Class 11 Hindi Chapter 5.1 Madhyayugin Kavya Bhakti Mahima Question Answer Maharashtra Board

Std 11 Hindi Chapter 5.1 Madhyayugin Kavya Bhakti Mahima Question Answer Maharashtra Board

Balbharti Maharashtra State Board Hindi Yuvakbharati 11th Digest Chapter 5.1 मध्ययुगीन काव्य (अ) भक्ति महिमा Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

Hindi Yuvakbharati 11th Digest Chapter 5.1 मध्ययुगीन काव्य (अ) भक्ति महिमा Questions And Answers

11th Hindi Digest Chapter 5.1 मध्ययुगीन काव्य (अ) भक्ति महिमा Textbook Questions and Answers

आकलन

1. सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ पूर्ण कीजिए :

प्रश्न अ.
(a) अंतर स्पष्ट कीजिए –
माया रस – रामरस
……………………… – ………………………
उत्तर :
माया रस – राम रस
पत्थर जैसा हृदय – मक्खन जैसा हृदय

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 मध्ययुगीन काव्य (अ) भक्ति महिमा

प्रश्न 2.
लिखिए –

‘मैं ही मुझको मारता’ से तात्पर्य ………………………
उत्तर :
मनुष्य स्वयं ही स्वयं का शत्रु है। अगर वह इस मैं (अहंकार) रूपी शत्रु को मार देता है तो वह इस संसार में विजेता हो जाता है।

प्रश्न आ.
सहसंबंध जोड़कर अर्थपूर्ण वाक्य बनाइए –
(1) पाती प्रेम की (2) साईं
(1) काहै को दुख दीजिए (2) बिरला
उत्तर :
(1) प्रेम की पाती कोई बिरला ही पढ़ पाता है।
(2) मूर्ख ! तू क्यों किसी को दुःख देता है, प्रभु तो सभी प्राणियों में निवास करता है।

काव्य सौंदर्य

2.
प्रश्न अ.
“जिनकी रख्या तूं करै ते उबरे करतार”, इस पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
हे परमात्मा जिस पर आपकी कृपा होती है वही इस भवसागर से पार हो पाता है। अन्य तो इस संसार के मायाजाल में फँसकर रह जाते हैं। अर्थात् मनुष्य जन्म दुर्लभ है और परमात्मा प्राप्ति मंजिल। सदैव मनुष्य को इस सत्य का ध्यान रखना चाहिए।

प्रश्न आ.
‘संत दादू के मतानुसार ईश्वर सबमें है’, इस आशय को व्यक्त करने वाली पंक्तियाँ ढूँढ़कर उनका भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
“काहै कौं दुख दीजिए, साईं है सब माहिं।
दादू एकै आत्मा, दूजा कोई नाहिं।।”

किसी भी प्राणी को किसी भी तरह का कष्ट, दुख, पीड़ा नहीं पहुँचानी चाहिए क्योंकि सभी प्राणी में वही परमात्मा निवास करता है जो हमारे मनुष्य जीवन का लक्ष्य है। हे जीव ! उस परमात्मा के अलावा वहाँ दूसरा कोई नहीं है। सबकी आत्मा एक है। कबीर दास जी भी यही कहते हैं –

“घट – घट में वही साईं रमता
कटुक वचन मत बोल रे”

अभिव्यक्ति

3.
प्रश्न अ.
‘अहंकार मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु हैं, इस उक्ति पर अपने विचार स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
अहंकार मनुष्य के लिए एक घातक बीमारी के समान है। यह ऐसा रोग है कि व्यक्ति को मेले में भी अकेला कर देता है। जिसके पास रहता है उसी का विनाश करता है। यह अहंकार मनुष्य के जीवन का लक्ष्य भटका देता है। इस लिए मनुष्य को सदा इससे सतर्क रहना चाहिए।

प्रश्न आ.
‘प्रेम और स्नेह मनुष्य जीवन का आधार हैं’, इस संदर्भ में अपना मत लिखिए।
उत्तर :
प्रेम ही जीव-जगत का सार है। अध्यात्मिक और भौतिक दोनों ही क्षेत्र में प्रेम और स्नेह दो ऐसे स्तंभ हैं जिनके सहारे मनुष्य अपना जीवन सार्थक कर सकता है। वेद-पुराण, इतिहास, श्रेष्ठ समाज यही कहता है कि जिसने प्रेम और स्नेह प्राप्त कर लिया उसने इस धरती पर ही अमृत का पान कर लिया।

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रसास्वादन

प्रश्न 4.
ईश्वर भक्ति तथा प्रेम के आधार पर साखी के प्रथम छह पदों का रसास्वादन कीजिए।
उत्तर :
(i) शीर्षक : भक्ति महिमा
(ii) रचनाकार : संत दादू दयाल

(iii) केंद्रीय कल्पना : इन साखियों में कवि संत दादू दयाल जी ने ईश्वर भक्ति का मार्ग बताया है। ईश्वर को पूजने के लिए कहीं बाहर जाने की आवश्यकता नहीं है। ईश्वर मन के भीतर ही है। नामस्मरण करने से हमें मोक्ष प्राप्त होगा। वेद-पुराण पढ़ने से जीवन का सच्चा मार्ग नहीं मिलता बल्कि हृदय में जीवन और जगत के लिए प्रेम होना चाहिए यही कल्पना यहाँ कवि ने हमारे सामने रखी है।

(iv) रस-अलंकार : प्रस्तुत कविता नीति और ज्ञानोपदेश देने वाली साखियाँ हैं जो दोहा छंद में लिखी गई हैं।
(v) प्रतीक विधान : ईश्वर भक्ति, नामस्मरण, जीवन और जगत से प्रेम, अहंकार का त्याग करने से मोक्ष मिलेगा यही विधान कवि ने अपने दोहों में किया है।

(vi) कल्पना : संत दादू दयाल जी ने हृदय एक सँकरा महल है, ऐसी कल्पना की है और प्रभु और अहंकार दोनों उसमें एक साथ नहीं रह सकते ऐसा बताया है। अहंकार को त्यागने का संदेश देने के लिए कवि ने यह कल्पना की है।

(vii) पसंद की पंक्तियाँ तथा प्रभाव : इन साखियों में मेरी पसंदीदा साखी है –
‘जहाँ राम तहँ मैं नहीं, मैं तहँ नाहीं राम।
दादू महल बारीक है, वै कूँ नाही ठाम।।’

साखी का भाव दिल को छू लेता है और अहंकार को त्यागने का संदेश देता है। क्योंकि राम अर्थात ईश्वर और ‘मैं’ अर्थात अहंकार दोनों एक साथ नहीं रह सकते। मनुष्य का हृदय एक सँकरा महल है जहाँ अहंकार और ईश्वर एक साथ नहीं रह सकते। अहंकारी व्यक्ति ईश्वर से दूर हो जाता है। अत: अहंकार का त्याग कर के ही मनुष्य प्रभुमय हो सकता है। मनुष्य का बैरी उसका अहंकार है। है जो उसे प्रभु से मिलने नहीं देता। इसीलिए अहंकार का त्याग करना अनिवार्य है।

(viii) कविता पसंद आने के कारण : नीति ज्ञानोपदेश और संसार का व्यावहारिक ज्ञान देने वाली ये साखियाँ हैं जो हमें अहंकार को त्यागकर सभी को एक समान मानने की प्रेरणा देती हैं। इसीलिए मुझे यह कविता पसंद है। इनकी गेयता भी मुझे अच्छी लगती है।

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साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान

5. जानकारी दीजिए :

प्रश्न अ.
निर्गुण शाखा के संत कवि –
उत्तर :
संत कबीर, कमाल, रैदास, धर्मदास, गुरुनानक, दादू दयाल, सुंदरदास, रज्जब, मलूकदास।

प्रश्न आ.
संत दादू के साहित्यिक जीवन का मुख्य लक्ष्य
उत्तर :
संत परंपरा के अनुसार दादू दयाल की रचनाओं में जात-पाँत का निराकरण, छोटा-बड़ा, अमीर-गरीब, हिंदु-मुसलमानों की एकता आदि विषयों पर विचार मिलते हैं। संत दादू के साहित्यिक पद तर्क-प्रेरित न होकर हृदय-प्रेरित हैं।

6. निम्नलिखित वाक्य शुद्ध करके फिर से लिखिए –

प्रश्न 1.
बाबु साहब ईश्वर के लिए मुझ पे दया कीजिए।
उत्तर :
बाबू साहब ईश्वर के लिए मुझपर दया कीजिए।

प्रश्न 2.
उसे तो मछुवे पर दया करना चाहिए था।
उत्तर :
उसे तो मछुवे पर दया करनी चाहिए थी।

प्रश्न 3.
उसे तुम्हारे शक्ती पर विश्वास हो गया।
उत्तर :
उसे तुम्हारी शक्ति पर विश्वास हो गया।

प्रश्न 4.
वह निर्भीक व्यक्ती देश में सुधार करता घूमता था।
उत्तर :
वह निर्भीक व्यक्ति देश में सुधार करते घूमता था।

प्रश्न 5.
मल्लिका ने देखी तो आँखें फटी रह गया।
उत्तर :
मल्लिका ने देखा तो आँखें फटी रह गई।

प्रश्न 6.
यहाँ तक पहुँचते-पहुँचते मार्च पर भारा अप्रैल लग जायेगी।
उत्तर :
यहाँ तक पहुँचते-पहुँचते मार्च तो क्या बारह अप्रैल लग जाएगा।

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प्रश्न 7.
हमारा तो सबसे प्रीती है।
उत्तर :
हमारी तो सबसे प्रीति है।

प्रश्न 8.
तुम जूठे साबित होगा।
उत्तर :
तुम झूठे साबित होंगे।

प्रश्न 9.
तूम ने दीपक जेब में क्यों रख लिया?
उत्तर :
तुमने दीपक जेब में क्यों रख लिए?

प्रश्न 10.
इसकी काम आएगा।
उत्तर :
इसके काम आएगा।

Yuvakbharati Hindi 11th Textbook Solutions Chapter 5.1 मध्ययुगीन काव्य (अ) भक्ति महिमा Additional Important Questions and Answers

कृतिपत्रिका

(अ) निम्नलिखित पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

पद्यांश : माखण मन ……………………………………………….. प्रेम बिना क्या होइ। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 20)

प्रश्न 1.
(i) चौखट में उत्तर लिखिए :
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 मध्ययुगीन काव्य (अ) भक्ति महिमा 1
उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 मध्ययुगीन काव्य (अ) भक्ति महिमा 2

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 मध्ययुगीन काव्य (अ) भक्ति महिमा 3
उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 मध्ययुगीन काव्य (अ) भक्ति महिमा 4

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प्रश्न 2.
कारण लिखिए :

(i) अहंकार का त्याग करना अनिवार्य है –
उत्तर :
अहंकार का त्याग करना अनिवार्य है क्योंकि हृदय रूपी सँकरे (narrow) महल में प्रभु और अहंकार का एक साथ वास नहीं हो सकता।

(ii) प्रभु स्मरण के सिवा अन्य मार्ग दुगर्म हैं –
उत्तर :
प्रभु स्मरण के सिवा अन्य मार्ग दुर्गम हैं क्योंकि भक्ति का संबल (support) लेकर ही भवसागर आसानी से पार किया जा सकता है और अन्य मार्ग डूबो देते हैं।

प्रश्न 3.
प्रस्तुत पद्यांश का भावार्थ अपने शब्दों में लिखिए :
उत्तर :
मनुष्य जीवन में एक रामरस ही सार्थक होता है।

अन्य तो भवसागर में डुबोने वाला ही होता है। राम की प्राप्ति केवल प्रेम की नाव पर ही बैठकर प्राप्त हो सकती है। अहंकार मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। भक्ति के सहारे ही भवसागर पार किया जा सकता है। जीवन के उद्धार के लिए अन्य सभी मार्ग दुर्गम हैं।

प्रेम की पत्री वही पढ़ सकता है जिसके हृदय में प्रेम है। यदि हृदय में जीवन और जगत के लिए प्रेम नहीं तो वेद-पुराण आदि पुस्तकें पढ़ने से क्या लाभ?

(आ) निम्नलिखित पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

पद्यांश : कागद काले करि मुए, ……………………………………………….. इनका मोल न तोल।। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 20)

प्रश्न 1.
परिणाम लिखिए :

(i) प्रभु का एक अक्षर पढ़ने का परिणाम –
उत्तर :
प्रभु का एक अक्षर पढ़ने का परिणाम – वह सुजान हो गया।

(ii) वेद-पुराण का गहन अध्ययन करने का परिणाम –
उत्तर :
वेद-पुराण का गहन अध्ययन करने का परिणाम – कागज़ काले हुए लेकिन जीवन का सच्चा मार्ग नहीं मिला।

प्रश्न 2.
लिखिए :
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 मध्ययुगीन काव्य (अ) भक्ति महिमा 5
उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 मध्ययुगीन काव्य (अ) भक्ति महिमा 6

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(आ) उत्तर लिखिए :
(i) मेरा बैरी – …………………………………
(ii) सब में बसा है – …………………………………
उत्तर :
(i) अहंकार
(ii) साईं / ईश्वर / परमात्मा

प्रश्न 3.
पद्यांश की प्रथम दो साखियों का भावार्थ लिखिए :
उत्तर :
संत दादू दयाल जी अपनी साखियों में प्रभु के नामस्मरण का महत्त्व समझा रहे हैं। वे कहते हैं कि कितने ही लोगों ने वेद-पुरानों का गहन अध्ययन किया और उनकी व्याख्या करते हुए कागज काले किए, ग्रंथ लिख दिए। परंतु उन्हें जीवन का सच्चा मार्ग नहीं मिला। वे भवसागर में भटकते रहे।

जिसने प्रिय प्रभु का एक अक्षर ही पढ़ लिया, वह सुजान पंडित हो गया। मनुष्य को उसका अहंकार ही मारता है, दूसरा कोई नहीं। अहंकार का त्याग करने पर ही ईश्वर की प्राप्ति होती है। अपने अहंकार को मारकर ही मनुष्य मरजीवा हो सकता है अर्थात वैरागी बन सकता है।

अपने लौकिक बंधन तोड़कर स्वयं पर जीत पा सकता है। अहंकार के आवरण से बाहर निकलकर ही जीवन की सार्थकता मनुष्य समझ पाएगा।

मध्ययुगीन काव्य (अ) भक्ति महिमा Summary in Hindi

मध्ययुगीन काव्य (अ) भक्ति महिमा कवि परिचय :

संत दादू दयाल का जन्म 1544 को अहमदाबाद (गुजरात) में हुआ। आपके गुरु का नाम बुड्ढन था। आपने जिस संप्रदाय की स्थापना की वह ‘दादू पंथ’ के नाम से विख्यात हुआ संत परंपरा के अनुसार आपका दृष्टिकोण भी – “सर्वे भवंतु सुखिन:’ का रहा है।

समाज में व्याप्त सामाजिक कुरीतियाँ, अंधविश्वास और जातिगत ऊँच-नीच के विरोध में आपकी साखियाँ (एक काव्य प्रकार) एवं पद प्रस्तुत हैं।

आपके पद समाज, समता एवं एकता के पक्ष में हैं। आपने कबीर की भाँति अपने उपास्य को निर्गुण और निराकार (formless) माना है। संत दादू दयाल की मृत्यु-1603 में हुई।

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प्रमुख रचनाएँ :

‘अनभैवाणी’, ‘कायाबेलि’ आदि।

मध्ययुगीन काव्य (अ) भक्ति महिमा काव्य विधा :

‘साखी’ साक्षी का अपभ्रंश है जो वस्तुतः दोहा छंद में ही लिखी जाती है। साखी का अर्थ है – साक्ष्य, प्रत्यक्ष ज्ञान। निर्गुण संत संप्रदाय का अधिकांश साहित्य साखी में ही लिखा गया है। जिसमें गुरुभक्ति और ज्ञान उपदेशों का समावेश है।

मध्ययुगीन काव्य (अ) भक्ति महिमा विषय प्रवेश :

प्रस्तुत साखी में संत कवि ने गुरु महिमा का वर्णन किया है। ईश्वर पूजन के लिए बाह्य संसाधन (exterior resources) की आवश्यकता नहीं है। ईश्वर के अलावा सांसारिक अंधकार को दूर करने वाला अन्य कोई नहीं है। नाम स्मरण से पत्थर हृदय भी मक्खन सा मुलायम हो जाता है।

अंहकार मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। बिना इसका त्याग किए ईश्वर की प्राप्ति नहीं हो सकती। जिसकी रक्षा ईश्वर करता है, वही इस भवसागर से पार हो सकता है। ईश्वर एक ही है और वही एक ईश्वर सभी प्राणियों में समान रूप से निवास करता है अर्थात् सभी को एक समान मानना चाहिए।

मध्ययुगीन काव्य (अ) भक्ति महिमा सारांश (कविता का भावार्थ) :

मायामोह में रहने वाले व्यक्ति का हृदय पत्थर के समान हो जाता है। ईश्वर भक्ति में लीन रहने वाले मनुष्य का हृदय ईश्वर प्रेम से भरा रहता है। मनुष्य को सदा अहंकार से दूर रहना चाहिए। प्रभु प्राप्ति में अहंकार बहुत बड़ी बाधा है। ईश्वर कीर्तन में दादू मग्न हो जाते हैं। उनको ऐसा लगता है कि उनके मुँह से ताल (rhythm) बजने की आवाज आ रही है, उनके प्रभु उनके समक्ष प्रस्तुत है।

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भक्ति के सहारे ही संसार को पार किया जा सकता है। प्रभु स्मरण के अतिरिक्त संसार पार के अन्य मार्ग केवल भ्रम है। प्रेम ही जीवन और संसार का सार है। प्रेम नहीं तो संपूर्ण वेद वेदांत का अध्ययन निर्रथक है। वेद पुराण की व्याख्या करने वाले जाने कितने लोगों ने कितने कागज़ भर डाले पर प्रभु का सानिध्य (nearness) नहीं मिल पाया। जिसने प्रभु प्रेम का अक्षर आत्मसात कर लिया वह पंडित हो गया। अहंकार ही मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है।

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 मध्ययुगीन काव्य (अ) भक्ति महिमा

जिसने अहंकार पर विजय प्राप्त कर लिया वह विजेता हो जाता है। परमात्मा जिसका हाथ पकड़ लेता है वही इस संसार रूपी सागर से पार हो सकता है। शेष तो भवसागर में डूब ही मरते हैं। सज्जन व्यक्ति ही प्रभु कृपा का पात्र होता है।

आत्मा में ही परमात्मा का निवास होता है इसलिए किसी को भी किसी तरह का कष्ट, दुःख मत पहुँचाना।

इस संसार में दो ही ऐसे रत्न हैं जिनकी किसी से भी कोई तुलना नहीं है। पहला रत्न है – सबका मालिक, स्वामी, प्रभु, परमात्मा और दूसरा रत्न है – संकीर्तन करने वाला संतजन। इन्हीं दो रत्नों के बल पर, सामर्थ्य पर जीवन और जगत सुंदर बन जाता है। ये दोनों ही रत्न ऐसे हैं जिनका मोल-तोल नहीं हो सकता।

मध्ययुगीन काव्य (अ) भक्ति महिमा शब्दार्थ :

  • माखण = मक्खन (butter),
  • पाहण = पत्थर (stone),
  • मैं = अहंकार (ego),
  • बारीक = सँकरा (narrow),
  • द्वै = दोनों (माया और राम) (both),
  • ठाम = स्थान, जगह (place),
  • सुरति = याद, स्मरण (memory),
  • दीनदयाल = परमात्मा (god),
  • बाँचे = पढ़ना (to read),
  • केते = कितने, बहुत (many),
  • एकै = एक ही (only one),
  • आखर = अक्षर (letter),
  • सुजान = चतुर, विद्वान (clever),
  • बैरी = शत्रु (enemy), Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 मध्ययुगीन काव्य (अ) भक्ति महिमा
  • मरजीवा = जीवित होते हुए भी मरा हुआ, वैरागी (hermit),
  • रढया = रक्षा करना (protect, save),
  • करतार = सृष्टिकर्ता (god),
  • संसार = माया, मोह (world),
  • अमोल = जिसका कोई मोल न हो, अनमोल, अमूल्य। (priceless)
  • पाहण = पत्थर
  • सुरति = याद, स्मरण
  • बाँचे = पढ़ना
  • मरजीवा = जीवित होते हुए भी मरा हुआ, वैरागी
  • करतार = सृष्टिकर्ता
  • रख्या = रक्षा करना

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Class 11 Hindi Chapter 4 Mera Bhala Karne Walo Se Bachaye Question Answer Maharashtra Board

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Balbharti Maharashtra State Board Hindi Yuvakbharati 11th Digest Chapter 4 मेरा भला करने वालों से बचाएँ Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

Hindi Yuvakbharati 11th Digest Chapter 4 मेरा भला करने वालों से बचाएँ Questions And Answers

11th Hindi Digest Chapter 4 मेरा भला करने वालों से बचाएँ Textbook Questions and Answers

आकलन

1.
प्रश्न अ.
लिखिए :
(a) लेखक की चिंता करने वाले –
उत्तर :
मुस्कुराती चहचहाती लड़कियों के झुंड, सभी तरह के इलाज करने वाले, क्रेडिट कार्ड वाले, हलवाई, वॉटर फिल्टर वाले लोग।

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(b) लेखक का योग के प्रति मोह भंग हो गया है –
उत्तर :
क्योंकि उनके ठहाकों का राज लेखक की समझ में आ गया।

प्रश्न आ.
कारण लिखिए –
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 मेरा भला करने वालों से बचाएँ 1
उत्तर :
(i) पार्क में घूमने जाते हैं तब योग संस्थान वाले घेर लेते हैं।
(ii) फिल्म देखने जाते हैं तो टिकट के साथ खाने का सामान शामिल कर लिया जाता है।
(iii) मनोरंजन के लिए टी.वी. ऑन करते हैं तो समाचार चैनल खबरों के नाम पर डराते हैं।

शब्द संपदा

प्रश्न अ.
उपसर्गयुक्त शब्द लिखिए –
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 मेरा भला करने वालों से बचाएँ 2
उत्तर:
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 मेरा भला करने वालों से बचाएँ 10

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 मेरा भला करने वालों से बचाएँ

प्रश्न आ.
प्रत्यययुक्त शब्द लिखिए
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 मेरा भला करने वालों से बचाएँ 3
उत्तर:
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 मेरा भला करने वालों से बचाएँ 11

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अभिव्यक्ति
३. मुफ्त में मिलने वाली चीजों के प्रति लोगों की मानसिकता को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
वस्तुओं के दाम बढ़ गए हैं। बाजार में वस्तु बेचने वालों के बीच होड़ मची है। हर कोई अपनी वस्तु बेचने के लिए उतावला हो रहा है। हर कोई चाहता है कि, वह लोगों को यह समझा दें कि, औरों से उसकी वस्तु कितनी अच्छी है। अपनी वस्तुओं का बखान वह बढ़ा-चढ़ाकर कर रहा है।

आज एक ही प्रकार की वस्तुओं के अलग-अलग उत्पादक है। उत्पादन करने वाली हर कंपनी अपनी वस्तु को दूसरे से हटकर अधिक अच्छे तरीके से दूसरों के गले में बाँध देना चाहते हैं। ग्राहक आकर्षित हो इसलिए वे ‘फ्री’ का फंडा अपनाते हैं, चाहे उसका दर्जा कैसा भी क्यों न हो।

वस्तु का दर्जा पहचाने बगैर मुफ्त में मिलने वाली वस्तुओं के प्रति लोगों का आकर्षण दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है, इसका फायदा उत्पादन करने वाली कंपनियाँ ले रही हैं। लोग हैं कि, फ्री की वस्तु पाने के लिए वस्तुओं की खरीदारी कर अपने को चतुर एवं सयाने समझने लगे हैं। इस फ्री के चक्कर में लोग न जाने कितनी अनावश्यक वस्तुएँ खरीदते हैं।

पाठ पर आधारित लघूत्तरी प्रश्न

4.
प्रश्न अ.
पाठ के आधार पर ग्राहकों की वर्तमान स्थिति का चित्रण कीजिए।
उत्तर :
वर्तमान युग में भला करने वाले लोगों से लेखक बेहद परेशान हैं। हर कोई यह दावा कर रहा है कि, वे लोगों के फायदे के बारे में सोचते हैं। मुफ्त में वस्तु दे रहे हैं। इन सब के लिए विज्ञापनों की भरमार हो रही है। अस्पताल वाले भी हर तरह का इलाज करने के लिए तैयार हैं।

आपका मोटापा कम करने की चिंता जितनी आपको नहीं है, उतनी स्लिमिंग सेंटरवालों को है। आप बेझिझक कोई भी और कितनी भी महँगी वस्तु खरीद सकते हैं। बैंक की ओर से क्रेडिट कार्ड वाला आपको डेबिट कार्ड दे रहा है। आपके स्वास्थ्य की चिंता वॉटर फिल्टर वालों को अधिक है।

योग संस्थान वाले आपको हँसाकर आपके स्वास्थ्य में सुधार लाना चाहते हैं। भारत माँ का सपूत लोगों के हित के लिए सस्ते में मॉल में कपड़े बेच रहा है। ‘सेल’ फोन वाला मुफ्त में सिम कार्ड बेच रहा है। आज ‘मुफ्त के चक्कर’ में लोग फँसते हैं।

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प्रश्न आ.
अखबार के दफ्तर से आए दो युवाओं से मिले लेखक के अनुभवों को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
अखबार के दफ्तर से लेखक से मिलने दो युवा आए थे। उन्होंने लेखक से कहा कि, वे फिल्में दिखाते हैं, राय पाने के लिए आमंत्रित करेंगे। लेखक को खुश होते देखकर उन्होंने फौरन अपना काम शुरू कर दिया। जैसे ही लेखक को किसी काम में व्यस्त पाया फौरन उन्होंने लेखक के सामने हस्ताक्षर करने के लिए कागज आगे किए।

कागजातों में क्या लिखा है ये पढ़े बगैर ही हस्ताक्षर वाली जगह दिखाकर हस्ताक्षर करवाए। कुछ ही दिनों में लेखक को एक क्रेडिट कार्ड मिला। पूछताछ करने पर पता चला कि, उनका किसी विदेशी बँक से काँट्रेक्ट था। अपना लक्ष्य पूरा करवाने के लिए उन्होंने यह क्रेडिट कार्ड बनवाया था।

साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान

5.
जानकारी दीजिए:

प्रश्न अ.
राजेंद्र सहगल जी की साहित्यिक कृतियाँ –
(a) ……………………………
(b) ……………………………
उत्तर :
(a) असत्य की तलाश
(b) धर्म बिका बाजार में

प्रश्न आ.
अन्य व्यंग्य रचनाकारों के नाम –
…………………………… ……………………………
…………………………… ……………………………
उत्तर :

  • श्रीलाल शुक्ल,
  • हरिशंकर परसाई,
  • के. पी. सक्सेना,
  • रविंद्रनाथ त्यागी।

6. निम्नलिखित रसों के उदाहरण लिखिए :

(a) वीर
…………………………………………………………
…………………………………………………………

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(b) करुण
…………………………………………………………
…………………………………………………………

(c) भयानक
…………………………………………………………
…………………………………………………………
उत्तर :
(a) वीर :
उदा. : लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।
– सुभद्राकुमारी चौहान

(b) करुण :
उदा. : पेट-पीठ दोनों मिलकर हैं एक,
चल रहा लकुटिया टेक,
मुट्ठी भर दाने को, भूख मिटाने को,
मुँह फटी पुरानी झोली को फैलाता,
दो टुक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता।
– सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’

(c) भयानक :
उदा. : बेचैन हैं हवाएँ, सब ओर बेकली है,
कोई नहीं बताता, किश्ती किधर चली है?
मँझधार है, भँवर है या पास है किनारा?
यह नाश आ रहा या सौभाग्य का सितारा?
– रामधारी सिंह ‘दिनकर’

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कृतिपत्रिका

(अ) निम्नलिखित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

गद्यांश : इधर मैं कई दिनों से ………………………………………….. वक्त नहीं बचेगा। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 13)

प्रश्न 1.
संजाल पूर्ण कीजिए :
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उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 मेरा भला करने वालों से बचाएँ 5

प्रश्न 2.
परिणाम लिखिए :
(i) क्रेडिट कार्ड के साथ डेविट कार्ड मिलने का परिणाम ……………………………….
उत्तर :
क्रेडिट कार्ड के साथ डेबिट कार्ड मिलने से पैसे खर्च करने या नकद खर्च करने की जरूरत नहीं पड़ती।

(ii) अखबार के साथ आए पैंफलेट पढ़ने का परिणाम ……………………………….
उत्तर :
अखबार के साथ आए पैंफलेट पढ़ने बैठे तो अखबार पढ़ने के लिए वक्त नहीं बचता।

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(क) गद्यांश में इन शब्दों के लिए प्रयुक्त अंग्रेजी शब्द :
(i) मुफ्त ……………………………….
(ii) पतला होना ……………………………….
(iii) लघु पुस्तक ……………………………….
(iv) स्वहस्त लेख ……………………………….
उत्तर :
(i) मुफ्त = फ्री
(ii) पतला होना = स्लिमिंग
(iii) लघु पुस्तक = पैंफलेट
(iv) स्वहस्त लेख = आटोग्राफ उदा.

(ख) विलोम शब्द लिखिए :
(i) भला
(ii) मोटा
उत्तर :
(i) भला x वुरा
(ii) मोटा x पतला

प्रश्न 3.
‘विज्ञापन हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
अखबार, पैंफलेट, दूरदर्शन, बड़े-बड़े पोस्टर इन सब के माध्यम से विज्ञापन मनुष्य पर हावी हो रहे हैं। हर एक विज्ञापन हमें बताता है कि, वह हमारे लिए कैसे उपयोगी है। पहले कोई चीज खरीदने के लिए हमें यहाँ-वहाँ पूछताछ करनी पड़ती थी।

जानकार लोगों से राय लेनी पड़ती थी कि हमारे लिए कौन सी लाभदायक है? किंतु आज वस्तुओं को खरीदने से पहले उसमें क्या है, यह हमें मालूम पड़ जाता है। उस वस्तु में जिन पदार्थों का उपयोग किया गया है – वह है क्या यह जान लेने की जरूरत पड़ती है।

पहले लोगों को उधार सामान खरीदना अच्छा नहीं लगता या किंतु आज यह फैशन बन गया है। बैंकों आदि से लोन लेने के लिए बैंकों के कई चक्कर काटने पड़ते थे किंतु आज बैंक के सदस्य हमारे घर आकर लोन की पूछताछ करते हैं। बड़े-बड़े विज्ञापन हमारे जीवन में जरूरतें निर्माण करते भी हैं और उसे पूरा करने के लिए उपाय भी सुझाते हैं।

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(आ) निम्नलिखित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

गद्यांश : बाजार की चिल्लपों से …………………………………………… प्रहार से मरना लाजिमी है। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 15)

प्रश्न 1.
संजाल पूर्ण कीजिए :
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 मेरा भला करने वालों से बचाएँ 6
उत्तर :
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प्रश्न 2.
लिखिए : समाचार चैनल पर वर्णित गर्मी के मौसम का हाल –
(i) …………………………………
(ii) …………………………………
उत्तर :
समाचार चैनल पर वर्णित गर्मी के मौसम का हाल –
(i) गर्मी की तपिश से जनता बेहाल।
(ii) आकाश से आग बरसती है।

प्रश्न 3.
निम्न शब्दों को उचित तालिका में लिखिए : (बेहाल, जीवित, खौफनाक, प्रकोप)
उपसर्गयुक्त शब्द – प्रत्यययुक्त शब्द
…………………….. – ……………………..
…………………….. – ……………………..
…………………….. – ……………………..
उत्तर:
उपसर्गयुक्त शब्द – प्रत्यययुक्त शब्द
बेहाल – जीवित
प्रकोप – खौफनाक

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प्रश्न 4.
‘समाचार चैनल भी दर्शकों का मनोरंजन करना चाहते हैं इस तथ्य पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
समाचार चैनल एक ऐसा जरिया है जिसके द्वारा देश-विदेश की जानकारी एक साथ लाखों लोगों तक पहुँचाई जा सकती हैं।

दूरदर्शन पर किसी भी समाचार को सुनने के साथ-साथ हम देख भी सकते हैं। इसीलिए लोगों का रुझान भी बढ़ा। आज दूरदर्शन पर ऐसे चैनल आए हैं जो 24 घंटे समाचार प्रसारित करते हैं। यह उनकी सफलता ही बयाँ करती है कि वे कई भाषाओं में उपलब्ध हैं।

हमारे सामने इतने विकल्प होते हैं कि अपनी मर्जी से हम किसी भी चैनल को चुन सकते हैं। इसी वजह से इन चैनलों में स्पर्धा शुरू हो गई। और सच्चाई को भी तोड़-मरोड़कर परोसा जाने लगा है। छोटी सी बात को मिर्च-मसाला लगाकर दिखाते हैं।

किसी अपदा, दुर्घटना के समय घायल या मृतकों की संख्या इसी लिए अलग-अलग होती है और चैनल अपनी विश्वसनीयता खोने लगे हैं।

(इ) निम्नलिखित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

गद्यांश : ‘सेल’ फोन से ……………………………………. वो ले लो, ये फ्री।” (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 16)

प्रश्न 1.
संजाल पूर्ण कीजिए :
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उत्तर:
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प्रश्न 2.
निम्नलिखित वाक्यों का उचित क्रम लगाइए :
(i) कुछ अपनी सुरक्षा की तैयारी कर सकते हैं पर इन फायदा करने वालों से बचने की ज्यादा जरूरत है।
(ii) एक-दूसरे से मिलकर बात कम करें, फोन पर ज्यादा करें।
(iii) मुझे अपना भला नहीं करवाना है।
(iv) उसमें करेंट दौड़ जाता है।
उत्तर :
(i) एक-दूसरे से मिलकर बात कम करें, फोन पर ज्यादा करें।
(ii) उसमें करेंट दौड़ जाता है।
(iii) कुछ अपनी सुरक्षा की तैयारी कर सकते हैं पर इन फायदा करने वालों से बचने की ज्यादा जरूरत है।
(iv) मुझे अपना भला नहीं करवाना है।

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प्रश्न 3.
लिखिए : (i) गद्यांश में प्रयुक्त दो शब्द-युग्म ढूँढकर लिखिए :
(1) ………………………. – ……………………….
(2) ………………………. – ……………………….
उत्तर :
(1) एक – दूसरे
(2) ठीक – ठीक

(ii) गद्यांश से विलोम शब्द की जोड़ियाँ ढूँढकर लिखिए :
(1) ………………………. – ……………………….
(2) ………………………. – ……………………….
उत्तर :
(1) आम – खास
(2) नुकसान x फायदा

प्रश्न 4.
‘सेल’ फोन के दुष्परिणाम बताइए।
उत्तर :
‘सेल’ फोन आने के पश्चात हमारी यह धारणा बनी थी कि, हम ज्यादा से ज्यादा लोगों से कहीं भी, कभी भी जुड़ जाएँगे। हम अधिकाधिक लोगों से जुड़ तो गए किंतु अपने करीबी लोगों से हम दूर हो गए। हम एक दूसरे से कम, दूर के लोगों से फोन पर अधिक बातें करने लगे।

‘सेल’ फोन से ऊँचा सुनना, आँख की बीमारी जैसी कई प्रकार की समस्याएँ निर्माण हुईं। अपने मिलने वालों से कम और जो कहीं दूरी पर है, उससे ही बतियाते रहे। परिणामत: एक ही घर में रहने वाले सदस्य एक-दूसरे के लिए अजनबी हो गए। हमारा कीमती वक्त मोबाइल में उलझे रहने के कारण बर्बाद होने लगा।

मेरा भला करने वालों से बचाएँ Summary in Hindi

मेरा भला करने वालों से बचाएँ लेखक परिचय :

सहगल जी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से एम्.ए.,पीएच्.डी. की उपाधि प्राप्त की। आप बैंक में उपप्रबंधक के रूप में कार्यरत रहे। आप आकाशवाणी से विभिन्न विषयों पर वार्ताओं का प्रसारण करते हैं तथा सामयिक महत्त्व के विषयों पर फीचर लेखन भी करते हैं।

मेरा भला करने वालों से बचाएँ प्रमख कतियाँ :

‘हिंदी उपन्यास’, ‘तीन दशक’ (शोध प्रबंध), ‘असत्य की तलाश’, ‘धर्म बिका बाजार में (व्यंग्य संग्रह)

मेरा भला करने वालों से बचाएँ विधा परिचय :

‘व्यंग्य’ का मतलब शब्दों का तीखा प्रहार। लेखक अपनी संवेदना के धरातल पर समाज में व्याप्त विसंगतियों (discrepancy) पर कड़ा प्रहार करता है। वह भाषा की व्यंजना शक्ति का प्रयोग इतना बखूबी करता है, कि विसंगति में संगति, कुरूपता (ugliness) के पीछे सुंदरता, विरोधाभास (parodax) में समानता की सृष्टि होकर हास्य रस की निष्पत्ति होती है।

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मेरा भला करने वालों से बचाएँ विषय प्रवेश :

लेखक का मानना है कि, झूठ को सच बताने में जो ताकत लगती है उसका सौंवा हिस्सा भी सच को सच साबित करने में नहीं लगता। ‘मुफ्त के चक्कर’ में अपना भला करने वाले हमारे आस-पास कई सारे लोग दिखाई देते हैं, उनसे ‘मुझे बचना है’ कहकर इस प्रवृत्ति पर व्यंग्य कसा है।

मेरा भला करने वालों से बचाएँ मुहावरें :

  1. दर-दर भटकना – मारा-मारा फिरना।
  2. सोने पे सुहागा होना – किसी वस्तु या व्यक्ति का उच्चतर/बेहतर होना।
  3. राह देखना – इतंजार करना।

मेरा भला करने वालों से बचाएँ टिप्पणी :

तुरुप – ताश का एक खेल जिसमें प्रधान माने हुए रंग का छोटे-से-छोटा पत्ता अन्य रंगों के बड़े-से-बड़े पत्ते को काट सकता है।

मेरा भला करने वालों से बचाएँ सारांश :

समाज का हर एक आदमी लेखक का भला करना चाहता है। अखबार में विज्ञापन के ढेर सारे कागज पाए जाते हैं, जिसमें हर तरह के इलाज के लिए क्लिनिक है, स्लिमिंग सेंटरवाला आप के आने का इंतजार कर रहा है, हलवाई लाजबाब मिठाई बेच रहा है।

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कहीं क्रेडिट कार्ड वाला फ्री डेबिट कार्ड दे रहा है। कोई घर तक सामान पहुँचाने के लिए तैयार है। गाड़ी वाला नई गाड़ी के लिए लोन के लिए बैंक के कागज दे रहा है। कहीं पर मुस्कुराती चहचहाती लड़कियों के झुंड आपका आटोग्राफ लेने के लिए आती हैं। कोई साफ पानी के लिए वॉटर फिल्टर लगाना चाह रहा है। सब कुछ किस्तों में और क्रेडिट कार्ड पर मिल रहा है। साबुन की टिकियाँ कम-से-कम चार लेनी पड़ती है।

हर जगह भाईचारा इतना बढ़ गया है कि, ‘लार्जर टॅन लाइफ’ हो गया है। पार्क में जाते हैं तो योग संस्थान वाले ‘योगा’ के फायदे समझाते हैं। फिल्म देखने जाते हैं तो टिकट के साथ खाने का सामान शामिल कर लिया जाता है। ‘मॉल’ में कपड़ों की सेल लगी है।

देशवासियों के प्रति होने वाले प्यार के कारण वह सस्ता माल बेच रहा है। दरअसल वह सेकेंड का सस्ता माल बेचने के लिए अपने को धरती का लाल कहता है। कोई दुकानवाला त्योहारों पर दुकान की छुट्टियों की अग्रिम सूचना देता है।

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घर जाकर टीवी शुरू करते हैं, तो समाचार चैनल खबरों के नाम पर डरा रहे हैं। मौसम का हाल जानना चाहते हैं, तो कहते हैं, अगर आप जीवित रहना चाहते हैं, तो घर से बाहर न निकलें। दरअसल ये सारे लोग हमारा भला चाहने वाले हैं लेकिन हम इन्हें ठीक तरह से समझ नहीं पा रहे हैं।

लेखक के मोहल्ले में ‘पुरुष ब्यूटी पार्लर’ खुल गया है। लेखक नाखून कटवाने के लिए जाता है, तो उसे सलाह मिलती है कि लेखक अपना ‘फेशियल’ करवाकर अपना ‘फेस वेल्यू’ बढ़ाए। लेखक के नाखून इस तरह तराशे मानो कोई संगमरमर की मूर्ति तराश रहा हो। आखिरकार नाखून काटने के 1000/- रु. लेकर मुक्त कर दिया।

रास्ते में मोबाइल खरीदारों की लाइन लगी थी पूछने पर पता चला कि, मोबाइल के साथ सिम कार्ड मुफ्त मिलता है। लेखक ने भी मोबाइल खरीदा। कोई भी फोन नहीं आ रहा है। लेखक सोचता है, शायद उसने कोई गलत बटन तो नहीं दबाया। कार्यव्यस्तता के कारण लोग सड़क पर चलते-चलते फोन कर रहे हैं। ‘सेल’ फोन से हम हीनता की ग्रंथि से मुक्त हुए हैं। हम एक-दूसरे से कम, फोन पर ज्यादा बातें कर रहे हैं।

अपना नुकसान करने वालों से तो हम बच सकते हैं किंतु हमारा फायदा करने वालों से बचने की ज्यादा जरूरत है। ना कहने पर भी वे, ‘यह ले लो, वो फ्री, वो ले लो, ये फ्री’, कहकर हर हालत में हमारा फायदा करके ही मानेंगे।

इस तरह लेखक फायदा करने वालों से बचना चाहता है।

मेरा भला करने वालों से बचाएँ शब्दार्थ :

  • क्लीनिक = अस्पताल (clinic),
  • झुंड = बहुत से मनुष्यों का समूह (group),
  • विवरण = वर्णन, ब्यौरा (discription),
  • चुटकुला = मनोरंजक बात (joke),
  • दायरा = गोल घेरा (radius),
  • चिल्लप = चीख, पुकार (shouting),
  • तपिश = गरमी (heat),
  • प्रकोप = क्षोभ (outbreak),
  • मोहभंग = भ्रांति निवारण (disillusion),
  • आलम = दुनिया (world),
  • स्लिमिंग = पतला होना (slimming),
  • फ्री = मुफ्त (free),
  • निर्देश = सूचना (instruction)
  • विवरण = वर्णन, ब्योरा
  • मोहभंग = भ्रांति निवारण
  • दायरा = गोलघेरा Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 मेरा भला करने वालों से बचाएँ
  • चुटकुला = मनोरंजक बात

Hindi Yuvakbharati 11th Digest Text Book Solutions

Class 11 Hindi Chapter 3 Pandrah August Question Answer Maharashtra Board

Std 11 Hindi Chapter 3 Pandrah August Question Answer Maharashtra Board

Balbharti Maharashtra State Board Hindi Yuvakbharati 11th Digest Chapter 3 पंद्रह अगस्त Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

Hindi Yuvakbharati 11th Digest Chapter 3 पंद्रह अगस्त Questions And Answers

11th Hindi Digest Chapter 3 पंद्रह अगस्त Textbook Questions and Answers

आकलन
1.

