Balbharti Maharashtra State Board Hindi Yuvakbharati 12th Digest परिशिष भावार्थ : गुरुबानी, वृंद के दोहे Notes, Questions and Answers.

Maharashtra State Board 12th Hindi परिशिष भावार्थ : गुरुबानी, वृंद के दोहे

भावार्थ : पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्रमांक २३, २४ : कविता – गुरुबानी – गुरु नानक

जो लोग गुरु से लापरवाही बरतते हैं और अपने–आपको ही ज्ञानी समझते हैं; वे व्यर्थ ही उगने वाले तिल की झाड़ियों के समान हैं। दुनिया के लोग उनसे किनारा कर लेते हैं। इधर से वे फलते–फूलते दिखाई देते हैं पर उनके भीतर झाँककर देखो तो गंदगी और मैल के सिवा कुछ दिखाई नहीं देगा।। १।।

Maharashtra Board Class 12 Hindi परिशिष भावार्थ : गुरुबानी, वृंद के दोहे

मोह को जलाकर उसे घिसकर स्याही बनाओ। बुद्धि को श्रेष्ठ कागज समझो ! प्रेमभाव की कलम बनाओ। चित्त को लेखक और गुरु से पूछकर लिखो– नाम की स्तुति। और यह भी लिखो कि उस प्रभु का न कोई अंत है और न कोई सीमा।। २।।

हे मन ! तू दिन–रात भगवान के गुणों का स्मरण कर जिन्हें एक क्षण के लिए भी नहीं भूलता। संसार में ऐसे लोग विरले ही होते हैं। अपना ध्यान उसी में लगाओ और उसकी ज्योति से तुम भी प्रकाशित हो जाओ। जब तक तुझमें अहंभाव या ‘मैं, मेरा, मेरी’ की भावना रहेगी तब तक तुझे प्रभु के दर्शन नहीं हो सकते। जिसने हृदय से भगवान के नाम की माला पहन ली है; उसे ही प्रभु के दर्शन होते हैं।। ३।।

हे प्रभो ! अपनी शक्ति के सब रहस्यों को केवल तुम्हीं जानते हो। उनकी व्याख्या कोई दूसरा कैसे कर सकता है? तुम प्रकट रूप भी हो, अप्रकट रूप भी हो। तुम्हारे अनेक रंग हैं। अनगिनत भक्त, सिद्ध, गुरु और शिष्य तुम्हें ढूँढ़ते–फिरते हैं। हे प्रभु ! जिन्होंने तेरा नामस्मरण किया, उनको प्रसाद में (भिक्षा में) तुम्हारे दर्शन की प्राप्ति हुई है। तुम्हारे इस संसार के खेल को केवल कोई गुरुमुख ही समझ सकता है। तुम्हारे इस संसार में तुम्ही युग–युग में विद्यमान रहते हो।। ४।।

हे पंडित ! संसार में दिन–रात महान आरती हो रही है। आकाश रूपी थाल में सूर्य और चाँद दीपक और हजारों तारे–सितारे मोती बनकर जगमगा रहे हैं। मलय की खुशबूदार हवा का धूप महक रहा है। वायु चँवर से हवा कर रही है। जंगल के सभी वृक्ष फूल चढ़ा रहे हैं। हृदय में अनहद नाद का ढोल बज रहा है। हे मनुष्य ! इस महान आरती के होते हुए तेरी आरती की क्या आवश्यकता है, क्या महत्त्व है ? अर्थात भगवान की असली आरती तो मन से उतारी जाती है और श्रद्धा ही भक्त की सबसे बड़ी भेंट है। फिर आप लोग थालियों में ये थोड़े–थोड़े फल–फूल लेकर मूर्ति पर क्यों चढ़ाते हो? क्या उसके पास थालियों की कमी है? अरे ! आकाश ही उसका नीलम थाल है ! सूर्य और चंद्रमा की ओर देखो। वे भगवान की आरती में रखे हुए दीपक हैं। ये तारे ही उसके मोती हैं और हवा उसे दिन–रात चँवर झुला रही है।। ५।।

Maharashtra Board Class 12 Hindi परिशिष भावार्थ : गुरुबानी, वृंद के दोहे

भावार्थ : पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्रमांक २७, २८ : कविता – वृंद के दोहे

माँ सरस्वती के ज्ञान भंडार की बात बड़ी ही अनूठी और अपूर्व है। यह ज्ञान भंडार जितना खर्च किया जाए, उतना बढ़ता जाता है और खर्च न करने पर वह घटता जाता है अर्थात ज्ञान देने से बढ़ता है और अपने पास रखने पर नष्ट हो जाता है ॥१॥

आँखें ही मन की सारी अच्छी–बुरी बातों को व्यक्त कर देती हैं… जैसे स्वच्छ आईना अच्छे–बुरे को बता देता है।।२।।

अपनी पहुँच, क्षमता को पहचानकर ही कोई भी कार्य कीजिए। जैसे– हमें उतने ही पाँव फैलाने चाहिए जितनी हमारी चादर हो।।३।।

यदि आप व्यापार करते हैं तो व्यापार में छल–कपट का सहारा न लें। छल–कपट से किया गया व्यवहार ग्राहक को आपसे दूर ले जाता है। जैसे– लकड़ी (काठ) की हाँडी आग पर एक ही बार चढ़ती है, बार–बार नहीं क्योंकि लकड़ी पहली बार में ही जल जाती है।।४।।

ऊँचे स्थान पर बैठने से बिना गुणोंवाला कोई भी व्यक्ति बड़ा नहीं बन जाता। ठीक वैसे ही जैसे मंदिर के शिखर पर बैठने से कौआ गरूड़ नहीं बन जाता।।५।।

दूसरे के भरोसे अपना कार्य अथवा व्यवसाय छोड़ देना उचित नहीं है। जैसे– पानी से भरे बादलों को देखकर पानी से भरा अपना घड़ा फोड़ देना बुद्धिमानी नहीं है।।६।।

दुष्ट अथवा छोटे व्यक्ति की संगति में रहना अथवा कुछ कहकर उसे छेड़ना श्रेयस्कर नहीं है। जैसे– कीचड़ में पत्थर फेंकने से वह कीचड़ हमपर ही उछलकर हमें गंदा कर देता है।।७।।

Maharashtra Board Class 12 Hindi परिशिष भावार्थ : गुरुबानी, वृंद के दोहे

जो ऊँचाई पर, उच्च पद पर पहुँचता है, उसका नीचे उतर आना भी उतना ही स्वाभाविक है। जैसे– दोपहर के समय तपा हुआ दग्ध सूर्य शाम के समय अस्त हो जाता है, डूब जाता है।।८।।

जिसके पास गुण होते हैं, उसी के अनुसार उसे आदर प्राप्त होता है। जैसे– मधुर वाणी के कारण कोयल को आम प्राप्त होते हैं और कर्कश ध्वनि के कारण कौए को निबौरी (नीम का फल) प्राप्त होती है।।९।।

अविवेक के साथ किया गया कार्य स्वयं के लिए हानिकर सिद्ध होता है। जैसे– कोई मूर्ख अपनी अविवेकता से कार्य कर अपने पाँव पर अपने हाथ से कुल्हाड़ी मार बैठता है।।१०।।

पालने में बच्चे के लक्षण देखकर ही उसके अच्छे–बुरे होने का पता चल जाता है। जैसे– उत्तम बीज के पौधों के पत्ते चिकने अर्थात स्वस्थ पाए जाते हैं।।११।।