Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.2 वृंद के दोहे

Balbharti Maharashtra State Board Hindi Yuvakbharati 12th Digest Chapter 5.2 वृंद के दोहे Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

Maharashtra State Board 12th Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.2 वृंद के दोहे

12th Hindi Guide Chapter 5.2 वृंद के दोहे Textbook Questions and Answers

कृति-स्वाध्याय एवं उत्तर

आकलन

प्रश्न 1.
(अ) कारण लिखिए :
(a) सरस्वती के भंडार को अपूर्व कहा गया है :- ………………………………………..
(b) व्यापार में दूसरी बार छल-कपट करना असंभव होता है :- ………………………………………..
उत्तर :
(a) सरस्वती के भंडार को जैसे-जैसे खर्च किया जाता रहता है, वैसे-वैसे वह अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचता रहता है अर्थात उसमें वृद्धि होती रहती है। इसलिए सरस्वती के भंडार को अपूर्व कहा गया है।
(b) व्यापार में पहली बार किया गया छल-कपट सामने वाले पक्ष को समझते देर नहीं लगती। दूसरी बार वह सतर्क हो जाता है। इसलिए व्यापार में दूसरी बार छल-कपट करना असंभव होता है।

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(आ) सहसंबंध जोड़िए :
(a) काग निबौरी लेत गुन बिन बड़पन कोइ – (b) ऊँचे बैठे ना लहैं,
(b) कोकिल अंबहि लेत है। – (b) बैठो देवल सिखर पर, वायस गरुड़ न होइ।
उत्तर :
(a) ऊँचे बैठे ना लहैं, गुन बिन बड़पन कोइ। – (b) बैठो देवल सिखर पर वायस गरुड़ न होइ।।
(b) कोकिल अंबहि लेत है, – (b) काग निबौरी लेत।

शब्दसंपदा

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों के लिए विलोम शब्द लिखिए :
(१) आदर – ………………………………………..
(२) अस्त – ………………………………………..
(३) कपूत – ………………………………………..
(४) पतन – ………………………………………..
उत्तर :
(1) आदर x अनादर
(2) अस्त x उदय
(3) कपूत x सपूत
(4) पतन x उत्थान।

अभिव्यक्ति

प्रश्न 3.
(अ) चादर देखकर पैर फैलाना बुद्धिमानी कहलाती है’, इस विषय पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
चादर देखकर पैर फैलाने का अर्थ है, जितनी अपनी क्षमता हो उतने में ही काम चलाना। यह अर्थशास्त्र का साधारण नियम है। सामान्य व्यक्तियों से लेकर बड़ी-बड़ी कंपनियाँ भी इस नियम का पालन करती हैं। जो लोग इस नियम के आधार पर अपना कार्य करते हैं, उनके काम सुचारु रूप से चलते हैं।

जो लोग बिना सोचे-विचारे किसी काम की शुरुआत कर देते हैं और अपनी क्षमता का ध्यान नहीं रखते, उनके सामने आगे चलकर आर्थिक संकट उपस्थित हो जाता है। इसके कारण काम ठप हो जाता है। इसलिए समझदारी इसी में है कि अपनी क्षमता का अंदाज लगाकर ही कोई कार्य शुरू किया जाए। इससे कार्य आसानी से पूरा हो जाता है। चादर देखकर पैर फैलाने में ही बुद्धिमानी होती है।

(आ) ‘ज्ञान की पूँजी बढ़ानी चाहिए’, इस विषय पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
ज्ञान मनुष्य की अमूल्य पूँजी है। बचपन से मृत्यु तक मनुष्य विभिन्न स्रोतों से ज्ञान की प्राप्ति करता रहता है। बचपन में उसे अपने माता-पिता, अपने शिक्षकों, गुरुजनों तथा मिलने-जुलने वालों से ज्ञान की प्राप्ति होती है। ज्ञान का भंडार अथाह है। कुछ ज्ञान हमें स्वाभाविक रूप से मिल जाता है, पर कुछ के लिए हमें स्वयं प्रयास करना पड़ता है। ज्ञान किसी एक की धरोहर नहीं है। ज्ञान हमारे चारों तरफ बिखरा पड़ा है।

उसे देखने की दृष्टि की जरूरत होती है। संतों, महात्माओं तथा मनीषियों के व्याख्यानों, हितोपदेशों, नीतिकथाओं, बोधकथाओं तथा विभिन्न धर्मों के महान ग्रंथों में ज्ञान का भंडार है। हर मनुष्य अपनी क्षमता और आवश्यकता के अनुसार अपने ज्ञान की पूँजी में वृद्धि करता रहता है। भगवान महावीर, बुद्ध तथा महात्मा गांधी जैसे महापुरुष अपनी ज्ञान की पूँजी तथा अपने कार्यों के बल पर जनसामान्य के पूज्य बन गए हैं। इसलिए मनुष्य को सदा अपने ज्ञान की पूँजी बढ़ाते रहना चाहिए।

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रसास्वादन

प्रश्न 4.
जीवन के अनुभवों और वास्तविकता से परिचित कराने वाले वृंद जी के दोहों का रसास्वादन कीजिए।
उत्तर :
कवि वृंद ने अपने लोकप्रिय छंद दोहों के माध्यम से सीधे-सादे ढंग से जीवन के अनुभवों से परिचित कराया है तथा। जीवन का वास्तविक मार्ग दिखाया है।

कवि व्यावहारिक ज्ञान देते हुए कहते हैं कि मनुष्य को अपनी आर्थिक क्षमता को ध्यान में रखकर किसी काम की शुरुआत करनी चाहिए। तभी सफलता मिल सकती है। इसी तरह व्यापार करने वालों को सचेत करते हुए उन्होंने कहा है कि वे व्यापार में छल-कपट का सहारा न लें। इससे वे अपना ही नुकसान करेंगे। वे कहते हैं कि।

किसी का सहारा मिलने के भरोसे मनुष्य को हाथ पर हाथ धरकर निष्क्रिय नहीं बैठ जाना चाहिए। मनुष्य को अपना काम तो करते ही रहना चाहिए। इसी तरह से वे कुटिल व्यक्तियों के मुँह न लगने की उपयोगी सलाह देते हैं, वह उस समय आपको कुछ ऐसा भला-बुरा सुना सकता है, जो आपको प्रिय न लगे।

अपने आप को बड़ा बताने से कोई बड़ा नहीं हो जाता। जिसमें बड़प्पन के गुण होते हैं उसी को लोग बड़ा मनुष्य मानते हैं। गुणों के बारे में उनका कहना है कि जिसके अंदर जैसा गुण होता है, उसे वैसा ही लाभ मिलता है। कोयल को मधुर आम मिलता है और कौवे को कड़वी निबौली। बिना सोचे विचार किया गया कोई काम अपने लिए ही नुकसानदेह होता है। वे कहते हैं कि बच्चे के अच्छे-बुरे होने के लक्षण पालने में ही दिखाई दे जाते हैं, ठीक उसी तरह जैसे किसी पौधे के पत्तों को देखकर उसकी प्रगति का पता चल जाता है।

कवि एक अनूठी बात बताते हुए कहते हैं कि संसार की किसी भी चीज को खर्च करने पर उसमें कमी आती है, पर ज्ञान एक ऐसी चीज है, जिसके भंडार को जितना खर्च किया जाए वह उतना ही बढ़ता जाता है। उसकी एक विशेषता यह भी है कि यदि उसे खर्च न किया जाए तो वह नष्ट होता जाता है।

कवि ने विविध प्रतीकों की उपमाओं के द्वारा अपनी बात को अत्यंत प्रभावशाली ढंग से व्यक्त किया है। दोहों का प्रसाद गुण उनकी बात को स्पष्ट करने में सहायक होता है।

साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान

प्रश्न 5.
(अ) वृंद जी की प्रमुख रचनाएँ – ………………………………………..
उत्तर :
वृंद जी की प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं : वृंद सतसई, समेत शिखर छंद, भाव पंचाशिका, पवन पचीसी, हितोपदेश, यमक सतसई, वचनिका तथा सत्यस्वरूप आदि।

(आ) दोहा छंद की विशेषता – ………………………………………..
उत्तर :
दोहा अर्ध सम मात्रिक छंद है। इसके चार चरण होते हैं। दोहे के प्रथम और तृतीय (विषम) चरण में 13 – 13 मात्राएँ होती हैं तथा द्वितीय और चतुर्थ (सम) चरणों में 11 – 11 मात्राएँ होती हैं। दोहे के प्रत्येक चरण के अंत में लघु वर्ण आता है।
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अलंकार

जिस प्रकार स्वर्ण आदि के आभूषणों से शरीर की शोभा बढ़ती है उसी प्रकार जिन साधनों से काव्य की सुंदरता में वृद्धि होती है; वहाँ अलंकार की उत्पत्ति होती है।

मुख्य रूप से अलंकार के तीन भेद हैं –

  • शब्दालंकार,
  • अर्थालंकार,
  • उभयालंकार

ग्यारहवीं कक्षा की युवकभारती पाठ्यपुस्तक में हमने ‘शब्दालंकार’ का अध्ययन किया है। यहाँ हम अर्थालंकार का अध्ययन करेंगे।

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रूपक : जहाँ प्रस्तुत अथवा उपमेय पर उपमान अर्थात अप्रस्तुत का आरोप होता है अथवा उपमेय या उपमान को एकरूप मान लिया जाता है; वहाँ रूपक अलंकार होता है अर्थात एक वस्तु के साथ दूसरी वस्तु को इस प्रकार रखना कि दोनों अभिन्न मालूम हों, दोनों में अंतर दिखाई न पड़े।

उदा. –
(१) उधो, मेरा हृदयतल था एक उद्यान न्यारा।
शोभा देतीं अमित उसमें कल्पना-क्यारियाँ भी।।
(२) पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।
(३) चरण-सरोज पखारन लागा।
(४) सिंधु-सेज पर धरा-वधू।
अब तनिक संकुचित बैठी-सी।।

उपमा : जहाँ पर किसी एक वस्तु की तुलना दूसरी लोक प्रसिद्ध वस्तु से रूप, रंग, गुण, धर्म या आकार के आधार पर की जाती हो; वहाँ उपमा अलंकार होता है अर्थात जहाँ उपमेय की तुलना उपमान से की जाए; वहाँ उपमा अलंकार उत्पन्न होता है।
उदा. –
(१) चरण-कमल-सम कोमल।
(२) राधा-वदन चंद सो सुंदर।
(३) जियु बिनु देह, नदी बिनु वारी।
तैसे हि अनाथ, पुरुष बिनु नारी।।
(४) ऊँची-नीची सड़क, बुढ़िया के कूबड़-सी।
नंदनवन-सी फूल उठी, छोटी-सी कुटिया मेरी।
(५) मोती की लड़ियों से सुंदर, झरते हैं झाग भरे निर्झर।
(६) पीपर पात सरस मन डोला।

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Hindi Yuvakbharati 12th Digest Chapter 5.2 वृंद के दोहे Additional Important Questions and Answers

कृतिपत्रिका के प्रश्न 2 (अ) तथा प्रश्न 2 (आ) के लिए।
पद्यांश क्र.1
प्रश्न. निम्नलिखित पद्यांशपढ़करदी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
उत्तर लिखिए :
(1) आँखों की तुलना की गई है इससे – ……………………………………
(2) काम शुरू करने से पहले इसके बारे में सोचना बहुत जरूरी होता है – ……………………………………
(3) दूसरे की आशा के भरोसे यह बंद नहीं करना चाहिए – ……………………………………
(4) पद्यांश में प्रयुक्त पानी रखने के काम आने वाला मिट्टी का बरतन – ……………………………………
उत्तर :
(1) आरसी (आईने) से।
(2) अपनी पहुँच (क्षमता)।
(3) कोशिश करना।
(4) गगरी।

प्रश्न 2.
पद्यांश में प्रयुक्त दो कहावतें :
(1) …………………………………………….
(2) …………………………………………….
उत्तर :
(1) तेते पाँव पसारिए, जेती लांबी सौर। (अर्थ : जितना सामर्थ्य हो उतना ही खर्च करना चाहिए।)
(2) काठ की हँड़िया बार-बार नही चढ़ती। (अर्थ : धोखा बार-बार नहीं दिया जा सकता।)

कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों को शुद्ध रूप में लिखिए :
(1) सुरसति – ……………………………….
(2) अपूरब – ……………………………….
(3) गुन – ……………………………….
(4) सिखर – ……………………………….
उत्तर :
(1) सुरसति – सरस्वती
(2) अपूरब – अपूर्व
(3) गुन – गुण
(4) सिखर – शिखर।

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों के लिंग पहचानकर लिखिए :
(1) आरसी – ……………………………….
(2) सौर – ……………………………….
(3) काठ – ……………………………….
(4) वायस – ……………………………….
उत्तर :
(1) आरसी – स्त्रीलिंग
(2) सौर – स्त्रीलिंग
(3) काठ – पुल्लिंग
(4) वायस – पुल्लिंग।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों के विरुद्धार्थी शब्द लिखिए :
(1) बढ़ना x ……………………………….
(2) कपट x ……………………………….
(3) गन x ……………………………….
(4) आशा x ……………………………….
उत्तर :
(1) बढ़ना x घटना
(2) कपट x निष्कपट
(3) गुन x अवगुन
(4) आशा x निराशा।

पद्यांश क्र.2
प्रश्न. निम्नलिखित पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
कारण लिखिए :
(1) नीच को छेड़ना नहीं चाहिए – ………………………………………………
(2) उच्च पद पर आसीन का पतन निश्चित है – ………………………………………………
उत्तर :
(1) नीच को छेड़ना नहीं चाहिए – क्योंकि नीच को छेड़ना कीचड़ है में पत्थर डालने के समान है, जिससे कीचड़ उछलकर अपने ऊपर ही आता है।
(2) उच्च पद पर आसीन का पतन निश्चित है – कोई कितने ही उच्च पद पर क्यों न हो, किसी न किसी दिन किसी कारण से अथवा सेवा निवृत्त होने पर उसे अपने पद से नीचे उतरना ही पड़ता है।

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प्रश्न 2.
सहसंबंध जोड़िए:
(1) होनहार बिरवान के, (1) काग निबौरी लेत।
(2) अपनी पहुँच बिचारि कै, करतब करिए दौर। (2) बैठो देवल सिखर पर वायस गरुड़ न होइ।।
उत्तर :
(1) होनहार बिरवान के, (1) होत चीकने पात।
(1) अपनी पहुँच बिचारि कै, करतब करिए दौर। (2) तेते पाँव पसारिए, जेती लांबी सौर।।

प्रश्न 3.
उत्तर लिखिए :
(1) सूर्य इस समय तपता है – ………………………………………………
(2) नबौरियों का आदर करने वाला – ………………………………………………
(3) यह कार्य अपने लिए हानिकारक होता है – ………………………………………………
(4) चिकने पात इनके होते हैं – ………………………………………………
उत्तर :
(1) मध्याह्न में।
(2) काग।
(3) अविवेक के साथ किया गया कार्य।
(4) होनहार पौधों के।

प्रश्न 4.
लिखिए :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.2 वृंद के दोहे 2
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.2 वृंद के दोहे 3

कृति 2 : (शब्द संपदा)

(2) निम्नलिखित शब्दों के समानार्थी शब्द लिखिए :
(1) पाथर (पत्थर) = ………………………………………………
(2) भान (भानु) = ………………………………………………
(3) कोकिल = ………………………………………………
(4) मात = ………………………………………………
उत्तर :
(1) पाथर (पत्थर) = पाषाण
(2) भान (भानु) = सूर्य
(3) कोकिल = कोयल
(4) मात = शरीर।

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रसास्वादन मुद्दों के आधार पर
(कृतिपत्रिका के प्रश्न 2 (इ) के लिए

प्रश्न 1.
निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर वृंद के दोहे’ का रसास्वादन कीजिए :
उत्तर :
(1) रचना का शीर्षक : वृंद के दोहे।
(2) रचनाकार : वृंद। (पूरा नाम : वृंदावनदास)
(3) कविता की केंद्रीय कल्पना : प्रस्तूत दोहों में कई नीतिपरक बातों की सीख दी गई है। इस तरह कविता की केंद्रीय कल्पना नीतिपरक बातें हैं।
(4) रस-अलंकार :

(5) प्रतीक विधान : कवि वृंद के दोहों मे समझाने के लिए कई प्रतीकों का सुंदर उपयोग किया है। कविता में प्रयुक्त इन प्रतीकों में नयना, सौर (चादर), काठ की हाँड़ी, वायस, गरुड़, गागरि, पाथर, कोकिल, अंबा, निबौली, कुल्हाड़ी तथा बिरवान आदि प्रतीकों का समावेश है।

(6) कल्पना : अनेक नीति-परक उपयोगी बातें दोहों का विषय।

(7) पसंद की पंक्तियाँ तथा प्रभाव : कविता की पसंद की पंक्तियाँ इस प्रकार हैं :
सुरसति के भंडार की, बड़ी अपूरब बात।
ज्यौं खरचै त्यौं-त्यौं बढ़े, बिन खरचे घटि जात।
इन पंक्तियों से ज्ञान के भंडार की विपुलता तथा उसके विशेष गुण की महत्ता की जानकारी होती है।

(8) कविता पसंद आने का कारण : संसार में कोई वस्तु ऐसी नहीं है, जो किसी को देने से कम न होती हो। लेकिन ज्ञान का भंडार निराला है। इस ज्ञान को जितना खर्च किया जाए, उतना ही अधिक बढ़ता है। इतना ही नहीं, यदि इसे दूसरों को न दिया जाए और अपने ही पास जमा करके रहने दिया जाए, तो यह नष्ट हो जाता है।

व्याकरण

अलंकार :

प्रश्न 1.
निम्नलिखित काव्य पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार पहचानकर उनके नाम लिखिए :

(1) जान पड़ता है नेत्र देख बड़े-बड़े
हीरकों में गोल नीलम है जड़े

(2) करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान।
रसरी आवत जात से, सिल पर पड़त निसान।

(3) पत्रा ही तिरर्थ पाइयो, वाँ घर के चहुँ पास।
नितप्रति पूनो ही रह्यो आनन ओप उजास।

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(4) ओ अकूल की उज्जवल हास।
अरी अतल की पुलकित श्वास।
महानंद की मधुर उमंग।
चिर शाश्वत की अस्थिर लास।

(5) सठ सुधरहि सत संगति पाई।
पारस परसि कुधातु सुहाई।
उत्तर :
(1) उत्प्रेक्षा अलंकार
(2) दृष्टांत अलंकार
(3) अतिशयोक्ति अलंकार
(4) रूपक अलंकार
(5) दृष्टांत अलंकार।

रस

प्रश्न 1.
निम्नलिखित काव्य पंक्तियों में प्रयुक्त रस पहचानकर लिखिए :
(1) कहा कैकेयी ने सक्रोध
दूर हट! दूर हट! निर्बोध!
द्विजिव्हे रस में विष मत घोल।

(2) कबहूँ ससि माँगत आरि करें, कबहूँ प्रतिबिंब निहारि डरै।
कबहूँ करताल बजाइ कै नाचत, मातु सबै मन मोद मरे।।
कबहूँ रिसिआइ कहैं हठि कै, पुनि लेत सोई जेहि लागि रैं।
अवेधेस के बालक, चारि सदा, तुलसी मन मंदिर में बिहरै।।

(3) दूलह श्री रघुनाथ बने, दुलही सिय सुंदर मंदिर माहीं।
गावति गीत सबै मिलि सुंदर, वेद जुवा जुरि विप्र पढ़ाहीं।
राम को रूप निहारति जानकी, कंकन के नग की परछाहीं।
यातै सबै सुधि भूल गई कर टेकि रही पल, टारति नाहीं।। (तुलसीदास-कवितावली)

(4) मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई।
जाके सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई।
साधुन संग बैठि-बैठि, लोक लाज खोई।
अब तो बात फैलि गई जानत सब कोई।
अँसुवन जल सींचिं-सींचि प्रेम बेलि बोई।
मीरा को लगन लागी होनी होइ सो होई।

(5) लीन्हौं उखारि पहार विसाल, चल्यो तेहि काल बिलंब न लायो।
मारुत नंदन मारुत को, मन को, खगराज को वेग लजायो।
तीखी तुरा तुलसी कहती पै हिए उपमा को समाउ न आयौ।
मानो प्रत्यच्छ परब्बत की नभ लीक लसी कपि यों धुकि धायौ।
उत्तर :
(1) रौद्र रस
(2) वात्सल्य रस
(3) शृंगार रस
(4) भक्ति रस
(5) अद्भुत रस।

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मुहावरे

निम्नलिखित मुहावरों के अर्थ लिखकर वाक्य में प्रयोग कीजिए :

(1) ओखली में सिर देना।
अर्थ : जानबूझ कर जोखिम उठाना।
वाक्य : आदिवासियों का वह नेता अपने भाइयों के हित की लड़ाई लड़ने के लिए ओखली में सिर देने के लिए हमेशा तैयार रहता था।

(2) डूबती नैया पार लगाना।
अर्थ : कष्टों से छुटकारा देना।
वाक्य : सेठ जी ने अपने कर्मचारी को कर्ज से छुटकारा दिलाकर उसकी डूबती नैया पार करा दी

(3) तलवे चाटना।
अर्थ : खुशामद करना।
वाक्य : अपना काम करवाने के लिए बड़े-बड़े लोगों को भी अधिकारियों के तलवे चाटने पड़ते हैं

(4) पेट काटना।
अर्थ : भूखा रहना।
वाक्य : रमेश को अपनी सीमित आय में अपने दोनों बच्चों को पेट काटकर पढ़ाना पड़ा था

(5) हाथ खींचना।
अर्थ : साथ न देना।
वाक्य : बेटे के हाथ खींच लेने के बाद रघु को गृहस्थी चलाना भारी पड़ रहा है।

काल परिवर्तन

प्रश्न 1.
सूचना के अनुसार काल परिवर्तन कर वाक्य फिर से लिखिए :
(1) होनहार पौधों के पत्ते चिकने होते हैं। (सामान्य भविष्यकाल)
(2) कोयल आम का स्वाद लेती है। (अपूर्ण भूतकाल)
(3) आईना भला-बुरा बता देता है। (पूर्ण वर्तमानकाल)
(4) काठ की हाँडी दुबारा नहीं चढ़ेगी। (सामान्य वर्तमानकाल)
(5) मंदिर के शिखर पर कौआ बैठा है। (पूर्ण भूतकाल)
उत्तर :
(1) होनहार पौधों के पत्ते चिकने होंगे
(2) कोयल आम का स्वाद ले रही थी
(3) आईने ने भला-बुरा बता दिया है
(4) काठ की हाँडी दुबारा नहीं चढ़ती
(5) मंदिर के शिखर पर कौआ बैठा था

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वाक्य शुद्धिकरण

प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्य शुद्ध करके फिर से लिखिए :
(1) मैं मेरा काम दूसरे से करवाता है।
(2) सारे विद्यालय के विद्यार्थी पढ़ने में तेज है।
(3) पशु का झुंड देखकर मैं डर गए।
(4) वह अपनी पाँव पर खुद कुल्हाड़ी मारता हैं।
(5) मध्याह्न के सूर्य तपते है।
उत्तर :
(1) मैं अपना काम दूसरे से करवाता हूँ।
(2) विद्यालय के सारे विद्यार्थी पढ़ने में तेज हैं
(3) पशुओं का झुंड देखकर मैं डर गया
(4) वह अपने पाँव पर खुद कुल्हाड़ी मारता है
(5) मध्याह्न का सूर्य तपता है।

वृंद के दोहे Summary in Hindi

वृंद के दोहे कवि का परिचय

वृंद के दोहे कवि का नाम : वृंद। पूरा नाम : वृंदावनदास। (जन्म 1643; निधन 1723.)

वृंद के दोहे प्रमुख कृतियाँ : वृंद सतसई, समेत शिखर छंद, भाव पंचाशिका, पवन पचीसी, हितोपदेश संधि, यमक सतसई, वचनिका, सत्यस्वरूप, बारहमासा आदि।

वृंद के दोहे विशेषता : रीतिकालीन परंपरा के अंतर्गत आपका नाम आदर के साथ लिया जाता है। आपकी रचनाएँ रीतिबद्ध परंपरा में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती हैं। आपने काव्य के विविध प्रकारों में रचनाएँ रची हैं। आपके नीतिपरक दोहे जनसाधारण में बहुत प्रसिद्ध हैं। विधा दोहा छंद। रीतिकालीन काव्य परंपरा में दोहा छंद का विशेष स्थान रहा है। दोहा अर्ध सम मात्रिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण के अंत में लघुवर्ण आता है। इसके चार चरण होते हैं, प्रथम और तृतीय चरण में 13 – 13 मात्राएँ होती हैं तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में 11 – 11 मात्राएँ होती हैं।

वृंद के दोहे विषय प्रवेश : कवि वृंद अपने दोहों के माध्यम से अपनी सरल-सुबोध भाषा में अत्यंत उपयोगी एवं व्यावहारिक बातों से परिचित करते हैं। प्रस्तुत दोहों में उन्होंने विद्या की विशेषता, आँखों की पहचानने की शक्ति, अपनी क्षमता के अनुरूप काम करने, व्यापार करने के सही ढंग, गुण के अनुसार आदर पाने, नीच को न छेड़ने तथा पालने में ही बच्चे के लक्षण दिख जाने आदि नीतिपरक बातें बताई हैं।

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वृंद के दोहे दोहों का सरल अर्थ

  1. कवि वृंद कहते हैं कि माँ सरस्वती के ज्ञान की बात बहुत अनूठी और अपूर्व है। इस ज्ञान के भंडार को जितना खर्च किया जाए अर्थात जितना बाँटा जाए उतना ही बढ़ता है। यदि ज्ञान को बाँटा न जाए, तो इसमें कमी आती जाती है। कवि वृंद कहते हैं कि आँखें हित और अहित की सारी बातें उसी तरह बता देती हैं, जैसे निर्मल आईने से अच्छी और बुरी दोनों तरह की बातों का पता चल जाता है।
  2. कवि कहते हैं कि हमारी जितनी क्षमता हो, उसी के अनुसार हमें अपने कार्य का फैलाव करना चाहिए। कवि उदाहरण देते हुए कहते हैं कि हमारी चादर की लंबाई जितनी हो, हमें उतने ही पाँव फैलाने चाहिए। यदि हम ऐसा नहीं करते, तो हम अपना कार्य पूरा नहीं कर सकते।
  3. कवि कहते हैं कि व्यापार यानी लेन-देन में हमें छल-कपट का सहारा नहीं लेना चाहिए। यदि हम एक बार छल-कपट से काम लेते हैं, तो दूसरी बार हम व्यापारी अथवा ग्राहक से लेन-देन नहीं कर सकते। कवि काठ की हाँडी का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि जिस प्रकार काठ की हाँडी एक बार ही आग पर चढ़ाई जा सकती है, दूसरी बार वह काम में नहीं आ सकती, उसी प्रकार छल-कपट से व्यापार में एक ही बार किसी को धोखा दिया जा सकता है, दूसरी बार यह तरीका काम में नहीं लाया जा सकता।
  4. कवि कहते हैं कि बिना गुण के किसी व्यक्ति को उच्च स्थान पर बैठने मात्र से बड़प्पन नहीं मिलता। वे कहते हैं कि जिस प्रकार मंदिर के ऊँचे शिखर पर बैठने मात्र से कौआ गरुड़ नहीं हो जाता, उसी प्रकार गुणों से रहित कोई व्यक्ति बड़प्पन का अधिकारी नहीं हो सकता।
  5. कवि कहते हैं कि मनुष्य को किसी के सहारे की आशा में खुद प्रयत्न करना छोड़ नहीं देना चाहिए। क्या बादल घिर जाने पर उससे मिलने वाले विपुल जल की उम्मीद में कोई पानी रखने का अपना जलपात्र यानी गगरी फोड़कर फेंक देता है?
  6. कवि कहते हैं कि नीच अर्थात बुरे आदमी को कभी कुछ (बुरा भला) कहकर छेड़ना नहीं चाहिए। क्योंकि जैसे कीचड़ में पत्थर फेंकने पर कीचड़ की गंदगी अपने ही ऊपर आती है, उसी तरह बुरे आदमी को कही गई बातों के बदले उसके द्वारा कहे गए अपशब्द हमें सुनने पड़ते हैं।
  7. जिस व्यक्ति को उच्च पद प्राप्त होता है, उसका भी एक-नएक दिन पतन होना निश्चित है। जिस प्रकार मध्याह्न का सूर्य उस समय बहुत तपता है, पर उसे भी एक समय अस्त हो जाना पड़ता है।
  8. जिस व्यक्ति को जिस चीज के गुणों के बारे में जानकारी होती है वह उसे ही सम्मान देता है। जैसे कोयल आम का स्वाद लेती है और कौआ निबौरियाँ ही खाता है। Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.2 वृंद के दोहे
  9. कवि कहते हैं कि अविवेक के साथ किया गया कार्य स्वयं के लिए हानिकारक सिद्ध होता है। ठीक उसी तरह जैसे कोई मूर्ख अपनी अविवेकता से कोई कार्य कर अपने पाँव पर अपने हाथ से कुल्हाड़ी मार लेता है।
  10. कवि कहते हैं कि पालने में बच्चे के शरीर के लक्षण देखकर उसके अच्छे-बुरे होने का पता चल जाता है। जैसे किसी पौधे के चिकने और स्वस्थ पत्ते देखकर उसके होनहार होने के लक्षण दिखाई देते हैं।

वृंद के दोहे शब्दार्थ

  • सरसुति = सरस्वती, विद्या की देवी
  • सौर = चादर
  • लहैं = लेना
  • उद्यम = प्रयत्न
  • पाथर = पत्थर
  • अंबहि = आम
  • करतब = कार्य
  • काठ = लकड़ी
  • वायस = कौआ
  • पयोद = बादल
  • तिहि = उसे
  • निबौरी = नीम का फल

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 गुरुबानी

Balbharti Maharashtra State Board Hindi Yuvakbharati 12th Digest Chapter 5.1 गुरुबानी Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

Maharashtra State Board 12th Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 गुरुबानी

12th Hindi Guide Chapter 5.1 गुरुबानी Textbook Questions and Answers

कृति-स्वाध्याय एवं उत्तर

आकलन

प्रश्न 1.
(अ) संजाल पूर्ण कीजिए :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 गुरुबानी 1
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 गुरुबानी 5

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 गुरुबानी

(आ) कृति पूर्ण कीजिए :
(a) आकाश के दीप
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 गुरुबानी 2
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 गुरुबानी 12

शब्द संपदा

प्रश्न 2.
लिखिए :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 गुरुबानी 3
उत्तर:
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 गुरुबानी 15

अभिव्यक्ति

प्रश्न 3.
(अ) ‘गुरु बिन ज्ञान न होई उक्ति पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
ज्ञान की कोई सीमा नहीं है। विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न प्रकार के ज्ञान की आवश्यकता होती है। यह ज्ञान हमें किसी-नकिसी व्यक्ति से मिलता है। जिस व्यक्ति से हमें यह ज्ञान मिलता है, वही हमारे लिए गुरु होता है। बचपन में बच्चे का पालन-पोषण कर उसे बड़ा करके बोलने-चालने और बोली-भाषा सिखाने का काम माता करती है। उस समय वह बच्चे की गुरु होती है। बड़े होने पर बच्चे को विद्यालय में शिक्षकों से ज्ञान प्राप्त होता है।

पढ़-लिखकर। जीवन में पदार्पण करने पर हर व्यक्ति को किसी-न-किसी से अपने काम-काज करने का ढंग सीखना पड़ता है। इस तरह के लोग हमारे लिए गुरु के समान होते हैं। मनुष्य गुरुओं से ही सीखकर विभिन्न कलाओं में पारंगत होता है। बड़े-बड़े विद्वान, विचारक, राजनेता,। समाजशास्त्री, वैज्ञानिक, अर्थशास्त्री अपने-अपने गुरुओं से ज्ञान। प्राप्त करके ही महान हुए हैं। अच्छी शिक्षा देने वाला गुरु होता है। गुरु की महिमा अपरंपार है।

गुरु ही हमें गलत या सही में भेद करना सिखाते हैं। वे अपने मार्ग से भटके हुए लोगों को सही मार्ग दिखाते हैं। यह सच है कि गुरु के बिना ज्ञान नहीं होता।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 गुरुबानी

(आ) ‘ईश्वर भक्ति में नामस्मरण का महत्त्व होता है’, इस विषय पर अपना मंतव्य लिखिए।
उत्तर :
ईश्वरभक्ति के अनेक मार्ग बताए गए हैं। उनमें सबसे सरल मार्ग ईश्वर का नाम स्मरण करना है। नाम स्मरण करने का कोई नियम नहीं है। भक्त जहाँ भी हो, चाहे जिस हालत में हो, ईश्वर का नाम स्मरण कर सकता है। अधिकांश लोग ईश्वर भक्ति का यही मार्ग अपनाते हैं।

उठते-बैठते, आते-जाते तथा काम करते हुए नाम स्मरण किया जा सकता है। भजन-कीर्तन भी ईश्वर के नाम स्मरण का ही एक रूप है। ईश्वर भक्ति के इस मार्ग में प्रभु के गुणों का वर्णन किया जाता है। इसमें धार्मिक पूजा-स्थलों में जाने की जरूरत नहीं होती।

गृहस्थ अपने घर में ईश्वर का नाम स्मरण कर उनके गुणों का बखान कर सकता है। इससे नाम स्मरण करने वालों को मानसिक शांति मिलती हैं और मन प्रसन्न होता है। कहा गया है – ‘कलियुग केवल नाम अधारा, सुमिरि-सुमिर नर उतरें पारा।’ इसमें ईश्वर भक्ति में नाम स्मरण का ही महत्त्व बताया गया है।

रसास्वादन

प्रश्न 4.
‘गुरुनिष्ठा और भक्तिभाव से ही मानव श्रेष्ठ बनता है’ इस कथन के आधार पर कविता का रसास्वादन कीजिए।
उत्तर :
गुरु नानक का कहना है कि बिना गुरु के मनुष्य को ज्ञान नहीं मिलता। मनुष्य के अंतःकरण में अनेक प्रकार के मनोविकार होते हैं, जिनके वशीभूत होने के कारण उसे वास्तविकता के दर्शन नहीं होते। वह अहंकार में डूबा रहता है और उसमें गलत-सही का विवेक नहीं रह जाता।

ये मनोविकार दूर होता है गुरु से ज्ञान प्राप्त होने पर। यदि गुरु के प्रति सच्ची श्रद्धा और उनमें पूरा विश्वास हो तो मनुष्य के अंतःकरण के इन विकारों को दूर होने में समय नहीं लगता। मन के विकार दूर हो जाने पर मनुष्य में सबको समान दृष्टि से देखने की भावना उत्पन्न हो जाती है।

उसके लिए कोई बड़ा या छोटा अथवा ऊँच-नीच नहीं रह जाता। उसे मनुष्य में ईश्वर के दर्शन होने लगते हैं। उसके लिए ईश्वर की भक्ति भी सुगम हो जाती है। गुरु नानक ने अपने पदों में इस बात को सरल ढंग से कहा है। … इस तरह गुरु के प्रति सच्ची निष्ठा और भक्ति-भावना से मनुष्य श्रेष्ठ मानव बन जाता है।

साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान

प्रश्न 5.
(अ) गुरु नानक जी की रचनाओं के नाम :
…………………………………………………………
उत्तर :
गुरुग्रंथसाहिब आदि।

(आ) गुरु नानक जी की भाषाशैली की विशेषताएं:
…………………………………………………………
…………………………………………………………
उत्तर :
गुरु नानक जी सहज-सरल भाषा में अपनी बात कहने में माहिर हैं। आपकी काव्य भाषा में फारसी, मुल्तानी, पंजाबी, सिंधी, खड़ी बोली और अरबी भाषा के शब्द समाए हए हैं। आपने पद शैली में रचना की है। ‘पद’ काव्य रचना की गेय शैली है।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित वाक्यों में अधोरेखांकित शब्दों का वचन परिवर्तन करके वाक्य फिर से लिखिए :

(1) सत्य का मार्ग सरल है।
उत्तर :
सत्य के मार्ग सरल हैं

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 गुरुबानी

(2) हथकड़ियाँ लगाकर बादशाह अकबर के दरबार को ले चले।
उत्तर :
हथकड़ी लगाकर बादशाह अकबर के दरबार को ले चले

(3) चप्पे-चप्पे पर काटों की झाड़ियाँ हैं।
उत्तर :
चप्पे-चप्पे पर काँटे की झाड़ी है।

(4) सुकरात के लिए यह जहर का प्याला है।
उत्तर :
सुकरात के लिए ये जहर के प्याले हैं।

(5) रूढ़ि स्थिर है, परंपरा निरंतर गतिशील है।
उत्तर :
रूढ़ियाँ स्थिर हैं, परंपराएँ निरंतर गतिशील हैं।

(6) उनकी समस्त खूबियों-खामियों के साथ स्वीकार कर अपना लें।
उत्तर :
उनकी समस्त खूबी-कमी के साथ स्वीकार कर अपना लें।

(7) वे तो रुपये सहेजने में व्यस्त थे।
उत्तर :
वह तो रुपया सहेजने में व्यस्त था।

(8) ओजोन विघटन के खतरे क्या-क्या हैं?
उत्तर :
ओजोन विघटन का खतरा क्या है?