प्रश्न अ.
संकल्पना स्पष्ट कीजिए –
(a) नये स्वर्ग का प्रथम चरण
उत्तर :
स्वतंत्रता प्राप्त करना हमारा स्वर्ग प्राप्त करने जैसे लक्ष्य था हमें अभी अनेक कार्य करने शेष हैं। कवि यह संकेत करते हैं कि स्वतंत्रता प्राप्त हो गई “अब सब काम खत्म हो गया” ऐसा सोचकर विश्राम नहीं करना है। वास्तव में अभी-अभी तो हमारा कार्य आरंभ हुआ है। हमारे देश को स्वर्ग बनाना है यही हमारा लक्ष्य है और आजादी उसका प्रथम चरण है।

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 पंद्रह अगस्त

(b) विषम शृंखलाएँ
उत्तर :
बड़ी कठिनाई से हमने आज़ादी प्राप्त की है। गुलामी की बेड़ियाँ तोड़ पाएँ हैं। हमारे देश की सीमा हर ओर से आज़ाद है।

(c) युग बंदिनी हवाएँ
उत्तर :
हे देशवासियो, यह ध्यान रहे कि इस विश्व में तूफान की तरह तेजी से बंदी बनाने वाली हवाएँ चल रही हैं। अर्थात कई देशों से आक्रमण का खतरा हमारे देश पर बढ़ गया है। ऐसी दुर्घटना को रोकने का उत्तरदायित्व हमारा है।

प्रश्न आ.
लिखिए –
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 पंद्रह अगस्त 7
उत्तर :
(1) शोषण से मृत है समाज
(2) कमजोर हमारा घर है।

काव्य सौंदर्य

2. आशय लिखिए :

प्रश्न अ.
“ऊँची हुई मशाल हमारी ………………………………………………… हमारा घर है।”
उत्तर :
आज़ादी प्राप्त करने के बाद हमारी जिम्मेदारी और अधिक बढ़ गई है। हमारा रास्ता और कठिन हो गया है। माना कि शत्रु चला गया है पर वह अपनी पराजय से अत्यंत विकल (restless) हुआ है। कोई न कोई कूटनीति उसके मन मस्तिष्क में चल रही होगी। हमारा जनसमुदाय इतने सालों की गुलामी से सामाजिक, आर्थिक एवं मानसिक रूप से कमजोर हो गया है इसलिए अपनी मशाल अर्थात अपनी सतर्कता और अधिक बढ़ा दो।

प्रश्न आ.
“युग बंदिनी हवाएँ ………………………………………………… टूट रहीं प्रतिमाएँ।”
उत्तर :
जहाँ हमने आज़ादी प्राप्त करके देश की सभी सीमाओं को स्वतंत्र कर लिया है। वही ब्रिटिश सरकार अपनी पराजय से विकल है। वह हमारे देश की उन्नति के विरूद्ध कूटनीति भी कर रही होगी। देश को जाति, धर्म, भाषा और प्रांत के नाम पर कमजोर, अलग-थलग करना जैसी समस्या देश में उत्पन्न हो सकती है।

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अभिव्यक्ति

3.
प्रश्न अ.
‘देश की रक्षा-मेरा कर्तव्य’, इसपर अपना मत स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
“जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं,
वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं.” (गयाप्रसाद शुक्ल ‘सनेही’)

देश की रक्षा किसी व्यक्ति का केवल कर्तव्य ही नहीं बल्कि उसका धर्म भी होता है। व्यक्ति द्वारा कोई भी ऐसा कार्य नहीं होना चाहिए जिससे देश धर्म में बाधा पहुँचे। हमारा देश सबसे सर्वोपरि (above all) है। कोई भी लाभ और हानि हमारे देश को सीमित नहीं कर सकती।

देश के प्रति पूरी निष्ठा होनी चाहिए। देश केवल भूभाग नहीं है। देश का आर्थिक विकास व वृद्धि, साफ-सफाई, सुशासन, भेदभाव न करना, कानून का पालन करना आदि जिम्मेदारियाँ निभाना हमारा कर्तव्य है। एक जिम्मेदार नागरिक बनकर हमें ऐसे कार्य करने चाहिए जिससे देश की आन, बान और शान में वृद्धि हो। हमारी राष्ट्रीय धरोहर (heritage) और सार्वजनिक संपत्ति का सम्मान और रक्षा करना भी हमारा कर्तव्य है।

देश के कानून का पालन और सम्मान करना चाहिए। हमें अपने करों का समय पर सही तरीके से भुगतान करना चाहिए। देश को प्रदूषण मुक्त करने में सहयोग देना, पर्यावरण संतुलन हेतु वृक्षारोपण (plantation) करना जैसे कार्यों में रुचि दिखाना भी देश की रक्षा करना ही है; इस तथ्य को स्वयं समझना और औरों को समझाना भी हमारा कर्तव्य है।

प्रश्न आ.
‘देश के विकास में युवकों का योगदान’, इस विषय पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
किसी भी देश की तीन प्रकार की संपत्ति से देश की उन्नति का आकलन लगाया जाता है। वह संपत्ति है – धन संपत्ति, युवा संपत्ति और संस्कृति संपत्ति। जिस देश के पास ये तीनों संपत्तियाँ विद्यमान हैं उस देश को तीनों लोकों का सुख प्राप्त है।

युवा देश की ऐसी संपत्ति है, जो देश को उन्नति के उच्चतम शिखर तक पहुँचा सकती है। इतिहास और शास्त्र दोनों ही इस बात के गवाह हैं, चाहे वे सतयुग, त्रेता, द्वापर के युवा हो चाहे वर्तमान काल के युवा। जो भी सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक सकारात्मक परिवर्तन होता है उसमें युवाओं का हिस्सा अधिकाधिक होता है।

युवा शक्ति देश और समाज की रीढ़ होती है। वे देश और समाज को नए शिखर पर ले जाते हैं। उनमें गहन (intensive) ऊर्जा और महत्त्वाकांक्षाएँ (ambitions) होती हैं। उनकी आँखों में इंद्रधनुषी स्वप्न होते हैं। उनके योगदान से देश उन्नति के पथ पर अग्रसर (proceed) होगा।

क्योंकि युवा ही वर्तमान का निर्माता और भविष्य का नियामक (regulator) होता है। अत: समस्त भारतीय युवाओं को यह संकल्प लेना चाहिए कि राष्ट्र के सम्मुख जितनी भी चुनौतियाँ हैं हम उनका डटकर सामना करेंगे।

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रसास्वादन

4. स्वतंत्रता का वास्तविक अर्थ समझते हुए प्रस्तुत गीत का रसास्वादन कीजिए।
उत्तर :
(i) शीर्षक : पंद्रह अगस्त
(ii) रचनाकार : गिरीजाकुमार माथुर ‘पंद्रह अगस्त’ कविता कवि गिरिजाकुमार माथुर द्वारा लिखा एक गीत है।
(iii) केंद्रीय कल्पना : स्वतंत्रता के पश्चात देश में चारों ओर उल्लास छाया है और साथ ही इस स्वतंत्रता को बरकरार रखने हेतु सावधान एवं सतर्क रहना जरूरी है यह आह्वान भी है।
(iv) रस-अलंकार : कविता में वीर रस की निष्पत्ति के साथ साथ लयात्मकता का सुंदर प्रयोग हर अंतरे में स्पष्ट झलकता है। जैसे – छोर, हिलोर (wave), डोर (string), कोर (edge) जैसे शब्दों का प्रयोग हो या दिशाएँ, हवाएँ, सीमाएँ, प्रतिमाएँ या फिर डगर, डर, घर, अमर जैसे शब्दों के प्रयोग से गेयता (singable) साध्य हुई है। ‘पहरुए सावधान रहना’ मुखड़ा हर अंतरे के बाद आया है।

(v) प्रतीक विधान : देशवासियों को देश के पहरेदार बनकर सावधान रहने की बात कवि कह रहे हैं।

(vi) कल्पना : कवि ने स्वतंत्रता को स्वर्ग का प्रथम चरण माना है और अनेकों लक्ष्य पाने की कल्पना की है।
(vii) पसंद की पंक्तियाँ तथा प्रभाव : ‘किंतु आ रही नई जिंदगी
यह विश्वास अमर है,
जनगंगा में ज्वार
लहर तुम प्रवाहमान रहना’

इन पंक्तियों में स्वतंत्रता का वास्तविक अर्थ समझाने का प्रयास कवि ने किया है। देश में चारों ओर उल्लास है, जनगंगा में ज्वार है। परंतु जब शोषित पीड़ित और मृतप्राय समाज का पुनरुत्थान होगा तभी सही मायने में देश आजाद होगा। किंतु हमारा यह विश्वास कि हमारे जीवन में एक नई शुरुआत हो गई है हमारा मनोबल बढ़ाता है और इस बल को कभी टूटने नहीं देना है। जनशक्ति की लहर बनकर प्रगति की ओर आगे बढ़ना है।

(viii) कविता पसंद आने के कारण : कविता के ये भाव मन में उल्लास भर देते हैं और कविता की गेयता कविता गुनगुनाने पर बाध्य करती हुई आनंद की प्राप्ति कराने में सक्षम है।

साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान
जानकारी दीजिए:

5.
प्रश्न अ.
गिरिजाकुमार माथुर जी के काव्यसंग्रह –
उत्तर :
धूप के धान
मैं वक्त के हूँ सामने

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प्रश्न आ.
‘तार सप्तक’ के दो कवियों के नाम –
उत्तर :
प्रभाकर माचवे
भारतभूषण अग्रवाल

रस
वीर रस – किसी पद में वर्णित प्रसंग हमारे हृदय में ओज, उमंग, उत्साह का भाव उत्पन्न करते हैं, तब वीर रस का निर्माण होता है। ये भाव शत्रुओं के प्रति विद्रोह, अधर्म, अत्याचार का विनाश, असहायों को कष्ट से मुक्ति दिलाने में व्यंजित होते हैं।
उदा. –
(१) साजि चतुरंग सैन, अंग में उमंग धरि।
सरजा सिवाजी, जंग जीतन चलत है।
भूषण भनत नाद, बिहद नगारन के
नदी-नद मद, गैबरन के रलत है।
– भूषण

(२) दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में वह तलवार पुरानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झाँसीवाली रानी थी।
– सुभद्राकुमारी चौहान

भयानक रस – जब काव्य में भयानक वस्तुओं या दृश्यों के प्रत्यक्षीकरण के फलस्वरूप हृदय में भय का भाव उत्पन्न होता है, तब भयानक रस की अभिव्यंजना होती है।
उदा. –
(१) प्रथम टंकारि झुकि झारि संसार-मद चंडको दंड रह्यो मंडि नवखंड को।
चालि अचला अचल घालि दिगपालबल पालि रिषिराज के वचन परचंड कों।
बांधि बर स्वर्ग को साधि अपवर्ग धनु भंग को सब्ध गयो भेदि ब्रह्मांड कों।
– केशवदास

(२) उधर गरजती सिंधु लहरिया, कुटिल काल के जालों-सी।
चली आ रही है, फेन उगलती, फन फैलाए व्यालों-सी।।
– जयशंकर प्रसाद

Yuvakbharati Hindi 11th Textbook Solutions Chapter 3 पंद्रह अगस्त Additional Important Questions and Answers

कृतिपत्रिका

(अ) पन्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

पदयांश : आज जीत की ……………………………………………………….. बने अंबुधि महान रहना। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 9-10)

प्रश्न 1.
जाल पूर्ण कीजिए :
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 पंद्रह अगस्त 1
उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 पंद्रह अगस्त 2

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 पंद्रह अगस्त

प्रश्न 2.
विधान सत्य है या असत्य लिखिए :
उत्तर :
(i) इस जनमंथन से उठ आई है पहली रतन हिलोर। – सत्य
(ii) नए स्वर्ग का अंतिम चरण। – असत्य

प्रश्न 3.
पद्यांश का भावार्थ सरल हिंदी में लिखिए।
उत्तर :
प्रस्तुत पद्यांश ‘तारसप्तक’ (सात कवियों का एक मंडल) के प्रमुख कवि गिरिजा कुमार माथुर जी की कविता ‘पंद्रह अगस्त’ से लिया गया है। कवि आज़ादी के बाद देशवासियों को संबोधित करते हुए कहते हैं – हे देशवासियो !….. हमारा देश अभीअभी आज़ाद हुआ है। अब इसकी सुरक्षा की सभी तरह की जिम्मेदारी हमारी है। इसलिए हमें और अधिक सावधान रहना पड़ेगा। स्वतंत्रता हमारे जीवन का पहला लक्ष्य था, जो अभी पूरा हुआ है। शेष उद्देश्य तो अभी भी बाकी है। कवि कहते हैं कि हमें समुद्र की तरह मन में गहराई एवं हृदय में विशालता रखनी होगी।

(आ) एद्याश पड़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

पद्यांश : विषम श्रृंखलाएँ टूटी ……………………………………………………….. तुम दीप्तिमान रहना। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 10)

प्रश्न 1.
लिखिए :
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 पंद्रह अगस्त 3
उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 पंद्रह अगस्त 4

प्रश्न 2.
निम्न शब्दों के लिए पद्यांश में आए शब्द लिखिए :
(i) आँधी – ……………………………………….
(iii) मूर्ति – ……………………………………….
(iii) चंद्र – ……………………………………….
(iv) पहेरदार – ……………………………………….
उत्तर :
(i) प्रभंजन
(ii) प्रतिमा
(iii) इंदु
(iv) पहरुए

प्रश्न 3.
पद्यांश का भावार्थ अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
प्रस्तुत पद्यांश कवि गिरिजाकुमार माथुर जी की कविता ‘पंद्रह अगस्त’ से लिया गया है। प्रस्तुत पद्यांश में कवि कह रहे हैं कि परतंत्रता (dependance) की बेड़ियाँ टूट गई हैं और आजादी की खुली हवा देश में बहने लगी है। युगों से गुलामी सहने वाले स्वतंत्र होते ही दिशाहीन, लक्ष्यहीन हो गए हैं।

विभाजन के कारण वे सीमाओं में सीमटकर अपना होश खो बैठे हैं। दुर्बल हो गए हैं। ऐसे में अधिक सतर्कता की आवश्यकता है। कहीं आपस में लड़कर हम एक-दूसरे को ही नुकसान न पहुँचा दें इस बात का ख्याल रखना होगा। चंद्र के समान शीतल रोशनी फैलाकर देशवासियों को रास्ता दिखाने का काम कवि हमें करने को कह रहे हैं।

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 पंद्रह अगस्त

(इ) पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

पद्यांश : ऊँची हुई मशाल’……………………………………….. तुम प्रवाहमान रहना। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 10)

प्रश्न 1.
प्रवाह तालिका पूर्ण कीजिए :
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 पंद्रह अगस्त 5
उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 पंद्रह अगस्त 6

प्रश्न 2.
पद्यांश के आधार पर दो ऐसे प्रश्न तैयार कीजिए जिनके उत्तर निम्न शब्द हो :
(i) ज्वार : ………………………………….
(ii) लहर : ………………………………….
उत्तर :
(i) जनगंगा में क्या है?
(ii) किसे प्रवाहमान रहना है?

प्रश्न 3.
पद्यांश द्वारा मिलने वाला संदेश लिखिए।
उत्तर :
प्रस्तुत पद्यांश गिरिजाकुमार माथुर जी की कविता ‘पंद्रह अगस्त’ से लिया गया है। प्रस्तुत पद्यांश में तत्काल मिली हुई स्वतंत्रता की कवि चिंता करता है इसलिए देशवासियों को सतर्क रहने का आह्वान किया है। देश में एकता, अखंडता और भाई-चारे को बनाए रखने के लिए सजग किया है।

कवि देशवासियों को सावधान रहने के लिए कहते हैं। उनका कहना हैं कि शत्रु भले ही हमारे देश को छोड़कर चला गया है, पर पलटकर वार करें तो उसके प्रत्युत्तर के लिए सतर्क रहना चाहिए। धर्म, जाति और संप्रदाय के नाम पर हमें आपसी विवाद से बचना चाहिए।

रस:

वीर रस – किसी पद में वर्णित हमारे प्रसंग हृदय में ओज, उमंग, उत्साह का भाव उत्पन्न करते हैं, तब वीर रस का निर्माण होता है। ये भाव शत्रुओं के प्रति विद्रोह, अधर्म, अत्याचार का विनाश, असहायों को कष्ट से मुक्ति दिलाने में व्यंजित (express) होते हैं।
उदा. :
(1) साजि चतुरंग सैन, अंग में उमंग धरि।
सरजा सिवाजी, जंग जीतन चलत है।
भूषण भनत नाद, बिहद नगारन के
नदी-नद मद, गैबरन के रलत है।
– भूषण

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 पंद्रह अगस्त

(2) दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में वह तलवार पुरानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झाँसीवाली रानी थी।
– सुभद्राकुमारी चौहान

भयानक रस – जब काव्य में भयानक वस्तुओं या दृश्यों के प्रत्यक्षीकरण के फलस्वरूप हृदय में भय का भाव उत्पन्न होता है, तब भयानक रस की अभिव्यंजना होती है।
उदा. :
(1) प्रथम टंकारि झुकि झारि संसार-मद चंडको दंड रह्यो मंडि नवखंड कों।
चालि अचला अचल घालि दिगपालबल पालि रिषिराज के वचन परचंड को।
बांधि बर स्वर्ग को साधि अपवर्ग धनु भंग को सब्ध गयो भेदि ब्रह्मांड कों। – केशवदास

(2) उधर गरजती सिंधु लहरिया, कुटिल काल के जालों-सी।
चली आ रही है, फेन उगलती, फन फैलाए व्यालों-सी।।
– जयशंकर प्रसाद

पंद्रह अगस्त Summary in Hindi

पंद्रह अगस्त कवि परिचय :

गिरिजाकुमार माथुर जी का जन्म 22 अगस्त 1919 को अशोक नगर (मध्य प्रदेश) में हुआ था। आपकी आरंभिक शिक्षा झाँसी में हुई थी। आपने लखनऊ विश्वविद्यालय से एम. ए. (अंग्रेजी) एवं एल. एल. बी. की शिक्षा प्राप्त की। कुछ समय तक आपने वकालत की तत्पश्चात दिल्ली में आकाशवाणी में काम किया। कुछ समय तक दूरदर्शन में भी काम किया और वहीं से सेवा निवृत (retired) हुए। माथुर जी की मृत्यु 10 जनवरी 1994 में हुई।

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 पंद्रह अगस्त 8

स्वतंत्रता प्राप्ति के दिनों में हिंदी साहित्यकारों में जो प्रमुख कवि थे, उनमें गिरिजाकुमार माथुर जी का नाम अग्रणी (leading) है।

पंद्रह अगस्त प्रमुख रचनाएँ :

‘मंजीर’, ‘नाश और निर्माण’, ‘धूप के धान’, ‘शिलापंख चमकीले’, ‘जो बँध नहीं सका’, ‘साक्षी रहे वर्तमान’, ‘भीतरी नदी की यात्रा’, ‘मैं वक्त के हूँ सामने’ (काव्य संग्रह), ‘जन्म कैद’ (नाटक) आदि।

पंद्रह अगस्त काव्य विधा :

यह ‘गीत’ विधा है। इसमें एक मुखड़ा (first line) होता है और दो या तीन अंतरे (stanza) होते हैं। इसमें परंपरागत भावबोध तथा शिल्प प्रस्तुत किया जाता है। कवि इस प्रकार की अभिव्यक्ति में प्रतीक, बिंब तथा उपमान का प्रयोग करता है।

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 पंद्रह अगस्त

पंद्रह अगस्त विषय प्रवेश :

प्रस्तुत गीत में कवि ने स्वतंत्रता के हर्ष और उल्लास को उत्साह पूर्वक अभिव्यक्त (expressed) किया है। कवि देशवासियों एवं सैनिकों को अत्यंत जागरूक रहने का आवाहन कर रहा है।

पंद्रह अगस्त सारांश :

(कविता का भावार्थ) : प्रस्तुत कविता आज़ादी के बाद देश के प्रत्येक नागरिक को संबोधित करती है। कवि देशवासियों को पहरेदार के समान सावधान रहने के लिए कहता है। कवि का कहना है कि हे देशवासियो, यह हमारी विजय की पहली रात है। आज से देश की सभी तरह की सुरक्षा का उत्तरदायित्व हमारा है। हमें उस निश्चल दीपक की भाँति (जो विपरीत समय में भी अपनी रोशनी से अंधकार को ललकारता रहता है।) अपने देश पर आने वाली सभी समस्याओं को दूर भगा देना है।

कविता में प्रथम स्वर्ग का तात्पर्य – पहला लक्ष्य पहली प्राप्ति है, जिसे हमने सामूहिक प्रयास से प्राप्त किया है। कवि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद शेष कार्यों की ओर संकेत करते हैं। हमारे सामने अनेक लक्ष्य शेष हैं। देशवासियों ने शारीरिक, मानसिक और आर्थिक पीड़ा को बहुत लंबे समय तक सहन किया है।

देश अपने अपमान को अभी भुला नहीं पाया है। इसलिए आज़ादी के बाद हमारी जिम्मेदारी और अधिक बढ़ गई है। हमें समुद्र की भाँति मन में गहराई और विशालता रखनी होगी। हमें पहले से भी और अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता है।

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 पंद्रह अगस्त

बड़े संघर्ष के बाद मिली आज़ादी के बाद भी अभी बड़ी-बड़ी चुनौतियाँ अपना ताल ठोक (challenging) रही हैं। हमारे देश पर अनेक देश की ओर से खतरे मँडरा रहे हैं। ब्रिटिश सरकार ने हमें कमजोर करने के लिए कई प्रकार के जाल बिछाए हैं। हमें जाति, धर्म और प्रांत के नाम पर अलग-अलग बाँटने का प्रयास किया है। यह हमारी प्रगति के लिए रुकावट है।

आज ब्रिटिश सरकार का सिंहासन ध्वस्त हो गया है। लोगों में आक्रोश है। अगर हम सावधान न रहे तो हम आपस में ही लड़कर एक दूसरे को नुकसान पहुँचा सकते हैं। इसलिए इस-हर्ष-विषाद (griet) की घड़ी में हमें अत्यंत सावधान रहने की आवश्यकता है। जिस प्रकार चाँद की रोशनी अँधेरे में भी पथिक (passenger) को रास्ता दिखाती है ठीक उसी प्रकार हे पहरुए तुम्हें भी सबको रास्ता दिखाना है।

कवि का कहना है कि यह सही है कि हमें स्वतंत्रता मिल गई है। शत्रु सामने से चला गया है पर पीछे से वह कौन सा खेल खेलेगा हमें पता नहीं है। इससे बचने के लिए हमें पहले से भी और अधिक सतर्क रहना होगा। सालों-साल की गुलामी ने हमारे जन समुदाय को शारीरिक, मानसिक, आर्थिक और सांस्कृतिक सभी ओर से अत्यंत दुर्बल बना दिया है।

किंतु हमारा यह एक विश्वास, है कि हमारे जीवन की एक नई शुरुआत हो गई है, यह सोचकर हमारा मनोबल बढ़ जाता है। जैसे समुद्र की लहरें एकजुट होकर समुद्र में ज्वार ला देती हैं हमें भी उन समुद्री लहरों की तरह ही एक-साथ होकर आगे बढ़ते रहना है। हे पहरुए ! उपरोक्त कार्य के लिए तुम्हें अत्यंत सावधान रहना होगा।

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पंद्रह अगस्त शब्दार्थ:

  • पहरुए = पहरेदार, प्रहरी
  • पतवार = नाव खेने का साधन
  • अंबुधि = सागर, समुद्र
  • प्रभंजन = आँधी, तूफान
  • इंदु = चंद्रमा
  • दीप्तिमान = प्रकाशमान, कांतिमान, प्रभायुक्त
  • पहरूए = पहरेदार, प्रहरी (security person),
  • अचल = स्थिर (stable),
  • प्रथम = पहला (first),
  • छोर = किनारा (end),
  • विगत = बीता हुआ कल (past),
  • पतवार = नाव खेने का साधन (paddle),
  • अंबुधि = समुद्र, सागर (ocean),
  • प्रभंजन = आँधी, तूफान (storm),
  • इंदु = चंद्रमा (moon),
  • दीप्तिमान = प्रभायुक्त, प्रकाशमान (radiant)

Hindi Yuvakbharati 11th Digest Text Book Solutions

Class 11 Hindi Chapter 2 Laghu Kathayen Question Answer Maharashtra Board

Std 11 Hindi Chapter 2 Laghu Kathayen Question Answer Maharashtra Board

Balbharti Maharashtra State Board Hindi Yuvakbharati 11th Digest Chapter 2 लघु कथाएँ Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

Hindi Yuvakbharati 11th Digest Chapter 2 लघु कथाएँ Questions And Answers

11th Hindi Digest Chapter 2 लघु कथाएँ Textbook Questions and Answers

आकलन

1. लिखिए :

प्रश्न अ.
दावत में होने वाली अन्न की बरबादी पर उषा की प्रतिक्रिया –
उत्तर :
उषा की आँखों में आँसू आ गए।

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 लघु कथाएँ

प्रश्न आ.
संवादों का उचित घटनाक्रम –
(i) “रुपये खर्च हो गए मालिक।”
(ii) “स्कूल नहीं जाता तू? अजीब है….!”
(iii) “अरे क्या हुआ ! जाता क्यों नहीं?”
(iv) “माँ, बाल-मजदूरी अपराध है न?’
उत्तर :
(i) “स्कूल नहीं जाता तू? अजीब है….!”
(ii) “माँ, बाल-मजदूरी अपराध है न?’
(iii) “अरे क्या हुआ ! जाता क्यों नहीं?”
(iv) “रुपये खर्च हो गए मालिक।”

शब्द संपदा

2.

प्रश्न अ.
समूह में से विसंगति दर्शानेवाला कृदंत/तद्धित शब्द चुनकर लिखिए –
(i) मानवता, हिंदुस्तानी, ईमानदारी, पढ़ाई
(ii) थकान, लिखावट, सरकारी, मुस्कुराहट
(iii) बुढ़ापा, पितृत्व, हँसी, आतिथ्य
(iv) कमाई, अच्छाई, सिलाई, चढ़ाई
उत्तर :
(i) पढ़ाई, (कृदंत शब्द)
(ii) सरकारी – (तद्धित शब्द)
(iii) हँसी – (कृदंत शब्द)
(iv) अच्छाई – (तद्धित शब्द)

प्रश्न आ.
निम्नलिखित वाक्यों में आए हुए शब्दों के वचन परिवर्तन करके वाक्य फिर से लिखिए –

(i) पेड़ पर सुंदर फूल खिला है।
उत्तर :
पेड़ों पर सुंदर फूल खिले हैं।

(ii) कला के बारे में उनकी भावना उदात्त थी।
उत्तर :
कलाओं के बारे में उनकी भावनाएँ उदात्त थीं।

(iii) दीवारों पर टँगे हुए विशाल चित्र देखे।
उत्तर :
दीवार पर टँगा हुआ विशाल चित्र देखा।

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 लघु कथाएँ

(iv) वे बहुत प्रसन्न हो जाते थे।
उत्तर :
वह बहुत प्रसन्न हो जाता था।

(v) हमारी-तुम्हारी तरह इनमें जड़ें नहीं होती।
उत्तर :
हमारी-तुम्हारी तरह इसमें जड़ नहीं होती।

उत्तर :
(vi) ये आदमी किसी भयानक वन की बात कर रहे थे।
उत्तर :
यह आदमी किसी भयानक वन की बात कर रहा था।

(vii) वह कोई बनावटी सतह की चीज है।
उत्तर :
वे कोई बनावटी सतह की चीजें हैं।

(इ) निम्नलिखित शब्दों का लिंग परिवर्तन करके प्रत्येक का वाक्य में प्रयोग कीजिए –
अध्यापक, रानी, नायिका, देवर, पंडित, यक्ष, बुद्धिमान, श्रीमती, दुखियारा, विद्वान

परिवर्तित शब्दवाक्य में प्रयोग
(1) ……………………………………….(1) ……………………………………….
(2) ……………………………………….(2) ……………………………………….
(3) ……………………………………….(3) ……………………………………….
(4) ……………………………………….(4) ……………………………………….
(5) ……………………………………….(5) ……………………………………….
(6) ……………………………………….(6) ……………………………………….
(7) ……………………………………….(7) ……………………………………….
(8) ……………………………………….(8) ……………………………………….
(9)  ……………………………………….(9) ……………………………………….
(10) ……………………………………….(10) ……………………………………….

