्छा नहीं लगता या किंतु आज यह फैशन बन गया है। बैंकों आदि से लोन लेने के लिए बैंकों के कई चक्कर काटने पड़ते थे किंतु आज बैंक के सदस्य हमारे घर आकर लोन की पूछताछ करते हैं। बड़े-बड़े विज्ञापन हमारे जीवन में जरूरतें निर्माण करते भी हैं और उसे पूरा करने के लिए उपाय भी सुझाते हैं।

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(आ) निम्नलिखित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

गद्यांश : बाजार की चिल्लपों से …………………………………………… प्रहार से मरना लाजिमी है। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 15)

प्रश्न 1.
संजाल पूर्ण कीजिए :
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 मेरा भला करने वालों से बचाएँ 6
उत्तर :
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प्रश्न 2.
लिखिए : समाचार चैनल पर वर्णित गर्मी के मौसम का हाल –
(i) …………………………………
(ii) …………………………………
उत्तर :
समाचार चैनल पर वर्णित गर्मी के मौसम का हाल –
(i) गर्मी की तपिश से जनता बेहाल।
(ii) आकाश से आग बरसती है।

प्रश्न 3.
निम्न शब्दों को उचित तालिका में लिखिए : (बेहाल, जीवित, खौफनाक, प्रकोप)
उपसर्गयुक्त शब्द – प्रत्यययुक्त शब्द
…………………….. – ……………………..
…………………….. – ……………………..
…………………….. – ……………………..
उत्तर:
उपसर्गयुक्त शब्द – प्रत्यययुक्त शब्द
बेहाल – जीवित
प्रकोप – खौफनाक

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प्रश्न 4.
‘समाचार चैनल भी दर्शकों का मनोरंजन करना चाहते हैं इस तथ्य पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
समाचार चैनल एक ऐसा जरिया है जिसके द्वारा देश-विदेश की जानकारी एक साथ लाखों लोगों तक पहुँचाई जा सकती हैं।

दूरदर्शन पर किसी भी समाचार को सुनने के साथ-साथ हम देख भी सकते हैं। इसीलिए लोगों का रुझान भी बढ़ा। आज दूरदर्शन पर ऐसे चैनल आए हैं जो 24 घंटे समाचार प्रसारित करते हैं। यह उनकी सफलता ही बयाँ करती है कि वे कई भाषाओं में उपलब्ध हैं।

हमारे सामने इतने विकल्प होते हैं कि अपनी मर्जी से हम किसी भी चैनल को चुन सकते हैं। इसी वजह से इन चैनलों में स्पर्धा शुरू हो गई। और सच्चाई को भी तोड़-मरोड़कर परोसा जाने लगा है। छोटी सी बात को मिर्च-मसाला लगाकर दिखाते हैं।

किसी अपदा, दुर्घटना के समय घायल या मृतकों की संख्या इसी लिए अलग-अलग होती है और चैनल अपनी विश्वसनीयता खोने लगे हैं।

(इ) निम्नलिखित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

गद्यांश : ‘सेल’ फोन से ……………………………………. वो ले लो, ये फ्री।” (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 16)

प्रश्न 1.
संजाल पूर्ण कीजिए :
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 मेरा भला करने वालों से बचाएँ 8
उत्तर:
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 मेरा भला करने वालों से बचाएँ 9

प्रश्न 2.
निम्नलिखित वाक्यों का उचित क्रम लगाइए :
(i) कुछ अपनी सुरक्षा की तैयारी कर सकते हैं पर इन फायदा करने वालों से बचने की ज्यादा जरूरत है।
(ii) एक-दूसरे से मिलकर बात कम करें, फोन पर ज्यादा करें।
(iii) मुझे अपना भला नहीं करवाना है।
(iv) उसमें करेंट दौड़ जाता है।
उत्तर :
(i) एक-दूसरे से मिलकर बात कम करें, फोन पर ज्यादा करें।
(ii) उसमें करेंट दौड़ जाता है।
(iii) कुछ अपनी सुरक्षा की तैयारी कर सकते हैं पर इन फायदा करने वालों से बचने की ज्यादा जरूरत है।
(iv) मुझे अपना भला नहीं करवाना है।

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प्रश्न 3.
लिखिए : (i) गद्यांश में प्रयुक्त दो शब्द-युग्म ढूँढकर लिखिए :
(1) ………………………. – ……………………….
(2) ………………………. – ……………………….
उत्तर :
(1) एक – दूसरे
(2) ठीक – ठीक

(ii) गद्यांश से विलोम शब्द की जोड़ियाँ ढूँढकर लिखिए :
(1) ………………………. – ……………………….
(2) ………………………. – ……………………….
उत्तर :
(1) आम – खास
(2) नुकसान x फायदा

प्रश्न 4.
‘सेल’ फोन के दुष्परिणाम बताइए।
उत्तर :
‘सेल’ फोन आने के पश्चात हमारी यह धारणा बनी थी कि, हम ज्यादा से ज्यादा लोगों से कहीं भी, कभी भी जुड़ जाएँगे। हम अधिकाधिक लोगों से जुड़ तो गए किंतु अपने करीबी लोगों से हम दूर हो गए। हम एक दूसरे से कम, दूर के लोगों से फोन पर अधिक बातें करने लगे।

‘सेल’ फोन से ऊँचा सुनना, आँख की बीमारी जैसी कई प्रकार की समस्याएँ निर्माण हुईं। अपने मिलने वालों से कम और जो कहीं दूरी पर है, उससे ही बतियाते रहे। परिणामत: एक ही घर में रहने वाले सदस्य एक-दूसरे के लिए अजनबी हो गए। हमारा कीमती वक्त मोबाइल में उलझे रहने के कारण बर्बाद होने लगा।

मेरा भला करने वालों से बचाएँ Summary in Hindi

मेरा भला करने वालों से बचाएँ लेखक परिचय :

सहगल जी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से एम्.ए.,पीएच्.डी. की उपाधि प्राप्त की। आप बैंक में उपप्रबंधक के रूप में कार्यरत रहे। आप आकाशवाणी से विभिन्न विषयों पर वार्ताओं का प्रसारण करते हैं तथा सामयिक महत्त्व के विषयों पर फीचर लेखन भी करते हैं।

मेरा भला करने वालों से बचाएँ प्रमख कतियाँ :

‘हिंदी उपन्यास’, ‘तीन दशक’ (शोध प्रबंध), ‘असत्य की तलाश’, ‘धर्म बिका बाजार में (व्यंग्य संग्रह)

मेरा भला करने वालों से बचाएँ विधा परिचय :

‘व्यंग्य’ का मतलब शब्दों का तीखा प्रहार। लेखक अपनी संवेदना के धरातल पर समाज में व्याप्त विसंगतियों (discrepancy) पर कड़ा प्रहार करता है। वह भाषा की व्यंजना शक्ति का प्रयोग इतना बखूबी करता है, कि विसंगति में संगति, कुरूपता (ugliness) के पीछे सुंदरता, विरोधाभास (parodax) में समानता की सृष्टि होकर हास्य रस की निष्पत्ति होती है।

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मेरा भला करने वालों से बचाएँ विषय प्रवेश :

लेखक का मानना है कि, झूठ को सच बताने में जो ताकत लगती है उसका सौंवा हिस्सा भी सच को सच साबित करने में नहीं लगता। ‘मुफ्त के चक्कर’ में अपना भला करने वाले हमारे आस-पास कई सारे लोग दिखाई देते हैं, उनसे ‘मुझे बचना है’ कहकर इस प्रवृत्ति पर व्यंग्य कसा है।

मेरा भला करने वालों से बचाएँ मुहावरें :

  1. दर-दर भटकना – मारा-मारा फिरना।
  2. सोने पे सुहागा होना – किसी वस्तु या व्यक्ति का उच्चतर/बेहतर होना।
  3. राह देखना – इतंजार करना।

मेरा भला करने वालों से बचाएँ टिप्पणी :

तुरुप – ताश का एक खेल जिसमें प्रधान माने हुए रंग का छोटे-से-छोटा पत्ता अन्य रंगों के बड़े-से-बड़े पत्ते को काट सकता है।

मेरा भला करने वालों से बचाएँ सारांश :

समाज का हर एक आदमी लेखक का भला करना चाहता है। अखबार में विज्ञापन के ढेर सारे कागज पाए जाते हैं, जिसमें हर तरह के इलाज के लिए क्लिनिक है, स्लिमिंग सेंटरवाला आप के आने का इंतजार कर रहा है, हलवाई लाजबाब मिठाई बेच रहा है।

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कहीं क्रेडिट कार्ड वाला फ्री डेबिट कार्ड दे रहा है। कोई घर तक सामान पहुँचाने के लिए तैयार है। गाड़ी वाला नई गाड़ी के लिए लोन के लिए बैंक के कागज दे रहा है। कहीं पर मुस्कुराती चहचहाती लड़कियों के झुंड आपका आटोग्राफ लेने के लिए आती हैं। कोई साफ पानी के लिए वॉटर फिल्टर लगाना चाह रहा है। सब कुछ किस्तों में और क्रेडिट कार्ड पर मिल रहा है। साबुन की टिकियाँ कम-से-कम चार लेनी पड़ती है।

हर जगह भाईचारा इतना बढ़ गया है कि, ‘लार्जर टॅन लाइफ’ हो गया है। पार्क में जाते हैं तो योग संस्थान वाले ‘योगा’ के फायदे समझाते हैं। फिल्म देखने जाते हैं तो टिकट के साथ खाने का सामान शामिल कर लिया जाता है। ‘मॉल’ में कपड़ों की सेल लगी है।

देशवासियों के प्रति होने वाले प्यार के कारण वह सस्ता माल बेच रहा है। दरअसल वह सेकेंड का सस्ता माल बेचने के लिए अपने को धरती का लाल कहता है। कोई दुकानवाला त्योहारों पर दुकान की छुट्टियों की अग्रिम सूचना देता है।

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घर जाकर टीवी शुरू करते हैं, तो समाचार चैनल खबरों के नाम पर डरा रहे हैं। मौसम का हाल जानना चाहते हैं, तो कहते हैं, अगर आप जीवित रहना चाहते हैं, तो घर से बाहर न निकलें। दरअसल ये सारे लोग हमारा भला चाहने वाले हैं लेकिन हम इन्हें ठीक तरह से समझ नहीं पा रहे हैं।

लेखक के मोहल्ले में ‘पुरुष ब्यूटी पार्लर’ खुल गया है। लेखक नाखून कटवाने के लिए जाता है, तो उसे सलाह मिलती है कि लेखक अपना ‘फेशियल’ करवाकर अपना ‘फेस वेल्यू’ बढ़ाए। लेखक के नाखून इस तरह तराशे मानो कोई संगमरमर की मूर्ति तराश रहा हो। आखिरकार नाखून काटने के 1000/- रु. लेकर मुक्त कर दिया।

रास्ते में मोबाइल खरीदारों की लाइन लगी थी पूछने पर पता चला कि, मोबाइल के साथ सिम कार्ड मुफ्त मिलता है। लेखक ने भी मोबाइल खरीदा। कोई भी फोन नहीं आ रहा है। लेखक सोचता है, शायद उसने कोई गलत बटन तो नहीं दबाया। कार्यव्यस्तता के कारण लोग सड़क पर चलते-चलते फोन कर रहे हैं। ‘सेल’ फोन से हम हीनता की ग्रंथि से मुक्त हुए हैं। हम एक-दूसरे से कम, फोन पर ज्यादा बातें कर रहे हैं।

अपना नुकसान करने वालों से तो हम बच सकते हैं किंतु हमारा फायदा करने वालों से बचने की ज्यादा जरूरत है। ना कहने पर भी वे, ‘यह ले लो, वो फ्री, वो ले लो, ये फ्री’, कहकर हर हालत में हमारा फायदा करके ही मानेंगे।

इस तरह लेखक फायदा करने वालों से बचना चाहता है।

मेरा भला करने वालों से बचाएँ शब्दार्थ :

  • क्लीनिक = अस्पताल (clinic),
  • झुंड = बहुत से मनुष्यों का समूह (group),
  • विवरण = वर्णन, ब्यौरा (discription),
  • चुटकुला = मनोरंजक बात (joke),
  • दायरा = गोल घेरा (radius),
  • चिल्लप = चीख, पुकार (shouting),
  • तपिश = गरमी (heat),
  • प्रकोप = क्षोभ (outbreak),
  • मोहभंग = भ्रांति निवारण (disillusion),
  • आलम = दुनिया (world),
  • स्लिमिंग = पतला होना (slimming),
  • फ्री = मुफ्त (free),
  • निर्देश = सूचना (instruction)
  • विवरण = वर्णन, ब्योरा
  • मोहभंग = भ्रांति निवारण
  • दायरा = गोलघेरा Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 मेरा भला करने वालों से बचाएँ
  • चुटकुला = मनोरंजक बात

Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 झाडांच्या मनात जाऊ

Balbharti Maharashtra State Board Marathi Yuvakbharati 11th Digest Chapter 4 झाडांच्या मनात जाऊ Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

Maharashtra State Board 11th Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 झाडांच्या मनात जाऊ

11th Marathi Digest Chapter 4 झाडांच्या मनात जाऊ Textbook Questions and Answers

कृती

1. अ. योग्य पर्याय निवडून वाक्ये पूर्ण करा.

प्रश्न 1.
पोपटी स्पंदनासाठी म्हणजे –
(अ) पोपटी पानात जाण्यासाठी
(आ) उत्साहाने सळसळण्यासाठी
(इ) पानांचे विचार घेण्यासाठी.
उत्तर :
पोपटी स्पंदनासाठी म्हणजे – पानांचे विचार घेण्यासाठी.

प्रश्न 2.
जन्माला अत्तर घालत म्हणजे –
(अ) दुसऱ्याला आनंद देत.
(आ) दुसऱ्याला उत्साही करत.
(इ) स्वसमर्पणातून दुसऱ्याला आनंद देत.
उत्तर :
जन्माला अलर घालत म्हणजे – स्वसमर्पणातून दुसऱ्याला आनंद देत.

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प्रश्न 3.
तो फाया कानी ठेवू ….. म्हणजे
(अ) सुंगधी वृत्ती जोपासू.
(आ) अत्तराचा स्प्रे मारू.
(इ) कानात अत्तर ठेव.
उत्तर :
तो फाया कानी ठेवू …. म्हणजे – सुंगधी वृत्ती जोपासू.

प्रश्न 4.
भिरभिरणारे तोरण दाराला आणून लावू …. म्हणजे
(अ) दारांना तोरणाने सजवू..
(आ) दाराला हलतेफुलते तोरण लावू.
(इ) निसर्गाच्या संगतीत स्वत:चे जीवन आनंदी करू.
उत्तर :
भिरभिरणारे तोरण दाराला आणून लावू…. म्हणजे – निसर्गाच्या संगतीत स्वत:चे जीवन आनंदी करू,

प्रश्न 5.
मी झाड होऊन तेथे, पसरीन आपुले बाहू….. म्हणजे –
(अ) निसर्गाचाच एक घटक होऊन सर्वांना भेटेन.
(आ) झाड होऊन फांदया पसरीन,
(इ) झाड होऊन सावली देईन.
उत्तर:
मी झाड होऊन तेथे, पसरीन आपुले वाहू …. म्हणजे – निसर्गाचाच एक घटक होऊन सर्वांना भेटेन.

आ. खालील कृतींतून मिळणारा संदेश कवितेच्या आधारे लिहा.

प्रश्न 1.
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 झाडांच्या मनात जाऊ 1
उत्तर:

निसर्गातील घटकांच्या सोबतीने केलेली कृती सूचित होणारा अर्थ
1. कोकिळ होऊनी गाऊ समरसतेने जीवन जगू
2. गाण्यात ऋतूच्या आपण चल खळाळून रे वाहू जीवनाचा आनंद लुटू

2. अ. खालील काव्यपंक्तींचा तुम्हांला समजलेला अर्थ स्पष्ट करा.

प्रश्न 1.
झाडांच्या मनात जाऊ, पानांचे विचार होऊ ……….
उत्तर :
झाडांच्या मनात जाऊ, पानांचे विचार होऊ ……..
निसर्गाच्या कुशीत जाऊन त्यांचे विचार जाणण्याचा प्रयत्न करू, झाड हे मनुष्यरूपी प्रतिमा घेतली तर माणसांच्या मनात शिरून त्यांचे विचार ऐकू, जाणून घेऊ म्हणजे मतभेद कमी होतील.

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प्रश्न 2.
हातात ऊन डुचमळते नि सूर्य लागतो पोहू ……….
उत्तर :
हातात ऊन दुचमळते नि सूर्य लागतो पोहू ………
आपल्या ओंजळीत असणारे दुसऱ्याच्या हातात देताना मन कातर होतं आणि आपलं अंतरंग त्यात दिसू लागतं.

आ. खालील तक्ता पूर्ण करा.

प्रश्न 1.
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 झाडांच्या मनात जाऊ 2
उत्तर:
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 झाडांच्या मनात जाऊ 3

3. काव्यसौंदर्य

प्रश्न अ.
‘पोपटी स्पंदनासाठी, कोकिळ होऊन गाऊ’ या काव्यपंक्तींतील अर्थसौंदर्य स्पष्ट करा.
उत्तर :
कवी नलेश पाटील यांना झाड व्हायचे आहे. झाडांच्या मनात शिरून, पानांच्या मनातील विचार समजून घ्यायचे आहेत. हे म्हणजेच माणूस म्हणून जगताना दुसऱ्या (झाडाच्या) माणसाच्या मनात पोहोचून त्यांचे विचार जाणून घ्यायचे आहेत. हे पोपटी स्पंदनासाठी करायचे आहे. म्हणजे चांगल्या नात्यांसाठी हा हिरवेपणा जपायचा आहे. म्हणजे आयुष्याचे सुरेल गाणे गाता येऊ शकते. इथे पोपटी स्पंदन ही रंगप्रतिमा वापरली आहे.

प्रश्न आ.
ऊन आणि सावली यांच्या प्रतीकांतून सूचित होणारा आशय कवितेच्या आधारे लिहा.
उत्तर :
ऊन आणि सावली हा निसर्गाचा प्रकाशखेळ असतो. वस्तूच्या ज्या बाजूने ऊन असते. त्याच्याविरुद्ध बाजूला त्या वस्तूची सावली पडत असते. झाडांच्या विविध आकाराच्या सावल्या आपल्याला दिसतात त्या त्यांच्यावर पडणाऱ्या ऊनामुळे. झाडांच्या पायापासून त्याची सावली दिसत असते. या कवीतेत कवी माणसाला झाड म्हणून संबोधतो. माणसालाही ऊन-सावली हे खेळ अनुभवायला लागतात. त्याच्या आयुष्यातील प्रखर प्रसंग, घटना उन्हासारखी दाहकता देतात. तर चांगल्या घटना सावलीसारखी माया, आसरा देतात. सावली जरी उन्हामुळे पडत असली तरी उन्हावरच ती स्वत:ची नक्षी कोरत असते. उन्हालाही शीतलता देण्याचा यत्न करते.

प्रश्न इ.
‘डोळ्यातं झऱ्याचे पाणी’ या शब्दसमूहातील भावसौंदर्य उलगडून लिहा.
उत्तर :
जल, वायू, पृथ्वी, आकाश, भूमी ही आपली पंचतत्त्वे आहेत. यांच्याशिवाय आपण जगू शकत नाही. यातील जलतत्त्व हे 70% ने व्यापलेले आहे. या जलाशिवाय जीवन अपूर्ण आहे. आपल्या जीवनात आनंदाच्या वा अतीव दुःखाच्या प्रसंगी डोळ्यात पाणीच व्यापून राहते. अन्यातील खळाळते पाणी तृष्णा भागवते पण तेच पाण्याचे रूप डोळ्यात दाटून आले की दुःखद भावना प्रकट करते.

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4. अभिव्यक्ती :

प्रश्न अ.
तुम्ही ‘झाडांच्या मनात शिरला आहात’ अशी कल्पना करून ते कल्पनाचित्र शब्दबद्ध करा.
उत्तर :
सर्वांना विसावा, आधार देणाऱ्या झाडांच्या मनात मी शिरलो आणि मी मला मिळालेल्या मनुष्य जन्माची खंत करू लागलो. झाड कसं जन्माला येतं ते तुम्हालाही माहीत आहेच, बीजाला कोंब फुटले की त्याचा जन्म होतो. त्याच्या बाल्यावस्थेची ती अवस्था फार लोभसवाणी असते. अंकुरित झालेल्या बियाण्यांमधून ते नवीन जन्माला सुरुवात करत असते. तेव्हाच ते दोन्ही पाकळ्या मिटून बंदन करून जन्माला येते.

निसर्गाकडून मिळणाऱ्या सर्वच गोष्टींबद्दल कृतज्ञता व्यक्त करण्याचा त्याचा सदैव भाव असतो. माझे ‘मी’ पण त्याचे कधीच तो दाखवत नाही. निसर्गातीलच ऊन, वारा, पाकस यांच्यावर तो वाचत असतो. पाणी मिळवण्यासाठी त्याची मूळे खोलखोलवर जमिनीत शिरतात. पण हे पाणी मिळालं आहे त्या पाण्याचे उपकारही लक्षात ठेवतात, म्हणूनच झाडं जिथे जास्त तिथे पावसाचे प्रमाण जास्त असतं. निसर्गातील सर्वच घटकांबद्दल त्याच्या मनात आत्मीयता असते. विहार करणारे पक्षी, त्यांची घरटी, पिलावळ यांचे ते घर असते.

अनेकांना सामावून घेऊन इतरांना आनंद देत स्वतः आनंदी राहणं हे झाडापेक्षा दुसऱ्या कुणालाच कळलं नाही. आपल्यात जे जे आहे ते ते दुसऱ्याला दयावं ही किमया त्यालाच साधली आहे. वातावरणातील अशुद्धता आपल्यात घेऊन शुद्ध वातावरण ठेवताना त्याचाही कस लागतो पण विनातक्रार काम करताना ते दिसतं, आपला जन्मच इतरांसाठी आहे हे कधीही ते विसरत नाही म्हणून झाडं जे काही देतात त्यामुळे आपण परिपूर्ण होतो. आपल्या मानवाची झोळी मात्र दुबळी आहे.

प्रश्न आ.
निसर्गातील घटक व मानवी जीवन यांचा परस्परसंबंध स्पष्ट करा.
उत्तर :
निसर्ग ज्या पद्धतीने मानवाला सर्वकाही देत असतो त्याचे मोजमाप कधीच करता येणार नाही. मानवी जीवनच मुळी निसर्गातील पंचतत्त्वांवर आधारलेलं आहे. भूमी, वायू, जल, आकाश, अग्नी या पंचतत्त्वांशिवाय आपण अपूर्ण आहोत. मानवाने आपल्या बुद्धीच्या बळावर या पंचतत्त्वांचा वापर करून स्वत:चे जीवन सुखकर केलं पण तरीही तो परिपूर्ण होऊ शकला नाही.

कारण मुळातच तो परावलंबी आहे. पण त्याला हे अजून समजलेच नाही आहे. ज्या पृथ्वीवर. भमीवर आपण राहतो त्या भूमीवर जर पृथ्वीच्या पोटातील लाव्हारस बाहेर पडू लागला तर? अथवा सतत भूकंप होऊ लागले तर? मानव या पृथ्वीवर राहूच शकणार नाही. वाऱ्याचा वेग वाढला आणि त्याने वादळ निर्माण झाले तर मानव कुठेच स्थिर राहू शकणार नाही.

अग्नीरूपी, वणवा जर जंगलातून पेट घेऊ लागला, भूमीतून बाहेर ज्वालामुखीच्या रूपाने बाहेर पडू लागला तर मानव असहाय्य होईल. पृथ्वीवर असलेले जलसाठे तसंच पाऊस यांनी भयंकर रूप धारण केले तर ….. मानवाचे अस्तित्व नष्ट होईल. आकाशातील सूर्य, चंद्र, तारे यांचे अस्तित्व नसेल तर दिवस-रात्र, ऋतू या सर्वांवरच परिणाम होईल. याच बरोबरीने जलचर, उभयचर, भूचर या चरांवरती प्राणी-पक्षीही महत्त्वाचे आहेत. निसर्गातूनच मानवाची सौंदर्यदृष्टी विकसित झाली. संगीत, रूपरस, गंध, स्पर्श यांचे ज्ञान निसर्गामधूनच मानवाला मिळाले आहे. म्हणून निसर्गातील प्रत्येक घटकांवर मानवी जीवन अवलंबून असलेले दिसते.

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5. ‘झाडांच्या मनात जाऊ’ या कवितेचे रसग्रहण करा.

प्रश्न 1.
‘झाडांच्या मनात जाऊ’ या कवितेचे रसग्रहण करा.
उत्तर:
कवी नलेश पाटील हे निसर्ग कवी म्हणून ओळखले जातात. त्यांच्या कवितेत निसर्ग, त्याच्या रंगरूपासह अवतरतो. निसर्गातील अनेक गोष्टी मानवाला केवळ आनंद देत असतात. त्याची देण्याची अमर्याद शक्ती आहे. निसर्गाच्या या शक्तीला आपण ओळखलं की आपण त्याच्याशी एकरूप होत जातो, कवी निसर्गाकडून अनेक गोष्टींचा आनंद घेत जगत आहे. झाडांच्या मनात जाऊ या कवितेत कवी या निसर्गातील अनेक गोष्टींचे वर्णन करून आपल्याला त्याच्या ताकदीचे दर्शन घडवत आहे.

झाडांच्या मनात जाऊन कवीला त्याच्या फांदयांवर असणारी पाने आहेत. त्यांच्या मनापर्यंत पोहोचवायचे आहे. झाडांचे असलेली पोपटी श्वास त्याला आपलेसे करायचेत आणि त्या झाडावर असलेल्या कोकिळेसारखे सुरेख सुरेल गाणे गायचे आहे. वसंतातील बहरामध्ये तो सावळ्या कोकिळेचा सूर ऐकत ऐकत मनाला रिझबू. वसंत ऋतूमध्ये झाडांना आलेला बहर हा विविध रंगांच्या फुलांचा आहे. त्या फुलांमधील सुगंध सर्वत्र पसरल्यामुळे मन आनंदी झालं आहे. नैसर्गिक फुलांचा गंध जणू काही आपल्या जन्माला अत्तर मिळालं आहे असं कवीला वाटतं. त्या कोकिळेच्या सरासोबत गाणं गात अत्तराचा फाया कानी ठेवन, आपले जगणे आनंदी करावे असं कवीला वाटते.

बागेत, रानात अनेक फुलपाखरे आहेत, त्याच्या पंखांवर विविध त-हेचे रंग आहेत, ते पाहून जणू काही ते निसर्गपंचमी खेळून आले आहेत असे कवीला वाटते. विविध फुलांवर बसलेली ही फुलपाखरे त्याचा रंग आपल्यावर धारण करतात की काय असं वाटू लागतं. त्या फुलपाखरांचा थवा सर्वत्र फिरताना दिसत आहे. हे तोरण रानावनात सर्वत्र भिरभिरत आहे. हे तोरण आपल्या दाराला लावण्याची तीव्र इच्छा कवीला होत आहे, त्या फुलपाखरांच्या पंखांना पताका ही उपमा फार सजगतेने वापरली आहे.