(9) शब्द में अर्थ छिपा होता है
उत्तर :
शब्दों में अर्थ छिपे होते हैं।

(10) अभी से उसे ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहिए।
उत्तर :
अभी से उसे ऐसे कोई कदम नहीं उठाने चाहिए।

Hindi Yuvakbharati 12th Digest Chapter 5.1 गुरुबानी Additional Important Questions and Answers

कृतिपत्रिका के प्रश्न 2 (अ) तथा प्रश्न 2 (आ) के लिए)
पदयाश क्र. 1
प्रश्न. निम्नलिखितपद्यांशपढ़करदी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
उत्तर लिखिए : गुरु को महत्त्व न देने वाले ऐसे होते हैं –
(1) ……………………………………..
(2) ……………………………………..
(3) ……………………………………..
(4) ……………………………………..
उत्तर :
(1) व्यर्थ ही उगने वाले तिल की झाड़ियों के समान।
(2) केवल ऊपर से फलते-फूलते दिखाई देते हैं।
(3) उनके अंदर गंदगी और मैल भरा होता है।
(4) लोग उनसे किनारा कर लेते हैं।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 गुरुबानी

प्रश्न 2.
उत्तर लिखिए :
(1) मन के लिए यह कहा गया है – ……………………………………..
(2) संसार में ऐसे लोग विरले होते हैं – ……………………………………..
(3) साधक को अपना ध्यान इसमें लगाना है – ……………………………………..
(4) प्रभु के दर्शन के लिए आवश्यक है – ……………………………………..
उत्तर :
(1) दिन-रात भगवान के गुणों का स्मरण करना।
(2) जो एक क्षण भी भगवान का नाम नहीं भूलते।
(3) भगवान में।
(4) साधक को अहंभाव का त्याग करना।

कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के समानार्थी शब्द लिखिए :
(1) तन = …………………………….
(2) मसि = …………………………….
(3) मति = …………………………….
(4) विरले = …………………………….
उत्तर :
(1) (1) तन = शरीर।
(2) मसि = स्याही।
(3) मति = बुद्धि।
(4) बिसरे = भूले।

पद्यांश क्र. 2
प्रश्न. निम्नलिखित पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
कृति पूर्ण कीजिए :
(a)
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 गुरुबानी 6
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 गुरुबानी 10

(b)
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 गुरुबानी 7
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 गुरुबानी 11

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(2) संजाल पूर्ण कीजिए :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 गुरुबानी 9
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 गुरुबानी 13

रसास्वादन। मुद्दों के आधार पर
कृतिपत्रिका के प्रश्न 2 (इ) के लिए

प्रश्न 1.
निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर दोहो-पदों का रसास्वादन कीजिए:
उत्तर :
(1) रचना का शीर्षक : गुरुवाणी।
(2) रचनाकार : गुरु नानक
(3) कविता की केंद्रीय कल्पना : प्रस्तुत दोहों-पदों में गुरु के .. महत्त्व, ईश्वर की महिमा तथा प्रभु का नाम स्मरण करने से ईश्वर प्राप्ति की बात कही गई है।

(4) रस-अलंकार :
गगन में थाल, रवि-चंद्र दीपक बने।
तारका मंडल जनक मोती।
धूप मलयानिल, पवनु चैवरो करे।
सकल वनराइ कुलंत जोति।।

यहाँ कहा गया है कि गगन ही थाल है; सूर्य-चंद्रमा ही दीपक हैं; तारका मंडल ही मोती है; मलयानिल ही धूप-गंध है; जंगल की समस्त वनस्पतियाँ फूल हैं। इसलिए रूपक अलंकार है।

(5) प्रतीक विधान : प्रस्तुत कविता में कवि ने गुरु का चिंतन न करने वालों तथा अपने आप को ही ज्ञानी समझने वालों को बिना संरक्षक वाले व्यक्ति कहा गया है। इसके लिए कवि ने निर्जन स्थान पर उगी हुई तिल्ली के पौधे का प्रतीक के रूप में उपयोग किया है।

(6) कल्पना : जीवन में गुरु का महत्त्व, कर्म की महानता तथा प्रभु के नाम का स्मरण ही प्रभु प्राप्ति का मार्ग है।

(7) पसंद की पंक्तियाँ तथा प्रभाव : कविता की पसंद की पंक्तियाँ इस प्रकार हैं :
नानक गुरु न चेतनी मनि आपणे सुचेत।
छूते तिल बुआड़ जिऊ सुएं अंदर खेत।
खेते अंदर छुट्टया कहु नानक सऊ नाह।
फली अहि फूली अहि बपुड़े भी तन विच स्वाह।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 गुरुबानी

इन पंक्तियों में कवि ने गुरु का महत्त्व न समझने और अपने को ज्ञानी मानने वालों को मरुस्थल में पाई जानेवाली तिल्ली की फली में मिलने वाली राख कहा है, जो बहुत ही सटीक है।

(8) कविता पसंद आने का कारण : गुरु नानक ने इन पंक्तियों में यह बताया है कि कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो गुरु को महत्त्व नहीं देते और अपने आप को ही ज्ञानी मान बैठते हैं। गुरु नानक जी ऐसे लोगों की तुलना उस तिल के पौधे से करते हैं, जो किसी निर्जन स्थान पर अपने आप उग आता है और उसको खाद-पानी देने वाला कोई भी नहीं होता। इसलिए उस पौधे का विकास नहीं हो पाता। ऐसे पौधे में फूल भी लगते हैं और फली भी लगती है, पर फली के अंदर दाने नहीं पड़ते, उसमें गंदगी और राख ही होती है। वैसी ही हालत बिना गुरु के मनुष्य की होती है। ऐसे लोगों का मानसिक विकास नहीं हो पाता।

1. अलंकार :

निम्नलिखित काव्य पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार पहचानकर लिखिए :
(1) तरुवर की छायानुवाद सी,
उपमा-सी-भावुकता-सी,
अविदित भावाकुल भाषा-सी,
कटी-छूटी नव कविता-सी।

(2) उदित उदय गिरि मंच पर, रघुवर बाल पतंग।
विकसे संत सरोज सब हरषे लोचन भंग।

(3) जिन दिन देखे वे कुसुम, गई सो बीति बहार।
अब अलि रही गुलाब में, अपत कँटीली डार।

(4) छिप्यो छबीली मुँह लसै नीले अंचल चीर।
मनो कलानिधि झलमले, कालिंदी के तीर।

(5) छाले परिबे के डरनि, सकै न हाथ छुवाय।
झिझकत हिये गुलाब के सँवा सँवावत पाय।
उत्तर :
(1) उपमा अलंकार
(2) रूपक अलंकार
(3) अन्योक्ति अलंकार
(4) उत्प्रेक्षा अलंकार
(5) अतिशयोक्ति अलंकार।

2. रस :

निम्नलिखित काव्य पंक्तियों में प्रयुक्त रस पहचानकर लिखिए :
(1) भूषन बसन बिलोकत सिय के।
प्रेम-बिबस मन, कंप पुलक तनु
नीरज नयन नीर भरे पिय के।
सकुचत, कहत, सुमिरि उर उमगत
सील, सनेह सुगुन गुन तिय के।

(2) लीन्हों उखारि पहार बिसाल
चल्यौ तेहि काल, बिलंब न लायौ।
मारुत नंदन मारुत को, मन को
खगराज को बेगि लजायो।।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 गुरुबानी

(3) रामहि बाम समेत पठै बन,
शोक के भार में भुंजौ भरत्थहि।
जो धनु हाथ धरै रघुनाथ तो
आज अनाथ करौं दशरत्थहि।
उत्तर :
(1) शृंगार रस
(2) अद्भुत रस
(3) रौद्र रस।

3. मुहावरे :

निम्नलिखित मुहावरों के अर्थ लिखकर वाक्य में प्रयोग कीजिए :

(1) सिर खपाना।
अर्थ : कठिन परिश्रम करना।
वाक्य : कई साल तक सिर खपाने के बाद आखिरकार उस युवक को सी.ए. की डिग्री मिल ही गई।

(2) उगल देना।
अर्थ : भेद बता देना।
वाक्य : पुलिस का डंडा पड़ते ही चोर ने चुराई गई संपत्ति को छिपाकर रखे जाने के स्थान की बात उगल दी।

(3) कब्र में पैर लटकना।
अर्थ : मरने के समीप होना।
वाक्य : कोरोना के प्रसार से अनेक मरीजों के पैर कब्र में लटक गए हैं।

(4) पापड़ बेलना।
अर्थ : कड़ी मेहनत करना।
वाक्य : आज जो लड़का जिलाधीश के पद पर आसीन है, इस पद तक पहुँचने में इसने बहुत पापड़ बेले हैं।

(5) मरने की फुरसत न होना।
अर्थ : कामों में बहुत व्यस्त होना।
वाक्य : मुनीम जी तो अपने काम में इतने व्यस्त हैं कि उन्हें मरने की भी फुरसत नहीं है।

4. काल परिवर्तन :

प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्यों को कोष्ठक में सूचित काल में परिवर्तन कीजिए :
(1) वे सभी धर्मों को समान दृष्टि से देखते थे। (सामान्य वर्तमानकाल)
(2) दिन रात महान आरती होती है। (अपूर्ण भूतकाल)
(3) अनहद नाद का वाद्य बज रहा है। (सामान्य भविष्यकाल)
(4) श्रद्धा भक्त की सबसे बड़ी भेंट होगी। (पूर्ण भूतकाल)
(5) तुम्हारे अनेक रंग हैं। (भविष्यकाल)
उत्तर :
(1) वे सभी धर्मों को समान दृष्टि से देखते हैं।
(2) दिन-रात महान आरती हो रही थी।
(3) अनहद नाद का वाद्य बजेगा।
(4) श्रद्धा भक्त की सबसे बड़ी भेंट थी।
(5) तुम्हारे अनेक रंग होंगे।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 गुरुबानी

5. वाक्य शुद्धिकरण :

प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्य शुद्ध करके लिखिए :
(1) गुरू के बिना ग्यान नहीं होता।
(2) उसने भगवान की नाम का माला पहन ली है।
(3) सभी जंगल की वनस्पतियाँ फूल चढ़ा रही है।
(4) श्रद्धा ही भक्त का सबसे बड़ा भेट है।
(5) तू दीन-रात भगवान के गुणों का स्मरण कर।
उत्तर :
(1) गुरु के बिना ज्ञान नहीं होता।
(2) उसने भगवान के नाम की माला पहन ली है।
(3) जंगल की सभी वनस्पतियाँ फूल चढ़ा रही हैं।
(4) श्रद्धा ही भक्त की सबसे बड़ी भेंट है।
(5) तू दिन-रात भगवान के गुणों का स्मरण कर।

गुरुबानी Summary in Hindi

गुरुबानी कवि का परिचय

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 गुरुबानी 16
कवि का नाम :
गुरु नानक। (जन्म 15 अप्रैल, 1469; निधन 1539.)

प्रमुख कृतियाँ : गुरुग्रंथसाहिब आदि।

विशेषता : आप सर्वेश्वरवादी हैं और सभी धर्मों को समान दृष्टि से देखते हैं। आपके भावुक व कोमल हृदय ने प्रकृति से एकात्म होकर अनूठी अभिव्यक्ति की है। आप सहज-सरल भाषा द्वारा अपनी बात कहने में सिद्धहस्त हैं।

विधा : दोहे, पद। पदकाव्य रचना की एक गेय शैली है। इसके विकास का मूल स्रोत लोकगीतों की परंपरा रही है। हिंदी साहित्य में ‘पद शैली’ की दो परंपराएँ मिलती हैं – एक संतों की ‘शबद’ और दूसरी ‘कृष्ण भक्तों की परंपरा’।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 गुरुबानी

विषय प्रवेश : मनुष्य के जीवन को उत्तम और सदाचार से परिपूर्ण बनाने के लिए गुरु का मार्गदर्शन अत्यंत आवश्यक होता है। इसी से शिक्षा प्राप्त कर मनुष्य उत्तम कार्य करता है। प्रस्तुत दोहों और पदों में गुरु नानक ने गुरु की महिमा, कर्म की महानता तथा सच्ची शिक्षा आदि के बारे में अपने अमूल्य विचारों से परिचित कराया है। वे गुरु द्वारा दिए गए ज्ञान को शिष्य की सबसे बड़ी पूँजी मानते हैं। उन्होंने प्रभु की महिमा का वर्णन करते हुए नाम स्मरण को प्रभु प्राप्ति का मार्ग बताया है और कर्मकांड और बाह्याडंबर का घोर विरोध किया है।

गुरुबानी कविता (पदों) का सरल अर्थ

(1) नानक गुरु न चेतनी …………………………………….. तन बिच स्वाह।

गुरु नानक कहते हैं कि जो लोग गुरु का चिंतन नहीं करते, गुरु से लापरवाही बरतते हैं और अपने आप को ही ज्ञानी समझते हैं, वे व्यर्थ ही उगने वाली तिल की उन झाड़ियों के समान होते हैं, जिनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं होता। वे ऊपर से फलतीफूलती दिखाई देती है, पर उन फलियों के अंदर गंदगी और मैल भरा होता है। लोग ऐसे लोगों से किनारा कर लेते हैं।

(2) जलि मोह धसि …………………………………….. अंत न पारावार।

गुरु नानक कहते हैं कि मोह को जलाकर और घिसकर स्याही बनाओ। अपनी बुद्धि को श्रेष्ठ कागज समझो। प्रेम-भाव की कलम बनाओ। चित को लेखक समझो और गुरु से पूछकर लिखो – नाम की स्तुति। साथ ही यह सच्चाई भी लिखो कि प्रभु का न कोई आदि है और न कोई अंत।

(3) मन रे अहिनिसि …………………………………….. मेले गरु संजोग।

हे मन! तू दिन-रात भगवान के गुणों का स्मरण कर। जिन्हें एक क्षण के लिए भी ईश्वर का नाम नहीं भूलता, संसार में ऐसे लोग विरले ही होते हैं। अपना ध्यान उसी ईश्वर में लगाओ और उसकी ज्योति से तुम भी प्रकाशित हो जाओ। जब तक तुझमें अहंभाव रहेगा, तब तक तुझे प्रभु के दर्शन नहीं हो सकते। जिसने अपने हृदय में भगवान के नाम की माला पहन ली है, उसे ही प्रभु के दर्शन होते हैं।

(4) तेरी गति मिति …………………………………….. दजा और न कोई।

हे प्रभो! अपनी शक्ति के सब रहस्यों को केवल तुम्हीं जानते हो। उनकी व्याख्या कोई दूसरा नहीं कर सकता है। तुम ही अप्रकट रूप भी हो और तुम ही प्रकट रूप भी हो। तुम्हारे अनेक रंग हैं। अनगिनत भक्त, सिद्ध, गुरु और शिष्य तुम्हें ढूँढ़ते फिरते हैं। हे प्रभु! जिन्होंने नाम स्मरण किया उन्हें प्रसाद (भिक्षा) में तुम्हारे दर्शन की प्राप्ति हुई है। प्रभु! तुम्हारे इस संसार के खेल को केवल कोई गुरुमुख ही समझ सकता है। प्रभु! अपने इस संसार में युग-युग से तुम्हीं बिराजमान रहते हो, कोई दूसरा नहीं।।

(5) गगन में थाल …………………………………….. शबद बाजत भेरी। (संसार में दिन-रात महान आरती हो रही है।)

आकाश की थाल में सूर्य और चंद्रमा के दीपक जल रहे हैं। हजारों तारे-सितारे – मोती बने हैं। मलय की खुशबूदार हवा वाला धूप (गुग्गुल) महक रहा है। वायु हवा से चँवर कर रही है। जंगल की सभी वनस्पतियाँ फूल चढ़ा रही हैं। हृदय में अनहद नाद का वाद्य बज रहा है। हे मनुष्य! इस महान आरती के होते हुए तेरी आरती का क्या महत्त्व है। अर्थात भगवान की असली आरती तो मन में उतारी जाती है। श्रद्धा ही भक्त की सबसे बड़ी भेंट है।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 गुरुबानी

गुरुबानी शब्दार्थ

  • बूआड़ = बुआई करना
  • सउ = ईश्वर
  • चितु = चित्त
  • गुपता = अप्रकट, गुप्त
  • सगल = संपूर्ण
  • सुंजे = सूने
  • मसु = स्याही
  • अहिनिसि = दिन-रात
  • जुग = युग
  • भेरी = बड़ा ढोल

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला

Balbharti Maharashtra State Board Hindi Yuvakbharati 12th Digest Chapter 4 आदर्श बदला Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

Maharashtra State Board 12th Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला

12th Hindi Guide Chapter 4 आदर्श बदला Textbook Questions and Answers

कृति-स्वाध्याय एवं उत्तर

आकलन

प्रश्न 1.

(अ) कृति पूर्ण कीजिए :
साधुओं की एक स्वाभाविक विशेषता – ………………………………
उत्तर :
एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते रहना और भजन तथा भक्तिगीत गाते-बजाते रहना।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला

(आ) लिखिए :

(a) आगरा शहर का प्रभातकालीन वातावरण –
………………………………………………………………
………………………………………………………………
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 3

(b) साधुओं की मंडली आगरा शहर में यह गीत गा रही थी –
………………………………………………………………
………………………………………………………………
उत्तर :
सुमर-सुमर भगवान को,
मूरख मत खाली छोड़ इस मन को।

शब्द संपदा

प्रश्न 2.
लिंग बदलिए:

(1) साधु
(2) नवयुवक
(3) महाराज
(4) दास
उत्तर :
(1) साधु – साध्वी
(2) नवयुवक – नवयुवती
(3) महाराज – महारानी
(4) दास – दासी।

अभिव्यक्ति

प्रश्न 3.

(अ) ‘मनुष्य जीवन में अहिंसा का महत्त्व’, इस विषय पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
हिंसा क्रूरता और निर्दयता की निशानी है। इससे किसी.। का भला नहीं हो सकता। इस संसार के सभी जीव ईश्वर की संतान हैं और समान हैं। सृष्टि में सबको जीने का अधिकार है। कोई कितना भी शक्तिमान क्यों न हो, किसी को उससे उसका जीवन छीनने का अधिकार नहीं है। जब कोई किसी को जीवन दे नहीं सकता तब वह किसी का जीवन ले भी नहीं सकता। बड़े-बड़े मनीषियों और महापुरुषों ने अहिंसा को ही धर्म कहा है – अहिंसा परमोधर्मः।

अहिंसा का अस्त्र सबसे बड़ा माना जाता है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अहिंसा के बल पर शक्तिशाली अंग्रेज सरकार को झुका दिया था और अंग्रेज सरकार देश को आजाद करने पर विवश हो गई थी। जीवन का मूलमंत्र ‘जियो और जीने दो’ है। किसी के प्रति ईर्ष्या की भावना रखना या किसी का नुकसान करना भी एक प्रकार की हिंसा है। इससे हमें बचना चाहिए।

(आ) ‘सच्चा कलाकार वह होता है जो दूसरों की कला का सम्मान करता हैं, इस कथन पर अपना मत व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
कलाकार को कोई कला सीखने के लिए गुरु के सान्निध्य में रह कर वर्षों तक तपस्या करनी पड़ती है। कला की छोटीछोटी बारीक बातों की जानकारी करनी पड़ती है। इसके साथ ही निरंतर रियाज करना पड़ता है। गुरु से कला की जानकारियाँ प्राप्त करते-करते अपनी कला में वह प्रवीण होता है।

सच्चा कलाकार किसी कला को सीखने की प्रक्रिया में होने वाली कठिनाइयों से परिचित होता है। इसलिए उसके दिल में अन्य कलाकारों के लिए सदा सम्मान की भावना होती है। वह छोटे-बड़े हर कलाकार को समान समझता है और उनकी कला का सम्मान करता है। सच्चे कलाकार का यही धर्म है। इससे कला को प्रोत्साहन मिलता है और वह फूलती-फलती है।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला

पाठ पर आधारित लघूत्तरी प्रश्न –

प्रश्न 4.

(अ) ‘आदर्श बदला’ कहानी के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
अपने पिता को मृत्युदंड दिए जाने पर बैजू विक्षिप्त हो गया था। और अपनी कुटिया में विलाप कर रहा था। उस समय बाबा हरिदास ने उसकी कुटिया में आकर उसे ढाढ़स बंधाया था। तब बालक बैजू ने बाबा को बताया था कि उसे अब बदले की भूख है। वे उसकी इस भूख को मिटा दें। बाबा हरिदास ने उसे वचन दिया था कि वे उसे ऐसा हथियार देंगे, जिससे वह अपने पिता की मौत का बदला ले सकेगा।

बाबा हरिदास ने बारह वर्षों तक बैजू को संगीत की हर प्रकार की बारीकियाँ सिखाकर उसे पूर्ण गंधर्व के रूप में तैयार कर दिया। मगर इसके साथ ही उन्होंने उससे यह वचन भी ले लिया कि वह इस राग विद्या से किसी को हानि न पहुँचाएगा।

इसके बाद वह दिन भी आया जब बैजू आगरा की सड़कों पर गाता हुआ निकला और उसके पीछे उसकी कला के प्रशंसकों की अपार भीड़ थी। आगरा में गाने के नियम के अनुसार उसे बादशाह के समक्ष पेश किया गया और शर्त के अनुसार तानसेन से उसकी संगीत प्रतियोगिता हुई, जिसमें उसने तानसेन को बुरी तरह परास्त कर दिया। तानसेन बैजू बावरा के पैरों पर गिरकर अपनी जान की भीख माँगने लगा। इस मौके पर बैजू बावरा उससे अपने पिता की मौत का बदला लेकर उसे प्राणदंड दिलवा सकता था। पर उसने ऐसा नहीं किया। बैजू ने तानसेन की जान बख्श दी।

उसने उससे केवल इस निष्ठुर नियम को उड़वा देने के लिए कहा, जिसके अनुसार किसी को आगरे की सीमाओं में गाने और तानसेन की जोड़ का न होने पर मरवा दिया जाता था। इस तरह बैजू बावरा ने तानसेन का गर्व नष्ट कर उसे मुँह की खिलाकर उससे अनोखा बदला लेकर उसे श्रीहीन कर दिया था। यह अपनी तरह का आदर्श बदला था। समूची कहानी इस बदले के आसपास घूमती है। इसलिए ‘आदर्श बदला’ शीर्षक इस कहानी के उपयुक्त है।

(आ) ‘बैजू बावरा संगीत का सच्चा पुजारी है’, इस विचार को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
सच्चा कलाकार उसे कहते हैं, जिसे अपनी कला से सच्चा लगाव हो। वह अपने गुरु की कही हुई बातों पर अमल करे तथा गुरु से विवाद न करे। इसके अलावा उसे अपनी कला पर अहंकार न हो। बैजू बावरा ने बारह वर्ष तक बाबा हरिदास से संगीत सीखने की कठिन तपस्या की थी।

वह उनका एक आज्ञाकारी शिष्य था। उसकी संगीत शिक्षा पूरी हो जाने के बाद बाबा हरिदास ने जब उससे यह प्रतिज्ञा करवाई कि वह इस राग विद्या से किसी को हानि नहीं पहुँचाएगा, तो भी उसने रक्त का यूंट पी कर इस गुरु आदेश को स्वीकार कर लिया था, जबकि उसे मालूम था कि इससे उसके हाथ में आई हुई प्रतिहिंसा की छुरी कुंद कर दी गई थी। फिर भी गुरु के सामने उसके मुँह से एक शब्द भी नहीं निकला।

बैजू बावरा की संगीत कला की धाक दूर-दूर तक फैल गई थी। है उसके संगीत में जादू का असर था। बैजू बावरा को संगीत ज्ञान है पर तानसेन की तरह कोई अहंकार नही था। बल्कि इसके विपरीत उसके हृदय में दया की भावना थी। गानयुद्ध में तानसेन को पराजित करने पर भी वह अपनी जीत और संगीत का प्रदर्शन नहीं करता।

बल्कि वह तानसेन को जीवनदान दे देता है। वह उससे केवल यह माँग करता है कि वह इस नियम को खत्म करवा दे कि जो कोई आगरा की सीमा के अंदर गाए, वह अगर तानसेन की जोड़ का न हो, तो मरवा दिया जाए। उसकी इस माँग में भी गीत-संगीत की ५ रक्षा करने की भावना निहित है।

इस प्रकार इसमें कोई संदेह नहीं है कि बैजू बावरा संगीत का सच्चा पुजारी था।

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साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान

प्रश्न 5.