उत्तर :

परिवर्तित शब्द वाक्य में प्रयोग
अध्यापिका मेरा सपना था कि एक दिन अध्यापिका बन जाऊँ।
राजा राजा प्रजाहित दक्ष था।
नायक वह उस चित्रपट का नायक था।
देवरानी देवरानी ने चूड़ियाँ पहनी।
पंडिताइन पंडिताइन मौसी ने मुझे पुकारा।
यक्षिनी यक्षिणी और अप्सराएँ विहार कर रही थीं।
बुद्धिमती वह एक बुद्धिमती नारी है।
श्रीमान आइए, श्रीमान जी थोड़ा आराम कीजिए।
दुखियारी बुढ़िया बेचारी दुखियारी लग रही है।
विदुषी उस विदुषी नारी ने सभा में तात्विक चर्चा की।

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अभिव्यक्ति
3.
प्रश्न अ.
‘अन्न बैंक की आवश्यकता’, इसपर अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
‘वित्त बैंक’, ‘ब्लड बैंक’ यह शब्द हम सुनते हैं किंतु ‘अन्न बैंक’ शब्द कभी सुना नहीं है। सचमुच ऐसा बैंक अगर खुल जाए तो गरीबों के जीवन में भूखा सोने की नौबत नहीं आएगी। आज अमीरों के घरों का बहुत सारा खाना कूड़े-कचरे के हवाले हो जाता है।

होटलों का, शादी-ब्याह में लोगों के प्लेटों का बचा-खुचा खाना अगर जरूरतमंदों को मिल जाए तो बेचारों की जिंदगी खुशी से भर जाएगी। अत: ‘अन्न बैंक’ खुलवाकर वहाँ अगर ऐसा अन्न दिया जाए तो इस अन्न को सुरक्षित रखने की व्यवस्था हो जाएगी और आवश्यकता के अनुसार यह अन्न गरीबों को दे दिया जाए तो देश की भूख की समस्या हल हो पाएगी।

प्रश्न आ.
‘शिक्षा से वंचित बालकों की समस्याएँ’, इस विषय पर अपना मत लिखिए।
उत्तर :
भारत सरकार ने सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत 06 से 14 साल तक के बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का कानून बनाया है। फिर भी आज तक अनेक बालक हशिये पर हैं। निरक्षरता सभी समस्याओं की नींव है। इसी कारण सरकार ने शिक्षा अभियान का प्रारंभ किया है।

बंजारे, आदिवासी, गड़रिया, भटकते मजदूरों की टोलियाँ इन लोगों के बच्चे शिक्षा से वंचित रहते हैं। झुग्गी-झोपड़ियों में रहनेवाले गरीबों के बच्चे भी पेट के पीछे दौड़ते स्कूल से वंचित रहते हैं। इन समस्याओं पर सरकार के साथ हम सबका योगदान भी आवश्यक है।

आज सरकार मुक्त विद्यालय की स्थापना कर चुकी है। जिसके माध्यम से नियमित स्कूल न जानेवाले बच्चे भी शिक्षा से जुड़े रह सकते हैं। हर पढ़े-लिखे व्यक्ति ने स्कूल से वंचित बच्चों को पढ़ाने के लिए दिल से प्रयास किया तो संभव है कि समस्या कुछ हद तक मिट पाएगी।

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पाठ पर आधारित लघूत्तरी प्रश्न

4.
प्रश्न अ.
‘उषा की दीपावली लघुकथा द्वारा प्राप्त संदेश लिखिए।
उत्तर :
‘उषा की दीपावली’ यह श्रीमती संतोष श्रीवास्तव जी द्वारा लिखित एक सुंदर मर्मस्पर्शी (heart touching) लघुकथा है।

इस पाठ की छोटी उषा एक संवेदनशील (sensitive) लड़की है। दीपावली के अवसर पर वह देखती है कि सफाई का काम करने वाला बबन ‘नरक चौदस’ पर जलाए हुए आटे के दीपक कूड़े-कचरे के डिब्बे में न फेंकते हुए अपनी जेब में रख रहा है। बबन इतना गरीब था कि ये दीपक सेंककर खाना चाहता था। ये आटे के दीप जिसे लोग कचरे में फेंकते हैं वे किसी का पेट भरने के भी काम आते हैं। यह सुनकर उषा को तकलीफ होती है।

शादी-ब्याह में लोग प्लेटों में जरूरत से ज्यादा खाना लेकर बाद में बचा हुआ खाना फेंकते हैं। यह दृश्य उषा को याद आया और उषा दीपावली के पकवान बबन को देकर सच्ची खुशी महसूस करती है। इस कहानी से अन्न की बरबादी टालकर बचा-खुचा अन्न गरीबों तक पहुँचाने का संदेश मिलता है। ‘देने की खुशी महसूस करने का अनोखा संदेश इस कहानी से मिलता है।

प्रश्न आ.
‘मुस्कुराती चोट’ शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘मुस्कुराती चोट’ एक प्रेरणादायी लघुकथा है। इस कथा का बबलू अभाव में जीता है। ‘पिता की बीमारी’ माँ का संघर्ष देखकर खुद भी घर-घर जाकर रद्दी इकट्ठा करता है। किताबें न मिलने से उसकी पढ़ाई रुक गई है। बबूल एक दिन एक घर में रद्दी लेने के लिए जाता है तो उसकी बाल-मजदूरी पर बिना वजह उसके माँ-बाप को दोष देकर मालकिन ताने मारती है।

मालकिन की लड़की जब रद्दी की किताबें उसकी पढ़ाई के लिए मुफ्त में देना चाहती है, तब मालकिन विरोध करती है। किताबें लेकर वह पढ़ाई करेगा इस पर अविश्वास प्रकट करती है। ये बातें बबलू के मन को चोट पहुँचाती हैं। परंतु बाद में जब मालकिन को पता चलता है कि उन किताबों को रद्दी में बेचने के बजाय उसने खुद की पढ़ाई के लिए किताबें अलग रखी हैं तो उसे अपने अपशब्दों पर पछतावा होता है और वह बबलू की आगे की पढ़ाई का सारा खर्चा स्वयं उठाने का निश्चय करती है। इससे बबलू की चोट मुस्कुराहट में परिवर्तित होती है।

दिल की चोट अब खुशी में बदलती है। अत: सुखांत वाली इस लघुकथा को ‘मुस्कुराती चोट’ यह शीर्षक अत्यंत सार्थक लगता है।

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साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान

5. जानकारी दीजिए:

प्रश्न अ.
संतोष श्रीवास्तव जी लिखित साहित्यिक विधाएँ –
……………………………………………………………………………………….
……………………………………………………………………………………….
उत्तर :
कहानी, उपन्यास, लघुकथा, ललित निबंध तथा यात्रा संस्मरण इन अनेक गद्य विधाओं में संतोष जी का संचार हुआ

प्रश्न आ.
अन्य लघुकथाकारों के नाम –
……………………………………………………………………………………….
……………………………………………………………………………………….
उत्तर :
डॉ. कमल किशोर गोयनका, डॉ. सतीश दुबे, संतोष सुपेकर, कमल चोपड़ा आदि।

Yuvakbharati Hindi 11th Textbook Solutions Chapter 2 लघु कथाएँ Additional Important Questions and Answers

कृतिपत्रिका

(अ) निम्नलिखित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

गद्यांश : आटे के दीपक कंपाउंड की मुंडेर पर जलकर ……………………………………….. आँसू छलक आए। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 5)

प्रश्न 1.
संजाल पूर्ण कीजिए :
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 लघु कथाएँ 1
उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 लघु कथाएँ 2

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 लघु कथाएँ

उत्तर लिखिए :

प्रश्न 1.
उषा की आँखों के सामने दावतों में दिखाई देनेवाला यह दृश्य आया …………………………………………..
उत्तर :
जरा-सा ट्रॅगने वाले मेहमान भरी प्लेटें कचरे के हवाले करते हैं।

प्रश्न 2.
उषा ने बबन को यह दे दी …………………………………………..
उत्तर :
दीपावली के लिए बने पकवानों की थैली।

प्रश्न 4.
कोष्ठक में दिए गए शब्द उचित स्थान पर लिखिए : (दीपक, जेब, आँखें, पटाखा)
उत्तर :
पुल्लिंग शब्द – स्त्रीलिंग शब्द
दीपक – आँखें
पटाखा – जेब

प्रश्न 5.
‘शादी में अन्न की बरबादी’ इस विषय पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
आज समाज में अमीर और गरीब के बीच एक बड़ी खाई है। आज-कल शादी मतलब बड़प्पन दिखाने का एक जरिया बन गया है। शादी में होने वाला खर्चा एक अलग चिंता का विषय है। बड़े लोग शादी में जो भोजन खिलाते हैं, उनमें इतनी विविधता होती है कि खाने वाला परेशान होता है कि क्या खाया जाए और क्या न खाया जाए। खड़खाना (बुफे पद्धति) आज काफी लोकप्रिय है।

इसमें लोग कतार में खड़े होने से बचने के लिए प्लेटों में एक ही बार ढेर सारा खाना ले लेते हैं। इतना ज्यादा खाना खा नहीं पाने से आखिर जूठा फेंका जाता है। यह सारा अन्न कूड़े-कचरे में जाकर बरबाद होता है। दूसरी ओर दिन-रात परिश्रम करके भी गरीबों को पेटभर खाना नसीब नहीं होता। एक वक्त की रोटी पाने के लिए वे तरसते हैं। यह बरबाद होने वाला अन्न गरीबों तक पहुँचाने की सुविधा हो तो शादी में दुल्हा-दुल्हन को सच्ची दुआएँ मिलेंगी।

(आ) निम्नलिखित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

गद्यांश : घर में बाबा बीमार थे ……………………………………….. इसलिए पढ़ाई रुक गई। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 6)

प्रश्न 1.
तालिका पूर्ण कीजिए :
उत्तर :
बबलू की जानकारी –
पिता – बीमार
माता – चौका-बर्तन का काम करना
पढ़ाई – वीच में ही छूटना
कार्य – बाल मजदूरी / रद्दी इकट्ठा करना

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प्रश्न 2.
कारण लिखिए :

(i) बबलू की पढ़ाई रुक गई थी क्योंकि
उत्तर :
किताबों के लिए पैसे नहीं थे।

(ii) रद्दी तौलते समय बबलू की नजर स्कूल की किताबों पर थीं क्योंकि ….
उत्तर :
वह चाह रहा था कि वे किताबें उसे मिल जाएँ।

प्रश्न 3.
(क) गद्यांश से शव्दयुग्म ढूँढ़कर लिखिए :
(i) ……………………………
उत्तर :
(i) चौका-बर्तन

(ii) ……………………………
उत्तर :
(ii) घर-घर

उदा. –
माँ-बाप

(ख) निम्न शब्दों के लिए हिंदी मानक शब्द लिखिए :
(i) स्कूल –
उत्तर :
(i) स्कूल – पाठशाला (विद्यालय)

(ii) कॉलेज – …………………………………………
उत्तर :
(ii) कॉलेज – महाविद्यालय

प्रश्न 4.
‘वाल-मजदूरी : कारण और उपाय’ इस विषय पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
भारत में ‘बाल-मजदूरी’ करवाना एक गुनाह मान लिया जाता है, किंतु दुकान हो या खेती, होटल हो या ठेला अनेक जगहों पर छोटी उम्र के बच्चे काम करते हुए दिखाई देते हैं। बाल-मजदूरी कानूनन अपराध होने पर भी इसपर रोक नहीं लगा पा रहे हैं।

इसके पीछे अनेक कारण हैं। गरीबी, व्यसनी पिता, बीमार माता-पिता, माँ-बाप का अभाव। विपन्नावस्था (poverty) के कारण जिस उम्र में बच्चे को स्कूल जाना जरूरी है उस उम्र में उन्हें परिवार के लिए काम करना पड़ता है। इसमें न माँबाप को खुशी मिलती है न बच्चों को, परंतु दोनों ओर मजबूरी होती है।

इस समस्या को मिटाने के लिए देश में बढ़ रही अमीरी और गरीबी की खाई का मिटना बहुत जरूरी है। यह संभव नहीं तो हर अमीर परिवार द्वारा कुछ बच्चों का खर्चा चलाकर उनकी पढ़ाई का बोझ उठाने पर उनका भविष्य सुधर जाएगा।

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(इ) निम्नलिखित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

गद्यांश : बबलू ने रद्दी के पैसे ……………………………………………… बबलू की खुशी का ठिकाना न था। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 6)

प्रश्न 1.
घटनाक्रम के अनुसार वाक्यों का उचित क्रम लगाइए :
(i) डाँट खाने के बावजूद बबलू मुस्कुरा रहा था।
(ii) बबलू ने बोरे में से किताबें निकालकर अलग रख दीं।
(iii) रास्ते में बबलू को मालकिन और उनकी लड़की मिल गई।
(iv) दुकानदार बबलू पर झल्ला उठा।
उत्तर :
(i) बबलू ने बोरे में से किताबें निकालकर अलग रख दीं।
(ii) दुकानदार बबलू पर झल्ला उठा।
(iii) डाँट खाने के बावजूद बबलू मुस्कुरा रहा था।
(iv) रास्ते में बबलू को मालकिन और उनकी लड़की मिल गई।

प्रश्न 2.
कारण लिखिए :
(i) मालकिन ने बबलू की आगे की पढ़ाई का खर्चा उठाने का निश्चय किया ……………………………………
उत्तर :
मालकिन ने बबलू की आगे की पढ़ाई का खर्चा उठाने का निश्चय किया क्योंकि उसने बबलू की पढ़ाई के प्रति लालसा को देखा।

(ii) बबलू अब स्कूल जा सकेगा ……………………………………
उत्तर :
बबलू अब स्कूल जा सकेगा क्योंकि उसके पास किताबें थीं।

प्रश्न 3.
(क) कृदंत रूप लिखिए :

(i) मुस्कुराना – ……………………………………
उत्तर :
मुस्कुराहट

(ii) झुकना – ……………………………………
उत्तर :
(ii) झुकाव

(ख) अपशब्द शब्द में ‘अप’ उपसर्ग लगा है, ‘अप’ उपसर्ग लगाकर नए शब्द बनाकर लिखिए :
(i) …………………………………..
(ii) …………………………………..
उत्तर :
(i) अपहरण
(iii) अपयश

उदा. – अपमान

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प्रश्न 4.
शिक्षा से वंचित वालकों की सहायता हेतु उपाय मुझाइए।
उत्तर :
यह बात सत्य है कि आज शिक्षा प्राप्ति के प्रति समाज के सभी वर्गों में जागरुकता आई है लेकिन आज भी कुछ बच्चे शिक्षा से वंचित रह जाते हैं। अनुसूचित जाति जनजाति के बच्चों तक सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं की जानकारी पहुँचाना हमारा कर्तव्य है।

अध्ययनरत विद्यार्थियों के लिए छात्रावास तथा छात्रवृत्ति का प्रावधान सरकारी तथा निजी संस्थाओं द्वारा, एन्.जी.ओ. द्वारा होना चाहिए। विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चों के लिए जो शारीरिक रूप से अक्षम है उनके लिए विशिष्ट शिक्षा की व्यवस्था होनी चाहिए और उनके लिए विशेष अध्यापकों की नियुक्ति सरकार द्वारा होनी चाहिए। सर्वशिक्षा अभियान के साथ-साथ ‘समावेशन’ भी आवश्यक है ताकि शिक्षा से कोई भी बालक वंचित न रहें।

लघु कथाएँ Summary in Hindi

लघु कथाएँ लेखक परिचय :

श्रीमती संतोष श्रीवास्तव जी का जन्म मध्यप्रदेश के मंडला नामक गाँव में 23 नवंबर 1952 को हुआ। आधुनिक नारी जीवन के विविध आयाम तथा सामाजिक जीवन की विसंगतियाँ (discrepancy) आपके साहित्य द्वारा चित्रित है।

लघु कथाएँ रचनाएँ :

आपकी बहुविध रचनाएँ प्रकाशित हैं : जैसे ‘दबे पाँव प्यार’ ‘टेम्स की सरगम’ ‘ख्वाबों के पैरहन (उपन्यास)’ ‘बहके बसंत तुम’, ‘बहते ग्लेशियर’ (कहानी संग्रह), ‘फागुन का मन’ (ललित निबंध संग्रह) ‘नीली पत्तियों का शायराना हरारत’ (यात्रा संस्मरण)

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 लघु कथाएँ 3

लघु कथाएँ विधा परिचय :

‘लघुकथा’ यह एक गद्य विधा है। कथा तत्त्वों से परिपूर्ण किंतु आकार से लघुता यह उसकी विशेषता है। अत्यंत कम शब्दों में जीवन की पीड़ा, संवेदना, आनंद की गहराई को प्रकट करने की क्षमता लघुकथा में होती है। कोई भी छोटी घटना, प्रसंग, परिस्थिति का आधार लेकर लघुकथा लिखी जाती है। हिंदी साहित्य में डॉ. कमल किशोर गोयनका, डॉ. सतीश दुबे, संतोष सुपेकर, कमल चोपड़ा आदि को प्रमुख लघुकथाकार के रूप में पहचाना जाता है।

लघु कथाएँ विषय प्रवेश :
(अ) उषा की दीपावली : ‘उषा की दीपावली’ यह एक मर्मस्पर्शी (touching) लघुकथा है। अनाज की बरबादी पर बालमन की संवेदनशील प्रतिक्रिया का सुंदर चित्रण है। एक ओर शादी-ब्याह में थालियों में जरूरत से ज्यादा खाना लेकर उसे जूठा छोड़ने वाले श्रीमान लोग तो दूसरी ओर एक वक्त की रूखी-सूखी रोटी के लिए भी तरसने वाले लोग, इस सामाजिक विरोधाभास (paradox) का चित्रण इस लघुकथा में है।

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 लघु कथाएँ

(आ) ‘मुस्कुराती चोट’ : ‘मुस्कुराती चोट’ इस दूसरी लघुकथा में गरीबी के कारण इच्छा होकर भी पढ़ाई जारी न रख पानेवाला एक छोटा लड़का ‘बबलू’ की उथल-पुथल भरी जिंदगी है। बबलू की पढ़ाई की अदम्य (indomitable) इच्छा, उसकी बाधाएँ, छोटी-छोटी चोटें और अंत में मुस्कुराहट फैलानेवाली सुखद बात पाठकों को लुभाती है। दोनों लघुकथाएँ ‘आशावाद’ को जगाती है।

लघु कथाएँ महावरा :

टस से मस न होना – बिल्कुल प्रभाव न पड़ना, कुछ परिणाम न होना।

लघु कथाएँ सारांश :

(अ) उषा की दीपावली : दीपावली का त्योहार : दीपावली का त्योहार था। नरक-चौदस के दिन लोगों ने कंपाउंड के मुंडेर पर आटे के दीप जलाए थे। सुबह तक वे दीप बुझ गए थे।

बबन की गरीबी : सुबह बबन सफाई के लिए आया था, जो एक गरीब इन्सान था। बुझे दीप उठाकर कूड़े में फेंकने के बजाय वह जेब में रख रहा था। दस साल की उषा ने यह दृश्य देखा। उसे पूछने पर पता चला कि बबन वे आटे के दीपक सेंककर खाना चाहता है।

उषा की संवेदना : उषा की आँखों के सामने वह दृश्य घूमने लगा, जो उसने अनेक बार देखा था। अमीर लोग शादी-ब्याह में ढेर सारा खाना प्लेटों में लेकर बचा-खुचा फेंक देते हैं। उषा की आँखें भर आईं। घर में जाकर उसने दीपावली के मौके पर बनाए हुए पकवान लाकर बबन को दे दिए जिसकी वजह से बबन की आँखों में खुशी के हजारों दीप जगमगा उठे। उषा की दीपावली भी इससे खुशहाल हो गई।

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 लघु कथाएँ 4

(आ) मुस्कुराती चोट : ‘बबलू की गरीबी’ – इस लघुकथा का बबलू, गरीब परिवार का लड़का है। माँ चौका-बर्तन करके कुछ पैसे कमाती है। पिता जी बीमार है। माँ का हाथ बँटाने के लिए बबलू घर-घर जाकर रद्दी इकट्ठा करके रद्दी वाले को बेचता है। बबलू के पास किताबें खरीदने के लिए पैसे न होने से उसका स्कूल छूट गया था।

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 लघु कथाएँ

अविश्वास की चोट : एक दिन वह एक घर में रद्दी लेने गया था। उस रददी में किताबें थीं। घर मालकिन की बेटी वे किताबें बबलू को पढ़ने के लिए मुफ्त में देना चाहती थी। परंतु घर मालकिन का बबलू पर भरोसा नहीं था। वह किताबें बेचकर चैन करेगा ऐसा उसे शक था। बबलू ने रद्दी में से किताबें अलग रखवा दीं। रद्दी वाले को किताबों के पैसे खर्च करने की झूठ बात बताकर उससे डाँट सुनकर भी चुप रहा।

पछतावा : बबलू किताबें लेकर वापस आ रहा था। मालकिन ने उसे देखा तो अपने अपशब्दों पर उसे पछतावा हुआ। उसे पता चला कि बबलू पढ़ने की अदम्य इच्छा रखता है। बबलू की आगे की सारी पढ़ाई का खर्चा उठाने का उसने निश्चय किया। सुखद अंत वाली यह कहानी आशावादी है।

लघु कथाएँ शब्दार्थ :

  • सैलाब = बाढ़ (Flood),
  • देहरी = दहलीज (threshold),
  • तरबतर = भीगा हुआ, गीला (wet),
  • लालसा = इच्छा (desire),
  • मुंडेर = दीवार का ऊपरी भाग जो छत के चारों ओर कुछ उठा होता है। (parapet),
  • झल्लाना = परेशान होना (irritated)
  • देहरी = दहलीज
  • तरबतर = गीला, भीगा
  • कृशकाय = दुबला-पतला शरीर
  • बेरहमी = निर्दयता, दयाहीनता

Hindi Yuvakbharati 11th Digest Text Book Solutions

Class 11 Hindi Chapter 1 Prerna Question Answer Maharashtra Board

Std 11 Hindi Chapter 1 Prerna Question Answer Maharashtra Board

Balbharti Maharashtra State Board Hindi Yuvakbharati 11th Digest Chapter 1 प्रेरणा Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

Hindi Yuvakbharati 11th Digest Chapter 1 प्रेरणा Questions And Answers

11th Hindi Digest Chapter 1 प्रेरणा Textbook Questions and Answers

कृति-स्वाध्याय एवं उत्तर

आकलन

1. सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

प्रश्न अ.
कारण लिखिए –

(a) माँ, मेरी आवाज सुनकर रोती है –
उत्तर :
माँ, मेरी आवाज सुनकर रोती है क्योंकि उसकी ममता आँसुओं के रूप में फूट पड़ती है।

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 प्रेरणा

(b) बच्चों को माता-पिता का प्यार टुकड़ों में मिलता है –
उत्तर :
बच्चों को माता-पिता का प्यार टुकड़ों में मिलता है क्योंकि माता-पिता पर काम पर जाने की मजबूरी है।

(c) कवि की उम्र बढ़ती ही नहीं है –
उत्तर :
कवि की उम्र बढ़ती ही नहीं है क्योंकि उसने अपनी आँखों में स्वयं को एक बालक के रूप में पाया।

प्रश्न आ.
लिखिए –

(a)
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 प्रेरणा 3
उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 प्रेरणा 2

काव्य सौंदर्य

2.

प्रश्न अ.
ममत्व का भाव प्रकट करने वाली कोई भी एक त्रिवेणी ढूँढ़कर उसका अर्थ लिखिए।
उत्तर :
‘माँ मेरी बे-वजह ही रोती है
फोन पर जब भी बात होती है
फोन रखने पर मैं भी रोता हूँ।’

प्रस्तुत त्रिवेणी में ममत्व का भाव प्रकट हुआ है। जब कभी कवि अपनी माँ को फोन करता है तब पुत्र की आवाज सुनकर माँ की ममता रो पड़ती है। कवि भले ही इसे बे-वजह रोना कहता है, परंतु सच्चाई तो यही है कि कवि भी फोन रखने के बाद रोता है क्योंकि माता और पुत्र दोनों एक-दूसरे के स्नेह के लिए तरसते हैं और उनका एक-दूसरे के प्रति स्नेह आँसुओं के रूप में आँखों से बहने लगता है।

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प्रश्न आ.
निम्न पंक्तियों में से प्रतीकात्मक पंक्ति छाँटकर उसे स्पष्ट कीजिए –
(a) चलते-चलते जो कभी गिर जाओ
(b) रात की कोख ही से सुबह जनम लेती है
(c) अपनी आँखों में जब भी देखा है
उत्तर :
‘रात की कोख से सुबह जनम लेती है’ यह पंक्ति प्रतीकात्मक (symbolic) पंक्ति है। यहाँ रात दुख एवं अँधेरे का प्रतीक है और सुबह सुख एवं उजाले का प्रतीक है। सुख और दुख का आना-जाना दिन और रात के समान है। दोनों स्थायी रूप से जीवन में कभी नहीं रहते। जैसे रात के बाद दिन का आना निश्चित है वैसे ही दुख के बाद सुख का आना भी निश्चित है। अत: दुखसुख दोनों का सहर्ष (readily) स्वागत करते हुए जिंदगी में आगे बढ़ना चाहिए।

अभिव्यक्ति

3.

प्रश्न अ.
पालनाघर की आवश्यकता पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
आज कामकाजी महिलाओं को घर से बाहर जाना पड़ता है और यह समय की माँग भी है कि पति-पत्नी दोनों अपने परिवार नैया की पतवार सँभालें। ऐसी स्थिति में इनके छोटे बच्चों को परेशानी होती है। कभी-कभी इसका परिणाम इनके कार्य पर भी पड़ता है। ऐसे में कामकाजी महिलाओं के बच्चों के लिए पालनाघर की सुविधा आवश्यक है। पालनाघर में बच्चों को घर जैसी देखरेख और सुरक्षा मिलती है।

अगर पालनाघर में बच्चे को घर जैसा माहौल मिलता हो तो महिलाएँ निश्चित होकर आत्मनिर्भर बनने के लिए कदम उठा पाती हैं। भारत की आधी आबादी महिलाओं की है। अत: महिलाएँ अगर श्रम में योगदान दें तो भारत का विकास तेजी से होगा। पालनाघर की सुविधा मुहैया कराने से महिलाओं की भागीदारी बढ़ेगी और देश के विकास पर इसका असर अवश्य दिखाई देगा। उन्हें बच्चों की देखभाल करने के लिए काम छोड़ने की नौबत नहीं आएगी।

घरेलु आमदनी में भी इजाफा (increase) होगा। परिणामत: बच्चों की सेहत और शिक्षा में भी सुधार होगा। संक्षेप में महिलाओं का काम करना महत्त्वपूर्ण है ताकि उन्हें अलग पहचान मिले और इसके लिए पालनाघर की सुविधा अगर उनके कार्य-स्थल के आस-पास हो तो सोने पे सुहागा हो सकता है।

प्रश्न आ.
नौकरीपेशा अभिभावकों के बच्चों के पालन की समस्या पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
आजकल माता-पिता दोनों का नौकरी करना बहुत ही आम बात है। ऐसे में उनके बच्चों के पालन की समस्या उभर आती है। बच्चों की तरफ पूरा-पूरा ध्यान दे पाना उनके लिए मुश्किल होता है। नौकरी और बच्चों का लालन-पालन दोनों में संतुलन बनाना कठिन हो जाता है।

बच्चों की परवरिश उनके लिए एक समस्या बन जाती है। वास्तव में कामकाजी माता-पिता के पास अक्सर समय की कमी होती है। समय का उचित नियोजन करके इस समस्या से निजात (escape) पाया जा सकता है। अपने छोटे-छोटे कार्यों में बच्चों को सम्मिलित कर लेने से बच्चों को भी अहमियत मिल जाती है और बच्चे जिम्मेदार भी बन जाते हैं। घर का समय बच्चों को देकर उन्हें खुश रखा जा सकता है।

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उन्हें अच्छी आदतें सिखाने का समय मिल जाता है। माता-पिता के जीवन में बच्चे महत्त्वपूर्ण हैं इस बात का एहसास दिलाया जा सकता है। अक्सर कामकाजी माता-पिता के बच्चों के मन में यह भावना पनपती (flourish) रहती है कि माता-पिता के लिए काम ही महत्त्वपूर्ण है और वे बच्चों से प्यार नहीं करते। कई बार दफ्तर की परेशानियाँ घर तक ले आते हैं और अपना क्रोध वे बच्चों पर निकाल देते हैं।

ऐसे में डर के कारण बच्चे अभिभावकों से दूर हो जाते हैं। इस स्थिति से बचने की कोशिश अभिभावक अवश्य करें। बच्चों की बातें चाव से सुनना, दफ्तर की बातें उन्हें बताना, साथ में भोजन करना, छुट्टी के दिन घूमने ले जाना जैसी छोटी-छोटी बातें भी कामकाजी अभिभावक और बच्चों का रिश्ता मजबूत करती हैं। इस प्रकार समस्या हैं तो उसके उपाय भी है जिन पर अवश्य अमल करना चाहिए।

रसास्वादन

4. आधुनिक जीवन शैली के कारण निर्मित समस्याओं से जूझने की प्रेरणा इन त्रिवेणियों से मिलती है, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
(i) शीर्षक : प्रेरणा
(ii) रचनाकार : त्रिपुरारि
(iii) केंद्रीय कल्पना : अर्थ प्रधान एवं अतिव्यस्त आधुनिक जीवन शैली अपनाने के कारण आज मनुष्य न चाहते हुए भी अकेला पड़ गया है। तनाव में जी रहा है। मानसिक असंतुलन, चिंता, उदासी, सूनापन आदि से चारों ओर से घिरा है। भाग-दौड़ भरी जिंदगी में आगे निकलने की होड़ लगी हैं और उसके रिश्ते पीछे छूट रहे हैं। जिंदगी की आपाधापी में जुटे माता-पिता के बच्चों को स्नेह भी टुकड़ों में मिलता है।

जीवन की इन समस्याओं को उजागर करते हुए त्रिपुरारि जी ने अपनी त्रिवेणियों में माँ के ममत्व और पिता की गरिमा को भी व्यक्त किया है। जीवन में आगे निकलने की होड़ में चोट खाकर गिरने पर भी सँभलकर फिर से चलने की, आगे बढ़ने की सलाह दी है।

(iv) रस-अलंकार : तीन पंक्तियों के मुक्त छंद में इस कविता की त्रिवेणियाँ लिखी हुई हैं।

(v) प्रतीक विधान : जीवन के प्रति सकारात्मकता का विधान है – पेड़ में बीज और बीज में पेड़ छुपा है। यहाँ बीज हमारी भावनाओं का प्रतीक है और उसे आँसुओं के जल से सींचकर खुशियों का वृक्ष फलता फूलता है।

(vi) कल्पना : खुद के भीतर छिपे बालक को जीवित रखने की कल्पना हमें तनाव, कुंठा से मुक्ति देगी।

(vii) पंसद की पंक्तियाँ तथा प्रभाव :
‘चाहे कितनी ही मुश्किलें आएँ
छोड़ना मत उम्मीद का दामन
नाउम्मीदी तो मौत है प्यारे।’
यह त्रिवेणी मुझे पसंद है क्योंकि सचमुच कठिनाइयों से घबराकर निराश व्यक्ति जीते जी मर जाता है। हर अंधेरी काली रात के बाद सुबह उजाला लेकर अवश्य आता है। ठीक इसी तरह दुख के बाद सुख का आना निश्चित है इस उम्मीद के साथ जीना चाहिए। यही जीवन के प्रति सकारात्मकता है।

(viii) कविता पसंद आने के कारण : सामयिक स्थितियाँ, रिश्ते और जीवन के प्रति सकारात्मकता कविता का मुख्य विषय है जो प्रेरणादायी है। त्रिपुरारि जी की ये त्रिवेणियाँ हमें जीने की कला सिखाती है, इसीलिए मुझे कविता पसंद है।

साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान

5. जानकारी दीजिए:

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प्रश्न अ.
त्रिवेणी’ काव्य प्रकार की विशेषताएँ –
(a) ……………………………………………..
(b) ……………………………………………..
उत्तर :
(a) तीन पंक्तियों का मुक्त छंद है।
(b) मात्र तीन पंक्तियों में कल्पना और यथार्थ (reality) की अभिव्यक्ति (expression) होती है।

प्रश्न आ.
त्रिपुरारि जी की अन्य रचनाएँ –
(a) ……………………………………………..
(b) ……………………………………………..
उत्तर :
(a) नींद की नदी (कविता संग्रह)
(b) नॉर्थ कैंपस (कहानी संग्रह)

रस

काव्यशास्त्र में आचार्यों ने रस को काव्य की आत्मा माना है। विभाव, अनुभाव, व्यभिचारी (संचारी) भाव और स्थायी भाव रस के अंग हैं और इन अंगों अर्थात तत्त्वों के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है।

साहित्यशास्त्र में नौ प्रकार के रस माने गए हैं। कालांतर में अन्य दो रसों को सम्मिलित किया गया है।

रस स्थायी भाव
(१) शृंगार प्रेम
(७) भयानक भय
(२) शांत शांति
(८) बीभत्स घृणा
(३) करुण शोक
(९) अद्भुत आश्चर्य
(४) हास्य हास
(१०) वात्सल्य ममत्व
(५) वीर उत्साह
(११) भक्ति भक्ति
(६) रौद्र क्रोध

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करुण रस :
किसी प्रियजन या इष्ट के कष्ट, शोक, दुख, मृत्युजनित प्रसंग के कारण अथवा किसी प्रकार की अनिष्ट आशंका के फलस्वरूप हृदय में पीड़ा या क्षोभ का भाव उत्पन्न होता है, वहाँ करुण रस की अभिव्यंजना होती है।
उदा. –
(१) वह आता –
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता।
पेट – पीठ दोनों मिलकर हैं एक,
– मैथिलीशरण गुप्त

(२) अबला जीवन हाय ! तुम्हारी यही कहानी,
आँचल में है दूध और आँखों में पानी।
चल रहा लकुटिया टेक
मुट्ठी भर दाने को भूख मिटाने को,
मुँह फटी झोली फैलाता।
– सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’

Yuvakbharati Hindi 11th Textbook Solutions Chapter 1 प्रेरणा Additional Important Questions and Answers

कृतिपत्रिका

(अ) निम्नलिखित पठित पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

पद्यांश : माँ मेरी बे-वजह ………………………………………… टुकड़ों में मिले हैं माँ-बाप (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 1)

प्रश्न 1.
कारण लिखिए :

(i) माँ, मेरी आवाज सुनकर रोती है –
उत्तर :
माँ, मेरी आवाज सुनकर रोती है क्योंकि उसकी ममता आँसुओं के रूप में फूट पड़ती है।

(ii) बच्चों को माता-पिता का प्यार टुकड़ों में मिलता है –
उत्तर :
बच्चों को माता-पिता का प्यार टुकड़ों में मिलता है क्योंकि माता-पिता पर काम पर जाने की मजबूरी है।

प्रश्न 2.
पर्यायवाची शब्द लिखिए :
उत्तर :
(i) माँ = …………………………. , ………………………….
उत्तर :
जननी, माता, धात्री

(ii) रात = …………………………. , ………………………….
उत्तर :
रजनी, निशा, यामिनी

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प्रश्न 3.
पद्यांश की द्वितीय त्रिवेणी का भावार्थ लिखिए।
उत्तर :
प्रस्तुत पद्यांश कवि त्रिपुरारि जी लिखित त्रिवेणी संग्रह ‘साँस के सिक्के’ से लिया गया है। इस त्रिवेणी में पिता की गरिमा व्यक्त करते हुए कवि कह रहे हैं कि पिता को कठोर हृदय का समझने की भूल हम सब करते हैं। परंतु सच्चाई यही है कि वह ऊपर से जितने सख्त नजर आते हैं भीतर से उतने ही कोमल होते हैं।

जब संतान को चोट लगती है तो पिता का कोमल हृदय भी तड़प उठता है। हर पिता में इस तरह कोई माँ भी छुपी होती है अर्थात पिता भी अपनी संतान से उतना ही प्यार करता है, जितना कि एक माँ। दोनों के स्नेह में कोई तुलना नहीं होनी चाहिए।

(आ) निम्नलिखित पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

पद्यांश : चाहे कितना भी हो घनघोर अंधेरा ……………………………………………… जहाँ पर भी कदम रखोगे। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 2)

प्रश्न 1.
परिणाम लिखिए :

(i) अँधेरा होने पर भी आस रखने का परिणाम
उत्तर :
अँधेरा होने पर भी आस रखने से किसी दिन उजाला अवश्य होता है।

(i) एक ही दीप से आगाज-ए-सफर कर लेने का परिणाम –
उत्तर :
एक ही दीप से आगाज-ए-सफर कर लेने से जहाँ भी कदम रखते हैं वहाँ रोशनी हो जाती है।

प्रश्न 2.
पद्यांश से विलोम शब्द की जोड़ियाँ ढूँढ़कर लिखिए :
उत्तर :
(i) …………………………… x ……………………………
अंधेरा x उजाला x …….