हा तर उत्सव आहे या पाखरांचा, त्या पाखरांच्या थव्याचे तोरण आपल्या दाराला लावावे म्हणजेच आपल्या दारीसुद्धा हा उत्सव साजरा व्हावा असं कवीला वाटत आहे. रानातील झरे निर्मळपणे वाहत आहेत. ते पाणी अश्रू बनूनही एखादयाच्या डोळ्यात उतरते. दोन्ही ठिकाणी पाण्याचीच रूपे आहेत. पण एक आहे ते निर्मळपणाने वाहत आहे. तर दुसरे पाणी कुणाच्या तरी करणीने डोळ्यात उतरले आहे. झऱ्याच्या पाण्याचा खळखळाट ऐकून कवीला असं वाटतेय की हे पाणी आनंदाचे गीत गात आहे. अथवा देवाघरची गाणी गात आहे. या गाण्याच्या ऋतूमध्ये आपणही खळाळत वाहत जाऊ, कोणतेही पाश न ठेवता वाहत जाणं, प्रवाही होणं हे कवीला सुंदर वाटत आहे.

कवी हे खळाळते पाणी पाहून खुश होतो आणि अलगद त्याचे मन त्या पाण्यातील एका खडकावर जाऊन बसते. ही कल्पनाच किती संदर आहे. मन पाण्याचा भाग होऊन खडकावर जाऊन बसतं आणि मग जे पाणी खळाळते होते तेच पाणी थई थई नाचताना दिसते. हा कवीच्या तरल मनाचा आणखी एक अविष्कार दिसतो की सुरेल गाण्याची लकेर होऊन त्याचे मन पाण्यात बसते आणि मग ते पाणी नाचतानाही दिसते. त्या मनमुक्त नाचण्याचा आनंद घेत असताना एक तुषाराचे रोप म्हणजेच खडकांवर पडणारे पाणी कवीच्या अंगावर पडून स्वत:च्या मायेची पखरण करत आहे, त्याला न्हाऊ घालत आहे.

आदिमानवाच्या काळापासून आपण पंचमहाभूतांना प्रमाण मानून त्यांची पूजा करत आलो आहोत. हेच तत्त्व कवी कवितेत दाखवून म्हणत आहे आकाशतत्त्व मी ऑजळीत जरासे धरले. ते ही जरासे कारण आकाश विस्तीर्ण आहे ते ऑजळीत मावू शकणार नाही, आपली तेवढी कुवत नाही, पण या आकाशाला ओंजळीत धरून अवघ्या पाण्याला सूजनत्व देण्याकरता त्या पाण्याचीच ओटी आकाशाने भरली. ओटी भरणं हे सृजनशीलता आहे, ती ओटी भरताना आकाशातील ऊन हातात दुचमळते आणि सूर्य त्यात पोहायला लागतो, म्हणजे आकाशासमवेत त्याची ही बिंबसुद्धा त्या पाण्यासोबत विलीन होतात.

हे फांदीवरील पक्षी त्यांना बदलणारा ऋतू कळतो, बदललेली हवा कळते, सृष्टीतले सूक्ष्म बदल कळतात कारण ते हा हंगाम जगतात. ते स्या हंगामात खरे साक्षीदार आहेत. झाडांच्या बुंध्याशी जी सावली हलत असते ती इतकी जिंवत असते की जणू ती सावली आपल्या रूपातून स्वतःला नव्हे तर उन्हाला उजाळा देत असते. सावल्यांमधून दिसणारे ऊन हे सावलीत अभावाने दिसणारे ऊन नव्हे तर सावलीत मुद्दामहून काढलेली नक्षी आहे आणि झाडावर दिसणारे कावळे हे या काळ्या सावलीलाच सावलीचे काळे पंख फुटून तयार झालेले कावळे आहेत. कावळ्यांचा जन्म निर्माणाचा हा वेगळाच काव्यात्मक अनुबंध शोधला गेलाय. अशा रूपकांसाठीच नलेश पाटील लोकप्रिय होते.

निसर्गाच्या अस्तित्वाचे असे वेगळे विभ्रम ही कवी नलेश यांच्या कवितेची ओळख आहे. एका सच्चा चित्रकाराने निसर्गाकडे किती काव्यात्मक नजरेने पाहावे याचा वस्तुपाठ म्हणजे नलेश यांची कविता. कवी शेवटी म्हणतो की मानवी स्पर्श जिथे नसतील, फुलपाखरांची संगत लाभेल अशा रानात ईश्वर मला तू टाक, माझे बाहू पसरून मी झाड होऊन जगेन, माझे जगणे केवळ सृष्टीमय होऊन जाईल. मला स्वतःला बहर येईल, या शब्दांतील एकावेळी कोणतेही एक अक्षर बदलून नवीन अर्थपूर्ण शब्द तयार करा. नवीन शब्दातील एक अक्षर बदलून नवीन अर्थपूर्ण शब्द तयार करा, शेवटच्या टप्यापर्यंत कमीत कमी शब्दांत पोहोचा.
उदा. सुंदर-घायाळ
सुंदर – आदर – आदळ – आयाळ – घायाळ

  • डोंगर – …… …… ….. अंबर
  • शारदा – ………………………….. पुराण
  • परात – …………… कानात
  • आदर – ………… पहाट
  • साखर – …………. नगर

उत्तर :

  • डोंगर – आगर – मगर – अंधार – अंबर
  • शारदा – वरदा – वरण – पुरण – पुराण
  • परात – वरात – रानात – नादात – कानात
  • आदर – पदर – पहार – रहाट – पहाट
  • साखर – खजूर – मजूर – मगर – नगर

11th Marathi Book Answers Chapter 4 झाडांच्या मनात जाऊ Additional Important Questions and Answers

खालील पठित पदय पंक्तींच्या आधारे सूचनेनुसार कृती करा.

चौकट पूर्ण करा.

प्रश्न 1.

  1. फाया ठेवण्याची जागा –
  2. हा पक्षी होऊन गायचे आहे –
  3. रंगपंचमी खेळून हे भिजले –
  4. तोरण लावण्याची जागा –

उत्तर:

  1. कान
  2. कोकिळ
  3. फुलपाखरू
  4. दार

योग्य पर्याय निवडा.

प्रश्न 1.

  1. बहरात वसंतमधल्या तो सूर (सावळा / बावळा / कावळा) ऐकत.
  2. हा थवा असे (रंगीत / संगीत / मनगीत / पताकाच फिरणारी.
  3. हे उधाण (दुःखाचे / भीतीचे / आनंदाचे) ही देवाघरची गाणी.

उत्तर :

  1. सावळा
  2. रंगीत
  3. आनंदाचे

अभिव्यक्ती :

प्रश्न 1.
खेळून रंगपंचमी, फुलपाखरे भिजली सारी
हा थवा असे रंगीत की पताकाच फिरणारी
या ओळीतील आशयसौन्दर्य स्पष्ट करा.
उत्तर :
कवी नलेश पाटील यांच्या ‘झाडांच्या मनात जाऊ’ या कवितेत कवी निसर्गापासून माणूस कसा आनंद घेऊ शकतो ते सांगण्याचा प्रयत्न करत आहे. फुलपाखरे ही निसर्गाचाच भाग, किती विविधतेने नटलेली असतात, अनेक रंग त्यांच्या पंखावर असतात. अल्प आयुष्य जरी असले तरी ते भिरभिरत जगताना दिसतात, कवी त्याच्या सौंदर्याकडे आकृष्ट होतो. त्याला वाटते की निसर्ग किंती वेगळ्या शता भिरभिम लागला की जण पताकाच फिरत आहेत असे वाटते. निसर्गाची विविध रंगरूपे असतात, त्यांना समजून घेऊन आयुष्याची संदर रंगपंचमी खेळता येऊ शकते. त्याकरता माणसाला समजन घेणं महत्त्वाचे आहे.

प्रश्न 2.
निसर्गातील एखादया घटकाकडून तुम्हांला शिकायला मिळाले त्या घटकाबद्दल तुमचे मत स्पष्ट करा.
उत्तर :
कवी नलेश पाटील यांच्या कवितेची शिकवण पाहता पाहता मी निसर्गाकडे वेगळ्या दृष्टीने पाहू लागलो. मला निसर्ग आवडतो. तो भरभरून आपल्याला देत असतो. त्यातल्या त्यात मी पृथ्वीकडून किती गोष्टी शिकण्यासारख्या आहेत हे पाहू लागलो. आपल्या अखंड मानव जातीचा भार ती उचलत आहे. मानवाने किती प्रगती केली, आदिमानवापासून ते आतापर्यंत त्याने केलेली प्रगती ही केवळ पृथ्वीच्या सहनशक्तीमुळे झालेली आहे असं मला वाटतं, इतक्या इमारती, इतकी वाहतूक त्याकरता पृथ्वीच्या गर्भाशयावर आपण सतत हल्ले करत असतो. तरी ती आपल्याला माफ करते. झीज सोसत राहते.

अनेकदा तिला आपण अस्वच्छ करत असतो तरी ती मूकपणे सारे सहन करते. तिचे स्वच्छता अभियान सुरू करतो. पण ते सुद्धा नीट पाळत नाही. तीन उन्हामुळे जमिनीची लाही लाही होते. ते आपण सहन करू शकत नाही पण पृथ्वी त्यालाही सामोरी जाते, तिच्या मनात खदखदणारा ज्वालामुखी सहन करत ती संयम ठेवून आपल्याला आधार देण्याचा प्रयत्न करत असते. ती अनेक गोष्टी आपल्या पोटात घेऊ शकते. ती सर्वांचा आधार असते. आपण तिच्यासाठी नेहमी कृतज्ञता बाळगायला हवी असे मला वाटते.

Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 झाडांच्या मनात जाऊ

झाडांच्या मनात जाऊ Summary in Marathi

प्रस्तावनाः

पालघर येथे जन्माला आलेले कवी नलेश पाटील हे इंग्रजी माध्यमात शिकूनही त्यांचा मराठीचा गाढा अभ्यास होता. मुंबईतील जे. जे. । इन्स्टिट्यूट ऑफ अप्लाइड आर्ट मध्ये त्यांचे शिक्षण झाले. ‘कवितेच्या गावा जावे’ या कवितेच्या कार्यक्रमात त्यांची विशेष ओळख समाजमानसात तयार झाली. ‘टूरदूर’, ‘हमाल दे धमाल’ या चित्रपटांसाठी त्यांनी गीत रचना केली. ‘हिरवं भान’ हा त्यांचा कवितासंग्रह, ‘नक्षत्रांचे देणे’ या दूरचित्रवाणीवरील कार्यक्रमातही त्यांच्या कविता गायल्या गेल्या.

गावात बालपण गेलेले त्यात नंतरच्या काळात रंगांची मिळालेली सोबत यांमुळे निसर्गाच्या विविध रंगप्रतिमा त्यांच्या काव्यात सापडतात. शब्द, लय, नाद, अर्थ यांचा विविधांगी प्रयोग त्यांनी आपल्या काव्यात केला. शब्दांतून चित्रमय मांडणी करणे यात त्यांचा हातखंडा आहे.

कवितेचा आशय:

निसर्ग आणि आपण एकमेकांशी इतके जोडले गेलो आहोत की एकमेकांपासून आपली ताटातूट होऊ शकत नाही. निसर्ग आपल्यावर अवलंबून नाही पण आपण मात्र क्षणाक्षणाला निसर्गावर अवलंबून आहोत. मानवाने स्वत:ची उत्क्रांती केली ती निसर्ग शिक्षणातूनच. हे नैसर्गिक शिक्षण त्याला त्याच्या संवेदनांपर्यंत पोहोचवतं. त्याच्या मनाला, विचारांना चालना देतं. कवीला या निसर्गाची नितांत ओढ आहे. त्याच्या प्रत्येक सोहळ्याशी तादात्म्य होण्याची उत्सुकता आहे. म्हणून निसर्गाच्या विविध रूपांचे दर्शन कवी या कवितेतून रेखाटतो.

त्याला वाटते झाडांच्या मनात जाऊन त्यांच्यावरील पानांचे विचार व्हावे. झाडांनाही मन असते. ते त्याच्या पानरूपी कृतीतून तो प्रकट करतो असं त्याला वाटतं. या झाडाचा पोपटी रंग आपल्या श्वासात उतरावा याकरता त्याला त्याच्या श्वासात उतरावे असे वाटते. त्यासाठी आपण कोकिळ व्हावं असं त्याला वाटते, वसंतरूपी बहर आला की कोकिळ गाऊ लागतो. तो निसर्गाचेच जणू गीत गातो. आपल्याला सुद्धा निसर्गगीत गायचे असेल तर कोकिळ व्हावे लागेल.

वसंतातील बहर फुलत जातो. सावळ्या रंगाचा कोकिळ त्याचा सूर लावत जातो. वसंतात अनंत फुले फुलून येतात त्या फुलांचा गंध सर्वत्र पसरत जातो. अनेक जन्मांना त्यांचे अत्तर पुनरुज्जीवन देत असते. या पाखरांच्या, रानाच्या सुराबरोबर आपण त्या सुगंधी अत्तराचा फाया कानामध्ये ठेवू. त्यामुळे आपलेही जगणे सुगंधी, सुरेल होईल.

बागेत, रानात फिरणारी भिरभिरणारी फुलपाखरे पाहून कवीला वाटते की ही फुलपाखरे जणू काही रंगपंचमीच खेळून बाहेर पडली आहेत. या फुलपाखरांचे विविध रंग कवीला आकषून घेतात. या फुलपाखरांचा थवा उडत असताना त्यांच्या भिरभिरत्या पंखांमुळे या हलणाऱ्या पताकाच आहेत असे कवीला वाटते. हे छान रंगीबेरंगी तोरण दाराला आणून लावावे असा मोह कवीला फुलपाखरांच्या रंगांकडे पाहून होतो.

रानातील झरे निर्मळपणे वाहत असतात, त्यांच्या वाहण्यातच संगीत असतं. हे झरे जणू काही परमेश्वराचे डोळे आहेत असं कवीला वाटतं. या डोळ्यात झऱ्याचे पाणी भरभरून वाहत आहे. हा आनंद आहे की देवाने आपल्याकरता पाठवलेली गाणी आहेत असा प्रश्न कवीला पडतो. या झयाच्या गाण्याच्या ऋतूत आपणही खळाळत जाऊ, या प्रवाहात एकरूप होऊ आणि पाण्यासारखे निर्मळ राहू असं कवीला वाटतं.

पाण्याशी एकरूप होताना कवीचं मन तिथल्याच एका खडकावर बसून जातं. आजूबाजूला असणारी कारंजी मनसोक्तपणे थुईथुई करत आनंद घेताना दिसतात. यातील हे कारंज्याचे रोप कवीवर आपले तृषार उडवून त्याला न्हाऊ घालण्याचा प्रयत्न करीत आहेत.

या निसर्गाशी एकरूप होता होता कवी अलगद आपल्या ओंजळीमध्ये आकाश धरू पाहतो. या आकाशाला ओंजळीत घेऊन कवी अवघ्या पाण्याची ओटी भरतो तर हातात ऊन येऊन बसते, डुचमळते आणि त्या पाणभरल्या ओंजळीत सूर्याचे प्रतिबिंब पोहायला लागते. असा पाणी, प्रकाशाचा खेळ निसर्गात राहूनच अनुभवता येतो.

निसर्गातील विविध रंगांचे पक्षी तरी किती? या पक्ष्यांचासुद्धा हंगाम असतो. त्या हंगामात ते ते पक्षी आपल्याला दर्शन देतात. हे पक्षी झाडांवर रमतात. त्याच्या बुंध्यात, खोडात आपले अस्तित्व दाखवतात. झाडांच्या सावल्या इतरत्र पसरलेल्या पाहन त्या उन्हावर जण नक्षी काढत आहेत. असं कवीला वाटतं. मग या झाडांवर बसलेले काऊ, चिऊ उडू लागले की ते सावलीतुनहीं प्रकट होतात, दिसू लागतात ते पाहून कवीला वाटतं की या सावल्यांनाच जणू पंख फुटले आहेत. या सुंदर निसर्गात रमता रमता कवीला वाटतं की जिथे मानवी स्पर्श होणार नाही, खूप फुलपाखरं जिथं असतील अशा रानात हे परमेश्वरा मला झाड बनून जन्माला घाल, तिथे मी माझे बाहू पसरून बसेन आणि या सृष्टीचा एक भाग होऊन त्यासवे जगण्याचे गीत गाईन.

Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 झाडांच्या मनात जाऊ

समानार्थी शब्द / पर्यायी शब्द :

  • स्पंदन – श्वास – (breathing, breath).
  • फाया – अत्तर लावलेला कापसाचा बोळा, अत्तराचा अंश – (fragrant, essence).
  • पताका – ध्याना – (lag).
  • करणी – कृत्य, कृती, क्रिया – (act).
  • तुषार – पाण्याचे फवारे (spray of water) – कारंजाचे पाणी.
  • डुचमळते – हलते.
  • खडक – दगड – (hard stone / rock).
  • नक्षी – वेलबुट्टी – (design, decoration).

Maharashtra Board Class 11 English Yuvakbharati Solutions Chapter 4.3 Extracts of Drama

Balbharti Yuvakbharati English 11th Digest Chapter 4.3 Extracts of Drama – (B) An Enemy of the People Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

Maharashtra State Board Class 11 English Yuvakbharati Solutions Chapter 4.3 Extracts of Drama – An Enemy of the People

11th English Digest Chapter 4.3 Extracts of Drama – An Enemy of the People Textbook Questions and Answers

Character:

Question 1.
Mayor Peter Stockmann is a contrast to Dr. Thomas Stockmann. Justify.
Answer:
There are lots of good things you can say about Dr. Stockmann, the protagonist of ‘An Enemy of the People’. He is an idealist and a man having great love and care for his family. He is generous with his neighbors and truly cares for his fellow men. Despite his troubles, he wishes to make the world a better place. Most importantly, the doctor is a man of principles willing to fight for justice no matter what it costs.

On the contrary, Mayor Peter Stockmann, his brother is a practical man. He is the antagonist in the play who is less worried about the common men in the city. Throughout the play, the Mayor, Stockmann mercilessly tries to ruin his brother’s life in order to keep the truth from being revealed. He hardly shows any affinity towards his brother. He never shows any feeling of guilt for the fact that he’s totally messing up the life of a family member.

Maharashtra Board Class 11 English Yuvakbharati Solutions Chapter 4.3 Extracts of Drama

Question 2.
Write the character sketch of Dr. Stockmann.
Answer:
Dr. Stockmann is the brother of the Mayor, Peter Stockmann and the protagonist/hero of the play. He is a practising medical doctor and the medical officer of the town baths. He is an ideal person who has great love for family, fellow citizens and social values. Dr. Stockmann believes strongly in individual freedom and the right of every man to express himself freely.

He is a man of morality and truth and is ready to fight against injustice. He tries to raise his voice against the hypocritical ways of his brother and the members of conservative government. The play revolves around his struggle to give justice to common men of the city. Finally, his fruitless efforts lead him to such misfortune to ruin everything in his profession and life. However, he is not ready to give up his efforts for truth. We see him as a man of patience and strength when he remarks – “The strongest man in the world is he who stands alone!”

3. Read the given extract.

Question (i)
Complete the following table. (Answers are given directly in bold)
Answer:

Character Supportive Character Incident
1. Dr. Stockmann (a) Mrs. Stockmann
(b) Petra Stockmann
(a) Ready to stand with him in every difficulty.
(b) Joins her father in his fight against injustice.
2. Peter Stockmann (a) Aslaksen
(b) Hovstad
(a) To stand in opposition of Dr. Stockmann
(b) Turned to the Mayor’s side in the final scene.
3. Aslaksen (a) Dr. Stockmann
(b) Tradesmen
(a) Trusted him for printing the article.
(b) Gave their support to him.

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Question (ii)
Match the column ‘A’ with column ‘B’

Column ‘A’ Column ‘B’
1. Dr. Thomas Stockmann Opportunist
2. Katherine Vulnerable
3. Peter Honest and upright
4. Petra Coward
5. Hovstad Timid but supportive
6. Billing Cunning and corrupt
7. Aslaksen Courageous

Answer:

Column ‘A’ Column ‘B’
1. Dr. Thomas Stockmann Honest and upright
2. Katherine Vulnerable
3. Peter Cunning and corrupt
4. Petra Courageous
5. Hovstad Timid but supportive
6. Billing Opportunist
7. Aslaksen Coward

Plot:

Question 1.
Describe the climax scene in your own words. Write your comments on it.
Answer:
In the final scene, Dr. Stockmann realizes that no one is going to support him to publish the article as no one is ready to take any step against the Mayor. So, Stockmann asks Hovstad to give him back his papers (article). He announces in front of the Mayor that he will read out the article in a mass meeting for everybody to hear the voice of truth. But, the Mayor assures him that no one will lend him a hall in the city to do this.

Billing and Hovstad have also the same opinion. Mrs. Stockmann feels shameful to know the fact that no one is willing to give her husband a hall. She is rather shocked to know that everyone has turned against her husband. Dr. Stockmann is ready to hire a drum to walk on the city streets reading the article. It shows his determination to reveal the truth at any cost. All the family members are ready to stand with Dr. Stockmann in his sincere efforts to purify the society.

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Question 2.
Describe in your own words the incident when Hovstad’s real intention to help Dr. Stockmann is exposed.
Answer:
When Dr. stockmann reached Hovstad’s office, he notices the Mayor’s stick and hat and suspects him of hiding in the next room. Dr. Stockmann enquired if Hovstad was going to publish the article in ‘People’s Messenger’. Hovstad answered him that he had to wait for publishing the article.

Hovstad didn’t refuse him but was not ready to publish it. He was under the influence of the Mayor and had personal interest. In addition, both Billing and Aslaksen supported the editor. Dr. Stockmann approached to Aslaksen for requesting him to atleast print the article as a pamphlet. However he denied doing so. Finally, Hovstad refused to print the article saying it would ruin doctor’s family. Here, the Dr. realized Hovstad’s real intention of not printing the article as he was doing everything to protect himself.

3. Write down the consequences of the following occurrences, with the help of the play.

Question (a)
Dr. Thomas Stockmann wants an article exposing social evils to be printed in the newspaper.
Answer:
Dr. Stockmann was an idealist and a lover of truth. When he came across the unhygienic condition of the baths which was a direct threat to the health of the people, he decided to publish the article in the newspaper exposing the Mayor and his cronies. This would directly affect the ruling government to lose their seats. In addition, it would raise public outcry against the social injustice of the Mayor and his stakeholders had to pay a large amount to rectify the issue.

Question (b)
The Mayor, Peter Stockmann persuades Mr. Hovstad and Mr. Billing from printing the article.
Answer:
The Mayor entered Hovstad’s office through the back doors. He didn’t want to let Dr. Stockmann know about his visit to Hovstad. When he met Hovstad and Billing, he told them that Dr. Stockmann is a headstrong man and had some wrong informations about the condition of the baths.

He also praised both Hovstad and Billing and assured them that he had another article to publish which would clear the doubts of all regarding the baths. He indirectly assured them to have their favour in this matter if they supported him. As Dr. Stockmann came to know about the Mayor’s visit to Hovstad’s office to persuade them, he was of the firm opinion that they would not publish his article.

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Question (c)
Aslaksen declares that he would not print Dr. Stockmann’s article.
Answer:
As the Mayor told Aslaksen his idea of raising the money from the small tradesmen, Aslaksen thought that Dr. Stockmann’s idea of extensive alternation of the baths was unrealistic. So he decided not to print the article in the newspaper and save the small tradesmen from this unnecessary burden. As Aslaksen denied printing the article, Dr. Stockmann assured them that he would read the article in the mass meeting or raise the issue on the streets of the city. He would anyway expose the ruling government and give justice to common men.

Question (d)
Katherine encourages Dr. Stockmann to proceed in his attempts in the cause of public attempts.
Answer:
When the Mayor and his supporter opposed Dr. Stockmann, Mrs. Stockmann felt shameful that all of them turned against her husband. She put her arm onto his neck and told him that she was ready to stand with him. She encouraged him not to give up his idea and she and her children would help him in his mission. She finally promised to support him till the end. She added that her children Morten, Ejlif and Petra would follow him on the streets of the city.

Setting:

Question 1.
The setting of the act is the office of the newspaper ‘The Herald’. Explain how it is the proper background for the theme of the play.
Answer:
This act is set in the editor’s room at the office of ‘People’s Messenger’. One door leads to the printing office and another to the rest of the offices. There is a large table in the middle covered with books, papers and newspapers and there is a desk at the window. The room is described as ‘dingy and cheerless’.

The setting of the play is appropriate to the theme as the single door opening shows that truth is the only way to be followed by everyone. The dingy and clumsy atmosphere and old furniture urge need of change and renovation in the existing situation. The table covered with books and newspapers is a symbol of chaos and anarchy in the government.

The window stands for a ray of hope in the darkness of injustice. A few closed chairs symbolize time to wind-up prevailing conservative government and bring in new liberal governance. The glass panels stand for transparency and clarity in every section of the government.

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Question 2.
Explain the use of the following property in the development of the play.
Answer:
(a) Hat – Hat plays an important role in the development of the play. It stands for the city’s authority, ‘the Mayor’ as it was a part of the official uniform. When Dr. Stockmann put on the hat, he told his brother that the entire city was in his hand. He also added that with that supreme power he would throw him off the existing government. Dr. Stockmann saw the Mayor’s hat in the editor’s room and could realize that the Mayor was hiding in the next room, listening his conversation with the editor. This made him understand the Mayor’s plot of ruining his article.

(b) Stick – The stick at certain instances was a symbol of assertiveness, commitment, new ideas or sticking to the old things. The stick in Dr. Stockmann’s hand suggests his assertiveness, commitment and new ideas in the existing government with the support of everyone. But the stick in the Mayor’s hand, suggests that the whole situation was groomed by him to turn against Dr. Stockmann. The stick in the hand of the Mayor also proves his authority and command over other people.

(c) An envelope containing the letter – The envelope of the letter focuses over the issue of grievance which everyone keeps by hiding a secret. Dr. Stockmann took various efforts to expose the issue but finally Hovstad returned the envelope to him, which suggests how everyone tried to conceal the burning issue. The issue needed immediate attention, but was hidden from the public as the letter was hidden by the envelope.

3. Explain the following statements with reference to the context.

Question (a)
And then, once the ring is broken, we’ll get to work and show the public every day just how incompetent the Mayor is!
Answer:
When both Hovstad and Billing read Dr. Stockmann’s article, they were shocked to know that the article would bring a revolution in the city. Hovstad was ready to publish that article the next day in ‘People’s Messenger’. Billing thought that if the Mayor didn’t like it then it would be a great trouble for them. But Hovstad was ready to take the risk as the problem was acute.

The Mayor would be in trouble from either by the small tradesmen and the householders’ association or by the shareholders in the bath. Anyhow the ring would be a broken and they would get a chance everyday to expose the Mayor through the newspaper and the entire government would go in the hands of the liberals.

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Question (b)
From now on The Herald shall be my artillery.
Answer:
Billing, Aslaksen, Hovstad and Dr. Stockmann were discussing about the article. Hovstad was ready to publish the article in the ‘People’s Messenger’ on the next day only. Seeing this Aslaksen agreed with Hovstad to print whatever he wished to print. Dr. Stockmann was of the opinion that it would disrupt on the entire system.

Dr. Stockmann told them that the Mayor and his cronies tried to persuade him by all means but he was determined to publish the article at any cost. Now, Dr. Stockmann considered ‘People’s Messenger’ as his sheet-anchor (additional support)to use it as an artillery to attack on the Mayor with one article after another.