(अ) सुदर्शन जी का मूल नाम : ……………………………………
उत्तर :
सुदर्शन जी का मूल नाम बदरीनाथ है।

(आ) सुदर्शन ने इस लेखक की लेखन परंपरा को आगे बढ़ाया है : ……………………………………
उत्तर :
सुदर्शन ने मुंशी प्रेमचंद की लेखन परंपरा को आगे बढ़ाया है।

रस

अद्भुत रस : जहाँ किसी के अलौकिक क्रियाकलाप, अद्भुत, आश्चर्यजनक वस्तुओं को देखकर हृदय में विस्मय अथवा आश्चर्य का भाव जाग्रत होता है; वहाँ अद्भुत रस की व्यंजना होती है।

उदा. –

(१) एक अचंभा देखा रे भाई।
ठाढ़ा सिंह चरावै गाई।
पहले पूत पाछे माई।
चेला के गुरु लागे पाई।।

(२) बिनु-पग चलै, सुनै बिनु काना।
कर बिनु कर्म कर, विधि नाना।
आनन रहित सकल रस भोगी।
बिनु वाणी वक्ता, बड़ जोगी।।

शृंगार रस : जहाँ नायक और नायिका अथवा स्त्री-पुरुष की प्रेमपूर्ण चेष्टाओं, क्रियाकलापों का शृंगारिक वर्णन हो; वहाँ शृंगार रस की व्यंजना होती है।

उदा. –
(१) राम के रूप निहारति जानकी, कंकन के नग की परछाही,
यातै सबै सुधि भूलि गई, कर टेकि रही पल टारत नाही।

(२) कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत, खिलत, लजियात।
भरे भौन में करत हैं, नैननु ही सौं बात।।

शांत रस : (निर्वेद) जहाँ भक्ति, नीति, ज्ञान, वैराग्य, धर्म, दर्शन, तत्त्वज्ञान अथवा सांसारिक नश्वरता संबंधी प्रसंगों का वर्णन हो; वहाँ शांत रस उत्पन्न होता है।

उदा. –
(१) माला फेरत जुग भया, गया न मन का फेर।
कर का मनका डारि कै, मन का मनका फेर।।

(२) माटी कहै कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोहे।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूंगी तोहे।।

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भक्ति रस : जहाँ ईश्वर अथवा अपने इष्ट देवता के प्रति श्रद्धा, अलौकिकता, स्नेह, विनयशीलता का भाव हृदय में उत्पन्न होता है; वहाँ भक्ति रस की व्यंजना होती है।

उदा. –
(१) तू दयालु दीन हौं, तू दानि हौं भिखारि।
हौं प्रसिद्ध पातकी, तू पाप पुंजहारि।

(२) समदरसी है नाम तिहारो, सोई पार करो,
एक नदिया इक नार कहावत, मैलो नीर भरो,
एक लोहा पूजा में राखत, एक घर बधिक परो,
सो दुविधा पारस नहीं जानत, कंचन करत खरो।

Hindi Yuvakbharati 12th Digest Chapter 4 आदर्श बदला Additional Important Questions and Answers

गद्यांश क्र. 1
कृतिपत्रिका के प्रश्न 1 (अ) तथा प्रश्न 1 (आ) के लिए।

प्रश्न. निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
संजाल पूर्ण कीजिए :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 2
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 4

प्रश्न 2.
साधु इस तरह गाते थे गीत –
(1) ……………………………………..
(2) ……………………………………..
(3) ……………………………………..
(4) ……………………………………..
उत्तर :
(1) कोई ऊँचे स्वर में गाता था।
(2) कोई मुँह में गुनगुनाता था।
(3) सब अपने राग में मगन थे।
(4) उन्हें सुर-ताल की परवाह नहीं थी।

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प्रश्न 3.
तानसेन द्वारा बनवाया गया कानून –
(1) ……………………………………..
(2) ……………………………………..
उत्तर :
(1)जो आदमी राग-विद्या में तानसेन की बराबरी न कर सके, है वह आगरे की सीमा में गीत न गाए।
(2) ऐसा आदमी जो आगरे की सीमा में गीत गाए, उसे मौत की सजा दी जाए।

कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के लिंग बदलकर लिखिए :
(1) पत्ते – …………………………………..
(2) स्वामी – …………………………………..
(3) राग – …………………………………..
(4) आदमी – …………………………………..
उत्तर :
(1) पत्ते – पत्तियाँ
(2) स्वामी – स्वामिनी
(3) राग – रागिनी (4) आदमी – औरत

कृति 3 : (अभिव्यक्ति)

प्रश्न 1.
साधु-संतों को राग विद्या की जानकारी न होने के कारण मौत की सजा दिया जाना क्या उचित है? इस विषय पर 40 से 50 शब्दों में अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
साधु-संत दीन-दुनिया से विरक्त ईश्वर आराधना में लीन रहने वाले लोग होते हैं। वे अपने साथी साधु-संतों से सुने-सुनाए भजन-कीर्तन अपने ढंग से गाते हैं। उन्हें राग, छंद और संगीत का समुचित ज्ञान नहीं होता। भजन भी वे अपनी आत्म-संतुष्टि और ईश्वर आराधना के लिए गाते हैं।

उनका उद्देश्य उसे राग में गा कर किसी को प्रसन्न करना नहीं होता। आगरा शहर में बिना सुर-ताल की परवाह किए हुए और बादशाह के कानून से अनभिज्ञ ये साधु गाते हुए जा रहे थे। इन्हें इस जुर्म में पकड़ लिया गया था कि वे आगरा की सीमा में गाते हुए जा रहे हैं। अकबर के मशहूर रागी तानसेन ने यह नियम बनवा दिया था कि जो आदमी राग विद्या में उसकी बराबरी न कर सके वह आगरा की सीमा में न गाए। यदि गाए तो उसे मौत की सजा दी जाए।

अतः इन्हें मौत की सजा दे दी गई। इस तरह साधुओं को मौत की सजा देना उनके साथ बिलकुल अन्याय है। इस तरह के कानून से तानसेन के अभिमान की बू आती है।

गद्यांश क्र. 2
प्रश्न. निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
संजाल पूर्ण कीजिए :

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 5
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 10

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 6
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 11

प्रश्न 2.
उत्तर लिखिए :

(1) बैजू ने हरिदास के चरणों में और ज्यादा लिपट कर यह कहा –
(i) ……………………………………
(ii) ……………………………………
(iii) ……………………………………
(iv) ……………………………………
उत्तर :
(i) महाराज (मेरी) शांति जा चुकी है।
(ii) अब मुझे बदले की भूख है।
(iii) अब मुझे प्रतिकार की प्यास है।
(iv) आप मेरी प्यास बुझाइए।

(2)
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 7
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 12

(3)
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 8
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 13

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला

प्रश्न 3.
आकृति पूर्ण कीजिए:
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 9
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 14

प्रश्न 4.
बैजू ने दिया बाबा हरिदास को यह वचन –
(i) ……………………………………
(ii) ……………………………………
(iii) ……………………………………
(iv) ……………………………………
उत्तर :
(i) मैं बारह जीवन देने को तैयार हूँ।
(ii) मैं तपस्या करूँगा।
(iii) मैं दुख झेलूँगा, मैं मुसीबतें उठाऊँगा।
(iv) मैं अपने जीवन का एक-एक क्षण आपको भेंट कर दूंगा।

कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के लिंग बदल कर लिखिए :
(1) बेटा – ……………………………………
(2) बच्चा – ……………………………………
(3) सेवक – ……………………………………
(4) सूना – ……………………………………
उत्तर :
(1) बेटा – बेटी
(2) बच्चा – बच्ची
(3) सेवक – सेविका
(4) आखिरी = अंतिम।

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों के समानार्थी शब्द लिखिए :
(1) संसार = ……………………………………
(2) तबाह = ……………………………………
(3) चरण = ……………………………………
(4) आखिरी = ……………………………………
उत्तर :
(1) संसार = दुनिया
(2) तबाह = बर्बाद
(3) चरण = पाँव
(4) सूना – सूनी।

कृति 3 : (अभिव्यक्ति)

प्रश्न 1.
‘बिनु गुरु होय न ज्ञान’ इस कथन के बारे में 40 से 50 शब्दों में अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
मनुष्य को बचपन से लेकर अंतिम समय तक विभिन्न . कार्यों को पूर्ण करने के लिए ज्ञान की आवश्यकता होती है। यह ज्ञान विभिन्न रूपों में हमें किसी-न-किसी गुरु से मिलता है। बचपन में बच्चे का पालन-पोषण कर उसे बड़ा करके बोलने-चालने और बोली-भाषा सिखाने का काम माता करती है।

उस समय वह उसकी गुरु होती है। बड़े होने पर विद्यालय में शिक्षकों से बच्चे को ज्ञान की प्राप्ति होती है। तरह-तरह की कलाओं को सीखने के लिए गुरु से ज्ञान प्राप्त करने की आवश्यकता होती है। गुरु से ज्ञान प्राप्त करके ही कलाकार नाम कमाते हैं।

प्रसिद्ध क्रिकेट खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर के क्रिकेट के क्षेत्र में महारत हासिल करने में उनके क्रिकेट गुरु रमाकांत आचरेकर का विशेष योगदान रहा है।

इसी तरह छत्रपति शिवाजी महाराज की सफलता में उनके गुरु का काफी योगदान रहा है। गुरु ही हमें सही या गलत में भेद करना सिखाते हैं। वे ही भूले-भटके हओं को सही राह दिखाते हैं। इस तरह गुरु की महिमा अपरंपार है।

गद्यांश क्र. 3
प्रश्न. निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
कृति पूर्ण कीजिए :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 15
उत्तर :
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प्रश्न 2.
उत्तर लिखिए : जवान बैजू के संगीत की विशेषताएँ –
(1) …………………………
(2) …………………………
(3) …………………………
(4) …………………………
उत्तर :
(1) उसके स्वर में जादू था और तान में आश्चर्यमयी मोहिनी थी।
(2) गाता था तो पत्थर तक पिघल जाते थे।
(3) पशु-पंछी तक मुग्ध हो जाते थे।
(4) लोग सुनते थे और झूमते थे तथा वाह-वाह करते थे।

प्रश्न 3.
बैजू की राग विद्या की शिक्षा पूरी होने पर हरिदासजी ने यह कहा –
(1) …………………………
(2) …………………………
उत्तर :
(1) वत्स! मेरे पास जो कुछ था, वह मैंने तुझे दे डाला।
(2) अब तू पूर्ण गंधर्व हो गया है।

प्रश्न 4.
संजाल पूर्ण कीजिए :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 16
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 18

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कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के विरुद्धार्थी शब्द लिखिए :
(1) उजड़ना x ……………………………..
(2) बूढ़े x ……………………………..
(3) कृतज्ञता x ……………………………..
(4) उपकार x ……………………………..
उत्तर :
(1) उजड़ना – बसना
(3) कृतज्ञता – कृतघ्नता
(2) बूढ़े x जवान
(4) उपकार x अपकार।

कृति 3 : (अभिव्यक्ति)

प्रश्न 1.
‘कृतज्ञता मनुष्य का उत्तम गुण है’ इस विषय पर 40 से 50 शब्दों में अपना मत लिखिए।
उत्तर :
कृतज्ञता का अर्थ है अपने साथ किसी के द्वारा किए गए किसी अच्छे कार्य के लिए व्यक्ति का एहसान मानना। प्रत्येक मनुष्य के जीवन में कभी-न-कभी ऐसा समय आता है, जब उसे किसी रूप में किसी व्यक्ति से छोटी-बड़ी मदद लेनी पड़ती है अथवा किसी का एहसान लेना पड़ता है। उस समय इस प्रकार की मदद अथवा उपकार करने वाला व्यक्ति हमें किसी फरिश्ते से कम नहीं लगता।

ऐसे समय हमारे मन में उसके प्रति श्रद्धा और सम्मान की भावना जाग उठती है। इसे हम एहसान करने वाले के पैर छू करः अथवा उसे धन्यवाद दे कर प्रदर्शित करते हैं। इतना ही नहीं हम सदा उसके एहसान को याद रखते हैं। कृतज्ञता व्यक्त करने से एहसान करने वाले व्यक्ति को भी प्रसन्नता होती है।

गद्यांश क्र. 4
प्रश्न. निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
उत्तर लिखिए :

(1) सिपाहियों ने साधु को इस रूप में देखा –
(i) ………………………………..
(ii) ………………………………..
(iii) ………………………………..
(iv) ………………………………..
उत्तर :
(i) साधु के मुँह से तेज की किरणें फूट रही थीं। .
(ii) उन किरणों में जादू था, मोहिनी थी और मुग्ध करने की शक्ति थी।
(iii) उसके मुँह पर सरस्वती का वास था।
(iv) उसके मुँह से संगीत की मधुर ध्वनि की धारा बह रही थी।

(2)
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उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 22

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प्रश्न 2.
कृति पूर्ण कीजिए :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 20
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 23

प्रश्न 3.
लिखिए : तानसेन ने नवयुवक (साधु) से यह कहा –
(1) ………………………………..
(2) ………………………………..
(3) ………………………………..
(4) ………………………………..
उत्तर :
(1) शायद आपके सिर पर मौत सवार है।
(2) आप नियम जानते हैं न?
(3) नियम कड़ा है और मेरे दिल में दया नहीं है।
(4) मेरी आँखें दूसरों की मौत को देखने के लिए हर समय तैयार हैं।

प्रश्न 4.
आकृति पूर्ण कीजिए :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 21
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 24

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला

कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के वचन बदल कर लिखिए :
(1) हथकड़ियाँ – ………………………………………
(2) आँखें – ………………………………………
(3) बाजारों – ………………………………………
(4) श्रोता – ………………………………………
उत्तर :
(1) हथकड़ियाँ – हथकड़ी
(2) आँखें – आँख
(3) बाजारों – बाजार
(4) श्रोताँ – श्रोतागण।

कृति 3 : (अभिव्यक्ति)

प्रश्न 1.
‘घमंड मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है’ इस विषय पर अपने विचार 40 से 50 शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
मनुष्य के अंदर सद् और असद् दो प्रवृत्तियाँ होती हैं। सद् का अर्थ है अच्छा और असद् का अर्थ है जो अच्छा न हो यानी बुरा। घमंड मनुष्य की बुरी वृत्ति है। घमंडी व्यक्ति को अच्छे और बुरे का विवेक नहीं होता। वह अपने घमंड के नशे में चूर रहता है और अपना भला-बुरा भी भूल जाता है।

घमंडी व्यक्ति को अपनी गलती का अहसास तब होता है, जब उसकी की गई गलतियों का परिणाम उसके सामने आता है। घमंड का परिणाम बहुत बुरा होता है। इसके कारण बड़े-बड़े ज्ञानी पुरुषों को भी मुँह की खानी पड़ती है।

रावण जैसा महाज्ञानी पंडित भी अपने घमंड के कारण अपने कुल परिवार सहित नष्ट हो गया। घमंड मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है और उसकी मंजिल है दारुण दुख। इसलिए मनुष्य को घमंड का मार्ग त्याग कर प्रेम और सद्गुण का मार्ग अपनाना चाहिए।

गद्यांश क्र. 5
प्रश्न. निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
आकृति पूर्ण कीजिए :
(a)
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 25
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 27

(b)
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उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 28

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला

प्रश्न 2.
उत्तर लिखिए :
(1) बैजू बावरा ने अपने सितार के पदों को हिलाया, तो यह हुआ –
(i) …………………………….
(ii) …………………………….
(iii) …………………………….
(iv) …………………………….
उत्तर :
(i) जनता ब्रह्मानंद में लीन हो गई।
(ii) पेड़ों के पत्ते तक निःशब्द हो गए।
(iii) वायु रुक गई।
(iv) सुनने वाले मंत्रमुग्धवत सुधिहीन हुए सिर हिलाने लगे।

प्रश्न 3.
बैजू बावरा की उँगलियाँ जब सितार पर दौड़ी, तब –
(i) …………………………….
(ii) …………………………….
(iii) …………………………….
(iv) …………………………….
उत्तर :
(i) तारों पर राग विद्या निछावर हो रही थी।
(ii) लोगों के मन उछल रहे थे।
(iii) लोग झूम रहे थे, थिरक रहे थे।
(iv) जैसे सारे विश्व की मस्ती वहीं आ गई थी।

कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्द समूहों के लिए गद्यांश में से ढूँढकर एकएक शब्द लिखिए :
(1) ब्रह्म स्वरूप के साक्षात्कार का दर्शन।
(2) जहाँ किसी प्रकार का शब्द न होता हो।
(3) जो होश से रहित हो।
(4) किसी से भी न डरने की भावना।
उत्तर :
(1) ब्रह्मानंद
(2) निःशब्द
(3) सुधिहीन
(4) निर्भयता

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला

गद्यांश क्र. 6
प्रश्न. निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
उत्तर लिखिए : गानयुद्ध-स्थल पर दर्शक यह देखकर हैरान रह गए –
(1) …………………………………………
(2) …………………………………………
(3) …………………………………………
(4) …………………………………………
उत्तर :
(1) कुछ हरिण छलाँगें मारते हुए आए और बैजू बावरा के पास खड़े हो गए।
(2) हरिण संगीत सुनते रहे, सुनते रहे।
(3) हरिण मस्त और बेसुध थे।
(4) बैजू ने सितार रखकर उनके गले में फूलमालाएँ पहनाईं तब उन्हें सुध आई और भाग खड़े हुए।

प्रश्न 2.
कृति पूर्ण कीजिए :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 29
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 31

प्रश्न 3.
लिखिए : तानसेन ने इस तरह बजाया सितार –
(1) …………………………………………
(2) …………………………………………
(3) …………………………………………
(4) …………………………………………
उत्तर :
(1) पूर्ण प्रवीणता के साथ।
(2) पूर्ण एकाग्रता के साथ।
(3) वह बजाया, जो कभी न बजाया था।
(4) वह बजाया, जो कभी न बजा सकता था।

प्रश्न 4.
आकृति पूर्ण कीजिए :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 30
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 32

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कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित उपसर्ग जोड़कर शब्द बनाकर लिखिए :
(1) अ – …………………………….
(2) बे – …………………………….
(3) निर् – …………………………….
(4) परा – …………………………….
उत्तर
(1) अ – असाधारण
(2) बे – बेसुध
(3) निर् – निरादर
(4) परा – पराजय

कृति 3 : (अभिव्यक्ति)

प्रश्न 1.
‘संगीत का प्रभाव’ विषय पर 40 से 50 शब्दों में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
संगीत ऐसी कला है, जो श्रोताओं को अपनी स्वर लहरियों से आह्लादित कर देती है। संगीत एक गूढ़ विद्या है। संगीत-साधक इसमें जितनी गहराई तक जाता है, उसे उतने ही मोती मिलते हैं। संगीत का आनंद संगीत विशेषज्ञ तो उठाते ही हैं, जिन लोगों में संगीत कला की समझ नहीं होती, वे भी संगीत की स्वर लहरियों को सुन कर झूमने लगते हैं। संगीत की मधुर ध्वनि से लोग अपनी सुध-बुध खो बैठते हैं। संगीत सुनने से मन प्रसन्न होता है।

संगीत तनाव कम करने में सहायक होता है और उससे मानसिक शांति मिलती है।

संगीत का प्रभाव अद्भुत होता है। उससे केवल मनुष्य ही नहीं, वातावरण, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे सभी प्रभावित होते हैं। संगीत से पौधों की वृद्धि और दुधारू पशुओं के अधिक दूध देने तक की बातें कही जाती रही हैं। गुणी संगीतकार के संगीत-वादन से वर्षा होने लगती है।

मधुर संगीत से प्रभावित होकर लोगों के मन उछलने लगते हैं, उनके मन थिरकने लगते हैं। लोग मस्ती में डूब जाते हैं। संगीत में जादू-सा प्रभाव होता है। संसार में शायद ही ऐसा कोई प्राणी होगा, जो संगीत की मधुर ध्वनि की धारा में न बह जाता हो।

गद्यांश क्र. 7
प्रश्न. निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
लिखिए : हरिण बुला पाने में असमर्थ तानसेन की बौखलाहट –
(1) ………………………………..
(2) ………………………………..
(3) ………………………………..
(4) ………………………………..
उत्तर :
(1) उसकी आँखों के सामने मौत नाचने लगी।
(2) उसकी देह पसीना-पसीना हो गई।
(3) लज्जा से उसका मुँह लाल हो गया।
(4) वह खिसिया गया।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला

प्रश्न 2.
उत्तर लिखिए :

(a) दुबारा बैजू बावरा ने सितार पकड़ा, तो यह हुआ –
(i) …………………………………
(ii) …………………………………
(iii) …………………………………
(iv) …………………………………
उत्तर :
(i) एक बार फिर संगीतलहरी वायुमंडल में लहराने लगी।
(ii) फिर सुनने वाले संगीत-सागर की तरंगों में डूबने लगे।
(iii) हरिण बैजू बावरा के पास फिर आए।
(iv) बैजू ने (उनके गले से) मालाएँ उतार लीं और हरिण छलाँग लगाते चले गए।

(b) अकबर का निर्णय सुन कर तानसेन ने यह किया –
(i) …………………………………
(ii) …………………………………
(iii) …………………………………
(iv) …………………………………
उत्तर :
(i) काँपता हुआ उठा।
(ii) काँपता हुआ आगे बढ़ा।
(iii) काँपता हुआ बैजू बावरा के पाँव में गिर पड़ा।
(iv) उससे गिड़गिड़ाया, ‘मेरे प्राण न लो।’

(c) बैजू बावरा ने तानसेन को यह जवाब दिया –
(i) …………………………………
(ii) …………………………………
उत्तर :
(i) मुझे तुम्हारे प्राण लेने की चाह नहीं।
(ii) तुम इस नियम को उड़वा दो कि यदि आगरे की सीमा में गाने वाला तानसेन की जोड़ का न हो, तो उसे मरवा दिया जाए।

(d) बैजू बावरा ने तानसेन को यह पुरानी बात बताई –
(i) …………………………………
(ii) …………………………………
उत्तर :
(i) बारह साल पहले आपने एक बच्चे की जान बचाई (बख्शी ) थी।
(ii) आज उस बच्चे ने आपकी जान बख्शी है।

कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
गद्यांश में प्रयुक्त प्रत्यययुक्त शब्द ढूँढ़कर लिखिए : .
(1) ………………………………
(2) ………………………………
(3) ………………………………
(4) ………………………………
उत्तर :
(1) संगीतलहरी – संगीतलहर + ई।
(2) मालाएँ – माला + एँ।
(3) होकर – हो + कर।
(4) दीनता – दीन + ता।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला

1. मुहावरे :

निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ लिखकर अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए :

(1) अगर-मगर करना।
अर्थ : टाल-मटोल करना।
वाक्य : सिपाही ने आरोपी से कहा, अगर-मगर मत करो, सीधे-सीधे मेरे साथ थाने चलो।

(2) अपना राग अलापना।
अर्थ : अपनी ही बातें करते रहना।
वाक्य : श्यामसुंदर की तो आदत है, दूसरे की बात न सुनना और अपना ही राग अलापते रहना।

(3) चाँदी काटना।
अर्थ : बहुत लाभ कमाना।
वाक्य : आजकल जब लोग कोरोना के डर से घरों में दुबके हैं, कुछ सब्जी बेचने वाले चाँदी काट रहे हैं।

(4) कान भरना।
अर्थ : चुगली करना।
वाक्य : मुनीमजी का चपरासी आफिस के अन्य लोगों के बारे में उनके कान भरता रहता है।

(5) जली-कटी सुनाना।
अर्थ : कटु बात करना।
वाक्य : रघु की माँ अकारण अपनी बहू को जली-कटी सुनाती रहती है।

2. काल परिवर्तन :

प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्यों का काल परिवर्तन करके वाक्य फिर से लिखिए :
(1) प्रकाश की किरणें संसार पर नवीन जीवन की वर्षा कर रही थीं। (सामान्य वर्तमानकाल)
(2) जो जवान थे उनके बाल सफेद हो गए। (सामान्य भविष्यकाल)
(3) मेरी आँखें दूसरों की मौत को देखने के लिए हर समय तैयार हैं। (पूर्ण भूतकाल)
(4) बैजू बावरा की उँगलियाँ सितार पर दौड़ रही थीं। (अपूर्ण वर्तमानकाल)
(5) बहुत अच्छा! दोबारा बुलाकर दिखा देता हूँ। (सामान्य भविष्यकाल)
उत्तर :
(1) प्रकाश की किरणें संसार पर नवीन जीवन की वर्षा करती हैं।
(2) जो जवान होंगे उनके बाल सफेद हो जाएंगे।
(3) मेरी आँखें दूसरों की मौत को देखने के लिए हर समय तैयार थीं।
(4) बैजू बावरा की उँगलियाँ सितार पर दौड़ रही हैं।
(5) बहुत अच्छा! दोबारा बुलाकर दिखा दूंगा।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला

3. वाक्य शुद्धिकरण :

प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध करके लिखिए :
(1) मैं तेरे को वह हथियार दूँगा, जिससे तू तेरे पिता की मौत का बदला ले सकेगा।
(2) हरिदास की धीरज की दीवार आँसुओं के बौछार न सह सकी।
(3) बैजू हाथों बाँधकर खड़े हो गया।
(4) अब मेरी पास और कुछ नहीं, जो तुजे दूँ।
(5) साधु की प्रार्थना में सर्वसाधारण को भी उसकी जीवन और मृत्यु का तमाशा देखने की आज्ञा दे दी गई थी।
उत्तर :
(1) मैं तुझे वह हथियार दूँगा, जिससे तू अपने पिता की मौत का बदला ले सकेगा।
(2) हरिदास के धीरज की दीवार आँसुओं की बौछार न सह सकी।
(3) बैजू हाथ बाँधकर खड़ा हो गया।
(4) अब मेरे पास और कुछ नहीं जो तुझे दूँ।
(5) साधु की प्रार्थना पर सर्वसाधारण को भी उसके जीवन और मृत्यु का तमाशा देखने की आज्ञा दे दी गई थी।

आदर्श बदला Summary in Hindi

आदर्श बदला लेखक का परिचय

आदर्श बदला लेखक का नाम : सुदर्शन। (मूल नाम : बदरीनाथ) (जन्म 29 मई, 1895, सियालकोट ; निधन 9 मार्च, 1967.)

प्रमुख कृतियाँ : पुष्पलता, सुदर्शन सुधा, तीर्थयात्रा, पनघट (कहानी संग्रह)। सिकंदर, भाग्यचक्र (नाटक)। भागवती (उपन्यास)। आनररी मजिस्ट्रेट (प्रहसन)।

विशेषता : आपने प्रेमचंद की लेखन-परंपरा को आगे बढ़ाया है। आपकी रचनाएँ आदर्शोन्मुख यथार्थवाद को रेखांकित करती हैं। साहित्य को लेकर आपका दृष्टिकोण सुधारवादी रहा है। आपने हिंदी फिल्मों की पटकथाएँ और गीत भी लिखे हैं। आपकी प्रथम कहानी ‘हार की जीत’ हिंदी साहित्य में विशिष्ट स्थान रखती है।

विधा : कहानी। कहानी भारतीय साहित्य की प्राचीन विद्या है। आपकी कहानियों की भाषा सरल, पात्रानुकूल तथा प्रभावोत्पादक हैं। मुहावरों का सटीक प्रयोग, प्रवाहमान शैली कहानी की प्रभावोत्पादकता में वृद्धि करती है।

विषय प्रवेश : बदला लेने वाले व्यक्ति के मन में अकसर क्रोध अथवा हिंसा की भावना प्रमुख होती है। इतना ही नहीं, मौत का बदला मौत से लेने की अनेक घटनाएँ प्रसिद्ध हैं। पर प्रस्तुत कहानी में लेखक ने बदला लेने का अनूठा आदर्श प्रस्तुत किया है। ‘बचपन में बैजू अपने पिता को भजन गाने के अपराध में तानसेन की क्रूरता का शिकार होता हुआ देखता है। परंतु वही बैजू बावरा तानसेन को संगीत-प्रतियोगिता में हरा कर उसे जीवन-दान दे देता है। लेखक ने इस कहानी के माध्यम से बैजू बावरा को आदर्श बदला लेते हुए दर्शाया है।

आदर्श बदला पाठ का सार

आगरा शहर में सुबह-सुबह साधुओं की एक मंडली अपने ढंग से भजन गाते-गुनगुनाते प्रवेश कर रही थी। इस मंडली में एक छोटा बच्चा भी था। साधु अपने राग में मगन थे, तभी राज्य के सिपाहियों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और उन्हें बादशाह अकबर के सामने पेश कर दिया गया।

अकबर के मशहूर संगीतकार तानसेन ने यह कानून बनवा दिया था कि जो आदमी राग विद्या में उसकी बराबरी न कर सके, वह आगरा की सीमा में गीत न गाए और जो गाए तो उसे मौत की सजा दी जाए। बेचारे साधुओं को इसकी जानकारी नहीं थी। साधु संगीत विद्या से अनभिज्ञ थे। अतः उन्हें मृत्युदंड की सजा हुई। पर उस बच्चे पर दया करके उसे छोड़ दिया गया।

वह बच्चा रोता-तड़पता आगरा की बाजारों से निकल कर जंगल में अपनी कुटिया में पहुँचा और विलाप करता रहा। तभी खड़ाऊँ पहने, हाथ में माला लिए हुए, राम नाम का जप करते हुए बाबा हरिदास कुटिया के अंदर आए और उन्होंने उसे शांत रहने के लिए कहा। पर उस बच्चे के मन में शांति कहाँ थी! उसका तो संसार उजड़ चुका था। तानसेन ने उसे तबाह कर दिया था।

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यह बच्चा बैजू बावरा था। उसने अपने साथ हुई सारी दुर्घटना बाबा हरिदास को बताई और अपने बदले की भूख और प्रतिकार की प्यास मिटाने की उनसे प्रार्थना की। E अंत में हरिदास ने उसे आश्वस्त किया कि वे उसे ऐसा हथियार देंगे, जिससे वह अपने पिता का बदला ले सके।

इसके लिए उन्होंने बैजू से बारह वर्ष तक (संगीत की) तपस्या E करने का वचन लिया। बाबा ने बारह वर्ष में बैजू बावरा को वह सब कुछ सिखा दिया, जो उनके पास था। अब बैजू पूर्ण गंधर्व हो गया था। उसके स्वर में जादू था।

लेकिन संगीत-तपस्या पूरी होने के साथ ही बैजू बावरा को बाबा हरिदास के सामने यह प्रतिज्ञा भी करनी पड़ी कि वह इस राग विद्या से किसी को हानि नहीं पहुँचाएगा। इस प्रतिज्ञा से उसे लगा कि प्रतिहिंसा की छुरी हाथ में आई भी तो गुरु ने प्रतिज्ञा लेकर उसे कुंद कर दी।

कुछ दिनों बाद यही सुंदर युवक साधु आगरा के बाजारों में गाता हुआ जा रहा था। लोगों ने सोचा कि इसकी भी मौत आ गई है। वे उसे नगर की रीति की सूचना देने निकले। पर उसके निकट पहुँचने के पहले ही वे उससे मुग्ध होकर अपनी सुधबुध खो बैठे। सिपाही उसे पकड़ने दौड़े तो उसका गीत सुन कर उन्हें अपनी हथकड़ियों की भी सुध न रही। लोग नवयुवक के गीत पर मुग्ध थे। चलते-चलते यह जन-समूह मौत के द्वार यानी तानसेन के महल के सामने था।

तानसेन बाहर निकला और उसने फब्ती कसी, ‘तो शायद आपके सिर पर मौत सवार है।’ यह सुन कर बैजू के होठों पर मुस्कराहट आ गई। उसने कहा, “मैं आपके साथ गान-विद्या पर चर्चा करना चाहता हूँ।” तानसेन ने कहा, “जानते हैं नियम कड़ा है। मेरे दिल में दया नहीं है। मेरी आँखें दूसरों की मौत देखने के लिए हर समय तैयार हैं।” इस पर बैजू बावरा ने कहा, “और मेरे दिल में जीवन का मोह नहीं है। मैं मरने के लिए हर समय तैयार हूँ।”

दरबार की ओर से शर्ते सुनाई गई। राग-युद्ध नगर के बाहर वन में आयोजित किया गया था। लगता था वन में नगर बस गया है। बैजू ने सितार उठाया। उसने पदों को हिलाया तो जनता ब्रह्मानंद में लीन हो गई। उसकी उँगलियाँ सितार पर दौड़ने लगीं। लगा, सारे विश्व की मस्ती वहीं आ गई हो। तभी संगीत से प्रभावित होकर कुंछ हरिण छलांगें मारते हुए वहाँ आ पहुँचे। वे संगीत सुनते रहे।

बैजू ने सितार बजाना बंद किया और अपने गले से फूलमालाएँ उतार कर हरिणों को पहना दीं। हरिण चौकड़ी भरते हुए गायब हो गए। बैजू ने तानसेन से कहा, “ तानसेन, मेरी फूलमालाएँ यहाँ मँगवा दें, तब जानूँ कि आप राग-विद्या जानते हैं।”

तानसेन सितार हाथ में लेकर बजाने लगा। इतनी एकाग्रता के साथ उसने अपने जीवन में कभी सितार नहीं बजाया था। आज वह अपनी पूरी कला दिखा देना चाहता था। आज वह किसी तरह जीतना चाहता था। आज वह किसी भी तरह जिंदा रहना चाहता था। सितार बजता रहा, पर आज लोगों ने उसे पसंद नहीं किया। तानसेन का शरीर पसीना-पसीना हो गया, पर हरिण न आए। वह खिसिया गया। बोला, “वे हरिण राग की तासीर से नहीं आए थे। हिम्मत है तो दुबारा बुला कर दिखाओ।”

यह सुन कर बैजू ने फिर सितार पकड़ लिया। सितार बजने लगा। वे हरिण फिर बैजू बावरा के पास आ गए। बैजू ने उनके गले से मालाएँ उतार लीं। अकबर ने अपना निर्णय सुना दिया, “बैजू बावरा जीत गया, तानसेन हार गया।’ यह सुन कर तानसेन बैजू बावरा के पाँव में गिर पड़ा और उससे अपने प्राणों की भीख माँगने लगा। बैजू बावरा ने कहा, “मुझे तुम्हारे प्राण लेने की चाह नहीं है। तुम इस निष्ठुर नियम को खत्म करवा दो कि यदि आगरा की सीमा में गाने वाला व्यक्ति तानसेन की जोड़ का न हो, तो उसे मरवा दिया जाए।”

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यह सुन कर अकबर ने उसी समय उस नियम को खत्म कर दिया। तानसेन ने बैजू बावरा के चरणों में गिर कर कहा, “मैं यह उपकार जीवन भर नहीं भूलूँगा।’ बैजू बावरा ने उसे याद दिलाया, ‘बारह बरस पहले उसने एक बच्चे की जान बख्शी थी। आज उस बच्चे ने उसकी जान बख्शी है।’

मुहावरे : अर्थ और वाक्य प्रयोग

(1) तूती बोलना।
अर्थ : अधिक प्रभाव होना।
वाक्य : आज उद्योग के क्षेत्र में देश के कुछ घरानों की ही तूती बोलती है।

(2) वाह वाह करना।
अर्थ : प्रशंसा करना।
वाक्य : सितारवादक रविशंकर का सितार वादन सुन कर। श्रोता वाह वाह कर उठते थे।

(3) लहू सूखना।
अर्थ : भयभीत हो जाना।
वाक्य : कोरोना वायरस का नाम सुनते ही लहू सूखने लगता है।

(4) कंठ भर आना।
अर्थ : भावुक हो जाना।
वाक्य : बेटी की बिदाई के समय पिता का कंठ भर आया।

(5) बिलख-बिलख कर रोना।
अर्थ : विलाप करना, जोर-जोर से रोना।
वाक्य : दुर्घटना में घायल पिता की मृत्यु का समाचार सुन कर बेटा बिलख-बिलख कर रोने लगा।

(6) समाँ बँधना।
अर्थ : रंग जमना, वातावरण निर्माण होना।
वाक्य : मदारी ने बंदरों से ऐसा नृत्य करवाया कि समाँ बँध गया।

(7) ब्रह्मानंद में लीन होना।
अर्थ : अलौकिक आनंद का अनुभव करना।
वाक्य : तबलावादक सामताप्रसाद का तबला वादन सुन कर श्रोता ब्रह्मानंद में लीन हो जाते थे।

(8) जान बख्शना।
अर्थ : जीवन दान देना।
वाक्य : डाकुओं ने सेठ की संपत्ति लूट ली, पर उनकी जान बख्श दी।

(9) संसार उजड़ जाना।
अर्थ : सब कुछ व्यर्थ हो जाना।
वाक्य : पति के असामयिक निधन से बेचारी राधा का संसार उजड़ गया।

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(10) खरीद लेना।
अर्थ : गुलाम बना लेना।
वाक्य : गाँवों में पहले कुछ लोग मजदूरों को थोड़ा-बहुत कर्ज देकर जैसे उन्हें खरीद ही लेते थे।

(11) रक्त का चूँट पी कर रह जाना।
अर्थ : अपना क्रोध या दुःख प्रकट न होने देना।
वाक्य : मुनीमजी ने बार-बार चपरासी को बुरा-भला कहा, पर वह रक्त का चूंट पी कर रह गया।

(12) पसीना-पसीना होना।
अर्थ : बहुत अधिक परेशान होना।
वाक्य : जंगल से जाते हुए किसान ने हिरन पर झपट्टा मारते हुए चीते को देखा तो वह पसीना-पसीना हो गया।