(ii) …………………………… x ……………………………
पास x दूर

प्रश्न 3.
पद्यांश की किसी एक त्रिवेणी का काव्य सौंदर्य लिखिए :
उत्तर :
प्रस्तुत पद्यांश ‘प्रेरणा’ कविता से लिया गया है। कवि त्रिपुरारि जी लिखित साँस के सिक्के ‘त्रिवेणी संग्रह’ में ये त्रिवेणियाँ संकलित (consalidated) हैं। दिए गए पद्यांश की द्वितीय त्रिवेणी में वीर रस की निर्मिति (build up) हुई है। प्राप्त परिस्थितियों में भी उत्साह के साथ आगे बढ़ने की कोशिश यहाँ दिखाई देती है। अपनी आयु के कुछ पल उधार लेकर ही सही हसरत के बीज बोने का साहस करके सपनों को साकार करने की बात वीरतापूर्ण है। निराशा के बादलों के बीच आशा का संचार इस त्रिवेणी की विशेषता है।

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(इ) निम्नलिखित पठित पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

पद्यांश : अपनी आँखों में जब भी …………………………………………….. नाउम्मीदी तो मौत है प्यारे। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 2)

प्रश्न 1.
उचित जोड़ियाँ मिलाइए :
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‘अ’‘आ’
(1) …………………………………………………………
(2) …………………………………………………………
(3) …………………………………………………………
(4) …………………………………………………………

उत्तर :

‘अ’ ‘आ’
(1) सच्चा ज्ञानी
(2) पेड़ बीज
(3) ना उम्मीदी मौत
(4) एक शय आँसू-खुशियाँ

प्रश्न 2.
पद्यांश की प्रथम त्रिवेणी का भावार्थ लिखिए।
उत्तर :
प्रस्तुत पद्यांश त्रिवेणी विधा में लिखी कविता ‘प्रेरणा’ से लिया गया है। कवि त्रिपुरारि जी ने पद्यांश की प्रथम त्रिवेणी में हमारे अंदर छिपे बालक को जीवित रखने की सलाह दी है। उन्होंने जब भी स्वयं की आँखों में देखा स्वयं को एक बच्चे की तरह ही पाया और उन्हें लगा कि दुनिया उन्हें बड़ा बनाकर दुनियादारी निभाने पर मजबूर करती है।

इसकी वजह से जीवन की अबोधता (innocence), मासूमियत नष्ट हो जाती है और मन अशांत हो जाता है। इससे छुटकारा पाना है तो कभी अपने भीतर छिपे बालक को मरने नहीं देना चाहिए।

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स्वाध्याय
आकलन : 1. सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

(अ) कारण लिखिए –

प्रश्न 1.
घनघोर अँधेरे में भी उजाले की आस रखनी चाहिए –
उत्तर :
घनघोर अँधेरे में भी उजाले की आस रखनी चाहिए क्योंकि रात की कोख से ही सुबह का जन्म होता है।

प्रश्न 2.
उम्मीद का दामन नहीं छोड़ना चाहिए –
उत्तर :
उम्मीद का दामन नहीं छोड़ना चाहिए क्योंकि नाउम्मीदी मौत के समान है।

(आ) लिखिए –
उत्तर:
काव्य सौंदर्य :

व्याकरण

रस :

काव्यशास्त्र (poetics) में आचार्यों ने रस को काव्य की आत्मा माना है। विभाव, अनुभाव, व्यभिचारी (संचारी) भाव और स्थायी भाव रस के अंग हैं और इन अंगों अर्थात तत्त्वों के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है। साहित्यशास्त्र में नौ प्रकार के रस माने गए हैं। कालांतर (afterward) में अन्य दो रसों को सम्मिलित किया गया है।

रस स्थायी भाव
(1) शृंगार प्रेम
(2) शांत शांति
(3) करुण शोक
(4) हास्य हास
(5) वीर उत्साह
(6) रौद्र क्रोध
(7) भयानक भय
(8) बीभत्स घृणा
(9) अद्भुत आश्चर्य
(10) वात्सल्य ममत्व
(11) भक्ति भक्ति

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1. शृंगार रस :
इसे रसराज कहा गया है। यह संयोग और वियोग इन दो भागों में विभाजित है। जब किसी काव्य में नायक नायिका के प्रेम, मिलने-बिछड़ने आदि का वर्णन होता है तो वह शृंगार रस कहलाता है।

उदा.
(i) रे मन आज परीक्षा मेरी।
सब अपना सौभाग्य मनावें।
दरस परस नि:श्रेयस पावें।
उद्धारक (redeemer) चाहें तो आवें।
यही रहे यह चेरी। – मैथिलीशरण गुप्त

(ii) बतरस लालच लाल की मुरली धरि लुकाय।
सौंह करै, भौहनि हँस, दैन कहै, नटि जाय।
– बिहारी

2. शांत रस :
जब कभी काव्य को पढ़कर मन में असीम शांति का एवं दुनिया से मोह खत्म होने का भाव उत्पन्न हो तो शांत रस की अनुभूति होती है। ज्ञान की प्राप्ति और संसार से वैराग्य होने पर शांत रस की उत्पत्ति होती है।

उदा.
(i) जब मैं था हरि नाहिं अब हरि है मैं नाहिं
सब अँधियारा मिट गया जब दीपक देख्या माहिं
– कबीर

(ii) देखी मैंने आज जरा!
हो जावेगी क्या ऐसी मेरी यशोधरा?
हाय! मिलेगा मिट्टी में वह वर्ण सुवर्ण खरा?
सूख जावेगा मेरा उपवन जो है आज हरा?
– मैथिलीशरण गुप्त

3. करुण रस :
किसी प्रियजन या इष्ट के कष्ट, शोक, दुख, मृत्युजनित प्रसंग के कारण अथवा किसी प्रकार की अनिष्ट (undesired) आशंका के फलस्वरूप हृदय में पीड़ा या क्षोभ का भाव उत्पन्न होता है, वहाँ करुण रस की अभिव्यंजना (expression) होती है।

उदा.
(i) वह आता –
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता।
पेट-पीठ दोनों मिलकर हैं एक,
चल रहा लकुटिया टेक
मुट्ठी भर दाने को, भूख मिटाने को, मुँह फटी झोली फैलाता।
– सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’

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(ii) अबला जीवन हाय ! तुम्हारी यही कहानी,
आँचल में है दूध और आँखों में पानी।
– मैथिलीशरण गुप्त

4. हास्य रस :
जब किसी काव्य को पढ़कर हँसी आ जाती है तब हास्य रस की उत्पत्ति होती है। सभी रसों में यह रस सबसे अधिक सुखात्मक रस है।
उदा.
(i) हाथी जैसा देह, गेंडे जैसी चाल।
तरबूजे सी खोपड़ी, खरबूजे से गाल।।

(ii) बुरे समय को देखकर गंजे तू क्यों रोय।
किसी भी हालत में तेरा बाल न बाँका होय।।

5. वीर रस :
शत्रु को मिटाने, दीन-दुखियों का उद्धार करने, धर्म की स्थापना, उद्धार करने आदि में जो मन में उत्साह उमड़ता है वही वीर रस की उत्पत्ति होती है।

उदा.
(i) सच है, विपत्ति जब आती है।
कायर को ही दहलाती (horror) है,
सूरमा नहीं विचलित होते,
क्षण एक नहीं धीरज खोते,
कर शपथ विघ्नों को गले लगाते हैं,
काँटों में राह बनाते हैं।
– रामधारी सिंह दिनकर

(ii) तू न थकेगा कभी,
तू न रुकेगा कभी,
तू न मुड़ेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ,
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ।
– हरिवंशराय बच्चन

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6. रौद्र रस :
अपमान, निंदा आदि से मन में क्रोध उत्पन्न होता है तब रौद्र रस की उत्पत्ति होती है।

उदा.
(i) अस कहि रघुपति चाप बढ़ावा,
यह मत लछिमन के मन भावा।
संधानेहु प्रभु बिसिख कराला,
उठि ऊदधि उर अंतर ज्वाला।।
– तुलसीदास

(ii) उस काल मारे क्रोध के तन काँपने उसका लगा
मानो हवा के जोर से सोता हुआ सागर जगा।
मैथिलीशरण गुप्त

7. भयानक रस :
भयोत्पादक वस्तुओं को देखने या सुनने से अथवा शत्रु आदि के अनिष्ठ आचरण से भयानक रस की
निष्पत्ति होती है। इसका स्थायी भाव भय है। अंतर्गत कंपन, पसीना छूटना, मुँह सूखना, चिंता आदि भाव भय के कारण उत्पन्न होते हैं।

उदा.
(i) अखिल यौवन के रंग उभार, हड्डियों के हिलते कंकाल
कचो के चिकने काले, व्याल, केंचुली, काँस, सिबार।
– सुमित्रानंदन पंत

(ii) एक ओर अजगर हिं लखि, एक ओर मृगराय
विकल बटोही बीच ही, पर्यो मूरछा खाय।

8. बीभत्स रस :
वीभत्स यानि घृणा इसका स्थायी भाव है। घृणित वस्तुओं घृणित चीजों या घृणित व्यक्तियों को देखकर, उनके संबंध में सुनकर मन में उत्पन्न होने वाली घृणा या ग्लानी बीभत्स रस को पुष्टि करती है।

उदा.
(i) आँखें निकाल उड़ जाते, क्षण भर उड़कर आ जाते
शव जीभ खींचकर कौए, चुभला-चभलाकर खाते
भोजन में श्वान लगे मुरदे थे भू पर लेटे
खा माँस चाट लेते थे, चटनी सैम बहते बहते बेटे
– श्यामनारायण पांडेय

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 प्रेरणा

(ii) विष्टा पूय रुधिर कच हाडा
बरबई कबहु उपल बहु छाडा।
– तुलसीदास

9. अद्भुत रस :
इसका स्थायी भाव आश्चर्य है। जब व्यक्ति के मन में विचित्र अथवा आश्चर्यजनक वस्तुओं को देखकर विस्मय उत्पन्न होता है तो अद्भुत रस की निष्पत्ति होती है।

उदा.
(i) देख यशोदा शिशु के मुख में सकल विश्व की माया
क्षणभर को वह बनी अचेतन (unconscious), हिल न सकी कोमल काया।
– सूरदास

(ii) पड़ी अचानक नदी अपार, घोड़ा कैसे उतरे पार।
राणा ने सोचा इस पार तब तक चेतक था उस पार।।
– श्यामनारायण पांडेय

10. वात्सल्य रस :
माता का पुत्र के प्रति प्रेम, बड़ों का बच्चों के प्रति प्रेम, गुरु का शिष्य के प्रति प्रेम की अभिव्यक्ति से वात्सल्य रस की निष्पत्ति होती है। ममत्व, अनुराग, स्नेह इस रस का स्थायी भाव है।
उदा.
(i) वह मेरी गोदी की शोभा, सुख सुहाग की है लाली,
शाही शान भिखारिन की है मनोकामना मतवाली।
– सुभद्राकुमारी चौहान

(ii) सुत मुख देखि जसोदा फूली।
हरषति देख दूध की द॑तिया,
प्रेम मगन तन की सुधि भूली।
– सूरदास

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 प्रेरणा

11. भक्ति रस :
इस रस में ईश्वर के प्रति अनुराग का, प्रेम का वर्णन होता है। श्रद्धा, स्मृति, मति, धृति, उत्साह आदि भाव इसमें समाविष्ट होते हैं। भक्ति भाव के मूल में दास्य, साख्य, वात्सल्य, माधुर्य भक्ति भाव समाविष्ट हैं।

उदा.
(i) अँसुवन जल सिंची-सिंची प्रेम-बेलि बोई
मीरा की लगन लागी, होनी हो सो होई
– मीरा

(ii) कहत कबीर सुनहु रे लाई
हरि बिन राखनहार न कोई।
– कबीर

प्रेरणा Summary in Hindi

प्रेरणा कवि परिचय :

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 प्रेरणा 4

एरौत (बिहार) (5 दिसंबर, 1988) में जन्मे त्रिपुरारि कुमार शर्मा जी एक कवि, लेखक, संपादक (editor) और अनुवादक (translater) हैं। शिक्षा, रचनात्मक लेखन और पत्रकारिता के क्षेत्र में सफलतापूर्वक कार्य करते हुए ‘त्रिवेणी’ काव्य (poetry) रचना में अपनी विशेष पहचान बना चुके हैं। नींद की नदी’, ‘नॉर्थ कैंपस, साँस के सिक्के आदि आपकी प्रमुख कृतियाँ हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी कविताएँ, कहानियाँ, लेख आदि प्रकाशित हुए हैं।

प्रेरणा कविता का परिचय :

प्रस्तुत रचना ‘त्रिवेणी’ विधा में लिखी कविता है। ‘त्रिवेणी’ एक तीन पंक्तियों वाली कविता है जिसे प्रसिद्ध गीतकार और कवि गुलजार साहब ने विकसित (develop) किया है। शब्दों की किफायत और एहसासों की अमीरी इस विधा की विशेषता है। एक चलचित्र की तरह इसकी पहली दो पंक्तियाँ कहानी को गढ़ती है और तीसरी पंक्ति कहानी की परिपूर्णता को अभिव्यक्त करते हुए क्लाइमेक्स व्यक्त कराती है। प्रस्तुत त्रिवेणियों में त्रिपुरारि जी ने कहीं माँ की ममता, पिता का गौरव तो कहीं जीवन की कठोर सच्चाई को व्यक्त करते हुए मुश्किलों का डटकर सामना करने की सलाह दी है और उम्मीद का दामन पकड़कर आगे बढ़ने का मशवरा दिया है।

प्रेरणा कविता का भावार्थ (purport) :

जीवन की आपाधापी में माता-पुत्र बिछड़ जाते हैं। दोनों ही एक-दूसरे के स्नेह के लिए तरसते हैं। पुत्र माँ से फोन पर बात करता है तब पुत्र की आवाज सुनकर ही माँ की ममता आँसुओं के रूप में फूट पड़ती है। माँ को रोते देखकर पुत्र को लगता है माँ बे-वजह ही रोती है। परंतु जब फोन पर बातचीत पूरी हो जाती है और पुत्र फोन रखता है तो वह भी अपनी भावनाएँ रोक नहीं पाता और रोता है।

पिता माँ की अपेक्षा कठोर हृदय के होते हैं ऐसा लोग कहते हैं, परंतु उनका हृदय भी कोमल ही होता है। जब संतान को चोट लगती है तो वह तड़प उठते हैं। यह इस बात का सबूत है कि पिता में भी कोई माँ छुपी होती है अर्थात स्नेह की बात आती है तो माँ के ममत्व (mother’s love) को अधिक अहमियत दी जाती है परंतु पिता भी अपनी संतान से उतना ही स्नेह करते हैं जितना कि एक माँ।

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 प्रेरणा

जीवन की जरूरतें पूरी करने हेतु माता-पिता दोनों काम पर जाते हैं। कभी-कभी शिफ्ट में ड्युटी करने वाले अभिभावक (guardian) अपनी ड्युटी इस तरह से लेने की कोशिश करते कि दोनों में से एक बच्चे के साथ रहे। ऐसे में पिता महीनों तक दिन की शिफ्ट जाता है और माता महीनों तक रात की शिफ्ट जाती है। बच्चे को दोनों का स्नेह ऐसी स्थिति में टुकड़ों में ही मिलता है। नन्हा बच्चा जब माँ का स्नेह पाता है तब पिता नहीं होते और पिता का स्नेह पाता है तब माँ काम पर गई होती है।

उगते सूरज का स्वागत सभी करते हैं, परंतु डूबते सूरज के प्रति उदासीनता दिखलाते हैं। कवि का मशवरा है कि डूबते सूरज को भी नहीं भूलना चाहिए क्योंकि, डूबना-उगना तो केवल नजरों का धोखा है। सूरज तो आसमान में ही है। हमारी धरती ही सूरज की परिक्रमा करते हुए हमें सूरज के डूबने-उगने का आभास कराती है अर्थात सच्चाई से मुख न मोड़कर हमें हर स्थिति में तटस्थ रहना चाहिए।

जीवन पथ पर चलते-चलते कभी-कभी गिर भी गए तो खुद को सँभालकर आगे बढ़ना चाहिए। गिरने पर जो चोट लगती है वह हमें जीवन का नया पाठ सिखाती है क्योंकि ठोकर खाकर ही हमें जीने की कला का सबक मिलता है। अनुभव से बड़ा कोई शिक्षक नहीं। बस, जीवन चलने का नाम है, आगे बढ़ने का नाम है इसे याद रखना होगा।

जीवन पथ पर आगे बढ़ते समय कभी मार्ग में घनघोर अँधकार छाया हुआ मिले लेकिन तब भी हमें उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए। किसी दिन उजाला अवश्य होगा यही आशा रखते हुए आगे बढ़ना चाहिए क्योंकि रात की कोख से ही सुबह जन्म लेती है। इस त्रिवेणी में कवि हमें निराशा के अंधकार से आशा के उजाले की ओर ले जाना चाहते हैं और इस सत्य से अवगत (aware) कराते हैं कि जीवन में दुःख के बाद सुख अवश्य आता है। सुख-दुख, दिन-रात की तरह आते-जाते रहते हैं इसीलिए दुख की स्थिति में निराश नहीं होना चाहिए।

अपनी आयु के कुछ पल उधार लेकर मैंने हसरत के बीज बोए क्योंकि विचारों की जमीन मेरे पास पहले से थी अर्थात (means) हमारे सपनों को पूरा करने के लिए आयु कम ही पड़ती है। परंतु सपने अवश्य देखने चाहिए और उन्हें पूरा करने की कोशिश भी करनी चाहिए।

मंजिल बहुत दूर है यह सोचकर हमें यात्रा रोकनी नहीं चाहिए बल्कि छोटे से दीपक की धुंधली सी रोशनी में भी यात्रा आरंभ कर लेनी चाहिए क्योंकि हिम्मत से आगे बढ़ने वाले यात्री के कदम जहाँ भी पड़ेंगे वहाँ रोशनी होगी और मंजिल का मार्ग प्रशस्त (wide) होगा। कवि हमें सकारात्मक सोच से जीवन में आगे बढ़ने का मशवरा दे रहे हैं।

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 प्रेरणा

मैंने जब कभी अपनी आँखों में देखा स्वयं को एक बालक की तरह अबोध, (innocent) निष्पाप पाया। इससे तो यही सिद्ध होता है कि उम्र बढ़ती ही नहीं। वास्तव में उम्र बढ़ती है वैसे-वैसे हम मासुमियत खो देते हैं और दुनियादारी निभाते-निभाते हमारे भीतर छिपे बालक को बड़ा बुजुर्ग, अनुभवी बनाकर जीवन की सुंदरता का गला घोट देते हैं। मन को अशांत, तनाव पूर्ण, कुंठा (frustration) ग्रस्त बना देते हैं। इससे मुक्ति पाना है तो खुद के भीतर छिपे बालक को जीवित रखना चाहिए।

आँसू और खुशियाँ एक ही वस्तु के दो नाम हैं। जैसे पेड़ में बीज छुपा है और बीज में पेड़ वैसे ही आँसू में खुशी और खुशी में आँसू छिपे होते हैं। जो इस बात को समझ गया वही सच्चा ज्ञानी है क्योंकि आँसू और खुशियाँ जीवन के दो अंग हैं और ये जीवन में आते-जाते रहते हैं। हर खुशी में आँसू छिपे हैं जो हमारी भावनाओं के प्रतीक (symbol) हैं और आँसुओं के जल से सींचकर खुशियों का वृक्ष फलता-फूलता है।

जीवन में कितनी ही कठिनाइयाँ क्यों न आए हमें उम्मीद का दामन कभी नहीं छोड़ना चाहिए। क्योंकि नाउम्मीदी तो मृत्यु के समान है अर्थात् कठिनाइयों से घबराकर निराशा का दामन थामने वाला जीते जी मर जाता है। जैसे हर अँधेरी रात के बाद सुबह अवश्य आती है वैसे ही दुख के बाद सुख का आना निश्चित है। इस सकारात्मकता (positivity) के साथ जीना ही जिंदगी है। सुख-दुख की स्थिति में स्थिर रहना ही मनुष्य की सच्ची पहचान है इस तथ्य को कभी नहीं भूलना चाहिए।

प्रेरणा शब्दार्थ:

  • घनघोर = घना
  • हसरत = चाह, इच्छा
  • आगाज-ए-सफर = यात्रा का आरंभ
  • शय = वस्तु, चीज
  • सख्त = कठोर (strict),
  • नाजुक = कोमल (sensitive),
  • महज = केवल, मात्र (just),
  • चोट = आघात, प्रहार, घाव (hurt),
  • घनघोर = घना, डरावना (dense),
  • आस = आशा, भरोसा (hope),
  • कोख = पेट, गर्भाशय (womb),
  • लम्हा = पल, क्षण (moment),
  • हसरत = चाह, इच्छा (desire),
  • खयाल = स्मृति, विचार (idea),
  • आगाज-ए-सफर = यात्रा का आरंभ (set off),
  • शय = वस्तु, चीज (thing), Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 प्रेरणा
  • दामन = आँचल, पल्लु (fringe),
  • जरा = थोड़ा सा (little bit)

Hindi Yuvakbharati 11th Digest Text Book Solutions

Parimal Class 11 Marathi Chapter 5 Question Answer Maharashtra Board

11th Marathi Chapter 5 Exercise Question Answer Maharashtra Board

Balbharti Maharashtra State Board Marathi Yuvakbharati 11th Digest Chapter 5 परिमळ Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

परिमळ 11 वी मराठी स्वाध्याय प्रश्नांची उत्तरे

11th Marathi Digest Chapter 5 परिमळ Textbook Questions and Answers

कृती

1. अ. कृती करा.

प्रश्न 1.
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 5 परिमळ 1
उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 5 परिमळ 4

प्रश्न 2.
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 5 परिमळ 2
उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 5 परिमळ 5

प्रश्न 3.
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 5 परिमळ 3
उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 5 परिमळ 6

आ. खलील घटनांचे पाठाच्या आधारे परिणाम लिहा.

प्रश्न 1.
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 5 परिमळ 7
उत्तर :

घटनापरिणाम
1. कोकिळ पक्ष्याने तोंड उघडणेसंगीत वाहू लागणे
2. प्राजक्ताची कळी उमलणेसुगंध दरवळणे
3. जातीच्या कवीचे हृदय ताल धरून बसलेले असणे.शब्द जीभेवर लीलया येणे

Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 5 परिमळ

इ. तुलना करा.

प्रश्न 1.
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 5 परिमळ 8
उत्तर :

मुद्देमाणूसप्राणी
1. वर्तणूककृतघ्नकृतज्ञ
2. इमानिपणास्वार्थीनिःस्वार्थी

ई. खालील आशयाची कवितेची उदाहरणे पाठातून शोधून लिहा.

प्रश्न 1.
शब्दांची मौज वाटेल, अशी बहिणाबाईंनी दिलेली उदाहरणे
उत्तर :
1. ‘पर्गटले दोन पानं,
जसे हात जोडीसन’

2. ‘आधी हाताला चटके,
तव्हा मियते भाकर’ ‘नही ऊन, वारा थंडी,
आली पंढरीची दिंडी’

Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 5 परिमळ

प्रश्न 2.
बहिणाबाईंची प्राणिमात्रांविषयीची कृतज्ञता
उत्तर :

  • गाय न् म्हैस चारा खाऊन दूध देतात – दूध देणे
  • कुत्रा आपले शेपूट इमानीपणाच्या भावनेने हालवतो – इमानी

2. व्याकरण.

प्रश्न अ.
प्रस्तुत पाठात दिलेल्या कवितेच्या उदाहरणांतून यमक जुळणाऱ्या शब्दांच्या पाच जोड्या शोधून लिहा…
उत्तर :
यमक जुळणाऱ्या शब्दांच्या पाच जोड्या :

  • पीठी – व्होटी
  • जीव – हीव
  • थंडी – दिंडी
  • घाई – पुन्याई
  • नक्कल – अक्कल

प्रश्न आ.
शब्दसमूहांचा अर्थ स्पष्ट करा.

  1. बावनकशी सोने
  2. करमाची रेखा
  3. सोन्याची खाण
  4. चतकोर चोपडी

उत्तर :

  1. बावनकशी सोने – अस्सल, खरे
  2. करमाची रेखा – नशीबाचा फेरा, नियतीचा खेळ
  3. सोन्याची खाण – भरभराट, विपुल प्रमाणात
  4. चतकोर चोपड़ी – पुस्तक किंवा वहीचा काही भाग

प्रश्न इ.
खालील वाक्प्रचारांचा अर्थ लिहून वाक्यांत उपयोग करा.
1. तोंडात बोटे घालणे.
2. तोंडात मूग धरून बसणे.
उत्तर :
1. तोंडात बोटे घालणे – अर्थ : आश्चर्यचकित होणे, विस्मय वाटणे.
वाक्य : अपंग मुलाने धावण्याची शर्यत जिंकल्याने सर्वांनी तोंडात बोटे घातली.

2. तोंडात मूग धरून बसणे – अर्थ : काहीही न बोलणे, गप्प बसणे.
वाक्य : सरांनी अवघड प्रश्न विचारताच सर्व मुले तोंडात मूग धरून बसली.

Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 5 परिमळ

प्रश्न ई
खालील शब्दांना उपसर्ग व प्रत्यय लावून शब्द तयार करा.
उदा., वाद-विवाद, संवाद, निर्विवाद, वादक, वादी
(अ) अर्थ – ……………
(आ) कृपा – ……………
(इ) धर्म – …………….
(ई) बोध – …………….
(उ) गुण – ……………..
उत्तर :
(अ) अनर्थ, अर्थहीन, अर्थपूर्ण
(आ) अवकृपा, कृपाळू
(इ) अधर्म, स्वधर्म, धार्मिक, धर्मवीर
(ई) अबोध, बोधामृत
(उ) अवगुण, सगुण, निर्गुण, गुणी, गुणवान

3. स्वमत.

प्रश्न अ
‘बहिणाबाईंचे साहित्य जुन्यात चमकणारे व नव्यात झळकणारे आहे’, हे लेखकाचे विचार तुमच्या शब्दांत स्पष्ट करा.
उत्तर :
बहिणाबाई या एक अशिक्षित शेतकरी स्त्री असूनही त्यांची रचना तोंडात बोट घालायला लावणारी आहे. बहिणाबाईंचा जिव्हाळा जबर आहे. त्यांच्या शब्दाशब्दांतून प्रतिभा झिरपते. त्यांचे काव्य सरस व सोज्वळ आहे. बहिणाबाई यांची कविता इंग्रजी वळणाच्या सौंदर्यवादी भावकवितेच्या परंपरेला छेद देणारी अस्सल मराठी वळणाची ग्रामीण कविता आहे.

जुन्यात चमकणारी ही कविता आहे, बहिणाबाई यांनी आपली कविता थेट संत कवितेच्या आणि तत्त्वकवितेच्या परंपरेला जोडली आहे, त्यांच्या कवितेत या परंपरेतला भक्तिभाव, तत्त्वचिंतन आणि हितोपदेश आपल्याला दिसतो. ही लोकगीताच्या अंगाने जाणारी कविता आहे. नवकवितेच्या जवळ जाणारी त्यांची कविता आहे. त्यांच्या कवितेत निसर्ग, ग्रामीण जीवन व कृषिसंस्कृतीचे अस्सल दर्शन घडते. शेतकरी हा कर्मयोगी आहे आणि त्याच्या कामात उदात्तता आहे असे सांगणाऱ्या या कविता आहेत.

क्तिकविता आहे. त्यात पारंपरिक तत्वकवितेच्या खुणा सर्वत्र विखुरलेल्या दिसतात. ‘उदा. देव अजब गारोडी’ तसेच ‘मानसा मानसा कधी व्हशीन मानूस!’ यांसारख्या आधुनिक कवितेतून मानवतेचा संदेश देणारी त्यांची कविता आहे.

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प्रश्न आ.
‘बहिणाबाई शेताला निघाल्या, की काव्य आपले निघालेच त्यांच्याबरोबर.’, या विधानाचा तुम्हांला समजलेला अर्थ सविस्तर लिहा.
उत्तर :
बहिणाबाईंची कविता ही अर्वाचीन मराठीतील पहिली ग्रामीण कविता होय. ती या अर्थाने की, ती ग्रामीण जीवनातूनच मोहोरून आली आहे. त्यांच्या कवितेतून ग्रामीण जीवन अंतर्बाहय रसरसलेले आहे. ‘देव अजब गारोडी’ या कवितेत पेरणीनंतर धरित्रीच्या कुशीतून जे चैतन्य ओसंडते त्याचे अतिशय प्रभावी दर्शन घडते. ‘येहेरीत दोन मोटा’ यातून कृषिजीवनाचे दर्शन तर घडतेच पण त्यातील दोन्हीमध्ये पाणी एक यातून कणा आणि चाक वेगळे असले तरी त्याची गती एकच आहे हे दिसून येते.

त्यांची कविता निसर्गाशी समरस होणारी, ग्रामीण जीवनाचे दर्शन घडवणारी आहे. तान्या सोपानाला झोपवून बहिणाबाई शेतात निघाल्या की त्यांच्या काव्यप्रतिभेला धुमारे फुटू लागत आणि त्यातून ग्रामीण, कृषिजीवनाचे दर्शन घडविणारी कविता जन्माला येई. वाटेत दिसलेल्या वडाच्या झाडावर ‘हिरवे हिरवे पानं’ सारखी रचना सहज आकाराला येते. शेतातील कापणी, मळणी या शेतातील कामांबरोबरच मोठ्या, भाविक व कष्टाळू शेतकऱ्याचे जीवन त्यांच्या कवितेतून प्रतिबिंबीत होताना दिसते. थोडक्यात बहिणाबाईंची कविता ही अस्सल ग्रामीण जीवनाचे दर्शन घडविणारी कविता आहे. शेतात राबणारा शेतकरी आणि कृषिसंस्कृती यांचं अनोखं असणार नातं त्यांच्या कवितेत दिसून येते.

प्रश्न इ.
“मानसा मानसा, कधी व्हशीन मानूस!’ या उद्गारातून व्यक्त झालेला बहिणाबाईंचा विचार तुमच्या शब्दांत स्पष्ट करा.
उत्तर :
बहिणाबाईनी कवितेतून माणसाचा मतलबीपणा आणि त्याच्या स्वार्थी वृत्तीचे वास्तव दर्शन घडविले आहे. बहिणाबाई आणि स्वार्थी वृत्तीची सर्वाधिक चीड आहे. त्या माणसाला संतापून म्हणतात ‘मानसा मानसा, कधी व्हशीन मानूस!’ ‘माणसा तुला नियत नाही रे’, माणसापेक्षा गोठ्यातील जनावर बरे, गाय न म्हैस चारा खाऊन दूध देतात. पण माणसाचे एकदा पोट भरले की माणस उपकार विसरून जातो. कुत्र्यामध्ये इमानीपणा आहे पण माणूस फक्त मतलबासाठी मान डोलावतो.

माणूस केवळ लोभामुळे माणूस असूनही काणूस म्हणजे पशू झाला आहे. त्याची स्वार्थी प्रवृत्ती सर्वत्र दिसून येते. माणस स्वतःच्या फायद्यासाठी एकमेकांशी भांडत आहे. मानवता आज संपुष्टात आली आहे. अखिल मानवजातीच्या कल्याणासाठी बहिणाबाई ‘मानसा मानसा, कधी व्हशीन मानूस’? अशी आर्त हाक देतात, संत महात्म्यांनीही मानवतेच्या कल्याणासाठी तळमळ व्यक्त केली आहे. आज माणूस पशूसारखे वागतोय. माणसातला माणूस कधी जागा होतोय? हीच खरी आजची समस्या आहे. स्वार्थासाठी माणूस माणूसपण विसरत आहे. या समस्येचा साक्षात्कार बहिणाबाईसारख्या खानदेशातील एका अशिक्षित शेतकरी महिलेला व्हावा हे त्यांच्यातील नैसर्गिक प्रतिभेचं लेणं आहे.

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4. अभिव्यक्ती.

प्रश्न अ.
प्र. के. अत्रे यांच्या प्रस्तावना लेखनाची तुम्हाला जाणवलेली वैशिष्ट्ये लिहा.
उत्तर :
एखादया शेतात मोहरांचा हंडा अचानक सापडावा तसा बहिणाबाईच्या काव्याचा शोध महाराष्ट्राला लागला. बहिणाबाईचा जिव्हाळा जबर आहे. त्यांच्या शब्दाशब्दांतून प्रतिभा नुसती झिरपते आहे असे सरस आणि सोज्वळ काव्य आहे. जुन्यात चमकेल व नव्यात झळकेल असे त्याचे तेज आहे. प्र. के. अत्रे यांच्यासारख्या मर्मज्ञ, प्रतिभावंताची बहिणाबाई चौधरी यांच्या गीतकाव्यासंबंधीची ही प्रतिक्रिया होय. बहिणाबाई चौधरी यांच्या कवितेचे प्र. के. अत्रे केवळ प्रस्तावनाकारच नव्हते तर ते प्रकाशकही होते.

प्र. के. अत्रे यांची लिहिलेली प्रस्तावना ही बहिणाबाईंच्या असामान्य काव्यप्रतिभेची ओळख करून देणारी आहे. त्यांनी बहिणाबाईंच्या ओघवत्या व भावपूर्ण शब्दांची काव्यप्रतिभा आपल्या प्रस्तावनेतून उलगडून दाखवली आहे. बहिणाबाईंची ग्रामीण जीवनाशी जोडलेली नाळ, निसर्गाशी असलेली समरसता, कृषिजीवनाचे संदर्भ हा त्यांच्या काव्याचा विषय. प्र. के. अत्रे यांनी बहिणाबाईंचे हे सूक्ष्म व अचूक निरीक्षण यांतील आत्मियता लीलया वर्णिली आहे. माणसातील लोप पावत चाललेल्या माणुसकीचे वर्णन करणाऱ्या कवितेवर अत्रे यांनी प्रकाश टाकला आहे. अत्रे यांनी आपल्या प्रस्तावनेतून बहिणाबाईच्या अनेक कवितांचा अर्थ उलगडून दाखविला आहे.

बहिणाबाईंची कविता हे बावनकशी सोने आहे. ते महाराष्ट्रासमोर आणण्यासाठी अत्रे यांनी स्वतः त्या कवितांचे प्रकाशन केले. अत्रे यांनी बहिणाबाईची काव्यप्रतिभा जाणून आपल्या प्रस्तावनेत बहिणाबाईंचे निसर्गप्रेम, कृषी, शेतकरी त्यांचे अपार कष्ट यांचे वर्णन केले आहे. बहिणाबाईच्या ‘संसार’, ‘स्त्रियांची दुःखे’, ‘माणसातला स्वार्थ’ या कवितांवर अतिशय मार्मिक असे भाष्य केले आहे. प्राणिमात्रांचा प्रामाणिकपणा आणि माणसांचा कृतघ्नपणा या बहिणाबाईंच्या कवितेतून अत्रे यांनी नेमकेपणाने त्यांतील भाव उलगडून दाखविला आहे.

अत्रे यांची प्रस्तावना ही अतिशय प्रतिभावंत साहित्यिकाची प्रस्तावना आहे. बहिणाबाईंच्या काव्यातील तळमळ, माणसाच्या कल्याणाची आस शेतकरी व त्याचे अपार कष्ट या काव्य आशयाचा सुरेल परामर्श अत्रे यांनी घेतला आहे. थोडक्यात अत्रे यांच्या प्रस्तावनेने ‘बहिणाबाईंची गाणी’ या पुस्तकाला एक आगळी वेगळी झळाळी लाभली आहे.

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प्रश्न आ.
बहिणाबाईंच्या काव्यातील भाषेची वैशिष्ट्ये लिहा.
उत्तर :
बहिणाबाई चौधरी यांनी लिहिलेल्या कविता ह्या निसर्ग, कृषिसंस्कृती, ग्रामीण जीवन, शेतकरी, शेती, मानवता, प्राणिमात्रांची कृतज्ञता या विषयांशी संबंधित आहेत, बहिणाबाई या अशिक्षित खेड्यातील स्त्री असूनही त्यांच्या काव्यातला जिव्हाळा जबर आहे. त्यांच्या शब्दाशब्दांतून प्रतिभा नुसती झिरपते आहे. त्यांचे काव्य सरळ आणि सोज्वळ आहे.

बहिणाबाईंनी वहाडी, खानदेशी ग्रामीण, बोली भाषेत लिहिलेल्या कवितांना वेगळाच गोडवा आहे. बहिणाबाई कधीही शाळेत गेल्या नव्हत्या. गावातील मंदिरे याच त्यांच्या शाळा असे असतानाही त्यांनी केलेल्या रचना त्यांच्या प्रतिभेचे दर्शन घडवितात. बोली भाषेच्या जिव्हाळ्याने त्यांची कविता आपलीशी वाटते, वहाडी खानदेशी भाषेचे काव्याभिव्यक्तीचे सामर्थ्य फार उंचीचे आहे.

बहिणाबाईंच्या भाषेत जिव्हाळा आहे, तळमळ आहे. माणसाच्या उत्कर्षाची आस त्यांना लागली आहे. ग्रामीण भाषेमुळे, बोलीमुळे शेतकरी, निसर्ग, मानवता या आशयाशी एकरूप होणारी त्यांची कविता वाचकांचे लक्ष वेधून घेते. बहिणाबाई काव्य करताना कुठेही अडखळत असलेल्या, शब्दांसाठी थांबलेल्या अशा दिसत नाहीत. ओघवते असे त्यांचे काव्य आहे. याचे कारण म्हणजे त्यांचे म्हणून जे एक अनुभवविश्व होते. त्या अनुभवाची म्हणून जी भाषा होती ती त्यांना पूर्णत: परिचित होती, नव्हे त्यावर त्यांचे प्रभुत्व होते. म्हणूनच त्यांच्या कवितेच्या हातात भाषा हवी तशी वाकते, आकार घेते व अर्थाभिव्यक्ती साधते. या अर्थाने बहिणाबाई या भाषाप्रभूत्व ठरतात.

प्रश्न इ.
माणसातील माणुसकीचा तुम्ही घेतलेला अनुभव शब्दबद्ध करा.
उत्तर :
अलिकडच्या काळात माणसातील माणुसकी लोप पावत चालली आहे. प्रत्येक माणूस आत्मकेंद्री बनत चालला आहे. माणूस आज पशू होऊन एकमेकांशी झगडत आहे. पण पशू मात्र आपला इमानीपणा दाखवत आहे. माणूस हा स्वार्थी, आत्मकेंद्री बनत चालला असताना आजही समाजात माणुसकी शिल्लक आहे अशी अनेक उदाहरणे देता येतील. पैसा म्हटला की प्रत्येकाला त्याची हाव असते.

कोणत्याही मार्गाने का होईना पण पैसा मिळाला पाहिजे ही प्रवृत्ती सर्वत्र आढळते. पण मी अनुभवलेल्या एका प्रसंगातून आजही माणुसकीचा झरा वाहतो आहे याचे दर्शन घडते. आमच्या कॉलेजमध्ये घडलेला प्रसंग, एका गरीब विद्यायनि शैक्षणिक फी, वहया, पुस्तकांसाठी आणलेले पैसे त्याच्याकडून हरवले. तो विदयार्थी ढसाढसा रडत होता. कारण ते पैसे त्याच्या आई वडिलांनी मजुरी करून मिळवलेले होते. हे पैसे मिळाले नाहीत तर आपले शिक्षण थांबणार या चिंतेने त्याला ग्रासले होते. आमच्या कॉलेजमध्ये अतिशय कमी पगारावर काम करणाऱ्या एका सेवकाला हे पैसे सापडले व त्याने ते त्या गरीब मलाला परत केले.

त्या गरीब मुलाला पैसे परत मिळण्याचा खूप आनंद झाला. खरं तर त्या सेवकाला सापडलेल्या पैशाच्या पाकीटाचा मोह झाला नाही. तीन महिन्यांच्या पगाराइतकी ती रक्कम असूनही तो मोह टाळून त्याने ते पैशाचे पाकीट परत केले. ही घटना माणुसकीचा झरा अजूनही आटलेला नाही याचे दयोतक आहे.

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प्रकल्प.

प्रश्न 1.
‘बहिणाबाईंची गाणी’ मिळवून निवेदनासह काव्यवाचनाचा कार्यक्रम सादर करा.

प्रश्न 2.
तुमच्या परिसरातील ओव्या/लोकगीते मिळवून संग्रह करा.

11th Marathi Book Answers Chapter 5 परिमळ Additional Important Questions and Answers

खालील उताऱ्याच्या आधारे सूचनेनुसार कृती करा.

प्रश्न 1.
बहिणाईच्या काव्याचा आविष्कार – [ ]
उत्तर :
बहिणाबाईंच्या काव्याचा आविष्कार – सुभाषितांचा

प्रश्न 2.
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 5 परिमळ 11
उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 5 परिमळ 12

खालील कृती सोडवा.

प्रश्न 1.
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 5 परिमळ 9
उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 5 परिमळ 10

प्रश्न 2.
बहिणाबाईंना प्राप्त झालेली प्रतिभा
……………………….
उत्तर :
बहिणाबाईंना प्राप्त झालेली प्रतिभा एखादया बुद्धिमान तत्त्वज्ञानी किंवा महाकवीची

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कोष्टक पूर्ण करा.

प्रश्न 1.

  1. शेतकरी जीवन ……….
  2. …………. तिला रात म्हणू नये
  3. इमानाला जो विसरला …………
  4. ……………. शेवटी रिकामेच होणार

उत्तर:

  1. शेतकरी जीवन → कष्टाचे
  2. भुकेल्या पोटी जी → तिला रात म्हणू नये माणसाला निजवते
  3. इमानाला जो विसरला → त्याला नेक म्हणू नये
  4. पोट कितीही भरले तरी → शेवटी रिकामेच होणार

स्वमत :

प्रश्न 1.
शेतकऱ्यांचे जीवन म्हणजे कष्टाचे हा विचार तुमच्या शब्दात स्पष्ट करा.
उत्तर :
‘बहिणाबाईंची गाणी’ या पुस्तकात बहिणाबाई चौधरी यांनी कृषी, ग्रामीण जीवन, शेती आणि शेतकरी यांचे चित्रण केले आहे. बहिणाबाईंची कविता अस्सल शेती आणि शेतकऱ्यांचे भावविश्व उलगडून दाखवणारी आहे. शेतकऱ्यांचे जीवन म्हणजे कष्टाचे. ऊन, वारा व पाऊस यांची तमा न बागळता शेतकरी रात्रंदिवस राबत असतो. सर्वसामान्य माणसे शेतकऱ्याच्या जीवावर दोन वेळा पोटभर जेवतात. शेतकरी शेतातच राबतो आणि त्याची माती शेतातच होते. शेतात पेरणी, कापणी व उफणणी या काळात शेतकरी राबराब राबतो.

त्याने पिकवलेल्या मालाला योग्य भाव मिळेल याची शाश्वती नसते. पण जगाचा पोशिंदा असणारा हा भोळा, भाविक व कष्टाळू शेतकरी आयुष्यभर काळ्या आईची सेवा करतो. शेतकऱ्यांच्या संसाराची करुण कहाणी अनेक काव्यात दिसून येते. शेतकरी खळं करत असताना त्याला एक आस लागलेली असते ती म्हणजे यातून मिळणाऱ्या उत्पन्नातून आपला मोडलेला संसार पुन्हा उभा राहील पण तसे घडतेच असे नाही. निसर्गाचा लहरीपणा, कर्ज, हमीभाव पिकांवर पडणारी कीड या दुष्टचक्रात शेतकरी अडकला आहे आणि त्यातून ज्यांना बाहेर पडता येत नाही ते आत्महत्या करतात. असे कष्टाळू शेतकऱ्याचे जीवन संघर्षाने भरलेले आहे.