Question (c)
You ought to be ashamed of yourself.
Answer:
Petra visited Hovstad and she told him that she could not translate the novel he had given her. Hovstad asked the reason why she could not translate that book. She answered that the book was unrealistic and she didn’t find it to be read by the common men. At that time, Petra came to know Hovstad’s original intention not printing her father’s article revealing the truth. She thought him as a loyal person but he turned a traitor. So she said that he ought to be ashamed of himself.

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Question (d)
Because your father can’t do without my help.
Answer:
Petra did not wish to translate the book as it was unrealistic. When she asked Hovstad about her father’s article, Hovstad told her that he was not going to print the article. She sensed the intention of Hovstad and his behaviour. She did not like his way of looking at the truth. She got upset when Hovstad told her that she was fighting against it as it was only a matter of her father. She became furious as she heard his remarks that her father couldn’t do anything without his help. She got to know the attitude of Hovstad to support the Mayor in the issue.

Question (e)
And it’s by no means the small sacrifice the town will have to make.
Answer:
The Mayor tried hard to persuade Aslaksen and Hovstad that they should not support Dr. Stockmann in his attempts to publish the article as it was not in favour of the small tradesmen and the householders. If the Mayor would go for the extensive alteration of the baths, the town would have to sacrifice. It would incur great expenditure on the municipal.

As a result, they would have to put extra burden of taxes over the tradesmen and commoners. In addition, the baths would be shut down for two years. In such condition, the householders would have to suffer a lot. Eventually, the city would have to be ready to make the sacrifice but Aslaksen was in no mood to put the additional burden over the tradesmen and householders.

Maharashtra Board Class 11 English Yuvakbharati Solutions Chapter 4.3 Extracts of Drama

Glossary:

  1. sledgehammer – mallet or a heavy hammer used for breaking rocks
  2. chicken-hearted – cowardly or easily frightened
  3. prudent – wise and sensible, shrewd
  4. bombard – attack/ assault/ bother
  5. bigwigs – VIP or important persons
  6. mince – cut/ chop/ crumble
  7. salvation – deliverance/ escape/ rescue
  8. alderman – an elected member of a city council /next in status to the mayor
  9. compositor – a person who arranges the text and pictures of a newspaper or a book before it is printed
  10. trembling – shake/shiver/vibrate
  11. dingy – dull/colourless
  12. hypocrite – fraud/ deceiver/ pretender
  13. trivial – unimportant/ little/ worthless
  14. subscription – membership fee/ donations/ contribution.

Maharashtra Board Class 11 English Yuvakbharati Solutions Chapter 4.3 Extracts of Drama

Balbharti Yuvakbharati English 11th Digest Chapter 4.3 Extracts of Drama – (A) A Midsummer – Night’s Dream Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

Maharashtra State Board Class 11 English Yuvakbharati Solutions Chapter 4.3 Extracts of Drama – A Midsummer – Night’s Dream

11th English Digest Chapter 4.3 Extracts of Drama – A Midsummer – Night’s Dream Textbook Questions and Answers

Characters:

1. Choose the odd one out.

Question (i)
Bottom, Moth, Mustard seed, Cobweb
Answer:
Bottom

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Question (ii)
Flute, Snug, Quince, Cobweb
Answer:
Cobweb

Question 2.
Match the columns.

Column ‘A’ Column ‘B’
(a) Theseus 1. Robin Goodfellow
(b) Titania 2. Queen of the Amazons
(c) Puck 3. Duke of Athens
(d) Hippolyta 4. Fairies
(e) Cobweb, Moth 5. Queen of the fairies

Answer:

Column ‘A’ Column ‘B’
(a) Theseus 3. Duke of Athens
(b) Titania 5. Queen of the fairies
(c) Puck 1. Robin Goodfellow
(d) Hippolyta 2. Queen of the Amazons
(e) Cobweb, Moth 4. Fairies

Question 3.
Draw a character sketch of Oberon as an enemy of his wife but a friend of lovers.
Answer:
Oberon, the king of fairies, is shown having two faces. On the one hand, he is shown hatching a plan with the help of Puck by using ‘Love in Idleness’ ensuring that the proper lovers end up loving each other. He is also shown sympathising Helena on seeing Demetrius’ cold behaviour towards her. He brings blessings, good health and peace to all the newly married couples towards the end.

On the other hand, in his dealings with his wife Titania, Oberon is potrayed as a wicked man. At the beginning of the play, Oberon is shown fighting with Titania over the custody of an Indian boy. Here, he is however, trying to prove his authority as a male and win the boy. He also tricks his wife by casting a spell upon her that leaves her fall in love with Bottom. He then releases the spell off her when he gets what he has wanted – The boy.

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Question 4.
Comment on the loving pair of Lysander and Helena from the point of view of developing their character sketch.
Answer:
Hermia and Lysander loved each other and they eloped in the forest to get married. Helena loved Demetrius but it was the effect of the love potion which was applied to Lysander’s eyes when he slept. Therefore, as he woke up he saw Helena and he started developing feelings for her. But Helena loved Demetrius. On her part Helena was very right. At the end both found their right companions Helena – Demetrius and Lysander – Hermia.

Setting:

1. Correct the given sentences with justification.

Question (i)
The play is restricted to only a part of the woods.
Answer:
The play is not restricted to only a part of the woods because the references, Quince’s cottage, in the another part of the wood etc., are there in the play.

Question (ii)
Since there is a reference to the Indian boy, there are some scenes from India too.
Answer:
The reference to the Indian boy is found in Act II scene I as Puck says “A lovely boy, stolen from an Indian king” and when Titania said that his mother was a votaress of my order and in the spiced Indian air. The reference of Titania’s Indian friend is also found.

Question 2.
The characters are a part of the stage setting. How does this reflect when the characters of the play range from the Duke and the Indian boy to the fairies?
Answer:
Characters are a part of stage setting. This reflects in ‘A Midsummer Night’s Dream’ from the Duke in the palace as he instructs Philostrate to arrange for the celebration with great revelry. However, in the another part of the wood Oberon and Titania struggle for the custody of the Indian boy. Oberon uses love potion on the eyelids of Titania when she sleeps. As the setting of the stage changes the characters change accordingly. Because of the presence of the fairies and an Indian boy, the characters in the play range from real to imaginary.

Question 3.
What changes in the stage setting would you suggest.
Answer:
The characters are the part of stage setting and the play starts with Theseus, Duke of Athens as he wins the queen of Amazons, Hippolyta. But later, in their marriage celebration there are the king and the queen of fairies, Oberon and Titania as well as other fairies and elves as imaginary characters. Characters are arranged from real to imaginary. I suggest that all characters should be real humans.

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Question 4.
Comment on the versality and the aptness of the stage setting, as per the requirement of the play ‘A Midsummer Night’s Dream’.
Answer:
As per the requirement of the play ‘A Midsummer Night’s Dream’ the versality and the aptness of the stage setting go hand in hand. The play starts in the palace and then the stage of the play develops in two different parts of the wood. The stage-setting has been arranged according to the need of the characters and the plot. The characters are set accordingly onto the stage.

Plot:

Question 1.
State whether the following statements are True/False.

  1. Lysander and Demetrius fall in love with Helena as a result of the love potion.
  2. Oberon transforms Bottom’s head into that of an ass.
  3. Titania falls in love with an ass.
  4. Both Demetrius and Lysander fight for Helena.

Answer:

  1. True
  2. False
  3. False
  4. True

2. Give reasons:

Question (i)
Oberon and Titania fight for the custody of the Indian boy because –
(a) Oberon wants the custody of the Indian boy so that Titania would give him a lot time along with the boy.
(b) Titania wants the Indian boy because of her love and duty towards the small boy.

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Question 3.
The consequences of Oberon ‘s jealousy for Titania are comic rather than tragic, comment.
Answer:
Oberon was jealous of his queen Titania because she refused to give the boy to him . She fell in love with Bottom. Oberon decided to seek revenge on his queen. It was Oberon himself who made Titania to fall in love with Bottom who wa§ having the head of a donkey. Comic incident was created by that scene in the drama.

Question 4.
There were some reasons why Theseus was initially against but later gave consent for the marrige of Hermia with Lysander. Explain.
Answer:
The reasons why Theseus was initially against but later gave consent for the marrige of Hermia with Lysander because Hermia’s father’s wish was that she should marry with Demetrius and she disobeyed her father. The Duke wants that Hermia should follow the rules and decision of her father. But she eloped with Lysander. It was Hermia’s true love for Lysander that made Theseus to change his decision and agreed that Hermia should marry with Lysander.

Form:

1. Select the correct options.

Question (i)
A Midsummers Night’s Dream is a _______
(a) poetic drama
(b) comedy of errors
(c) comedy based on fantasy
(d) a character play
(e) a revenge tragedy
(f) belongs to realm of dreams.
Answer:
A Midsummer Night’s Dream is a comedy of errors.

Question 2.
Find 2/4 expressions of humour from the extract.
Answer:
Expressions of humour from the extract are:
1. Helena: You do advance your cunning more and more –
Lysander: I had no judgement when to her I swore.
2. Hermia: What’s this to my Lysander? Where is he? Ah, good Demetrius, wilt thou give him me ?
Demetrius: I had rather give his carcass to my bounds.
Hermia: Out dog / out cur/ thou drivest me past the bounds.

Maharashtra Board Class 11 English Yuvakbharati Solutions Chapter 4.3 Extracts of Drama

Question 3.
‘A Midsummer Night’s Dream’ is one of the best examples of Shakespeare’s comedy of errors. Comment.
Answer:
A Midsummer Night’s Dream is one of the best examples of Shakespear’s comedy of errors because it has all the features of comedy of errors like conflict between characters, resolution over the problem, cleared confusions between the love triangle, reunion and marriage. It all seem very funny and interesting.

Theme:

Question 1.
Shakespeare is acknowledged as the greatest writer because he understood human nature better than anyone else. Explain the statement in context of the of play.
Answer:
Many authors have tried to potray love as human nature, however, none could display it better than Shakespeare does in his plays. In this play – ‘A Midsummer Night’s Dream’ he explains human nature of ‘control’ through love. He has given a clear picturisation of how love controls a person in the character of Theseus as he forgives Hermia and allows her to marry her love Lysander. It reveals that true love prevails and finds solace.

Shakespeare also explains human nature of conflicts between family and friends. He gives a clear picturisation of conflict when the magic potion ‘Love in Idleness’ was wrongly used on Lysander and he falls in love with Helena because of which Hermia and Helena start a quarrel. Another conflict potrayed, is between the family, when Hermia is given three choices by her father – marry Demetrius, become a nun or die to which she rebels against her father and decides to elope to the woods to marry her love Lysander. Hence, Shakespeare is acknowledged as the greatest writer of human nature.

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Question 2.
Prove with the theme of the play/ extract that the deeper human emotion which profoundly interested Shakespeare, was jealousy.
Answer:
The theme of the play ‘A Midsummer Night’s Dream’ is love. Shakespeare portrays how people fall in love with those who appear beautiful to them. However, if one rejects other’s true love, then jealousy starts in the minds of the lovers. The same situation arises if one does not spend quality time with the other. In this play the example of Oberon and Titania is apt to describe human emotion.

Language:

Question 1.
Interpret the following lines in Simple English.
Puck: I’ll follow you.
Bottom: The finch, the sparrow.
Answer:
The song is sung by Bottom to try to keep his courage up as Puck has just turned his head into that of an ass. This transformation scared everyone around him and he is alone in the forest. But his song awakens Titania who falls in love with him immediately and the use of appropriate words and songs are there for the other parts of the wood also.

2. Comment on the literary device, used in the following lines.

Question (i)
Titania: Be kind and courteous to this gentleman
Answer:
Tautology. The words kind and courteous denote the same meaning to give dramatic effect.

Question (ii)
Titania: Come wait upon him: lead him to my bower.
Answer:
Repetition. The word him is repeated two times to give dramatic effect.
Apostrophe. Time has been addressed by Titania to other fairies.

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Question 3.
Shakespeare’s poetry has come to be valued for its own sake on the stage. Comment with reference to the play ‘A Midsummer Night’s Dream’.
Answer:
Shakespeare’s poetry, in his ‘A Midsummer Night’s Dream’ is found outstanding and valued for it’s own sake on the stage. The expressions of love through poetry made his drama lively and interesting. Through the poetic language Shakespeare underlined the truth of human nature and through poetic expressions made the critical moments easier.

Yuvakbharati English 11th Digest Chapter 4.3 Extracts of Drama – A Midsummer – Night’s Dream Additional Important Questions and Answers

Question 1.
Then will two at once woo one;
That must needs be sport alone:
Answer:
Reference : These lines are taken from William Shakespeare’s famous comedy ‘A Midsummer Night’s Dream’. Act III scene II.
Context: The lines are said by Puck as he applied love potion on the eyelids of Demetrius with negligence. Explanation : In ‘A Midsummer Night’s Dream’, a comic character Puck was told by Oberon, the king of fairies to use the love potion on the eyelides of Demetrius so that he wakes up and sees Helena and will fall in love with her.
But Puck uses the love potion on the eyelids of Lysander, supposing him to be Demetrius. Helena sees the first person Lysander after waking up and falls in love with her instantly. A misunderstanding of Puck made a chaotic situation between the lovers.

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Question 2.
Shakespeare’s poetry has come to be valued for its own sake on the stage. Comment with reference to the play ‘A midsummer Night’s Dream’
Answer:
In midsummer night’s dream, Shakespeare’s used theatrical circle simply as fantasy. In order to made it more effective he used poetic lines for enlightening the beauty of the actions in the drama. These poetic lines revealed the nature of characters and developed poetic structure of the drama.

Extracts of Drama – A Midsummer – Night’s Dream Summary in English

In the Palace:

Theseus, Duke of Athens wins Hippolyta in war and they are to be married. So, he instructs Philostrate to arrange for the celebration.

Egeus, the father of Hermia wants his daughter to be married with Demetrius. But she refuses to marry Demetrius as she is in love with Lysander. The Duke Theseus urges her to obey her father and gives her three alternatives: (1) marry Demetrius (2) become a nun or (3) suffer a death sentence. Hermia has time to decide until Theseus, The Duke of Athen’s marriage.

Hermia and Lysander decide to elope to the woods and get married but, Demetrius who used to love Helena, now rejected her love and is interested in Hermia. Hermia tries to win back the love of Demetrius for Helena. As Hermia elopes with Lysander, Demetrius follows her and Helena follows Demetrius.

At the Quinces Cottage:

The workmen from Athens wish to perform a play ‘Pyramus and Thisby’ at the Duke’s wedding. They all plan to meet in the forest for the rehearsal.

In the Woods:

A different world has been seen in the woods. The king of fairies, Oberon and Queen of fairies, Titania are having a fight over the custody of an Indian boy. To teach a lesson to her, Oberon, with the help of Puck, a mischievous spirit, plans to use the magic potion ‘Love in Idleness’, the juice if poured on the eyelids of a sleeping person, makes his/her fall madly in love with the first person he/she sees after waking up. He thus plans to madden Titania and get the custody of the Indian boy.

Oberon then sees Demetrius’ cold behaviour towards Helena and tries to help them by developing feelings in the heart of Demetrius for her. Therefore, he asks Puck to squeeze the magic juice on the eyelids of Demetrius Taking Lysander for Demetrius, Puck squeezes the magic juice on his eyelids.

Helena who enters the wood following Demetrius, proves to be the first person Lysander sees after waking up and falls in love with her instantly. Titania found too much interested in Bottom, one of the workmen of Athens. Puck bewitches him by transforming his head into that of an ass and it bewildered Titania.

In the Another Part of the Wood:

Puck wins the heart of Oberon for punishing Titania and Bottom. But when Oberon realises Puck’s mistake of using magic potion for Lysander instead of Demetrius, he himself squeezes it on the eyelids of Demetrius and orders Puck to fetch Helena as he wakes up to restore the love of Demetrius for Helena. He also corrects the relations of Lysander with Hermia as well as orders Puck to restore Bottom’s head and feels sorry for Titania.

Theseus, Hippolyta and Egeus enter and see the four Athenians and the love between them. He allows Demetrius and Helena and Hermia and Lysander to marry. At last, in the final scene, ‘Pyramus and Thisbe’ was performed for the marriage ceremony of Theseus and Hippolyta in the presence of Oberon and Titania with their fairies and elves to sing and dance and bless the newly wedded. Thus, the play ‘A Midsummer Night’s Dream’ ends on a happy note.

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Glossary:

  1. night-rule – dark deeds,
  2. consecrated – sacred,
  3. dote on – to love,
  4. extremity – whole heartedly,
  5. patches – clowns,
  6. nuptial – marriage/ matrimonial/ moments of nuptial bliss,
  7. nole – head,
  8. mimic – commie actor,
  9. russet-pated choughs – birds of the crow family with reddish, brown (or grey) heads,
  10. sever – separate from each other,
  11. stamp – a noise made by bringing one’s foot heavily on the ground but, here – thing like ‘trick’ (i.e. giving
  12. Bottom an ass’s head),
  13. yielders – those who yield (giving up or surrender),
  14. latch’d – leached, anointed (love juice),
  15. ey’d – seen,
  16. antipodes – the opposite side of the earth,
  17. venus – the evening star,
  18. carcass – dead body,
  19. mispris’d – mistaken,
  20. an – and (or) even,
  21. adder – circuit,
  22. debt that bankrupt sleep doth sorrow owe – sleepless due to sorrow,
  23. confounding – confusing and breaking,
  24. Ioi tartars bow – weapon used by the Asian warriors who invaded Europe in the 13 century,
  25. cupid’s archery – Roman God of love,
  26. a lover’s fee – love requited,
  27. fond pageant – silly behaviour,
  28. tales – untrue stories,
  29. sport alone – fun by itself,
  30. devilish holy – a conflict between two truths,
  31. nymph – nature goddess,
  32. Taurus – a mountain range in Turkey,
  33. superpraise – praise excessively,
  34. conjure – summon/call,
  35. disparage – regards being of little worth,
  36. englids – brightens,
  37. confederacy – plot/plan,
  38. chid – rebuked/scold,
  39. artificial gods – creators of works of art,
  40. union in partition – two in one,
  41. incorporate – united,
  42. so in grace – so much in favour/in a good condition,
  43. ethiope – black face, but actually a scornful reference to her dark hair,
  44. canker blossom – a flower blighted by a worm lodged in the bud,
  45. stealth – stealing away,
  46. fond – foolish,
  47. suffer her to flout – allow her to mock,
  48. knot grass – a weed which creeps and makes entangling roots,
  49. officious – meddlesome/self assertive enthusiastic,
  50. aby – pay a heavy penalty,
  51. check by jowl – closely,
  52. king of shadows – fairy kings,
  53. sort – occur,
  54. welkin – sky,
  55. Acheron – the world of dead,
  56. rail thou – use violent language,
  57. Aurora’s harbinger – forerunner of the dawn (the morning star),
  58. wormy beds – graves,
  59. Neptune – the ocean, in ancient mythology,
  60. hither (archaic word) – to or towards this place,
  61. constraineth (archaic word) – to impose limitations,
  62. crust – (archaic words)to curse,
  63. a knavish lad – a mischievous boy,
  64. woe – great sorrow,
  65. bedabbled – sensuous,
  66. briers – wild shrubs,
  67. mare – an adult female horse,
  68. stalls – work-benches,
  69. barren – stupid/brainless,
  70. Anon – quickly,
  71. the creeping fowler eye – wild geese keep a close watch on hunter who is creeping up to shoot,
  72. of force she must be ey’d – inevitably (perforce) she will be seen,
  73. lay breath so bitter on your bitter foe – speak so bitterly to no one but your bitter enemy,
  74. may be bored – may have a hold driven right through it,
  75. dead – pale and bloodless,
  76. touch – feat,
  77. tender – attention and care,
  78. look – be sure,
  79. cheer – countenance.

Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.3 अनुवाद

Balbharti Maharashtra State Board Marathi Yuvakbharati 11th Digest Bhag 4.3 अनुवाद Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

Maharashtra State Board 11th Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.3 अनुवाद

11th Marathi Digest Chapter 4.3 अनुवाद Textbook Questions and Answers

कृती

प्रश्न 1.
फरक स्पष्ट करा. (प्रत्येक प्रकाराचे एक उदाहरण अपेक्षित)

(अ) अनुवाद-भाषांतर
उत्तरः
भाषांतर : म्हणजे एका भाषेतील आशय जसाच्या तसा दुसऱ्या भाषेत नेणे. उदा. विज्ञान तंत्रज्ञान या विषयावर आधारित पुस्तकांचे भाषांतर हे जसेच्या तसे केले जाते किंवा सरकारी अधिनियम जसे आहेत तसेच भाषांतरीत केले जातात. पूर्वीच्या काळी ख्रिस्ती धर्माच्या प्रसारासाठी बायबलचे मराठीत भाषांतर झाले. दोन भिन्न भाषिक व्यक्ती, समाज एकत्र येतात तेव्हा भाषांतर अपरिहार्य ठरते. अनुवाद : अनुवाद या शब्दाची उत्पत्ती संस्कृतमध्ये शोधता येते.

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मूळ धातू ‘वद’ म्हणजे बोलणे ‘अनु’ हा त्याचा उपसर्ग याचा अर्थ ‘मागील’. थोडक्यात आधी कोणी सांगितल्या नंतर सांगणे म्हणजेच श्रीकृष्णाने आधी गीतेत तत्त्वज्ञान सांगितले. तेच तत्त्वज्ञान संत ज्ञानेश्वरांनी भावार्थदीपिकेत सांगितले. म्हणून संत ज्ञानेश्वरांनी गीतेचा अनुवाद केला असे म्हटले जाते. थोडक्यात शब्द, संरचना, शैली यांपेक्षा एकूण आशयावर भर देऊन केलेले भाषांतर म्हणजे अनुवाद होय. उदा. डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम यांच्या wings of Fire या आत्मचरित्राचा मराठीत ‘अग्निपंख’ या नावाने माधुरी शानबाग यांनी केलेला अनुवाद.

(आ) रूपांतर-स्वैर अनुवाद
उत्तरः
रूपांतर : एखादया वाङ्मयप्रकारातील कलाकृती दुसऱ्या वेगळ्या वाङ्मयप्रकारात नेणे म्हणजे रूपांतरण होय. उदा. नटसम्राट या वि. वा. शिरवाडकर लिखित नाटकावर आधारित मराठीत ‘नटसम्राट’ या नावाने सिनेमा निघाला. मिलिंद बोकील यांच्या ‘शाळा’ या कादंबरीवर आधारित ‘गमभन’ हे नाटक तसेच ‘शाळा’ हा मराठी चित्रपटही आला. स्वैर अनुवाद : स्वैर अनुवादात मूळ साहित्यकृतीमधील भौगोलिक, सामाजिक, सांस्कृतिक वातावरण अनुवादित साहित्यकृतीत बदलले जाते. उदा. विसाव्या शतकातील श्रेष्ठ जर्मन नाटककार, दिग्दर्शक, संगीतज्ज्ञ, कवी आणि तत्त्वचिंतक ब्रेश्ट यांच्या ‘द थ्री पेनी ऑपेरा’ या मूळ जर्मन नाटकाचं पु. ल. देशपांडे यांनी तीन पैशाचा तमाशा’ हे स्वैर रूपांतर केले आहे.

प्रश्न 2.
अनुवादाची कार्यक्षेत्रे स्पष्ट करा.
उत्तर :
भारतात अनेक प्रांत, अनेक भाषा एकत्र नांदत असल्यामुळे इथे नेहमीच प्रांतिक अनुवाद होत असतात याशिवाय जागतिकीकरणामुळे इंग्रजीचे महत्त्व वाढले आहे. विविध विषयांची अद्ययावत माहिती इंग्रजीत उपलब्ध आहे. इंग्रजीतील हे ज्ञान विविध भाषांमध्ये जाण्याची प्रक्रिया निरंतर घडत असते. म्हणूनच अनुवादकांना आजच्या युगात अत्यंत महत्त्व आहे. महाराष्ट्रात अनुवादासाठी स्वतंत्र भाषा संचालनालय निर्माण झालेले आहे. त्यासाठी भाषा सल्लागार मंडळ अस्तित्वात आहे. पूर्वी अनुवाद हे साहित्याचे केले जात. आज तंत्रज्ञान विज्ञान इ. वेगवेगळ्या विषयांचे अनुवाद होत आहेत.

रेडिओ, दूरचित्रवाणी, चित्रपट या माध्यमांत अनुवादाच्या मोठ्या संधी उपलब्ध ओत. अनेक आंतरराष्ट्रीय वाहिन्या आपले कार्यक्रम विविध प्रादेशिक भाषांमध्ये घेऊन येण्यासाठी उत्सुक असतात. त्यांना सातत्याने अनुवादकांची गरज लागते. बहुराष्ट्रीय कंपन्या जगभर पसरलेल्या असतात. त्यांच्या उत्पादनांना, सेवांना लोकांपर्यंत घेऊन जाण्यासाठी त्यांना स्थानिक भाषेत जाहिराती दयाव्या लागतात. यासाठी अनुवादकांची गरज असते. शिक्षण क्षेत्राचा विस्तार झपाट्याने होत आहे. त्यातील ज्ञान विविध लोकांपर्यंत विविध भाषांमध्ये पोहोचवण्याची गरज असते. यासाठीही अनुवादकांची गरज असते.

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प्रश्न 3.
अनुवाद क्षेत्रातील व्यवसायाच्या संधी तुमच्या शब्दांत नमूद करा.
उत्तर :
अनुवादामुळे सामाजिक, वैचारिक जडण घडण होते. त्यामुळे लक्ष्य भाषा संपन्न होतेच शिवाय नवीन वाङ्मयीन प्रवाह निर्माण होतात. उदा. मराठी दलित साहित्याच्या प्रेरणेमुळे हे गुजराथी दलित साहित्य निर्माण झाले. म्हणूनच ज्यांना दोन किंवा त्यापेक्षा जास्त भाषा येतात त्यांना अनुवादाच्या क्षेत्रात प्रचंड मागणी आहे.

भारतातील संपूर्ण भाषांतर कार्यामध्ये हिंदी भाषेचे महत्त्व अनन्यसाधारण आहे. कोणतेही साहित्य अखिल भारतीय पातळीवर न्यायचे असेल तर त्याचे हिंदी भाषांतर होणे गरजेचे असते. केंद्रशासनाने नॅशनल बुक ट्रस्ट, साहित्य अकादमी अशी मंडळे त्यासाठी निर्माण केली आहेत. बिदागी, पुरस्कार अशा स्वरूपात अनुवाद कार्याला उत्तेजन दिले जाते. महाराष्ट्रात ‘आंतर-भारती’ या सानेगुरुजी प्रणीत संस्थेमार्फत अनुवाद भाषांतर कार्याला गती दिली जाते.