आदर्श बदला शब्दार्थ

  • सुमर = स्मरण करना
  • प्रतिकार = बदला, प्रतिशोध
  • अवहेलना = अनादर
  • चाँदनिया = शामियाना
  • नि:शब्द = मौन, चुप
  • तासीर = प्रभाव, परिणाम
  • खड़ाऊँ = लकड़ी की बनी खूटीदार पादुका
  • कुंद = भोथरा, बिना धार का
  • कनात = मोटे कपड़े की दीवार या परदा
  • उद्विग्नता = घबराहट, आकुलता
  • सुधिहीन = बेहोश
  • अगाध = अपार, अथाह

आदर्श बदला मुहावरे

  • तूती बोलना = अधिक प्रभाव होना
  • वाह-वाह करना = प्रशंसा करना
  • लहू सूखना = भयभीत हो जाना
  • कंठ भर आना = भावुक हो जाना
  • बिलख-बिलखकर रोना = विलाप करना/जोर-जोर से रोना
  • समाँ बँधना = रंग जमना, वातावरण निर्माण होना Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला
  • ब्रह्मानंद में लीन होना = अलौकिक आनंद का अनुभव करना
  • जान बख्शना = जीवन दान देना

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 सच हम नहीं; सच तुम नहीं

Balbharti Maharashtra State Board Hindi Yuvakbharati 12th Digest Chapter 3 सच हम नहीं; सच तुम नहीं Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

Maharashtra State Board 12th Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 सच हम नहीं; सच तुम नहीं

12th Hindi Guide Chapter 3 सच हम नहीं; सच तुम नहीं Textbook Questions and Answers

कृति-स्वाध्याय एवं उत्तर

आकलन

प्रश्न 1.
(अ) कविता की पंक्ति पूर्ण कीजिए :
(1) अपने हृदय का सत्य, – ……………………….
(2) आदर्श हो सकती नहीं, – ……………………….
(3) बेकार है मुस्कान से ढकना, – ……………………….
(4) अपने नयन का नीर, – ……………………….
उत्तर :
(1) अपने हृदय का सत्य, अपने-आप हमको खोजना।
(2) आदर्श हो सकती नहीं, तन और मन की भिन्नता।
(3) बेकार है मुस्कान से ढकना, हृदय की खिन्नता।
(4) अपने नयन का नीर, अपने-आप हमको पोंछना।

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(आ) लिखिए :

(a) जीवन यही है
(1) जीवन यही है –
(i) …………………………….
(ii) …………………………….
(iii) …………………………….
(iv) …………………………….
उत्तर :
जीवन यही है –
(i) नत न होना।
(ii) पंथ भूलने पर भी न रुकना।
(iii) हार देखकर भी न झुकना।
(iv) मृत्यु को भी जीत लेना।

(b) मिलना वही है –
(1) मिलना वही है – ……………………….
(2) यह जिंदगी जिंदगी नहीं है – ……………………….
(3) हर राही को इससे दिशा मिलती है – ……………………….
(4) कवि तब तक इस राह को सही नहीं मानेगा – ……………………….
उत्तर :
(1) जो मँझधार को मोड़ दे।
(2) जो सिर्फ पानी-सी बहती रहे।
(3) भटकने के बाद।
(4) जब तक जीवन बँधा होगा और जब तक प्यार पर दुख की गहरी छाया होगी।

शब्द संपदा

प्रश्न 2.
प्रत्येक शब्द के दो पर्यायवाची शब्द लिखिए :
(1) पंथ – [ ] [ ]
(2) काँटा – [ ] [ ]
(3) कुसुम – [ ] [ ]
(4) हार – [ ] [ ]
उत्तर :
(1) पंथ – [ रास्ता ] [ डगर ]
(2) काँटा – [ शूल ] [ कंटक ]
(3) कुसुम – [ पुष्प ] [ प्रसून ]
(4) हार – [ पराजय ] [ पराभव ]

अभिव्यक्ति

प्रश्न 3.
(अ) ‘जीवन निरंतर चलते रहने का नाम है’, इस विचार की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
जीवन का उद्देश्य निरंतर आगे-ही-आगे बढ़ते रहना है। जीवन में ठहराव आने को मृत्यु की संज्ञा दी जाती है। अनेक महापुरुषों ने अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए जीवनभर संघर्ष किया है और उनका नाम अमर हो गया है। जीवन का मार्ग आसान नहीं ३ है। उस पर पग-पग पर कठिनाइयाँ आती रहती हैं। इन कठिनाइयों 1 से उसे जूझना पड़ता है। उसमें हार भी होती है और जीत भी होती ३ है। असफलताओं से मनुष्य को घबराना नहीं चाहिए।

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बल्कि उनका ३ दृढ़तापूर्वक सामना करके उसमें से अपना मार्ग प्रशस्त करना और ३ निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिए। एक दिन मंजिल अवश्य मिलेगी। जीवन संघर्ष कभी न खत्म होने वाला संग्राम है। इसका सामना करने का एकमात्र मार्ग है निरंतर चलते रहना और हर स्थिति में संघर्ष जारी रखना।

(आ) ‘संघर्ष करने वाला ही जीवन का लक्ष्य प्राप्त करता है, इस विषय पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर :
दुनिया में दो प्रकार के मनुष्य होते हैं। एक वे जो सामान्य रूप से चलनेवाली जिंदगी जीना पसंद करते हैं और आगे बढ़ने के लिए किए जानेवाले उठा-पटक को पसंद नहीं करते। दूसरे तरह के वे लोग होते हैं, जो अपना लक्ष्य निर्धारित कर लेते हैं और उसे प्राप्त करने के लिए संघर्ष का रास्ता चुनते हैं। ऐसे लोगों का जीवन आसान नहीं होता। इन्हें पग-पग पर विभिन्न रुकावटों का सामना करना पड़ता है।

पर ऐसे लोग इन रुकावटों से डरते नहीं, बल्कि हँसते-हँसते इनका सामना करते हैं। सामना करने में अनेक बार असफलता भी इनके हाथ लगती है। पर ये इससे हताश नहीं होते। ये फिर अपनी गलतियों को सुधारते हैं और नए सिरे से संघर्ष करने में जुट जाते हैं। परिस्थितियाँ कैसी भी हों, वे न झुकते हैं और न हताश होते हैं। उनके सामने सदा उनका लक्ष्य होता है। उसे प्राप्त करने के लिए वे निरंतर संघर्ष करते रहते हैं।

ऐसे लोग अपनी निष्ठा और लगन के बल पर एक-न-एक दिन अवश्य सफल हो जाते हैं। वे संघर्ष के बल पर अपने जीवन का लक्ष्य प्राप्त करके रहते हैं।

रसास्वादन

प्रश्न 4.
‘आँसुओं को पोंछकर अपनी क्षमताओं को पहचानना ही जीवन है’, इस सच्चाई को समझाते हुए कविता का रसास्वादन कीजिए।
उत्तर :
डॉ. जगदीश गुप्त द्वारा लिखित कविता ‘सच हम नहीं, सच तुम नहीं’ में जीवन में निरंतर संघर्ष करते रहने का आह्वान किया गया है।

कवि पानी-सी बहने वाली सीधी-सादी जिंदगी का विरोध करते हुए संघर्षपूर्ण जीवन जीने की बात करते हैं। वे कहते हैं, जो जहाँ भी हो, उसे संघर्ष करते रहना चाहिए।

संघर्ष में मिली असफलता से निराश होने की आवश्यकता नहीं है। ऐसी हालत में हमें किसी के सहयोग की आशा नहीं करनी। हमें अपने आप में खुद हिम्मत लानी होगी और अपनी क्षमता को पहचानकर नए सिरे से संघर्ष करना होगा। मन में यह विश्वास रखकर काम करना होगा कि हर राही को भटकने के बाद दिशा मिलती ही है और उसका प्रयास व्यर्थ नहीं जाएगा। उसे भी दिशा मिलकर रहेगी।

कवि ने सीधे-सादे शब्दों में प्रभावशाली ढंग से अपनी बात कही है। अपनी बात कहने के लिए उन्होंने ‘अपने नयन का नीर पोंछने’ शब्द समूह के द्वारा हताशा से अपने आपको उबार कर स्वयं में नई शक्ति पैदा करने तथा ‘आकाश सुख देगा नहीं, धरती पसीजी है नहीं’ से यह कहने का प्रयास किया है कि भगवान तुम्हारी सहायता के लिए नहीं आने वाले हैं और धरती के लोग तुम्हारे दुख से द्रवित नहीं होने वाले हैं। इसलिए तुम स्वयं अपने आप को सांत्वना दो और नए जोश के साथ आगे बढ़ो। तुम अपने लक्ष्य पर पहुँचने में अवश्य कामयाब होंगे।

साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान

प्रश्न 5.
जानकारी दीजिए :
(अ) ‘नई कविता’ के अन्य कवियों के नाम –
(आ) कवि डॉक्टर जगदीश गुप्त की प्रमुख साहित्यिक कृतियों के नाम –
उत्तर :
(अ) ‘नई कविता’ के अन्य कवियों के नाम – [रामस्वरूप चतुर्वेदी, विजयदेव साही]
(आ) कवि डॉक्टर जगदीश गुप्त की प्रमुख साहित्यिक कृतियों के नाम – [‘नाँव के पाँव, शब्द दंश, हिम विद्ध, गोपा-गौतम’] (काव्य संग्रह), ‘शंबूक’ (खंडकाव्य), ‘भारतीय कला के पदचिहन, नयी कविता : स्वरूप और समस्याएँ, केशवदास’ (आलोचनाएँ) तथा ‘नयी कविता’ (पत्रिका)।]

प्रश्न 6.
निम्नलिखित वाक्यों में अधोरेखांकित शब्दों का लिंग परिवर्तन कर वाक्य फिर से लिखिए :

(1) बहुत चेष्टा करने पर भी हरिण न आया।
उत्तर :
बहुत चेष्टा करने पर भी हरिणी न आई।

(2) सिद्धहस्त लेखिका बनना ही उनका एकमात्र सपना था।
उत्तर :
सिद्धहस्त लेखक बनना ही उनका एकमात्र सपना था।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 सच हम नहीं; सच तुम नहीं

(3) तुम एक समझदार लड़की हो।
उत्तर :
तुम एक समझदार लड़के हो।

(4) मैं पहली बार वृद्धाश्रम में मौसी से मिलने आया था।
उत्तर :
मैं पहली बार वृद्धाश्रम में मौसा से मिलने आया था।

(5) तुम्हारे जैसा पुत्र भगवान सब को दे।
उत्तर :
तुम्हारी जैसी पुत्री भगवान सब को दे।

(6) साधु की विद्वत्ता की धाक दूर-दूर तक फैल गई थी।
उत्तर :
साध्वी की विद्वत्ता की धाक दूर-दूर तक फैल गई थी।

(7) बूढ़े मर गए।
उत्तर :
बुढ़ियाँ मर गईं।

(8) वह एक दस वर्ष का बच्चा छोड़ा गया।
उत्तर :
वह एक दस वर्ष की बच्ची छोड़ी गई।

(9) तुम्हारा मौसेरा भाई माफी माँगने पहुंचा था।
उत्तर :
तुम्हारी मौसेरी बहन माफी माँगने पहुंची थी।

(10) एक अच्छी सहेली के नाते तुम उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि का अध्ययन करो।
उत्तर :
एक अच्छे मित्र के नाते तुम उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि का अध्ययन करो।

Hindi Yuvakbharati 12th Digest Chapter 3 सच हम नहीं; सच तुम नहीं Additional Important Questions and Answers

कृतिपत्रिका के प्रश्न 2 (अ) तथा प्रश्न 2 (आ) के लिए
पद्यांश क्र. 1

प्रश्न. निम्नलिखितपद्यांशपढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
कृति पूर्ण कीजिए :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 सच हम नहीं; सच तुम नहीं 1
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 सच हम नहीं; सच तुम नहीं 2

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 सच हम नहीं; सच तुम नहीं

प्रश्न 2.
जीवन का संदेश
(i) …………………………….
(ii) …………………………….
(iii) …………………………….
(iv) …………………………….
उत्तर :
जीवन का संदेश –
(i) जीवन में कहीं जड़ता नहीं होनी चाहिए।
(ii) अपनी-अपनी जगह पर खुद से लड़ाई जारी रखनी चाहिए।
(iii) हर तरह की परिस्थिति का सामना करने की तैयारी होनी चाहिए।
(iv) इन्सान को कभी टूटना-हारना नहीं चाहिए।

प्रश्न 3.
उत्तर लिखिए :
(1) नत होने से मृत जैसा होने की तुलना की गई है इससे – …………………………….
(2) काँटे चुभे, कलियाँ खिलें का अर्थ – …………………………….
उत्तर :
(1) नत होने से मृत जैसा होने की तुलना की गई है इससे – [डंठल से झरे फूल से।]
(2) काँटे चुभे, कलियाँ खिलें का अर्थ – [स्थिति चाहे प्रतिकूल हो अथवा अनुकूल।]

पदयांश क्र. 2
प्रश्न. निम्नलिखितपद्यांशपढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
पद्यांश पर आधारित दो ऐसे प्रश्न तैयार कीजिए जिनके उत्तर निम्नलिखित शब्द हों :
(1) आकाश
(2) धरती
उत्तर :
(1) कौन सुख नहीं देगा?
(2) कौन नहीं पसीजती है?

कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
प्रत्येक शब्द के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए :
(1) फूल – [ ] [ ]
(2) नीर – [ ] [ ]
(3) नयन – [ ] [ ]
(4) धरती – [ ] [ ]
उत्तर :
(1) फूल – [ पुष्प ] [ कुसुम ]
(2) नीर – [ अंबु ] [ जल ]
(3) नयन – [ चक्षु ] [ आँख ]
(4) धरती – [ पथ्वी ] [ अवनि ]

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 सच हम नहीं; सच तुम नहीं

(2) निम्नलिखित शब्दों के विरुद्धार्थी शब्द लिखिए :
(1) तोड़ना x …………………………
(2) सच x …………………………
(3) दुख x …………………………
(4) बेकार x …………………………
उत्तर :
(1) तोड़ना x जोड़ना
(3) दुख x सुख
(2) सच x झूठ
(4) बेकार x साकार।

रसास्वादन मुद्दों के आधार पर
कृतिपत्रिका के प्रश्न 2 (इ) के लिए

प्रश्न 1.
निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर सच हम नहीं; सच तुम नहीं’ कविता का रसास्वादन कीजिए।
उत्तर :
(1) रचना का शीर्षक : सच हम नहीं; सच तुम नहीं।
(2) रचनाकार : डॉ. जगदीश गुप्त।
(3) कविता की केंद्रीय कल्पना : प्रस्तुत कविता में निरंतर आगे बढ़ते रहने, संघर्ष करते रहने और मार्ग में आनेवाली रुकावटों की परवाह न करके अपने लक्ष्य की प्राप्ति की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा दी गई है। यही इस कविता की केंद्रीय कल्पना है।
(4) रस-अलंकार : –
(5) प्रतीक विधान : इस कविता में संघर्ष का मार्ग त्याग कर नत हो जाने यानी किसी की अधीनता स्वीकार कर लेने वाले को मृतक के समान हो जाना कहा गया है। कवि ने इस तरह के मृत व्यक्ति के लिए ‘डाल से झड़े हुए फूल’ का प्रतीक के रूप में उपयोग किया है।
(6) कल्पना : जीवन में दृढ़तापूर्वक संघर्ष का मार्ग अपनाना और निराश हुए बिना उस पर अडिग रहना ही जीवन की एकमात्र सच्चाई है।
(7) पसंद की पंक्तियाँ तथा प्रभाव : कविता की पसंद की पंक्तियाँ इस प्रकार हैं :
अपने हृदय का सत्य,
अपने आप हम को खोजना।
अपने नयन का नीर,
अपने आप हम को पोंछना।.

इन पंक्तियों में अपनी समस्याओं को पहचानने और उनका समाधान ढूँढ़ने के लिए बिना किसी की सहायता की उम्मीद किए स्वयं कमर कस कर तैयार होने की प्रेरणा मिलती है।

(8) कविता पसंद आने का कारण : कवि ने इस पंक्ति में यह बताया है कि संघर्ष में असफलता हाथ लगे, तो भी निराश होने की जरूरत नहीं है। हमें अपने आप अपनी आँखों के आँसू पौंछकर फिर से हिम्मत के साथ संघर्ष में जुट जाना है।

व्याकरण

अलंकार :

प्रश्न 1.
निम्नलिखित काव्य पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार पहचान कर उनके नाम लिखिए :
(1) हरि पद कोमल कमल से।
(2) झूठे जानि न संग्रही मन मुँह निकसे बैन। यहि ते मानहुँ किए, बातनु को बिघि नैन।
(3) पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।
(4) हनूमान की पूँछ में लग न पाई आग। लंका सिगरी जल गई, गए निशाचर भाग।
(5) एक म्यान में दो तलवारें कभी नहीं रह सकतीं। किसी और पर प्रेम पति का नारियाँ नहीं सह सकी।
उत्तर :
(1) उपमा अलंकार
(2) उत्प्रेक्षा अलंकार
(3) रूपक अलंकार
(4) अतिशयोक्ति अलंकार
(5) दृष्टांत अलंकार।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 सच हम नहीं; सच तुम नहीं

रस:

प्रश्न 1.
निम्नलिखित काव्य पंक्तियों में प्रयुक्त रस पहचान कर लिखिए :
(1) काहु न तखा सो चरित विसेरना। सो सरूप नृप कन्या देखा।
मर्कट वदन भयंकर देही। देखत हृदय क्रोध मा तेही।
जेहि दिसि बैठे नारद फूली। सो दिसि तेहि न विलोकी भूली।
पुनि-पुनि मुनि उकसहिं अकुलाहीं। देखि दसा हर गन मुसुकाहीं।

(2) जो हौं तव अनुशासन पावौं
तौ चंद्रमहिं निचोरि चैल ज्यों आनि सुधा सिर नावौं।
कै पाताल दलौं व्यालावलि अमृत कुंड महि लावौ।
भेदि भुवन, करि भानु बाहियें तुरत राहु दै ताबौ।।
विबुध बैद बरबस आनौं धरि, तौ प्रभु अनुग कहावौं।
पटकौं मीच नीच मूषक ज्यों सबहिं को पाप कहावौं।

(3) कहुँ सुलगत कोउ चिता, कहुँ कोउ जात लगाई।
एक लगाई जात, एक की राख बुझाई।
विविध रंग की उठति ज्वाल दुर्गन्धिति महकति,
कहु चरबी सी चटचटाति कहुँ दह-दह दहकति।
उत्तर :
(1) हास्य रस
(2) वीर रस
(3) वीभत्स रस।

मुहावरे :

प्रश्न 1.
निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ लिखकर वाक्य में प्रयोग कीजिए :
(1) गुड़ गोबर करना।
अर्थ : बने काम को बिगाड़ देना।
वाक्य : चित्रकार का चित्र तैयार था तभी एक छोटे बच्चे ने आकर उस पर ऐसी कूँची फिराई की सारा गुड़ गोबर हो गया।

(2) जहर का चूंट पीना।
अर्थ : अपमान को चुपचाप सह लेना।
वाक्य : मुंशीजी अपने चपरासी से कभी-कभी जब पैर दबा देने की बात करते थे तब वह जहर का यूंट पीकर रह जाता था।

(3) तिल का ताड़ बनाना।
अर्थ : छोटी बात को बढ़ा-चढ़ा कर कहना।
वाक्य : रमेश की बात विश्वास करने लायक नहीं होती, उसकी तो तिल का ताड़ बनाने की आदत है।

(4) मुट्ठी गर्म करना।
अर्थ : रिश्वत देना।
वाक्य : गाँवों में छोटा-मोटा काम करवाने के लिए भी अधिकारियों की मुट्ठी गर्म करनी पड़ती है।

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(5) पत्थर की लकीर।
अर्थ : पक्की बात।
वाक्य : गाँव के लोग वकील साहब की बात को पत्थर की लकीर मानते थे।

काल परिवर्तन :

प्रश्न 1.
सूचनाओं के अनुसार काल परिवर्तन करके वाक्य फिर से लिखिए :
(1) वह पंथ भूल कर नहीं रुकता है। (पूर्ण भूतकाल)
(2) वह हार देख कर नहीं झुका। (सामान्य भविष्यकाल)
(3) आकाश सुख नहीं देगा। (अपूर्ण वर्तमानकाल)
(4) धरती नहीं पसीजती है। (पूर्ण वर्तमानकाल)
(5) हर एक राही को भटक कर दिशा मिलती है। (अपूर्ण भूतकाल)
उत्तर :
(1) वह पंथ भूल कर नहीं रुका था।
(2) वह हार देख कर नहीं झुकेगा।
(3) आकाश सुख नहीं दे रहा है।
(4) धरती नहीं पसीजी है।
(5) हर एक राही को भटक कर दिशा मिल रही थी।

वाक्य शुद्धिकरण :

प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्य शुद्ध करके लिखिए :
(1) वह उसका काम कर रहा हैं।
(2) उस बगीचे में अनेकों फूले खिले हैं।
(3) पुस्तक की ढेर देख मैं दंग रह गया।
(4) उसे मात्र केवल दो दिन की छुट्टी चाहिएँ।
(5) मैं तुमको धन्यवाद करता हूँ।
उत्तर :
(1) वह अपना काम कर रहा है।
(2) उस बगीचे में अनेक फूल खिले हैं।
(3) पुस्तकों का ढेर देख में दंग रह गया।
(4) उसे केवल दो दिन की छुट्टी चाहिए।
(5) मैं तुम्हें धन्यवाद देता हूँ।

सच हम नहीं; सच तुम नहीं Summary in Hindi

सच हम नहीं; सच तुम नहीं कवि का परिचय

सच हम नहीं; सच तुम नहीं कवि का नाम : डॉ. जगदीश गुप्त। (जन्म 1924; निधन 2001.)
प्रमुख कृतियाँ : नाँव के पाँव, शब्द दंश, हिम विद्ध, गोपा-गौतम (काव्य संग्रह), ‘शंबूक’ (खंडकाव्य), भारतीय कला के पदचिह्न,
नयी कविता : स्वरूप और समस्याएँ, केशवदास (आलोचनाएँ) तथा ‘नयी कविता’ (पत्रिका) आदि।
विशेषता : प्रयोगवाद के बाद जिस नयी कविता का प्रारंभ हुआ, उसके प्रवर्तकों में जगदीश गुप्त का नाम प्रमुख रूप से लिया जाता है।
विधा : नई कविता। नए भावबोधों की अभिव्यक्ति के साथ नए मूल्यों और नए शिल्प विधान का अन्वेषण नई कविता की विशेषता है।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 सच हम नहीं; सच तुम नहीं

विषय प्रवेश : प्रस्तुत नई कविता में कवि ने संघर्ष करने की प्रेरणा दी है। संघर्ष ही जीवन की सच्चाई है। जो मनुष्य कठिनाइयों और मुसीबतों का सामना करते हुए बिना झुके या रुके आगे बढ़ता रहता है, वही सच्चा मनुष्य है। जिंदगी लीक से हटकर चलने का नाम है। लीक से भटककर भी मंजिल अवश्य मिलती है। कवि का कहना है कि हमें अपनी समस्याएँ खुद सुलझानी होंगी। हमारी लड़ाई – कोई दूसरा लड़ने नहीं आएगा। हमें खुद योद्धा बनकर अपनी लड़ाई लड़नी है।

सच हम नहीं; सच तुम नहीं कविता का सरल अर्थ

सच हम नहीं …………………………………………….. है जीवन वही।
कवि कहते हैं कि न मेरी बात सच है और न तुम्हारी बात सच है। सच है तो निरंतर संघर्ष करना। संघर्ष ही जीवन है। हमें संघर्ष का रास्ता अपनाना चाहिए। कवि के अनुसार संघर्ष से हटकर जीने की बात ही नहीं करनी चाहिए। बिना संघर्ष का जीवन भी भला कोई जीवन है!

कवि कहते हैं कि जिसने अधीनता स्वीकार ली, वह मृतक के समान हो गया। उसकी हालत डाल से झड़े हुए फूल जैसी होती है। जो व्यक्ति संघर्ष के मार्ग पर चलता हआ भटक जाने पर भी अपनी मंजिल पर बढ़ने से नहीं रुका अथवा अपने प्रयास में असफल हो जाने पर भी जिसने हार नहीं मानी अथवा जिसने मृत्यु से भी मोर्चा लिया हो और उसको परास्त कर दिया हो, उसी का जीवन जीवन कहलाने के योग्य है। यही सच्चाई है।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 सच हम नहीं; सच तुम नहीं 3

ऐसा करो जिससे …………………………………………….. यौवन का यही।
कवि कहते हैं कि मनुष्य में कहीं भी कोई ठहराव नहीं आना चाहिए। जो जहाँ है उसे वहीं चुपचाप अपना संघर्ष जारी रखना चाहिए। वे कहते हैं कि परिस्थितियाँ कैसी भी हों चाहे प्रतिकूल स्थिति हो अथवा अनुकूल स्थिति, मनुष्य को हताश होकर अपना संघर्ष कभी भी त्यागना नहीं चाहिए। जीवन का यही संदेश है।

हमने रचा जाओ …………………………………………….. पानी-सी बही।
कवि कहते हैं कि यथास्थिति में जीने का हमने जो नियम बनाया था, आओ, अब हम उसे तोड़ दें। यह भी कोई जीवन है। जीवन तो वह है, जो मँझधार को भी मोड़ने की शक्ति रखता हो। जिसने संघर्ष किया ही नहीं और यथास्थिति को ही सुखमय मानकर जीवन जीता आ रहा हो और दूसरों के इशारों पर चलता आ रहा हो, उसकी भला कोई जिंदगी है? वह जिंदगी तो यथास्थिति को स्वीकार लेने और लीक पर चलनेवाला जीवन है। (इसमें संघर्ष का नामोनिशान नहीं है।)

अपने हृदय का …………………………………………….. दिशा मिलती रही।

कवि कहते हैं कि हमें अपने दुखों को पहचानना होगा। उन्हें दूर करने के लिए हमें स्वयं प्रयास करना होगा। अपनी आँखों के आँसू हमें खुद पोंछने होंगे। हमें अपनी सहायता के लिए किसी अन्य से आशा नहीं करनी है। किसी अन्य की कृपा का भरोसा करना व्यर्थ है। हमें खुद योद्धा बनना होगा। हर संघर्ष करने वाले को कोई-नकोई मार्ग अवश्य मिलता है। मनुष्य मार्ग भटकने के बाद अपने लक्ष्य पर अवश्य पहुँचता है, इस बात को हमें गाँठ बाँध लेनी चाहिए।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 सच हम नहीं; सच तुम नहीं

बेकार है मुस्कान से …………………………………………….. राह को ही मैं सही।
कवि कहते हैं कि हृदय के कष्ट को बाह्य मुस्कान से दबाया नहीं जा सकता। इस तरह के प्रयास का कोई लाभ नहीं होता। इसे आदर्श नहीं माना जा सकता है। मनुष्य को भीतर और बाहर दोनों से एक-सा ही रहना चाहिए, यही आदर्श है। कवि कहते हैं कि जब तक विचारों पर अंकुश लगा रहेगा और जब तक प्यार पर दुख की गहरी छाया बनी रहेगी, तब तक इस मार्ग को किसी भी कीमत पर उचित नहीं माना जा सकता।

सच हम नहीं; सच तुम नहीं शब्दार्थ

  • नत = झुका हुआ
  • जड़ता = अचलता, ठहराव
  • पसीजना = मन में दया भाव आना
  • वृंत = डंठल
  • मँझधार = नदी की बीच की धारा
  • चेतना = जागृत अवस्था

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई

Balbharti Maharashtra State Board Hindi Yuvakbharati 12th Digest Chapter 2 निराला भाई Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

Maharashtra State Board 12th Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई

12th Hindi Guide Chapter 2 निराला भाई Textbook Questions and Answers

कृति-स्वाध्याय एवं उत्तर

आकलन

प्रश्न 1.
लिखिए :

(अ) लेखिका के पास रखे तीन सौ रुपये इस प्रकार समाप्त हो गए :
(1) ……………………………………………
(2) …………………………………………..
(3) ……………………………………………
(4) ……………………………………………
उत्तर :
लेखिका के पास रखे तीन सौ रुपए इस प्रकार समाप्त हो गए –
(1) किसी विद्यार्थी का परीक्षा शुल्क देने के लिए 50 रुपए लिए।
(2) किसी साहित्यिक मित्र को देने के लिए 60 रुपए लिए।
(3) तांगेवाले की माँ को मनीआर्डर करने के लिए 40 रुपए लिए।
(4) दिवंगत मित्र की भतीजी के विवाह के लिए 100 रुपए लिए। तीसरे दिन जमा पैसे समाप्त।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई

(आ) अतिथि की सुविधा हेतु निराला जी ये चीजें ले आए :
(1) ……………………………………………
(2) ……………………………………………
(3) ……………………………………………
(4) ……………………………………………
उत्तर :
अतिथि की सुविधा हेतु निराला जी ये चीजें ले आए –
(1) नया घड़ा खरीदकर लाए।
(2) उसमें गंगाजल भर लाए।
(3) धोती।
(4) चादर।

शब्द संपदा

प्रश्न 2.
निम्न शब्दों के समानार्थी शब्द लिखिए :
(1) प्रहरी – ……………………………………………
(2) अतिथि – ……………………………………………
(3) प्रयास – ……………………………………………
(4) स्मृति – ……………………………………………
उत्तर :
(1) प्रहरी = द्वारपाल
(2) अतिथि = मेहमान
(3) प्रयास = प्रयत्न
(4) स्मृति = याद

अभिव्यक्ति

प्रश्न 3.
(अ) ‘भाई-बहन का रिश्ता अनूठा होता है, इस विषय पर अपना मत लिखिए।
उत्तर :
एक माता से उत्पन्न भाइयों अथवा भाई-बहनों का रिश्ता निराला होता है। यह रिश्ता अटूट होता है। बचपन में वे साथ-साथ खेलते, बढ़ते और पढ़ते हैं। जीवन में घटने वाली अनेक अच्छी बुरी घटनाओं के साक्षी होते हैं। बड़े होने पर बहन की शादी हो जाने पर उसका नया घर बस जाता है। फिर भी उसका लगाव अपने मायके के परिवार के साथ बना रहता है। जब भी पीहर आने का कोई मौका आता है, वह उसे कभी गँवाना नहीं चाहती।

पीहर में आकर उसे जो खुशी मिलती है, उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। रक्षाबंधन के त्योहार पर वह कहीं भी हो, अपने भाई की कलाई पर राखी बाँधने और उसकी आरती उतारने जरूर पहुँचती है। भाई-बहन का यह मिलन अनूठा होता है। भाई भी इस अवसर पर उसे अपनी क्षमता के अनुसार अच्छे-से-अच्छा उपहार देने से नहीं चूकता। यह उनके अटूट प्यार और अनूठे रिश्ते का ही प्रमाण है।

(आ) ‘सभी का आदरपात्र बनने के लिए व्यक्ति का सहृदयी और संस्कारशील होना आवश्यक है’, इस कथन पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह अपने परिवार और समाज में सबके साथ हिल-मिल कर रहना चाहता है। उसे सबके दुख-सुख में शामिल होना अच्छा लगता है। जीवों पर दया करना और मन में करुणा के भाव उत्पन्न होना मनुष्य का स्वाभाविक गुण है। ऐसे व्यक्ति संस्कारशील कहलाते हैं।

ऐसे व्यक्ति का सभी लोग आदर करते हैं और उसे अपना प्यार देते हैं। मगर सब लोग ऐसे नहीं होते। कुछ लोग विभिन्न कारणों से समाज से कटे-कटे रहते हैं और ‘अपनी डफली अपना राग’ विचार वाले होते हैं। वे अपने घमंड में चूर रहते हैं और किसी अन्य की परवाह नहीं करते।

ऐसे लोगों को समाज तो क्या कोई भी पसंद नहीं करता। ऐसे लोगों को समाज में सम्मान नहीं मिलता। इसलिए मनुष्य को सहृदयी और संस्कारशील होना जरूरी है।

पाठ पर आधारित लघूत्तरी प्रश्न –

प्रश्न 4.
(अ) निराला जी की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
निराला जी मानवता के पुजारी थे। उनमें मानवीय गुण कूट-कूट कर भरे हुए थे। उन्हें स्वयं से अधिक दूसरों की अधिक चिंता होती थी। खुद निर्धनता में जीवन बिताते रहे, पर दूसरों के आर्थिक दुखों का भार उठाने के लिए सदा तत्पर रहते थे। आतिथ्य करने में उनका जवाब नहीं था।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई

अतिथियों को सदा हाथ पर लिये रहते थे। उनके लिए खुद भोजन बनाने और बर्तन माँजने में उन्हें हर्ष होता था। घर में सामान न होने पर अतिथियों के लिए मित्रों से कुछ चीजें माँग लाने में शर्म नहीं करते थे। उदार इतने थे कि अपने उपयोग की वस्तुएँ भी दूसरों को दे देते थे और खुद कष्ट उठाते थे।

साथी साहित्यकारों के लिए उनके मन में बहुत लगाव था। एक बार कवि सुमित्रानंदन पंत के स्वर्गवास की झूठी खबर सुनकर वे व्यथित हो गए थे और उन्होंने पूरी रात जाग कर बिता दी थी।