अभिव्यक्ती:

प्रश्न 1.
‘कशाला काय म्हणू नाही’ या काव्यातील सुभाषितांचा अर्थ लिहा.
उत्तर :
बहिणाबाई चौधरी यांच्या ‘बहिणाबाईची गाणी’ या पुस्तकात अनेक विषयांवरील काव्य आहे. मराठी वाड़मयात अमर होतील अशी अनेकात अनेक सुभाषिते आली आहेत. सुभाषितांचे एक शेतच पिकलेले आहे असे वाटते. ज्यातून कापूस येत नाही त्याला बॉड म्हणू नये, बोंडाची मुख्य अशी ओळख म्हणजे त्यातील कापूस नसेल तर त्या बोंडाला काय अर्थ उरणार? भुकेच्या पोटी माणसाला निजवते तिला रात कशी म्हणणार ? माणसाच्या पोटात अन्न नसेल तर त्याला झोप येणारच नाही, माणसाचा हात हा दानधर्मासाठी असतो असे म्हटले जाते.

इतरांना मदत, दान करताना तुमचा हात आखडत असेल, तुमचा स्वार्थ आडवा येत असेल तर त्या हाताचा काय उपयोग? इमानीपणा जर एखादा विसरत असेल तर त्याला नेक, प्रामाणिक कसे म्हणणार? तुम्ही नेक प्रामाणिक असाल तर तुमच्यात इमान असणारच, जन्मदात्या आई वडिलांची सेवा करणे हे मलाचे कर्तव्य आहे.

जर एखादा लेक जन्मदात्या आई वडिलांची सेवा न करता त्यांना त्रास देत असेल तर त्याला लेक म्हणता येणार नाही. भाव असेल तर भक्ती येईल. (मनी नाही भाव देवा मला पाव) या उक्तीप्रमाणे भावहीन भक्ती फळाला येत नाही. तुमच्यात उत्साह नसेल तर तुमची शक्ती निरर्थक आहे. कारण जिच्यामध्ये चेव नाही तिला शक्ती म्हणू नये. अशाप्रकारे वेगवेगळ्या सुभाषितांमधून बहिणाबाईंनी जीवनविषयक तत्त्वज्ञान उलगडून दाखविले आहे. जे आजच्या काळातही लागू आहे.

स्वाध्यायासाठी कृती ‘चालू दे रे रगडनं तुझ्या पायाची पुन्याई’ या बहिणाबाईंच्या काव्याचा तुम्हाला समजलेला अर्थ लिहा. वृक्षांची कृतज्ञता तुमच्या शब्दात स्पष्ट करा. बहिणाबाईचा जीवनाकडे पाहण्याचा दृष्टिकोन तुमच्या शब्दात लिहा. बहिणाबाईनी सांगितलेले मानवी जीवनाचे रहस्य शब्दबद्ध करा. शेतातील खळ्याचे बहिणाबाईंनी केलेले वर्णन स्पष्ट करा. ‘मन पाखरू पाखरू’ या ओळीतील भावसौंदर्य उलगडून दाखवा.

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परिमळ Summary in Marathi

प्रस्तावनाः

नामवंत लेखक, कवी, नाटककार, चित्रपट कथालेखक, शिक्षणतज्ज्ञ म्हणून महाराष्ट्राला ज्ञात असणारे प्र.के.अत्रे यांनी ‘बहिणाबाईची गाणी’ या काव्यसंग्रहाला प्रस्तावना लिहिली. या प्रस्तावनेतून प्र.के.अत्रे यांनी बहिणाबाई चौधरी यांच्या काव्यप्रतिभेची ओळख करून देताना त्यांच्या कवितेतील ग्रामीण जीवन, कृषिजीवन यांचे संदर्भ उलगडून दाखविले आहेत. बहिणाबाईच्या कवितेतून माणुसकी, निसर्गाशी समरसता, श्रद्धा आणि खेड्यातील समूह जीवनाचे दर्शन घडते. त्यांच्या कवितेत खानदेशी बोलीचा गोडवा विशेषत्वाने जाणवतो.

पाठाचा परिचय :

शास्त्राप्रमाणे वाङ्मयात शोध क्वचितच लागतात. एखादया शेतात मोहरांचा हंडा सापडावा तसा बहिणाबाईंच्या काव्याचा शोध लागला. लक्ष्मीबाई टिळकांच्या ‘स्मृतीचित्रा’सारखाच बहिणाबाईचा जिव्हाळा जबर आहे. बहिणाबाईंचे काव्य सरस आणि सोज्वळ आहे. असे काव्य मराठी भाषेत फार थोडे आहे आणि त्यातील मौज म्हणजे एका निरक्षर स्त्रीने रचलेले हे काव्य तोंडात बोट घालायला लावणारे, ‘जुन्यात चमकणारे आणि नव्यात झळकणारे’ असे आहे.

सुप्रसिद्ध मराठी कवी सोपानदेव चौधरी यांच्या या मातोश्री. माजघरात सोन्याची खाण दडावी तसे यहिणाबाईंचे काव्य, खानदेशी वहाडी भाषेमधील अडाणी आईच्या ओव्यांचे महाराष्ट्र कौतुक करील की नाही म्हणून सोपानदेव चौधरी गप्प होते.

सोपानदेव चौधरी यांनी चतकोर चोपडीतून एक कविता प्र.के.अत्रे यांना वाचून दाखविली. या कवितेतून शेतकऱ्याच्या कष्टाचे वर्णन केले आहे, त्या कविता म्हणजे बावनकशी सोने असून ते महाराष्ट्रासमोर यायला हवे या उद्देशाने प्र. के. अत्रे यांनी हे काव्य प्रसिद्ध करण्याचे ठरविले.

प्रतिभा हे कवीला लाभलेले निसर्गाचे देणे, ते उपजतच असते. कोकिळ पक्ष्याच्या तोंडून संगीत वाहू लागते. प्राजक्ताची कळी सुगंध घेऊन येते तसे जातिवंत कवीचे आहे. सृष्टीतील सौंदर्य आणि जीवनातील संगीताशी ती कविता एकरूप होते. डोंगराच्या कपारीतून जसा झरा उचंबळतो तसे काव्य एकसारखे हदयातून उसळ्या घेते. यातूनच जगातील अमरकाव्ये जन्मास येतात.

बहिणाबाईची प्रतिभा वेगळीच, त्यात धरित्रीच्या कुशीत झोपलेले बियाणे कसे प्रकट होते याचे वर्णन येते. तारुण्यात सौभाग्य गमावलेल्या स्त्रीचे हृदयभेदक करुण काव्य हे असामान्य काव्याचे वैशिष्ट्य होय. सकाळी उठून बहिणाबाई जात्यावर बसल्या की ओठातून काव्य सांडू लागते. घरोट्यातून पाठ जसे बाहर पडत तसे बहिणाबाईच गाण पोटातून आठावर यत. स्वयपाकघरात चूल प म्हणत माझा जीव घेवू नकोस. संसाराची रहस्य उलगडताना त्यातील कष्टमय जीवनाचे चित्रण त्यांच्या काव्यात दिसून येते. तान्हुल्या सोपानाला शेतावर घेऊन जाताना वडाच्या झाडाचे आणि त्याच्या लाल फळाचे सुंदर चित्रण काव्यातून येते. वारा आणि थंडीची पर्वा न करणाऱ्या वारकऱ्याचे दर्शन त्यांच्या काव्यात घडते.

ठणी व सुगीच्या दिवसातील शेतकऱ्याची लगबग, कष्टमय जीवन हा त्यांच्या काव्याचा विषय. पण एवढाच त्यांच्या काव्याचा विषय नसून जीवनाकडे बघण्याचे स्पष्ट तत्त्वज्ञान हे त्यांच्यातील बुद्धिमान, तत्त्वज्ञानी, महाकवीची प्रतिभा असण्याची जाणीव होते.

त्यांच्या काव्यांचा आविष्कार सुभाषितांचा आणि आत्मा उपरोधी विनोदाचा आहे. ‘कशाला काय म्हणू नाही’ या सुभाषितातून ‘ज्यातून कापूस येत नाही त्याला बोंडू म्हणू नये’, ‘भुकेल्या पोटास निजवणारी रात्र नसते’. ‘दानासाठी आखडणारे ते हात नाहीत’, ‘इमानाला विसरणारा नेक नसतो’. ‘जन्मदात्यास भोवणारा लेक कसा’ ? ‘जिच्यात भाव नाही तिला भक्ती म्हणू नये’. यातून त्यांची भाषा आणि विचारांची श्रीमंती दिसते.

मन पाखरू पाखरू त्याची काय सांगू मात ? मन हे पाखरासारखे आहे. एका क्षणात जमिनीवरून आभाळात जाणार असा भाषा आणि विचारांचा सुरेख मेळ त्यांच्या काव्यात दिसून येतो.

जीवनाचे खरे रहस्य शुद्ध प्रेमात आहे. स्वार्थात नाही. माणसाने मतलबी होऊ नये. भुकेल्या पोटाला अन्न मिळावे म्हणून पिके ऊन, वारा, पाऊस सहन करत शेतात उभी असतात. माणूस स्वार्थी असून खोटेनाटे व्यवहार करतो. बोरीबाभळी उपकाराच्या भावनेतून शेताला काटेरी कुंपण करतात. पोट कितीही खाल्ले तरी शेवटी रिकामे राहणार आणि शरीरसुद्धा एक दिवस निघून जाणार, जे शिल्लक राहते ते हदयाचं नातं, शुद्ध आणि निःस्वार्थी प्रेम यापेक्षा वेगळं काय असणार?
बहिणाबाईंना सर्वाधिक चीड कशाची असेल तर ती माणसाच्या कृतघ्नपणाची, माणसांना संतापून त्या म्हणतात, माणसाला नियत नाही.

माणसापेक्षा गोठ्यातील जनावरे बरी, ती चारा खाऊन दूध देतात. माणसे उपकार विसरून जातात. कुत्रा इमानीपणाने वागतो, लोभामुळे माणूस काणूस म्हणजे पशू झाला आहे. स्वार्थाचा वणवा आज सर्वत्र पसरला आहे. माणूसे पशू होऊन एकमेकांशी भांडत आहेत. मानवता नष्ट होत चालली आहे. ‘मानसा, मानसा कधी व्हशीन मानस!’ मानवतेच्या कल्याणासाठी झटणाऱ्या संतमहात्म्याच्या अंत:करणातन हीच सल बाहेर पडत आहे. माणसाने माणूस कसे व्हायचे हा प्रश्न मानवजातीपुढे आहे. या समस्येचा साक्षात्कार बहिणाबाईना होतो ही त्यांच्या प्रतिभा सामर्थ्याची खरी ओळख आहे.

बहिणाबाईची चुलत सासू ‘भिवराई’ या विनोदी व नकलाकार होत्या. नाव ठेवून नक्कल करता करता सर्वांना हसविण्याची त्यांची पद्धत म्हणजे हसवून शहाणे करणे हा हेतू. यातून बहिणाबाईंच्या विनोदात उपरोध, सहानुभूती आणि मायेचा ओलावा दिसतो, बहिणाबाईंचे काव्य रचना व भाषेच्या दृष्टीने अत्यंत आधुनिक असून प्रत्येक काव्यात एक संपूर्ण घटना किंवा विचार आहे. थोडक्यात एखादी भावना जास्त प्रभावाने कशी व्यक्त करता येईल याकडे त्यांनी लक्ष दिलेले आहे. बहिणाबाईचे मराठी भाषेवरचे प्रभुत्व केवळ अद्भुतच आहे.

बहिणाबाईंनी आपल्या काव्यात रस आणि ध्वनीच्या दृष्टीने कुठेही ओढाताण किंवा विरस होणार नाही अशा कौशल्याने सोपे व सुंदर शब्द वापरले आहेत. त्यांच्या खानदेशी वहाडी भाषेने काव्याची लज्जत वाढविली आहे. ‘अशी कशी वेडी ग माये’, अशी कशी येळी माये, किंवा ‘पानी लौकीचं नित्तय त्याले अनीताची गोडी’. या भाषेत लडिवाळपणा भासतो.

मराठी मनास भुरळ घालील आणि स्तब्ध करून टाकील असे भाषेचे, विचारांचे आणि कल्पनेचे विलक्षण माधुर्य त्यांच्या काव्यात शिगोशीग भरलेले आहे. मानवतेला त्यांनी दिलेल्या ‘मानसा मानसा, कधी व्हशीन मानूस’ ! हया अमर संदेशाने तर मराठी साहित्यामध्ये त्यांचे स्थान अढळ करून ठेवलेले आहे.

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समानार्थी शब्द / पर्यायी शब्द :

  1. परिमळ – सुगंध – (fragrance).
  2. प्रतिभा – काव्य निर्माण करण्याची असलेली उपजत क्षमता – (intelligence, imaginative power).
  3. सोन्याची खाण – भरभराट, विपुल प्रमाणात, येहेर – विहिर – (well).
  4. चतकोर चोपड़ी – वही किंवा पुस्तकाचा काही भाग – (notebook).
  5. मोट – जुन्या काळी विहिरीतून पाणी काढण्याचे चामड्याचे एक साधन.
  6. अधाशी – हावरटपणा, एखादी गोष्ट आपल्यालाच मिळावी हा हेतू – (greedy).
  7. बावनकशी सोने – अत्युत्तम खरे सोने.
  8. कृतघ्न – उपकाराची जाणीव नसलेला – (ungrateful).
  9. काणूस – पशू – (animal)
  10. लपे – लपणे – (hide).
  11. अहिराणी भाषेत ‘ळ’ ऐवजी ‘य’ वापरतात.
  12. खेयता – खेळता.
  13. घरोटा – जातं.
  14. व्होट – ओठ – (lip).
  15. चुल्हया – चूल.
  16. फयं – फळ – (fruits).
  17. आभाय – आभाळ – (sky).

Marathi Yuvakbharati 11th Digest Text Book Solutions

Zadanchya Manat Jau Class 11 Marathi Chapter 4 Question Answer Maharashtra Board

11th Marathi Chapter 4 Exercise Question Answer Maharashtra Board

Balbharti Maharashtra State Board Marathi Yuvakbharati 11th Digest Chapter 4 झाडांच्या मनात जाऊ Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

झाडांच्या मनात जाऊ 11 वी मराठी स्वाध्याय प्रश्नांची उत्तरे

11th Marathi Digest Chapter 4 झाडांच्या मनात जाऊ Textbook Questions and Answers

कृती

1. अ. योग्य पर्याय निवडून वाक्ये पूर्ण करा.

प्रश्न 1.
पोपटी स्पंदनासाठी म्हणजे –
(अ) पोपटी पानात जाण्यासाठी
(आ) उत्साहाने सळसळण्यासाठी
(इ) पानांचे विचार घेण्यासाठी.
उत्तर :
पोपटी स्पंदनासाठी म्हणजे – पानांचे विचार घेण्यासाठी.

प्रश्न 2.
जन्माला अत्तर घालत म्हणजे –
(अ) दुसऱ्याला आनंद देत.
(आ) दुसऱ्याला उत्साही करत.
(इ) स्वसमर्पणातून दुसऱ्याला आनंद देत.
उत्तर :
जन्माला अलर घालत म्हणजे – स्वसमर्पणातून दुसऱ्याला आनंद देत.

Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 झाडांच्या मनात जाऊ

प्रश्न 3.
तो फाया कानी ठेवू ….. म्हणजे
(अ) सुंगधी वृत्ती जोपासू.
(आ) अत्तराचा स्प्रे मारू.
(इ) कानात अत्तर ठेव.
उत्तर :
तो फाया कानी ठेवू …. म्हणजे – सुंगधी वृत्ती जोपासू.

प्रश्न 4.
भिरभिरणारे तोरण दाराला आणून लावू …. म्हणजे
(अ) दारांना तोरणाने सजवू..
(आ) दाराला हलतेफुलते तोरण लावू.
(इ) निसर्गाच्या संगतीत स्वत:चे जीवन आनंदी करू.
उत्तर :
भिरभिरणारे तोरण दाराला आणून लावू…. म्हणजे – निसर्गाच्या संगतीत स्वत:चे जीवन आनंदी करू,

प्रश्न 5.
मी झाड होऊन तेथे, पसरीन आपुले बाहू….. म्हणजे –
(अ) निसर्गाचाच एक घटक होऊन सर्वांना भेटेन.
(आ) झाड होऊन फांदया पसरीन,
(इ) झाड होऊन सावली देईन.
उत्तर:
मी झाड होऊन तेथे, पसरीन आपुले वाहू …. म्हणजे – निसर्गाचाच एक घटक होऊन सर्वांना भेटेन.

आ. खालील कृतींतून मिळणारा संदेश कवितेच्या आधारे लिहा.

प्रश्न 1.
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 झाडांच्या मनात जाऊ 1
उत्तर:

निसर्गातील घटकांच्या सोबतीने केलेली कृतीसूचित होणारा अर्थ
1. कोकिळ होऊनी गाऊसमरसतेने जीवन जगू
2. गाण्यात ऋतूच्या आपण चल खळाळून रे वाहूजीवनाचा आनंद लुटू

2. अ. खालील काव्यपंक्तींचा तुम्हांला समजलेला अर्थ स्पष्ट करा.

प्रश्न 1.
झाडांच्या मनात जाऊ, पानांचे विचार होऊ ……….
उत्तर :
झाडांच्या मनात जाऊ, पानांचे विचार होऊ ……..
निसर्गाच्या कुशीत जाऊन त्यांचे विचार जाणण्याचा प्रयत्न करू, झाड हे मनुष्यरूपी प्रतिमा घेतली तर माणसांच्या मनात शिरून त्यांचे विचार ऐकू, जाणून घेऊ म्हणजे मतभेद कमी होतील.

Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 झाडांच्या मनात जाऊ

प्रश्न 2.
हातात ऊन डुचमळते नि सूर्य लागतो पोहू ……….
उत्तर :
हातात ऊन दुचमळते नि सूर्य लागतो पोहू ………
आपल्या ओंजळीत असणारे दुसऱ्याच्या हातात देताना मन कातर होतं आणि आपलं अंतरंग त्यात दिसू लागतं.

आ. खालील तक्ता पूर्ण करा.

प्रश्न 1.
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 झाडांच्या मनात जाऊ 2
उत्तर:
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 झाडांच्या मनात जाऊ 3

3. काव्यसौंदर्य

प्रश्न अ.
‘पोपटी स्पंदनासाठी, कोकिळ होऊन गाऊ’ या काव्यपंक्तींतील अर्थसौंदर्य स्पष्ट करा.
उत्तर :
कवी नलेश पाटील यांना झाड व्हायचे आहे. झाडांच्या मनात शिरून, पानांच्या मनातील विचार समजून घ्यायचे आहेत. हे म्हणजेच माणूस म्हणून जगताना दुसऱ्या (झाडाच्या) माणसाच्या मनात पोहोचून त्यांचे विचार जाणून घ्यायचे आहेत. हे पोपटी स्पंदनासाठी करायचे आहे. म्हणजे चांगल्या नात्यांसाठी हा हिरवेपणा जपायचा आहे. म्हणजे आयुष्याचे सुरेल गाणे गाता येऊ शकते. इथे पोपटी स्पंदन ही रंगप्रतिमा वापरली आहे.

प्रश्न आ.
ऊन आणि सावली यांच्या प्रतीकांतून सूचित होणारा आशय कवितेच्या आधारे लिहा.
उत्तर :
ऊन आणि सावली हा निसर्गाचा प्रकाशखेळ असतो. वस्तूच्या ज्या बाजूने ऊन असते. त्याच्याविरुद्ध बाजूला त्या वस्तूची सावली पडत असते. झाडांच्या विविध आकाराच्या सावल्या आपल्याला दिसतात त्या त्यांच्यावर पडणाऱ्या ऊनामुळे. झाडांच्या पायापासून त्याची सावली दिसत असते. या कवीतेत कवी माणसाला झाड म्हणून संबोधतो. माणसालाही ऊन-सावली हे खेळ अनुभवायला लागतात. त्याच्या आयुष्यातील प्रखर प्रसंग, घटना उन्हासारखी दाहकता देतात. तर चांगल्या घटना सावलीसारखी माया, आसरा देतात. सावली जरी उन्हामुळे पडत असली तरी उन्हावरच ती स्वत:ची नक्षी कोरत असते. उन्हालाही शीतलता देण्याचा यत्न करते.

प्रश्न इ.
‘डोळ्यातं झऱ्याचे पाणी’ या शब्दसमूहातील भावसौंदर्य उलगडून लिहा.
उत्तर :
जल, वायू, पृथ्वी, आकाश, भूमी ही आपली पंचतत्त्वे आहेत. यांच्याशिवाय आपण जगू शकत नाही. यातील जलतत्त्व हे 70% ने व्यापलेले आहे. या जलाशिवाय जीवन अपूर्ण आहे. आपल्या जीवनात आनंदाच्या वा अतीव दुःखाच्या प्रसंगी डोळ्यात पाणीच व्यापून राहते. अन्यातील खळाळते पाणी तृष्णा भागवते पण तेच पाण्याचे रूप डोळ्यात दाटून आले की दुःखद भावना प्रकट करते.

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4. अभिव्यक्ती :

प्रश्न अ.
तुम्ही ‘झाडांच्या मनात शिरला आहात’ अशी कल्पना करून ते कल्पनाचित्र शब्दबद्ध करा.
उत्तर :
सर्वांना विसावा, आधार देणाऱ्या झाडांच्या मनात मी शिरलो आणि मी मला मिळालेल्या मनुष्य जन्माची खंत करू लागलो. झाड कसं जन्माला येतं ते तुम्हालाही माहीत आहेच, बीजाला कोंब फुटले की त्याचा जन्म होतो. त्याच्या बाल्यावस्थेची ती अवस्था फार लोभसवाणी असते. अंकुरित झालेल्या बियाण्यांमधून ते नवीन जन्माला सुरुवात करत असते. तेव्हाच ते दोन्ही पाकळ्या मिटून बंदन करून जन्माला येते.

निसर्गाकडून मिळणाऱ्या सर्वच गोष्टींबद्दल कृतज्ञता व्यक्त करण्याचा त्याचा सदैव भाव असतो. माझे ‘मी’ पण त्याचे कधीच तो दाखवत नाही. निसर्गातीलच ऊन, वारा, पाकस यांच्यावर तो वाचत असतो. पाणी मिळवण्यासाठी त्याची मूळे खोलखोलवर जमिनीत शिरतात. पण हे पाणी मिळालं आहे त्या पाण्याचे उपकारही लक्षात ठेवतात, म्हणूनच झाडं जिथे जास्त तिथे पावसाचे प्रमाण जास्त असतं. निसर्गातील सर्वच घटकांबद्दल त्याच्या मनात आत्मीयता असते. विहार करणारे पक्षी, त्यांची घरटी, पिलावळ यांचे ते घर असते.

अनेकांना सामावून घेऊन इतरांना आनंद देत स्वतः आनंदी राहणं हे झाडापेक्षा दुसऱ्या कुणालाच कळलं नाही. आपल्यात जे जे आहे ते ते दुसऱ्याला दयावं ही किमया त्यालाच साधली आहे. वातावरणातील अशुद्धता आपल्यात घेऊन शुद्ध वातावरण ठेवताना त्याचाही कस लागतो पण विनातक्रार काम करताना ते दिसतं, आपला जन्मच इतरांसाठी आहे हे कधीही ते विसरत नाही म्हणून झाडं जे काही देतात त्यामुळे आपण परिपूर्ण होतो. आपल्या मानवाची झोळी मात्र दुबळी आहे.

प्रश्न आ.
निसर्गातील घटक व मानवी जीवन यांचा परस्परसंबंध स्पष्ट करा.
उत्तर :
निसर्ग ज्या पद्धतीने मानवाला सर्वकाही देत असतो त्याचे मोजमाप कधीच करता येणार नाही. मानवी जीवनच मुळी निसर्गातील पंचतत्त्वांवर आधारलेलं आहे. भूमी, वायू, जल, आकाश, अग्नी या पंचतत्त्वांशिवाय आपण अपूर्ण आहोत. मानवाने आपल्या बुद्धीच्या बळावर या पंचतत्त्वांचा वापर करून स्वत:चे जीवन सुखकर केलं पण तरीही तो परिपूर्ण होऊ शकला नाही.

कारण मुळातच तो परावलंबी आहे. पण त्याला हे अजून समजलेच नाही आहे. ज्या पृथ्वीवर. भमीवर आपण राहतो त्या भूमीवर जर पृथ्वीच्या पोटातील लाव्हारस बाहेर पडू लागला तर? अथवा सतत भूकंप होऊ लागले तर? मानव या पृथ्वीवर राहूच शकणार नाही. वाऱ्याचा वेग वाढला आणि त्याने वादळ निर्माण झाले तर मानव कुठेच स्थिर राहू शकणार नाही.

अग्नीरूपी, वणवा जर जंगलातून पेट घेऊ लागला, भूमीतून बाहेर ज्वालामुखीच्या रूपाने बाहेर पडू लागला तर मानव असहाय्य होईल. पृथ्वीवर असलेले जलसाठे तसंच पाऊस यांनी भयंकर रूप धारण केले तर ….. मानवाचे अस्तित्व नष्ट होईल. आकाशातील सूर्य, चंद्र, तारे यांचे अस्तित्व नसेल तर दिवस-रात्र, ऋतू या सर्वांवरच परिणाम होईल. याच बरोबरीने जलचर, उभयचर, भूचर या चरांवरती प्राणी-पक्षीही महत्त्वाचे आहेत. निसर्गातूनच मानवाची सौंदर्यदृष्टी विकसित झाली. संगीत, रूपरस, गंध, स्पर्श यांचे ज्ञान निसर्गामधूनच मानवाला मिळाले आहे. म्हणून निसर्गातील प्रत्येक घटकांवर मानवी जीवन अवलंबून असलेले दिसते.

Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 झाडांच्या मनात जाऊ

5. ‘झाडांच्या मनात जाऊ’ या कवितेचे रसग्रहण करा.

प्रश्न 1.
‘झाडांच्या मनात जाऊ’ या कवितेचे रसग्रहण करा.
उत्तर:
कवी नलेश पाटील हे निसर्ग कवी म्हणून ओळखले जातात. त्यांच्या कवितेत निसर्ग, त्याच्या रंगरूपासह अवतरतो. निसर्गातील अनेक गोष्टी मानवाला केवळ आनंद देत असतात. त्याची देण्याची अमर्याद शक्ती आहे. निसर्गाच्या या शक्तीला आपण ओळखलं की आपण त्याच्याशी एकरूप होत जातो, कवी निसर्गाकडून अनेक गोष्टींचा आनंद घेत जगत आहे. झाडांच्या मनात जाऊ या कवितेत कवी या निसर्गातील अनेक गोष्टींचे वर्णन करून आपल्याला त्याच्या ताकदीचे दर्शन घडवत आहे.

झाडांच्या मनात जाऊन कवीला त्याच्या फांदयांवर असणारी पाने आहेत. त्यांच्या मनापर्यंत पोहोचवायचे आहे. झाडांचे असलेली पोपटी श्वास त्याला आपलेसे करायचेत आणि त्या झाडावर असलेल्या कोकिळेसारखे सुरेख सुरेल गाणे गायचे आहे. वसंतातील बहरामध्ये तो सावळ्या कोकिळेचा सूर ऐकत ऐकत मनाला रिझबू. वसंत ऋतूमध्ये झाडांना आलेला बहर हा विविध रंगांच्या फुलांचा आहे. त्या फुलांमधील सुगंध सर्वत्र पसरल्यामुळे मन आनंदी झालं आहे. नैसर्गिक फुलांचा गंध जणू काही आपल्या जन्माला अत्तर मिळालं आहे असं कवीला वाटतं. त्या कोकिळेच्या सरासोबत गाणं गात अत्तराचा फाया कानी ठेवन, आपले जगणे आनंदी करावे असं कवीला वाटते.

बागेत, रानात अनेक फुलपाखरे आहेत, त्याच्या पंखांवर विविध त-हेचे रंग आहेत, ते पाहून जणू काही ते निसर्गपंचमी खेळून आले आहेत असे कवीला वाटते. विविध फुलांवर बसलेली ही फुलपाखरे त्याचा रंग आपल्यावर धारण करतात की काय असं वाटू लागतं. त्या फुलपाखरांचा थवा सर्वत्र फिरताना दिसत आहे. हे तोरण रानावनात सर्वत्र भिरभिरत आहे. हे तोरण आपल्या दाराला लावण्याची तीव्र इच्छा कवीला होत आहे, त्या फुलपाखरांच्या पंखांना पताका ही उपमा फार सजगतेने वापरली आहे.

हा तर उत्सव आहे या पाखरांचा, त्या पाखरांच्या थव्याचे तोरण आपल्या दाराला लावावे म्हणजेच आपल्या दारीसुद्धा हा उत्सव साजरा व्हावा असं कवीला वाटत आहे. रानातील झरे निर्मळपणे वाहत आहेत. ते पाणी अश्रू बनूनही एखादयाच्या डोळ्यात उतरते. दोन्ही ठिकाणी पाण्याचीच रूपे आहेत. पण एक आहे ते निर्मळपणाने वाहत आहे. तर दुसरे पाणी कुणाच्या तरी करणीने डोळ्यात उतरले आहे. झऱ्याच्या पाण्याचा खळखळाट ऐकून कवीला असं वाटतेय की हे पाणी आनंदाचे गीत गात आहे. अथवा देवाघरची गाणी गात आहे. या गाण्याच्या ऋतूमध्ये आपणही खळाळत वाहत जाऊ, कोणतेही पाश न ठेवता वाहत जाणं, प्रवाही होणं हे कवीला सुंदर वाटत आहे.

कवी हे खळाळते पाणी पाहून खुश होतो आणि अलगद त्याचे मन त्या पाण्यातील एका खडकावर जाऊन बसते. ही कल्पनाच किती संदर आहे. मन पाण्याचा भाग होऊन खडकावर जाऊन बसतं आणि मग जे पाणी खळाळते होते तेच पाणी थई थई नाचताना दिसते. हा कवीच्या तरल मनाचा आणखी एक अविष्कार दिसतो की सुरेल गाण्याची लकेर होऊन त्याचे मन पाण्यात बसते आणि मग ते पाणी नाचतानाही दिसते. त्या मनमुक्त नाचण्याचा आनंद घेत असताना एक तुषाराचे रोप म्हणजेच खडकांवर पडणारे पाणी कवीच्या अंगावर पडून स्वत:च्या मायेची पखरण करत आहे, त्याला न्हाऊ घालत आहे.

आदिमानवाच्या काळापासून आपण पंचमहाभूतांना प्रमाण मानून त्यांची पूजा करत आलो आहोत. हेच तत्त्व कवी कवितेत दाखवून म्हणत आहे आकाशतत्त्व मी ऑजळीत जरासे धरले. ते ही जरासे कारण आकाश विस्तीर्ण आहे ते ऑजळीत मावू शकणार नाही, आपली तेवढी कुवत नाही, पण या आकाशाला ओंजळीत धरून अवघ्या पाण्याला सूजनत्व देण्याकरता त्या पाण्याचीच ओटी आकाशाने भरली. ओटी भरणं हे सृजनशीलता आहे, ती ओटी भरताना आकाशातील ऊन हातात दुचमळते आणि सूर्य त्यात पोहायला लागतो, म्हणजे आकाशासमवेत त्याची ही बिंबसुद्धा त्या पाण्यासोबत विलीन होतात.

हे फांदीवरील पक्षी त्यांना बदलणारा ऋतू कळतो, बदललेली हवा कळते, सृष्टीतले सूक्ष्म बदल कळतात कारण ते हा हंगाम जगतात. ते स्या हंगामात खरे साक्षीदार आहेत. झाडांच्या बुंध्याशी जी सावली हलत असते ती इतकी जिंवत असते की जणू ती सावली आपल्या रूपातून स्वतःला नव्हे तर उन्हाला उजाळा देत असते. सावल्यांमधून दिसणारे ऊन हे सावलीत अभावाने दिसणारे ऊन नव्हे तर सावलीत मुद्दामहून काढलेली नक्षी आहे आणि झाडावर दिसणारे कावळे हे या काळ्या सावलीलाच सावलीचे काळे पंख फुटून तयार झालेले कावळे आहेत. कावळ्यांचा जन्म निर्माणाचा हा वेगळाच काव्यात्मक अनुबंध शोधला गेलाय. अशा रूपकांसाठीच नलेश पाटील लोकप्रिय होते.

निसर्गाच्या अस्तित्वाचे असे वेगळे विभ्रम ही कवी नलेश यांच्या कवितेची ओळख आहे. एका सच्चा चित्रकाराने निसर्गाकडे किती काव्यात्मक नजरेने पाहावे याचा वस्तुपाठ म्हणजे नलेश यांची कविता. कवी शेवटी म्हणतो की मानवी स्पर्श जिथे नसतील, फुलपाखरांची संगत लाभेल अशा रानात ईश्वर मला तू टाक, माझे बाहू पसरून मी झाड होऊन जगेन, माझे जगणे केवळ सृष्टीमय होऊन जाईल. मला स्वतःला बहर येईल, या शब्दांतील एकावेळी कोणतेही एक अक्षर बदलून नवीन अर्थपूर्ण शब्द तयार करा. नवीन शब्दातील एक अक्षर बदलून नवीन अर्थपूर्ण शब्द तयार करा, शेवटच्या टप्यापर्यंत कमीत कमी शब्दांत पोहोचा.
उदा. सुंदर-घायाळ
सुंदर – आदर – आदळ – आयाळ – घायाळ

  • डोंगर – …… …… ….. अंबर
  • शारदा – ………………………….. पुराण
  • परात – …………… कानात
  • आदर – ………… पहाट
  • साखर – …………. नगर

उत्तर :

  • डोंगर – आगर – मगर – अंधार – अंबर
  • शारदा – वरदा – वरण – पुरण – पुराण
  • परात – वरात – रानात – नादात – कानात
  • आदर – पदर – पहार – रहाट – पहाट
  • साखर – खजूर – मजूर – मगर – नगर

11th Marathi Book Answers Chapter 4 झाडांच्या मनात जाऊ Additional Important Questions and Answers

खालील पठित पदय पंक्तींच्या आधारे सूचनेनुसार कृती करा.

चौकट पूर्ण करा.

प्रश्न 1.

  1. फाया ठेवण्याची जागा –
  2. हा पक्षी होऊन गायचे आहे –
  3. रंगपंचमी खेळून हे भिजले –
  4. तोरण लावण्याची जागा –

उत्तर:

  1. कान
  2. कोकिळ
  3. फुलपाखरू
  4. दार

योग्य पर्याय निवडा.

प्रश्न 1.

  1. बहरात वसंतमधल्या तो सूर (सावळा / बावळा / कावळा) ऐकत.
  2. हा थवा असे (रंगीत / संगीत / मनगीत / पताकाच फिरणारी.
  3. हे उधाण (दुःखाचे / भीतीचे / आनंदाचे) ही देवाघरची गाणी.

उत्तर :

  1. सावळा
  2. रंगीत
  3. आनंदाचे

अभिव्यक्ती :

प्रश्न 1.
खेळून रंगपंचमी, फुलपाखरे भिजली सारी
हा थवा असे रंगीत की पताकाच फिरणारी
या ओळीतील आशयसौन्दर्य स्पष्ट करा.
उत्तर :
कवी नलेश पाटील यांच्या ‘झाडांच्या मनात जाऊ’ या कवितेत कवी निसर्गापासून माणूस कसा आनंद घेऊ शकतो ते सांगण्याचा प्रयत्न करत आहे. फुलपाखरे ही निसर्गाचाच भाग, किती विविधतेने नटलेली असतात, अनेक रंग त्यांच्या पंखावर असतात. अल्प आयुष्य जरी असले तरी ते भिरभिरत जगताना दिसतात, कवी त्याच्या सौंदर्याकडे आकृष्ट होतो. त्याला वाटते की निसर्ग किंती वेगळ्या शता भिरभिम लागला की जण पताकाच फिरत आहेत असे वाटते. निसर्गाची विविध रंगरूपे असतात, त्यांना समजून घेऊन आयुष्याची संदर रंगपंचमी खेळता येऊ शकते. त्याकरता माणसाला समजन घेणं महत्त्वाचे आहे.

प्रश्न 2.
निसर्गातील एखादया घटकाकडून तुम्हांला शिकायला मिळाले त्या घटकाबद्दल तुमचे मत स्पष्ट करा.
उत्तर :
कवी नलेश पाटील यांच्या कवितेची शिकवण पाहता पाहता मी निसर्गाकडे वेगळ्या दृष्टीने पाहू लागलो. मला निसर्ग आवडतो. तो भरभरून आपल्याला देत असतो. त्यातल्या त्यात मी पृथ्वीकडून किती गोष्टी शिकण्यासारख्या आहेत हे पाहू लागलो. आपल्या अखंड मानव जातीचा भार ती उचलत आहे. मानवाने किती प्रगती केली, आदिमानवापासून ते आतापर्यंत त्याने केलेली प्रगती ही केवळ पृथ्वीच्या सहनशक्तीमुळे झालेली आहे असं मला वाटतं, इतक्या इमारती, इतकी वाहतूक त्याकरता पृथ्वीच्या गर्भाशयावर आपण सतत हल्ले करत असतो. तरी ती आपल्याला माफ करते. झीज सोसत राहते.

अनेकदा तिला आपण अस्वच्छ करत असतो तरी ती मूकपणे सारे सहन करते. तिचे स्वच्छता अभियान सुरू करतो. पण ते सुद्धा नीट पाळत नाही. तीन उन्हामुळे जमिनीची लाही लाही होते. ते आपण सहन करू शकत नाही पण पृथ्वी त्यालाही सामोरी जाते, तिच्या मनात खदखदणारा ज्वालामुखी सहन करत ती संयम ठेवून आपल्याला आधार देण्याचा प्रयत्न करत असते. ती अनेक गोष्टी आपल्या पोटात घेऊ शकते. ती सर्वांचा आधार असते. आपण तिच्यासाठी नेहमी कृतज्ञता बाळगायला हवी असे मला वाटते.

Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 झाडांच्या मनात जाऊ

झाडांच्या मनात जाऊ Summary in Marathi

प्रस्तावनाः

पालघर येथे जन्माला आलेले कवी नलेश पाटील हे इंग्रजी माध्यमात शिकूनही त्यांचा मराठीचा गाढा अभ्यास होता. मुंबईतील जे. जे. । इन्स्टिट्यूट ऑफ अप्लाइड आर्ट मध्ये त्यांचे शिक्षण झाले. ‘कवितेच्या गावा जावे’ या कवितेच्या कार्यक्रमात त्यांची विशेष ओळख समाजमानसात तयार झाली. ‘टूरदूर’, ‘हमाल दे धमाल’ या चित्रपटांसाठी त्यांनी गीत रचना केली. ‘हिरवं भान’ हा त्यांचा कवितासंग्रह, ‘नक्षत्रांचे देणे’ या दूरचित्रवाणीवरील कार्यक्रमातही त्यांच्या कविता गायल्या गेल्या.

गावात बालपण गेलेले त्यात नंतरच्या काळात रंगांची मिळालेली सोबत यांमुळे निसर्गाच्या विविध रंगप्रतिमा त्यांच्या काव्यात सापडतात. शब्द, लय, नाद, अर्थ यांचा विविधांगी प्रयोग त्यांनी आपल्या काव्यात केला. शब्दांतून चित्रमय मांडणी करणे यात त्यांचा हातखंडा आहे.

कवितेचा आशय:

निसर्ग आणि आपण एकमेकांशी इतके जोडले गेलो आहोत की एकमेकांपासून आपली ताटातूट होऊ शकत नाही. निसर्ग आपल्यावर अवलंबून नाही पण आपण मात्र क्षणाक्षणाला निसर्गावर अवलंबून आहोत. मानवाने स्वत:ची उत्क्रांती केली ती निसर्ग शिक्षणातूनच. हे नैसर्गिक शिक्षण त्याला त्याच्या संवेदनांपर्यंत पोहोचवतं. त्याच्या मनाला, विचारांना चालना देतं. कवीला या निसर्गाची नितांत ओढ आहे. त्याच्या प्रत्येक सोहळ्याशी तादात्म्य होण्याची उत्सुकता आहे. म्हणून निसर्गाच्या विविध रूपांचे दर्शन कवी या कवितेतून रेखाटतो.

त्याला वाटते झाडांच्या मनात जाऊन त्यांच्यावरील पानांचे विचार व्हावे. झाडांनाही मन असते. ते त्याच्या पानरूपी कृतीतून तो प्रकट करतो असं त्याला वाटतं. या झाडाचा पोपटी रंग आपल्या श्वासात उतरावा याकरता त्याला त्याच्या श्वासात उतरावे असे वाटते. त्यासाठी आपण कोकिळ व्हावं असं त्याला वाटते, वसंतरूपी बहर आला की कोकिळ गाऊ लागतो. तो निसर्गाचेच जणू गीत गातो. आपल्याला सुद्धा निसर्गगीत गायचे असेल तर कोकिळ व्हावे लागेल.

वसंतातील बहर फुलत जातो. सावळ्या रंगाचा कोकिळ त्याचा सूर लावत जातो. वसंतात अनंत फुले फुलून येतात त्या फुलांचा गंध सर्वत्र पसरत जातो. अनेक जन्मांना त्यांचे अत्तर पुनरुज्जीवन देत असते. या पाखरांच्या, रानाच्या सुराबरोबर आपण त्या सुगंधी अत्तराचा फाया कानामध्ये ठेवू. त्यामुळे आपलेही जगणे सुगंधी, सुरेल होईल.

बागेत, रानात फिरणारी भिरभिरणारी फुलपाखरे पाहून कवीला वाटते की ही फुलपाखरे जणू काही रंगपंचमीच खेळून बाहेर पडली आहेत. या फुलपाखरांचे विविध रंग कवीला आकषून घेतात. या फुलपाखरांचा थवा उडत असताना त्यांच्या भिरभिरत्या पंखांमुळे या हलणाऱ्या पताकाच आहेत असे कवीला वाटते. हे छान रंगीबेरंगी तोरण दाराला आणून लावावे असा मोह कवीला फुलपाखरांच्या रंगांकडे पाहून होतो.

रानातील झरे निर्मळपणे वाहत असतात, त्यांच्या वाहण्यातच संगीत असतं. हे झरे जणू काही परमेश्वराचे डोळे आहेत असं कवीला वाटतं. या डोळ्यात झऱ्याचे पाणी भरभरून वाहत आहे. हा आनंद आहे की देवाने आपल्याकरता पाठवलेली गाणी आहेत असा प्रश्न कवीला पडतो. या झयाच्या गाण्याच्या ऋतूत आपणही खळाळत जाऊ, या प्रवाहात एकरूप होऊ आणि पाण्यासारखे निर्मळ राहू असं कवीला वाटतं.

पाण्याशी एकरूप होताना कवीचं मन तिथल्याच एका खडकावर बसून जातं. आजूबाजूला असणारी कारंजी मनसोक्तपणे थुईथुई करत आनंद घेताना दिसतात. यातील हे कारंज्याचे रोप कवीवर आपले तृषार उडवून त्याला न्हाऊ घालण्याचा प्रयत्न करीत आहेत.

या निसर्गाशी एकरूप होता होता कवी अलगद आपल्या ओंजळीमध्ये आकाश धरू पाहतो. या आकाशाला ओंजळीत घेऊन कवी अवघ्या पाण्याची ओटी भरतो तर हातात ऊन येऊन बसते, डुचमळते आणि त्या पाणभरल्या ओंजळीत सूर्याचे प्रतिबिंब पोहायला लागते. असा पाणी, प्रकाशाचा खेळ निसर्गात राहूनच अनुभवता येतो.

निसर्गातील विविध रंगांचे पक्षी तरी किती? या पक्ष्यांचासुद्धा हंगाम असतो. त्या हंगामात ते ते पक्षी आपल्याला दर्शन देतात. हे पक्षी झाडांवर रमतात. त्याच्या बुंध्यात, खोडात आपले अस्तित्व दाखवतात. झाडांच्या सावल्या इतरत्र पसरलेल्या पाहन त्या उन्हावर जण नक्षी काढत आहेत. असं कवीला वाटतं. मग या झाडांवर बसलेले काऊ, चिऊ उडू लागले की ते सावलीतुनहीं प्रकट होतात, दिसू लागतात ते पाहून कवीला वाटतं की या सावल्यांनाच जणू पंख फुटले आहेत. या सुंदर निसर्गात रमता रमता कवीला वाटतं की जिथे मानवी स्पर्श होणार नाही, खूप फुलपाखरं जिथं असतील अशा रानात हे परमेश्वरा मला झाड बनून जन्माला घाल, तिथे मी माझे बाहू पसरून बसेन आणि या सृष्टीचा एक भाग होऊन त्यासवे जगण्याचे गीत गाईन.

Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 झाडांच्या मनात जाऊ

समानार्थी शब्द / पर्यायी शब्द :

  • स्पंदन – श्वास – (breathing, breath).
  • फाया – अत्तर लावलेला कापसाचा बोळा, अत्तराचा अंश – (fragrant, essence).
  • पताका – ध्याना – (lag).
  • करणी – कृत्य, कृती, क्रिया – (act).
  • तुषार – पाण्याचे फवारे (spray of water) – कारंजाचे पाणी.
  • डुचमळते – हलते.
  • खडक – दगड – (hard stone / rock).
  • नक्षी – वेलबुट्टी – (design, decoration).

Marathi Yuvakbharati 11th Digest Text Book Solutions

Ashi Pustak Class 11 Marathi Chapter 3 Question Answer Maharashtra Board

11th Marathi Chapter 3 Exercise Question Answer Maharashtra Board

Balbharti Maharashtra State Board Marathi Yuvakbharati 11th Digest Chapter 3 अशी पुस्तकं Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

अशी पुस्तकं 11 वी मराठी स्वाध्याय प्रश्नांची उत्तरे

11th Marathi Digest Chapter 3 अशी पुस्तकं Textbook Questions and Answers

कृती

1. अ. तुलना करा.

प्रश्न 1.
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 अशी पुस्तकं 1
उत्तर :

‘पुस्तकरूपी’ मित्र‘मानवी’ मित्र
उत्तेजक, आनंददायीमित्र दुरावतात.
प्रेम, भावना, विचारांनी ओसंडणारंमित्रांना कधी कधी प्रेमाची विस्मृती होते.
विशाल अंत:करण, निःस्वार्थीपणावैर, स्वार्थीपणा या भावनेत अडकतात.
उत्कट अनुभूती देणारेविश्वासघातकी असतात.

Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 अशी पुस्तकं

आ. कारणे लिहा.

प्रश्न अ.
ग्रंथप्रेमीने पुस्तक देताना केलेल्या सूचना लेखकाला अपमानकारक वाटल्या नाहीत, कारण……….
उत्तर :
लेखक हा ग्रंथप्रेमी वाचकाप्रमाणे पुस्तकांवर मनापासून प्रेम करणारा आहे. त्यामुळे पुस्तकांची हेळसांड करणारे, पुस्तकांकडे व्यवहारी दृष्टीने पाहणारे लोक यांच्याविषयी लेखकालाही चीड आहे. तोही ग्रंथप्रेमी वाचकाप्रमाणे गंथांना आपल्या कपाटात जिवापाड जपून ठेवतो. म्हणून ग्रंथप्रेमीने पुस्तक देताना केलेल्या सूचना लेखकाला अपमानकारक वाटल्या नाहीत.

प्रश्न आ.
प्रत्यक्ष परमेश्वर आला तरी त्याला पुस्तक दयायचं नाही असा पुस्तकप्रेमीने निश्चय केला कारण …
उत्तर :
पुस्तक प्रेमीने अतिशय प्रेमाने, जिवापाड जपलेली दोन कवितेची पुस्तकं एका कवीला वाचण्यासाठी दिली. पण पंधरा दिवस झाले तरी त्याने ती पुस्तके परत केली नाहीत. उलट मी ती पुस्तके नेलीच नाहीत. असा कांगावा त्याने केला. या कटू अनुभवामुळे प्रत्यक्ष परमेश्वर आला तरी त्याला पुस्तक दयायचं नाही असा निश्चय पुस्तकप्रेमीने केला.

प्रश्न इ.
रसिकतेचा आणि वयाचा संबंध जोडणं हेच अरसिकपणाचं आहेट कारण…..
उत्तर :
रसिकता ही एक वृत्ती आहे. त्यामुळे तिचं अस्तित्व हे वयावर नव्हे तर मनावर अवलंबून असते. कलात्मक-आशयामधून साहित्य आपल्याला समृद्ध करतं. आपल्या जाणिवा त्यामुळे विस्तारतात, वैचारिक क्षमता वाढतात. रसमय पुस्तकांमुळे चित्तवृत्ती प्रसन्न होतात. या सर्व भावनेचा अनुभव घेऊन आपली रसिकवृत्ती अधिक बहरते. पुस्तके माणसाला कलात्मक आनंद देतात. माणसाच्या मनाला ताजेतवाने करतात. हा अनुभव कोणत्याही वयात घेता येतो. कारण वाचन संस्कृती ही कालातीत आहे. तिला वेळ-काळ-स्थळ-वय यांचे बंधन नाही म्हणूनच रसिकतेचा आणि वयाचा संबंध जोडणं हेच अरसिक आहे.

इ. कृती करा.

प्रश्न 1.
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 अशी पुस्तकं 2
उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 अशी पुस्तकं 5

प्रश्न 2.
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 अशी पुस्तकं 3
उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 अशी पुस्तकं 6

2. अर्थ स्पष्ट करा.

प्रश्न अ.
दुधाने तोंड पोळल्याने ताक कुंकून पिणे
उत्तर :
दुधाने तोंड पोळल्याने ताक कुंकून पिणे – एका वाईट अनुभवामुळे दुसऱ्या तशाच प्रकारच्या अनुभवाला सामोरे जाताना, प्रत्येक बाबतीत सावधगिरी बाळगणे.

Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 अशी पुस्तकं

प्रश्न आ.
पुस्तकाला माहेरी आल्यासारखं वाटणे .
उत्तर :
पुस्तकाला माहेरी आल्यासारखं वाटणे – आईच्या घरी आल्यासारखे वाटणे.

3. व्याकरण :

अ. सूचनेनुसार सोडवा.

प्रश्न 1.
‘चवदार’ सारखे शब्द लिहा. …………… ………… …………….. …………..
उत्तर :
धारदार, फौजदार, डौलदार, लज्जतदार

प्रश्न 2.
जसे विफलताचे वैफल्य, तसे –
अ. सफलता → ……….
आ. कुशलता → ……….
इ. निपुणता → ……….
उत्तर :
अ. सफलता → साफल्य
आ. कुशलता → कौशल्य
इ. निपुणता → नैपुण्य

आ. शब्दाच्या शेवटी ‘क’ असलेले चार शब्द लिहा. उदा. ‘उत्तेजक’

प्रश्न आ.
शब्दाच्या शेवटी ‘क’ असलेले चार शब्द लिहा. उदा. ‘उत्तेजक’
……… ……….. ……… ……….. ………..
उत्तर:
प्रोत्साहक, मारक, प्रायोजक, आयोजक, समन्वयक

Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 अशी पुस्तकं

इ. या शब्दगटातील विशेषणे ओळखा.

प्रश्न 1.
या शब्दगटातील विशेषणे ओळखा.
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 अशी पुस्तकं 4
उत्तर:
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 अशी पुस्तकं 7

4. स्वमत :

प्रश्न अ.
वैचारिक साहित्यातून मिळणारे वैशिष्ट्यपूर्ण अनुभव स्वभाषेत लिहा.
उत्तर:
‘अशी पुस्तकं’ या पाठाद्वारे लेखक डॉ. निर्मलकुमार फडकुले यांनी माणसाच्या जडणघडणीत पुस्तकांची भूमिका महत्त्वपूर्ण असते असे सांगितले आहे. पुस्तकांचे महत्त्व वर्णन करताना वैचारिक साहित्य हे मानवी मनाला नेहमी प्रेरणा देते असा व्यापक दृष्टिकोन लेखकाने येथे व्यक्त केला आहे. वैचारिक साहित्यातून मिळणारे अनुभव हे वैशिष्ट्यपूर्ण आणि प्रेरणादायी असतात. माणसाला जगण्याचे बळ देतात. मानवी जीवन आनंदी व अर्थपूर्ण कसं असावं हे पुस्तकं सांगतात.

वैचारिक साहित्याद्वारे विविध मूल्यांची शिकवण माणसाला मिळते. माणुसकी, न्याय, प्रतिकूल परिस्थितीवर मात करण्याची वृत्ती, समता, बंधुता, सहृदयता अशा विविध मूल्यांची शिकवण वैचारिक साहित्यामुळे माणसाला मिळते. माणसाचे मन व्यापक व उदार बनवण्यात वैचारिक साहित्याचा फार मोठा वाटा असतो, वैचारिक साहित्य हे प्रबोधनपर व मार्गदर्शनपर असते. वैचारिक साहित्यामुळे विचारांची पायाभरणी मजबूत होते. एकूणच मानवी जीवन अर्थपूर्ण, समृद्ध करण्यास वैचारिक साहित्य सहकार्य करते.

प्रश्न आ.
पुस्तकांविषयीचा लेखकाचा दृष्टिकोन तुमच्या शब्दांत लिहा.
उत्तर :
‘अशी पुस्तक’ या पाठातून डॉ. निर्मलकुमार फडकुले यांनी माणसाच्या जडणघडणीत पुस्तकांची भूमिका महत्त्वपूर्ण आहे असे सांगितले आहे. पुस्तक वाचनाचा व्यापक दृष्टिकोन लेखकाने व्यक्त केला आहे. पुस्तके ही माणसाची जगण्याची हिंमत वाढवतात. प्रेरणा देतात. पुस्तके ही मानवी जीवन आनंदी व अर्थपूर्ण करतात.

जगातील सर्वांत सुंदर वस्तू म्हणजे पुस्तक असा व्यापक दृष्टिकोन लेखकाचा आहे. आपल्याजवळ जे काही चांगलं आहे ते सगळं देण्याची वृत्ती पुस्तकांची असते. पुस्तके माणसाला भरभरून प्रेम देतात. लेखकाची पुस्तकांवर आत्यंतिक निष्ठा आहे. लेखकाच्या मते पुस्तके ही माणसाला जन्मभर भावनिक सोबत करतात, मनाला धीर देतात. जीवनाला नवचैतन्य देतात.

लेखकाच्या मते कोणतेही साहित्य हे नवे जुने नसते. पुस्तके ही नेहमी मनाला मंत्रमुग्ध करणारी, हसवणारी, रडवणारी, अंतरंगाला भिडणारी असतात, जगण्याचा अर्थ पुस्तकं सांगतात. एकूणच पुस्तकांचे महत्त्व वर्णन करताना पुस्तकांविषयीचा व्यापक दृष्टिकोन लेखकाने व्यक्त केला आहे.

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प्रश्न इ.
हेमिंग्वेचा जीवनविषयक दृष्टिकोन तुमच्या शब्दांत स्पष्ट करा.
उत्तर :
क्रूर नियती व दुर्बल परंतु महत्त्वाकांक्षी माणूस यांच्यामध्ये कधीही न संपणारे युद्ध वर्षानुवर्षे चालत आलेले आहे. जीवन एक संघर्ष आहे. नियती क्रूर आहे असं आपण अनेकवेळा म्हणतो ते अगदी खरं आहे. आज जगण्या-मरण्याचा खेळ अखंड चाललेला आहे. स्पर्धा प्रचंड वाढलेली आहे. मरणाच्या, संकटाच्या जाळ्यात आपण सापडायचं नाही. नियतीनं जाळ टाकलं तरी ते आपण तोडून, फेकून दयायचं आणि जीवनाच्या अथांग सागरात स्वैर संचार करायचा.

परिस्थितीशी झुंज देत आयुष्याचा आनंदाने उपभोग घ्यायचा असं प्रत्येकाला वाटतं पण घडतं वेगळंच, कारण निष्ठुर नियती आड येते. पण निष्ठुर नियती त्याला हुलकावण्या देत असली तरी, त्याच्या मार्गात अनेक संकटे, अडचणी निर्माण करत असली तरी एक क्षण असा येणार आहे की, दुर्बल वाटणारा माणूस नियतीचा पराभव करून विजयाच्या दिशेने घोडदौड करणार आहे. कारण दुर्दम्य विश्वास, आशा व संघर्ष करण्याची तयारी यांच्या बळावर माणूस नियतीशी कायमच लढत आला आहे.

अभिव्यक्ती :

प्रश्न अ.
उत्तम साहित्यकृती आपल्याला जन्मभर भावनिक सोबत करतात. हे विधान सोदाहरण स्पष्ट करा.
उत्तर :
‘अशी पुस्तकं’ या पाठातून लेखक डॉ.निर्मलकुमार फडकुले यांनी माणसाच्या जडणघडणीत पुस्तकांची भूमिका महत्त्वपूर्ण असुन उत्तम साहित्यकृती आपल्याला जन्मभर भावनिक सोबत करतात. अशी व्यापक भूमिका मांडली आहे. महात्मा गांधीजींची आत्मकथा, व्हिक्टर ह्यूगो आणि मून्शी प्रेमचंदांची कादंबरी, रवींद्रनाथ टागोरांची ‘गार्डनर’ व ‘गीतांजली’, शेक्सपिअरची नाटकं ‘संत तुकारामांचे अभंग’, ‘संस्कृत महाकवी’ कालिदासाचे मेघदूत, टॉलस्टॉपची ‘अॅना करनिना,’ जी.ए. कुलकर्णी यांच्या कथा, हेमिंग्वेचं ‘द ओल्ड मॅन अँड द सी’ अशा विविध प्रकारांच्या रसमय साहित्याशी माणसाचे नाते जोडले जाते. उत्तम साहित्य वाचनाने माणसांचा एकाकीपणा दूर होतो.

पुस्तकांच्या जगात शिरले की मनावरचे मळभ दूर होते. आयुष्यात आलेल्या दुःखमय प्रसंगात दुःखी, निराश विचार दूर करण्याचे तसेच मनातील अंधार दूर करून चैतन्य निर्माण करण्याचे काम पुस्तके करतात. पु.ल.देशपांडे यांच्या अनेक पुस्तकांनी वाचकांच्या मनावरील ताणतणाव कमी करून दुःख विसरायला लावून आपले आयुष्य हसरे केले आहे.

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प्रश्न आ.
निष्ठावंत वाचक आता दुर्मिळ झाले आहेत. हे विधान स्पष्ट करा.
उत्तर :
‘अशी पुस्तकं’ या पाठाद्वारे डॉ.निर्मलकुमार फडकुले यांनी पुस्तकांचे महत्त्व वर्णन करण्याबरोबर पुस्तक वाचनाचा व्यापक दृष्टिकोनही सांगितला आहे. लेखकाच्या मते जगातील सर्वात सुंदर वस्तू म्हणजे पुस्तकांवर आत्यंतिक प्रेम करणारी माणसं या जगात आहेत. पुस्तकांवर उदंड प्रेम करणारी माणसं दुसऱ्याला पुस्तकं देताना चिंतीत होतात.

पुस्तकांची हेळसांड करणारी, पुस्तकांकडे व्यवहारी दृष्टीने पाहणाऱ्या माणसांचा पुस्तकप्रेमी लोकांना राग येतो, पुस्तकप्रेमी माणसे पुस्तकांवर आपल्या अपत्याप्रमाणे (मुलांप्रमाणे) प्रेम करतात. अशा पुस्तक प्रेमी लोकांना वाचायला भरपूर ग्रंथ असले तर त्यांना जन्मठेपेची शिक्षासुद्धा आनंदमय वाटते, पुस्तकं नसतील तर राजवाडासुद्धा स्मशानासारखा वाटतो. अनेक प्रसिद्ध लेखकांची नावेही आजच्या तरुण पिढीला माहीत नाहीत. एकूणच पुस्तकांवर स्वतःच्या जीवापेक्षा उदंड प्रेम करणारे पुस्तकांवर निष्ठा, श्रद्धा असणारे वाचक आता फारच कमी होत चालले आहेत अशी खंत लेखकाने व्यक्त केली आहे.

 

शब्दसंपत्ती :

पुढील शब्दसमूहासाठी एक शब्द लिहा.

प्रश्न अ.
पंधरा दिवसांनी प्रकाशित होणारे : ………..
उत्तर:
पाक्षिक

प्रश्न आ.
ज्याला एकही शत्रू नाही असा : ………
उत्तर:
अजातशत्रु

प्रश्न इ.
मंदिराचा आतील भाग : ……….
उत्तर:
गाभारा

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प्रश्न ई.
गुडघ्यापर्यंत हात लांब असणारा : ………….
उत्तर:
आजानुबाहु

प्रश्न उ.
केलेले उपकार न जाणणारा : ……….
उत्तर:
कृतघ्न

प्रकल्प.

प्रश्न 1.
जी. ए. कुलकर्णी, भा. द. खेर, दुर्गा भागवत, व्यंकटेश माडगूळकर या साहित्यिकांची माहिती व यासंबंधीचे संदर्भसाहित्य वाङ्मय कोशातून शोधून लिहा.

11th Marathi Book Answers Chapter 3 अशी पुस्तकं Additional Important Questions and Answers

खालील पठित गदय उताऱ्याच्या आधारे दिलेल्या सुचनेनुसार कृती करा.

खालील कृती सोडवा.

प्रश्न 1.
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 अशी पुस्तकं 8
उत्तर:
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 अशी पुस्तकं 9

प्रश्न 2.
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 अशी पुस्तकं 10
उत्तर:
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 अशी पुस्तकं 11

प्रश्न 3.
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 अशी पुस्तकं 12
उत्तर:
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 अशी पुस्तकं 13

चौकट पूर्ण करा.

प्रश्न 1.
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 अशी पुस्तकं 14
उत्तर:
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 अशी पुस्तकं 15

परिणाम लिहा.

प्रश्न 1
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 अशी पुस्तकं 16
उत्तर :
पुस्तकांना स्पर्श केला की आपले अंत:करण विचारांनी आणि भावनांनी ओसंडून जाते.

उपयोजित कृती

खालील पठित गदध उताऱ्याच्या आधारे दिलेल्या सुचनेनुसार कृती करा.

प्रश्न अ.
‘काळजीपूर्वक’ या शब्दापासून चार शब्द तयार करा.
उत्तर :

  • काळ
  • पूर्व
  • कळ
  • काक

प्रश्न आ.
‘अंतरंग’ या शब्दापासून चार शब्द तयार करा.
उत्तर :

  • अंत
  • रंग
  • तरंग
  • गत

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प्रश्न इ.
‘विश्वासघातकी’ या शब्दापासून चार शब्द तयार करा.
उत्तर :

  • विश्वास
  • श्वास
  • घात
  • घास

खालील वाक्यातील विशेषण ओळखा.

प्रश्न 1.
आत्यंतिक प्रेम करणारी माणस मी पाहिली आहेत.
उत्तर :
आत्यंतिक.

खालील शब्दासाठी योग्य समानार्थी शब्दांचा पर्याय निवडा.

प्रश्न 1.
वैर – शत्रुत्व, क्रूर, अपमान, विरस
उत्तर :
शत्रुत्व.

गटात न बसणारा शब्द ओळखा.

प्रश्न 1.
अंतरंग, मन, चित्त, अर्थ
उत्तर :
अर्थ

प्रश्न 2.
विस्मृती, विसर, विस्मरण, स्मरण
उत्तर :
स्मरण

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स्वमत :

प्रश्न 1.
माणसाच्या जडणघडणीत असलेल्या पुस्तकाची भूमिका तुमच्या शब्दात व्यक्त करा.
उत्तर :
‘वाचाल तर वाचाल’ ही उक्ती जुनी असली तरी त्या उक्तीचे महत्त्व आताच्या जमान्यातही तसूभर कमी झालेले नाही. कारण माणसाचा सर्वागीण विकास होण्यासाठी पुस्तकांचे महत्व अनन्यसाधारण आहे. वाचनाची आवड लहानपणीच मुलांमध्ये रुजवली तर मुलांमध्ये वाचनाची गोडी निर्माण होते. त्यांची विचारप्रवृत्ती वाढते. आकलन व स्मरणशक्ती दोन्हीचा विकास होतो.

आत्मविश्वास वाढतो. जिद्दीने काम करण्याची नवी प्रेरणा मिळते. वाचनाचा छंद जोपासल्याने आपल्याला मानसिक समाधान मिळते. पुस्तकातील समृद्ध विचार आपल्याला जीवनाकडे सकारात्मकतेने बघण्याची दृष्टी देतात, किमान साक्षरता समाजात नसेल तर जनजागृतीचा प्रयत्न फसतो. ज्या समाजात निरक्षर व्यक्ती अधिक असतात त्या समाजात गुन्हेगारी, दंगली वाढीस लागतात. वाचनकौशल्यात मागे असणारे लोक बऱ्याच वेळा बेकार राहतात व गुन्हेगारी प्रवृत्तीकडे वळतात.

लोकशाहीच्या यशस्वीतेसाठी वाचन-लेखन इ.गोष्टी नागरिकांना येणे फार गरजेचे आहे. वाचन दुर्बलता किशोरवयीन मुलांच्या विकासावर परिणाम करते. वाचनाअभावी भावनिक दुर्बलता निर्माण होते. अशी बालके ‘माणूस’ म्हणून संवेदनशीलता वाचनाअभावी हरवून बसतात. थोडक्यात पुस्तके वाचण्याचे व्यक्तिगत व सामाजिक असे दोन्ही फायदे आहेत. उत्तम प्रशासक, उत्तम शिक्षक, कार्यक्षम, सुसंस्कारीत भावी पिढी ही वाचनातूनच तयार होते.

संवेदनशील मनाच्या वाढीसाठी हे विचार कारणीभूत ठरतात, त्यामुळे इतरांचा आपण माणूस म्हणून विचार करायला लागतो, चांगले संस्कार होण्यासाठी, समाजाबाबत आपली काही कर्तव्ये आहेत याचे भान येण्यासाठी पुस्तकांची भूमिका मोलाची ठरते, माणुसकी, समता, न्याय, बंधुत्व, सहृदयता या मूल्यांची शिकवण आपल्याला पस्तकामुळे मिळते. कोणत्याही क्षेत्रामध्ये यश मिळवण्यासाठी वाचन करून नवीन ज्ञान व माहिती आत्मसात करणे गरजेचे आहे. अशा त-हेने माणसाच्या जडाघडणीत पुस्तकांचे योगदान महत्त्वपूर्ण आहे.

सुखदुःखाच्या प्रसंगी पुस्तकांमुळे आपल्या मनावरील ताण कमी होतो. पुस्तके जगण्याची हिंमत वाढवितात.

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प्रश्न 2.
‘माझी पुस्तक हीच माझी अपत्यं’ हे विधान स्पष्ट करा.
उत्तर :
डॉ. निर्मलकुमार फडकुले यांनी माणसांच्या जडणघडणीत पुस्तकांची महत्त्वपूर्ण भूमिका असते हे सांगितले आहे. पुस्तके ही माणसाला जन्मभर सोबत करतात. एका ग्रंथप्रेमी वाचकाने ‘माझी पुस्तकं हीच माझी अपत्यं आहेत’ अशी प्रतिक्रिया लेखकाजवळ व्यक्त केली. ग्रंथप्रेमीचे पुस्तकांवर अतिशय प्रेम होते. आपल्याकडे असणाऱ्या पुस्तकांना त्याने जिवापाड सांभाळले होते. आपण आपल्या अपत्यावर जिवापाड प्रेम करतो. त्यांचा सांभाळ करतो.

त्याला काही दुखल-खुपलं तर आपण व्याकुळ होतो तसेच ग्रंथप्रेमी वाचक आपले जिवापाड जपून ठेवलेले पुस्तक लेखकाला देताना व्याकुळ झाला होता. लेखकाला पुस्तक देण्याआधी ग्रंथप्रेमीने अनेक सूचना केल्या. पुस्तक काळजीपूर्वक वापरा, त्याची पाने दुमडू नका, पुस्तकावरचं कव्हर काढू नका. पुस्तकांशी निर्दयी चाळा करू नका. अशा अनेक सूचना केल्या. कारण त्याचं त्याच्या पुस्तकांवर मुलांप्रमाणेच प्रेम होतं. या आधी एका व्यक्तीला दिलेलं पुस्तक त्यांच्याकडे परत आले नव्हते. प्रत्येक व्यक्तीला आपली मुले म्हणजे सर्वस्व असते त्याना कोणताही त्रास होऊ नये म्हणून तो खूप काळजी घेत असतो.

तेवढेच प्रेम ग्रंथप्रेमीचे पुस्तकांवर होते. आपली मुले आपल्याबरोबर असली की आपण नेहमीच आनंदी असतो आणि ती आपल्या सोबत नसतील तर आपले कोठल्याही गोष्टीत लक्ष लागत नाही. तेवढ्याच उत्कटतेने ग्रंथप्रेमी आपल्या पुस्तकांशी आपुलकीने वागतो म्हणून तो म्हणतो माझी पुस्तकं हीच माझी अपत्यं.

स्वाध्यायासाठी कृती

  • तुमच्या व्यक्तिमत्वावर प्रभाव टाकणाऱ्या पुस्तकाविषयी तुमचे मत मांडा.
  • ‘वाचाल तर वाचाल’ याविषयी तुमचे विचार व्यक्त करा.
  • ‘जगातील सौंदर्यपूर्ण वस्तू म्हणजे पुस्तक’ यातील व्यापक दृष्टिकोन तुमच्या शब्दात व्यक्त करा.
  • तुम्हाला आवडलेल्या एखादया पुस्तकाविषयी 10 ते 12 ओळीत माहिती लिहा.

अशी पुस्तकं Summary in Marathi

प्रस्तावना :

मराठी संत साहित्याचे अभ्यासक, समीक्षक, संपादक व वक्ते म्हणून डॉ. निर्मलकुमार फडके प्रसिद्ध आहेत. ललित लेखन आणि संतसाहित्याच्या लेखनाबरोबरच त्यांची ‘आस्वाद समीक्षा’ साहित्य जगतात कौतुकास पात्र ठरली होती. त्यांनी लिहिलेली अनेक स्वतंत्र व संपादित पुस्तके प्रसिद्ध आहेत. ‘कल्लोळ अमृताचे’, ‘चिंतनाच्या वाटा’, ‘प्रिय आणि अप्रिय’, ‘सुखाचा परिमळ’ अशी ही विविध साहित्यसंपदा आहे.

‘संतकवी तुकाराम : एक चिंतन’, ‘संत चोखामेळा आणि समकालीन संतांच्या रचना’, ‘संतांचिया भेटी’, ‘संत वीणेचा झंकार’, ‘संत तुकारामांचा जीवनविचार’ ही संत साहित्याचा अभ्यास मांडणारी पुस्तके तसेच ‘समाजपरिवर्तनाची चळवळ : काल आणि आज’, ‘साहित्यातील प्रकाशधारा’ हे लेखसंग आहेत. डॉ. निर्मलकुमार फडकुले यांचा संतसाहित्य हा विशेष आस्थेचा विषय होता.

‘प्रबोधनातील पाऊलखुणा’ आणि ‘निवडक लोकहितवादी’ या संपादित पुस्तकातून एकोणिसाव्या शतकातील सुधारणाविषयक चळवळीसंबंधीचा त्यांचा व्यासंग दिसून येतो. या त्यांच्या साहित्य सेवेबद्दल ‘भैरू रतन दमाणी’ या साहित्य पुरस्काराने त्यांना सन्मानित केले आहे. तसेच नाशिक येथे झालेल्या अस्मितादर्श साहित्य संमेलनाचे ते अध्यक्ष होते. गंभीरता, अंतर्मुखता, चिंतनशीलता हे त्यांच्या साहित्याचे लेखनविशेष आहेत.

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पाठाचा परिचय :

माणसाच्या जडणघडणीत असलेली पुस्तकांची भूमिका प्रस्तुत पाठात मांडली आहे. पुस्तकांचे महत्त्व वर्णन करताना पुस्तक वाचनाचा व्यापक दृष्टिकोन लेखकाने व्यक्त केला आहे. जन्मभर भावनिक सोबत करणारी पुस्तके ही जगण्याची हिंमत वाढवून प्रेरणा देतात. पुस्तके ही मानवी जीवन आनंदी व अर्थपूर्ण करतात, हा विचार व्यक्त करताना लेखकाने ‘जगातील सौंदर्यपूर्ण वस्तू म्हणजे पुस्तक हा व्यापक दृष्टिकोन मांडला आहे.

पुस्तकं आपल्याला जगण्याची हिंमत देतात, पुस्तकं जगण्याचा अर्थ सांगतात. जगण्याला एक सुवासिक स्पर्श देतात. पुस्तके आपल्या व्यक्तिमत्त्वाला आकार देतात. आपल्याला जी पुस्तके विशेषत्वाने आवडतात ती हृदयाच्या कण्यात जपून ठेवायला हवी. मनाची सुदृढ आणि सशक्त वाढ होण्यासाठी पुस्तके वाचावीत. आपल्या जीवनप्रवासात पुस्तकं एक मार्गदर्शक म्हणून उभी राहतात. ग्रंथ हे गुरु आहेत हा विचार या पाठात अधोरेखित झाला आहे.

पुस्तकं आपल्याला झपाटून टाकतात, अंत:करणात भावनांची प्रचंड खळबळ उडवून देण्याची त्यांच्यात शक्ती असते. अशी पुस्तके कधी विसरता येत नाहीत. दीर्घकाळ टिकणाऱ्या सुगंधाप्रमाणे ती पुस्तकं मनात दरवळत राहतात. उत्तम साहित्यकृतीचं वाचन करत राहणं यासारखं दुसरं उत्तेजक आणि आनंददायी काहीही नाही. यावरून लेखकांचे ग्रंथप्रेम दिसून येते.

लेखकांने एकदा एका ग्रंथप्रेमी वाचकाकडून एक पुस्तक आणले होते. ते पुस्तक देताना या ग्रंथप्रेमीने लेखकाला “अतिशय काळजीपूर्वक वापरा, दुसयांच्या हाती देऊ नका, पुस्तकाची पानं मुडपू नका, कोणताही मजकूर पेन्सिलीनं किंवा शाईनं अधोरेखित करू नका, बरचं कव्हर काढू नका, तिसऱ्या दिवशी कटाक्षानं पुस्तक परत करा.” अशा सूचना दिल्या. त्या सूचना लेखकाला अपमानकारक वाटल्या नाहीत कारण त्या अटी खरोखरच अत्यंत सयुक्तिक होत्या, कारण ग्रंथप्रेमी व्यक्ती पुस्तकाला स्वत:ची अपत्ये समजतात. उत्तम साहित्यकृती आपल्याला जन्मभर भावनिक सोबत करतात. मनाला धीर देतात. जीर्ण होत चाललेल्या जीवनशक्तीला चैतन्य प्राप्त करून देतात. मनातल्या अंधाराला स्वप्नं दाखवून मनाला ताजे आणि टवटवीत करतात.

उदा. ‘मेघदूत-कालिदास’, ‘टॉलस्टॉयची अॅना कॅरेनिना’ ही कादंबरी, गांधीजींचे आत्मचरित्र, व्हिक्टर ह्यूगोची आणि मुन्शी प्रेमचंदांची कादंबरी, रवींद्रनाथ टागोरांची ‘गार्डनर’ व ‘गीतांजली’, शेक्सपिअरची नाटकं, संत ज्ञानेश्वर, संत तुकारामांचे अभंग इत्यादी, अर्नेस्ट हेमिंग्वे यांच्या ‘द ओल्ड मॅन अण्ड द सी’ कादंबरीतील एक म्हातारा कोळी देवमाशाची शिकार करण्यासाठी अथांग सागरात पोटात अन्नाचा कण नसताना आपली होडी ढकलतो, देवमाशाला जिंकण्याचे धाडस ठेवून हा काटक म्हातारा होडी वल्हवत कित्येक मैल सागराच्या आत जातो.