विविध सिनेमे, विविध भाषांत डब होऊन त्या त्या प्रांतांत दाखवले जातात. परदेशातील काटुन फिल्म इथल्या प्रादेशिक भाषेत डब करून दाखवल्या जातात. हे करण्यासाठी मूळ कलाकृती समजून घेऊन त्याचे अपेक्षित असणाऱ्या भाषेत अनुवाद करण्यासाठी तज्ज्ञ माणसांची गरज लागते. जाहिरातीच्या वेगवेगळ्या प्रांतांत दाखवताना जाहिरात तीच दाखवून भाषा बदलली जाते. हे करण्यासाठी उत्तम अनुवादकांची आवश्यकता असते. परदेशी भाषा तर येत असेल तर दुभाषक म्हणून काम करता येते. भारताचे पंतप्रधान जेव्हा अमेरिकेच्या अध्यक्षांना भेटले तेव्हा त्यांच्या हिंदी भाषणाचे भाषांतर अनुवाद करून ते इंग्रजीत ऐकवले गेले. हे आपण पाहिले. दुतावासात अशा परदेशी भाषा येणाऱ्या लोकांना प्रचंड मागणी आहे.

प्रश्न 4.
‘अनुवाद करणे ही सर्जनशील कृती आहे’, हे विधान स्पष्ट करा.
उत्तर :
मर्यादित अर्थाने का होईना अनुवाद ही एक प्रकारची नवनिर्मितीच असते. अनुवादक तिला एक आपलेपण देतो. मूळ कलाकृतीच्या अनुरोधाने तो वाचकाला जिवंत, समृद्ध सौंदर्यानुभवाचा प्रत्यय देतो. तो जर आंधळेपणाने मुळाशी जखडून राहिला तर अनुवाद जिवंत वाटणारच नाही. त्यात कोरडेपणा येईल. अनुवाद करताना अनुवादकाला भाषेचे बंधन पाळावे लागते. उदा. अरेबियन नाईटचे रूपांतर, भाषांतर करायचे किंवा अनुवाद करायचे तर आजची भाषा वापरणे योग्य ठरेल याचे भान अनुवादकाला सांभाळावे लागते. कवितेचा अनुवाद करताना तर फार काळजी घ्यावी लागते.

कारण कवितेतील शब्दांना नादांची लय असते. विनोदी साहित्य अनुवादित करताना मूळ भाषेतील गंमत निघून जाणार नाही हे पाहावे लागते. थोडक्यात अनुवादक दोन संस्कृतींना जोडतो. अनुवाद म्हणजे केवळ तांत्रिक रूपांतर नाही तर ती सर्जनशील कृती असते. हे कौशल्याचे काम आहे. हे कौशल्य अनुवादकाच्या व्यक्तिमत्त्वावर अवलंबून असते. कोणते साहित्य अनुवादासाठी निवडावे, त्याचे सामाजिक महत्त्व काय याचे भान अनुवादकाला बाळगावे लागते. विविध साहित्य प्रकारांची वैशिष्ट्ये त्याला माहीत असावी लागतात.

भाषिक संदर्भ, सामाजिक संदर्भ, सांस्कृतिक संदर्भ त्याला समजून घ्यावे लागतात. मूळ साहित्यांचे बारकाईने अवलोकन करावे लागते. थोडक्यात अनुवाद असा झाला पाहिजे की मूळ कलाकृती कोणती आणि अनुवादित कलाकृती कोणती याचा संभ्रम निर्माण झाला पाहिजे. हे सगळे भान सांभाळणे ही तारेवरची कसरतच आहे. म्हणूनच अनुवाद करणे म्हणजे सर्जनशील कृती करणे.

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प्रश्न 5.
अनुवाद करताना पाळायची पथ्ये तुमच्या शब्दांत लिहा.
उत्तर :
अनुवादकाची वृत्ती ही संशोधकाप्रमाणे असावी. खोलात जाऊन शोध घेतला नाही तर अनुवादात चूक होण्याची शक्यता असते. अनुवादक एकाच वेळी चांगला वाचक तर हवाच पण तो अभ्यासकही असायला हवा. जागतिक घडामोडींचे त्याला भान हवे. अनवाद करणं हे नाटकात काम करण्यासारखे आहे. दसऱ्याचे शब्द नट जसा दकश्राव्य माध्यमातन इतरांपर्यंत पोहोचवतो तसंच अनवादात दसऱ्याचे विचार. त्याचे साहित्यिक विश्व आपल्यापर्यंत आपल्या भाषेत पोहोचवतो. त्याने खालील बाबी लक्षात ठेवणे गरजेचे आहे.

अनुवादासाठी निवडलेली कलाकृती ही उत्कृष्ट व उपयुक्त असावी. मूळ कलाकृतीशी प्रामाणिक राहून अनुवाद केला पाहिजे. वर्णन विवेचन यात अचूकता व स्पष्टता असावी. कोणत्याही प्रकारचा पूर्वग्रह न ठेवता त्याने कलाकृतीला न्याय दिला पाहिजे. स्वत:चे विचार त्याने अनुवाद करताना घुसडता कामा नयेत. मूळ भाषा व अनुवाद होणारी भाषा याचे त्याला ज्ञान असावे. वाचकांना समृद्ध करणारा अनुभव त्याने दिले पाहिजे. अनुवाद करताना मूळ नावांमध्ये बदल करू नये. कलाकृतीचे स्वरूप पाहून स्वैर अनुवाद असावा की शब्दशः अनुवाद असावा हे त्याने ठरवून घेणे गरजेचे असते.

प्रश्न 6.
‘अनुवादामुळे सांस्कृतिक संचित विस्तारते’, याबाबत तुमचे मत स्पष्ट करा.
उत्तर :
एका भाषेतील कलाकृती ही दुसऱ्या भाषेत येते त्याला आपण अनुवाद म्हणतो. पण ही वाटते तेवढी सोपी-सरळ प्रक्रिया नाही. त्यात अनेक बाबींचा अंतर्भाव होतो. विशेषतः भौगोलिक, सांस्कृतिक पार्श्वभूमी भिन्न असतील तर अनुवाद करणे हे एक आव्हान ठरते. इतर प्रदेशातील संस्कृती, रूढी-परंपरा याची या निमित्ताने वाचकांना ओळख होते. त्याचे भावविश्व व सांस्कृतिक विश्व समृद्ध होते. निग्रो साहित्याची जेव्हा जगाला ओळख झाली. तेव्हा त्यातून प्रेरणा घेऊन वंचित समाजाचे नवीन साहित्य उदयास आले. मराठीत निग्रो साहित्याच्या प्रभावातून दलित साहित्य जन्माला आले आणि भारतीय सांस्कृतिक, सामाजिक वास्तवाचे जगाला दर्शन झाले. त्यातूनच विषमतेच्या विरोधात लढे उभारले गेले. सामाजिक समतेच्या लढ्याला यश आले.

आपल्या भोवतालचा समाज, त्यातील मर्यादित विश्व आणि प्रथा, परंपरा यांच्या पगड्यातून अनुवादित साहित्य आपल्याला बाहेर काढते. ‘एक होता कार्व्हर’ हा वीणा गव्हाणकर यांनी केलेला अनुवाद वाचकालाही अंतर्मुख करतो तर अब्दुल कलाम यांच्या ‘विंग्स ऑफ फायर’च्या ‘अग्निपंख’ या माधुरी शानबाग यांनी केलेल्या अनुवादामुळे आपल्यालाही भारतीय अवकाश संशोधनाची सखोल माहिती मिळते. आपल्याही ज्ञानाच्या कक्षा विस्तारल्या जातात. या प्रक्रियेमुळे जगभरातील माणसे, त्यांची संस्कृती, रूढी, परंपरा, विचार, साहित्य, तंत्रज्ञान, समाज व्यवस्था याचा एकमेकांना परिचय होतो.

महाराष्ट्र राज्य, साहित्य आणि संस्कृती मंडळ, पुणे यांनी प्रसिद्ध केलेल्या ‘मराठी अनुवाद ग्रंथसूची’नुसार १९९८ पर्यंत एकूण ५९७४ पुस्तके राष्ट्रीय आणि आंतरराष्ट्रीय भाषेतून मराठीत अनुवादित झाली आहेत. हीच प्रक्रिया उलटही होते आहे. मराठीतून इंग्रजीत व इतर भाषेत साहित्य अनुवादित होत आहे. उदा. डॉ. नरेंद्र जाधव लिखित ‘आमचा बाप आणि आम्ही’ या आत्मचरित्राचे १५ भारतीय व परदेशी भाषांत अनुवाद झाले आहेत. त्यामुळे भारतीय जीवनाची ओळख परदेशी वाचकांना झाली.

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प्रश्न 7.
बोलीभाषा आणि प्रमाणभाषा याबाबतची अनुवादकाची भूमिका स्पष्ट करा.
उत्तरः
अनुवाद करताना मूळ साहित्यकृतीशी प्रामाणिक राहणे गरजेचे असते. त्यात स्वत:चे काही घालायचे नाही, काही वगळायचे नाही, बदल करायचे नाहीत आणि तरीही ते शब्दश: भाषांतर असता कामा नये ही तारेवरची कसरत अनुवादकाला करायची असते. यासाठी त्याला बोलीभाषा आणि प्रमाणभाषा याचा तारतम्याने विचार करावा लागतो.

दैनंदिन जीवनव्यवहारात आपण प्रमाणभाषेपेक्षा बोलीभाषेचाच अधिक प्रमाणात वापर करतो. प्रमाणभाषेचा वापर शिक्षण, ग्रंथलेखन, शासनव्यवहार यांसाठी होतो. प्रमाणभाषा औपचारिक असते तर बोलीभाषा अनौपचारिक असते. प्रमाणभाषा तांत्रिकतेकडे झुकते तर बोली भाषेला त्या त्या मातीचा गंध असतो. त्यात जिवंतपणा असतो. दोन्हीपैकी कोणती भाषा निवडायची याचा अनुवादकाला गांभीर्याने विचार करावा लागतो. उदा. ग्रामीण कादंबरीचा अनुवाद असेल आणि प्रमाणभाषा वापरली तर त्यातील गंमत निघून जाते. म्हणूनच अनुवादकाला भिन्न भिन्न बोली, त्यांचे सांस्कृतिक, सामाजिक संचित यांचे ज्ञान असणे गरजेचे आहे.

प्रश्न 8.
(अ) खालील परिच्छेदाचा हिंदी व इंग्रजी भाषेमध्ये अनुवाद करा.
मोहन आज सकाळी लवकर जागा झाला. त्याने दात घासले, तोंड, हात-पाय धुतले आणि तो अभ्यासाला बसला. आज तो खेळायला गेला नाही. मोहनने दहा वाजता भोजन केले. लेखनसाहित्य घेतले आणि तो परीक्षेसाठी शाळेत निघून गेला.
उत्तर :
मूळ लेख : मोहन आज सकाळी लवकर जागा झाला. त्याने दात घासले, तोंड, हात-पाय धुतले आणि तो अभ्यासाला बसला. आज तो खेळायला गेला नाही. मोहनने दहा वाजता भोजन केले. लेखन साहित्य घेतले आणि तो परीक्षेसाठी शाळेत निघून गेला.

हिंदी : मोहन आज सुबह जल्दी उठा। उसने दाँत साफ किये, हाँथ, पैर, मुँह धोया और वह पढ़ाई करने बैठा। वह ‘आज’ खेलने नहीं गया। दस बजे उसने खाना खाया। लेखन साहित्य लेकर वह परीक्षा देने स्कूल पहुँच गया।

इंग्रजी : Mohan woke up early today. Brushed his teeth, had a bath, got ready and sat to study. Due to his exam, he did not go to play today. He had his lunch at 10.00 am. He then took his study material and went to school for the exam.

(आ) खालील वाक्यांचा मराठी व इंग्रजीत अनुवाद करा.

प्रश्न 1.
किसी नदी में एक भेड़िया ऊपर की तरफ पानी पी रहा था।
उत्तर :
मराठी : एका नदीवर एक लांडगा नदीच्या वरच्या बाजूला पाणी पीत होता.
इंग्रजी : Besides a river, on the upper edge a wolf was drinking water.

Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.3 अनुवाद

प्रश्न 2.
मेरे मित्र की चिट्ठी कई दिनों बाद आयी।
उत्तर :
मराठी : खूप दिवसांनी माझ्या मित्राचे पत्र आले.
इंग्रजी : I received my friends letter after so many days.

प्रश्न 3.
राम के पिता मोहन यहाँ आएँ है।
उत्तर :
मराठी : रामचे वडील मोहन इथे आले आहेत.
इंग्रजी : Ram’s father, Mohan came here.

प्रकल्प.

प्रश्न 1.
मराठीमधून हिंदी भाषेत अथवा इंग्रजी भाषेत अनुवादित झालेल्या दहा साहित्यकृतींची माहिती मिळवा आणि त्याबाबत एक टिपण तयार करा.
उत्तर :

मराठी इंग्रजी
आमचा बाप अन आम्ही – डॉ. नरेंद्र जाधव Untouchabile – डॉ. नरेंद्र जाधव
बलुतं – दया पवार BALUTA – जरी पिंटो
शांतता कोर्ट चालू आहे – विजय तेंडुलकर Silence! The court is in session – प्रिया आडारकर
मी वाय. सी. पवार – शब्दांकन – चंद्रकांत घाणेकर Y.C. Rela Time Cop – प्रशांत तळणीकर
हिंदी मराठी
निवडक कविता – गुलज़ार एक स्वप्न पुन्हा पुन्हा – विजय पाडळकर
अमृता प्रीतम की कहानियाँ रिकामा कॅनव्हास – डॉ. सुप्रिया सहस्त्रबुद्धे

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प्रश्न 2.
हिंदी आणि इंग्रजीतून मराठी भाषेत अनुवादित झालेल्या प्रत्येकी दहा साहित्यकृतींची माहिती मिळवा आणि त्याबाबत एक टिपण तयार करा.
उत्तर :

मराठी हिंदी
आमचा बाप अन् आम्ही – डॉ. नरेंद्र जाधव असीम है आसमाँ – कमलाकर सोनटक्के
ययाती – वि. स. खांडेकर ययाती – मोरेश्वर तपस्वी
घाशीराम कोतवाल – विजय तेंडूलकर घाशीराम कोतवाल – वसंत देव
क्रौंच वध – वि. स. खांडेकर क्रौंचवध – मोरेश्वर तपस्वी
महानायक – विश्वास पाटील महानायक – डॉ. रामजी तिवारी, रमेशचंद्र तिवारी
व्हायरस – जयंत नारळीकर वाईरस – जयंत नारळीकर
विंदांच्या कविता – विंदा करंदीकर यह जनता अमर हैं। – डॉ. चंद्रकांत बांदिवडेकर
इंग्रजी मराठी
वाईज आदरवाईज – सूधा मूर्ती वाईज आदरवाईज – लीना सोहोनी
सुटेबल बॉय – विक्रम सेठ शुभमंगल – अरुण साधू
इमॉर्टल ऑफ मेलुहा – अमिष त्रिपाठी मेलुहाचे मृत्यूंजय – डॉ. मीना शेटे
थ्री पेनी ऑपेरा – ब्रेश्ट तीन पैशांचा तमाशा – पु. ल. देशपांडे
ओल्ड मॅन अॅण्ड सी – हेमिंग्वे एका कोळीयाने – पु. ल. देशपांडे
द बुक थीफ – मार्कुस झुसँक पुस्तक चोर – विनता कुलकर्णी
फाई पॉईंट समवन – चेतन भगत फाई पॉईंट समवन – सुप्रिया वकील

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साहित्याचे माध्यम भाषा आहे. साहित्यातून ती भाषा, तो समाज यांचे यथार्थ दर्शन घडत असते. म्हणूनच प्रत्येक भाषेत अन्य भाषेतील साहित्य येणे गरजेचे असते. परकीय शब्द भाषेतील अभिव्यक्ती क्षमता वाढवितात. त्यातून भाषा अधिक समृद्ध होते. परकीय भाषेतील साहित्य आपल्या भाषेला परिपुष्ट करते.

स्वत:चा देश, स्वत:ची भाषा, संस्कृती याचा प्रत्येकाला अभिमान असणे साहजिकच आहे. पण त्याचबरोबर स्वत:चा व संस्कृतीचा भाषिक विकास साधण्यासाठी विदेशी भाषेतील श्रीमंती नाकारून चालणार नाही. उलट इतर भाषेतील साहित्य स्वभाषेत येते तेव्हा आपली भाषा अधिक समृद्ध होते.

आशय, शैली, अनुभवांची विविधता अशा अंगाने भाषेत वेगळेपण येते. म्हणून अनुवाद प्रक्रिया गरजेची आहे. कारण अनुवादामुळे एखादया लेखकाचे लेखन, स्थल-काल-संस्कृती या सगळ्या मर्यादा ओलांडून जागतिक वाचकांपर्यंत पोहोचते.

11th Marathi Book Answers Chapter 4.3 अनुवाद Additional Important Questions and Answers

कृती : २ आकलन कृती
खालील उताऱ्याच्या आधारे सुचनेनुसार कृती करा.

कृती-१. कारण लिहा.

प्रश्न 1.
अनुवादासाठी गुगल ट्रान्सलेटर वापरणे नेहमीच हितकारक ठरत नाही.
कारण → [ ]
उत्तरः
कारण गुगल ट्रान्सलेटर शब्दश: भाषांतर करते. त्यात नेमकेपणा आणि अचूकता असेलच याची खात्री देता येत नाही. संगणकाद्वारे शब्दानुवाद यथायोग्य होत असला तरी भावानुवाद योग्य प्रकारे होऊ शकेलच असे नाही. कारण शेवटी माणूस व यंत्र यात मूलभूत भेद राहणारच.

प्रश्न 2.
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.3 अनुवाद 1
उत्तरः
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.3 अनुवाद 2

प्रश्न 3.
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.3 अनुवाद 3
उत्तरः
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.3 अनुवाद 4

स्वमत :

प्रश्न 1.
आधुनिक काळातील दुभाषकाचे महत्त्व स्पष्ट करा.
उत्तरः
‘वसुधैव कुटुंबकम्’ या उक्तीप्रमाणे आज सगळे जग जवळ आले आहे. घरी बसल्याबसल्यासुद्धा संगणकाच्या माध्यमातून, मोबाईल फोनच्या माध्यमातून आपण जगभरात संपर्क साधू शकतो. परंतु हे खरे असले तरी जगाच्या पाठीवर जिथे आपण संपर्क साधणार आहोत त्या प्रदेशातील लोकांना आपली भाषा समजेलच असे नाही. त्यामुळे वेगवेगळ्या भाषेचे ज्ञान असणारे दुभाषक यांना प्रचंड मागणी आहे.

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जागतिकीकरणामुळे व्यापारानिमित्त वेगवेगळे लोक वेगवेगळ्या देशात सतत प्रवास करत असतात. कधी कधी व्यापार मेळावे भरवले जातात. ज्यात जगभरातील लोक सहभागी होतात. यांमधील चर्चामध्ये दुभाषकांची गरज असते. काही वेळा अभ्याससत्रे, प्रशिक्षणसत्रे, राष्ट्रीय, आंतरराष्ट्रीय परिषदा यांचे आयोजन केले जाते. यांमध्ये बुद्धीजीवी वर्ग, राजकारणी लोक विशेषत: मोठ्या प्रमाणावर सहभागी होतात. यांच्यात सुसंवाद प्रस्थापित करण्यासाठी दुभाषकांची गरज असते. पर्यटन सेवा, जनसंपर्क स्थाने इत्यादी ठिकाणी वेगवेगळ्या भाषेतून सतत सूचना दयाव्या लागतात.

या सूचनांचे सुलभ भाषांतर वा अनुवाद करणे गरजेचे असते. आंतरराष्ट्रीय स्तरावर जेव्हा महत्त्वाच्या राजकीय व्यक्तींची बैठक होते, त्यावेळी किंवा G २० सारख्या परिषदांचे आयोजन केले जाते तेव्हा वेगवेगळ्या देशांचे राष्ट्राध्यक्ष किंवा तेवढ्याच महत्त्वाच्या व्यक्तींचा त्यात सहभाग असतो. अशावेळी त्या त्या देशाची भाषा जाणून त्याचे शीघ्र इंग्रजी भाषांतर करणे वा अनुवाद करणे अत्यंत गरजेचे ठरते. सिनेमा, दूरदर्शन मालिका, वृत्तपत्र या सगळ्याच ठिकाणी भाषांतरकार व अनुवादक यांची मोठ्या प्रमाणावर गरज असते.

अनुवादाच्या सरावासाठी काही उतारे :

उतारा क्र. (१)

A man with a small salary is very likely to get into difficulties unless he learns to “budget” for his monthly spending. A fixed amount should be set aside under each heading – rent, food, clothing, insurance, school-fees and so on. The ideal budget would also include a fixed sum, no matter how small to be set apart each month as “saving”. Indeed this better be paid into the ‘Post office or the Bank, and not kept at home. Until all this has been done, nothing should be spent on luxuries. Only by such a method can a man live within his income & make both the ends meet.

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मराठी अनुवाद –

कमी पगार असणारा माणूस मासिक खर्चाचे अंदाजपत्रक करायला शिकला नाही तर अडचणीत सापडण्याची फार शक्यता असते. घरभाडे, अन्नधान्य, कपडेलत्ते, आयुर्विमा, शाळेची फी याप्रमाणे प्रत्येक बाबीवर ठराविक रक्कम काढून ठेवायला हवी. आदर्श अंदाजपत्रकात दरमहा शिल्लक म्हणून बाजूला ठेवायच्या रकमेचा – मग ती अल्पस्वल्प असो – समावेश असायला हवा. खरे तर ती रक्कम घरी ठेवता कामा नये. पोस्टात किंवा बँकेतच टाकायला हवी. या सर्व गोष्टी होईपर्यंत चैनीवर त्याने काहीही खर्च करू नये. अशाच पद्धतीने माणूस आपल्या ऐपतीत राहू शकतो आणि खर्चाची तोंडमिळवणी करू शकतो.

उतारा क्र. (२)

We sometimes think it should be very nice to have no work to do. How we envy rich people who have not to work for their living? They can do just what the please all the year round! Yet, when we feel like this, we make a mistake. Sometimes rich people are not happy we think there are because they are tired of having nothing to do. Most of us are happy when we have regular work to do for our living; especially if the work is that we like to do.

मराठी अनुवाद –

आपण कधी कधी असा विचार करतो की, आपल्याला काहीच काम करायला लागलं नसतं तर फार बरं झालं असतं. जगण्यासाठी ज्यांना काम करावं लागत नाही अशा श्रीमंत लोकांचा आपण हेवा करतो? वर्षभरात जे करायचं आहे तेवढं ते काम करतातच तरी सुद्धा आपली त्यांच्याविषयी चुकीची समजूत असते. पुष्कळदा श्रीमंत लोक आपण समजतो तेवढे सुखी नसतात कारण काहीच करायचं नसल्याने ते बऱ्याचदा त्रासलेले असतात. आपल्यापैकी बरेच जण जगण्यासाठी नियमितपणे काम करतात, असे काम की जे मुख्यत्वे आपल्या आवडीचे असते म्हणूनच जीवनात ते सुखी असतात.

उतारा क्र. (३)

Many visitors come and admire me, and some of them take photographs of me. When I roar, how they start back in fear, even though iron bars are between! It is a lazy and idle life, in which I walk about a little and then dream the time away. At night I become restless when I feel the jungle smells come down on the wind. If the keeper would only leave the door unlocked one day, I would soon find my way back to the free jungle where I was born.

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मराठी अनुवाद –

खूप प्रेक्षक येतात व माझी स्तुती करतात आणि त्यांच्यापैकी काहीजण माझी छायाचित्रेही घेतात. मी डरकाळी फोडतो तेव्हा मध्ये लोखंडी गज असूनही ते भीतीने कसे मागे सरकतात. पिंजऱ्यामध्ये मला फारच थोडे हिंडायला मिळते आणि बराच वेळ मनोराज्यात घालवावा लागतो असे हे आळसावलेले व निरुपयोगी आयुष्य आहे. रात्री वाऱ्यावर वाहत येणाऱ्या जंगलाच्या गंधाने मी बेचैन होतो. पहारेकऱ्याने एखादे दिवशी पिंजऱ्याचे दार उघडे ठेवले तरी मला वाटते की, जिथे मी जन्मलो त्या मुक्त जंगलाचा मार्ग मी लगेच शोधेन.

उतारा क्र. (४)

कोई विदेशी जो भारत से बिलकुल अपरिचित हो, एक छोर से दूसरे छोर तक सफर करे तो उसको इस देश में इतनी विभिन्नताएँ देखने में आएँगी कि वह कह उठेगा कि यह एक देश नहीं, बल्कि कई देशों का एक समूह है, जो एक दूसरे से बहुत बातों में और विशेष करके ऐसी बातों में, जो आसानी से आँखों के सामने आती हैं बिलकुल भिन्न है। प्राकृतिक विभिन्नताएँ भी इतनी और इतने प्रकारों की और इतनी गहरी नजर आएँगी, जो किसी भी महाद्वीप के अंदर ही नजर आ सकती है। हिमालय की बर्फी से ढकी पहाड़ियाँ एक छोर मिलेंगी और जैसे-जैसे दक्खिन की ओर बढ़ेगा गंगा, यमुना, ब्रम्हपुत्र से प्लावित समतलोंको छोड़कर फिर विंध्य, अरवली, सतपुडा, सह्याद्रि, नीलगिरि की श्रेणियों के बीच समतल रंग-बिरंगे हिस्से देखने में आएँगे। पश्चिम से पूरब तक जाने में भी उसे इसी प्रकार की विभिन्नताएँ देखने को मिलेगी। (डॉ. राजेंद्रप्रसाद : साहित्य, शिक्षा और संस्कृति)

मराठी अनुवाद –

भारताबद्दल कसल्याही प्रकारची माहिती नसणारी, दुसऱ्या देशातील एखादी व्यक्ती आपल्याकडे आली आणि देशाच्या एका टोकापासून दुसऱ्या टोकापर्यंत जर त्या व्यक्तीने प्रवासाला सुरुवात केली तर या देशातील ठिकठिकाणाचे वेगळेपण पाहून तो नक्कीच उत्स्फूर्तपणे बोलेल की, भारत हा एकसंघ असा देश नाही. अनेक छोट्या छोट्या देशांचा तो एक विशाल असा समूहच आहे. भारतातील प्रत्येक भागात खूप सारे वेगळेपण आहे. विशेष म्हणजे प्रत्येक भागातील हा वेगळेपणा सहजपणे डोळ्यांना दिसून येतो. अनेक लहान-सहान गोष्टींमध्ये हा वेगळेपणा जाणवतो.

भारताच्या निरनिराळ्या भागातील प्राकृतिक वेगळेपण व त्याचे विविध प्रकार या महाद्वीपाच्या अंतर्गत भागात ठळकपणे दृष्टीस पडतात. उत्तरेकडील एका टोकास असणारी हिमालयीन पर्वतरांग बर्फाच्छादित अशी आहे. उत्तरेकडच्या या टोकाकडून दक्षिणेकडे जाताना प्रथम गंगा, यमुना, ब्रम्हपुत्रा नदयांच्या खोऱ्यांचा सपाट मैदानी भाग लागतो. यानंतर विंध्य, अरवली, सातपुडा, सहयाद्रि, निलगिरि पर्वतरांगांच्यामध्ये काही ठिकाणी सपाट तर काही ठिकाणी वेगवेगळ्या रंगढंगाचा भाग दृष्टीस पडतो. पश्चिमेकडून पूर्वेकडे जातानाही अशाच प्रकारचा वेगळेपणा आपल्या दृष्टीस पडतो.