निराला जी पुरस्कार में मिले धन का भी अपने लिए उपयोग नहीं करते थे। अपनी अपरिग्रही वृत्ति के कारण उन्हें मधुकरी खाने ३ तक की नौबत भी आई थी। इस बात को वे बड़े निश्छल भाव से बताते थे।

उनका विशाल डील-डौल देखने वालों के हृदय में आतंक पैदा कर देता था, पर उनके मुख की सरल आत्मीयता इसे दूर कर देती थी।

निराला जी से अन्याय सहन नहीं होता था। इसके विरोध में उनका हाथ और उनकी लेखनी दोनों चल जाते थे। निराला जी आचरण से क्रांतिकारी थे। वे किसी चीज का विरोध करते हुए कठिन चोट करते थे। पर उसमें द्वेष की भावना नहीं होती थी। निराला जी के प्रशंसक तथा आलोचक दोनों थे। कुछ लोग जहाँ उनकी नम्र उदारता की प्रशंसा करते थे, वहीं कुछ लोग उनके उद्धत व्यवहार की निंदा करते नहीं थकते थे।

निराला जी अपने युग की विशिष्ट प्रतिभा रहे हैं। उनके सामने अनेक प्रतिकूल परिस्थितियाँ आईं पर वे कभी हार नहीं माने।

(आ) निराला जी का आतिथ्य भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
निराला जी में आतिथ्य सत्कार का पुराना संस्कार था। वे अतिथि को देवता के समान मानते थे। अपने अतिथि की सुविधा में कोई कसर बाकी नहीं रखते थे। वे अतिथि को अपने कक्ष में ठहराते थे। उसके लिए स्वयं भोजन तैयार करते थे। बर्तन भी वे खुद माँजते थे। अतिथि सत्कार के लिए आवश्यक सामान घर में न होता तो वे अपने हित-मित्रों से माँगकर ले आते थे, पर अतिथि सेवा में कोई कमी नहीं रखते थे। कई बार तो वे कवयित्री महादेवी वर्मा के यहाँ से भोजन बनाने के लिए लकड़ियाँ तथा घी आदि माँगकर ले आए थे।

निराला जी की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। उनका कक्ष भी सुविधाओं से रहित था, पर अतिथि के लिए उनके दिल में अपार श्रद्धा थी। एक बार प्रसिद्ध कवि मैथिलीशरण गुप्त निराला जी का आतिथ्य ग्रहण करने आए थे। उस समय उन्होंने उनका जो सत्कार किया था वह देखते ही बनता था। निराला जी गुप्त जी के बिछौने का बंडल खुद बगल में दबाकर और दियासलाई की तीली के प्रकाश में तंग सीढ़ियों का मार्ग दिखाते हुए उन्हें अपने कक्ष में ले गए थे।

कक्ष प्रकाश और सुख सुविधा से रहित था, पर निराला जी की विशाल आत्मीयता से भरा हुआ था। वे गुप्त जी की सुविधा के लिए नया घड़ा खरीदकर उसमें गंगाजल ले आए। घर में धोती-चादर जो कुछ मिल सका सब तख्त पर बिछा कर गुप्त जी को प्रतिष्ठित किया था। निराला जी का आतिथ्य भाव अपनी किस्म का निराला था।

साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान

प्रश्न 5.
(अ) ‘निराला’ जी का मूल नाम – [ ]
(आ) हिंदी के कुछ आलोचकों द्वारा महादेवी वर्मा को दी गई उपाधि – [ ]
उत्तर :
(अ) निराला जी का मूल नाम – सूर्यकांत त्रिपाठी।
(आ) कुछ हिंदी आलोचकों द्वारा महादेवी वर्मा को दी गई उपाधि – [आधुनिक मीरा]

रस

काव्यशास्त्र में आचार्यों ने रस को काव्य की आत्मा माना है। विभाव, अनुभाव, व्यभिचारी (संचारी) भाव और स्थायी भाव रस के अंग हैं और इन अंगों अर्थात तत्त्वों के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है।

साहित्यशास्त्र में नौ प्रकार के रस माने गए हैं। कालांतर में अन्य दो रसों को सम्मिलित किया गया है।
रस – स्थायी भाव – रस – स्थायी भाव

  • शृंगार – प्रेम
  • शांत – शांति
  • करुण – शोक
  • हास्य – हास
  • भयानक – भय
  • रौद्र – क्रोध
  • बीभत्स – घृणा
  • वीर – उत्साह
  • अद्भुत – आश्चर्य
  • वात्सल्य – ममत्व
  • भक्ति – भक्ति

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई

ग्यारहवीं कक्षा की युवकभारती पाठ्यपुस्तक में हमने करुण, हास्य, वीर, भयानक और वात्सल्य रस के लक्षण एवं उदाहरणों का अध्ययन किया है। इस वर्ष हम शेष रसों – रौद्र, बीभत्स, अद्भुत, शृंगार, शांत और भक्ति रस का अध्ययन करेंगे।

रौद्र रस : जहाँ पर किसी के असह्य वचन, अपमानजनक व्यवहार के फलस्वरूप हृदय में क्रोध का भाव उत्पन्न होता है; वहाँ रौद्र रस उत्पन्न होता है। इस रस की अभिव्यंजना अपने किसी प्रिय अथवा श्रद्धेय व्यक्ति के प्रति अपमानजनक, असह्य व्यवहार के प्रतिशोध के रूप में होती है।

उदा. –
(१) श्रीकृष्ण के वचन सुन, अर्जुन क्रोध से जलने लगे।
सब शोक अपना भूलकर, करतल युगल मलने लगे।

(२) कहा – कैकयी ने सक्रोध
दूर हट! दूर हट! निर्बोध!
द्विजिव्हे रस में, विष मत घोल।

बीभत्स रस : जहाँ किसी अप्रिय, अरुचिकर, घृणास्पद वस्तुओं, पदार्थों के प्रसंगों का वर्णन हो, वहाँ बीभत्स रस उत्पन्न होता है।

उदा. –
(१) सिर पर बैठो काग, आँखि दोऊ खात
खींचहि जीभहि सियार अतिहि आनंद उर धारत।
गिद्ध जाँघ के माँस खोदि-खोदि खात, उचारत हैं।
(२) सुडुक, सुडुक घाव से पिल्लू (मवाद) निकाल रहा है,
नासिका से श्वेत पदार्थ निकाल रहा है।

Hindi Yuvakbharati 12th Digest Chapter 2 निराला भाई Additional Important Questions and Answers

कृतिपत्रिका के प्रश्न 1 (अ) तथा प्रश्न 1 (आ) के लिए)
गद्यांश क्र. 1
प्रश्न. निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
आकृति पूर्ण कीजिए :

(1)
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई 1
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई 3

(2)
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई 2
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई 4

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई

प्रश्न 2.
उत्तर लिखिए : निराला जी ने
(1) यह रचा – ………………………………..
(2) यह किया – ………………………………..
उत्तर :
निराला जी ने
(1) यह रचा – दिव्य वर्ण-गंधवाले मधुर गीत।
(2) यह किया – बर्तन मांजने, पानी भरने जैसे कठिन काम।

कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के विरुद्धार्थी शब्द लिखिए :
(1) कच्चे x ………………………………..
(2) प्रश्न x ………………………………..
(3) कठिन x ………………………………..
(4) जीवन x ………………………………..
उत्तर :
(1) कच्चे x पक्के
(2) प्रश्न – उत्तर
(3) कठिन x सरल
(4) जीवन x मरण।

प्रश्न 2.
गद्यांश में प्रयुक्त शब्द-युग्म ढूँढकर लिखिए :
(1) ………………………………..
(2) ………………………………..
उत्तर :
(1) वर्ण-गंध
(2) दिन-रात।

गद्यांश क्र. 2
प्रश्न. निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
आकृति पूर्ण कीजिए :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई 5
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई 6

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई

प्रश्न 2.
किसी अन्य का कष्ट दूर करने के लिए लुप्त हो गई वस्तुएँ –
(1) …………………………..
(2) …………………………..
उत्तर :
किसी अन्य का कष्ट दूर करने के लिए लुप्त हो गई वस्तुएँ –
(1) रजाई
(2) कोट।

कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के समानार्थी शब्द लिखिए :
(1) आदेश = ……………………………….
(2) दुष्कर = ……………………………….
(3) अंतर्धान = ……………………………….
(4) दिवंगत = ……………………………….
उत्तर :
(1) आदेश = हुकम
(3) अंतर्धान = अदृश्य
(2) दुष्कर = कठिन
(4) दिवंगत = मृत।

कृति 3 : (अभिव्यक्ति)

प्रश्न 1.
‘निर्बंध उदारता’ के बारे में अपना मत 40 से 50 शब्दों में व्यक्त किजिए।
उत्तर :
मनुष्य ही मनुष्य के काम आता है। किसी के दुखदर्द से सहानुभूति रखना अथवा उसकी आर्थिक मदद करना मनुष्य का धर्म है। इससे जरूरतमंद व्यक्ति को राहत और नैतिक सहयोग मिलता है। अनेक संपन्न व्यक्ति एवं बड़ी-बड़ी संस्थाएँ इस प्रकार का सहयोग देने का कार्य करती हैं। कई साधारण व्यक्ति भी अपनी क्षमता के अनुसार अपने जान-पहचान वाले लोगों की मदद करते हैं।

पर सामान्य लोगों के लिए किसी की आर्थिक सहायता करने की एक सीमा होती है। उसे सबसे पहले अपना घर-बार देखना पड़ता है। अगर कोई व्यक्ति अपनी क्षमता से अधिक उदारता बरतने लगता है, तो उसकी आर्थिक स्थिति अस्त-व्यस्त हो जाती है। ‘अति’ किसी की अच्छी नहीं होती। हर काम अपनी सीमा में ही फबता है। इसलिए निबंध उदारता अनुचित ही नहीं है, यह किसी की भी आर्थिक स्थिति को डाँवाडोल कर सकती है।

गद्यांश क्र. 3
प्रश्न. निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
लिखिए : निराला जी का कक्ष ऐसा था –
(1) ………………………….
(2) ………………………….
(3) सुख-सुविधाहीन।
(4) ………………………….
उत्तर :
(1) निराला जी का कक्ष ऐसा था –
(2) कक्ष में जाने का मार्ग तंग सीढ़ियों से होकर था।
(3) प्रकाश रहित था।
(4) सुख-सुविधाहीन।

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प्रश्न 2.
अतिथि के लिए निराला जी माँग लिया करते थे –
(1) ………………………….
(2) ………………………….
उत्तर :
अतिथि के लिए निराला जी माँग लिया करते थे
(1) लकड़ियाँ
(2) थोड़ा घी।

प्रश्न 3.
अतिथि देवता के लिए निराला जी शौक से ये करते थे-
(1) ………………………….
(2) ………………………….
उत्तर :
अतिथि देवता के लिए निराला जी शौक से ये करते थे –
(1) अतिथि के लिए भोजन बनाने का काम।
(2) उनके जूठे बर्तन माँजना।

कृति 3 : (अभिव्यक्ति)

प्रश्न 1.
‘अतिथि देवो भव’ के बारे में अपने विचार 40 से 50 शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
अतिथियों का स्वागत-सत्कार करना हमारे देश के लोगों के संस्कार का एक अंग रहा है। अतिथि के स्वागत में लोग कोई कसर बाकी नहीं रखते। घर में कोई सामान न हो, तो किसी के यहाँ से माँग-जाँच कर ले आने में भी लोग नहीं हिचकते। पर अतिथि की सेवा करने में कोई कसर नहीं रखते।

सुशील अतिथि मेजबान की क्षमता को ध्यान में रखते हैं और उसके साथ पूरा सहयोग करते हैं। मेजबान की तरफ से कहीं कोई कमी भी रह जाती है तो भी उसके साथ सहयोग करते हैं। ऐसे अतिथि मेजबान के लिए देव स्वरूप होते हैं। पर कुछ अतिथि ऐसे होते हैं, जो मेजबान की तरफ से आवभगत में कहीं कोई कमी रह जाने पर उसकी निंदा करने से भी नहीं चूकते।

कुछ अतिथि ‘मान न मान मैं तेरा मेहमान’ की तरह मेजबान के घर आ धमकते हैं और जाने का नाम ही नहीं लेते। ऐसे अतिथि मेजबान के लिए भार स्वरूप होते हैं। जो अतिथि मेजबान की सुविधा-असुविधा का ध्यान रखते हैं, वही अतिथि देव स्वरूप होते हैं।

गद्यांश क्र. 4
प्रश्न. निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :
कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
आकृति पूर्ण कीजिए :
(a)
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई 7
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई 9

(b)
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई 8
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई 10

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई

प्रश्न 2.
चौखट पूर्ण कीजिए :
(1) गेरू में रंगे हुए वस्त्र।
(2) शरीर पर इस वस्त्र का अभाव था। –
(3) गद्यांश में प्रयुक्त दो वृक्ष।
(4) कवि का गैरिक शरीर ऐसा लगता था। –
उत्तर :
(1) गेरू में रंगे हुए वस्त्र। – [दोनों अधोवस्त्र और उत्तरीय]
(2) शरीर पर इस वस्त्र का अभाव था। – [अंगोछा]
(3) गद्यांश में प्रयुक्त दो वृक्ष। – [नीम-पीपल]
(4) कवि का गैरिक शरीर ऐसा लगता था – [किसी शिखर जैसा।]

प्रश्न 3.
उत्तर लिखिए : कवि के संन्यास से लेखिका को –
(1) लाभ – ………………………….
(2) हानि – ………………………….
उत्तर :
कवि के संन्यास से लेखिका को
(1) लाभ – साबुन के पैसे बचेंगे।
(2) हानि – जाने कहाँ-कहाँ छप्पर डलवाने पड़ेंगे।

कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के वचन बदल कर लिखिए :
(1) निधियाँ – ………………………..
(2) वस्त्रों – ………………………..
(3) रोटियाँ – ………………………..
(4) पुत्रौं – ………………………..
उत्तर :
(1) निधियाँ – निधि
(3) रोटियाँ – रोटी
(2) वस्त्रों – वस्त्र
(4) पुत्रौं – पुत्र

कृति 3 : (अभिव्यक्ति)

प्रश्न 1.
‘साधु-संन्यासियों से जनता का मोहभंग’ इस विषय पर 40 से 50 शब्दों में अपना मत व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
एक समय था जब लोग साधु-संतों और संन्यासियों का बड़ा सम्मान करते थे। वे समाज में बड़े सम्मान की दष्टि से देखे जाते थे। वे समाज-सुधार और जनता के हित के कार्य किया करते थे और बदले में जनता से कोई अपेक्षा नहीं करते थे। लेकिन हाल में जब से साधु-संन्यासियों के वेष में कुछ ढोंगी लोगों ने साधुसंन्यासियों की जमात को अपने समाज-विरोधी कार्यों से बदनाम कर दिया है, तब से लोगों को इनसे घृणा हो गई है।

ऐसा नहीं है कि सच्चे साधु-संन्यासी हैं ही नहीं। हैं, लेकिन इन ढोंगी साधु संन्यासियों ने उनकी छबि-धूमिल कर दी है। ढोंगी साधु-संन्यासियों के बीच सच्चे साधु-संन्यासियों को पहचानना मुश्किल हो गया है। साधु-संन्यासियों से जनता का मोहभंग ढोंगी साधु-संन्यासियों की जमात के कारण हुआ है। सच्चे साधु-संन्यासियों की जनता आज भी मुरीद है।

गद्यांश क्र. 5
प्रश्न. निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई। सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
लिखिए : निराला जी इस दृष्टि से निराले थे –
(1) ………………………..
(2) जीवन में ………………………..
(3) ………………………..
उत्तर :
निराला जी इस दृष्टि से निराले थे –
(1) अपने शरीर की दृष्टि से।
(2) जीवन में।
(3) अपने साहित्य की दृष्टि से।

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प्रश्न 2.
उत्तर लिखिए :
(1) देखने वालों के हृदय में इससे आतंक उत्पन्न होता था –
(2) सत्य दृष्टा ऐसे होते हैं –
(3) अन्याय के प्रतिकार का निराला जी का तरीका –
(4) निराला जी की लेखनी की विशेषता –
उत्तर :
(1) देखने वालों के हृदय में इससे आतंक उत्पन्न होता था – [निराला जी का विशाल डील-डौल देखकर।]
(2) सत्यदृष्टा ऐसे होते हैं – [बालकों जैसे सरल और विश्वासी।]
(3) अन्याय के प्रतिकार का निराला जी का तरीका – [लेखनी के पहले हाथ उठाना।]
(4) निराला जी की लेखनी की विशेषता – [उनकी लेखनी हाथ से अधिक कठोर प्रहार करती थी।]

प्रश्न 3.
संबंध निरूपित कीजिए :
(1) क्रूरता – ………………………..
(2) कायरता – ………………………..
उत्तर :
(1) क्रूरता – वृक्ष की जड़ के अव्यक्त रस में
(2) कायरता – वृक्ष के फल के व्यक्त स्वाद में।

प्रश्न 4.
आकृति पूर्ण कीजिए :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई 11
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई 12

कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के समानार्थी शब्द लिखिए :
(1) शरीर = ………………………………………
(2) सत्य = ………………………………………
(3) प्रतिकार = ………………………………………
(3) कठोर = ………………………………………
उत्तर :
(1) शरीर = तन
(2) सत्य = सच्चाई
(3) प्रतिकार = विरोध
(4) कठोर = कड़ा

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कृति 3 : (अभिव्यक्ति)

प्रश्न 1.
‘अन्याय सहन करना भी अन्याय है।’ इस विषय पर 40 से 50 . शब्दों में अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
सभी मनुष्य समान हैं। किसी को भी किसी के साथ अन्याय करने का अधिकार नहीं है। इसके बावजूद कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो अपने से कमजोर व्यक्तियों पर अत्याचार करने से नहीं चूकते। कभी किन्हीं कारणों से जिनके साथ अन्याय होता है, वे उसका विरोध भी नहीं कर पाते।

वे समझते हैं कि विरोध करने का परिणाम उल्टा होगा और अत्याचारी उसे और सताने की कोशिश करेगा। लेकिन यह सोच उचित नहीं है। अन्याय का विरोध न करने से अत्याचारी का मन और बढ़ जाता है। वह समझ जाता है कि उसके अत्याचार का विरोध करने की संबंधित व्यक्ति में शक्ति नहीं है।

इसलिए ऐसे लोगों पर अत्याचार करना अपना अधिकार मान लेता है और वह निडर होकर उन पर अत्याचार करता रहता है। इस तरह अत्याचार सहन करना अपने आप पर अन्याय हो जाता मुक्ति मिल सकती है।

गद्यांश क्र. 6 प्रश्न.
निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
उत्तर लिखिए : निराला जी के व्यवहार के बारे में जन-मत –
(1) – …………………………………..
(2) – …………………………………..
उत्तर :
(1) कोई उनकी उदारता की भूरि-भूरि प्रशंसा करता था।
(2) कोई उनके उद्धत व्यवहार की निंदा करते नहीं हारता था।

प्रश्न 2.
संजाल पूर्ण कीजिए :
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उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई 15

प्रश्न 3.
कृति पूर्ण कीजिए :
(1) निराला अपने युग की यह हैं – …………………………………..
(2) उनके जीवन के चारों ओर यह नहीं है – …………………………………..
(3) उनके लिए परिवार के कोंपल यह बन गए – …………………………………..
(4) आर्थिक कारणों से उन्हें यह नहीं मिली – …………………………………..
उत्तर :
(1) विशिष्ट प्रतिमा
(2) परिवार का लौहसार घेरा।
(3) पत्नी वियोग के पतझड़।
(4) अपनी संतान के प्रति कर्तव्य-निर्वाह की सुविधा।

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प्रश्न 4.
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उत्तर :
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कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
गद्यांश में प्रयुक्त उपसर्गयुक्त शब्द ढूँढ़ कर लिखिए :
(1) …………………………………….
(2) …………………………………….
(3) …………………………………….
(4) …………………………………….
उत्तर :
(1) असफलता
(2) निष्फल
(3) सजातीय
(4) अभिशाप।

व्याकरण

1. मुहावरे :

• निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ लिखकर वाक्य में प्रयोग कीजिए :
(1) आँखों में धूल झोंकना।
अर्थ : धोखा देना।
वाक्य : साइबर क्राइम से अच्छे-अच्छे लोगों की आँखों में धूल झोंककर लाखों रुपए ऐंठ लिए जाते हैं।

(2) आँखें बिछाना।
अर्थ : अति उत्साह से स्वागत करना।
वाक्य : स्वामी जी के दर्शन के लिए श्रद्धालु आँखें बिछाए हुए थे।

(3) कान में कौड़ी डालना।
अर्थ : गुलाम बनाना।
वाक्य : अंग्रेजों ने भारी संख्या में भारतीय मजदूरों के कान में कौड़ी डाल रखा था।

2. काल परिवर्तन :

प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्यों का काल परिवर्तन करके वाक्य फिर से लिखिए :
(1) कौन बहिन हम जैसे भुक्खड़ को भाई बनाएगी। (सामान्य वर्तमानकाल)
(2) उनके अस्त-व्यस्त जीवन को व्यवस्थित करने के असफल प्रयासों का स्मरण कर मुझे आज भी हँसी आ जाती है। (अपूर्ण भूतकाल)
(3) उनकी व्यथा की सघनता जानने का मुझे एक अवसर मिला था। (पूर्ण वर्तमानकाल)
(4) पंत के साथ तो रास्ता कम अखरता था, पर अब सोचकर ही थकावट होती है। (सामान्य भविष्यकाल)
(5) निराला जी अपने शरीर, जीवन और साहित्य सभी में असाधारण हैं। (पूर्ण भूतकाल)
उत्तर :
(1) कौन बहिन हम जैसे भुक्खड़ को भाई बनाती है।
(2) उनके अस्त-व्यस्त जीवन को व्यवस्थित करने के असफल प्रयासों का स्मरण कर मुझे आज भी हँसी आ रही थी।
(3) उनकी व्यथा की सघनता जानने का मुझे एक अवसर मिला है।
(4) पंत के साथ तो रास्ता कम अखरता था, पर अब सोचकर ही थकावट होगी।
(5) निराला जी अपने शरीर, जीवन और साहित्य सभी में असाधारण थे।

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3. वाक्य शुद्धिकरण :

प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्य शुद्ध करके लिखिए :
(1) निराला जी अपनी युग के विशिष्ट प्रतिभा हैं।
(2) सत्य की मार्ग सरल हैं।
(3) मनुष्य जाती की नासमझी की इतिहास क्रूर और लंबा है।
(4) निराला जी अपना शरीर, जीवन और साहित्य सभी में असाधारण है।
(5) उनके जीवन पर संघर्श के जो आघात हैं, वे उनकी हार के नहीं शक्ती के प्रमाणपत्र हैं।
उत्तर :
(1) निराला जी अपने युग की विशिष्ट प्रतिभा हैं।
(2) सत्य का मार्ग सरल है।
(3) मनुष्य जाति की नासमझी का इतिहास क्रूर और लंबा है।
(4) निराला जी अपने शरीर, जीवन और साहित्य सभी में असाधारण हैं।
(5) उनके जीवन पर संघर्ष के जो आघात हैं, वे उनकी हार के नहीं शक्ति के प्रमाणपत्र हैं।

निराला भाई Summary in Hindi

निराला भाई लेखक का परिचय

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई 17

निराला भाई लेखक का नाम : श्रीमती महादेवी वर्मा। (जन्म 26 मार्च, 1907; निधन 1987.)

प्रमुख कृतियाँ : नीहार, रश्मि, नीरजा, दीपशिखा, सांध्यगीत, यामा (कविता संग्रह), अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएँ, मेरा परिवार (रेखाचित्र), श्रृंखला की कड़ियाँ तथा साहित्यकार की आस्था (निबंध)।

विधा : संस्मरण।

विषय प्रवेश : प्रसिद्ध कवि सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला’ की गणना हिंदी के श्रेष्ठ कवियों में की जाती है। वे हिंदी साहित्य में छायावादी कवि एवं क्रांतिकारी व्यक्तित्व के रूप में जाने जाते हैं। प्रसिद्ध कवयित्री महादेवी वर्मा एवं निराला जी दोनों का कार्यक्षेत्र प्रयागराज रहा है। इसलिए भी कवयित्री निराला जी को नजदीक से जानती-समझती और उनके व्यक्तित्व से गहराई से परिचित रही हैं।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई

प्रस्तुत संस्मरण में उन्होंने निराला जी को जिन विभिन्न रूपों में देखा और परखा है, उसे उन्होंने बेबाकी से शब्दांकित किया है। – इस संस्मरण से हमें निराला जी के फक्कड़पन, उनके व्यक्तित्व, उनकी निर्धनता, उदारता, संवेदनशीलता, आतिथ्य सत्कार की भावना तथा पारिवारिक दशा आदि के बारे में अनेक अनछुई बातों की जानकारी मिलती है।

निराला भाई पाठ का सार

कवयित्री महादेवी वर्मा प्रसिद्ध कवि निराला जी के साथ घटित कई घटनाओं की साक्षी रही हैं। उन्होंने उन्हें नजदीक से देखा-समझा है। उन्होंने इस संस्मरण में उनके साथ घटी हुई अनेक घटनाओं और उनके स्वभाव एवं व्यवहार का चित्रण किया है।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई 18

निराला जी संवेदनशील उदार, आतिथ्यप्रेमी, सहृदय, फक्कड़ किस्म के और सदा निर्धनता में जीवन बिताने वाले कवि रहे हैं। वे स्पष्टवादी व्यक्ति थे और अपने बारे में सही बात कहने से नहीं चूकते थे। एक बार रक्षाबंधन त्योहार के अवसर पर कवयित्री ने उनकी सूनी कलाइयाँ देखकर इसके बारे में पूछा तो उन्होंने जवाब दिया, “कौन बहन मुझ भुक्खड़ को भाई बनाएगी।”

कवि अपनी उदारता और दूसरों का दुख दूर करने की प्रवृत्ति के कारण सदा तंगी में रहे। वे खुद कष्ट सह लेते थे पर दूसरों का कष्ट दूर करके रहते थे। एक बार तो उन्होंने अपने लिए बनवाई गई रजाई और कोट भी किसी ठिठुरते हुए को दे दिया और खुद काँपते हुए मजे से सर्दियाँ काट दीं।

आर्थिक संकट सदा उनका साथी रहा। इसके कारण वे अपनी मातृविहीन संतान की भी उचित देखभाल न कर पाए। पुत्री के अंतिम क्षणों में असहाय बने रहे और पुत्र को उचित शिक्षा न दे पाए।

एक बार तो उन्होंने कवयित्री को 300 रुपए देकर अपने खर्च का बजट बनाने के लिए कहा था। पर बजट बनते-बनते तक सारे पैसे लेकर जरूरतमंद लोगों को दे डाले।

एक बार प्रसिद्ध कवि मैथिलीशरण गुप्त ने उनका आतिथ्य ग्रहण किया था। जब वे आए तो वे दियासलाई के प्रकाश में उन्हें लेकर तंग सीढ़ियों से होकर अपने सुविधा रहित कक्ष में पहुँचे तो वहाँ ढंग का बिस्तर भी नहीं था। फिर उन्होंने घर में धोती, चादर जो कुछ मिला उसे तख्त पर बिछाकर बड़े प्यार से उन्हें प्रतिष्ठित किया था। अतिथि का सत्कार करने के लिए उन्होंने कवयित्री से एक बार जलावन लकड़ी और घी तक माँग लिया था।

समकालीन साहित्यकारों की व्यथा के बारे में सुनकर वे विचलित हो जाते थे। एक बार सुमित्रानंदन पंत की मृत्यु की झूठी खबर पढ़कर वे बेचैन हो गए थे और सच्चाई जानने के लिए सारी रात जागते हुए इंतजार करते रहे।

एक बार तो उन्होंने अपने दोनों अधोवस्त्र और उत्तरीय गेरू में रंग डाले थे। कवयित्री उनका रूप देखती रह गई थीं। कहने लगे, “अब ठीक है। जहाँ पहुँचे, किसी नीम या पीपल के पेड़ के नीचे बैठ गए। दो रोटियाँ माँग कर खा लीं और गीत लिखने लगे।”

निराला जी के विशाल डील-डौल से देखने वाले के हृदय में आतंक उत्पन्न हो जाता था, पर उनकी आत्मीयता से यह भय तिरोहित हो जाता था।

निराला ऐसे व्यक्तित्व थे जिनके बारे में अलग-अलग व्यक्तियों की अलग-अलग धारणाएँ थीं। कोई उनकी उदारता की प्रशंसा करते नहीं थकता तो कोई उनके उद्धत व्यवहार की निंदा करते नहीं हारता। पर उन्हें समझ पाना हर किसी के वश की बात नहीं थी।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई

निराला जी अपने युग की विशिष्ट प्रतिभा थे। वे एक विद्रोही साहित्यकार थे। कवयित्री का मानना है कि निराला जी किसी दुर्लभ सीप में ढले सुडौल मोती नहीं थे, वे तो अनगढ़ पारस के भारी शिलाखंड थे। पारस की अमूल्यता दूसरों का मूल्य बढ़ाने में होती है। उसके मूल्य में तो न कोई कुछ जोड़ सकता है, न कुछ घटा सकता है।

निराला भाई शब्दार्थ

  • भुक्खड़ = जिसके पास कुछ न हो, कंगाल
  • औढरदानी = अत्यंत उदारतापूर्वक दान करने वाला
  • अक्षुण्ण = अखंडित
  • लौहसार = लोहे का कठघरा
  • अछोर = ओर-छोर रहित, असीम
  • महाघ = बहुमूल्य
  • कुहेलिका = कोहरा, धुंध
  • नापित = नाई
  • मधुकरी = भोजन की भिक्षा
  • डीलडौल = कदकाठी
  • कोंपल = नई पत्ती
  • अकूल = बिना किनारेवाला
  • अनगढ़ = जिसे व्यवस्थित गढ़ा न गया हो
  • संसृति = संसार, सृष्टि

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 नवनिर्माण

Balbharti Maharashtra State Board Hindi Yuvakbharati 12th Digest Chapter 1 नवनिर्माण Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

Maharashtra State Board 12th Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 नवनिर्माण

12th Hindi Guide Chapter 1 नवनिर्माण Textbook Questions and Answers

कृति-स्वाध्याय एवं उत्तर

प्रश्न 1.
(अ) कृति पूर्ण कीजिए :

बल इसके लिए होता है ↓
(a) …………………………………….
(b) …………………………………….
उत्तर :
(a)
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 नवनिर्माण 11
(b)
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Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 नवनिर्माण

(आ) जिसे मंजिल का पता रहता है वह :

(a) …………………………………….
(b) …………………………………….
उत्तर :
(a) सब के बल बनना – सब की मदद करना।
(b) पथ के संकट सहना – मंजिल पर पहुँचने की कोशिश में होने वाला कष्ट सहन करना।

शब्द संपदा

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों से उपसर्गयुक्त शब्द तैयार कर उनका अर्थपूर्ण वाक्य में प्रयोग कीजिए :

(a) नीति – …………………………………….
(b) बल – …………………………………….
उत्तर :
(a) उपसर्गयुक्त शब्द – अनीति।
वाक्य : अनीति के मार्ग पर नहीं चलना चाहिए।

(b) उपसर्गयुक्त शब्द – आजीवन।
वाक्य : कुछ पाठक पुस्तकालयों के आजीवन सदस्य होते हैं।

अभिव्यक्ति

प्रश्न 3.
(अ) ‘धरती से जुड़ा रहकर ही मनुष्य अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है’, इस विषय पर अपना मत प्रकट कीजिए।
उत्तर :
लक्ष्य का अर्थ है निर्धारित उद्देश्य, जिसे प्राप्त करने के लिए गंभीरता पूर्वक नजर रखी जाए और उसे अर्जित करने के लिए यथासंभव प्रयास किया जाए। हर व्यक्ति का अपने-अपने है ढंग से लक्ष्य निर्धारण करने और उसे अर्जित करने का अपना तरीका होता है। कोई इसे हल्के-फुल्के ढंग से लेता है और बड़े से बड़ा लक्ष्य निर्धारित कर लेता है। ऐसे लक्ष्य क्षमता की कमी है और अपर्याप्त साधन के अभाव में कभी पूरे नहीं हो पाते। जो व्यक्ति अपनी क्षमता और अपने पास उपलब्ध साधनों के अनुसार लक्ष्य का निर्धारण और उसकी पूर्ति के लिए तन-मन-धन से प्रयास करता है, वह व्यक्ति अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में अवश्य सफल होता है। ऐसे दूरदर्शी व्यक्ति जमीन से जुड़े हुए होते हैं और समझ-बूझ कर अपना लक्ष्य निर्धारित करते तथा उसके निरंतर प्रयासरत रहते हैं।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 नवनिर्माण