त्याच्यात लाटांबरोबर झुजण्याची जिद्द, कणखर आशावाद, आकांक्षा, हटवादी मन, विजयोन्माद असतो. या कादंबरीतून निष्ठुर नियती त्याला हुलकावण्या देत असली तरी एक क्षण असा येणार आहे, की दुर्बल वाटणारा माणूस नियतीला पराभूत करून विजय प्राप्त करणार आहे असे हेमिंग्वेला सुचवायचं आहे. ललित आणि वैचारिक साहित्यातून मिळणारे अनुभव वैशिष्ट्यपूर्ण असून त्यातून नव्या प्रेरणा वाचकाला मिळतात.

Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 अशी पुस्तकं

समानार्थी शब्द / पर्यायी शब्द :

  1. उत्तेजक – हुरूप आणणारे, प्रोत्साहक – (stimulant)
  2. कोळी – मासेमारी करून निर्वाह करणारा – (a fisherman)
  3. वज़ – इंद्राचे आयुध – (thunderbolt)
  4. विमनस्क – उद्विग्न, खिन्न, गोंधळलेला – (depressed)
  5. प्रेरणा – स्फूर्ती – (inspiration)
  6. विजय – यश – ( victory)
  7. मूर्खहस्ते न दातव्यम एवं वदति पुस्तकम् – पुस्तक म्हणते मला मुर्खाच्या हाती देऊ नका
  8. साहित्य – ग्रंथसंपदा – (literature)
  9. तेज – प्रकाश – (light)
  10. प्रारब्ध / नियती – नशीब – (destiny)
  11. होडी – नाव – (boat)
  12. अपत्य – मुले – (an offspring, child)
  13. माणुसकी – मानवता – (huminity)
  14. शिकार – पारध – (hunt)
  15. किमया – जादू – (magic)
  16. बंडखोर – क्रांतिकारी – (rehel)

वाक्प्रचार व त्यांचे अर्थ :

  1. दुधाने तोंड पोळल्यामुळे ताक कुंकून पिणे – एका वाईट अनुभवामुळे दुसऱ्या तशाच प्रकारच्या अनुभवाला सामोरे जाताना, प्रत्येक बाबतीत सावधगिरी बाळगणे.
  2. खिळवून ठेवणे – मन गुंतवून ठेवणे.
  3. आरोळी ठोकणे – मोठ्याने हाक मारणे.

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टिपा :

  1. शेक्सपिअर – सुप्रसिद्ध इंग्रजी कवी, नाटककार, मॅकवेध, किंग लियर ही त्यांची प्रसिद्ध नाटके.
  2. अर्नेस्ट हेमिंग्वे – अमेरिकन साहित्यिक.
  3. व्हिक्टर हयूगो – फ्रेंच कवी, लेखक व नाटककार,
  4. मुन्शी प्रेमचंद – थोर हिंदी कथाकार व कादंबरीकार.
  5. लिओ टॉलस्टॉय – रशियन लेखक.
  6. कवी कालिदास – संस्कृत महाकवी यांची मेघदूत व शाकुंतल नाटके प्रसिद्ध.
  7. जी.ए. कुलकर्णी – एक आधुनिक श्रेष्ठ कथालेखक.

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कृती

1. अ. चौकटी पूर्ण करा.

प्रश्न 1.

  1. कवयित्रीने जिला विनंती केली ती – [ ]
  2. कडाडत्या उन्हाला दिलेली उपमा – [ ]
  3. कवयित्रीच्या मैत्रिणीला सांगावा पोहोचवणारी – [ ]
  4. शेतात रमणारी व्यक्ती – [ ]

उत्तर :

  1. कवयित्रीने जिला विनंती केली ती – प्राणसई
  2. कडाडत्या उन्हाला दिलेली उपमा – राक्षसी
  3. कवयित्रीच्या मैत्रिणीला सांगावा पोहोचवणारी – पाखरे.
  4. शेतात रमणारी व्यक्ती – सखा.

आ. कारणे लिहा :

प्रश्न 1.
बैलांचे मालक बेचैन झाले आहेत;
उत्तर :
बैलांचे मालक बेचैन झाले आहेत; कारण पावसाअभावी बैल ठाणबंद झाले आहेत.

Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 प्राणसई

प्रश्न 2.
बाळांची तोंडे कोमेजली;
उत्तर :
बाळांची तोंडे कोमेजली; कारण त्यांच्या तोंडाला उन्हाच्या झळा लागत आहेत.

इ. कृती करा.

प्रश्न 1.
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 प्राणसई 1
उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 प्राणसई 2

2. अ. खालील काव्यपंक्तींचा अर्थ स्पष्ट करा.

प्रश्न 1.
विहिरीच्या तळीं खोल दिसू लागलें ग भिंग :
उत्तर :
कडाक्याच्या उन्हामुळे भूमी करपून गेली, नदया, विहिरीदेखील आटून गेल्या. विहिरीच्या तळाला अगदी कमी पाणी राहिल्यामुळे ते अगदी भिंगासारखे दिसू लागले आहे. भिंगाचा वापर केल्यावर कोणतीही छोटी गोष्ट मोठी दिसू लागते. इथे पाणी विहिरीच्या तळाशी गेले यावरून पाण्याची समस्या किती मोठं रूप धारण करणार आहे याची जाणीव कवयित्री व्यक्त करते.

प्रश्न 2.
ये ग दौडत धावत आधी माझ्या शेतावर
उत्तर :
पाऊस न आल्यामुळे सगळं वातावरण बिघडून गेले आहे. वातावरण तप्त झालेले आहे, म्हणून कवयित्री आपल्या प्राणसईला मैत्रीखातर बोलावत आहे. या प्राणसईने दौडत धावत आपल्या शेतावर यावं असं वाटतं. शेतात धान्याची बीज पेरलेली आहेत त्यांना वेळेवर पाणी मिळालं नाही तर ती सुकून जातील, शेतातील पिकावरच अवघं जग जगत असते. म्हणून कवयित्री आपल्या शेतावर येण्याचं निमंत्रण पावसाच्या सरींना देते.

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प्रश्न 3.
तशी झुलत झुलत ये ग माझिया घराशीं:
उत्तर:
प्राणसई असलेल्या पावसाच्या सरींनी भूमीवरच्या सर्वांना भेटायला यावे असे कवयित्रीला वाटते. ती यावी याकरता ती पाखरांसवे प्राणसई पावसाला निरोप पाठवत आहे. त्या पावसाच्या सरींनी गार वाऱ्यासवे झुलत झुलत आपल्या समवेत यावे असे कवयित्रीला वाटते. त्या पावसाच्या सरींनी आपले घरही चिंब भिजावे असं मनोमन तिला वाटते.

आ. खालील तक्त्यात सुचवल्याप्रमाणे कवितेच्या ओळी लिहा.

प्रश्न 1.
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 प्राणसई 3
उत्तर :

प्राणसईला कवयित्री विनंती करते त्या ओळीप्राणसई न आल्याने कवयित्रीच्या अस्वस्थ मनाचे वर्णन करणाऱ्या ओळीप्राणसई हीच कवयित्रीची मैत्रीण आहे हे दर्शवणाऱ्या ओळीमालकाच्या स्वप्नपूर्तीसाठी आवाहन करणाऱ्या ओळी
ये गये ग घनावळी मैत्रपणा आठवून ……प्राणसई घनावळ कुठे राहिली गुंतून ?मन लागेना घरांत : कधी येशील तू सांग ?शेला हिरवा पांघरमालकांच्या स्वप्नांवर

3. काव्यसौंदर्य

अ. खालील ओळीतील भावसौंदर्य स्पष्ट करा.

प्रश्न 1.
‘कां ग वाकुडेपणा हा,
कांग अशी पाठमोरी?
वाऱ्यावरून भरारी.
ये ग ये ग प्राणसई’
उत्तर :
कवयित्री इंदिरा संत या पावसाच्या सरींना घनावळींना आपली मैत्रीण मानतात. या मैत्रिणीने आता फार विसावा घेतला. तिच्या भेटीची आतुरता कवयित्रीला लागून राहिली आहे. पण ही हट्टी घनावळी मात्र पाखरांसवे निरोप पाठवून, विनवणी करूनही येत नाही, त्यामुळे कवयित्रीचा जीव कासावीस होतो. शेतात बैल काम करेनासे झाले आहेत, तान्हुल्या बाळांचे चेहरे उन्हाच्या झळांमुळे सुकून गेले आहेत.

नदीचे, विहिरीचे पाणी आटू लागले आहे. अशी जीवघेणी परिस्थिती पाऊस वेळेवर न आल्यामुळे झाली आहे. जर हा पाऊस आपला सखा आहे असं आपण म्हणतो, जर ती सखी आहे असं कवयित्रीला वाटतं तर तिनं फार आढेवेढे न घेता आपल्या सख्यांना भेटायला यायला हवे. तिच्यावर अवधी सृष्टी अवलंबून आहे. त्यांचे प्राण कंठाशी येईपर्यंत तिने वाट पाहू नये. त्यामुळे कवयित्रीला वाटतेय की या प्राणसईने वाकडेपणा सोडावा, राग, रुसवा सोडावा. पाठमोरी होकन राग रुसवा धरून मनं व्याकूळ करण्यापेक्षा वायसवे धावत ये. सगळ्यांना चिंब कर. इतरांना सुख देण्यातच आनंद असतो.

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प्रश्न 2.
‘शेला हिरवा पांघर
मालकांच्या स्वप्नावर’.
उत्तर :
प्राणसईने या वर्षी भेटीसाठी विलंब केल्यामुळे सगळेचजण हवालदिल झाले आहेत. जमीनही तप्त झाली आहे. शेतकऱ्यांनी आपली कर्तव्ये पूर्ण केली आहेत. कवयित्रीचा सखाही शेतकरी आहे. प्राणसई धावून आली की संपर्ण शेत हिरवेपणाने भरून जाईल. हिरवेपणाचा शेला (शाल) धरतीवर पांघरला जाईल. अवधी सृष्टी चैतन्यमय होईल. तिचं सोबत असणं गरजेचं आहे. मालकाची स्वप्नंही तिच्यावर अवलंबन आहेत. ही घनावळी आली की पिके जोमानं वाढतील. घरीदारी आनंद निर्माण होईल. आपल्या घरात, देशात आपल्या कष्टामुळे आनंद मिळावा हे मालकाचं स्वप्नं पूर्ण होईल.

आ. कवयित्रीने उन्हाळ्याच्या तीव्रतेचे वर्णन करताना योजलेली प्रतीके स्पष्ट करा.

प्रश्न 1.
पीठ कांडते राक्षसी –
उत्तर :
उन्हामुळे सगळीकडे तप्त झालेले वातावरण (राक्षसी) प्रतीक

प्रश्न 2.
बैल झाले ठाणबंदी
उत्तर:
उन्हाची तीव्रता अधिक झाल्यामुळे बैलही काम करेनासे झाले. (ठाणबंदी) प्रतीक

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प्रश्न 3.
तोंडे कोमेली बाळांची
उत्तर:
उन्हाच्या झळांमुळे बाळांची तोंडे कोमेजली आहेत. (कोमेली) प्रतीक,

इ. कवयित्री आणि प्राणसई यांच्यातील नाते जिव्हाळ्याचे आहे, स्पष्ट करा.

प्रश्न 1.
कवयित्री आणि प्राणसई यांच्यातील नाते जिव्हाळ्याचे आहे, स्पष्ट करा.
उत्तर:
कवयित्री इंदिरा संत यांची प्राणसई घनावळी आहे म्हणजे पावसाच्या सरी आहेत. ही घनावळी कवयित्रीची प्राणसखीच आहे. तिच्या भेटीसाठी कवयित्री आतुर झालेली आहे. कवयित्रीने अगदी हक्काने तिला भेटण्यासाठी आमंत्रणं पाठवली आहेत. प्राणसई कुठे तरी गुंतून राहिली याबाबत कवयित्री काळजी व्यक्त करते.

पाखरांच्या हाती तिने या घनावळीला निरोप पाठवला आहे. आपला मैत्रपणा आठवून तिनं दौडत यावं असं कवयित्रीला वाटत आहे. ती आल्याशिवाय आपल्याला चैन पडत नाही असंही ती म्हणते. आपल्या या सखीने येऊन शेत, घरं, दारं यांना चिंब भिजवावं असं हक्काने सांगते असा हक्क मैत्रीतच दाखवता येतो. ही सखी आल्यानंतर तिने कितीही आढेवेढे घेतले तरी कवयित्री तिला समजावून सांगणार आहे की तिचे येणे या भूतलावर किती महत्त्वाचे आहे ते. तिच्याशी गप्पा मारून आपल्या सख्याचे कौतुक ती सांगणार आहे.

4. अभिव्यक्ती:

प्रश्न अ.
तुमच्या परिसरातील पावसाळ्यापूर्वीच्या स्थितीचे वर्णन करा.
उत्तर :
मी मुंबईतील एका चाळीत राहतो. मार्च ते मे महिन्याचा कालावधी मुंबईकरांच्या दृष्टीने त्रासदायक असतो. मार्चपासून जो तीव्र उन्हाळा सुरू होतो तो जूनच्या शेवटच्या आठवड्यापर्यंत अनुभवतो. उन्हामुळे जीवाची काहिली होते त्यात वीजपुरवठा मधून मधून जात असतो. काही विभागात तर पाणीपुरवठाही कमी असतो. दोन दिवसाआड पाणी आले की ते पाणी भरण्यासाठी माणसांची झुंबड उडते. घामाच्या धारा इतक्या वाहू लागतात की घरात ए.सी., पंखा लावून शांत बसावं असं वाटतं. याच काळात परीक्षा असतात. विदयाथ्यांचे वीज नसल्यामुळे हाल होतात. इथल्या वातावरणाला कंटाळून गावालाही जातात.

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प्रश्न आ.
पावसानंतर तुमच्या परिसरात होणाऱ्या बदलाचे वर्णन करा.
उत्तर :
उन्हाळ्यामुळे वैतागून गेलेला जीव पावसाची आतुरतेने वाट पहात असतो. पावसाच्या आधी महानगरपालिकेने साफसफाईची धोरणं आखून काम केलेलं असत, आमच्या विभागात आम्ही नागरिक चाळीची कौलं, घरांची छप्परं यांची दुरुस्ती करून घेतो. पाऊस आल्यानंतर सुखद गारवा सगळीकडे पसरतो, ओलीचिंब झालेली धरणी, त्यावर चढू लागलेली हिरवळ मनाला आनंद देते. जोरजोरात पाऊस पडताना कौलांतून गळणारे पाणी अडवण्यासाठी आमची जाम धावपळ होते. कधीकधी आमच्या विभागात पाणीदेखील साठतं, मग त्यांना मदत करण्यासाठी अख्खी वस्ती पुते येते, गटार, नाले यांचा दुर्गध सर्वत्र पसरतो आणि नंतरचे काही दिवस रोगराईला सामोरं जावं लागतं. मैदाने, रस्ते यांच्यावर फेकलेला कचरा त्यातून निघणारा कुबट वास जीव नकोसा करतो. आधी हवाहवा वाटणारा पाऊस अशावेळी मात्र नकोसा वाटू लागतो.

प्रश्न इ.
पावसानंतर कोणाकोणाला कसाकसा आनंद होतो ते लिहा.
उत्तर:
पाऊस म्हणजे आनंद, तृप्ती, मलाही पाऊस आवडतो. पावसानंतर सर्वात जास्त आनंद होत असेल तर कोणाला ? धरित्रीला. हो. पृथ्वीला. आठ महिन्यांच्या विश्रांतीनंतर पृथ्वीलाही त्याला भेटण्याची ओढ लागलेली असते. पावसानंतर सष्टीला चैतन्य प्राप्त है भरभरून वाहू लागतात. त्यामुळे पाण्याचा प्रश्न काही अंशी संपलेला असतो. मुंबईतील तलाव भरले गेले की मुंबईकर आपल्याला वर्षभर पाणी मिळेल- या आशेने आनंदीत होतात. बळीराजा जो सातत्याने कष्ट करत असतो त्याच्या शेतात आता धनधान्य पिकणार असतं. पाऊस हा अशी आनंदाची पर्वणी घेऊन आलेला असतो.

5. रसग्रहण.

प्रश्न 1.
‘प्राणसई’ या कवितेचे रसग्रहण करा.
उत्तर:
कवयित्री इंदिरा संत या मराठी साहित्यविश्वातील एक ख्यातनाम ज्येष्ठ कवयित्री आहेत. प्राणसई ही त्यांची कविता पावसाला उद्देशून आहे. उन्हाळ्यामुळे वातावरण तापलेले आहे. राक्षसासारखे ऊन कडाडले आहे. ते अक्षरशः वातावरणाचे पीठच काढते आहे. तीव्र उन्हाळ्याचे चटके कोणालाही सहन होईनासे झाले आहेत हे एका प्रतीकातून इंदिराबाई स्पष्ट करतात ‘पीठ कांडते राक्षसी पीठ कांडते’ हे कष्टमय काम पण ते भरपूर प्रमाणात केले जाते तेव्हा त्याला राक्षसी म्हटले जाते. अशावेळी प्राणसई म्हणजे पाऊस कुठे बरी गुंतून राहिली? असा प्रश्न कवयित्रीला पडतो.

सई म्हणजे सखी हा शब्द योजताना कवयित्रीच्या मनात पाऊस हा सगळ्यांचाच प्राण आहे त्यामुळे कवयित्रीने प्राणसई ही उपमा पावसासाठी उपयोजिली आहे. प्राणसईने भेट दयायला फारच दिरंगाई केली त्यामुळे कवयित्रीने आपल्या सखीला भेटण्याकरता पाखरांसवे बोलावणे पाठवले आहे, या पावसांच्या सरींना ती घनावळी म्हणतेय, व्याकूळ मनाला घनावळीच साद देऊ शकतात. आपल्यातील सख्य, मैत्रपणा आठवून आता या पृथ्वीवर धावत ये, दौडत ये अशी विनवणी कवयित्री करत आहे.

प्राणसखी धनावळी भेटायला येण्याचा काळ ओसरून गेला परंतु ती आली नाही.पाऊस आला की सगळे वातावरण ओले चिंब होते. भाज्या, धान्य यांच्या बी-बियाण्यांच्या आळी जमिनी भाजून करून ठेवल्या आहेत. ती आली की या बियाण्यांमधून रोपे तयार होतील आणि त्याच्या वेली सर्वत्र पसरतील, पावसाळ्यात डासांचा, कीटकांचा त्रास होतो. अशावेळी शेणकुळी जाळल्या जातात.

त्यासाठी घरातील कोपरा रिकामा करून तिथे शेणी ठेवल्या आहेत. तीव्र उन्हाळ्यामुळे बैलही ठाणबंदी झाले आहेत. कामासाठी ते तयार नसल्यामुळे मालकालाही काहीच सुचेनासे झाले आहे. तप्त झालेल्या धरणीतून गरम वाफा येतात त्यामुळे वाराही तप्त झालेला आहे. वरून उन्हें आग ओकत आहेत. याचा परिणाम कोवळ्या जीवावरही होऊ लागला आहे. लहान बाळांचे कोवळे जीव कासावीस झाले आहेत. त्यांचे चेहरे कोमेजून गेले आहेत हे स्पष्ट करताना कवयित्री ‘तोंडे कोमेली बाळांची’ अशी रचना करते.

उन्हाळ्याचे चार महिने संपले की आपसूकच ओढ लागते पावसाची. पण पावसाचे दिवस सुरू झाले असताना पावसाची’ एकही सर आली नाही त्यामुळे व्याकुळलेली कवयित्री आपल्या पाऊस सखीला पृथ्वीवर येण्यासाठी विनवणी करते आहे. ती प्राणसई न आल्यामुळे विहिरीचे पाणीदेखील अगदी तळाशी गेले आहे. ते भिंगासारखे दिसू लागले आहे.

असं कवयित्री म्हणते. भिंग ज्याप्रमाणे सूक्ष्म असलेली गोष्ट मोठी करून दाखवते त्याप्रमाणे हे पाण्याचे भिंगदेखील येणाऱ्या सूक्ष्म संकटाची चाहूल देत आहे असे कवयित्रीला वाटत आहे. हे संकट भीषण रूप धारण करायच्या आगोदर माझ्या घरी, शेतावर तू दौडत ये असं कवयित्री पाऊस धारेला विनवणी करते, तू आलीस की आमच्या या शेतावर हिरवळ येईल, मातीत ओलावा येईल आणि मातीतील बी-बियाण्यांना अंकुर फुटेल. मालकांच्या मनातीलही स्वप्नं पूर्ण होतील.

पावसाच्या सरी वायसवे झुलत-सुलत येतात म्हणून कवयित्री म्हणते की तू वाऱ्यासोबत झुलत झुलत माझ्या घरापाशी ये. माझ्या घराजवळ आलीस की माझी पोरं तुझ्या पावसाच्या सरींना झोंबतील. इथे कवयित्री पावसाच्या धारा-सरी यांना जरीची उपमा देते. सोनेरी जरीमध्ये स्वतःची ताकद असते, ती सहसा तुटत नाही. ती मौल्यवान असते. तसंच ही पावसाची सरही मौल्यवान आहे. तिच्या जरीचा घोळ म्हणजे पावसाचे साठलेले पाणी या पाण्यात कवयित्रीची पोरं खेळतील.

भोपळ्याची, पडवळाची आळी, मालकाने कधीपासून तयार करून ठेवली आहेत. प्राणसईच्या येण्याने ती भिजतील, त्यांना कोंब फुटेल. तू आलीस की तुझ्या जलसाठ्याने त्या विहिरींना पण तुडुंब भर. घरदार संपूर्ण सृष्टी चिंब भिजायला हवी आहे कारण पाण्याविना काहीच चैतन्य नाही. अशी धावत धावत ही प्राणसई आली की कवयित्री तिच्यासोबत खप गप्पा मारणार आहे. तिच्याशी आपल्या सख्याच्या गजगोष्टी सांगणार आहे. त्याचं कौतुक आपल्या मैत्रिणीला सांगताना तिला अभिमान वाटणार आहे.

पावसाच्या या धनावळीने आता वाकडेपणा सोडावा आणि भूतलावर अगदी तीव्रतेने धावत यावं असं कवयित्रीला वाटतं. आमच्या सगळ्यांकडे अशी पाठ करून तू काय साधशील बरं? असा त्रास देण्यापेक्षा प्रेमानं तुझ्या धारांमध्ये भिजवलंस तर सगळेजण आनंदी होतील. च मिळेल, त्यामुळे वाऱ्यावर भरारी मारून अगदी लवकर भेटीयला ये अशा आत्यंतिक जिव्हाळयाने कवयित्री आपल्या सखीला बोलावते.

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शब्दसंपत्ती.

प्रश्न 1.
खालील शब्दांचे समानार्थी शब्द शोधून शब्दमनोरा पूर्ण करा.
उदा.,
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उत्तर:
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11th Marathi Book Answers Chapter 2 प्राणसई Additional Important Questions and Answers

चौकटी पूर्ण करा.

प्रश्न 1.

  1. विहिरीच्या तळी दिसू लागले ते – [ ]
  2. घनावळीने हिचा मैत्रपणा आठवावा – [ ]
  3. प्राणसईने वाऱ्यासोबत असे यावे – [ ]

उत्तर:

  1. भिंग
  2. मैत्रिणीचा
  3. भरारी मारून

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कारणे लिहा.

प्रश्न 1.
पाखरांच्या हाती पावसाला सांगावा धाडला, कारण – ……….
उत्तर:
पाखरांच्या हाती पावसाला सांगावा धाडला, कारण पावसाने यायला उशीर केला म्हणून लवकर यावे.

प्रश्न 2.
पडवळा – भोपळ्यांची आळी ठेविली भाजून, कारण – ………
उत्तर:
पडवळा – भोपळ्यांची आळी ठेविली भाजून, कारण या भाज्यांची लागवड करावयाची आहे.

कृती करा.

प्रश्न 1.
प्राणसई आल्यावर कवयित्री या गोष्टी करेल – …………..
उत्तर :
प्राणसई आल्यावर कवयित्री या गोष्टी करेल – दारात उभी राहून तिच्याशी आपल्या सख्याबददलच्या गप्पा सांगेल.

प्रश्न 2.
सखा रमला शेतांत त्याचे कौतुक सांगेन:
उत्तर :
पावसाची वाट पाहणं हे शेतकऱ्याच्या पाचवीला पूजलेलं असत. कवयित्रीचा सखा शेतकरी आहे, त्याने काबाडकष्ट करून पेरणी केलेली आहे.
पाऊस न आल्यामुळे तो सुद्धा चिंतेत पडला आहे. शेत, अन्नधान्य, घर हेच त्याचं विश्व आहे. त्यामुळे तो त्यात रमतो, कष्ट करतो. याचं
कौतुक कवयित्रीला आहे. त्यामुळे कवयित्रीला आपल्या सख्याचे कौतुक आपल्या प्राणसईला सांगावेसे वाटत आहे.

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आकलन कृती :

चौकटी पूर्ण करा.

प्रश्न 1.
मालक बेचैन झाले कारण – [ ]
उत्तर:
मालक बेचैन झाले कारण – तीव्र उन्हाळ्यामुळे बैल कामासाठी तयार नाहीत म्हणून

प्रश्न 2.
विहिरीच्या तळाशी भिंग दिसू लागले कारण – [ ]
उत्तर:
विहिरीच्या तळाशी भिंग दिसू लागले कारण – पाऊस न आल्याने विहिरीचे पाणीदेखील तळाशी गेले आहे.

जोड्या लावा.

प्रश्न 1.

आळी ठेविलीसजवून
शेणी ठेविल्याभाजून
रचून

उत्तर:
आळी ठेविली – भाजून
शेणी ठेविल्या – रचून

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उपयोजित कृती :

खालील पठित पदय पंक्तींच्या आधारे दिलेल्या सुचनेनुसार कृती करा.

खालील शब्दांपासून अर्थपूर्ण शब्द तयार करा.

प्रश्न 1.
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उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 प्राणसई 9

आकृती पूर्ण करा.

प्रश्न 1.
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 प्राणसई 6
उत्तर:
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प्रश्न 2.
बैलांच्या अगतिक झालेल्या अवस्थेसाठी कवयित्रीने उपयोजिलेला शब्द –
उत्तर :
बैलांच्या अगतिक झालेल्या अवस्थेसाठी कवयित्रीने उपयोजिलेला शब्द – ठाणबंदी

क्रमवारी लावा.

प्रश्न 1.

  1. झाले मालक बेचैन
  2. झळा उन्हाच्या लागून
  3. तोंड कोमेली बाळांची
  4. बैल झाले ठाणबंदी

उत्तर:

  1. बैल झाले ठाणबंदी
  2. झाले मालक बेचैन
  3. तोंड कोमेली बाळांची
  4. झळा उन्हाच्या लागून

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काव्यसौंदर्य:

प्रश्न 1.
‘तोंडे कोमेली बाळांची
झळा उन्हाच्या लागून
या पक्तीतील भावसौंदर्य स्पष्ट करा.
उत्तर :
कवयित्री इंदिरा संत यांच्या प्राणसई कवितेत पावसाच्या आगमनापूर्वीच्या स्थितीचे वर्णन केलेले आहे. उन्हाने तप्त झालेल्या वातावरणाचे परिणाम लहान तान्हुल्या बाळांनाही सोसावे लागत आहे. त्यांच्याही जीवाची काहिली झाली आहे. त्यांची कोवळी तोंडे, कोमेजून गेली आहेत. त्या कोवळ्या चेहऱ्यांचा कोमेजून जाळ्याची उल्लेख करताना कवयित्री कोमेली ही नवीन सौंदर्य प्रतिमा वापरतात त्यामुळे त्या तान्हुल्या बाळांच्या चेहऱ्यावरील कोमल भाव प्रकट होतात.

स्वमतः

प्रश्न 1.
पावसाच्या आगमनासाठी तुम्ही कसे आतुर असता?
उत्तर :
पावसाळा हा ऋतू माझा सर्वात आवडीचा ऋतू. पाऊस कधीही यावा आणि त्यात चिंब भिजावे अशी माझी मनस्थिती असते. उन्हाळ्याचे चार महिने सोसल्यावर, त्याची दाहकता अनुभवल्यावर साहजिकच मनाला ओढ लागते ती पावसाची. पहिला पाऊस पडल्यानंतर मातीच्या सुगंधालाही मी आसुसलेला असतो. कॉलेजच्या पहिल्याच दिवशी भरपूर पाऊस पडावा असं खूप वाटत असतं. पावसाळ्यात ट्रेकिंगला जायला मला प्रचंड आवडतं. निसर्गाच्या सानिध्यातील भटकंती मला माझ्यातील खुजेपण शोधायला भाग पडते. निसर्ग भरभरून देतो. आपण केवळ त्याचा आनंद घेतो त्याला काही देत नाही. त्याला वाचवण्याचा प्रयत्न करण्यासाठी पावसाळ्यात मी आणि माझे काही मित्र बागांमध्ये झाडे लावण्याचा उपक्रम करत असतो.

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प्राणसई Summary in Marathi

प्रस्तावनाः

कवयित्री इंदिरा संत यांची मराठी साहित्यात विशुद्ध भावकाव्य लिहिणारी कवयित्री अशी ओळख आहे. इंदिराबाई मूळच्या शिक्षिका. बेळगावच्या ट्रेनिंग कॉलेजच्या प्राचार्या होत्या. प्रा. ना, मा. संत यांच्याशी विवाहबद्ध झाल्यावर त्या पुण्यातील फर्ग्युसन महाविद्यालयात शिकवू लागल्या. १९७१ मध्ये त्यांचा शेला हा पहिला काव्यसंग्रह प्रसिद्ध झाला. सोप पण गहिरं असं लेखनाचे स्वरूप इंदिरा संतांचे होते.

‘मेंदी’, ‘मृगजळ’, ‘रंगबावरी’, ‘चित्कळा’, ‘बाहुच्या वंशकुसुम’ ‘गभरेशमी’, ‘निराकार’ असे काव्यसंग्रह त्यांचे प्रसिद्ध झाले. आपल्या मनातील भावनांचा कल्लोळ, प्रेम आर्तता व्यक्त करण्यासाठी निसर्गातील विविध प्रतिमांचा वापर त्या सहजगत्या करताना दिसतात.

‘फुलवेल’ हा त्यांचा ललितलेख संग्रह. मृदगंध यात त्यांनी तरुण भारतसाठी लिहिलेला स्तंभलेख ‘मृदगंध’ या ग्रंथात संग्रहित आहे. लेखांमधून, कवितांमधून इंदिराबाईनी निसर्गाची अनेकविध रूप रेखाटली. सुखद, सुंदर असा निसर्ग इंति

कवितेचा आशय :

उन्हाळ्याचे दिवस संपत आलेले असताना सर्वांच्याच मनाला पावसाची ओढ लागलेली असते. पाऊस येणार या कल्पनेने सर्वच जण आनंदित होत असतात. पाऊस बेभरवशाचा असतो, त्याच्या आगमनाकरता शेतकरी, कष्टकरी, स्त्रिया यांनी तयारी करून ठेवलेली असते. पेरणी झालेली असते. पण भूमीत पेरलेले बियाणे उगवण्यासाठी पावसाचे येणे महत्त्वाचे असते.

या पावसाची वाट पाहताना कवयित्री तिला पृथ्वीवरील परिस्थिती आपल्या कवितेतून कथन करते, तसेच या घनावळीने आपल्या मैत्रीला जपत पृथ्वीवर बरसावे अशी विनंती या कवितेतून व्यक्त करते. पृथ्वीवर उन्हाची दाहकता प्रचंड प्रमाणात जाणवत आहे. एखादी राक्षसी पीठ कांडत राहते आणि त्याचा धुराळा सर्वत्र पसरतो.

तसंच उन्हाची दाहकता तप्तता सर्वत्र पसरली आहे. अशा वेळी कवयित्रीला चिंता वाटत राहते की आपली प्राणसखी प्राणसई आपल्याला भेटायला का बरं येत नाही आहे? ती कुठं वरं गुंतून राहिली आहे ? या घनावळीला आपली चिंता नाही का ? आपल्या जवळ तिनं आता असायला हवं असं कवयित्रीला वाटत राहतं. घनावळी पृथ्वीतलावर यावी याकरता कवयित्री पाखरांच्या हाती सांगावा पाठवून देत आहे की आपला मैत्रपणा आठवून तू धावत ये.

ठीचा काळ असतो. आपल्या घरातल्यांच्या सोयीकरता कवयित्रीनेही आपल्या मालकाप्रमाणे भाज्यांची लागवड केली आहे, भोपळा-पडवळ यांची लागवड करण्यासाठी जमिनीमध्ये आळी तयार करून ठेवली आहेत. त्यात भाज्यांची बियाणे पेरली आहेत. घरात शेणीचा थर रचून ठेवला आहे. पावसाळ्यात त्यांचा धूर करून डास, चिलटे यांना दूर करता येतं म्हणून त्यांचीही रास एका कोनाड्यात ठेवली आहे.

बैलही उन्हाच्या झळांमुळे काम करेनासे झाले आहेत, त्यांनाही उष्माघात सहन होत नाही त्यामुळे मालकही बैचेन झाले आहेत. बाळांची कोमल, नाजूक तोंडेही पार वाळून गेली आहेत.

विहिरीच्या तळी पाण्याचे भिंग दिसत आहे. तळाला गेलेले पाणी भिंगासारखे दिसते आहे. विहिर ही दुर्बिणीसारखी आणि तळाला गेलेले पाणी भिंग असं कवयित्रीला सुचवायचे आहे. भिंगातून जशी एखादी लहान वस्तू मोठी दिसते तसंच पाण्याचे दुर्भिक्ष्य आता मोठ्या स्वरूपात सोसायला लागणार असं वाटू लागतं. कवयित्रीचं मन या सगळ्या ताणतणावात लागत नाही आहे. आपली प्राणसखी कधी येईल याची ती तीव्रतेने वाट पाहत आहे.

ही घनावळी आली की तिनं धावत आपल्या शेतावर हजेरी लावावी असं कवयित्रीला वाटतं. ती आली की तिच्यामुळे शेतावर हिरवा शेला पांघरला जाईल म्हणजे हिरवळ दाटेल. मालकाच्या स्वप्नांनाही अंकुर फुटतील, त्यांनाही जिवंतपणा लाभेल.

ही प्राणसई वाऱ्यासोबत येईल तेव्हा त्याच्या साथीनं तिन झुलत-झुलत यावं आपल्या घराशी थांबावं. तिच्या जररूपी धारांचे तळे होईल त्यात कवियत्रीची पोरं-बाळं नाचतील, खेळतील, वागडतील ही मुलं या प्राणसईची भाचे मंडळीच आहेत. त्यांच्या निरागसपणाचे या प्राणसईलाही कौतुक वाटेल.

कवयित्रीच्या दारात लावलेले पडवळ, भोपळे यांच्या वेलीचे आळे भिजून चिंब होऊ दे, विहिरी पाण्याने तुडुंब भरून वाहू दे, घर, दार, अंगण या सर्वच ठिकाणी पावसाच्या पाण्याने थंडगार वारा अनुभवायला मिळू दे.

असं संपूर्ण सुंदर, चैतन्यमय वातावरण अनुभवताना तुझ्याशी मी दारात उभी राहून बोलेन. माझा सखा शेतात कसा दमतो, रमतो. त्याचे कौतुक ती या प्राणसईला सांगणार आहे.

ही प्राणसई वेळेवर येत नाही म्हणून कवयित्री तिला पुन्हा विनवणी करतेय की ए, प्राणसखी तू आता वाकडेपणा बाजूला ठेव, तू रागावली असलीस तरी तो राग आता सोड, अशी पाठमोरी तू होऊ नकोस. वाऱ्यावरून भरारी मारून तू वेगावे धावत, दौडत ये, तू माझी प्राणसई आहेस, माझ्यासाठी पृथ्वीसाठी, लेकरांसाठी, शेतासाठी तुला यायलाच हवं.

Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 प्राणसई

समानार्थी शब्द / पर्यायी शब्द :

  1. घनावळ – मेघमाला.
  2. सांगावा – निरोप – ( message).
  3. हुडा – गोवांचा ढीग.
  4. शेणी – गोवऱ्या – (dried cakes of cowdung)
  5. ठाणबंदी – पशुंना गोठ्यात बांधून ठेवणे.
  6. कोमेली – कोमेजला.
  7. भिंग – आरसा – (a piece of glass).
  8. शेला – पांघरण्याचे, उंची वस्त्र – (a silken garment, a rich scraft).
    तुडुंब – भरपूर, काठोकाठ – (upto the brim, quite full).
  9. भरारी – उड्डाण – (a quick flight ).
  10. भाचा – बहिणीचा किंवा भावाचा मुलगा – (a nephew).
  11. जर – विणलेले वस्त्र – (brocade)

Marathi Yuvakbharati 11th Digest Text Book Solutions

Mamu Class 11 Marathi Chapter 1 Question Answer Maharashtra Board

11th Marathi Chapter 1 Exercise Question Answer Maharashtra Board

Balbharti Maharashtra State Board Marathi Yuvakbharati 11th Digest Chapter 1 मामू Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

मामू 11 वी मराठी स्वाध्याय प्रश्नांची उत्तरे

11th Marathi Digest Chapter 1 मामू Textbook Questions and Answers

1. अ. कोण ते लिहा.

प्रश्न 1.
चैतन्याचे छोटे कोंब :
उत्तर :
शाळेतील लहान मुले

प्रश्न 2.
सफेद दाढीतील केसाएवढ्या आठवणी असणारा:
उत्तर :
मामू

Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 मामू

प्रश्न 3.
शाळेबाहेरचा बहुरूपी :
उत्तर :
मामू

प्रश्न 4.
अनघड, कोवळे कंठ :
उत्तर :
शाळेतील लहान मुले.

आ. कृती करा.