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उतारा क्र. (५)

यहाँ पर मुख्य-मुख्य भाषाएँ भी कई प्रचलित है और बोलियों की तो कोई गिनती ही नहीं क्योंकि यहाँ एक कहावत मशहूर है, “कोस-कोस पर बदले पानी, चार कोस पर बानी’। भिन्न-भिन्न धर्मों के माननेवाले भी जो सारी दुनिया के सभी देशों में बसे हुए हैं, यहाँ भी थोडी-बहुत संख्या में पाए जाते है। और जिस तरह यहाँ की बोलियों की गिनती नहीं, उसी तरह यहाँ भिन्न धर्मों के संप्रदाय की गिनती आसान नहीं। इन विभिन्नताओं को देखकर अगर अपरिचित आदमी घबराकर कह उठे कि यह एक देश नहीं, अनेक देशों का एक समूह है।

मराठी अनुवाद –

या ठिकाणी वेगवेगळ्या भागात बोलल्या जाणाऱ्या मुख्य भाषा अनेक आहेत आणि त्या भाषेच्या असंख्य बोलीभाषाही रूढ आहेत, कारण इथे एक म्हण प्रसिद्ध आहे, ती म्हणजे “कोसा-कोसांवर पाणी बदलते व चार कोसांवर वाणी (भाषा) बदलते.” जगाच्या निरनिराळ्या भागात राहणारे व आपआपल्या भिन्न-भिन्न धर्माला मानणारे अनेक लोक भारतातही थोड्या अधिक संख्येने प्रत्येक भागात आढळतात. या ठिकाणच्या असंख्य बोलीभाषांप्रमाणे नानाविध धर्मपंथांची मोजदाद करणे अशक्य असे आहे. भारतातील या वेगळेपणाला पाहून एखादा अनोळखी मनुष्य घाबरून म्हणेल की, भारत हा एक देश नाही तर अनेक छोट्या छोट्या देशांचा तो एक समूह आहे.

अनुवाद प्रास्ताविक :

एका भाषेतील मजकूर अगदी नेमकेपणाने दुसऱ्या भाषेत व्यक्त करणे म्हणजे भाषांतर किंवा अनुवाद या प्रक्रियेत ज्या भाषेतून मजकूर आणायचा असतो त्याला उगम भाषा किंवा ‘मूळ भाषा’ किंवा ‘स्रोत भाषा’ म्हणतात तर ज्या भाषेत मजकूर आणला जातो त्याला ‘लक्ष्य भाषा’ म्हणतात.

चांगल्या अनुवादासाठी अनुवादकाला दोन्ही भाषांची जाण असणे गरजेचे असते. केवळ साहित्याचे नव्हे तर व्याकरणाचे ज्ञानदेखील त्याला असावे लागते. तरच ती भाषा बोलणाऱ्याच्या संस्कृती, चालीरीती, रूढी, परंपरा त्याला समजू शकतात. या सर्वांबरोबर त्याच्याकडे सृजनात्मकता असायला हवी तरच अनुवादित साहित्य रसपूर्ण होईल.

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अनुवाद म्हणजे केवळ ललित साहित्यकृतीचा अनुवाद नाही. हे क्षेत्र विस्तृत आहे. भारतात अनेक प्रांत, अनेक भाषा एकत्र नांदत असल्यामुळे इथे नेहमीच प्रांतिक अनुवाद होत असतात. जागतिकीकरणामुळे इंग्रजीचेही महत्त्व वाढले आहे. त्यामुळे वेगवेगळ्या भाषेतील ज्ञान वेगवेगळ्या भाषेत जाण्याची प्रक्रिया निरंतर घडत असते. म्हणूनच अनुवादकांना आजच्या युगात अत्यंत महत्त्व आहे.

अनुवाद या शब्दाची उत्पत्ती संस्कृत भाषेत शोधता येते. मूळ धातू ‘वद’ म्हणजे बोलणे व ‘अनु’ हा उपसर्ग म्हणजे ‘मागील’ किंवा ‘मागाहून सांगितलेले’.

इंग्रजीत याला translation म्हणत असले तरी प्रत्यक्षात ही क्रिया खूप विस्तृत आहे. सुदैवाने मराठीत भाषांतर, रूपांतर, अनुवाद, स्वैर अनुवाद अशा विविध संज्ञा उपलब्ध आहेत त्यात सूक्ष्म भेद आहेत.

आज विज्ञान-तंत्रज्ञान, उदयोग विश्व, रेडिओ, दूरचित्रवाणी, चित्रपट, जाहिरातक्षेत्र या माध्यमांत अनुवादाच्या मोठ्या संधी उपलब्ध आहेत.

  1. भाषांतर : मूळ मजकुरातील शब्द, वाक्यरचना जशीच्या तशी टिपण्याचा प्रयत्न केला जातो. त्यात नेमकेपणा, काटेकोरपणा असतो. भाषांतरकार मूळ मजकुराशी प्रामाणिक राहण्याचा प्रयत्न करतो. उदा. विविध प्रकारची सामाजिक शास्त्रे, विज्ञान-तंत्रज्ञानावर आधारित साहित्य, सरकारी अधिनियम इ.
  2. अनुवाद : यामध्ये शब्द, शैली, संरचना यांपेक्षा आशयाला महत्त्व दिले जाते हे एक प्रकारचे मुक्त भाषांतरच असते. यात अनुवादकाच्या स्वत:च्या शैलीची छाप दिसून येते. उदा. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम यांच्या Wings of fire चा माधुरी शानबाग यांनी ‘अग्निपंख’ या नावाने केलेला अनुवाद.
  3. रूपांतर : यात मूळ कलाकृतीचे फक्त बीज घेतले जाते आणि नवीन कलाकृती निर्माण केली जाते. मूळ पुस्तकातील सांस्कृतिक वातावरण, शैली यात आमूलाग्र बदल केला जातो. रूपांतरकार शैलीचे पूर्ण स्वातंत्र्य घेतो. या इंग्रजी जॉर्ज बर्नाड शॉ यांच्या ‘पिग्मेलियन’ या इंग्रजी नाट्याचा भावानुवाद पु. ल. देशपांडे यांनी ‘ती फुलराणी’ या नावाने केला आहे.
  4. स्वैर अनुवाद : मूळ कथा वस्तूला धक्का न लावता स्वातंत्र्य घेऊन स्वैर अनुवाद केला जातो. वाचकांना पचेल-रुचेल अशा शैलीत बदल केला जातो. उदा. रविंद्रनाथ टागोर यांच्या मूळ बंगाली कवितेचा शामला कुलकर्णी यांनी केलेला ‘जाता अस्ताला’ हा स्वैर अनुवाद आहे.

अनुवादाचा व्यासंग : अनुवादक, भाषांतरकार, रूपांतरकार यांना सर्वसाधारपणे ‘अनुवादक’ याच नावाने संबोधले जाते. अनुवाद करणे हे कौशल्याचे काम आहे. अनुवादासाठी निवडलेली साहित्यकृती जितकी लोकप्रिय व उत्कृष्ट तेवढी अनुवादकाची जबाबदारी वाढते. त्याला प्रमाणभाषा, बोली भाषा या दोन्हींचे ज्ञान असावे लागते. परभाषेतील शब्द त्या शब्दांमागचे सांस्कृतिक, सामाजिक संदर्भ, शब्दाच्या अर्थच्छटा वगैरे गोष्टींचे ज्ञान अनुवादकाला असणे गरजेचे आहे. प्रत्येक गोष्टीला पर्यायी शब्द मिळतोच असे नाही. मग त्या शब्दाच्या जवळ जाऊ शकतील अशा अर्थ छटेचे शब्द वापरणे योग्य ठरते.

Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.3 अनुवाद

अनुवादकाचे स्रोत भाषा आणि लक्ष्य भाषा या दोन्हीवर प्रभुत्व असायला हवे. त्याचे वाचन उत्तम असावे, विविध शब्दकोष, विश्वकोष, व्युत्पत्ती कोष वापरण्याचे त्याला ज्ञान असावे. विविध बोली, प्रमाण भाषा त्या त्या भाषेतील सांस्कृतिक संचित, त्या प्रदेशाचा इतिहास इत्यादीची जाण असणे गरजेचे आहे.

अनुवाद करताना पाळावयाची पथ्ये : अनुवादामागे निवडलेली कलाकृती उत्कृष्ट आणि उपयुक्त असावी. त्याने मूळ कलाकृतीला न्याय दयावा. स्वत:चे विचार कलाकृतीवर लादू नयेत. अनुवाद वाचकांना समृद्ध करणारा असावा. पूर्वग्रह डोक्यात ठेऊन अनुवाद करू नये.

अनुवादात भाषेचे महत्त्व : अनुवादासाठी भाषा वापरताना प्रमाणभाषा वापरायची की बोलीभाषा याचा निर्णय घ्यावा लागतो. उदा. ग्रामीण कादंबरीचा अनुवाद करताना प्रमाणभाषेचा वापर करणे अनुचित ठरेल.

मुद्रित साहित्याच्या अनुवादाची कार्यक्षेत्रे : वृत्तपत्रे, अल्प प्रसारमाध्यमे, न्यायालये, इतर सरकारी संस्था तसेच रेडिओ, चित्रपट, जाहिरात क्षेत्र या ठिकाणी अनुवादकांची गरज असते. त्याचबरोबर वैदयकीय क्षेत्र, शिक्षण क्षेत्र, कायदयाचे क्षेत्र, पर्यटन सेवा इ. अनेक ठिकाणी अनुवादकांना प्रचंड मागणी आहे.

मौखिक अनुवादाची कार्यक्षेत्रे : आंतरराष्ट्रीय व्यापार मेळावे वा परिषद किंवा राजकीय दृष्ट्या महत्त्वाच्या व्यक्तींची भेट इत्यादी ठिकाणी दुभाषक गरजेचा ठरतो. त्याचबरोबर जनसंपर्क स्थाने, पर्यटन सेवा, समूह दूरभाष, समूह संबोधन, अनुवाद या सर्वच ठिकाणी अनुवादकांची गरज असते. गुगल ट्रान्सलेटरच्या माध्यमातून केलेले अनुवाद अचूक असतीलच याची खात्री देता येत नाही.

Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.2 मुद्रितशोधन

Balbharti Maharashtra State Board Marathi Yuvakbharati 11th Digest Bhag 4.2 मुद्रितशोधन Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

Maharashtra State Board 11th Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.2 मुद्रितशोधन

11th Marathi Digest Chapter 4.2 मुद्रितशोधन Textbook Questions and Answers

कृती

खालील कृती करा.

प्रश्न 1.
मुद्रितशोधकाच्या भूमिकेचे आजच्या काळातील महत्त्व तुमच्या शब्दांत लिहा.
उत्तर :
व्याकरणाच्या परिपूर्ण अभ्यासाने जाणीवपूर्वक लक्ष देऊन लेखनातील त्रुटी काळजीपूर्वक दूर करण्याचे काम करणारी व्यक्ती म्हणजे मुद्रितशोधक. कोणतेही लेखन करताना महत्त्वाचा घटक म्हणजे त्यातील लिखित मजकुराची शुद्धता सांभाळणे. लिखित मजकुरातील व्याकरण शुद्धतेबरोबरच आशयाचे अचूक संपादन करणे आवश्यक असते. ही जबाबदारी पूर्ण करण्यासाठी लेखकाबरोबरच ते लेखन निर्दोष करण्यासाठी मुद्रिकशोधक हा घटक महत्त्वाचा असतो.

Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.2 मुद्रितशोधन

हस्तलिखित मजकुरापेक्षा छपाईतील मजकूर हा वाचकांच्या मनावर चांगला परिणाम करतो. आज वृत्तपत्रे, नियतकालिके, ग्रंथ, पुस्तके, हस्तपुस्तिका, दिवाळी अंक, लहान मोठी पत्रके, संस्थाचे अहवाल, स्मरणिका, शुभेच्छा पत्रे, इत्यादी विविध प्रकारांमध्ये मुद्रित साहित्याची निर्मिती मोठ्या प्रमाणावर होत आहे. त्यात काळानुसार वाढच होणार आहे. ही वाढ समाजाच्या सामाजिक व सांस्कृतिक क्षेत्रातील जागृतीचे आणि प्रगतीचे लक्षण मानले जाते.

कोणत्याही प्रकारच्या लेखनाचे अंतिम मुद्रण होण्यापूर्वी मुद्रिते बारकाईने वाचून त्यातील त्रुटी दूर करून ते लेखन वाचनीय व निर्दोष होणे, यासाठी मुद्रितशोधकाची भूमिका फार महत्त्वाची आहे. मुद्रितशोधक व्यावसायिक दृष्टीने प्रभावी कार्य करू शकतो. स्थानिक ते जागतिक स्तरावर संगणक युगातदेखील वाचन संस्कृती टिकवून ठेवण्यासाठी त्याचे स्वरूप, मांडणी, त्यातील आशय उत्तमरित्या वाचकापर्यंत पोहोचणे गरजेचे आहे.

मुद्रितशोधन ही एक कला असून ते एक शास्त्रही आहे तसेच तो एक व्यवसायसुद्धा आहे. उत्तम मुद्रितशोधक या व्यवसायाला आपल्या अभ्यासातील सातत्याने, अनुभवाने उत्तम दर्जा प्राप्त करून देऊ शकतो.

प्रश्न 2.
मुद्रितशोधनासाठी लागणारी कौशल्ये सविस्तर विशद करा.
उत्तर :
मुद्रितशोधन म्हणजे लेखकांकडून प्रमाण लेखनात अनवधानाने राहिलेल्या त्रुटी दूर करून लेखनातील दोष काढणे. व्याकरणाच्या परिपूर्ण अभ्यासाने जाणीवपूर्वक लक्ष देऊन लेखनातील त्रुटी दूर करण्याचे मुद्रितशोधकाचे काम असते. त्यासाठी लागणारी कौशल्ये पुढीलप्रमाणे होत.

  • मुद्रितशोधकाला भाषेची उत्तम जाण हवी.
  • केवळ प्रमाणभाषेनुरूप व्याकरणाची शुद्धता तपासणे एवढेच काम मुद्रितशोधकाचे नसून लिहिलेला मजकूर हा अर्थपूर्ण तसेच बिनचूक आहे का? त्यातील संदर्भ अचूक व योग्य आहेत का? हे तपासणे सुद्धा आहे.
  • मुद्रितशोधकाला मुद्रणविषयातील तंत्र, दृष्टी व परिपूर्ण ज्ञान असावयास हवे.
  • आपले ज्ञान अदययावत ठेवण्याची आवश्यकता असते.
  • कामावरील निष्ठा, अनेक विषयांसहित मजकुरामधील रुची व जाण असण्याची गरज असते.
  • कामाचा अनुभव हा मुद्रितशोधकाला परिपूर्ण व प्रगल्भ करत असतो.
  • सक्षम मुद्रितशोधकासाठी चिकाटी, अभ्यासातील सातत्य व सराव या गोष्टींची आवश्यकता असते.
  • प्रतिभासंपन्न लेखक व जागरुक प्रकाशक यांच्याप्रमाणे तज्ज्ञ मुद्रितशोधक हा तपश्चर्येने आपली ओळख बनवू शकतो.
  • मुद्रितशोधनासाठी ग्रंथाच्या विषयानुरूप त्या, त्या विषयांचे ज्ञान व भाषेची जाण असणे आवश्यक असते.
  • अनेक विषयांची रुची व समज असण्याचीसुद्धा आवश्यकता असते.

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प्रश्न 3.
‘मुद्रितशोधनातील नजरचुकीने राहिलेली चूक अर्थाचा अनर्थ करते’, या विधानाची सत्यता स्पष्ट करा.
उत्तर :
लेखकांकडून प्रमाण लेखनात अनावधानाने राहिलेल्या त्रुटी दूर करून लेखन निर्दोष करणे म्हणजे मुद्रितशोधन. वृत्तपत्रे, सप्ताहिके, ग्रंथ, पुस्तके, शुभेच्छपत्रे, दिवाळी अंक अशा विविध साहित्याची वाचक संख्या खूप मोठी आहे. त्यामुळे त्यामध्ये लिहिलेला मजकूर आशयदृष्ट्या व्याकरणदृष्ट्या तसेच वाक्यरचना, त्यांतील संदर्भ, लेखननियमानुसार लेखन अचूक आहे की नाही हे पाहणे फार महत्त्वाचे ठरते.

त्यामुळे मुद्रितशोधकाची जबाबदारीही वाढते कारण मुद्रितशोधनातील नजरचुकीने राहिलेली चूक अर्थाचा अनर्थ करू शकते. उदा. ‘सुप्रसिद्ध संगीतकाराचा गौरव’ या शीर्षकाऐवजी जर ‘कुप्रसिद्ध संगीतकाराचा गौरव’ असे प्रसिद्ध झाले तर किती गोंधळ होऊ शकतो हे सांगण्याची गरज नाही. एखादया वाक्याची पुनरावृत्ती झाली किंवा एखादे वाक्य किंवा परिच्छेद गाळला गेला तरी वाचकाला त्या वाक्यांचे अर्थ लागत नाहीत.

वाचनातील सलगता निघून जाते. ‘दिन’ या शब्दाचा अर्थ दिवस व ‘दीन’ या शब्दाचा अर्थ गरीब. मग कोणताही दिन असेल जसे वर्धापनदिन किंवा पर्यावरण दिन तो ‘दीन’ असा लिहिला गेला तर एका हस्व वेलांटीमुळे त्या शब्दाचा पूर्ण अर्थच बदलून जातो. असे प्रत्येक भाषेत विविध शब्द आहेत ज्यांच्यामधील एका अक्षरामध्ये जरी व्याकरणदृष्ट्या चूक झाली तर अर्थाचा अनर्थ होऊन गंभीर परिस्थितीतही विनोदनिर्मिती होते आणि हे टाळण्यासाठी मुद्रितशोधनात खूप बारकाईने अचूक दुरुस्त्या करून त्यातील त्रुटी दूर करून लेखन आशयदृष्ट्या शुद्ध करणे गरजेचे ठरते.

प्रश्न 4.
थोडक्यात वर्णन करा.

(a) मुद्रितशोधनाची गरज
उत्तरः
मराठी भाषेत लेखन करतेवेळी महत्त्वाची गोष्ट म्हणजे मजकुराच्या लेखनातील शुद्धता तपासणे. लेखनातील व्याकरणाच्या शुद्धतेबरोबरच अचूक संपादन करणेही तितकेच महत्त्वाचे असते. कोणत्याही मजकुरातील आशयाची शुद्धता व ते अचूक असण्याची जबाबदारी लेखकाची असली तरी व्याकरणाच्या दृष्टीने ते लेखन निर्दोष असणे आवश्यक असते. त्यासाठी मुद्रितशोधनाची गरज असते. तसेच लेखनाचे सखोल ज्ञान लेखकाला असतेच असे नाही. त्यामुळे लिहिण्याच्या ओघात अनवधानाने काही त्रुटी राहून जातात व लेखनात पुनरुक्तीही होऊ शकते त्यासाठी मुद्रितशोधनाची गरज असते.

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(b) मुद्रितशोधन प्रक्रिया
उत्तरः

  • मूळ लेखन व टंकलिखित मजकुराचे साहाय्यकाच्या मदतीने वाचन करणे.
  • पहिल्या वाचनात खूप शंका व दुरुस्त्या असतील तर त्याचे निराकरण दुसऱ्या वाचनात करून किंवा नवीन आढळलेल्या दुरुस्त्या करणे. पृष्ठ मांडणी, पृष्ठ क्रमांक, अनुक्रमणिका, चित्रे व आकृत्या इत्यादींची योग्य मांडणी अपेक्षित असते.
  • तिसऱ्या वाचनात दुसऱ्या मुद्रितातील दुरुस्त्या तपासून मजकूर अंतिम छपाईला जाण्याआधी लेखक व मुद्रितशोधकाने कटाक्षाने वाचन करणे.
  • मुद्रितशोधकाने मजकूर. तपासताना मुद्रितातील चुका मुद्रितशोधनाच्या खुणांचा उपयोग करून बाजूला प्रत्येक खुणेनंतर तिरकी रेष करावी.
    मूळ प्रतीतील वाचन मुद्रितात शोधावे. प्रत्येक विरामचिन्हाचा लक्षपूर्वक विचार करायचा असतो.
  • नंतर लेखक सॉफ्ट कॉपी मुद्रकाकडे पाठवतो. ती योग्य आहे की नाही हे तपासून पुन्हा ती मुद्रक लेखकाकडे पाठवतो. अंतिम मुद्रित निर्दोष करण्यासाठी पुन्हा ते मुद्रितशोधकाकडे येते. त्यातील काम पूर्ण झाल्यानंतर ती निर्दोष होऊन पुन्हा मुद्रणासाठी पाठविण्यात येते.

प्रश्न 5.
खालील खुणांचा अर्थ स्पष्ट करा.
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उत्तरः
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प्रश्न 6.
खालील तक्ता पूर्ण करा.
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.2 मुद्रितशोधन 2
उत्तरः
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.2 मुद्रितशोधन 4

प्रश्न 7.
खालील गद्य उताऱ्याचे मुद्रितशोधन करून उतारा पुन्हा लिहा.
रामण अतीषय उत्कृष्ट व्याख्याते होते त्याच व्याख्यान एकायला ५००० पेक्षा जास्त लोक जमतत त्यांच भाषण ज्ञान वर्धक असायचच पण अनेक विनोदी आणी किस्से यांनी ते व्याख्यान आपल रंगऊन टाकत ते बोलायला लागले की लोकाला वेळेचं भान च राहत नसे लोकांचे चेरे आनंदं आणि हास्य यांनी फूलुन जा असत असे हे रामन
उत्तरः
मुद्रितशोधन करून उतारा :
रामन अतिशय उत्कृष्ट व्याख्याते होते. त्यांचे व्याख्यान ऐकायला ५००० पेक्षा जास्त लोक जमत. त्यांचे भाषण ज्ञानवर्धक असायचेच; पण अनेक विनोदी किस्से यांनी ते आपलं व्याख्यान रंगवून टाकत. ते बोलायला लागले की लोकांना वेळेचं भानच राहत नसे. लोकांचे चेहरे आनंद आणि हास्य यांनी फुलून जात असत, असे हे रामन.

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11th Marathi Book Answers Chapter 4.2 मुद्रितशोधन Additional Important Questions and Answers

खालील कृती करा.

प्रश्न 1.
मुद्रितशोधन व व्याकरण यांचा सहसंबंध सविस्तर लिहा.
उत्तर :
लेखन करताना महत्त्वाचा घटक म्हणजे मजकुराची शुद्धता सांभाळणे. त्या मजकुराची आशयशुद्धतेची व अचूकतेची जबाबदारी लेखकाएवढीच मुद्रितशोधकाचीही असते. कोणताही मजकूर वाचताना व्याकरण, वाक्यरचना आणि लेखनानियानुसार लेखन या घटकांचा विचार करून त्यातील त्रुटी दूर करून ते लेखन निर्दोष करणे म्हणजेच मुद्रितशोधन. भाषेचा दर्जा उत्तम असेल तर एखादा ग्रंथ किंवा पुस्तक परिपूर्ण वाचनीय होते.

त्यासाठी मुद्रितशोधनात व्याकरणाचे महत्त्व अधिक आहे. वाक्यरचना, शब्दांची पुनरावृत्ती होत नाही ना, तसेच त्यातील संदर्भ योग्य व अर्थपूर्ण आहेत का याचबरोबरच नाम, कर्म, कर्ता, विशेषण, क्रियापद यांचा अभ्यासही मुद्रितशोधनासाठी महत्वाचा असतो. छापून आलेला मजकूर हा लेखननियमानुसारच असणार अशी वाचकाची अपेक्षा असते. त्यातील संदर्भ तो प्रमाण मानत असतो. त्यासाठी शब्दांच्या जातीचा योग्य क्रम, योग्य विरामचिन्हांचा वापर ते लेखन निर्दोष करते. त्यासाठी मुद्रितशोधकाचा व्याकरणाचा सखोल अभ्यास असणे आवश्यक आहे.

कारण मराठी भाषेत असे अनेक शब्द आहेत की ज्यांना भिन्न अर्थ आहेत. त्याचा वापर वाक्यात कुठे व कसा वापरायचा त्यावर त्याचे अर्थ अवलंबून असतात. उदाहरण दयायचे झाले तर – हार – फुलांचा हार किंवा हार – पराभव, नाद – आवाज किंवा नाद – छंद मग वाक्यात कोणता शब्द अचूक बसतो हे मुद्रितशोधनात पाहण्याची गरज आहे. कारण वाक्यातील त्या शब्दांच्या उपाययोजनावर त्या वाक्याचा अर्थ अवलंबून असतो. त्यासाठी मुद्रितशोधन आणि व्याकरण यांचा सहसंबंध खूप जवळचा आहे. त्याचा अभ्यास हा मुद्रितशोधन या शास्त्रात खूप परिणामकारक ठरतो.

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प्रश्न 2.
संगणकाबरोबर स्पेलचेकर असताना मुद्रितशोधनाची आवश्यकता स्पष्ट करा.
उत्तर :
आजच्या नवीन संगणकीय तंत्रज्ञानानुसार मुद्रितशोधनाचे काम खूप सोपे झाले असले तरी ते निर्दोष झाले आहे असे म्हणता येणार नाही.

संगणकीय शब्दलेखन तपासण्याचे काम करणारा (स्पेलचेकर) शब्द बरोबर आहे किंवा चूक आहे एवढेच तपासतो. उदा. ball हा शब्द boll असा मुद्रितामध्ये type झाला असेल तर ‘0’ च्या जागी तो a ही दुरुस्ती करू शकतो. तसेच एखादया शब्दाला पर्यायी शब्द देखील वापरू शकतो. परंतु तो शब्द त्या वाक्यात योग्य आहे की नाही, त्या शब्दाचा वाक्याच्या अर्थाशी संबंध अचूक आहे का? हे त्याला समजत नाही. ते काम मुद्रितशोधकाचे असते.

एखादया शब्दाला योग्य विशेषण किंवा वाक्याच्या अर्थाला योग्य क्रियापद वापरणे हे मुद्रितशोधकच पाहू शकतो. मजकुरातील एखादा परिच्छेद गाळला गेला, चुकीचे संदर्भ दिले गेले, वाक्याचा क्रम चुकीचा असला तर या गोष्टी स्पेलचेकरच्या लक्षात येत नाहीत. मूळ मजकुरानुसार तपासला जाणारा मजकूर पाहण्याचे काम मुद्रितशोधकाचे असते. स्पेलचेकर हा मुद्रितशोधकाला पर्याय नसून तो मुद्रितशोधकाचा साहाय्यक म्हणून काम करत असतो.

त्यामुळे स्पेलचेकरवर संपूर्णतः अवलंबून राहता येत नाही. त्या मजकुरातील त्रुटी दूर करण्याचे आणि शुद्धतेचे काम मुद्रितशोधकालाच करावे लागते. त्यामुळे संगणकाबरोबर स्पेलचेकर असतानादेखील मुद्रितशोधनाची आवश्यकता असते.

कृती : खालील उताऱ्याच्या आधारे दिलेल्या सुचनेनुसार कृती करा.

प्रश्न 1.
घटनांचे परिणाम लिहा.
घटना – परिणाम
(१) एखादया राष्ट्राची भाषा विकसित झाली – …………………………………
(२) भाषा जितक्या दर्जेदारपणे वाचकांसमोर येईल – …………………………………
उत्तर :
घटना – परिणाम
(१) एखादया राष्ट्राची भाषा विकसित झाली – की राष्ट्र विकसित होते
(२) भाषा जितक्या दर्जेदारपणे वाचकांसमोर येईल – त्या प्रमाणात समाजाची दिशा ठरू लागते.