(आ) ‘समाज का नवनिर्माण और विकास नर-नारी के सहयोग से ही संभव है’, इसपर अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
हमारा समाज विभिन्न प्रकार की कुरीतियों और समस्याओं से भरा हुआ है। अनेक समाज सुधारकों के कठिन परिश्रम के बावजूद आज भी हमारे समाज में अनेक प्रकार की विषमताएँ व्याप्त हैं। असमानता, जातीयता, सांप्रदायिकता, प्रांतीयता, अस्पृश्यता आदि समस्याओं के कारण समाज के नर-नारी दोनों समान रूप से व्यथित हैं। जब तक हमारे समाज से ये बुराइयाँ दूर नहीं होती, तब तक समाज का नव निर्माण और विकास होना असंभव है। नर-नारी दोनों रथ के दो पहियों के समान हैं। बिना दोनों के सहयोग से आगे बढ़ना मुश्किल है। समाज की अनेक समस्याएँ ऐसी हैं, जिनके बारे में नारी को नर से अधिक जानकारियाँ होती हैं। नर-नारी दोनों कंधे से कंधा मिलाकर समाज उत्थान के कार्य में जुटेंगे, तभी समाज का . नव निर्माण और विकास संभव हो सकता है।

रसास्वादन

प्रश्न 4.
निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर चतुष्पादियों का रसास्वादन कीजिए :
(1) रचनाकार का नाम – …………………………………….
(2) पसंद की पंक्तियाँ – …………………………………….
(3) पसंद आने के कारण – …………………………………….
(4) कविता का केंद्रीय भाव – …………………………………….
उत्तर :
(1) रचना का शीर्षक : नव निर्माण।
(2) रचनाकार : त्रिलोचन (मूलनाम – वासुदेव सिंह)
(3) कविता की केंद्रीय कल्पना : प्रस्तुत कविता में संघर्ष करने, अत्याचार, विषमता तथा निर्बलता पर विजय पाने का आवाहन किया गया है तथा समाज में समानता, स्वतंत्रता एवं मानवता की स्थापना की बात कही गई है।
(4) रस-अलंकार :
(5) प्रतीक विधान : कविता में विश्वास और प्रेरणा की मात्रा दर्शाने के लिए ‘आकाश’ तथा नर-नारी द्वारा नए समाज की रचना करने का कठिन कार्य करने के लिए ‘काँटों के ताज’ लेने जैसे प्रतीकों का सुंदर प्रयोग किया गया है।
(6) कल्पना : दबे-कुचले लोगों के प्रति आशावाद एवं उत्थान के स्वर बुलंद करना।

(7) पसंद की पंक्तियाँ तथा प्रभाव : कविता की पसंद की । पंक्तियाँ इस प्रकार हैं :
जिसको मंजिल का पता रहता है,
पथ के संकट को वही सहता है,
एक दिन सिद्धि के शिखर पर बैठ
अपना इतिहास वही कहता है।

(8) कविता पसंद आने का कारण : प्रस्तुत पंक्तियों में यह बात कही गई है कि एक बार अपने लक्ष्य का निर्धारण कर लेने के बाद मनुष्य को हर समय उसको पूरा करने के काम में जी-जान से लग जाना चाहिए। फिर मार्ग में कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न आएँ, उन्हें सहते हुए निरंतर आगे ही बढ़ते रहना चाहिए। एक दिन ऐसे व्यक्ति को सफलता मिलकर ही रहती है। ऐसे ही व्यक्ति लोगों के आदर्श बन जाते हैं। लोग उनका गुणगान करते है और उनसे प्रेरणा लेते हैं।

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साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान

प्रश्न 5.
(अ) चतुष्पदी के लक्षण लिखिए।
……………………………………………
……………………………………………
उत्तर :
चतुष्पदी चौपाई की भाँति चार चरणों वाला छंद होता है। इसके प्रथम, द्वितीय तथा चतुर्थ चरण में पंक्तियों के तुक मिलते हैं। तीसरे चरण का तुक नहीं मिलता। प्रत्येक चतुष्पदी भाव और विचार की दृष्टि से अपने आप में पूर्ण होती है और कोई चतुष्पदी किसी दूसरी से संबंधित नहीं होती।

(आ) त्रिलोचन जी के दो काव्य संग्रहों के नाम
……………………………………………
उत्तर :
त्रिलोचन जी के कुल पाँच काव्य संग्रह हैं –

  • धरती
  • दिगंत
  • गुलाब और बुलबुल
  • उस जनपद का कवि हूँ
  • सब का अपना आकाश।

Hindi Yuvakbharati 12th Digest Chapter 1 नवनिर्माण Additional Important Questions and Answers

निम्नलिखित वाक्य शुद्ध करके फिर से लिखिए :

  1. अतिथि आए है, घर में सामान नहीं है।
    ……………………………………………
  2. परंतु अम्यान भी अपराध है।
    ……………………………………………
  3. उसके सत्य का पराजय हो जाता है।
    ……………………………………………
  4. प्रेरणा और ताकद बनकर परस्पर विकास मे सहभागी बनें।
    ……………………………………………
  5. दिलीप अपने माँ-बाप की इकलौती संतान थी।
    ……………………………………………
  6. आप इस शेष लिफाफे को खोलकर पढ़ लीजिए।
    ……………………………………………
  7. उसमें फुल बिछा दें।
    ……………………………………………
  8. कहाँ खो गई है आप।
    ……………………………………………
  9. एक मैं सफल सूत्र संचालक के रूप में प्रसिद्ध हो गया।
    ……………………………………………
  10. चलते-चलते हमारे बीच का अंतर कम हो गया था।
    ……………………………………………

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उत्तर :

  1. अतिथि आए हैं, घर में सामान नहीं है।
  2. परंतु अज्ञान भी अपराध है।
  3. उसका सत्य पराजित हो जाता है।
  4. प्रेरणा और ताकत बनकर परस्पर विकास में सहभागी बनें।
  5. दिलीप अपने माता-पिता की इकलौती संतान था।
  6. शेष आप इस लिफाफे को खोल कर पढ़ लीजिए।
  7. उसमें फूल बिछा दें।
  8. कहाँ खो गई हैं आप?
  9. मैं एक सफल सूत्र संचालक के रूप में प्रसिद्ध हो गया।
  10. हमारे बीच का अंतर चलते-चलते कम हो गया था।

Hindi Yuvakbharati 12th Textbook Solutions Chapter 1 नवनिर्माण Additional Important Questions and Answers

कृति-स्वाध्याय एवं उत्तर
पद्यांश क्र. 1
कृतिपत्रिका के प्रश्न 2 (अ) तथा प्रश्न 2 (आ) के लिए
प्रश्न. निम्नलिखित पद्यांश पढ़करदी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
कृति पूर्ण कीजिए :
(a)
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 नवनिर्माण 1
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 नवनिर्माण 4

(b)
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 नवनिर्माण 2
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 नवनिर्माण 5

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प्रश्न 2.
ऐसे दो प्रश्न बनाकर लिखिए जिनके उत्तर निम्नलिखित शब्द हों :

(a) उत्तर लिखिए :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 नवनिर्माण 3
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 नवनिर्माण 6

कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्द के अर्थ वाले दो शब्द पद्यांश से ढूँढ कर लिखिए :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 नवनिर्माण 7
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 नवनिर्माण 8

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों के शब्द-युग्म बना कर लिखिए :
(1) तोड़ – ……………………………..
(2) काम – ……………………………..
(3) जाना – ……………………………..
(4) आकाश – ……………………………..
उत्तर :
(1) तोड़ – जोड़
(2) काम – काज
(3) जाना – आना
(4) आकाश – पाताल।

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प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिए :
(1) विश्वास x ……………………………..
(2) अँधेरा x ……………………………..
(3) सत्य x ……………………………..
(4) सामने x ……………………………..
उत्तर :
(1) विश्वास – अविश्वास
(2) अँधेरा x उजाला
(3) सत्य x असत्य
(4) सामने x पीछे।

पद्यांश क्र. 2
प्रश्न. निम्नलिखित पद्यांश पढ़करदी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के उपसर्गयुक्त शब्द तैयार कर उनका अर्थपूर्ण वाक्यों में प्रयोग कीजिए :
*(1) बल
(2) न्याय।
उत्तर :
(1) शब्द : निर् + बल = निर्बल।
वाक्य : निर्बल को सताना नहीं चाहिए।

(2)शब्द : अ + न्याय = अन्याय।
वाक्य : किसी व्यक्ति का अपनी बात कहने का अधिकार छीनना उसके साथ अन्याय करना है।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों के लिंग पहचानकर लिखिए :
(1) सिद्धि – …………………….
(2) इतिहास – …………………….
(3) मंजिल – …………………….
(4) पथ – …………………….
उत्तर :
(1) सिद्धि – स्त्रीलिंग।
(2) इतिहास – पुल्लिंग।
(3) मंजिल – स्त्रीलिंग।
(4) पथ – पुल्लिंग।

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कृति 3 : (अभिव्यक्ति)

प्रश्न 1.
‘मानव सेवा ही सच्ची सेवा है’ इस विषय पर 40 से 50 शब्दों में अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
सेवा करने का अर्थ है किसी को प्रसन्न करने का प्रयत्न करना। दूसरों का दुख दूर करना सेवा का उद्देश्य है। दीनदुखी हमारे समाज के अंग हैं। अपनी जरूरतों की पूर्ति के लिए वे समाज से ही अपेक्षा रखते हैं। उनकी सेवा-सहायता करना समाज का कर्तव्य है। मानव सेवा विविध रूपों में की जा सकती है। पीड़ित व्यक्ति को बचाया जा सकता है। जिसके साथ अन्याय हो रहा है उसे न्याय दिलाया जा सकता है। निर्धन रोगियों को उनके इलाज का खर्च दिया जा सकता है। गरीब परिवार की कन्याओं के विवाह के लिए आर्थिक मदद की जा सकती है। अनेक संतों और समाज सेवियों ने अपना जीवन ही मानव सेवा को अर्पित कर दिया। दीनदुखियों की सेवा कर हम उनके चेहरों पर खुशी ला सकते हैं। इस तरह मानव सेवा ही सच्ची सेवा है।

पद्यांश क्र. 3
प्रश्न. निम्नलिखित पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
आकृति पूर्ण कीजिए :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 नवनिर्माण 13
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 नवनिर्माण 14

प्रश्न 2.
उत्तर लिखिए :
(1) आज नर-नारी –
(i) इस तरह निकलेंगे – ………………………..
(ii) यह लेंगे – ………………………..
(iii) दोनों की विशेषताएँ – ………………………..
(iv) दोनों रचना करेंगे – ………………………..
उत्तर :
(i) इस तरह निकलेंगे – साथ-साथ।
(ii) यह लेंगे – काँटों का ताज।
(iii) दोनों की विशेषताएँ – संगी हैं, सहचर हैं।
(iv) दोनों रचना करेंगे – समाज की।

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प्रश्न 3.
लिखिए –
(i) काँटों का ताज लेंगे, यानी क्या?
(ii) ‘गीत मेरा भविष्य गाएगा’ से कवि का तात्पर्य?
उत्तर :
(i) महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ सँभालेंगे।
(ii) भविष्य में (जब वर्तमान अतीत हो जाएगा तब) लोग वर्तमान की प्रशंसा करेंगे।

प्रश्न 4.
वर्तमान का कथन –
(i) ………………………..
(ii) ………………………..
(iii) ………………………..
(iv) ………………………..
उत्तर :
(i) अतीत अच्छा था।
(ii) प्राण के पथ का गीत अच्छा था।
(iii) मेरा गीत भविष्य गाएगा।
(iv) अतीत का भी गीत अच्छा था।

प्रश्न 5.
दो ऐसे प्रश्न बनाकर लिखिए जिनके उत्तर निम्नलिखित शब्द हों :
(1) समाज की
(2) भविष्य।
उत्तर :
(1) नर-नारी किसकी रचना करेंगे?
(2) वर्तमान के गीत कौन गाएगा?

कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के युग्म-शब्द बना कर लिखिए :
(1) ……………………………… मीत
(2) साथ – ………………………………
(3) संगी – ………………………………
(4) अच्छा – ………………………………
उत्तर :
(1) हित – मीत
(2) साथ – साथ
(3) संगी – साथी
(4) अच्छा – बुरा।

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रसास्वादन मुद्दों के आधार पर

कृतिपत्रिका के प्रश्न 2 (इ) के लिए

निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर ‘नव निर्माण’ कविता का रसास्वादन कीजिए।

रसास्वादन अर्थ के आधार पर

प्रश्न 1.
अन्याय, अत्याचार से दीन-दुखियों को मुक्ति दिलाने के लिए उनका बल बन जाना ही बलवान व्यक्तियों के बल का सही उपयोग हैं। इस कथन के आधार पर ‘नव निर्माण’ कविता का रसास्वादन कीजिए।
उत्तर :
कवि त्रिलोचन द्वारा चतुष्पदी छंद में रचित कविता ‘नव निर्माण’ का मूलतत्त्व जीवन में संघर्ष करना बताया गया है। हमारे समाज में व्याप्त अन्याय, अत्याचार, विषमता आदि का बोलबाला है। कवि इन बुराइयों पर काबू पाने के लिए लोगों को बल और साहस एकत्र करने का आवाहन करते हैं। यह सर्व विदित है कि ये सारी बुराइयाँ कुछ लोगों द्वारा अपने शारीरिक एवं आर्थिक बल का दुरुपयोग करने के कारण पनपती हैं। इसलिए इन पर विजय पाने का मार्ग भी बल का प्रयोग ही है। यहाँ बल प्रयोग से कवि का आशय किसी के विरुद्ध बल का अनावश्यक प्रयोग करने से न होकर सताए हुए, दबाए हुए बलहीन लोगों का बल बन कर दिखाने से है। बलहीन निरीह व्यक्तियों पर होने वाला अन्याय और अत्याचार तभी रुक सकता है और तभी उन्हें समाज में समानता का दर्जा मिल सकता है और वे निर्बलता पर विजय प्राप्त कर सकेंगे। इसी बात को कवि अपनी कविता में बिना किसी लाग-लपेट के सीधे-सादे सरल शब्दों में इस प्रकार कहते हैं –

बल नहीं होता सताने के लिए,
वह है पीड़ित को बचाने के लिए।
बल मिला है, तो बल बनो सबके,
उठ पड़ो न्याय दिलाने के लिए।

कवि ने इस कविता में अपनी बात कहने के लिए न कहीं रसअलंकार वाली शृंगारिक भाषा का प्रयोग किया है और न ही उन्हें अपनी बात कहने के लिए दुरुहता के मायाजाल में ही फँसना पड़ा है। कविता के शाब्दिक शरीर के रूप में सरल शब्दों की अमिघा शक्ति तथा कविता का प्रसाद गुण कविता में व्यक्त भावों को सरलतापूर्वक आत्मसात करने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं।

व्याकरण

1. अलंकार :

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पंक्तियों में उद्धृत अलंकार पहचानकर उसका नाम लिखिए :
(1) हाय फूल-सी कोमल बच्ची। हुई राख की थी ढेरी।
(2) मैया मैं तो चंद्र खिलौना लैहों।
(3) इस काल मारे क्रोध के तनु काँपने उनका लगा। मानो हवा के जोर से सोता हुआ सागर जगा।
उत्तर :
(1) उपमा अलंकार।
(2) रूपक अलंकार।
(3) उत्प्रेक्षा अलंकार।

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2. रस :

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पंक्तियों में उद्धृत रस पहचानकर उसका नाम लिखिए :
(1) उस काल मारे क्रोध के तन काँपने उनका लगा।
मानो हवा के जोर से सोता हुआ सागर जगा।
उत्तर :
रौद्र रस

प्रश्न 2.
काहु न लखा सो चरित बिसेरवा। सो स्वरूप नृपकन्या देखा। मर्कट बदन भयंकर देही। देखत हृदय क्रोध भा तेही। जेहि दिसि बैठे नारद फूली। सो दिसि तेहिन विलोकी भूली। पुनि पुनि मुनि उकसहिं अकुलाहीं। देखि दशा हर गान मुसुकाहीं।
उत्तर :
हास्य रस।

3. मुहावरे :

प्रश्न 1.
निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ लिखकर वाक्य में प्रयोग कीजिए :
(1) अपना उल्लू सीधा करना।
अर्थ : अपना स्वार्थ सिद्ध करना।
वाक्य : रमेश से समाज के हित की उम्मीद करना व्यर्थ है, वह हमेशा अपना उल्लू सीधा करने में लगा रहता है।

(2) दिन दूना रात चौगुना बढ़ना।
अर्थ : दिन प्रतिदिन अधिक उन्नति करना।
वाक्य : जब से मुनीम जी की सलाह से सेठ करोड़ीमल ने काम-काज शुरू किया है, तब से उनका धंधा दिन दूना रात चौगुना बढ़ता जा रहा है।

4. काल परिवर्तन :

प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्यों के साथ दी गई सूचना के अनुसार काल परिवर्तन करके वाक्य फिर से लिखिए :
(1) तुमने मुझे विश्वास दिया है। (अपूर्ण वर्तमानकाल)
(2) राह में अँधेरा है। (सामान्य भविष्यकाल)
(3) नर-नारी साथ निकलेंगे। (पूर्ण भूतकाल)
उत्तर :
(1) तुम मुझे विश्वास दे रहे हो।
(2) राह में अँधेरा होगा।
(3) नर-नारी साथ निकले थे।

नवनिर्माण Summary in Hindi

नवनिर्माण कवि का परिचय

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 नवनिर्माण 15

नवनिर्माण कवि का नाम : त्रिलोचन। वास्तविक नाम वासुदेव सिंह। (जन्म 20 अगस्त, 1917; निधन 2007.)

प्रमुख कृतियाँ : धरती, दिगंत, गुलाब और बुलबुल, उस जनपद का कवि हूँ, सब का अपना आकाश (कविता संग्रह); देशकाल (कहानी संग्रह) तथा दैनंदिनी (डायरी) आदि।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 नवनिर्माण

विशेषता : काव्यक्षेत्र में प्रयोग धर्मिता के समर्थक। समाज के दबे-कुचले वर्ग को संबोधित करने वाले साहित्य के रचयिता।

विधा : चतुष्पदी। इस विधा में चार चरणों वाला छंद होता है। यह चौपाई की तरह होता है। इसके प्रथम, द्वितीय और चतुर्थ चरण में तुकबंदी होती है। भाव और विचार की दृष्टि से प्रत्येक चतुष्पदी अपने आप में पूर्ण होती है।

विषय प्रवेश : प्रस्तुत पद्य पाठ में कुल आठ चतुष्पदियाँ दी गई हैं। ये सभी चतुष्पदियाँ भाव एवं विचार की दृष्टि से अपने आप में पूर्ण है। इन चतुष्पदियों में आशावादी दृष्टिकोण प्रस्तुत किया गया है। कवि ने इनके माध्यम से संघर्ष करने तथा अन्याय, अत्याचार, विषमता और निर्बलता पर विजय पाने का आवाहन किया है।

नवनिर्माण चतुष्पदियों का सरल अर्थ

(1) तुमने विश्वास ……………………………….. आकाश दिया है मुझको।
मनुष्य के जीवन में किसी का विश्वास प्राप्त करने तथा किसी से प्रोत्साहन पाने का बड़ा महत्त्व होता है। इनके बल पर मनुष्य बड़े-बड़े काम कर डालता है।

कवि कहते हैं कि, तुमने मुझे जो विश्वास और प्रेरणा दी है वह मेरे लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। इन्हें देकर तुमने मुझे असीम संसार दे दिया है। पर मैं इन्हें इस तरह सँभाल कर अपने पास रखूगा कि मैं आकाश में न उहूँ और मेरे पाँव हमेशा जमीन पर रहें। अर्थात मुझे अपनी मर्यादा का हमेशा ध्यान रहे।

(2) सूत्र यह तोड़ ……………………………….. छोड़ नहीं सकते।

कवि मनुष्य के बारे में कहते हैं कि वह चाहे कितना ही बड़ा क्यों न हो जाए, आकाश में उड़ानें भरता हो या अन्य कहीं उड़ कर चला जाए, पर अंत में उसे अपनों के बीच यानी धरती पर तो आना ही पड़ता है। कवि कहते हैं कि, यह बात शाश्वत सत्य है। इस सच्चाई को कोई नियम तोड़-मरोड़ कर झूठा साबित नहीं कर सकता। अर्थात मनुष्य कितना भी आडंबर क्यों न कर ले, पर वह अपनी वास्तविकता को छोड़ नहीं सकता।

(3) सत्य है ……………………………….. सामने अँधेरा है।
कवि संघर्ष करने का आवाहन करते हुए कहते हैं कि आपकी राह अँधेरों से भरी हुई है; भले यह बात सच हो या आपकी प्रगति के द्वार को अवरुद्ध करने के लिए तरह-तरह की कठिनाइयाँ रास्ते में आ रही हों, तब भी आपको संघर्ष के मार्ग पर रुकना नहीं है।

अँधेरे में भी आगे ही आगे बढ़ते जाना है, क्योंकि इसके अलावा आपके सामने और कोई चारा भी तो नहीं है। कवि का कहने का तात्पर्य यह है कि संघर्ष करना जारी रखना चाहिए। संघर्ष से ही सफलता का मार्ग प्रशस्त होता है।

(4) बल नहीं होता ……………………………….. “दिलाने के लिए।

कवि कहते हैं कि मनुष्य को निरर्थक कार्यों के लिए अपने बल का प्रयोग नहीं करना चाहिए। उसका प्रयोग सार्थक कार्यों के लिए होना चाहिए। वे कहते हैं कि मनुष्य के पास बल किसी असहाय, पीड़ित व्यक्ति को सताने के लिए नहीं होता। बल्कि वह किसी असहाय या पीड़ित व्यक्ति की रक्षा करने के लिए होता है। कवि बलवान व्यक्तियों को संबोधित करते हुए कहते हैं, यदि ईश्वर ने तुम्हें शक्ति प्रदान की है, तो तुम सभी कमजोर लोगों के बल बन ३ कर उनको न्याय दिलाने के काम में लग जाओ। तभी तुम्हारे बल की सार्थकता है।

(5) जिसको मंजिल ……………………………….. वही कहता है।

कवि कहते हैं कि जिस व्यक्ति को अपनी सफलता की मंजिल की जानकारी हो जाती है, वह व्यक्ति अपने मार्ग में आने वाली परेशानियों से नहीं डरता। वह हँसते-हँसते इन परेशानियों को झेल लेता है। ऐसे व्यक्तियों को ही जीवन में सफलता मिलती है। इस तरह सफलता के शिखर पर पहुँचने वाले व्यक्ति समाज के लिए इतिहास बन जाते हैं और लोग उससे प्रेरणा लेते हैं।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 नवनिर्माण

(6) प्रीति की राह ……………………………….. चले आओ।
कवि प्यार-मोहब्बत और अच्छे आचार-व्यवहार को अपनाने की बात करते हुए लोगों का आवाहन करते हैं कि वे सब के साथ प्यार-मोहब्बत से रहें और सब के साथ अच्छा व्यवहार करें। यही सब के लिए अपनाने वाला सही मार्ग है। वे कहते हैं कि सब को हँसते-गाते जीवन जीने का मार्ग अपनाना चाहिए।

(7) साथ निकलेंगे ……………………………….. “समाज नर-नारी।
कवि स्त्री-पुरुष समानता की बात करते हुए कहते हैं कि स्त्री पुरुष दोनों एक साथ मिल कर विकट समस्याओं को सुलझाने का कार्य करेंगे। दोनों इस दिशा में कंधे से कंधा मिलाकर काम करेंगे और नए समाज की रचना करेंगे, जिसमें सब को समानता का अधिकार मिले।

(8) वर्तमान बोला……………………………….. गीत अच्छा था।

कवि वर्तमान और अतीत की बात करते हुए कहते हैं कि वर्तमान के अनुसार बीता हुआ समय अच्छा था। उस समय जीवन पथ में साथ निभाने वाले अच्छे मित्र थे। वर्तमान कहता है कि भविष्य में (जब हम अतीत हो जाएँगे और) लोग हमारा भी गुणगान करेंगे। वैसे अतीत भी गुणगान करने लायक था।

नवनिर्माण शब्दार्थ

  • व्योम = आकाश
  • सहचर = साथ-साथ चलने वाला, मित्र
  • सिद्धि = सफलता
  • मीत = मित्र, दोस्त

Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions निबंध लेखन

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कृती

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प्रश्न 1.
वर्णनात्मक निबंध-
पहाटेचे सौंदर्य.
आमची अविस्मरणीय सहल.
उत्तर :
वर्णनात्मक निबंध दैनंदिन जीवनात आपण पाहिलेल्या व्यक्तींचे, प्रसंगांचे, दृश्यांचे किंवा वस्तूंचे शब्दांनी केलेले प्रत्ययकारक चित्रण म्हणजे वर्णनात्मक निबंध होय.

वर्णिलेल्या प्रसंगांतील, दृश्यांतील, मानवी स्वभावांतील बारकाव्यांचा तपशील येणे वर्णनात्मक निबंधात आवश्यक असते. समजा, आपण एखादया व्यक्तीचे वर्णन करीत आहोत; अशा वेळी त्या निबंधात त्या व्यक्तीच्या सद्गुणांचे वर्णन येणारच. पण त्याचबरोबर (त्या व्यक्तीमधील उणिवाही सांगितल्या पाहिजेत. तसेच, तिच्या हालचाली, लकबी, सवयी यांतील बारकावे सांगितले पाहिजेत. म्हणजे ती व्यक्ती आपल्या डोळ्यांसमोर जशीच्या तशी उभी राहते. असे लेखन घडले, तर तो चांगला वर्णनात्मक निबंध ठरेल.

व्यक्तीच्या वर्णनाप्रमाणेच वस्तू, ठिकाण, दृश्य, प्रसंग यांचेही हुबेहूब, प्रत्ययकारी वर्णन लिहिता आले पाहिजे. ती वस्तू , ते ठिकाण आपण समोर उभे राहून पाहत आहोत, असा प्रत्यय आला पाहिजे. प्रत्ययकारकता हा वर्णनात्मक निबंधाचा प्राण आहे.

नोंद : येथे निबंधात विदयार्थ्यांच्या मार्गदर्शनार्थ मुद्दे दिलेले आहेत. परीक्षेत केवळ निबंधांचे विषय देण्यात येतात, याची नोंद घ्यावी.

वर्णनात्मक निबंधाचा एक नमुना :

घरातील एक उपद्रवी कीटक

[मुद्दे : उपद्रवकारक कीटकांचा प्राथमिक परिचय – त्रासाचे स्वरूप – कीटकांविषयी कुतूहल – कीटकांचे स्थूल स्वरूप – वागण्याची वैशिष्ट्यपूर्ण रीत – कीटकांपासून होणारा महत्त्वाचा त्रास – त्या कीटकांची पैदास – त्या कीटकांच्या निर्मूलनाचा मार्ग.]

माशी ही परमेश्वराप्रमाणे सर्वव्यापी व सर्वसंचारी आहे. कोठेही जा. तुम्हांला माशी आढळणारच. मी तरी माशी नसलेले ठिकाण अजून पाहिलेले नाही. माझ्या मते, माणसाला उपद्रव देणाऱ्या कीटकांमध्ये, माशीचा पहिला क्रमांक लागतो. डास त्रासदायक आहे, यात शंकाच नाही. पण त्याच्यापेक्षा माशी अधिक त्रासदायक आहे, असे माझे ठाम मत आहे. डासांना अटकाव करण्यासाठी वा त्यांना मारण्यासाठी औषधे, फवारण्या व अगरबत्त्या बाजारात मिळतात. पण माश्यांविरुद्ध असे काही उपाय केले जात असल्याचे दिसत नाही.

माश्या आणि उपद्रव या दोन्ही बाबी सोबत सोबतच असतात. डासांप्रमाणे माश्या चावत नाहीत. काही रोगांशी डासांचा संबंध घट्ट जोडला गेला आहे. तसे माश्यांबाबत नाही. म्हणून माश्या निरुपद्रवी वाटत असाव्यात. आणि माश्यांना बहुधा हे कळले असावे. त्यामुळे त्या एकदम अंगचटीलाच येतात. त्यांना हाकलण्याचा कितीही प्रयत्न करा; त्या तात्पुरत्या सटकतात आणि पुन्हा पुन्हा अंगावर येतात. आपण एकाग्रतेने अभ्यासाला बसावे किंवा निवांतपणे टीव्ही पाहत असावे, तर माशीचा फेरा सुरू झालाच म्हणून समजा.

आपण तिला अगदी अव्वल गुप्तहेराच्या चतुराईने मारण्याचा प्रयत्न केला, तरी ती तावडीत सापडत नाहीच. त्यानंतर ती परत येऊन बसते कुठे? तर पाठीवर, मानेवर वा कपाळावर अशा आपल्याला न दिसणाऱ्या जागेवर! मग तिला फक्त निकराने हाकलतच राहावे लागते. ती मात्र सुरक्षितरीत्या पळत राहते, एखादया कुशल खो – खो खेळाडूप्रमाणे! अशा वेळी ती आपल्याला कुत्सितपणे हसत असणार, असे अनेकदा माझ्या मनात येऊन गेले आहे. ती चावत नाही; पण सारखी सुळसुळत राहते. त्यामुळे चित्त विचलित होत राहते. चैन पडत नाही. आपण एकाग्रतेने काहीही करू शकत नाही. मन अस्वस्थ होते आणि मनाची चिडचिड चिडचिड होते!

खरे पाहता, माशीच्या आकाराच्या तुलनेत आपण म्हणजे महाकाय, अक्राळविक्राळ राक्षसच! तरीही ती आपल्याला घाबरत कशी नाही? पुन्हा पुन्हा अंगावर येऊन बसते कशी? प्रत्येक वेळी ती यशस्वीरीत्या सटकते कशी? याचे मला प्रचंड कुतूहल होते. हे कुतूहल मला काही केल्या गप्प बसू देईना. मग मी मराठी विश्वकोश उघडला. त्यातील माशीची माहिती वाचली आणि थक्कच झालो. तिच्या सुरक्षितरीत्या पळण्याचे रहस्यच मला उलगडले.

माशीच्या डोक्यावर दोन मोठे टपोरे डोळे असतात. त्या डोळ्यांत प्रत्येकी चार हजार नेत्रिका असतात. नेत्रिका म्हणजे काय माहीत आहे का? आपण सूक्ष्मदर्शक उपकरणाच्या साहाय्याने अत्यंत लहान, सूक्ष्म वस्तू मोठी करून पाहतो. सूक्ष्मदर्शकाच्या ज्या भिंगातून आपण पाहतो, त्या भिंगाला नेत्रिका म्हणतात. म्हणजे आठ हजार भिंगांमधून माशी भोवतालचा परिसर पाहते. शिवाय तिला आणखी तीन साधे डोळे असतातच. त्यामुळे माशी मान न हलवता एकाच क्षणी सर्व दिशांनी भोवताली पाहू शकते. लक्षात घ्या – आपल्याला फक्त समोरचेच दिसते. माशीला मात्र हालचाल न करता सगळीकडचे दिसते. म्हणूनच तिला कोणत्याही दिशेने येणाऱ्या संकटाची चाहूल तत्काळ लागते आणि ती त्वरेने पळ काढू शकते.

एकदा दुपारी मी शाळेतून घरी आलो आणि समोरचे दृश्य पाहून चकितच झालो. एका बशीच्या काठावर माश्या ओळीने गोलाकार बसल्या होत्या – उंच टांगलेल्या केबलवर कावळे ओळीने बसतात तशा. गुपचूप बाजूला झालो. माझ्या काकांचे मोठे बहिर्गोल भिंग घेऊन आलो आणि त्या भिंगातून माश्यांचे निरीक्षण करू लागलो.

प्रत्येक माशीला सहा पाय होते. सर्व माश्या सहाही पायांवर उभ्या होत्या. मधूनमधून पुढचे दोन पाय वर उचलून ते हातासारखे वापरत होत्या. ” कधी दोन्ही हात एकमेकांवर घासायच्या; तर कधी चेहऱ्यावरचे पाणी निपटून टाकावे त्याप्रमाणे चेहऱ्यावरून हात फिरवायच्या. जणू त्यांचा स्वच्छतेचा कार्यक्रम चालू होता! मला हसूच येऊ लागले. कुजलेले पदार्थ, शेण, लीद, मलमूत्र, गटारे अशा ठिकाणी रममाण होणाऱ्या आणि तिथेच अंडी घालणाऱ्या या माश्या स्वच्छता करीत होत्या!

त्यांच्या पायांवर दाट केस होते. या केसांत अक्षरश: लाखो सूक्ष्म रोगजंतू घर करून राहतात. त्या आपल्या अन्नपदार्थांवर येऊन बसतात. मग ते रोगजंतू आपल्या अन्नात मिसळतात. आपल्याला कॉलरा, हगवण, टायफॉईड यांसारख्या रोगांची लागण होते. आपल्या देशात या रोगांमुळे काही हजार माणसे दरवर्षी दगावतात. केवढा हा माश्यांचा उपद्रव!

माश्यांच्या उपद्रवामुळे मी त्यांचा बारकाईने विचार केला आहे. मला एक शोध लागला आहे. माश्यांचा नायनाट करायला औषधे, फवारण्या वगैरेंची अजिबात गरज नाही. माश्यांना घाण प्रिय असते. म्हणून आपण घाणच नाहीशी करायची. घाण होऊच दयायची नाही. सदोदित स्वच्छता पाळायची, बस्स. केवढा सुंदर महामार्ग आहे हा!