प्रश्न 1.
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 मामू 1
उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 मामू 3

प्रश्न 2.
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 मामू 2
उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 मामू 4

इ. खालील वाक्यांतून तुम्हांला समजलेले मामूचे गुण लिहा.

प्रश्न 1.

  1. मामू सावधानचा पवित्रा घेऊन खडा होतो. ……………..
  2. आईच्या आठवणी सांगताना मामूच्या डोळ्यांत पाणी येते. ………………
  3. मामू त्याला आईच्या मायेने धीर देत म्हणतो, “घाबरू नकोस. ताठ बस. काय झालं न्हाई तुला.” ………………….
  4. माझ्या कडे कुणी बडा पाहुणा आला, की मामूकडं बघत नुसती मान डुलवली, की तिचा इशारा पकडत मामू चहाची ऑर्डर देतो.” ……………..
  5. मामूएखादयाकार्यक्रमात मुलांच्यासमोर दहा-वीस मिनिटे एखादया विषयावर बोलू शकतो. ………………….

उत्तर :

  1. मामू सावधानचा पवित्रा घेऊन खडा होतो. – देशभक्ती
  2. आईच्या आठवणी सांगताना मामूच्या डोळ्यांत पाणी येते. – मातृप्रेम/भावणाशीलता
  3. मामू त्याला आईच्या मायेने धीर देत म्हणतो, ‘‘घाबरू नकोस. ताठ बस. काय झालं न्हाई तुला.’’ – वात्सल्य
  4. माझ्या कडे कुणी बडा पाहुणा आला, की मामूकडं बघत नुसती मान डुलवली, की तिचा इशारा पकडत मामू चहाची ऑर्डर देतो.” – हुशारी
  5. मामूएखादयाकार्यक्रमात मुलांच्यासमोर दहा-वीस मिनिटे एखादया विषयावर बोलू शकतो. – अभ्यासू वृत्ती

ई. खलील शब्द समूहाचा अर्थ लिहा.

प्रश्न 1.
थोराड घंटा
उत्तर :
थोराड घंटा- दणकट, मोठी व वजनदार घंटा.

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प्रश्न 2.
अभिमानाची झालर
उत्तर :
अभिमानाची झालर – झालरीमुळे शोभा येते. मामूच्या चेहऱ्यावर अभिमानाचा भाव होता. त्या भावाला झालरीची उपमा दिली आहे.

2. व्याकरण.

अ. खलील शब्दांतील अक्षरे निवडून अर्थपूर्ण शब्द तयार करा :

प्रश्न 1.
इशारतीबरहुकूम
उत्तर :
हुकूम, तीर, रती, हुशार, रतीब

प्रश्न 2.
आमदारसाहेब
उत्तर :
आम, आब, आहे, आरसा, आमदार, दार, दाम, दाब, बसा, साम, सार, साहेब, बदाम, रसा(पृथ्वी), हेर, हेम (सोने), मदार.

प्रश्न 3.
समाधान
उत्तर :
नस, मान, मास, समान, मानस

आ. खलील वाक्प्रचाराचा अर्थ लिहन वाक्यात उपयोग करा :

प्रश्न 1.
चौवाटा पांगणे
उत्तर :
चौवाटा पांगणे – चहूबांजूना (चारी वाटांवर) विखुरणे, सर्वत्र पांगणे.
वाक्य : गावात दुष्काळ पडला नि गावकरी चौवाटा पांगले.

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प्रश्न 2.
कंठ दाटून येणे
उत्तर :
कंठ दाटून येणे – गहिवरणे.
वाक्य : मुलीला सासरी पाठवताना यशोदाबाईंचा कंठ दाटून आला.

प्रश्न 3.
हरवलेला काळ मुठीत पकडणे.
उत्तर :
हरवलेला काळ मुठीत पकडणे – भूतकाळातील आठवणी जागृत होणे.
वाक्य : कैक वर्षांनी शाळेला भेट देणाऱ्या बापूसाहेबांनी हरवलेला काळ मुठीत पकडला.

इ. खालील शब्दांचे दिलेल्या तक्त्यामध्ये वर्गीकरण करा.

प्रश्न 1.
अनुमती, घटकाभर, नानातन्हा, अभिवाचन, जुनापुराणा, भरदिवसा, गुणवान, साथीदार, ओबडधोबड, अगणित
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 मामू 5
उत्तरः

उपसर्गघटितप्रत्ययघटितअभ्यस्त
भरदिवसासाथीदारओबडधोबड
अभिवाचनगुणवानजुनापुराणा
अनुमतीघटकाभर
नानातन्हा
अगणित

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3. स्वमत:

प्रश्न अ.
‘शाळेत तो शिपाई आहे; पण शाळेबाहेर तो बहुरूपी आहे’, या मामूसंबंधी केलेल्या विधानाचा अर्थ पाठाधारे तुमच्या शब्दांत स्पष्ट करा.
उत्तरः
‘मामू’ हा शिवाजी सावंत यांच्या ‘लाल माती रंगीत मने’ या व्यक्तिचित्रणात्मक संग्रहातून घेतलेला पाठ आहे. या पाठात ‘मामू’ या व्यक्तीची व्यक्तिरेखा रेखाटताना त्याचे विविध पैलू दाखवले आहेत. प्रामाणिक, देशाभिमानी असलेला मामू शाळेचा केवळ शिपाई नसून तो शाळेचा एक अवयव झाला आहे. कोल्हापूर संस्थान आणि लोकशाही अशा दोन्ही राज्यांचा अनुभव त्याच्या गाठीशी आहे.

असा हा मामू शाळेचा केवळ शिपाई नसून तो विविध भूमिका बजावताना दिसतो. शाळेत शिपायाचे काम करणारा मामू अतिशय प्रामाणिकपणे आपली जबाबदारी पार पाडतो. तो विविध भूमिकांतून आपल्यासमोर येतो. जसा एखादा बहुरूपी विविध रूपं घेऊन आपल्यासमोर येतो तसाच शाळेच्या बाहेर मामू आपल्याला विविध रूपांमध्ये भेटतो. कधी तो फळांच्या मार्केटमध्ये एखादया बागवानाच्या दुकानावर घटकाभर का होईना पण तेथे बसणारा दुकानदार होतो. ज्याप्रमाणे बहुरूपी सोंग चांगल्या रितीने वठवल्यावर मिळेल तेवढ्या पैशांवर समाधानी राहतो तसेच दुकानदाराने दिलेले पैसे म्हणजे देवाचा प्रसाद मानणारा समाधानी मामू भेटतो.

कधी मुस्लिम अधिकाऱ्याच्या मुलांना उर्दूची शिकवण देणारा शिक्षक तर कधी मौलवी, व्यापारी, उस्ताद अशी विविध रूपे घेतो. कधी कुणाच्या पायाला लागलं तर कुठला पाला वाटून लावावा, पोट बिघडलं तर त्यावर कुठला काढा घ्यावा, शरीरयष्टी कशी कमवावी हे सांगणारा वैदय बनतो. वक्ता कसा बोलला हे सांगणारा परीक्षक बनतो, तर कधी चक्कर आलेल्या मुलाला डॉक्टरकडे नेताना आईच्या मायेने जपणारा, धीर देणारा, संवेदनशीलवृत्तीच्या व्यक्तीची भूमिका निभावतो. अशाप्रकारे मामू केवळ शाळेत काम करणारा शिपाई राहत नाही तर शाळेबाहेच्या लोकांना त्याची अनेक रूपे दिसतात. शाळेबाहेर वावरणारा तो बहुरूपीच आहे.

प्रश्न आ.
मामूच्या संवेदनशीलतेची दोन उदाहरणे तुमच्या शब्दांत लिहा.
उत्तरः
शिवाजी सावंत यांच्या ‘मामू’ या कथेत मामूच्या स्वभावाचे, प्रामाणिकपणाचे, कष्टाळूपणाचे, संवदेनशील वृत्तीचे वर्णन आले आहे. ‘मामू’ गेल्या चाळीस वर्षापासून शाळेत शिपाई म्हणून काम करतो. तो अत्यंत प्रामाणिक, कर्तव्यनिष्ठ आहे. त्याच बरोबर सहदयी आहे. मामूची म्हातारी आई गेल्यानंतर तिच्या आठवणी सांगताना मामूच्या डोळ्यात पाणी तरळतं.

‘दुनियेत सारं मिळेल सर; पण आईची माया कुणाकडनं न्हाई मिळायची’ हे बोलताना नातवंड असलेला मामू स्वतः लहान मुलासारखा भासतो तेव्हा त्याच्या संवेदनशीलवृत्तीचा परिचय येतो. शाळेतील एखादा मुलगा खेळताना किंवा प्रार्थनेच्या वेळी चक्कर येऊन पडला तर त्याला रिक्षातून दवाखान्यात नेताना त्या लहान मुलाला मायेने धीर देताना “घाबरू नकोस’ म्हणतो. यातून त्याची संवेदनशीलता व सहदयता दिसून येते.

मामूच्या संवेदनशीलतेची अनेक उदाहरणे मामूचे व्यक्तिचित्रण करताना शिवाजी सावंत यांनी दिली आहेत. (इ) मामूच्या व्यक्तित्वाचे (राहणीमान, रूप) चित्रण तुमच्या शब्दांत करा. उत्तरः ‘मामू’ या व्यक्तिचित्रणात्मक पाठात लेखक शिवाजी सावंत यांनी ‘मामू’ या व्यक्तिरेखेचे लक्षणीय शब्दचित्र रेखाटले आहे.

मामू हा शाळेचा शिपाई आहे. परंतु तो शाळेचा अविभाज्य भाग आहे. मामू डोक्याला अबोली रंगाचा फेटा बांधतो, अंगात नेहरू शर्ट आणि त्यावर गर्द निळं जाकीट, जाकिटाच्या खिशात चांदीच्या साखळीचं एक जुनं पॉकेट वॉच असतं. खाली घेराची व घोट्याजवळ चुण्या असलेली तुमान आणि पायात जुना पुराणा पंपशू असे अत्यंत साधे राहणीमान मामूचे आहे. मामूच्या चेहऱ्यावर सफेद दाढी आहे. परंतु चेहऱ्यावर कायम समाधान आणि नम्रतेचा भाव, चांगल्या व वाईट अनुभवाने समृद्ध मामू साधारणतः साठीचा आहे. परंतु म्हाताऱ्या शरीरातील मान मात्र उमदं आहे. अतिशय चित्रदर्शी लेखन शैलीत रंगवलेले मामूचे व्यक्तिचित्र त्याच्या राहणीमानामुळे व गुणांमुळे आपल्या चांगलेच लक्षात राहते व मामू डोळ्यासमोर उभा असल्यासारखे भासते.

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4. अभिव्यक्ती

प्रश्न अ.
‘मामू’ या पाठाची भाषिक वैशिष्टये स्पष्ट करा.
उत्तर :
‘मामू’ हा पाठ शिवाजी सांवत यांनी लिहिलेला आहे. सुप्रसिद्ध कादंबरीकार म्हणून उभ्या महाराष्ट्राला परिचित असणारे शिवाजी सावंत हे त्यांच्या ‘मृत्युजंय’ आणि ‘छावा’ या दोन कादंबऱ्यांमुळे प्रसिद्धीच्या शिखरावर पोहचले. महाराष्ट्र राज्य शासनाच्या सर्वोत्कृष्ट वाङ्मय पुस्तकाबरोबरच अनेक नामांकित पुरस्काराने त्यांना गौरवान्वित केले आहे… मामू हा व्यक्तिचित्रणात्मक पाठ असून मामूच्या स्वभावाच्या विविध पैलूंचे वर्णन या पाठात केले आहे.

समर्पक शब्दरचना आणि चित्रदर्शी लेखनशैली हे शिवाजी सावंत यांच्या लेखनाचे वैशिष्ट्य पाठामध्ये अनेक वेळेला अनुभवायला येते. त्यांची शैली ही मध्ये मध्ये आलंकारिक होते, म्हणूनच प्रार्थना म्हणणारे विद्यार्थी असा सरळ उल्लेख न करता ते लिहितात ‘रांगा धरून उभे राहिलेले अनघड, कोवळे कंठ जोडल्या हातांनी आणि मिटल्या डोळ्यांनी भावपूर्ण सुरात प्रार्थनेतून अज्ञात शक्तीला आळवू लागतात.

त्यांच्या या वर्णनामुळे निरागस भावनेने पटांगणावर प्रार्थना म्हणणारे विद्यार्थी अक्षरशः डोळ्यासमोर उभे राहतात आणि गद्यलेखनाला काव्यात्मकतेचे रूप येते. विदयार्थ्याचा उल्लेख ते ‘चैतन्याचे छोटे कोंब’ असा करतात तर शाळेतील मोठ्या घंटेचा उल्लेख ‘थोराड घंटा’ असा करतात. इथे शब्दांची अनपेक्षित वेगळी रचना करून भाषेचे सौंदर्य ते वाढवितात. उदा. ‘कोंब’ हा शब्द झाडांच्या बाबतीत वापरला जातो तर ‘थोराड’ हा शब्द प्रौढ व्यक्तींच्या संदर्भात वापरला जातो.

पण अर्थाचे रूढ संकेत लेखक झुगारून देतो आणि शब्दांबरोबरच अर्थाला नवीन सौंदर्य बहाल मामू हे व्यक्तिमत्त्व डोळ्यासमोर शब्दशः ते उभे करतात, मामूची पांढरी दाडी, भुवया, डोक्याचा फेटा, अंगावरील नेहरू शर्ट, त्यावरील जाकीट पकिट वाँच, चुणीदार तुमान, पंपशू यांचे ते तंतोतत वर्णन करतात. त्यामुळे मामू या व्यक्तिमत्त्वाची छबी हुबेहुब डोळा हा उर्दू जाणणारा मुस्लिम माणूस असल्याने त्यांच्या तोंडची भाषा तशीच वापरून ते उर्द, हिंदी आणि बोलीभाषेचा समर्पक वापर करतात आणि लिहितात, ‘परवा परवा मामुची बुली आई अल्लाला प्यारी झाली.’

किंवा ‘लग्न ठरलं’ या शब्दाऐवजी मुस्लिम संस्कारातील ‘शादी मुबारक’, ‘अल्लाची खैर’ असे शब्द वापरतात. ‘अभिमानाची झालर त्यांच्या मुखड्यावर उतरते’ अशा शब्दांमुळे अर्थाचा आंतरिक गोडवा जाणवतो. त्यांच्या बऱ्याच शब्दरचनांमध्ये आशयाची आणि विचारांची संपन्नता जाणवत राहते. उदा. ‘धर्मापेक्षा माणूस मोठा आहे आणि माणसापेक्षा माणुसकी फार फार मोठी.’ परीक्षा केंद्रावर परीक्षेआधी जी तयारी करावी लागते त्याचे वर्णन ते अत्यंत बारकाईने करतात आणि या परीक्षेच्या जोरावर आयुष्यात यशाची शिखरं पादाक्रांत करणाऱ्या विदयार्थ्याच्या मागे शाळेतील शिपाई वर्ग किती जबाबदारीचे काम पार पाडतात हे दाखवून देतात. त्यामुळे ते नुसते पूर्वपरीक्षा वर्णन राहत नाही तर चतुर्थ श्रेणी वर्गाच्या श्रमाची दखल यानिमित्ताने ते घेतात. लेखकाची लेखणी जेव्हा सर्वसंपन्न असते तेव्हा सामान्य व्यक्तिमत्त्वाचे असामान्य पैलूही दमदारपणे साकार होतात याचा प्रत्यय हे लेखन वाचताना येतो.

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प्रश्न आ.
‘मामूच्या स्वभावातील विविध पैलूंचे विश्लेषण करा.
उत्तर :
लेखक शिवाजी सावंत यांच्या लाल माती रंगीत मने’ या व्यक्तिचित्रण संग्रहातून ‘मामू’ हा व्यक्तिचित्रणात्मक पाठ घेतला आहे. या पाठात मामूच्या स्वभावातील विविध पैलूंचे विश्लेषण केलेले आहे. मामू हा शाळेचा केवळ शिपाई नसून तो शाळेचा एक अवयव झाला आहे. गेली चाळीस वर्षे शाळेत शिपाई म्हणून काम करणारा मामू शाळेबाहेरही विविध भूमिकांतून आपल्यासमोर येतो. फळांच्या मार्केटमध्ये एखादया बागवानाच्या दुकानावर बसतो. दुकानदाराने दिलेले पैसे म्हणजे अल्लाची देन मानतो, त्याविषयी कोणतीही तक्रार करत नाही. यातून त्याची नि:स्वार्थी वृत्ती, नम्रता, सेवाभाव जाणवतो. तर कधी मुस्लिम अधिकाऱ्याच्या मुलांना उर्दूची शिकवण देतो. गरीब माणसानं किती आणि कसं हुशार असावं याचे उत्तम उदाहरण म्हणजे ‘मामू’ आहे.

कर्तबगार, समाधानी आयुष्य जगणारा मामू मुलाच्या लग्नाला आलेल्या अधिकारी वर्गाचे आभार मानायला विसरत नाही. इतका तो कृतज्ञशील आहे. तो मुलांनाही आपल्यासारखे केवळ गुणवान बनवत नाही तर आज्ञाधारकही बनवतो. त्यांच्यासाठी कर्तव्यतत्पर असतो. बदलत्या काळानुसार मुलाला शिक्षणाची संधी देतो. त्याच्या मनमिळावू स्वभावामुळेच त्याच्या मुलांच्या लग्नाला आमदार, खासदारपासून सर्वसामान्य माणसांपर्यंत सर्वच उपस्थित राहातात.

हीच त्याच्या आयुष्यभराची कमाई आहे, आईविषयीच्या आठवणी सांगताना भावूक झालेल्या मामूचे मातृप्रेमही जाणवते. कोणत्याही वर्षीचं रजिस्टर अचूक शोधून मामू माजी विदयार्थ्याला मदत करतो तर सरकारी सर्टिफिकेटच्या परीक्षांची तयारी करताना त्याची कार्यतत्परता दिसून येते. कधी खेळताना, कधी प्रार्थनेच्या वेळेस एखादा विदयार्थी चक्कर येऊन पडला तर त्याला दवाखान्यात नेणारा मामू माणुसकीचे दर्शन घडवतो. राष्ट्रीय सणांच्या दिवशी ध्वजवंदन करताना देशाविषयी नितांत प्रेम, आदर व कर्तव्यनिष्ठा दिसून येते.

वैदयकक्षेत्रातील ज्ञानही त्याला आहे आणि सहज जाता जाता तो त्याची माहिती देतो, यात कुठेही सल्ले देण्याचा आव नसतो. शाळेतील एखादया कार्यक्रमात वक्ता कसा बोलतो यासंबंधी निरीक्षणक्षमतादेखील त्याच्याकडे आहे. अशाप्रकारे मामू ही फार साधी, सरळ, प्रामाणिक, नम, कर्तव्यपरायण, देशाबद्दल प्रेम असणारी, सेवाभवी, सहृदयी, नि:स्वार्थी, हुशार अशी व्यक्ती आहे.

प्रश्न इ.
‘माणसापेक्षा माणुसकी फार फार मोठी आहे!’ या विधानातील आशयसौंदर्य तुमच्या शब्दांत लिहा.
उत्तर :
माणूस कोणत्याही जाती, धर्माचा असो त्याच्यामध्ये माणुसकी नसेल तर त्याला माणूस कसं बरं म्हणावं? आज समाज फारच बदलतोय, प्रत्येक गोष्टीसाठी माणसं फार आग्रही होत चालली आहेत. जात, धर्म यांच्या नावावर माणसं स्वतःचे स्वार्थ साधून संधीसाधू होऊ पाहत आहेत. अशावेळी माणसाचा माणसावरचा विश्वास संपत चालला आहे असं वाटतं खरं पण गंमत अशी की जेव्हा काही नैसर्गिक आपत्ती येते तेव्हा एकमेकांच्या विरोधात भांडणारी, सूड उगवणारी माणसं मदत करण्यासाठी पुढे सरसावतात.

मग त्यांच्यातील वैर संपून जातं. एखादं पोर गाडीखाली येत असेल तर चटकन कुणीतरी पुढं होऊन त्याला वाचवतं, कणी हॉस्पिटलमध्ये असेल त्याला रक्ताची गरज असेल तर कित्येक लोक मदतीला धावून जातात, आताच्या काळात कोणी कोणाचं नसतं असं म्हटलं जातं खरं पण तरीही एनजीओ चालवणाऱ्या संस्था वाढत आहेत, त्यामुळे माणूस कितीही स्वार्थी असला तरी तो त्याचं सामाजिक भान विसरलेला नाही.

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प्रकल्प :

प्रश्न 1.
‘तुमच्या परिसरातील अशी सामान्य व्यक्ती की जी तिच्या स्वभावामुळे असामान्य झाली आहे त्या व्यक्तीचे वर्णन तुमच्या शब्दात करा.
उत्तर :
रजनी ही आमच्या घरी काम करायला येणारी ताई. प्रचंड हुशार आणि तल्लख बुद्धीची तितकीच विनम्रही. आमच्याकडे ती कामाला यायला लागली तेव्हा ती आईला म्हणाली, ‘ताई, मी लहानपणापासून घरकाम करतेय पण प्रत्येक घराची पद्धत वेगळी. तुम्ही तुमच्या घरातील कामं शिकवाल ना? हे ऐकून आई खूप आनंदित झाली. असं तिला मायेने बोलणारी बाई पहिल्यांदाच भेटली होती. आईने जे शिकवलं तसं तसं ती अजून नीट काम करू लागली. माझ्या धाकट्या भावालाही जीव लावला.

घरातल्या पैपाहुण्यांची उठबस करावी ती रजनीताईनेच. हळूहळू तिनं आमच्या कॉलनीत सर्वच घरकाम करणाऱ्या बायकांना एकत्र आणलं. प्रत्येकीला मदत करण्याच्या स्वभावामुळे बायका तिच्याजवळ मन मोकळं करू लागल्या. त्या सर्वांच्या मनात ताईबद्दल केवळ स्नेह आहे. आता काही महिन्यांपूर्वी ताईने या बायकांसाठी एक भिशी सुरू केली. त्यातील पैसे घरकामवाल्या मुलांच्या शिक्षणासाठी वापरणार असा निर्धार तिने केला.

आश्चर्य म्हणजे आमच्या आईने, शेजाऱ्यांनी पुढाकार घेऊन घरकामवाल्या मावशांच्या मुलांसाठी शाळेची फी भरण्यासाठी वर्गणी जमा केली आणि बँकेत ती रक्कम फिक्स डिपॉझिटमध्ये जमा केली. जवळजवळ एक लाख रुपये जमा झाले. या सर्वांचे क्रेडिट केवळ रजनीताईला दिलं जातंय. असं म्हटलं जातं की ‘दुसऱ्यासाठी जगलास तर जगलास’ हे रजनीताईकडे बघून यथार्थ वाटतं.

11th Marathi Book Answers Chapter 1 मामू Additional Important Questions and Answers

खालील पठित गदय उताऱ्याच्या आधारे सूचनेनुसार कृती करा.

चौकट पूर्ण करा.

प्रश्न 1.
मामूच्या घरी असलेला कार्यक्रम – [ ]
उत्तरः
मामूच्या घरी असलेला कार्यक्रम – गृहप्रवेश

प्रश्न 2.
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 मामू 6
उत्तरः
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 मामू 7

प्रश्न 3.
मामूने माईक हातात घेतला कारण –
उत्तरः
लग्नासाठी जमलेल्या लोकांचे आभार मानण्यासाठी मामूने माईक हातात घेतला.

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उपयोजित कृती :

खालील वाक्यातील अधोरेखित केलेल्या शब्दांच्या जाती ओळखा.

प्रश्न 1.
त्याची अनुभवानं पांढरी झालेली दाढी थरथरत राहिली.
पैसा कमावतात म्हणून माज नाही.
उत्तर :
पांढरी – विशेषण, राहिली- क्रियापद
म्हणून – उभयान्वयी अव्यय.

प्रश्न 2.
खालील वाक्यातील क्रियापदाचा प्रकार ओळखा.
मामून पुढे येत मला हाताला धरून आघाडीला नेऊन बसवलं,
उत्तर:
संयुक्त क्रियापद

खालील शब्दांपासून अर्थपूर्ण शब्द तयार करा.

प्रश्न 1.
अ. पाखरागत : ………
आ. मजल्यावर : ………..
उत्तर :
अ. पाग, पारा, राग, रात, गत, खत, खग, खरा, तग, गरा
आ. मज, वर, जर, रज, जम, जमव

खालील शब्दांना प्रचलित मराठी भाषेतील शब्द लिहा.

प्रश्न 1.
अ. सर्टिफिकेट (certificate) –
उत्तर :
अ. प्रमाणपत्र, कॉमर्स (commerce) वाणिज्य / व्यापार

आकलन कृती

प्रश्न 1.
मामूची शाळा या सरकारी सर्टिफिकेटच्या परीक्षांचे केंद्र आहे.
उत्तरः
ड्रॉईंगच्या
कॉमर्सच्या

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प्रश्न 2.
परीक्षेच्या काळात मामू करत असलेली कामं
उत्तरः
नंबर टाकणं
बैठक व्यवस्था करणं
पाण्याची व्यवस्था करणं

प्रश्न 3.
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 मामू 8
उत्तरः
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 मामू 9

खालील ओघतक्ता पूर्ण करा.

प्रश्न 1.
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 मामू 10
उत्तरः
Maharashtra Board Class 11 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 मामू 11

प्रश्न 2.
राष्ट्रगीत संपेपर्यंत ध्वजाकडे मान उंचावून बघत राहण्याची पद्धत –
उत्तर :
राष्ट्रगीत संपेपर्यंत ध्वजाकडे मान उचावून बघत राहण्याची पद्धत – फेट्याजवळ हाताचा पंजा भिडवणे

स्वमत:

प्रश्न 1.
मामूच्या जनसंपकाविषयी तुमचे मत व्यक्त करा.
उत्तर :
मामू हा पडेल ती काम करणारी व्यक्ती, शिपाई असूनही त्याची शाळा, समाज यांविषयीची आस्था त्याच्या कामातून, वागण्यातून दिसून येते. मामू ज्या शाळेत काम करतो ती शाळा सरकारी आहे. तिथं पडेल ती कामे तो करतो. शाळेतल्या मुलांच्या, भावनांची, शरीराची, अभ्यासाचीही काळजी घेतो. तिथल्या शिक्षकांची, इमारतीची त्याला काळजी असते. त्याच्या अशा काळजीवाहू स्वभावामुळे लोक त्याच्यावरही जीव टाकतात. त्यामुळे राष्ट्रीय सणांना त्याच्या हस्ते ध्वनही फडकवला जातो.

शाळेत कुणी पाहुणे आले तर त्याला त्यांच्या पाहुणचाराविषयी फार सांगावे लागत नाही. तो त्यांच्या पदाला साजेसे आदरातिथ्य करतो. या त्याच्या लाघवी स्वभावामुळे तो सर्वानाच हवाहवासा वाटतो. त्यामुळे त्याच्या मुलाच्या लग्नातही बडी बडी मंडळी आलेली होती. शाळेतल्या सगळ्या जबाबदाऱ्या पार पाडताना कधीच तो मागे पाहत नाही. प्रेमळ, नम्र, लाघवी बोलण्यामुळे त्याचा चाहता वर्ग त्याने निर्माण केला आहे. तो सर्वांच्या मदतीला गेल्यामुळे त्याच्याही मदतीला लोक धावून जातात.

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मामू Summary in Marathi

प्रस्तावनाः

लेखक शिवाजी सावंत यांचे चरित्रात्मक कादंबरीलेखन हे आवडते लेखनक्षेत्र, ‘छावा’, ‘युगंधर’, ‘लढत’ या त्यांच्या प्रसिद्ध कादंबऱ्या होत. ‘मृत्युंजय’ ही त्यांची लोकप्रिय कादंबरी म्हणजे त्यांच्या लेखनकर्तृत्वाचे शिखर आहे. ‘अशी मने असे नमुने’, ‘मोरावळा’ ‘लाल माती रंगीत मने’ हे ‘व्यक्तिचित्रण संग्रह प्रसिद्ध’ भारतीय ज्ञानपीठाचा ‘मूर्तिदेवी पुरस्कार’ तसेच सर्वोत्कृष्ट वाङ्मयाच्या महाराष्ट्र राज्य पुरस्काराने पाच वेळा त्यांचा गौरव केला असून पुणे विद्यापीठातर्फे ‘जीवनगौरव’ पुरस्कार असे अनेक पुरस्कार त्यांना मिळाले आहेत. 1990 या वर्षी साहित्याच्या नोबेल पारितोषिकासाठी त्यांचे नामांकन झालेले होते.

सर्वोत्कृष्ट वाङ्मयकार म्हणून परिचित असलेले शिवाजी सावंत’ यांनी ‘लाल माती रंगीत मने’ या व्यक्तिचित्रणातून मामू या व्यक्तिरेखेच्या विविध पैलूंचे वर्णन केले आहे. प्रामाणिक, देशाभिमानी, नम्र, सेवाभावी, सहृदयी असलेला ‘मामू’ माणुसकीचे विलोभनीय दर्शन घडवतो. ‘मामू’ च्या जीवन प्रवासाचे वर्णन प्रस्तुत पाठात आले आहे.

पाठाचा परिचय :

सर्वोत्कृष्ट वाङमयकार म्हणून परिचित असलेले ‘शिवाजी सावंत’ यांनी ‘लाल माती रंगीत मने’ या व्यक्तिचित्रणातून मामू या व्यक्तिरेखेच्या विविध पैलूंचे वर्णन केले आहे. प्रामाणिक, देशाभिमानी, नम्र, सेवाभावी, सहदयी असलेला ‘मामू’ माणुसकीचे विलोभनीय दर्शन घडवतो. ‘मामू’ च्या जीवन प्रवासाचे वर्णन प्रस्तुत पाठात आले आहे.

शाळेची घंटा वाजवल्यानंतर मुलांनी प्रार्थनेसाठी रांगा केल्या व हात जोडून, डोळे मिटून भावपूर्ण सुरात प्रार्थना म्हटली. ‘मामू’ मात्र दगडी खांबाला टेकून विचारमग्न झालेला होता. ‘जनगणमन’ सुरू होताच पाय जोडून सावधान स्थितीत उभा होता.

कोल्हापूर संस्थानातील राजाराम महाराजांच्या काळापासून ते आजपर्यंत मामू चाळीस वर्षे या शाळेत काम करतो आहे. त्यानं दोन राज्य बंधितली, संस्थानाचं आणि लोकशाहीचं, कोल्हापूरच्या कैक पिढ्या त्याने बघितल्या आहेत, संस्थानाच्या काळात महाराजांचा मुक्काम पन्हाळ्यावर असताना मामूची चौदा मैलांची पायपीट व त्याच्या साथीदारांसह आलेला अनुभव तो अभिमानाने सांगतो. संस्थाने विलीन झाली, मामूसारखा चाकर वर्ग (कामगार वर्ग) पांगला गेला आणि मामू या शाळेत शिपाई म्हणून हजर झाला.

डोक्यावर अबोली रंगाचा फेटा, अंगात नेहरू शर्ट व त्यावर निळे जाकिट, जाकिटाच्या खिशात चांदीच्या साखळीचं जुनं घड्याळ, घोट्यापर्यंत पायजम्यासारखी तुमान, पायात जुना बूट (पंपशू) अशी मामूची साधी राहणी आहे.

शाळेच्या बाहेरही माम् अनेक कामे करतो. फळांच्या दुकानावर काही वेळा फळे विकणे आणि तो मालक जो मोबदला देईल तो घेणे. एखादया मुस्लिम अधिकाऱ्याच्या मुलांना उर्दू शिकवणे, त्याचप्रमाणे मौलवी, व्यापारी, उस्ताद अशी अनेक रूपे त्यांची दिसतात.

लेखक मामूला दहा वर्षांपासून अनुभवतो आहे. मामू गरीब असला तरी हुशार आहे. त्याची मुलं गुणवान आहेत, पैसे कमवतात, मामूचा शब्द पाळतात, मामूच्या निमंत्रणानुसार त्याच्या दुसऱ्या मुलाच्या लग्नाला लेखक गेले. तेथे खासदार, आमदार, शिक्षक, व्यापारी, प्राध्यापक, उपस्थित होते. त्याचं समाधान सर्वांचे आभार मानताना त्याच्या सफेद दाढीवर दिसत होतं.

धर्मापेक्षा माणूस मोठा आहे आणि माणसापेक्षा माणुसकी फार फार मोठी आहे. या विचारांची रुजवणूक ‘मामू’ कडे बघून होते. मामूचा शेवटचा मुलगा एस.एस.सी पास झाल्यावर लेखकाच्या सांगण्यावरून त्यानं त्याला कॉलेजात दाखल केलं.

मामूची आई देवाघरी गेल्यानंतर आईची आठवण सांगताना नातवंडं असलेला मामू लहान मुलासारखा वाटतो आणि आईची माया जगात कुठेच मिळत नाही, असे सांगताना त्याचे डोळे पाणावतात.

शंभर वर्षे जुना असलेल्या शाळेतला रेकॉर्ड मामू अचूक शोधून आणतो. माजी विद्यार्थी 1920-22 सालचा दाखला मागतो. त्यावेळी मामू अचूक ते रजिस्टर शोधून काढतो व वेळेत दाखला मिळाल्यावर त्या विदयाथ्याने मामूला चहासाठी आग्रह केल्यावर, चहा पिताना मामूच्या जुन्या आठवणींना उजाळा मिळतो. सरकारी सर्टिफिकेटच्या परीक्षा शाळेत असल्या की, म्हाताऱ्या मामूच्या पाखरासारख्या हालचाली सुरू होतात.

कधी खेळताना, कधी प्रार्थनेच्या वेळी एखादा मुलगा चक्कर येऊन कोसळला तर मामू रिक्षा आणून त्या मुलाला मायेने धीर देकन डॉक्टरकडे घेऊन जातो. त्याला वैदयकाचंही ज्ञान आहे. तो एखादया शिक्षकाला तब्येत सुधारण्यासाठी खारका खाण्याची पद्धत सांगतो. कुणाच्या पायाला लागलं तर कोणता पाला वाटून त्यावर लावावा याचा सल्ला मामू द्यायला विसरत नाही.

सव्वीस जानेवारी, पंधरा ऑगस्ट या राष्ट्रीय सणांच्या दिवशी मामूच्या हाताने राष्ट्रध्वज दंडावर चढतो व राष्ट्रगीत संपेपर्यंत मामू मान उंचावून झेंड्याकडे अभिमानाने बघत राहतो.

लेखकाकडे कुणी पाहुणा आला आणि नुसती मान डोलवली की, तोच इशारा पकडत मामू चहाची ऑर्डर देतो. पाहुणा बसेपर्यंत चहा दाखल होतो. मामू एखादया कार्यक्रमाच्या वेळी मुलांसमोर दहा-वीस मिनिटे बोलू शकतो.

शाळेतील कार्यक्रमाचे नेहमीप्रमाणे मामू नियोजन करत असतो. त्या कार्यक्रमात वक्ता कसा बोलतो ते एका कोपऱ्यात उभे राहून ऐकतो. कार्यक्रम संपल्यानंतर मामूला कार्यक्रमाबद्दल विचारणा झाली तर तो म्हणतो. बोलला चांगला तो, पण म्हणावी तशी रंगत आली नाही.

सरकारी नियमाप्रमाणे आणखी वर्षभरानंतर मामू आमच्यात नसेल पण असेच मामूच्या हातांनी शाळेत घंटेचे घण घण घण टोल पडत राहावे आणि हात जोडून व मिटल्या डोळ्यांनी प्रार्थना ऐकत बूला मामू दगडी खांबाला रेलून विचारात कायम हरवलेला बघायला मिळावा अशीच लेखकाची इच्छा आहे.

शाळेत शिपाई म्हणून काम करत असताना कर्तव्यनिष्ठ, नम्र, तत्पर, संवेदनशील वृत्तीमुळे मामू स्वतःचे वेगळे स्थान शाळेत निर्माण करतोच पण त्याची ग्रामीण भाषाही मनाला भिडणारी आहे.

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समानार्थी शब्द / पर्यायी शब्द :

  1. चर्या – भाव/छटा – (feeling, emotion)
  2. अंतर्भाव – समाविष्ट – (inclusion)
  3. अनघड – अपरिपक्व, न घडलेला – (immature)
  4. मासला – उदाहरण – (example)
  5. कंठ – स्वर निघतो तो अवयव – (throat)
  6. अज्ञात – अपरिचित, माहिती नसलेला – (unknown)
  7. आळवणे – सुस्वराने गाणे
  8. कोंब – अंकुर – (a sprout)
  9. मुखडा – चेहरा – (face)
  10. विलीन – समाविष्ट – (absorbed in. mereed)
  11. अवाढव्य – खुप मोठे – (hure)
  12. इमानी – प्रामाणिक – (an honest)
  13. तुमान – पॅन्ट – (loose trousers)
  14. पंपश् – पायातील बूटाचा प्रकार
  15. चण – शरीरयष्टी – (figure)
  16. उमदा – उदार, मोकळ्या मनाचा – (noble, generous)
  17. उय – पद्धत (manner of action)
  18. अगणित – असंख्य, मोजता न येणारे – (countless, innumerable)
  19. वैदयक – वैदयशास्त्र – (the science of medicine).

वाक्प्रचार व त्याचे अर्थ :

  1. गुंतून पडणे – विचारमग्न होणे.
  2. इशारत मिळणे – आदेश मिळणे, खुणावणे, ऑर्डर मिळणे.
  3. चौबाटा पांगणे – चहुकडे पांगणे.
  4. पारख करणे – ओळखता येणे.
  5. चाकरी करणे – नोकरी करणे.
  6. चीज होणे – योग्य फळ मिळणे, यश प्राप्त होणे, कंठ दाटून येणे – गहिवरून येणे.
  7. निधार बांधणे – ठाम निश्चय करणे.
  8. आब असणे – नाव असणे / नावलौकिक असणे / भूषण असणे.
  9. रुजू होणे – दाखल होणे.
  10. लकडा लावणे – एखादया गोष्टीसाठी खूप मागे लागणे.
  11. नेट धरणे – धीर धरणे.

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