प्रश्न 2.
साहित्य निर्मिती व्यवहारातील घटकांच्या या बाबी ग्रंथाला उच्च निर्मिती क्षमता प्राप्त करून देतात.
(१) [ ……………… ]
(२) [ ……………… ]
(३) [ ……………… ]
(४) [ ……………… ]
उत्तर :
साहित्य निर्मिती व्यवहारातील घटकांच्या या बाबी ग्रंथाला उच्च निर्मिती क्षमता प्राप्त करून देतात.
(१) [त्यांची तज्ज्ञता]
(२) [त्या क्षेत्रातील अधिकार]
(३) [सौंदर्यदृष्टी]
(४) [निष्ठा]

भाषा आणि समाज यांचे ………………………………………… अधिक महत्त्वाचे मानतो. (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. ९४)

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प्रश्न 3.
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.2 मुद्रितशोधन 5
उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.2 मुद्रितशोधन 6

प्रश्न 4.
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.2 मुद्रितशोधन 7
उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.2 मुद्रितशोधन 8

प्रश्न 5.
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.2 मुद्रितशोधन 9
उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.2 मुद्रितशोधन 10

प्रश्न 6.
चूक की बरोबर ते लिहा.

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(a) भाषा आणि समाज यांचे अनन्यसाधारण नाते नसते.
(b) लेखकांनंतर मजकुराचे वारंवार वाचन करणारा जर कोणी असेल तर तो मुद्रितशोधक असतो.
(c) मुद्रितशोधन ही कला असून ते एक शास्त्र आहे.
उत्तर :
(a) चूक
(b) बरोबर
(c) बरोबर

प्रश्न 7.
तुम्हांला माहीत असलेल्या दोन प्रकाशकांची नावे लिहा.
(a) [ ]
(b) [ ]
उत्तर :
तुम्हांला माहीत असलेल्या दोन प्रकाशकांची नावे लिहा.
(a) मॅजेस्टिक प्रकाशन
(b) ग्रंथाली प्रकाशन

प्रश्न 8.
तुम्हाला आवडणाऱ्या दोन लेखकांची नावे लिहा.
(a) …………………
(b) …………………
उत्तर :
तुम्हाला आवडणाऱ्या दोन लेखकांची नावे लिहा.
(a) पु. ल. देशपांडे
(b) कुसुमाग्रज / वि. वा. शिरवाडकर

प्रश्न 9.
खालील तक्ता पूर्ण करा.
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.2 मुद्रितशोधन 11
उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.2 मुद्रितशोधन 12

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कृती : खालील वाक्ये मुद्रितशोधन करून पुन्हा लिहा.

प्रश्न 1.
पिंपळावर मोरपिसाप्रमाणे मऊ मुलायम पाणे उमलली आहेत.
उत्तर :
पिंपळावर मोरपिसाप्रमाणे मऊ मुलायम पाने उमलली आहेत.

प्रश्न 2.
तेथील हवामानाचा परिणाम शेतीवर होते.
उत्तर :
तेथील हवामानाचा परिणाम शेतीवर होतो.

प्रश्न 3.
मी अनेक प्रक्षणीय स्थळांना भेटी दिल्या आहेत.
उत्तर :
मी अनेक प्रेक्षणीय स्थळांना भेटी दिल्या आहेत.

स्वमत :

प्रश्न 1.
भाषा आणि समाज यांचे अनन्यसाधारण नाते असते.
उत्तर :
भाषा आणि समाज यांचा परस्परसंबंध आहे म्हणून त्यांचे अनन्यासाधारण नाते आहे. आपल्या मनातील भावना, विचार आणि कल्पना व्यक्त करण्याचे भाषा हे एक महत्त्वाचे संवादमाध्यम आहे. मानव जेव्हा आदिमानवाच्या काळात रहात होता तेव्हापासून त्याची भाषा त्याच्यासोबत होती. मात्र तेव्हा त्या भाषेचे वेगळे स्वरूप होते. हळूहळू तो समाज करून राहू लागला तेव्हा हावभाव, चित्र, खाणाखुणा या चिन्ह भाषेच्या स्वरूपातून आपल्या भावभावना दुसऱ्यांपर्यंत पोहचवत होता. मग त्याने चिन्हव्यवस्था निर्माण केली. निसर्ग, परिसर, दृश्य-अदृश्य गोष्टी यांना त्याने शब्द दिले.

ध्वनीच्या मार्फत आपण बोलू शकतो याची त्याला जाणीव झाली. मग मानवाचा हळूहळ भाषिक विकास होऊ लागला. भाषेचा विकास होता होता त्याचा सामाजिक विकास होऊ लागला. राजकीय स्थित्यंतरे, आक्रमणे होत जातात तेव्हा समाज बिथरतो, मिसळतो त्यामुळे भाषेचीसुद्धा सरमिसळ होते. महाराष्ट्रावर पोर्तुगीज, यवन, फ्रेंच यांची आक्रमणं झाली त्यावेळी त्या लोकांनी आपल्या बोलीभाषेतले बरेचसे शब्द आपल्याला दिले.

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आपल्या भाषेने ते शब्द स्वीकारले म्हणून तर आपल्या भाषेत उर्दू, अरबी, फारसी, इंग्रजी अशा शब्दांचा मिलाप झालेला दिसतो. भाषा ही सतत परिवर्तनशील, प्रवाही असते. काळाप्रमाणे आपले आजी-आजोबा, आई-बाबा आपली भावंडे, आपल्या मित्रांची भाषा, व्हॉटस् अॅपची भाषा यातही बदल होत गेलेले दिसून येतात.

मुद्रितशोधन प्रास्ताविक

कोणत्याही प्रकारच्या लेखनात त्या लेखनातील व्याकरण शुद्धतेबरोबर आशयाचे संपादन हे महत्त्वाचे असते. त्याची जबाबदारी लेखकाबरोबरच लेखन निर्दोष करणाऱ्या मुद्रितशोधकाचीही तेवढीच असते. हस्तलिखित मजकुरापेक्षा छपाई केलेल्या मजकुराचा वाचकांच्या मनावर चांगला परिणाम होतो. हे मुद्रण कलेचा जन्म होण्यापूर्वी मानवाने या संदर्भात अनेक प्रयोग केले होते. आजच्या तंत्रज्ञानाच्या युगात मुद्रितशोधनाचे महत्त्व अधिक आहे.

मुद्रितशोधन स्वरूप :

मुद्रितशोधन – लेखकांकडून प्रमाण लेखनात अनवधानाने राहिलेल्या त्रुटी दूर करून लेखन निर्दोष करणे म्हणजे ‘मुद्रितशोधन’ (Proof Reading) होय.

मुद्रितशोधक – व्याकरणाच्या परिपूर्ण अभ्यासाने जाणीवपूर्वक लक्ष देऊन लेखनातील त्रुटी काळजीपूर्वक दूर करण्याचे काम करणारी व्यक्ती म्हणजे ‘मुद्रितशोधक’ (Proof Reader) होय.

लेखकाला प्रत्येक वेळी लेखनाचे सखोल ज्ञान असतेच असे नाही. त्यामुळे लिहिण्याच्या ओघात अनवधानाने काही लिहावयाचे राहून जाते व त्यात पुनरावृत्ती होऊ शकते. व्याकरण व लेखननियमानुसार लेखन अचूक व निर्दोष होण्यासाठी मुद्रितशोधनाची गरज असते. स्थानिक ते जागतिक स्तरावर लिखित मजकुराची आवश्यकता असल्याने मुद्रितशोधनाची व्याप्ती मोठी आहे.

मुद्रितशोधकाचे महत्त्व : भाषा व समाज यांच्यात अनन्यसाधारण नाते आहे. एखादया राष्ट्राच्या भाषेचा विकास झाला की राष्ट्राचा विकास होत असतो.त्याची सर्वांगीण प्रगती होते. भाषा लिहिणारे, वाचणारे, बोलणारे यांचे प्रमाणही वाढते. या भाषेचा दर्जा जेवढा उत्तम असेल तेवढी समाजाची प्रगती अधिक.

त्या भाषेचे जतन संवर्धन योग्य पद्धतीने करण्याची जबाबदारी मुद्रितशोधकाची असते. साहित्य निर्मितीमध्ये लेखक, टंकलेखक, मुद्रितशोधक, मुद्रक व प्रकाशक हे अत्यंत महत्त्वाचे घटक असून त्यांचे सखोल ज्ञान, भाषाप्रभुत्व, सौंदर्यदृष्टी, साहित्य निष्ठा या गोष्टी ग्रंथाच्या उच्चनिर्मितीसाठी कारणीभूत असतात. लेखकांनंतर तो ग्रंथ परिपूर्ण व वाचनीय करण्याचे काम मुद्रितशोधक करतो.

लेखक व मुद्रक यांमधील तो दुवा तर असतोच शिवाय भाषेचा संवर्धक, रक्षणकर्ता, प्रकाशकांचा मित्र व वाचकांचा प्रतिनिधी अशा विविध भूमिका तो पार पाडत असतो. उत्तम मुद्रिकशोधक मुद्रितशोधन या व्यवसायाला उत्तम दर्जाचे स्थान देऊ शकतो.

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मुद्रितशोधकाची भूमिका : मुद्रिकशोधकाला भाषेची उत्तम जाण येण्यासाठी भाषेच्या अभ्यासासोबत, स्वयंअध्ययन, विविध वाचन, व्याकरणाची जाण, लेखन, चिंतन या गोष्टींची गरज असते. मुद्रितशोधनाची भूमिका ही केवळ प्रमाणभाषेतील लेखन तपासणे इतकी मर्यादित नसून वाक्ये अर्थपूर्ण आहेत का? त्यातील संदर्भ योग्य आहेत का? शब्दांची पुनरावृत्ती होत नाही ना? याचीही काळजी त्याला घ्यावी लागते.

पुस्तकांचे पृष्ठ क्रमांक, अनुक्रमाणिका, मजकुराची सलगता याकडेही त्याचे दुर्लक्ष होता कामा नये. त्याला मजकुरासंदर्भात काही शंका निर्माण झाल्या तर त्या निदर्शनास आणून देणेही गरजेचे असते. लेखकाचा मजकूर निर्दोष व सुंदर करून तो वाचकांपर्यंत पोहचविण्याची जबाबदारी मुद्रितशोधकाची असते.

पुस्तकाचे संपादन, सूची, शब्दांकन, लेखन, भाषांतर, अनुवाद अशा कामे करून जाणकार, मुद्रितशोधक आपली क्षमता विकसित करू शकतो. कारण चांगला मुद्रितशोधक होणे ही एक तपश्चर्याच आहे.

मुद्रितशोधनासाठी आवश्यक ज्ञान, कौशल्ये : मुद्रितशोधकाला भाषेची उत्तम जाण हवी. प्रमाणभाषेनुरूप व्याकरण शुद्धतेबरोबरच लिहिलेला मजकूर अर्थपूर्ण व बिनचूक आहे का? हे तपासणे व याची जाण असणे मुद्रितशोधकासाठी आवश्यक असते.

मुद्रितशोधकाला मुद्रणविषयक तंत्र व दृष्टी हवी. आपले ज्ञान अदययावत ठेवणेही महत्त्वाचे असते. अनेक विषयांतील रुची, कामावरील निष्ठा या गोष्टीही तितक्याच महत्त्वाच्या आहेत. उत्तम मुद्रितशोधक होण्याच्या दृष्टीने चिकाटी, अभ्यासातील सातत्य, सराव या गोष्टींना महत्त्व असून या गोष्टी मुद्रितशोधकाला परिपूर्ण व प्रगत करतात. या गोष्टींमुळे तो स्वत:ची वेगळी ओळख निर्माण करू शकतो. मुद्रितशोधकाची साधनसामग्री – ज्या भाषेतील मुद्रिते तपासयाची त्या भाषेतील शब्दकोश उदा. मराठी, हिंदी, इंग्रजी, व्याकरणविषयक पुस्तके, संदर्भ ग्रंथ, मुद्रित शोधनाच्या खुणांचा तक्ता.

शैली पुस्तिका, प्रमाणभाषेची नियमावली पुस्तिका या साधनांचा उपयोग केल्याने मुद्रितशोधकाचे काम निर्दोष व सुलभ होते.

मुद्रितशोधनाचे तंत्र – कोणत्याही मुद्रिताची किमान तीन वाचने होतात. पहिले वाचन – मूळ मजकूर, टंकलिखित मजकूर यांचे वाचन साहायकाच्या मदतीने करून पहिल्या वाचनातील असंख्य दुरुस्त्यांचे निराकरण करणे.

दुसरे वाचन – पहिल्या मुद्रितातील त्रुटी व शंकांची तपासणी करून नव्याने आढळलेल्या दुरुस्त्या करणे. पृष्ठमांडणी, पृष्ठक्रमांक, अनुक्रमणिका, चित्रे, आकृत्या इत्यादींची योग्य मांडणी करून त्याचे पुन्हा वाचन होणे आवश्यक असते.

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तिसरे वाचन – दुसऱ्या मुद्रितातील दुरुस्त्या तपासणे. अंतिम छपाईला जाण्यापूर्वी लेखक व मुद्रितशोधक जाणीवपूर्वक वाचन व दुरुस्त्या तिसऱ्या वाचनात करतात. कारण छापल्यानंतर दुरुस्ती होणे शक्य नसते. मजकूर तपासताना मुद्रितशोधकाने मुद्रितातील चुका मुद्रितशोधनाच्या खुणांचा उपयोग करून बाजूच्या मोकळ्या जागेत करून प्रत्येक खुणेनंतर तिरकी रेष मारावी. मुद्रितशोधकाचे काम मूळ प्रतीत जे आहे ते मुद्रितात शोधणे होय.

मजकूर तपासताना येणाऱ्या शंकांची नोंद ठेवणे. शब्दकोश व संदर्भग्रंथ यांचा गरजेनुसार वापर करण्याची सवय हवी. प्रत्येक विरामचिन्ह व व्याकरणाचा विचार करण्याची गरज असते. नंतर लेखक मुद्रकाकडे सॉफ्ट कॉपी पाठवतो. मुद्रकाकडून ती निर्दोषित झाल्यावर ती मुद्रितशोधकाकडे येते. मुद्रित मजकुराची योग्य मांडणी करून मुद्रितशोधक ती पुन्हा लेखकाकडे पाठवतो. अंतिम मुद्रित परिपूर्ण व निर्दोष करण्याचे मुद्रितशोधकाचे काम पूर्ण झाल्यावर ते मुद्रणासाठी पाठवण्यात येते.

संगणकावर स्पेलचेक असताना मुद्रितशोधकाची गरज काय?

आजच्या संगणक युगात तंत्रज्ञानामुळे मुद्रितशोधकाचे काम सोपे झाले आहे. परंतु ते निर्दोष झाले आहे असे म्हणता येणार नाही. स्पेलचेकर शब्द बरोबर आहे म्हणजे एखादया शब्दाचे (Spelling) बरोबर आहे की नाही ते तपासतो. परंतु तो शब्द त्या जागी योग्य आहे का हे त्याला समजणे कठीण आहे. म्हणून स्पेलचेकरला कायम सावधगिरी बाळगणे आवश्यक असते.

कारण अनेक विशेषणांपैकी एखादया शब्दाला कोणते विशेषण अनुरूप आहे हे बघणे त्याचे काम असते. एखादा परिच्छेद गाळला गेला, वाक्यांचे अर्थ लागले नाही हे स्पेलचेकरला समजत नाही. ते काम मुद्रितशोधक करू शकतो. कारण नाम-विशेषण, कर्ता, कर्म, क्रियापद यांचा अभ्यास व ज्ञान मुद्रितशोधकाकडे असते. स्पेलचेकरची भूमिका ही मदतनीसाची असते त्यावर आपण अवलंबून राहू शकत नाही.

मुद्रण व्यवसायाशी संबंधित काही संज्ञा, घटक आणि प्रक्रिया यांची माहिती खाली दिली आहे.

मुद्रण व्यवसायाशी संबंधित विविध घटक आणि व्यक्ती

मुद्रक Printer मजकुराची छपाई करणारा
मुद्रण प्रत Press Copy छपाईसाठी मजकुराची तयार प्रत
मुद्रित Proof तपासणीसाठी काढलेली प्रत
मुद्रण Printing मजकुराची छपाई
मुद्रितशोधक Proof Reader मुद्रितातील त्रुटी सुधारणारा
मुद्रितशोधनाच्या खुणा Proof Marks मजकूर दुरुस्त करण्याची चिन्हे
मुद्रितशोधन Proof Reading मजकूर निर्दोष करण्याची प्रक्रिया
मुद्रित प्रत Print Out छपाईनंतरची प्रत Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.2 मुद्रितशोधन
मुद्रणालय Press छापखाना

Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.1 सूत्रसंचालन

Balbharti Maharashtra State Board Marathi Yuvakbharati 11th Digest Bhag 4.1 सूत्रसंचालन Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

Maharashtra State Board 11th Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.1 सूत्रसंचालन

11th Marathi Digest Chapter 4.1 सूत्रसंचालन Textbook Questions and Answers

कृती

खालील कृती करा.

प्रश्न 1.
उत्तम सूत्रसंचालनासाठी आवश्यक असलेली कौशल्ये स्पष्ट करा.
उत्तरः
सूत्रसंचालनासाठी वाचन, श्रवण-निरीक्षण, चिंतन-मनन ही मूलभूत कौशल्ये आत्मसात करावी लागतात. कोणत्याही सूत्रसंचालकाला प्रभावी सूत्रसंचालन करण्यासाठी महत्त्वाची कौशल्ये आत्मसात करावी लागतात. सूत्रसंचालकाचा आवाज भारदस्त असावा. आवाजात सष्टपणा असावा. तो बोलताना कुठेही अडखळणार नाही याची काळजी घ्यावी लागते. त्याची भाषा साधी, सोपी व श्रोत्यांना समजणारी असावी.

Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.1 सूत्रसंचालन

अतिशय बोजड किंवा फार आलंकारिक भाषेचा वापर करू नये. सूत्रसंचालकाचे व्यक्तिमत्त्व प्रसन्न असावे. त्याचा व्यासपीठावरील वावर आत्माविश्वासपूर्ण असावा. कार्यक्रमात निवेदन करताना व्यासपीठावरील मान्यवरांचा सन्मानपूर्वक परिचय करून देण्याचे व त्यांचा यथोचित नामोल्लेख व त्यांना अभिवादन करण्याचे कौशल्य सूत्रसंचालकाकडे असणे गरजेचे आहे. कार्यक्रमात समयसूचकता, हजरजबाबीपणा, मिस्किलपणा असावा.

कार्यक्रमात आयत्या वेळी बदल करताना तो लीलया आणि सहजपणे करण्याचे कौशल्य सूत्रसंचालकाकडे असावे. सूत्रसंचालक हा कार्यक्रमाचा मुख्य सूत्रधार असल्याने वक्ते, कलावंत यांना प्रोत्साहित करण्याचे कौशल्य त्याच्याकडे असावे लागते. समोरचा वयोगट लक्षात घेऊन भाषाशैली, उदाहरणे, काव्यपंक्ती यांचा सुव्यवस्थित वापर करावा लागतो. आवाजाबरोबरच ध्वनिवर्धकाचा उत्तम सराव असणे अपेक्षित आहे.

कार्यक्रम हा बंदिस्त सभागृहात आहे की खुल्या मैदानावर यावर सूत्रसंचालकाची भूमिका फार महत्त्वाची असते. त्या बदलत्या वातावरणाचा अभ्यास करून त्याला त्या परिस्थितीशी जुळवून घेता आले पाहिजे. उत्तम सूत्रसंचालक हा चांगला निवेदक, वक्ता असावा. कार्यक्रमाच्या स्वरूपानुसार सूत्रसंचालकाला तो-तो विषय समजला पाहिजे. उदा. सांगितिक कार्यक्रमात संगीताची जाण त्याला असणे गरजेचे आहे. सूत्रसंचालकाचे भाषेवर प्रभुत्व असावे.

सूत्रसंचालकाचा उदंड आत्मविश्वास हा त्याच्या सूत्रसंचालनाच्या यशस्वितेची गुरुकिल्ली आहे. थोडक्यात सूत्रसंचालकाकडे प्रवाही भाषा, आत्मविश्वास, समयसूचकता, हजरजबाबीपणा, व्यासंग, देहबोली ही गुणवैशिष्ट्ये असणे गरजेचे आहे आणि याच कौशल्यांतून तो उत्तम सूत्रसंचालक होऊ शकतो.

प्रश्न 2.
‘वसुंधरा दिनानिमित्त’ होणाऱ्या वक्तृत्व स्पर्धेची कार्यक्रमपत्रिका तयार करा.
उत्तरः

जागतिक वसुंधरादिनानिमित्त आयोजित वक्तृत्व स्पर्धा
वक्तृत्व स्पर्धा
कार्यक्रम पत्रिका

दि. २२ एप्रिल

  • पूर्वकथन :
  • दीपप्रज्वलन :
  • वसुंधरा गीत :
  • पाहुण्यांचा परिचय व पाहुण्यांचे स्वागत :
  • प्रास्ताविक :
  • ‘चला वसुंधरा वाचवू या’ शपथः
  • मा. उद्घाटक मनोगत :
  • स्पर्धकांचे सादरीकरण :
  • परीक्षकांचे मनोगत :
  • स्पर्धेचा अंतिम निकाल :
  • पारितोषिक वितरण :
  • मा. अतिथी मनोगत :
  • अध्यक्षीय मनोगत :
  • आभारप्रदर्शन :

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प्रश्न 3.
‘सूत्रसंचालकाच्या दृष्टीने कार्यक्रम पत्रिकेचे महत्त्व अनन्यसाधारण आहे’, हे विधान स्पष्ट करा.
उत्तरः
कोणत्याही कार्यक्रमाचा मुख्य आधार ही त्या कार्यक्रमाची कार्यक्रम पत्रिका असते. कार्यक्रम पत्रिका ही संपूर्ण कार्यक्रमाची रूपरेषा ठरविणारी असते. कार्यक्रम पत्रिका ही कार्यक्रमाची खरी ओळख व त्याचे स्वरूप मांडणारी असते. कार्यक्रम पत्रिकेनुसार कार्यक्रम पुढे-पुढे जात असतो. सूत्रसंचालकाला कार्यक्रम पत्रिकेची अस्सल ओळख असणे गरजेचे असते. सूत्रसंचालकाला कार्यक्रमाच्या सादरीकरणासाठी कार्यक्रम पत्रिका समजून घेणे गरजेचे असते.

प्रत्येक कार्यक्रमाची कार्यक्रम पत्रिका वेगळी असते. त्याची संहिता वेगळी असते. कार्यक्रम पत्रिकेतील घटकांनुसार कार्यक्रम पुढे जात असतो. सूत्रसंचालकाला कार्यक्रम पत्रिकेमुळे कार्यक्रमाची मांडणी, गुंफण करणे सोपे जाते.

कार्यक्रम पत्रिका ही सूत्रसंचालकाला त्याचे निवेदन करताना मार्गदर्शक ठरते. कोणता भाग झाल्यावर पुढे काय करायचे याची दिशा देण्याचे काम सोपे होते. दोन भाग, कार्यक्रम जोडण्याची संधी सूत्रसंचालकाला मिळते. कार्यक्रम पत्रिकेतील क्रमानुसार कार्यक्रम पुढे-पुढे नेता येत असल्याने सूत्रसंचालकाला फार मेहनत घ्यावी लागत नाही. थोडक्यात कार्यक्रम पत्रिका ही सूत्रसंचालकासाठी मार्गदर्शक व दिशादर्शक असते.

कार्यक्रम पत्रिका नसेल तर सूत्रसंचालकाला सूत्रसंचालन करणे अवघड होईल. कार्यक्रम पत्रिकेशिवाय कार्यक्रम पुढे कसा न्यायचा? कशानंतर काय? अशी संदिग्धता सूत्रसंचालकाच्या मनात निर्माण होऊन ऐनवेळी कार्यक्रमात गोंधळ होऊ शकतो हे टाळण्यासाठी सूत्रसंचालकाच्या हाती कार्यक्रम पत्रिका असणे गरजेचे आहे. म्हणून कार्यक्रम पत्रिका ही कोणत्याही कार्यक्रमात सूत्रसंचालकाच्या दृष्टीने खूप महत्त्वाची असते.

विशेष म्हणजे सूत्रसंचालन करणाऱ्या सूत्रसंचालकाने संबंधित कार्यक्रमाची कार्यक्रम पत्रिका तयार करणे अभिप्रेत असते. त्यामुळे तो संपूर्ण कार्यक्रम सूत्रसंचालकाला समजणे सापे जोते.

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प्रश्न 4.
‘सूत्रसंचालकाने व्यवस्थित पूर्वतयारी केली तरच सूत्रसंचालन उत्तम होऊ शकते’, या विधानाची सत्यता
पटवून दया.
उत्तरः
कोणत्याही कार्यक्रमाची यशस्विता ही त्याच्या पूर्वतयारीवर अवलंबून असते. सूत्रसंचालकाने व्यवस्थित पूर्वतयारी केली तर उत्तम सूत्रसंचालन होऊ शकते. सूत्रसंचालकाला पूर्वतयारी करताना चौफेर वाचन करायला हवे. राजकीय, सामाजिक, शैक्षणिक, सांस्कृतिक, कला, क्रीडा, संगीत सर्वच क्षेत्रांची माहिती असली तर चांगली तयारी करून सूत्रसंचालनात आपली छाप पाडता येते. पूर्वतयारी नसेल, त्या त्या क्षेत्राची माहिती नसेल तर सूत्रसंचालन प्रभावी होणार नाही. पूर्वतयारी करताना कवितेच्या ओळी, अवतरणे, विनोद यांचा संग्रह सूत्रसंचालकाकडे असेल तर कार्यक्रमाच्या वेळी उपयोगी पडतो.

शब्दफेक, भाषेवर प्रचंड प्रभुत्व या सूत्रसंचालकाच्या जमेच्या बाजू आहेत. त्याची तयारी असेल, सराव असेल तर सूत्रसंचालन उत्तम होते. तयारी करताना देहबोली, सभाधीटपणा, आवाजाची लय, श्वासावर नियंत्रण या गोष्टींवर लक्ष केंद्रीत करावे लागते. वेगवेगळ्या वाहिन्यांवरील कार्यक्रमातील सूत्रसंचालन बघून सराव करता येतो. आपल्यातील त्रुटी, उणीवा दूर करता येतात. या सर्व गोष्टी एका दिवसात आत्मसात करता येत नाहीत. त्यासाठी सातत्याने प्रयत्न करावे लागतात. सूत्रसंचालनात ध्वनिवर्धकाचा उत्तम सराव करावा लागतो. ध्वनिवर्धक किती अंतरावर असावा.

आवाजातील चढ उतार, लय यांचा अभ्यास करून तयारी केली तर एकूण चांगला परिणाम साधता येतो. थोडक्यात कोणत्याही कार्यक्रमाचे सूत्रसंचालन करण्यापूर्वी कार्यक्रमाचे स्वरूप, विषय, श्रोता, ठिकाण या सर्व गोष्टींचा बारकाईने विचार करून पूर्वतयारी केली तर कार्यक्रमात अतिशय प्रभावी व उठावदार सूत्रसंचालन करता येते.

प्रकल्प.