प्रश्न 2.
व्यक्तिचित्रणात्मक निबंध –
माझा आवडता कलावंत.
माझे आवडते शिक्षक.
उत्तर :
व्यक्तिचित्रणात्मक निबंध

व्यक्तिचित्रणात्मक निबंधात व्यक्तीचे चित्रण केलेले असते. प्रसंगवर्णनात प्रसंगाचे शब्दचित्र असते. त्या चित्रणात प्रसंगाचे लक्षवेधक, प्रभावी वर्णन केलेले असते. तो प्रसंग वाचकाच्या डोळ्यांसमोर उभा राहतो. आपण जणू काही तो प्रसंग पाहतच आहोत, असा वाचकाला प्रत्यय येत राहतो. त्याप्रमाणेच व्यक्तिचित्रणात व्यक्ती डोळ्यांसमोर उभी करण्याचे सामर्थ्य असले पाहिजे. जिवंत व्यक्तीच आपण पाहत आहोत, असा वाचकाला प्रत्यय आला पाहिजे. म्हणून व्यक्तीचे दिसणे, तिच्या हालचाली, लकबी, बोलण्याच्या पद्धती, विचार, दृष्टिकोन वगैरेंपैकी काही घटकांच्या किंवा अनेक घटकांच्या आधारे ती व्यक्ती साकार करता यायला हवी.

व्यक्तिचित्रणासाठी व्यक्ती नामवंत, वलयांकित, इतिहासप्रसिद्ध असली पाहिजे असे मुळीच नाही. व्यक्ती कोणीही असू शकते. अट एकच – चित्रण हुबेहूब वठले पाहिजे. त्यात व्यक्तिमत्त्वाचे जास्तीत जास्त पैलू प्रकट झाले पाहिजेत. असे व्यक्तिचित्रण हे यशस्वी व्यक्तिचित्रण होय.

व्यक्तिचित्रणात्मक निबंधाचा एक नमुना :

आमचे मनोहरकाका

[मुद्दे : व्यक्तीची प्राथमिक ओळख – लेखकाशी नाते – दर्शनी रूप – पेहराव – वृत्ती – व्यक्तीची इतरांशी वागण्याची पद्धत – सहवासाचा परिणाम – व्यक्तीचे उपजीविकेचे साधन – छंद – छंदाचे महत्त्व – लेखकाला झालेला फायदा.]

आमच्या शेजारचे मनोहरकाका आमच्या कॉलनीतील आम्हा मित्रमंडळींचे लाडके दोस्त आहेत. आम्हा सगळ्यांना ते खूप आवडतात. नेहमी हसतमुख चेहरा. आम्ही त्यांना कधीही कंटाळलेले, वैतागलेले, त्रागा करीत असलेले असे पाहिलेले नाही. त्यांच्या अंगावर स्वच्छ, इस्त्री केलेले नीटनेटके कपडे असतात. शर्ट नेहमी पँटीत खोचलेले असते. ते ठरावीक दोन – तीनच रंगांचे कपडे वापरतात, असे नाही. त्यांच्या अंगावर विविध रंग सुखाने नांदत असतात.

त्यातही त्यांना टी – शर्ट खूप प्रिय आहेत. हे टी – शर्टसुद्धा ते पॅन्टीत खोचतात, साधारणपणे टी – शर्ट खोचल्यानंतर बहुतेक लोक कमरेचा पट्टा बांधतात. पण मनोहरकाकांच्या बाबतीत गमतीची गोष्ट अशी की त्यांनी कधीही कमरेचा पट्टा वापरलेला नाही. त्यांची प्रकृती नेहमी टुणटुणीत असते. मनोहरकाका आणि प्रसन्नता नेहमी एकत्रच येतात.

मनोहरकाकांचा एक गुण आम्हांला खूप म्हणजे खूपच आवडतो. त्यांनी आम्हांला, “आज अभ्यास केला की नाही? की नुसता खेळण्यात वेळ गेला? किती गुण मिळाले?” असले प्रश्न कधीही विचारले नाहीत. पण त्यांचे आमच्या शिक्षणाकडे लक्ष नव्हते, असे नाही. आम्हा मित्रांच्या आई – बाबांशी त्यांची सतत कोणत्या ना कोणत्या योजनांविषयी चर्चा चालू असे. त्यांनी कॉलनीतील आठवी – नववी – दहावीतील मुलांसाठी विज्ञान प्रयोगशाळा सुरू केली आहे. तसेच, त्यांचे आम्हांला एक आग्रहाचे सांगणे असते, “इंग्रजीवर प्रभुत्व मिळवा. इंग्रजी वर्तमानपत्रे, मासिके वाचा. इंग्रजी पुस्तके वाचत राहा.

इंग्रजी कार्यक्रम पाहा. इंग्रजी बातम्या पाहा. डिक्शनरीची फिकीर करू नका”. मी आठवीत असल्यापासून त्यांचे हे म्हणणे मनावर घेतले. मी मराठी माध्यमातून शिकलो. दहावीनंतर मी कॉलेजमध्ये गेलो. तिथे मला इंग्रजीचा काहीही त्रास झाला नाही. मी आरामात आणि आनंदाने कॉलेजमध्ये वावरलो. शिकतानाही अडथळे आले नाहीत. खरे सांगू? मनोहरकाका माझ्या सोबतच आहेत, असे मला सतत वाटत राहिले आहे.

मनोहरकाकांची स्मरणशक्ती अफाट आहे. त्यांना देशोदेशीच्या इतक्या घटना, माणसे स्मरणात आहेत की विचारता सोय नाही. त्यांचे घर पुस्तकांनी भरलेले आहे. त्यांचे वाचन अफाट आहे. ते प्राध्यापक आहेत. कॉलेजात इतिहास शिकवतात. इतिहास त्यांच्या जिभेवर असतो. त्यांच्याकडे माहितीचा प्रचंड खजिना आहे. शिवाय त्याचे सगळे छापील पुरावे त्यांनी जपून ठेवले आहेत. साठ – सत्तर वर्षांपासूनची वर्तमानपत्रांची, साप्ताहिकांची, मासिकांची कात्रणे त्यांनी जमा केलेली आहेत. विषयानुसार कालानुक्रमे त्यांनी ती कात्रणे लावली आहेत. त्यांच्या फाईली करून ठेवल्या आहेत. स्पर्धांसाठी, स्पर्धा परीक्षांसाठी मनोहरकाकांचा आम्हांला खूप उपयोग होतो.

मी दहावी पास झालो. मला चांगले गुण मिळाले. मनापासून माझे कौतुक केले. पण त्याच वेळी आमच्या घरात एक पेच निर्माण झाला होता. मला आर्ट्स शाखेत प्रवेश घ्यायची इच्छा होती. माझ्या आई – ५ बाबांना ती कल्पना पसंत नव्हती. आम्ही मनोहरकाकांचा सल्ला घ्यायला गेलो. क्षणाचाही विलंब न लावता त्यांनी माझ्या निर्णयाचे कौतुक केले. मी आर्ट्स शाखेत प्रवेश घेतला. या वर्षी मी बारावीत आहे. कॉलेजातला माझा सगळा काळ आनंदात गेलेला आहे. असे आहेत आमचे मनोहरकाका. त्यांना तुम्ही एकदा जरी भेटलात, तरी त्यांचे मित्र होऊन जाल!

प्रश्न 3.
आत्मवृत्तात्मक निबंध-
मी सह्याद्री बोलतोय.
वृत्तपत्राचे मनोगत.
उत्तर :
आत्मवृत्तात्मक (आत्मकथनात्मक) निबंध

या प्रकारच्या निबंधामध्ये सजीव व निर्जीव वस्तू स्वत:च स्वत:च्या जीवनाचे कथन करीत आहेत, अशी कल्पना केलेली असते. या प्रकाराला आत्मनिवेदन, आत्मवृत्त, मनोगत, कैफियत, गाहाणे इत्यादी वेगवेगळे शब्दही योजले जातात.

या निबंधप्रकारात, निवेदक स्वत:च बोलत असल्याने प्रथमपुरुषी वाक्यरचना येते. या कथनात निवेदकाच्या जन्मापासूनच्या संपूर्ण बारीकसारीक तपशिलांची अपेक्षा नसते. त्याच्या जीवनातील ठळक, महत्त्वाचे मोजकेच प्रसंग वा घडामोडी नमूद कराव्यात. त्या आधारे त्याच्या व्यथा – वेदना कथन कराव्यात; या व्यथा – वेदना कथन करता मानवी जीवनातील, माणसाच्या वर्तनातील विसंगती दाखवून दयाव्यात, अशी अपेक्षा असते. मनोगत व्यक्त करताना सुप्त, अतृप्त इच्छा प्रकट करावी. गा – हाणी, कैफियत लिहिताना निवेदकाच्या सुखदुःखावर भर दयावा. निवेदक स्वतः वाचकाशी बोलत असतो. म्हणून या निबंधाची भाषा साधी व ओघवती असावी. निवेदनात जिव्हाळा, कळकळ, भावनेचा ओलावा व्यक्त झाला पाहिजे.

आत्मवृत्तात्मक (आत्मकथनात्मक) निबंधाचा एक नमुना :

भटक्या जमातीतील एका भटक्याचे मनोगत

[मुद्दे : भटकी जमात सतत भटकत असते – पण दारिद्र्य त्यांच्या पाचवीला पुजलेले – डॉ. बाबासाहेब आंबेडकरांचे प्रयत्न – भटके जीवन – स्थिरता नाही – गावोगावी भटकणे – भटकंतीमुळे सतत ताटातूट – भटकंतीत साथ प्राण्यांची – अपमानित जीवन – फुले, शाहू महाराज, डॉ. आंबेडकर यांच्यामुळे नवीन जीवन – प्रेरणा – अजूनही सुधारणेची गरज.]

“खरोखर आज मला फार आनंद झाला आहे. कारण अशा त – हेने आपल्या मनातील विचार समाजातील सगळ्या लोकांपुढे आपण कधी मांडू शकू, असे मला स्वप्नातही वाटले नव्हते. खरं सांगू का? असं एका जागी उभं राहून बोलण्याचीही मला सवय नाही, कारण… कारण आम्ही आहोत ‘भटके’ लोक ! सतत भटकतच असतो! आमच्या पायांना मुळी चक्रच लावलेलं असतं. पण एक शंका माझ्या मनात बरेच दिवस रेंगाळते आहे. ती तुमच्यापुढे मांडतो. असं म्हणतात की – जो चालतो, त्याचं नशीबही जोरात चालतं. जर असं आहे तर आम्हां भटक्यांचं नशीब का कधीच जोरात धावत नाही? आमची गाठ सदैव दारिद्र्याशीच का? आज वर्षानुवर्षे आम्ही हिंडत आहोत, पण जगातील कोणाचंही आमच्याकडे लक्ष गेलं नाही.

“आता मात्र दिवस हळहळ पालटू लागले आहेत. आमच्या दैन्यावस्थेकडे समाजाचे थोडं थोडं लक्ष जाऊ लागलं आहे. आमच्या मुलांपैकी काहीजण शिकू लागले आहेत. हे घडू लागलं आहे ते आमच्या परमपूज्य डॉ. बाबासाहेब आंबेडकरांमुळे. त्यांनी आम्हांला नवीन डोळे दिले; नवी दृष्टी दिली ! आम्ही अंधश्रद्धेच्या गुडूप अंधारात घनघोर झोपलो होतो. बाबासाहेबांनी आपल्या विचारांनी आम्हांला गदागदा हलवलं; आम्हांला जागं केलं. आम्हांला नवा मार्ग दाखवला. आम्ही त्या मार्गावर एकेक पाऊल टाकत आहोत.

“आता मी माझं मनोगत सांगतोय, तेव्हा मी माझी सुखदुःखे सांगावीत, असं तुमच्या मनात येईल. पण खरं सांगू का? सुखाचे क्षण मला शोधावेच लागतील. सगळं दु:खच दु:ख आलं आहे आमच्या वाट्याला! आम्हां भटक्यांना ना घर ना गाव! आम्ही सर्वजण गटागटाने हिंडत असतो… या गावातून त्या गावात. गावात गेल्यावर मुक्काम गावकुसाबाहेर. तेथेच फाटक्यातुटक्या कापडाच्या राहुट्या उभारतो. त्यांना आम्ही ‘पालं’ म्हणतो. दोन – चार दिवस राहतो. गावात दारोदार हिंडून काही काम मिळालं तर करतो आणि खातो आणि मग पालं गुंडाळून नव्या गावाच्या दिशेने पावलं टाकतो. वर्षानुवर्षे हे असंच चालू आहे.

“खरं सांगू का माझा जन्म कधी झाला व कोठे झाला, हे मला सांगता येणार नाही. आम्ही सगळी भावंडं अशीच भटकंतीत जन्मलो. आमचे जन्म, बारसे, लग्न सगळे या भटकंतीतच. जवळच्या माणसाचा मृत्यू झाला, तरी आम्हांला हे कळतं ते काही महिन्यांनी, कधी कधी तर वर्षानंतरही ! या भटक्या जीवनामुळे सगळ्या भावंडांची गाठ पडते, तीसुद्धा वर्षावर्षानंतर!

“भटक्या जीवनामुळे आम्हांला खडतर जीवनाची सवयच झाली आहे. कष्ट, दैन्य, हालअपेष्टा, मानापमान अशा गोष्टींचं काही वाटेनासंच झालं आहे. कधी कधी आम्ही पालं टाकतो आणि कोणीतरी येऊन शिवीगाळ करून आम्हांला हुसकावतं! आम्ही काहीही न बोलता भीतीने व दुःखी अंत:करणाने तिथून उठतो आणि दुसरीकडे जातो! आम्हांला कायम साथ देतात ती आमची मेंढरं, कुत्री आणि गाढवं ! आजारी पडायलाही आम्हांला फुरसत नसते.

आता आता आमच्यात थोडा बदल झाला आहे. छत्रपती शाहू महाराज हे देवदूतासारखे आमच्यासाठी धावून आले. आमच्यासाठी त्यांनी अपार कष्ट घेतले. आपल्या राजेपणाचे सर्व अधिकार त्यांनी आमच्यासाठी वापरले. आम्हांला स्थिर जीवन मिळावे म्हणून अनेक कल्पक योजना आखल्या. अनेकांची टीका सहन करीत त्या राबवल्या. आम्हांला माणसात आणण्याचा प्रयत्न केला. महात्मा फुले, शाहू महाराज, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर यांच्यासारख्यांच्या प्रयत्नांमुळे आता आमची मुलं शिकू लागली आहेत. वरच्या पदापर्यंत जाऊ लागली आहेत.

“इतर समाजसुद्धा हळूहळू बदलत आहे. लोक आमची स्थिती समजून घेत आहेत. सरकार आमच्यासाठी विविध योजना आखत आहे, कायदे करीत आहे. पण तरीही अजून खूप सुधारणा होण्याची गरज आहे. मग आपण एकसमान होऊ. आपला देश समर्थ बनेल.”

प्रश्न 4.
कल्पनाप्रधान निबंध –
सूर्य मावळला नाही तर…
पेट्रोल संपले तर…
उत्तर :
कल्पनाप्रधान निबंध

अशक्य वाटणारी गोष्ट शक्य झाल्यास काय घडेल या कल्पनेचा मुक्त वापर करून लिहिलेल्या निबंधाला कल्पनाप्रधान निबंध म्हणतात. आधुनिक जीवनव्यवहारात काही वस्तू अगदी अपरिहार्य झाल्या आहेत. त्या उपलब्ध नसल्यास काय घडेल, याचे वर्णन कल्पनाप्रधान निबंधात करता येते. परंतु त्याच वेळी त्या वस्तूंची आवश्यकता किती आहे, त्यामुळे आपल्या जीवनात किती सौंदर्य निर्माण झाले आहे किंवा किती कृत्रिमता निर्माण झाली आहे, हेही सांगता आले पाहिजे.

या निबंधप्रकाराची सुरुवात एखादया दैनंदिन प्रसंगातून करता येते. अशा निबंधाच्या विषयाची मांडणी करताना आपणाला ज्या गोष्टी सांगायच्या असतात, त्या एखादया कल्पनेभोवती गुंफून सांगाव्यात.

कल्पनाप्रधान निबंधाचा एक नमुना :

आषाढघनाचे आगमन झाले नाही तर?

[मुद्दे : असा प्रश्न मनात येण्याचे कारण – प्रथम जाणवणारा दुष्परिणाम – – निसर्गसौंदर्याचा नाश – आषाढ धो धो पावसाचा महिना – अतिवृष्टीच्या परिणामांपासून मुक्ती – पाण्याच्या अभावाचे परिणाम – मानवी प्रयत्न – पाणी मिळवणे महागडे – पाण्याविना तडफडणारी सर्वच प्राणिसृष्टी – आधुनिक जीवन ठप्प – गरीबश्रीमंत दरी – सर्वनाशाकडे वाटचाल.]

मध्यंतरी कोरोनाने अक्षरश: हैदोस घातला होता. जगातली सर्व कुटुंबे आपापल्या घरात कोंडून पडली होती. माणसाच्या गेल्या दहा हजार वर्षांच्या इतिहासात पहिल्यांदाच घडले हे. निसर्गाने माणसाला शिक्षाच दयायला सुरुवात केली नसेल ना? गेली दहा हजार वर्षे माणूस स्वार्थासाठी निसर्गाला ओरबाडतो आहे. पर्यावरण उद्ध्वस्त करीत आहे. त्याचा बदला तर नाही ना हा? आणखी काय काय घडणार आहे कोण जाणे! सध्याचाच ताप पाहा आधी. तापमानाचा पारा ४०°ला स्पर्श करीत आहे. आता पाऊस येईल तेव्हाच गारवा. त्यातच पाऊस या वर्षी उशिरा आला तर? अरे देवा! पण तो आलाच नाही तर? आषाढघनाचे दर्शनच घडले नाही तर?

परवाच बा. भ. बोरकर यांची कविता वाचत होतो. वाचता वाचता हरखून गेलो होतो. या पावसाळ्यात जायचेच, असा आमच्या घरात बेत आखला जात होता. गावी जायला मिळाले, तर आषाढघनाने नटलेले निसर्गसौंदर्य डोळे भरून पाहता येईल. कोमल, नाजूक पाचूच्या रांगांची हिरवीगार शेते, पोवळ्याच्या रंगाची लाल माती, रत्नांच्या प्रभेसारखी बांबूची बेटे, सोनचाफा, केतकी, जाईजुई यांचे आषाढस्पर्शाने प्रफुल्लित झालेले सौंदर्य अनुभवायला मिळेल, हे खरे आहे. पण पाऊसच नसेल तर?

आषाढ महिना हा धुवाधार पावसाचा महिना. गडगडाटासह धो धो कोसळणाऱ्या पावसाचा महिना. कधी कधी हे आषाढघन रौद्ररूप धारण करतात. गावेच्या गावे जलमय होतात. डोंगरकडे कोसळतात. घरे बुडतात. गटारे ओसंडून वाहतात. सांडपाण्याची, मलमूत्राची सर्व घाण रस्तोरस्ती पसरते. घराघरात घुसते. मुकी जनावरे बिचारी वाहून जातात. हे सर्व परिणाम किरकोळ वाटावेत, अशी भीषण संकटे समोर उभी ठाकतात. दैनंदिन जीवन कोलमडून पडते. रोगराईचे तांडव सुरू होते. पाऊस नसेल, तर हे सर्व टळेल, यात शंकाच नाही.

मात्र, पाण्याशिवाय जीवन नाही. आणि माणूस हा तर करामती प्राणी आहे. तो पाणी मिळवण्याचे मार्ग शोधू लागेल. समुद्राचे पाणी वापरण्याजोगे करण्याचे कारखाने सुरू होतील. त्यामुळे प्यायला पाणी मिळेल. काही प्रमाणात शेती होईल. पण हे जेवढ्यास तेवढेच असेल.

सर्वत्र पाऊस पडत आहे. रान हिरवेगार झाले आहे. फळाफुलांनी झाडे लगडली आहेत, अशी दृश्ये कधीच आणि कुठेही दिसणार नाही. बा. भ. बोरकरांच्या कवितेतील रमणीय दृश्य हे कल्पनारम्य चित्रपटातील फॅन्टसीसारखे असेल फक्त.

समुद्रातून पाणी मिळवण्याचा उपाय तसा खूप महागडा असेल. त्यातून सर्व मानवजातीच्या सर्व गरजा भागवता येणे अशक्य होईल. उपासमार मोठ्या प्रमाणात होईल. दंगली घडतील. लुटालुटीचे प्रकार सुरू होतील.

थोडकीच माणसे शिल्लक राहिली, तर ती जगूच शकणार नाहीत. इतर प्राणी त्यांना जगू देणार नाहीत. माणूस फक्त स्वत:साठी पाणी मिळवील. पण उरलेल्या प्राणिसृष्टीचे काय? ही प्राणिसृष्टी माणसांवर चाल करून येईल. वरवर वाटते तितके जीवन सोपे नसेल. माणसांचे, प्राण्यांचे मृतदेह सर्वत्र दिसू लागतील. त्यांतून कल्पनातीत रोगांची निर्मिती होईल. एकूण काय? ती सर्वनाशाकडची वाटचाल असेल.

पाऊस नसेल, तर वीजही नसेल. एका रात्रीत सर्व कारखाने थंडगार पडतील. पाणी नसल्यामुळे शेती नसेल. फळबागाईत नसेल. नेहमीच्या अन्नधान्यासाठी माणूस समुद्रातून पाणी काढील, इथपर्यंत ठीक आहे. पण अन्य अनेक पिके घेणे महाप्रचंड कठीण होईल. या परिस्थितीतून अल्प माणसांकडे काही अधिकीच्या गोष्टी असतील. बाकी प्रचंड समुदाय दारिद्र्यात खितपत राहील. त्यातून प्रचंड अराजक माजेल. याची भीषण चित्रे रंगवण्याची गरजच नाही. अल्पकाळातच जीवसृष्टी नष्ट होईल. उरेल फक्त रखरखीत, रणरणते वाळवंट. सूर्यमालिकेतील कोणत्याच ग्रहावर जीवसृष्टी अशीच नष्ट झाली नसेल ना?

नको, नको ते प्रश्न आणि त्या दृश्यांची ती वर्णने! एकच चिरकालिक सत्य आहे. ते म्हणजे पाऊस हवा, आषाढघन बरसायला हवाच!

प्रश्न 5.
वैचारिक निबंध –
तंत्रज्ञानाची किमया.
वाचते होऊया.
उत्तर :
वैचारिक निबंध

वैचारिक निबंधात विचाराला महत्त्व असते. मात्र, सर्व वैचारिक निबंध एकाच स्वरूपाचे नसतात. (यामध्ये विचारप्रधान, चिंतनपर, समस्याप्रधान, चर्चात्मक अशा स्वरूपांचे निबंध असतात.) काही निबंधांत विचाराला महत्त्व असते. उदा., ‘अहिंसा हाच श्रेष्ठ धर्म’, ‘दया, क्षमा, शांती हाच जीवनाचा आधार’, ‘त्यागात मैत्रीचा आत्मा’ इत्यादी. काही निबंध समस्याप्रधान असतात. उदा., ‘पर्यावरणाचा हास’, ‘फॅशनचे वेड’, ‘बालमजुरी’, ‘बेकारी’, ‘स्त्रियांवरील अत्याचार’ इत्यादी. अशा निबंधांत समस्या मांडलेली असते आणि त्या अनुषंगाने लेखक आपले विचार मांडतो. तर काही निबंध हे वादविवादात्मक स्वरूपाचे असतात. उदा., ‘मोबाइल – शाप की वरदान’, ‘आजचे तरुण बिघडले आहेत काय?’, ‘आजची स्त्री – अबला की सबला?’ इत्यादी.

वैचारिक निबंध कोणत्याही स्वरूपाचा असला, तरी त्यात एक विचार मांडलेला असतो. कोणत्याही विषयाला नेहमी दोन बाजू असतात. एक अनुकूल आणि दुसरी प्रतिकूल. अशा निबंधात केवळ आपलीच बाजू – म्हणजे अनुकूल बाजू – मांडून चालत नाही. त्या विषयाची दुसरी बाजू – म्हणजे आपल्याला न पटणारी बाजूसुद्धा – मांडावी लागते.

अशा प्रकारच्या निबंधाची मांडणी साधारणपणे पुढील प्रकारची असते :

प्रास्ताविकात विषयाची सदयःस्थिती मांडावी. त्यानंतर विरुद्ध बाजू मांडावी. लगेचच त्या बाजूतील उणिवा दाखवाव्यात. याला ‘खंडन’ असे म्हणतात. मग आपली बाजू मांडावी. याला ‘मंडन’ असे म्हणतात. खंडन – मंडन करताना दाखले दयावेत. अखेरीला आपल्या विचाराबाबतचा स्वत:चा निष्कर्ष नोंदवावा.

वैचारिक निबंधाचा एक नमुना :

सादरीकरण – एक जीवनावश्यक कौशल्य

[मुद्दे : समूहात राहणे ही माणसाची जीवनावश्यक गरज – त्यामुळे इतरांसमोर कौशल्याने सादर होणे – दैनंदिन जीवनात अनौपचारिक सादरीकरण – आधुनिक जीवन गुंतागुंतीचे – सतत विविध समूहांसमोर सादर होण्याची निकड – विशिष्ट कौशल्ये आवश्यक – पूर्वीचे जीवन शांत, संथ – सादरीकरणाचा अभ्यास करणे निकडीचे.]

असे म्हणतात की, माणूस हा सामाजिक प्राणी आहे. तो समूह करून राहतो. तो एकेकटा, स्वतंत्रपणे जगूच शकणार नाही. तो माणसांत, माणसांसोबत राहतो. तो त्याचा जगण्याचा आधारच आहे. हा आधार नसेल, तर माणूस वेडापिसाच होईल. म्हणूनच, प्राचीन काळापासून ते अगदी आजतागायत जगभर सर्व देशांमध्ये माणसाला शिक्षा केली जाते ती तुरुंगवासाची. त्याला त्याच्या कुटुंबीयांपासून, मित्रांपासून, समाजापासून तोडून टाकण्याची ती शिक्षा असते. बाह्य जगाशी कोणताही संपर्क येऊ दयायचा नाही, हीच ती शिक्षा असते. ही शिक्षा माणसाला मृत्युदंडापेक्षाही भीषण वाटत आलेली आहे. समाजात राहणे ही त्याची जीवनावश्यक गरज आहे.

समाजात राहायचे म्हणजे दुसऱ्यांच्या सोबतीने, त्यांच्या सहकार्याने राहायचे. म्हणूनच ज्यांच्यासोबत आपण राहतो, वावरतो त्यांना आपल्या इच्छा – आकांक्षा, भावना – विचार समजावून सांगणे आवश्यक ठरते. इतरांच्या इच्छा – आकांक्षांना तडे न जाता आपल्या मनाप्रमाणे जगता आले पाहिजे. म्हणूनच आपल्या कल्पना – भावना, विचार इतरांना समजावून सांगणे हे अत्यंत कौशल्याचे ठरते. याच्यासाठी सादरीकरणाची गरज आहे. स्वत:ची मते पद्धतशीरपणे समजावून सांगण्यासाठी खास युक्तिवाद करावा लागतो. ही सर्व पद्धत म्हणजेच ‘सादरीकरण’ होय.

सादरीकरणाशिवाय माणूस नाही. सादरीकरण हा माणसाच्या जगण्याचाच एक भाग आहे. आपले बोलणे, चालणे, उठणे, बसणे, वागणे, हातवारे करणे किंबहुना आपली देहबोली हे आपले सादरीकरणच होय. या सादरीकरणातून आपले व्यक्तिमत्त्व व्यक्त होत असते. आपण फारच थोड्या कृती एकट्याने, खाजगीरीत्या करतो. आपले बहुतांशी जगणे इतरांसमोर, इतरांसोबतच घडत असते. म्हणजे आपण इतरांसमोर सदोदित सादरीकरणच करीत असतो म्हणा ना!

हे सादरीकरण अनौपचारिक पद्धतीने घडत असते. म्हणूनच आईवडील किंवा अन्य वडीलधारी माणसे “उठता – बसता काळजी घे”, “असा उभा राहू नकोस, तसा राहा’ या अशा सूचना करतात. इतरांसमोर आपले व्यक्तिमत्त्व चांगल्या रितीने प्रकट व्हावे, ही त्यांची इच्छा असते. म्हणजेच आपल्या देहबोलीला, आपल्या वागण्याबोलण्याला किती महत्त्व आहे, हे लक्षात येईल.

मात्र, आताचे जीवन खूप जटिल बनले आहे. खूप व्यामिश्र बनले आहे. जागतिकीकरणामुळे संपूर्ण मानवी जीवनच ढवळून निघाले आहे. कामांचे स्वरूप व व्याप्ती वाढली आहे. विविध प्रकारचे उदयोगव्यवसाय निर्माण झाले आहेत. संगणक, इंटरनेट, मोबाइल यांसारख्या माहिती तंत्रज्ञानाच्या दूतांमुळे सर्व व्यवहारांचे स्वरूप आरपार बदलले आहे. सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक क्षेत्रांत अनेकानेक घडामोडी घडताहेत. यासाठी चर्चा, परिषदा, मेळावे, बैठका, संमेलने, शिबिरे इत्यादी आयोजित केली जात आहेत. माणसांना विविध कारणांनी असे एकत्र यावे लागत आहे.

अशा वेळी समूहासमोर आपल्या कल्पना, आपली मते व्यक्त करण्याची, सगळ्यांना आपले विचार समजावून सांगण्याची वेळ येते. आधुनिक काळात या सगळ्याला आपल्याला सामोरे जावे लागत आहे. हे टाळता येणे शक्यच नाही. अन्यथा आपल्याला नोकरी, धंदा वा व्यवसाय करताच येणार नाही. येथे सादरीकरणाचा संबंध येतो. अशा या सादरीकरणाशिवाय आपण जगूच शकणार नाही.

काही वर्षांपूर्वीचे जीवन हे शांत, संथ होते. तेथे कोणाला, कशाचीही घाई नव्हती किंवा अगत्यही नव्हते. म्हणून कोणीही सैलपणाने वागला तरी ते चालून जाई. आता मात्र ते शक्य नाही. म्हणून सादरीकरणाचा अभ्यासही करावा लागेल. दुसऱ्यांसमोर आपण सादर होतो तेव्हा, उभे राहणे, बोलणे, हातवारे करणे या सगळ्यांचा काटेकोर अभ्यास करावा लागेल. कोणत्या हेतूने व कोणत्या प्रकारच्या लोकांसमोर आपण उभे राहिलो आहोत, हे लक्षात घेऊन आपल्याला आपल्या सादरीकरणाची रीत ठरवावी लागेल. सादरीकरण हे आता दुर्लक्ष करण्याएवढे बिनमहत्त्वाचे राहिले नाही. आपण शाळा – कॉलेजात अभ्यास करतो, तसा सादरीकरणाचा अभ्यास करावा लागेल. सातत्याने सराव करावा लागेल. तर आणि तरच आपला आधुनिक जगात टिकाव लागणार आहे.

निबंध लेखन प्रस्तावना

निबंध हा गदयलेखनाचा एक प्रकार आहे. त्यात एखादया विषयाची सांगोपांग माहिती सुसंगतपणे दयायची असते.

निबंधात कधी एखादया समस्येचा ऊहापोह केलेला असतो. समस्येचे स्वरूप, कारणे व उपाय या रितीने त्यात मांडणी केलेली असते. कधी एखादी वस्तू, ठिकाण, परिसर, प्रसंग, व्यक्ती यांचे वर्णन असते; तर कधी विविध सजीव – निर्जीव गोष्टींचे आत्मकथन असते. कधी कधी कल्पनेवर स्वार होऊन अनेक गोष्टींच्या अंतरंगात शिरण्याचा प्रयत्न असतो. त्याचप्रमाणे नकारात्मक गुणांचाही निर्देश करायला हरकत नसते. अशा प्रकारे निबंधात आशय विविध रितींनी मांडलेला असतो.

1. लक्षात ठेवा

  • निबंधाची सुरुवात आकर्षक, लक्षवेधक हवी आणि आपले मत ठाशीवपणे मांडणारा परिणामकारक शेवट हवा.
  • सुरुवातीच्या काळात कोणालाही कोणताही निबंध एका दमात, एका झटक्यात लिहिता येत नाही. पुन:पुन्हा सुधारणा करून पुनर्लेखन करावे लागते.
  • परीक्षेत ठरावीक मिनिटांत निबंध लिहावा लागतो. पुन:पुन्हा लिहिण्यास वेळ नसतो. निबंध लिहिण्याचा सातत्याने सराव केला पाहिजे. निबंधाच्या विषयानुसार प्रथम मुद्दे तयार करावेत. ते क्रमाने मांडावेत. मुद्द्यांना अनुसरून परिच्छेद पाडले पाहिजेत.
  • निबंध ठरावीक शब्दसंख्येत बसवावा. या त – हेने वेगवेगळ्या विषयांवरचे निबंध तयार करावेत.
  • म्हणी, वाक्प्रचार, सुभाषिते, विविध भाषांतील अवतरणे यांचा गरजेनुसार व प्रमाणशीर वापर करावा.
  • शब्दरचना व वाक्यरचना अर्थपूर्ण असावी. ज्या शब्दांचा अर्थ निश्चितपणे माहीत नाही, त्यांचा उपयोग करू नये.
  • पाल्हाळीकपणा टाळावा.
  • स्वत:च्या शब्दांतच निबंध लिहावा. दुसऱ्याचा निबंध उतरवून काढू नये किंवा त्याची घोकंपट्टी करू नये.
  • लेखनाचे नियम, विरामचिन्हे यांबाबत दक्षता बाळगावी.
  • शब्दसंपत्ती, भाषाशैली यांचा विकास व्हावा, म्हणून वृत्तपत्रे व पाठ्यपुस्तकेतर पुस्तके यांचे नियमित वाचन अवश्य करावे.
  • टिपणे, कात्रणे यांचा संग्रह करण्याची सवय लावावी.
  • शा प्रकारे सराव केल्यास मुद्देसूदपणे व आटोपशीरपणे निबंध लिहिण्याचे कौशल्य प्राप्त होते. परीक्षेत कोणत्याही विषयावरचा निबंध लिहिण्यास हे कौशल्य उपयोगी पडते.