प्रश्न 1.
कनिष्ठ महाविद्यालयात संपन्न होणाऱ्या कविकट्ट्यासाठी सूत्रसंचालनाची संहिता तयार करून सादरीकरण करा.
उत्तरः
प्रकल्प विदयार्थ्यांनी स्वतः करा.

11th Marathi Book Answers Chapter 4.1 सूत्रसंचालन Additional Important Questions and Answers

कृती : २ आकलन कृती

1. खालील उताऱ्याच्या आधारे सुचनेनुसार कृती करा.

प्रश्न अ.
पुढील आकृतिबंध तयार करा.
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.1 सूत्रसंचालन 1
उत्तरः
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.1 सूत्रसंचालन 2

Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.1 सूत्रसंचालन

सूत्रसंचालन : एक वलयांकित ………………………………….. सामान्यज्ञान अदययावत राहते. (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र.८९)

प्रश्न आ.
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.1 सूत्रसंचालन 3
उत्तरः
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.1 सूत्रसंचालन 4.

प्रश्न इ.
कारण लिहा.
अनेक युवक-युवतींना हे क्षेत्र खुणावत आहे कारण ….
उत्तरः
अनेक युवक-युवतींना हे क्षेत्र खुणावत आहे कारण काही अभिनेते आणि अभिनेत्री उत्कृष्ट सूत्रसंचालक म्हणून वेगळा ठसा उमटवत आहेत.

प्रश्न ई.
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.1 सूत्रसंचालन 5
उत्तरः
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.1 सूत्रसंचालन 6

Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.1 सूत्रसंचालन

स्वमत :

प्रश्न  1.
“सूत्रसंचालन – एक वलयांकित व्यवसाय’ हे विधान स्पष्ट करा.
उत्तरः
आज युवक-युवती यांना करिअरचे अनेक पर्याय उपलब्ध झाले आहेत. बदलत्या काळाची पाऊले ओळखून अनेकांनी वेगवेगळ्या क्षेत्रात आपल्या कार्याचा ठसा उमटविला आहे. मळलेल्या वाटा सोडून नवनवीन क्षेत्रे आज युवक-युवतींना खुणावत आहेत. प्रत्येक क्षेत्रात आज विविध कार्यक्रमांचे आयोजन केले जाते. या प्रत्येक कार्यक्रमासाठी सूत्रसंचालकाची आवश्यकता असते. या कार्यक्रमांतून सूत्रसंचालकाला चांगले मानधन तर मिळतेच पण त्याचबरोबर स्वत:ची समाजात एक वेगळी ओळख निर्माण होते.

सार्वजनिक कार्यक्रमाबरोबरच आज दूरचित्रवाणीवर विविध कार्यक्रम सादर होतात. विशेषतः सांस्कृतिक कार्यक्रम, रिअॅलिटी शो, पुरस्कार प्रदान सोहळे इ. कार्यक्रमांचे आयोजन केले जाते. या कार्यक्रमाच्या सादरीकरणात सूत्रसंचालकाची भूमिका फार महत्त्वाची आहे. किंबहुना काही कार्यक्रम सूत्रसंचालकाच्या भूमिकेमुळे लोकप्रिय झाले आहेत. पूर्वीच्या काळी सूत्रसंचालन केवळ छंद, हौस, आवड म्हणून केले जाई.

पण आज सूत्रसंचालन केवळ छंद न राहता तो एक वलयांकित व्यवसाय झाला आहे. पूर्ण वेळ सूत्रसंचालन करणाऱ्या अनेक सूत्रसंचालकांनी आपल्या कार्यातून वेगळी ओळख निर्माण केली आहे. आज अनेक अभिनेते आणि अभिनेत्री उत्कृष्ट सूत्रसंचालक म्हणून वेगळा ठसा उमटवित आहेत. थोडक्यात सूत्रसंचालन हा एक वलयांकित व्यवसाय झाला आहे. या व्यवसायातून अनेकांना प्रतिष्ठा, सन्मान व उत्तम करिअरचा मार्ग खुला झाला आहे.

स्वाध्यायासाठी कृती खालील कृती करा.

(१) खाली दिलेल्या मुद्द्यांच्या आधारे निरीक्षण व श्रवण कौशल्ये कशी विकसित करता येतील ते लिहा.

  • व्याख्याने, मुलाखती आस्वाद
  • शक्तीस्थळे, त्रुटी, अभ्यास
  • दूरचित्रवाणी
  • आकाशवाणी कार्यक्रम
  • नामवंत सूत्रसंचालक शैली
  • यु ट्यूब
  • स्वत:ची निवेदन शैली

Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.1 सूत्रसंचालन

(२) उत्तम सूत्रसंचालक होण्यासाठी आवश्यक बाबी तुमच्या शब्दात लिहा.
(३) ‘राष्ट्रीय साक्षरता दिन” निमित्त आयोजित वक्तृत्व स्पर्धेची कार्यक्रम पत्रिका तयार करा.
(४) प्रत्यक्ष सूत्रसंचालन करताना सूत्रसंचालकाने कोणती पथ्ये पाळावीत स्पष्ट करा.

कृती-१. सरावासाठी काही कार्यक्रम पत्रिका नमुने.

शिक्षकदिन समारंभ

  • पूर्वकथन
  • दीपप्रज्वलन व प्रतिमापूजन
  • पाहुण्यांचा परिचय व स्वागत
  • प्रास्ताविक
  • शिक्षकदिनानिमित्त आयोजित व्याख्यान
  • मान्यवरांचे मनोगत
  • अध्यक्षीय मनोगत
  • आभार प्रदर्शन

गुणवंत विदयार्थी सत्कार समारंभ

  • पूर्वकथन
  • पाहुण्यांचा परिचय व स्वागत
  • प्रास्ताविक
  • गुणवंत विदयार्थी सत्कार
  • मनोगत
    • गुणवंत विदयार्थी
      १ ……………….., २ ………………..
    • मान्यवर मनोगत
      १ ……………….., २ ………………..
  • प्रमुख अतिथी मनोगत
  • अध्यक्षीय मनोगत
  • आभार प्रदर्शन

Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.1 सूत्रसंचालन

कृती-२.

प्रश्न 1.
‘गुरुपौर्णिमा’ या कार्यक्रमासाठी सूत्रसंचालनाचा नमुना तयार करा.
उत्तरः
महाविदयालयात संपन्न झालेल्या ‘गुरुपौर्णिमा’ कार्यक्रमाचा सूत्रसंचालन नमुना पुढीलप्रमाणे –

कार्यक्रमपत्रिका सूत्रसंचालकाचे निवेदन
मान्यवरांचे व्यासपीठावर आगमन सुस्वागतम्! सुस्वागतम् !
………….. एज्युकेशन संस्थेचे, नूतन कला, वाणिज्य व विज्ञान कनिष्ठ महाविदयालयात आज गुरुपौर्णिमा सोहळा संपन्न होत आहे. गुरुपौर्णिमेनिमित्त व्यासपीठावर उपस्थित असलेल्या सर्व मान्यवरांचे व आपल्याला शिकवणाऱ्या सर्व गुरुजनांचे मी, (स्वतःचे नाव ………………………..) मन:पूर्वक स्वागत करतो/करते.
विदयार्थी मित्र, मैत्रिणींनो आज आषाढ शुद्ध पौर्णिमा म्हणजेच गुरुपौर्णिमा. या दिवसालाच व्यासपौर्णिमा असेही म्हणतात.
महर्षी वेदव्यास यांना आदयगुरु म्हणून संबोधले जाते. वेदांची सूत्रबद्ध विभागणी, ब्रम्हसूत्रे व महाभारत ग्रंथाचे लेखन महर्षी व्यासांनी केले. महान, ज्ञानी व्यासमुनींना वंदन करून त्यांचा आशीर्वाद घेण्याचा हा एक महत्त्वपूर्ण दिवस.
आपले आई-वडील हे आपले आयगुरु. बऱ्याच गोष्टी आपण त्यांच्याकडून शिकतो. शालेय जीवनापासून आपले शिक्षक आपल्याला ज्ञानसंपन्न करण्याचा प्रयत्न करत असतात. Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.1 सूत्रसंचालन
आपल्या भारतीय संस्कृतीत गुरुला देवतुल्य मानले आहे. ‘मातृदेवो भव’, ‘पितृदेवो भव’, ‘आचार्य देवो भव’ चा संस्कार आपल्या मनावर आहे. म्हणूनच कार्यक्रमाच्या प्रारंभी देवरूपातल्या गुरुंची सर्वजण मिळून प्रार्थना करूया.
गुरुर्ब्रम्हा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरु साक्षात् परब्रम्ह, तस्मै श्री गुरवे नमः।।
ज्ञानदानाचे पवित्र कार्य करणाऱ्या सर्व गुरुजनांना वंदन करून पुन:श्च एकवार उपस्थित सर्वांचे स्वागत करून कार्यक्रमाला सुरुवात करूया.
अध्यक्षीय सूचना कार्यक्रमाची अध्यक्षीय सूचना मांडत आहे आपल्या कनिष्ठ महाविदयालयाचा जनरल सेक्रेटरी (GS) ………………………..
अनुमोदन अध्यक्षीय सूचनेस अनुमोदन देत आहे आपल्या कनिष्ठ महाविदयालयाची विदयार्थिनी प्रतिनिधी (LR) कु. ………………………..
गुरुंना मानवंदना आजच्या गुरुपौर्णिमेच्या निमित्ताने सन्माननीय जगदीश खेबुडकरांच्या लेखणीतून साकारलेले, प्रभाकर जोग यांनी संगीत साज चढविलेले, अनुराधा पौडवाल व सुधीर फडके यांनी गायलेले ‘कैवारी’ चित्रपटातील एक अजरामर गीत.
“गुरुने दिला ज्ञानरूपी वसा, आम्ही चालवू हा पुढे वारसा” आपल्या गुरुजनांना गीतरूपात मानवंदना देत आहेत इ. ११वी विज्ञान वर्गातील विदयार्थीनी, कु. …………., कु. …………., कु. …………., कु.
ज्ञानरूपातला हा वारसा समर्थपणे मला, तुम्हाला नव्हे आपल्या सर्वांना पुढे चालवायचा आहे. ज्ञानसंपन्न होऊन राष्ट्राच्या प्रगतीत आपल्यालाही खारीचा वाटा उचलायचा आहे.
प्रतिमापूजन व दीपप्रज्ज्वलन आजच्या कार्यक्रमाचे तथा संस्थेचे अध्यक्ष सन्माननीय बाळासाहेब शेटे, कनिष्ठ महाविदयालयाचे प्राचार्य सन्मा. संजयजी थोरात सर व व्यासपीठावरील इतर मान्यवर यांना विनंती आहे की, विदयेची देवता सरस्वती व महर्षी वेदव्यास यांच्या प्रतिमांना पुष्पहार घालून, दीपप्रज्ज्वलन करावे.
धन्यवाद सर! Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.1 सूत्रसंचालन
अज्ञानरूपी अंधकारात ज्ञानाची ज्योत तेवत ठेवणे महत्त्वाचे आहे. ‘गुरु बिन कौन बताये बाट, बड़ा विकट यमघाट’ अशा परिस्थितीत योग्य रस्ता दाखवण्याचे काम आपले गुरुजन, प्राध्यापक करीत असतात.
स्वागत व प्रास्ताविक व्यासपीठावरील उपस्थित मान्यवरांचे, संस्थेच्या पदाधिकाऱ्यांचे स्वागत व कार्यक्रमाचे प्रास्ताविक कनिष्ठ महाविदयालयाचे प्राचार्य सन्माननीय संजयजी थोरात सर यांनी करावे अशी मी त्यांना विनंती करतो.
धन्यवाद सर.
भारतीय संस्कृतीतील गुरुपरंपरा आपण आम्हास ज्ञात करून दिली. एकलव्याची गुरुनिष्ठा पाहिली की सर्वांचेच मस्तक नम्र झाल्याशिवाय राहत नाही.
मान्यवरांचा व गुरुजनांचा सत्कार ….संस्थेचे अध्यक्ष सन्माननीय बाळासाहेब शेटे यांचा सत्कार महाविदयालयाचे प्राचार्य संजयजी थोरात सर यांनी करावा अशी मी त्यांना विनंती करतो.
संस्थेचे कार्यकारिणी सदस्य माननीय अशोकराव कडलग यांचा सत्कार उपप्राचार्य शिंदे सरांनी करावा अशी मी त्यांना विनंती करतो.
महाविदयालयाचे प्राचार्य माननीय संजयजी थोरात सरांचा सत्कार कनिष्ठ महाविदयालयाचा जनरल सेक्रेटरी संदीप पाटील याने करावा अशी मी त्यास विनंती करतो.
विदयार्थी मंडळाच्या सर्व सदस्यांनी व्यासपीठावर व विदयार्थ्यांमध्ये बसलेल्या गुरुवर्यांचा सत्कार गुलाबपुष्प देऊन जागेवर जाऊन करावा अशी सर्वांना विनंती आहे.
मनोगत कनिष्ठ महाविदयालयाचे उपप्राचार्य प्रा. शिंदे सरांनी आपले मनोगत व्यक्त करावे अशी मी त्यांना विनंती करतो. धन्यवाद सर!
पौर्णिमा म्हणजे पूर्ण चंद्राचा प्रकाश. गुरु वा शिक्षक आपल्याला ज्ञानरूपी प्रकाश दाखवून परिपूर्ण करण्याचा अविरत प्रयत्न करतात हेच खरे.
आजच्या कार्यक्रमाचे अध्यक्ष सन्माननीय बाळासाहेब शेटे यांना विनंती आहे की, त्यांनी आम्हांस मार्गदर्शन करावे. धन्यवाद अध्यक्ष साहेब! Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.1 सूत्रसंचालन
जीवनातील गुरुंचे, शिक्षकांचे महत्त्व आपण अनेक उदाहरणे देऊन स्पष्ट केले. माऊली ज्ञानदेवांनी म्हटल्याप्रमाणे, ‘सद्गुरु सारीखा असता पाठीराखा। इतरांचा लेखा कोण करी’ संसारसागरातून तरून जाण्याचा मार्ग सद्गुरू दाखवतात तर आपले शिक्षक, प्राध्यापक ज्ञानसागर तरून जाण्याचा, योग्य ज्ञानाचा मार्ग दाखवतात हेच खरे!
आभार प्रदर्शन आभाराचे भार कशाला
सत्काराचे हार कशाला
हृदयामध्ये घर बांधूया
त्या घराला दार कशाला
मनात राहू परस्परांच्या
तिसऱ्याचा आधार कशाला :-
कार्यक्रमाचे आभार प्रदर्शन पर्यवेक्षक प्रा. वाकचौरे सर यांनी करावे अशी मी त्यांना विनंती करतो.
पसायदान कार्यक्रमाची सांगता संत ज्ञानेश्वर माऊलींच्या पसायदानाने होत आहे. पसायदानासाठी सर्वांनी हात जोडून बसावे.
सूचना : यानंतर कनिष्ठ महाविदयालयाचे कोणतेही तास होणार नाहीत. उदया नेहमीप्रमाणे वेळापत्रकानुसार वर्गांचे तास होतील.
धन्यवाद! जय महाराष्ट्र!!!

सूत्रसंचालन प्रास्ताविक:

जिथे जिथे श्रोत्यांसमोर एखादा कार्यक्रम सादर केला जातो तेथे तेथे सूत्रसंचालकाची महत्त्वाची भूमिका असते. आजच्या युगात राजकीय, सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक, साहित्यिक अशा विविध क्षेत्रांत कार्यक्रमांचे आयोजन केले जाते. या कार्यक्रमांची नेटकेपणाने व सुव्यवस्थितपणे मांडणी करणे आवश्यक असते.

Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.1 सूत्रसंचालन

उत्कृष्ट सूत्रसंचालनामुळे कार्यक्रमाची उंची वाढून तो श्रोत्यांच्या हृदयापर्यंत पोहोचतो. कोणत्याही कार्यक्रमाचा आलेख चढता ठेवण्यासाठी सूत्रसंचालक खूप महत्त्वाची भूमिका पार पाडत असतो. ‘नियोजित कार्यक्रमात प्रेक्षकांपुढे सादर करण्यात येणाऱ्या कार्यक्रमासंबंधी मधूनमधून क्रमश: केलेले निवेदन म्हणजे सूत्रसंचालन होय.’ एखादा नियोजित कार्यक्रम सूत्रबद्ध पद्धतीने व कुठेही तुटकपणा न जाणवता सलगपणे शिस्तबद्धतेने पूर्ण करणे हे खरे सूत्रसंचालकाचे कौशल्य असते.

प्रत्येक कार्यक्रमात खर तर सूत्रसंचालक हा दुवा असतो दोन घटकांना जोडणारा. कार्यक्रमाचे स्वरूप, वक्ते, व्याख्याने, कलावंत या सर्वांना एका धाग्यात गुंफण्याचे काम सूत्रसंचालक करत असतो. पण अनेकदा एखादा कार्यक्रम यशस्वी होतो तो मुख्य कार्यक्रमाबरोबरच सूत्रसंचालकाच्या अप्रतिम निवेदनाने आणि सादरीकरणाने. कधी कधी कार्यक्रमापेक्षा सूत्रसंचालकच त्या कार्यक्रमाचे आकर्षण ठरत असतो तो त्याच्या प्रतिभेने.

  • सूत्रसंचालन ही कला आहे तसेच शास्त्रही आहे. कार्यक्रमाचे स्वरूप, क्रम, औपचारिकता, श्रोत्यांचा वयोगट, कार्यक्रमाचे रसग्रहण या दृष्टीने सूत्रसंचालन हे शास्त्र आहे.
  • सूत्रसंचालकाच्या शब्दोच्चारात स्पष्टता अधिकाधिक हवी. आवाजातील आरोह – अवरोहाने शब्दांतील भाव – भावनांचा अचूक परिणाम साधला जातो. कार्यक्रमात स्वत: न गुंतता श्रोत्यांना कार्यक्रमात रंगवून कार्यक्रम पुढे घेऊन जाण्याचे कौशल्य सूत्रसंचालकात असावे.
  • केवळ कार्यक्रमाचे स्वरूप, व्यक्तींचा उल्लेख करून कार्यक्रम पुढे न नेता अतिशय प्रभावी, अल्प प्रस्तावनेतून वक्ता, कलावंत यांना सादरीकरणासाठी प्रेरणा देणे. त्यांना प्रोत्साहित करून कार्यक्रम खुलविणे हे सूत्रसंचालकाचे खरे कौशल्य असते.

सूत्रसंचालनाची क्षेत्रे : वेगवेगळ्या क्षेत्रांत श्रोत्यांसमोर सादर होणाऱ्या कार्यक्रमात सूत्रसंचालकाची भूमिका महत्त्वाची असते. सभा, संमेलनांपुरते मर्यादित असणारे सूत्रसंचालनाचे क्षेत्र आज व्यापक स्वरूपात, विविध कार्यक्रमांत दिसून येते. स्नेहसंमेलने, परिसंवाद, मेळावे, बैठका, पारितोषिक वितरण, नाट्यसंमेलन, ग्रंथप्रकाशन, वाढदिवस इ. कार्यक्रमात सूत्रसंचालन आवश्यक झालेले दिसून येते.

सूत्रसंचालनाची क्षेत्रे : सामाजिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक, शैक्षणिक, राजकीय, शासकीय, कौटुंबिक, व्यवसाय, धार्मिक, आरोग्य, क्रीडा, कला संगीतविषयक, आकाशवाणी आणि दूरचित्रवाणी. सूत्रसंचालनाचे कार्यक्रम : चर्चासत्रे, संमेलने, संगीत महोत्सव, व्याख्यानमाला, निरोप समारंभ, वाढदिवस, वर्धापनदिन, विवाह सोहळे, परिसंवाद, कार्यशाळा, उद्घाटन समारंभ, गौरव समारंभ, मेळावे, जयंती, स्मृतिदिन, स्पर्धा, काव्यमैफील.

Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.1 सूत्रसंचालन

‘सूत्रसंचालन : एक वलयांकित व्यवसाय’ : छंद किंवा हौस म्हणून सूत्रसंचालन करता करता अनेक निवेदक त्याच्याकडे व्यवसाय म्हणून पाहू लागले आहेत. उत्तम सूत्रसंचालन करता करता त्याला प्रतिष्ठा प्राप्त करून दिली आहे. अनेक कलावंत उत्कृष्ट निवेदन करत आहेत. त्यामुळे हे क्षेत्र अनेकांसाठी उत्तम व्यवसाय व रोजगाराची संधी म्हणून उपलब्ध झाले आहे.

सूत्रसंचालक होण्यासाठी पूर्वतयारी : उत्तम सूत्रसंचालक होण्यासाठी श्रवण, वाचन, चिंतनशीलता, सराव यांची आवश्यकता असते.

वाचन : सूत्रसंचालकाचे वाचन चौफेर हवे. वर्तमानपत्रे, कथा, कादंबरी, काव्य, नाटक ललित, नियतकालिके, चरित्रे-आत्मचरित्रे यांच्या वाचनातून शब्दसंग्रह व वाक्याची जुळणी सहजपणे करता येते. वाचन करताना महत्त्वाचे प्रसंग, सुवचने, किस्से यांची टिपणे काढावीत. मराठी, हिंदी, इंग्रजी, संस्कृत, उर्दू भाषेतील काव्यपंक्ती, शेरोशायरी यांचा संग्रह करून आवश्यकतेनुसार त्यांचा वापर करावा. त्यांच्या वापराने कार्यक्रमाचे सूत्रसंचालन खुलविता येते.

श्रवण आणि निरीक्षण : सूत्रसंचालन करण्यापूर्वी सूत्रसंचालकाने विविध क्षेत्रांतील सूत्रसंचालनाचे कार्यक्रम पहावेत. त्यांचा बारकाईने अभ्यास करावा. आकाशवाणी, दूरचित्रवाणीवरील अनेक कार्यक्रमांतील सूत्रसंचालन मार्गदर्शक ठरत असते, त्यांचा अभ्यास करावा. प्रभावी निवेदक, सूत्रसंचालक यांच्या कार्यक्रमाच्या निरीक्षणातून त्यांची शैली, आत्मविश्वास, सहजता, शब्दफेक, प्रसांगावधान, सभाधीटपणा ही कौशल्ये सूत्रसंचालकाला शिकता येतात.

आवाजाची जोपासना : सूत्रसंचालकाचा आवाज हा भारदस्त असावा. प्रकट वाचन, पठन, अभिवाचन, कविता वाचन यांमधून उच्चारातील स्पष्टता, आवाजातील आरोह-अवरोह यांचा सराव करावा. आवाजाची ताकद हीच सूत्रसंचालकाची जमेची बाजू असते. त्यासाठी योग आणि प्राणायाम यांचा उपयोग होतो.

ध्वनिवर्धकाच्या वापराचा सराव : सूत्रसंचालन करताना ध्वनिवर्धकाचा सराव असावा. कार्यक्रम सभागृह किंवा खुले मैदान यांत असेल तर आवाजाचे स्वरूप बदलावे लागते. त्यासाठी तांत्रिक बाबी लक्षात घ्याव्यात. या सर्व गोष्टींचा अभ्यास केल्यास सूत्रसंचालक म्हणून प्रभुत्व मिळविता येते.

सूत्रसंचालन करण्यापूर्वीची तयारी :

  • कार्यक्रमाचा विषय, वेळ, स्थळ, स्वरूप, अध्यक्ष, अतिथी, श्रोता, कलावंत इत्यादींबाबत सविस्तर माहिती मिळवावी.
  • कार्यक्रम पत्रिका समजून घ्यावी.
  • कार्यक्रमाचा श्रोतृवर्ग, त्यांची आवड, वयोगट यांचा अभ्यास करावा
  • निवेदनाची तयारी करावी. काव्यपंक्ती, संदर्भ, अवतरणे सुभाषिते, चुटके यांचा वापर करावा पण त्यांचा अतिरेक नको.

Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.1 सूत्रसंचालन

सूत्रसंचालन करताना घ्यावयाची काळजी :

  • कार्यक्रमाच्या आरंभी सर्वांना अभिवादन करून श्रोत्यांना कार्यक्रमाकडे आकर्षित करावे.
  • व्यासपीठावर सर्व अतिथींचा योग्य पदानुसार आदरपूर्वक नामोल्लेख करावा.
  • निवेदनात सहजता, स्पष्ट उच्चार, आवाजातील चढ-उतार, आत्मविश्वास, प्रभावी निवेदन शैली असावी.
  • समयसूचकता, हजरजबाबीपणा, प्रसंगावधान असावे.
  • भाषा साधी, सोपी, प्रवाही असावी.
  • निवेदनात पाल्हाळ नसावे तसेच त्यात अनावश्यक हालचाली नसाव्यात.
  • आत्मप्रौढी टाळावी, वाक्ये, शब्दांची पुनरुक्ती नको.
  • एखादया त्रुटीबद्दल दिलगिरी व्यक्त करावी.
  • वक्त्यांची, कलावंतांची तुलना करू नये.

उत्तम सूत्रसंचालक होण्यासाठी वाचन, चिंतन, निरीक्षण, सराव, आत्मविश्वास यांची आवश्यकता असते. चिकाटी, सकारात्मक दृष्टिकोन, आवड यांतून सूत्रसंचालन फुलविता येते.

Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 3.3 सुंदर मी होणार

Balbharti Maharashtra State Board Marathi Yuvakbharati 11th Digest Bhag 3.3 सुंदर मी होणार Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

Maharashtra State Board 11th Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 3.3 सुंदर मी होणार

11th Marathi Digest Chapter 3.3 सुंदर मी होणार Textbook Questions and Answers

कृती

1. खालील कृती करा.

प्रश्न अ.
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 3.3 सुंदर मी होणार 1
उत्तर:
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 3.3 सुंदर मी होणार 4

Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 3.3 सुंदर मी होणार

प्रश्न आ.
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 3.3 सुंदर मी होणार 2
उत्तर:
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 3.3 सुंदर मी होणार 5

प्रश्न इ.
महाराजांनी पाठवलेल्या पत्रावर खालील पात्रांच्या प्रतिक्रिया लिहा.
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 3.3 सुंदर मी होणार 3
उत्तर:

पात्र प्रतिक्रिया
1. राजेंद्र पपांच्या निर्णयाला होकार देण्याच्या स्थितीत आणि बेबीवर डाफरणारा
2. बेबी पत्र वाचून संताप येतो आणि महाराजांनी ठरवलेल्या निर्णयाचे पालन न करण्याचा निर्णय घेते.

प्रश्न इ.
खालील शब्दसमूहांचा तुम्हांला समजलेला अर्थ स्पष्ट करा.

a. पपांचा पांगुळगाडा.
उत्तर :
पपांचा पांगुळगाडा – पपांनी सांगितलेल्या सर्वच गोष्टींचा मुकाटपणे स्वीकार करणं, त्यात अयोग्य–योग्य काय याचा विचार न करणं.

b. मुलांचे चिमणे विश्व.
उत्तर :
मुलांचे चिमणे विश्व – मुलांचे विश्व हे निरागस असते, लहानसे असते त्यात त्यांचा भोळा भाव सदैव अनुभवायला मिळतो.

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c. ब्रेक तुटलेल्या गाडीसारखं आयुष्य.
उत्तर :
ब्रेक तुटलेल्या गाडीसारखं आयुष्य – अर्धमुर्ध आयुष्य जगणं. ब्रेक तुटलेली गाडी ज्याप्रमाणे पूर्णतः टाकून देता येत नाही. तसंच आयुष्यही जगत असतो आणि नसतोही अशी अवस्था.

2. थोडक्यात स्पष्ट करा.

प्रश्न अ.
‘जीवनाच्या त्या प्रकाशात न्हाऊन आता मला सुंदर व्हायचं आहे!’, या दिदीच्या विधानाचा अर्थ.
उत्तर :
आतापर्यंत दिदीने अपंगावस्थेत बरंच दुखणं सहन केलं. ती वडिलांवर प्रेमछाया अंथरत असायची. महाराजही तिच्याजवळ मन मोकळं करायचे. तिचा कवितेचा छंद महाराजांना पसंत नव्हता. कविता करणारा संजय तिला आवडू लागला होता. पण पपांच्या आग्रहाखातर तिने त्याला काही कळवलं नव्हतं, पपांकडून जेव्हा तिला समजतं की पपांनी आईवर कधी प्रेमच नाही केलंय. त्यावेळेस ती व्याकूळ झाली. प्रेम नसताना चार मुलं झाली. ती मोठी झाली.

ममीने महाराजांच्या भीतीपायी घर सांभाळलं. ती मुलांना जन्म देऊन गेली. पण डॉक्टरांना मुलांची आई व्हायला सांगितलं. डॉक्टरांनी आपल्या प्रेमाचा त्याग केला आणि मुलांना सांभाळलं पण त्या डॉक्टरांनाही महाराजांनी निघून जायला सांगितलं. आपले पपा इतके कसे कठोर वागू शकतात? इतके निष्ठूर कसे होऊ शकतात. या विचारांनी व्याकूळ झालेली दिदी घराबाहेर पडण्याचा निर्णय घेते. तिलाही जीवन समरसतेने जगायचंय.

ते जगण्यासाठी ती आसुसली आहे. आजवर तिनं घराबाहेरही पाऊल टाकलेलं नाही त्यामुळे तिला आता जीवनाचा आनंद उपभोगायचा आहे. त्या प्रकाशात न्हाऊन तिचं जीवन सुंदर करायचं आहे.

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प्रश्न आ.
महाराज आणि बेबी यांच्या विचारातील संघर्ष.
उत्तर:
खालसा झालेल्या संस्थानाच्या संस्थानिक महाराजांना आपल्या संस्थानिक असल्याचा प्रचंड अभिमान होता. सत्ताधीश म्हणून वावरल्याने त्यांचा अहंकार पराकोटीला पोहोचला होता. पिता म्हणून वागताना आपल्याला आपल्या मुलांचे सुख पहायला हवं हे कधी त्यांच्या लक्षातच आले नाही.

नेहमी हुकमी एक्का आपल्या हातात असल्यासारखे आपल्या आप्तजन, प्रजाजनांवर आसूड ओढणं अशी वृत्ती असल्यामुळे ही प्रेम, माया, जिव्हाळा या भावनांपासून पार दूर गेलेली असते. बेबीचा नेमका या गोष्टीबद्दलच राग आपल्या पित्यावर होता. तिला मुक्तपणे जगायचं होतं.

जीवनाचा आनंद घेत घेत प्रकाशाकडे जायचं होतं. पित्याची जाचक बंधनं तिची घुसमट करत होती.त्याला हरक्षणी ती विरोध करत होती. तिच्या वडिलांविरुद्ध बंड करण्याचे बळ तिच्यात होते कारण ती त्यांच्या विचारांची गुलाम नव्हती.

प्रश्न इ.
नाट्यउताऱ्यातील ‘डॉक्टर’ या पात्राची भूमिका.
उत्तर :
डॉक्टर हे एक समंजस मातृहृदयी असं पात्र आहे. आपल्या प्रेमाचा त्याग करून महाराजांनी केलेल्या अनेक अपमानांना सहन करून डॉक्टर महाराजांजवळ राहिले. महाराणींनी मृत्यूपूर्वी आपल्या मुलांची जबाबदारी त्यांच्यावर सोपवली ती त्यांनी अगदी निष्ठेने सांभाळली. आपल्या या अपत्यांचा सांभाळ करता करता त्यांनी स्वत:च्या अनेक इच्छांचा त्याग केला. त्याबद्दल कोणतीही तक्रारही त्यांच्या मनात नाही. त्यांना महाराजांनी प्रचंड त्रास दिला आहे. पण तरी हसतमुखाने मुलांना प्रेम देण्यात त्यांनी कसूर केली नाही.

मुले मोठी झाली, संस्थान बरखास्तच झालेलं आहे. अशा अवस्थेत महाराज त्यांना आपल्या सेवेतून मुक्त करतात. खरं तर त्यांना या वयात मुलांचा आधार हवा असतो त्याच काळात मुलांपासून, राज्यापासून ते त्यांना दूर करतात. सहनशील, प्रेमळ, त्यागी असं हे व्यक्तिमत्त्व आहे.

3. स्वमत.

प्रश्न अ.
तुम्हांला समजलेली ‘ममी’ ही भूमिका नाट्यउताऱ्याच्या आधारे स्पष्ट करा.
उत्तर :
‘सुंदर मी होणार’ हे नाटक जीवनाचा सुंदरतेने विचार करायला लावणारी कलाकृती आहे. स्वातंत्र्यपूर्व काळात काही संस्थाने होती. ती काळाच्या ओघात संपुष्टात आली तरी तिथल्या संस्थानिकांच्या मनात असलेली राजेशाही, हुकुमशाही संपुष्टात आली नाही. त्यातील एका सत्ताधीशाची कहाणी ‘सुंदर मी होणार’ मध्ये येते. यातील महाराजही शिस्तीचे भोक्ते असलेले.राणी त्यांच्या प्रेमाला आतुर असलेली. पण राजाचे तिच्यावर प्रेमच नसते.

दिदीचा जन्म झाल्यावर तर ती केवळ त्यांच्या सुखाकरता महालात रहात असते. आपल्या नवऱ्यावर आपलं प्रेम असावं इतकीच माफक मागणी असताना महाराज मात्र तिच्यावर प्रेम करू शकत नाहीत याचं वैषम्य तिला वाटत असतं. याचा परिणाम तिच्या प्रकृतीवर होतो आणि ती कायमची आजारी पडते. नवऱ्याच्या प्रेमासाठी आसुसलेली स्त्री आणि मुलांना मायेची ऊब देऊ न शकणारी स्त्रीची अगतिकता या नाटकातील ममी या पात्राद्वारे दिसून येते.

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प्रश्न आ.
रंगसूचना कथानकातील दुवे कसे जोडतात ते स्पष्ट करा.
उत्तर :
नाटकामध्ये रंगसूचनेला संवाद, प्रसंग घटना यांच्याइतकेच महत्त्व आहे. रंगसूचनेमुळे त्या त्या संवादामागील हावभाव वाचणाऱ्याला कळतो.

नाटककाराने या अशा रंगसूचना पात्राने कोणत्या गोष्टी वा कृती त्यावेळेस कराव्यात त्याकरता सांगितलेल्या असतात. उदाहरणार्थ – (पत्र वाच लागते – तिचा चेहरा एकदम उतरतो. थकल्यासारखी नेहमीच्या खुर्चीवर येऊन बसते) (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. ८०) इथे दिदीने कसे वागावे, भाव दाखवावे हे सांगितले आहे.

या अशा रंगसूचना पात्रांच्या आविर्भावासाठी जशा महत्त्वाच्या तशा कथानकातील दुवे साधण्याकरताही महत्त्वाच्या असतात. त्या त्या वेळेची पात्राच्या मनातील भावना अधोरेखित होते त्यामुळे त्या प्रसंगाचा, घटनांचा भाव आपल्याला वाचून समजतो उदा. (आवेगानं – मागल्या बाजूचा पडदा बाजूला करतात – तिथे महाराज उभे असतात. सर्वांना आश्चर्य वाटतं)(पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. ८२) (मागाहून नोकर फळे घेऊन येतो) – त्याला नुसत्या इशाऱ्याने ती टेबलावर ठेव असे सांगतात, तो ठेवून जातो. (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. ८२) (तिला कडकडून भेटते – अत्यंत तुच्छतेने आपल्या बापाकडे पाहते आणि निघून जाते) (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र.८३) या अशा प्रकारच्या रंगसूचनांमुळे ते पात्र, घटना, कथानक समजायला मदत होते.

4. अभिव्यक्ती.

प्रश्न अ.
राजवाडा आणि नंदनवाडी यांच्यातील अंतर दूर होण्यासाठी त्या काळाचा विचार करून उपाय सूचवा.
उत्तर :
महाराज हे सत्ताधीशाप्रमाणे वागत होते. त्यामुळे सर्वच जण त्यांच्या पदाचा, प्रतिष्ठेचा मान राखून बोलत असत. राजांना विरोध करण्याची कोणाची तयारी नसायची. पण हे झालं राजवाड्यात. राजाने राजवाड्यात त्यांचा मान–सन्मान याला शोभेल असंच वागावं पण घरी मात्र पित्यासारखं वागायला हवं.

नंदनवाडीचं नावच किती सुंदर आहे. जिथे नंदनवनच असायला हवं. पण महाराजांच्या शिस्तबद्ध, हेकेखोर स्वभावामुळे घर, घरातील माणसं सुंदर असूनही तिथं नंदनवन फुललं नाही. याकरता जर महाराणीने पुढाकार घेऊन राजांना विरोध केला असता तर वातावरण बदलले असते. स्त्रीहट्ट आणि बालहट्ट यांचा वापर राणींनी केला असता तर राजामध्ये थोडातरी बदल झाला असता.

प्रश्न आ.
नाट्यउताऱ्याद्वारे तुम्हांला समजलेला ‘सुंदर’ या शब्दाचा अर्थ स्पष्ट करा.
उत्तर :
‘सुंदर मी होणार’ या नाट्यउताऱ्यातून एका राजाच्या शिस्तप्रिय, अहंकारामुळे एक घर कसे तुटते अशा आशयाचे कथानक आले आहे. राजाच्या अशा वर्तनाने त्याची राणी आजारी पडते. ती राजाकडून प्रेमाची अपेक्षा करू शकत नाही. राजालाही तिच्याबद्दल फक्त काळजी असते. प्रेम, माया नाही त्यामुळे दोघांचे नाते रुक्ष झालेले आहे. त्या रुक्ष नात्याचे पडसाद मुलांवरही होतात. दिदीच्या पायात अशक्तपणा हा याचाच परिणाम आहे. डॉक्टर ममत्वाने मुलांना वाढवतात पण तरीही त्यांच्यावर महाराजांची बंधने असतात. जीवन हे सुंदर असले पाहिजे. जीवन एकदाच मिळतं.

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ते सार्थकी लावणं, त्यात आपल्या जीवनाचा पुरेपूर आनंद मिळवणं हे आपल्या हातात आहे. पण या नंदनवाडीतील कोणीतीही व्यक्ती मुक्तपणे, आनंदाने जगत नाही. जगणं सुंदर असू शकतं हे तिथल्या कोणालाही ठाऊक नाही. एका दबावाखाली, ताणाखाली सर्वच जण जगत आहेत. त्यामुळेच या सर्व ताणातून बाहेर पडण्यासाठी प्रत्येकजण आपल्या जगण्याचा मार्ग निवडायला लागतो. दिदी आपलं पायाचं दुखणं घेऊन जगत असते.

तर बेबी वडिलांविरुद्ध बंड करायला पुढे सरसावते. घर सोडायचीदेखील तिची तयारी असते. वडिलांच्या सर्व आज्ञांचे पालन करण्यात धन्यता मानणारे प्रताप, राजेद्र हे ही नंतरच्या काळात आवाज करतील. वडिलांच्या जाचाला शिस्तीला कंटाळून दिदीसुद्धा घर सोडायचा निर्धार करते. आजवर महालाबाहेर ती पडलेली नाही त्यामुळे ती बाहेरचं जग अनुभवण्याकरता उत्सुक आहे. वडिलांचे आपल्या आईवर प्रेम नसताना त्यांनी संसार केला, मुले झाली हे ऐकल्यावर तिला प्रचंड त्रास होतो. आपल्या आईवडीलांमध्ये प्रेमच नव्हतं तरी ते जगले? याचा विस्मय तिला वाटतो.

जगणं प्रकाशमय असावं, सुंदर असावं असं तिलाही वाटतं. तिच्या काव्यावर, तिच्यावर प्रेम करणारी व्यक्ती तिच्या आयुष्यात आहे याचा आनंद घेऊन तिचं जगणं सुंदर करायचं आहे.

प्रश्न इ.
प्रस्तुत नाट्यउताऱ्यावरून पु. ल. देशपांडे यांच्या संवादलेखनाची वैशिष्ट्ये लिहा.
उत्तर :
‘सुंदर मी होणार’ या नाटकातील नाट्यउताऱ्याचा अभ्यास करताना पु. ल. देशपांडे यांनी खूप सहजतेने हे नाट्य संवाद लिहिलेत असं जाणवतं.

त्यात माणसाच्या नेहमीच्या वापरातले शब्दही आले आहेत. तसंच या संवादात एक काव्यात्म भावही आढळतो. ‘प्रकाशांच्या लेकरांना या अंधारकोठडीत त्यानं जन्माला घातलं’ अशा प्रकारच्या संवादातून त्यातील काव्य जाणवतं.

11th Marathi Book Answers Chapter 3.3 सुंदर मी होणार Additional Important Questions and Answers

कृती : १ आकलन कती

खालील उतारा वाचून सूचनेनुसार कृती करा.

कृती – १.

प्रश्न 1.
आकृतिबंध पूर्ण करा.
उत्तर :
(अ) दिदीला राजवाडा असा वाटतो – [अमंगल]
(आ) दिदीला कलावंत म्हणून आदरणीय असलेली व्यक्ती – [संजय]
(इ) दिदी महाराजांसोबत काय म्हणून राहणार होती – [आई]

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कृती – २.

प्रश्न अ.

(a) गटात न बसणारा शब्द ओळखा.
उत्तर :
घर सोडून जाणाऱ्या व्यक्ती (बेबी, प्रताप, राजू, दिदी) – [बेबी]

(b) योग्य पर्याय निवडा :
उत्तर :
थेंबभर पाण्यालादेखील याची ओढ असते.

पर्याय :

  • विशाल समुद्राची
  • अथांग नदीची
  • आकाशातील मेघांची [विशाल समुद्राची]
काय ऐकायचं तुमचं ……………………………………….. दिदी : संजय माझ्या उत्तराची वाट पाहत असतील. (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र.८५)

प्रश्न आ.
महाराज संजयकडे या दृष्टीने पाहतात.
पर्यायः
(a) उनाड इसम
(b) कलावंत
(c) दिदीचा प्रियकर
उत्तर :
(a) उनाड इसम

(a) खालील शब्दांपासून अर्थपूर्ण शब्द बनवा.
उत्तर :
अंधारकोठडी – अंधार, अंडी, कोठडी, कोडी, कोर, धार
वातावरण – वर, वण, वाव, वाण, वार, रण, रव, रवा, तार, ताव, ताण, तारण, वरण, वावर

(b) खालील वाक्यातील काळ ओळखा.
मग तुम्ही एकटे एकटे राहाल.
उत्तरः
भविष्यकाळ.

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(c) खालील वाक्यातील अव्यय ओळखा.
माझ्यासारखी दुबळी मुलगी सुद्धा त्याच विशाल जीवनाकडे निघाली आहे.
उत्तरः
कडे – शब्दयोगी अव्यय.

स्वमत:
प्रश्न 1.
‘थेंबभर, पाण्यालादेखील शेवटी विशाल समुद्राचीच ओढ असते’ या वाक्याचा तुम्हांला जाणवलेला अर्थ लिहा.
उत्तर :
सुंदर होण्यासाठी पहिल्यांदा आपल्या मनाची तयारी पाहिजे. आयुष्यातील छोट्या छोट्या गोष्टींनी आपल्याला आनंद मिळाला की जीवनाचा सागर सुंदररित्या जगता येतो. आकाशातून पडणाऱ्या पावसाच्या थेंबांनाही समुद्राकडे जाण्याची ओढ असते. ते झरा, नदी, नाले या सर्वांमार्फत समुद्रापर्यंत प्रवास करतात. कोणतीही व्यक्ती आहे त्या ठिकाणी राहिली तर तिचा विकास अशक्य असतो.

म्हणून जे उदात्त आहे उत्तम आहे याकरता आपण प्रयत्नशील राहिलं पाहिजे. मनानं, शरीरानं कमकुवत असलेल्या दिदीला असलेला कवितेचा छंद तिच्या मनाला उभारी देतो. तिच्या कविता ज्यांना आवडतात तो संजयही कलावंत आहे. तो तिच्या प्रेमाचा स्वीकार करण्यासाठी उत्सुक आहे. पण पपांच्या काळजीखातर दिदीने त्याला उत्तर दिलेलं नाही. पपांचे आपल्या ममीवर प्रेम नव्हते हे ऐकल्यावर दिदीला प्रचंड वाईट वाटते.

आपल्या पपांचा तिला तिरस्कार वाटू लागतो आणि ती संजयला होकार दयायचा निर्णय घेते हा विचार मला फार सकारात्मक वाटतो. यामुळे तिच्या जीवनात उभारी येईल आणि तिचं जीवन सुंदरही होईल.

प्रश्न 2.
महाराजांविषयी दिदीला वाटणाऱ्या घृणेबद्दल तुमचे मत स्पष्ट करा.
उत्तर :
महाराजांची सर्वात जवळची मुलगी दिदी आहे. दिदीजवळ ते आपल्या मनातलं दुःख सांगत असतात. पण एकाक्षणी जेव्हा ते दिदीजवळ कबूल करतात की त्यांचे दिदीशिवाय दुसऱ्या कोणावरच प्रेम नाही. दिदीच्या जन्मदात्या ममीवरही त्यांचं प्रेम नाही हे ऐकताच दिदीला आपल्या आईविषयी प्रचंड वाईट वाटतं. आपली आई भीतीखातर आपल्या पपांसोबत राहिली. पपांचे प्रेम तिच्या वाट्याला, भावाबहिणींच्या वाट्याला आलं नाही हे वास्तव दिदीला पचवणं कठीण होतं. आपल्या पपांनी आपल्या ममीवर प्रेमही करू नये? मुलांची जबाबदारी तिहाईत डॉक्टरवर देण्याइतमत पपा आईपासून दूर गेलेले होते.

मग प्रेमसंबंध नसतानाही पपा–ममी केवळ पती–पत्नी या नात्यात केवळ सोय म्हणून एकत्र बांधले गेले? हा विचार दिदीला त्रासदायक वाटू लागला. त्यामुळे तो राजवाडा, त्यातील मालकी हक्क या सर्वांविषयी दिदीला तिरस्कार वाटला तर ते चुकीचं नाही. कोणतंही नातं प्रेमाने जास्त काळ टिकू शकतं. पण तिथे भीती, दहशत असेल तर ते नातं घृणेकडे वळतं त्यामुळे मनात कोणतीही प्रिती नसेल तर तिरस्कार, अलिप्तता या नकारात्मक गोष्टींची वाढ होते. दिदीच्या मनात नेमकं हेच द्वंद्व चालू होतं. प्रेमाचा अंकुर नसलेल्या व्यक्तीवर ती प्रेम कशी करू शकते?

Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 3.3 सुंदर मी होणार

सुंदर मी होणार प्रस्तावनाः

लेखक पु.ल.देशपांडे हे मराठी साहित्याविश्वातील चतु:रस्त्र व्यक्तिमत्त्व होय. विनोदी लेखक, नाटककार, प्रवासवर्णनकार म्हणून प्रसिद्ध. मार्मिक आणि निर्मळ विनोद, सूक्ष्म निरीक्षण, भाषेचा कल्पक आणि चमत्कृतीपूर्ण वापर करण्याचे कौशल्य ही त्यांच्या लेखनाची बलस्थाने होत. ‘तुझे आहे तुजपाशी’, ‘ती फुलराणी’, ‘अंमलदार’ ही नाटके’, ‘सदू आणि दादू’ ‘असा मी असामी’ यांसारख्या एकांकिका, ‘हसवणूक’, ‘बटाट्याची चाळ’, इत्यादी विनोदी लेखसंग्रह तर ‘अपूर्वाई आणि पूर्वरंग’ इत्यादी ‘प्रवासवर्णने’, ‘व्यक्ती आणि वल्ली’, ‘गणगोत’ यांसारखी व्यक्तिचित्रणात्मक पुस्तके अशी विपुल ग्रंथसंपदा आहे. ‘व्यक्ती आणि वल्ली’ या व्यक्तिचित्रणात्मक पुस्तकाला साहित्य अकादमी पुरस्कार, भारत सरकारकडून ‘पद्मभूषण’ या पुरस्काराने सन्मानित.

सुंदर मी होणार पाठाचा परिचयः

स्वातंत्र्यानंतर संस्थानं भारतात विलीन झाल्यानंतरचा काळ. नंदनवाडीच्या संस्थानिकांचा भव्य राजवाडा अजूनही जुन्या काळाची अदब अन् मुजरे सांभाळत बसलाय. महाराजांची थोरली मुलगी दीदीराजे गेली १० वर्षे खुर्चीला खिळून बसलीय. संस्थानाचे खास डॉक्टर तिच्यावर औषधोपचार करत आहेत. राजेंद्र, प्रसाद आणि बेबीराजे ही तिची भावंडं.

१०वर्षांच्या पांगळेपणामुळे खुर्चीला जखडलेल्या दीदीला आपण बरं होण्याची आशाच उरलेली नाही. २६–२७ वर्षांच्या त्या तरुणीला मृत्यूच आपली सुटका करील, असं खात्रीनं वाटू लागलंय. कवी गोविंदांच्या ‘मृत्यू म्हणजे वसंत माझा’ यांसारख्या कविता तिला आवडू लागल्यात. ती स्वतः संदर कविता रचते. निसर्गाच्या सौंदर्याच्या दर्शनाला पारखी झालेली दीदी कित्येक वर्षांपूर्वी तिच्या आईनं संस्थानातल्या लोकांसमवेत केलेल्या दीपदानाच्या रम्य सोहळ्याची स्मृती डोळ्यांपुढे आणते. पावसानं दुथडी भरून वाहणाऱ्या कल्याणी नदीचं पाहून आलेलं दृश्य बेबी स्वत:च्या कल्पनेनं अनुभवू लागते.

दिदी तर अधू; पण त्या वाड्यातल्या कुणालाच त्या चार अवाढव्य भिंतींच्या बाहेर जाता येत नाही. संस्थानाची अमर्याद सत्ता गमावलेल्या महाराजांचा कडकपणा वाढलाय. आपल्या राज्यात घोड्यांचा लगाम धरून अदबीनं उभं राहणाऱ्या मोतदाराचा मुलगा बंडा सांवत निवडणूक लढवून असेम्ब्लीचा सदस्य बनलाय, हे महाराजांना सहन होत नाही. लोकशाहीच्या नावानं सामान्य माणसाच्या हाती सत्ता जावी, हे त्यांना मंजूर होत नाही.

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योगायोग असा, की याच बंडा सावंतवर धाकट्या मुलीचं–बेबीचं प्रेम आहे; पण महाराजांना तो व्यभिचार वाटतो. तिकडे दीदीच्या कविता आवडलेला एक कवी – संजय देशमुख – एकदा तिला भेटायला वाड्यात येतो. तिच्या नकळत तिच्या कविता बेबीनं कवीला पाठवलेल्या असतात. कुणावरती प्रेम केलं, तर उत्कटतेनं करावं. असं कवीचं तत्त्व. खुर्चीला खिळलेल्या दीदीवर तो मनापासून प्रेम करतो; पण तो तिथं आलाय हे कळताच महाराज येतात आणि त्याला हाकलून लावतात. त्यांचा हुकूम ऐकताच एकाएकी अवसान येऊन दिदी खुर्चीतून उठते, उभी राहते. ‘जुनी इंद्रिये, जुना पिसारा, सर्व सर्व झडणार, सुंदर मी होणार’ असं काव्य तिला स्फुरतं.

दिदी आता चालण्याचा सराव करते; पण बरी होत आहे, हे महाराजांना मान्य होत नाही. दरम्यान, त्यांची पुतणी – एका लक्षाधीशाबरोबर लग्न केलेली – भेटीला येते. तिचा नवरा सुरेश हा सुरांच्या आनंदात डुंबणारा; पण बाथटबमध्ये बसल्यासारखं घराच्या उंच भिंतींच्या आत गीतांचा आनंद घेण्याची त्याला आवड. निरनिराळे राग आळवीत तो ‘आसावरी’ रागाशी दीदीची तुलना करतो.

महाराजांचा कठोरपणा वाढत जातोय. ते मुंबईला गेलेले असतात. तिथून पत्र पाठवून इंग्लंडला जाऊन दीदीवर उपचार करण्याचा बेत प्रकट करतात. त्या वेळी मुलांची आई – संस्थानची राणी मृत्युपंथाला लागलेली असताना तिच्या काळजीपोटी स्वत:चं ठरलेलं लग्न रद्द करून आयुष्यभर मुलांची आई होऊन राहण्याचं व्रत घेतलेले डॉक्टर आत्मकहाणी सांगतात.

इतरांच्या बाबतीत कठोर असणारे आपले वडील आपल्यावर प्रेम कसे करतात याचं दीदीला आश्चर्य वाटत असतं; पण एकेक करून भावंडं आणि डॉक्टर वाडा सोडून जाऊ लागतात आणि आपल्या आईवरचं प्रेम नाहीसं झाल्यावर तिला ही मुलं झाली, हे कळताच वडिलांच्या कठोर मनाची चीड येते.

दिदीला पाहिल्यावर सुरांच्या मागून जाण्यासाठी घराच्या भिंतीबाहेर पडणारा सुरेश पुन्हा एकदा सपत्नीक भेटायला येतो. आता सुरेशरूपी सुरवंटाचं फुलपाखरू झालेलं असतं. तो मुक्तपणे गाऊ लागतो. ते स्वर कानी पडल्यानं संतापलेले महाराज येऊन त्याला हाकलून लावतात.

आता मात्र महाराजांच्या या हुकूमशाही आणि हृदयशून्य वागणुकीची चीड येऊन संपूर्ण आयुष्य वडिलांच्या सुखासाठी त्यांच्या सोबत घालवण्याचं ठरवलेली दिदी वाड्याबाहेर पडते. तिच्या पावलांत बळ आलेलं असतं. तिला नवे पंख फुटलेले असतात.

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सुंदर मी होणार समानार्थी शब्द/पर्यायी शब्द :

पांगुळगाडा – पांगळ्या मुलाला चालायला शिकवण्यासाठी तयार केलेली तीन चाकी गाडी (a young child’s go-cart) आजन्म – जन्मापासून, जन्मभर (throughout the life) विटंबना – अप्रतिष्ठा (ridicule, mockery) आपत्ती – संकट (bad times, distress) तिटकारा – तिरस्कार, कंटाळा (dislike, disgust), गुच्छ – फुलांची एकत्र केलेली जुडी (a cluster, a bouquet of flowers), स्तब्ध – स्थिर, शांत (silent, quiet) प्रयोजन – हेतू, कारण (motive, purpose) पाठिंबा – आधार (support) अपराध – गुन्हा (crime) संगोपन – जोपासना (careful preservation) मातेदार – घोडा सांभाळणारा (groom), उनाड – निरुदयोगी (truant, vagabond).