2. अभ्यासक्रमातील निबंधाचे प्रकार :

निबंधाच्या आशयानुसार निबंधाचे अनेक प्रकार मानले जातात. त्यांपैकी पुढील पाच प्रकार इयत्ता १२वीच्या अभ्यासक्रमात समाविष्ट करण्यात आले आहेत :

कल्पनाप्रधान निबंधाचा एक नमुना :

आषाढघनाचे आगमन झाले नाही तर?

[मुद्दे : असा प्रश्न मनात येण्याचे कारण – प्रथम जाणवणारा दुष्परिणाम – निसर्गसौंदर्याचा नाश – आषाढ धो धो पावसाचा महिना – अतिवृष्टीच्या परिणामांपासून मुक्ती – पाण्याच्या अभावाचे परिणाम – मानवी प्रयत्न – पाणी मिळवणे महागडे – पाण्याविना तडफडणारी सर्वच प्राणिसृष्टी – आधुनिक जीवन ठप्प – गरीबश्रीमंत दरी – सर्वनाशाकडे वाटचाल.]

मध्यंतरी कोरोनाने अक्षरश: हैदोस घातला होता. जगातली सर्व कुटुंबे आपापल्या घरात कोंडून पडली होती. माणसाच्या गेल्या दहा हजार वर्षांच्या इतिहासात पहिल्यांदाच घडले हे. निसर्गाने माणसाला शिक्षाच दयायला सुरुवात केली नसेल ना? गेली दहा हजार वर्षे माणूस स्वार्थासाठी निसर्गाला ओरबाडतो आहे. पर्यावरण उद्ध्वस्त करीत आहे. त्याचा बदला तर नाही ना हा? आणखी काय काय घडणार आहे कोण जाणे! सध्याचाच ताप पाहा आधी. तापमानाचा पारा ४०°ला स्पर्श करीत आहे. आता पाऊस येईल तेव्हाच गारवा. त्यातच पाऊस या वर्षी उशिरा आला तर? अरे देवा! पण तो आलाच नाही तर? आषाढघनाचे दर्शनच घडले नाही तर?

परवाच बा. भ. बोरकर यांची कविता वाचत होतो. वाचता वाचता हरखून गेलो होतो. या पावसाळ्यात जायचेच, असा आमच्या घरात बेत आखला जात होता. गावी जायला मिळाले, तर आषाढघनाने नटलेले निसर्गसौंदर्य डोळे भरून पाहता येईल. कोमल, नाजूक पाचूच्या रांगांची हिरवीगार शेते, पोवळ्याच्या रंगाची लाल माती, रत्नांच्या प्रभेसारखी बांबूची बेटे, सोनचाफा, केतकी, जाईजुई यांचे आषाढस्पर्शाने प्रफुल्लित झालेले सौंदर्य अनुभवायला मिळेल, हे खरे आहे. पण पाऊसच नसेल तर?

आषाढ महिना हा धुवाधार पावसाचा महिना. गडगडाटासह धो धो कोसळणाऱ्या पावसाचा महिना. कधी कधी हे आषाढघन रौद्ररूप धारण करतात. गावेच्या गावे जलमय होतात. डोंगरकडे कोसळतात. घरे बुडतात. गटारे ओसंडून वाहतात. सांडपाण्याची, मलमूत्राची सर्व घाण रस्तोरस्ती पसरते. घराघरात घुसते. मुकी जनावरे बिचारी वाहून जातात. हे सर्व परिणाम किरकोळ वाटावेत, अशी भीषण संकटे समोर उभी ठाकतात. दैनंदिन जीवन कोलमडून पडते. रोगराईचे तांडव सुरू होते. पाऊस नसेल, तर हे सर्व टळेल, यात शंकाच नाही.

मात्र, पाण्याशिवाय जीवन नाही. आणि माणूस हा तर करामती प्राणी आहे. तो पाणी मिळवण्याचे मार्ग शोधू लागेल. समुद्राचे पाणी वापरण्याजोगे करण्याचे कारखाने सुरू होतील. त्यामुळे प्यायला पाणी मिळेल. काही प्रमाणात शेती होईल. पण हे जेवढ्यास तेवढेच असेल.

सर्वत्र पाऊस पडत आहे. रान हिरवेगार झाले आहे. फळाफुलांनी झाडे। लगडली आहेत, अशी दृश्ये कधीच आणि कुठेही दिसणार नाही. बा. भ. बोरकरांच्या कवितेतील रमणीय दृश्य हे कल्पनारम्य चित्रपटातील फॅन्टसीसारखे असेल फक्त.

समुद्रातून पाणी मिळवण्याचा उपाय तसा खूप महागडा असेल. त्यातून सर्व मानवजातीच्या सर्व गरजा भागवता येणे अशक्य होईल. उपासमार मोठ्या प्रमाणात होईल. दंगली घडतील. लुटालुटीचे प्रकार सुरू होतील. थोडकीच माणसे शिल्लक राहिली, तर ती जगूच शकणार नाहीत. इतर प्राणी त्यांना जगू देणार नाहीत. माणूस फक्त स्वत:साठी पाणी मिळवील. पण उरलेल्या प्राणिसृष्टीचे काय? ही प्राणिसृष्टी माणसांवर चाल करून येईल. वरवर वाटते तितके जीवन सोपे नसेल. माणसांचे, प्राण्यांचे मृतदेह सर्वत्र दिसू लागतील. त्यांतून कल्पनातीत रोगांची निर्मिती होईल. एकूण काय? ती सर्वनाशाकडची वाटचाल असेल.

पाऊस नसेल, तर वीजही नसेल. एका रात्रीत सर्व कारखाने थंडगार पडतील. पाणी नसल्यामुळे शेती नसेल. फळबागाईत नसेल. नेहमीच्या अन्नधान्यासाठी माणूस समुद्रातून पाणी काढील, इथपर्यंत ठीक आहे. पण अन्य अनेक पिके घेणे महाप्रचंड कठीण होईल. या परिस्थितीतून अल्प माणसांकडे काही अधिकीच्या गोष्टी असतील. बाकी प्रचंड समुदाय दारिद्र्यात खितपत राहील. त्यातून प्रचंड अराजक माजेल. याची भीषण चित्रे रंगवण्याची गरजच नाही. अल्पकाळातच जीवसृष्टी नष्ट होईल. उरेल फक्त रखरखीत, रणरणते वाळवंट. सूर्यमालिकेतील कोणत्याच ग्रहावर जीवसृष्टी अशीच नष्ट झाली नसेल ना?

नको, नको ते प्रश्न आणि त्या दृश्यांची ती वर्णने! एकच चिरकालिक १ सत्य आहे. ते म्हणजे पाऊस हवा, आषाढघन बरसायला हवाच!

वैचारिक निबंध

वैचारिक निबंधात विचाराला महत्त्व असते. मात्र, सर्व वैचारिक निबंध एकाच स्वरूपाचे नसतात. (यामध्ये विचारप्रधान, चिंतनपर, समस्याप्रधान, चर्चात्मक अशा स्वरूपांचे निबंध असतात.) काही निबंधांत विचाराला महत्त्व असते. उदा., ‘अहिंसा हाच श्रेष्ठ धर्म’, ‘दया, क्षमा, शांती हाच जीवनाचा आधार’, ‘त्यागात मैत्रीचा आत्मा’ इत्यादी. काही निबंध समस्याप्रधान असतात. उदा., ‘पर्यावरणाचा हास’, ‘फॅशनचे वेड’, ‘बालमजुरी’, ‘बेकारी’, ‘स्त्रियांवरील अत्याचार’ इत्यादी. अशा निबंधांत समस्या मांडलेली असते आणि त्या अनुषंगाने लेखक आपले विचार मांडतो. तर काही निबंध हे वादविवादात्मक स्वरूपाचे असतात. उदा., ‘मोबाइल – शाप की वरदान’, ‘आजचे तरुण बिघडले आहेत काय?’, ‘आजची स्त्री – अबला की सबला?’ इत्यादी.

वैचारिक निबंध कोणत्याही स्वरूपाचा असला, तरी त्यात एक विचार मांडलेला असतो. कोणत्याही विषयाला नेहमी दोन बाजू असतात. एक अनुकूल आणि दुसरी प्रतिकूल. अशा निबंधात केवळ आपलीच बाजू – म्हणजे अनुकूल बाजू – मांडून चालत नाही. त्या विषयाची दुसरी बाजू – म्हणजे आपल्याला न पटणारी बाजूसुद्धा – मांडावी लागते.

अशा प्रकारच्या निबंधाची मांडणी साधारणपणे पुढील प्रकारची असते :

प्रास्ताविकात विषयाची सदय:स्थिती मांडावी. त्यानंतर विरुद्ध बाजू मांडावी. लगेचच त्या बाजूतील उणिवा दाखवाव्यात. याला ‘खंडन’ असे म्हणतात. मग आपली बाजू मांडावी. याला ‘मंडन’ असे म्हणतात. खंडन – मंडन करताना दाखले दयावेत. अखेरीला आपल्या विचाराबाबतचा स्वत:चा निष्कर्ष नोंदवावा.

वैचारिक निबंधाचा एक नमुना :

सादरीकरण – एक जीवनावश्यक कौशल्य

[मुद्दे : समूहात राहणे ही माणसाची जीवनावश्यक गरज – त्यामुळे इतरांसमोर कौशल्याने सादर होणे – दैनंदिन जीवनात अनौपचारिक सादरीकरण – आधुनिक जीवन गुंतागुंतीचे – सतत विविध समूहांसमोर सादर होण्याची निकड – विशिष्ट कौशल्ये आवश्यक – पूर्वीचे जीवन शांत, संथ – सादरीकरणाचा अभ्यास करणे निकडीचे.]

असे म्हणतात की, माणूस हा सामाजिक प्राणी आहे. तो समूह करून राहतो. तो एकेकटा, स्वतंत्रपणे जगूच शकणार नाही. तो माणसांत, माणसांसोबत राहतो. तो त्याचा जगण्याचा आधारच आहे. हा आधार नसेल, तर माणूस वेडापिसाच होईल. म्हणूनच, प्राचीन काळापासून ते अगदी आजतागायत जगभर सर्व देशांमध्ये माणसाला शिक्षा केली जाते ती तुरुंगवासाची. त्याला त्याच्या कुटुंबीयांपासून, मित्रांपासून, समाजापासून तोडून टाकण्याची ती शिक्षा असते. बाह्य जगाशी कोणताही संपर्क येऊ दयायचा नाही, हीच ती शिक्षा असते. ही शिक्षा माणसाला मृत्युदंडापेक्षाही भीषण वाटत आलेली आहे. समाजात राहणे ही त्याची जीवनावश्यक गरज आहे.

समाजात राहायचे म्हणजे दुसऱ्यांच्या सोबतीने, त्यांच्या सहकार्याने राहायचे. म्हणूनच ज्यांच्यासोबत आपण राहतो, वावरतो त्यांना आपल्या इच्छा – आकांक्षा, भावना – विचार समजावून सांगणे आवश्यक ठरते. इतरांच्या इच्छा – आकांक्षांना तडे न जाता आपल्या मनाप्रमाणे जगता आले पाहिजे. म्हणूनच आपल्या कल्पना – भावना, विचार इतरांना समजावून सांगणे हे अत्यंत कौशल्याचे ठरते. याच्यासाठी सादरीकरणाची गरज आहे. स्वत:ची मते पद्धतशीरपणे समजावून सांगण्यासाठी खास युक्तिवाद करावा लागतो. ही सर्व पद्धत म्हणजेच ‘सादरीकरण’ होय.

सादरीकरणाशिवाय माणूस नाही. सादरीकरण हा माणसाच्या जगण्याचाच एक भाग आहे. आपले बोलणे, चालणे, उठणे, बसणे, वागणे, हातवारे करणे किंबहुना आपली देहबोली हे आपले सादरीकरणच होय. या सादरीकरणातून आपले व्यक्तिमत्त्व व्यक्त होत असते. आपण फारच थोड्या कृती एकट्याने, खाजगीरीत्या करतो. आपले बहुतांशी जगणे इतरांसमोर, इतरांसोबतच घडत असते. म्हणजे आपण इतरांसमोर सदोदित सादरीकरणच करीत असतो म्हणा ना!

हे सादरीकरण अनौपचारिक पद्धतीने घडत असते. म्हणूनच आईवडील किंवा अन्य वडीलधारी माणसे “उठता – बसता काळजी घे”, “असा उभा राहू नकोस, तसा राहा” या अशा सूचना करतात. इतरांसमोर आपले व्यक्तिमत्त्व चांगल्या रितीने प्रकट व्हावे, ही त्यांची इच्छा असते. म्हणजेच आपल्या देहबोलीला, आपल्या वागण्याबोलण्याला किती महत्त्व आहे, हे लक्षात येईल.

मात्र, आताचे जीवन खूप जटिल बनले आहे. खूप व्यामिश्र बनले आहे. जागतिकीकरणामुळे संपूर्ण मानवी जीवनच ढवळून निघाले आहे. कामांचे स्वरूप व व्याप्ती वाढली आहे. विविध प्रकारचे उदयोगव्यवसाय निर्माण झाले आहेत. संगणक, इंटरनेट, मोबाइल यांसारख्या माहिती तंत्रज्ञानाच्या दूतांमुळे सर्व व्यवहारांचे स्वरूप आरपार बदलले आहे. सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक क्षेत्रांत अनेकानेक घडामोडी घडताहेत. यासाठी चर्चा, परिषदा, मेळावे, बैठका, संमेलने, शिबिरे इत्यादी आयोजित केली जात आहेत. माणसांना विविध कारणांनी असे एकत्र यावे लागत आहे. अशा वेळी समूहासमोर आपल्या कल्पना, आपली मते व्यक्त करण्याची, सगळ्यांना आपले विचार समजावून सांगण्याची वेळ येते. आधुनिक काळात या सगळ्याला आपल्याला सामोरे जावे लागत आहे. हे टाळता येणे शक्यच नाही. अन्यथा आपल्याला नोकरी, धंदा वा व्यवसाय करताच येणार नाही. येथे सादरीकरणाचा संबंध येतो.

अशा या सादरीकरणाशिवाय आपण जगूच शकणार नाही.

काही वर्षांपूर्वीचे जीवन हे शांत, संथ होते. तेथे कोणाला, कशाचीही घाई नव्हती किंवा अगत्यही नव्हते. म्हणून कोणीही सैलपणाने वागला तरी ते चालून जाई. आता मात्र ते शक्य नाही. म्हणून सादरीकरणाचा अभ्यासही करावा लागेल. दुसऱ्यांसमोर आपण सादर होतो तेव्हा, उभे राहणे, बोलणे, हातवारे करणे या सगळ्यांचा काटेकोर अभ्यास करावा लागेल. कोणत्या हेतूने व कोणत्या प्रकारच्या लोकांसमोर आपण उभे राहिलो आहोत, हे लक्षात घेऊन आपल्याला आपल्या सादरीकरणाची रीत ठरवावी लागेल. सादरीकरण हे आता दुर्लक्ष करण्याएवढे बिनमहत्त्वाचे राहिले नाही. आपण शाळा – कॉलेजात अभ्यास करतो, तसा सादरीकरणाचा अभ्यास करावा लागेल. सातत्याने सराव करावा लागेल. तर आणि तरच आपला आधुनिक जगात टिकाव लागणार आहे.

सरावासाठी काही विषय

पुढील विषयावर सुमारे ३०० शब्दांत निबंध लिहा :

[टीप : बारावीच्या अभ्यासक्रमातील निबंधांच्या प्रकारांचे विवरण करताना प्रत्येक प्रकारातील एक – एक निबंध नमुन्यादाखल दिला आहे. येथे सरावासाठी निबंध – प्रकारानुसार निबंधांचे विषय व त्यांचे मुद्दे दिलेले आहेत.]

1. वर्णनात्मक निबंध

(१) माझा महाविदयालयातील पहिला दिवस

[मुद्दे : महाविदयालयात अधीरतेने प्रवेश – भुरळ घालणारे वातावरण – वर्गाचे आनंददायी दर्शन – महाविदयालयात फेरफटका – प्राचार्यांचे स्वागतपर भाषण – अखेरीला घरी परत.]

(२) आमच्या महाविदयालयातील स्नेहसंमेलन

[मुद्दे : स्नेहसंमेलनाचा दिवस – रंगमंचावर नाटक सादर करण्याची धुंदी पडदयामागील कृतींमध्येही – सर्वांच्या अंगात संमेलनाचा संचार – संमेलनात माझा सहभाग – कार्यक्रमाच्या व्यवस्थापनाची जबाबदारी – प्राध्यापकांच्या नकला, गायन, वादन, नर्तन, नाट्यछटा इत्यादी – गमतीदार स्पर्धा – संमेलन यशस्वी – सहभागाचा फार मोठा आनंद.]

(३) सूर्योदयाची सुवर्णशोभा

[मुद्दे : दिवसाचे प्रहर – नवीन दिवसाची सुरुवात – अंधाराचा नाश – सकाळचा निसर्ग व प्रसन्न वातावरण – चराचरात बदल – मानवाला दिलासा व कार्य करण्याची उमेद – सूर्योदयाचे सौंदर्य.]

(४) श्रावणातला पाऊस

[मुद्दे : प्रास्ताविक – आषाढातला पाऊस – धसमुसळेपणा करणारा – श्रावणातला पाऊस – अलवारपणा, मुलायमपणा यांचे दर्शन घडवणारा – जीवनातील सर्व कोमलता श्रावणातील पावसाकडे; म्हणूनच निसर्गाची, सौंदर्याची विविध लेणी – श्रावणातील पावसाचे एक अद्भुत दर्शन.]

(५) आमचे कनिष्ठ महाविद्यालय

[मुद्दे : कनिष्ठ महाविदयालयात प्रवेश घेण्यापूर्वी हुरहुर, उत्सुकता – काही दिवसांनी नावीन्य संपले – दैनंदिन जीवनाचा भाग – सर्वत्र मित्रांसोबत हास्य – उल्हासात वावर – आवार फार मोठे, विस्तृत नाही – इमारतही लहानच – अत्याधुनिकता, चकचकीतपणा नाही – तरीही सुंदर – विविध वर्गखोल्या, वाचनालय येथे बसण्याची, अभ्यासाची जागा निश्चित – मैदान, मनोरंजन कक्ष, कँटीन ही आनंदाची ठिकाणे – त्याचबरोबर माहितीत, ज्ञानात नवनवीन भर – नवीन कौशल्ये आत्मसात – व्यक्तिमत्त्व विकसित.]

(६) माझे आवडते शिक्षक

[मुद्दे : आवडते शिक्षक कोण? – सर्व विदयार्थ्यांचे आवडते – व्यक्तिमत्त्व वर्णन – वेशभूषा – विषय समजावून सांगण्याची हातोटी – शैक्षणिक साधनांसाठी आधुनिक तंत्रज्ञानाचा उपयोग – दैनंदिन जीवनातील साध्या प्रसंगाच्या वर्णनातून विषय शिकवायला सुरुवात – कल्पक उपक्रम – असे शिक्षक लाभले हे माझे भाग्यच.]

(७) मी पाहिलेला क्रिकेटचा सामना

[मुद्दे : आवडता खेळ – संधी मिळेल तेव्हा हाच खेळ खेळतो – कोणाचाही खेळ पाहायला आवडते – एकदा एका गल्लीतील खेळ – सुरुवातीपासून अटीतटीचा खेळ – रोमहर्षक – दोन्ही संघांची सरस कामगिरी – कोणाचा विजय, कोणाचा पराजय सांगणे अशक्य – क्षेत्ररक्षणामुळे एका संघाचा विजय – दोघांनीही एकमेकांचे अभिनंदन केले – दोन्ही कप्तानांनी प्रतिस्पर्धी संघाचे भरभरून कौतुक केले.]

(८) पावसाळ्यातील एक दिवस

[मुद्दे : नकोसा झालेला उन्हाळा – पावसाची प्रतीक्षा – कडक उन्हाचा वातावरणावर झालेला परिणाम – वरुणाची आराधना – शेतकऱ्यांची केविलवाणी स्थिती – पावसाचे अचानक आगमन – आनंदाची लहर – पावसाचे रौद्र स्वरूप – पावसाने केलेली किमया – वातावरणातील सुखद बदल – पक्ष्यांचा आनंद – पावसाचे स्वागत – शेतकऱ्याची बदललेली मन:स्थिती.]

(९) डोंगरमाथ्यावरील गाव

[मुद्दे : आंबोली – निसर्गाचे वरदान लाभलेले एक गाव – गरिबांचे महाबळेश्वर – सुंदर ठिकाणे – महादेवगड, नारायणगड – आंबोलीतील नदी – धबधबा – आंबोलीतील झाडे – साधेपणा हाच आगळेपणा.]

2. व्यक्तिचित्रणात्मक निबंध

(१०) माझे आवडते शेजारी

[मुद्दे : आमच्या वाडीवरचे शेजारी – परिसरातील सर्वांचे आवडते – व्यक्तिमत्त्व वर्णन – वेशभूषा – परिसरातील लोकांच्या हिताची कळकळ – परिसरातील मुलांना नवीन नवीन उपक्रम देण्याची कल्पकता – आम्ही भाग्यवान शेजारी.]

(११) आमची आरोग्यसेविका

[मुद्दे : गावातील एका सर्वसाधारण पदावरील व्यक्ती – सगळ्यांशी आपुलकीचे वागणे – कामाचे स्वरूप – कामाच्या प्रारंभीच घडलेले दर्शन – कार्यतत्परतेची उदाहरणे – स्वत:च्या कक्षेबाहेर जाऊन लोकहिताचे काम करण्याची वृत्ती – व्यापक दृष्टी – लोकांवर पडलेला प्रभाव.]

(१२) आमची आजी

[मुद्दे : उत्साही वयस्क स्त्री – म्हाताऱ्या स्त्रीच्या रूढ प्रतिमेविरुद्धचे दर्शन – आधुनिक वळणाची – व्यायाम करणारी – नोकरीमुळे बाह्यजगाची ओळख – प्रकृतीची काळजी, आर्थिक नियोजन, ताणतणाव समायोजन – स्वत:च्या आवडीनिवडी जोपासणे.]

(१३) माझी आई

[मुद्दे : आठवणीचा प्रसंग – दिनक्रम – कामांची त्वरा – अनेक आघाड्यांवरील कामे – कडक शिस्त – प्रसंगी धपाटे घालणारी – पण अत्यंत प्रेमळ – आमच्या बरोबर स्वत:च्या करिअरचाही विचार – आदर्श जीवनाचा विचार.]

3. आत्मवृत्तात्मक (आत्मकथनात्मक) निबंध

(१४) पृथ्वीचे मनोगत

[मुद्दे : प्रास्ताविक – पृथ्वीविषयी विचार येण्याचा एखादा प्रसंग – पृथ्वीचे निवेदन – पृथ्वीचे वय – जडणघडण – सर्व सजीव – निर्जीवांची साखळी – पर्यावरणाचे संतुलन – माणसांची संख्यावाढ – पृथ्वीचा – हास – सर्वांच्याच नाशाची शक्यता – पृथ्वीचा उपदेश – ‘पर्यावरणाचा समतोल राखा.’]

(१५) वटवृक्षाची आत्मकहाणी

[मुद्दे : वृक्ष – लहान रोपट्याचे मोठे रूप – माणसाच्या विसाव्याचे ठिकाण – मुळापासून पानापर्यंत सर्व अवयवांचा माणसाला उपयोग – माणसाच्या अनेक कृतींचा साक्षीदार – माणसाला सर्वस्वाने मदत – पर्यावरणाचा आधारस्तंभ – मी टिकलो तरच जीवसृष्टी टिकेल – मी नसेन तर जीवसृष्टी नष्ट – माणूस कृतघ्न – वृक्षाला चिंता – माणसाला विनंती.]

(१६) मी आहे पर्जन्य!

[मुद्दे : मी पाऊस! – माझी अनेक नावे – मी कसा निर्माण होतो? – वर्षाचक्र – मानवावर उपकार – नवनिर्मिती – अन्न, वस्त्र, निवारा – मी नसेन तर… दुष्काळ व जीवनाचा अंत – माझे कर्तव्य व माणसाची जबाबदारी.]

(१७) कर्जबाजारी शेतकऱ्याची कैफियत शेतकऱ्याचे मनोगत

[मुद्दे : कर्जबाजारी शेतकऱ्याचा बोलण्याचा प्रसंग – हताश – आत्महत्या करावी का, या विचारात – चहूबाजूंनी कोंडमारा – अनेकांचा गैरसमज आम्ही आळशी – सुका – ओला दुष्काळ – माणसे, गुरेढोरे यांचे अनंत हाल – आमच्या उत्पादनाला नगण्य किंमत – शिक्षण, आरोग्य यांची प्रचंड आबाळ – कर्जाला दुसरा पर्यायच नसतो – शासनाकडून आम्हांला कर्जमाफी किंवा नको – रस्ता, पाणी, वीज, आरोग्य, शिक्षण आणि शेतमालासाठी विपणन व्यवस्था एवढीच शासनाकडून अपेक्षा – संपूर्ण देशाचेच चित्र बदलता येईल.]

(१८) शौर्यपदक विजेत्या सैनिकाचे मनोगत

[मुद्दे : शौर्यपदक जाहीर झाले त्या वेळची भावना – सैन्यदलात प्रवेश घेण्याचा हेतू सफल – मनात भूतकाळ जागा – सैन्यदलाचे आकर्षण का व कसे? – आधुनिक काळातील संकटे कोणत्या स्वरूपाची? – माहितीजालावरील युद्धे – देशाला त्या दृष्टीनेही तयार राहण्याची गरज – सैनिकाचे काम न संपणारे.]

(१९) एका संगणकाचे मनोगत

[मुद्दे : कामे सुलभ, अचूक व वेगाने – प्रवास, बँका, खरेदी – विक्री इत्यादींसंबंधातील सर्व कामे सुलभ, घरबसल्या – कामकाजात पारदर्शकता – भ्रष्टाचाराला अटकाव – सर्व जग जवळ – जीवनाच्या सर्व क्षेत्रांत आमूलाग्र बदल – माझ्या नावाला बट्टा लागला – गेम खेळणे, इतर कामे बाजूला ठेवून माझ्यातच बुडून जाणे, आरोग्याची काळजी न घेणे वगैरे – संकेतस्थळे हॅक करणे ही गुंडगिरीच – या अपप्रवृत्तींविरुद्ध लढणे आवश्यक.]

(२०) नापास झालेल्या विदयार्थ्याचे आत्मकथन

[मुद्दे : नापास होण्याचा दिवस – त्या दिवसाचा अनुभव – नापासानंतर पुढचा टप्पा? – कारणांचा शोध – निश्चय – अन्य कौशल्ये प्राप्त करण्याचा प्रयत्न – पुढील शिक्षणात यश – अन्य कौशल्यांचा फायदा – व्यावसायिक यश.]

(२१) वृद्धाश्रमातील वृद्धाचे मनोगत

[मुद्दे : प्रवेश केला तेव्हा एक प्रकारची हुरहुर – बरेचसे दु:ख पण थोडी आशा – कालांतराने वातावरण स्पष्ट – सगळेच वृद्ध, सगळेच कमकुवत – आजारांनी त्रस्त झालेले – कंटाळलेले, हताश, दु:खी – घरातले चैतन्य नाही – – आधुनिक जीवनाची आपत्ती – मुलांना घरात म्हातारी माणसे नकोत – समविचारी, समानशील व्यक्तींनी, मित्रांनी म्हातारपणी एकत्र राहण्याचा निर्णय घेणे आवश्यक – स्वत:ला स्वत:तच रमवणारा छंद जोपासणे आवश्यक.]

(२२) सर्कशीतील हत्तीचे मनोगत

[मुद्दे : वृद्ध हत्ती – मनोगत – सध्या सर्कशीत प्राण्यांना बंदी – खूप आनंद – अत्याचार, फटके, गुलामगिरी यांतून सर्वांची मुक्तता – नाइलाजास्तव मनाविरुद्ध कामे करणे – खूप यातना – प्राणिमित्रांमुळे सुटका – पुढच्या जन्मात प्राणिमित्राचा जन्म मिळावा.]

(२३) पूरग्रस्ताची कैफियत

[मुद्दे : पूरग्रस्त मुलगा – जुन्या आठवणी – अनपेक्षित धक्का – झाडा – घरांची पडझड – अनेक घरांत मृत्यू – प्रचंड वाताहत – सगळीकडून मदतकार्य – भ्रष्टाचारामुळे अनेकजण मदतीला वंचित.]

4. कल्पनाप्रधान निबंध

(२४) माणूस हसण्याची शक्ती गमावून बसला तर…

[मुद्दे : हास्य – फक्त माणसाला लाभलेली शक्ती – हास्य हे आनंदाचे, सुखाचे निदर्शक – हसण्याने दु:ख हलके – हास्यवृत्ती असलेली व्यक्ती स्वत:च्या उणिवांकडे तटस्थपणे पाहू शकते – विसंगती हेरण्याची शक्ती लाभते – कोणालाही न दुखावता उणिवा दाखवण्याची शक्ती लाभते – मन सदोदित उत्साहात राहते – कार्यशक्ती वाढते – सहकार्याची वृत्ती वाढते – ही शक्ती गमावल्यास माणसाचे फार मोठे नुकसान – जीवन रूक्ष वाळवंट होईल.]

(२५) झाडांनी प्राणवायू सोडायचे बंद केले तर…

[मुद्दे : झाडांमुळे वातावरणातील प्राणवायूचे प्रमाण टिकते – हवा शुद्ध राहते – झाडांनी प्राणवायू सोडणे बंद केल्यास भीषण परिणाम – वातावरणातील प्राणवायू हळूहळू नष्ट होऊन कार्बन डायऑक्साइडचे प्रमाण वाढेल – हरितगृह परिणाम दिसू लागतील – जागतिक तापमानात वाढ होईल – विविध सूक्ष्म जीवांची वाढ होईल – दोन्ही ध्रुवांकडील बर्फ वितळेल – समुद्रपातळीत वाढ होईल – हळूहळू बराच भाग पाण्याखाली जाईल – ऋतूंची साखळी विस्कटेल – जीवसृष्टीच नष्ट होईल.]

(२६) माणूस बोलणे विसरला तर…

[मुद्दे : माणसाला लाभलेली फार मोठी देणगी – विचार, कल्पना, भावना व्यक्त करण्याचे साधन – सर्व माणसांना एकत्र ठेवणारी शक्ती – – एकमेकांशी संपर्क साधणे ही माणसाची मूलभूत गरज – भाषा नसेल तर माणसाची घुसमट – अनेक व्यावहारिक अडचणी – प्रगतीत फार मोठे अडथळे – न बोलण्यातून गमतीदार प्रसंग – भाषेअभावी आनंदाचा लोप – भाषेशिवाय माणूस अपूर्ण.]

(२७) परीक्षा नसत्या तर…
[मुद्दे : परीक्षांमध्ये गोंधळ उडण्याचे प्रसंग – परीक्षांचा त्रास – दडपण, भीती – सर्वांच्या अपेक्षांचे दडपण – परीक्षा नसत्या तर या अडचणी दूर – विदयार्थ्यांना मोकळा वेळ – पण नवीन अडचणी – कुवत, क्षमता तपासणे अशक्य – विविध पदांसाठी योग्य व्यक्तीची निवड करणे कठीण – कोणतेही काम दर्जेदार होणे अशक्य – उच्च जीवनमान न मिळणे – प्रगती कठीण – समाजाचे नुकसान – परीक्षा आवश्यक.]

(२८) पाऊस पडलाच नाही तर…

[मुद्दे : पाऊस नकोसा वाटावा असा प्रसंग – पाऊस पडलाच नाही, तर पावसामुळे होणारे नुकसान टळेल – सर्वत्र चिखल होऊन सहन करावा लागणारा त्रास टळेल – गटारे तुंबणे, रस्त्यात पाणी साचणे इत्यादी अडचणी उद्भवणार नाहीत – रोगराईचा प्रसार उद्भवणार नाही – पुरामुळे होणारी अपरिमित हानी टळेल – परंतु शेती नसेल – अन्नधान्याचे उत्पादन नाही – वीज नसेल – शेती व उदयोगधंदे नष्ट – विलोभनीय सृष्टिसौंदर्याला पारखे होण्याची वेळ – पाऊस, पाणी हे सर्व निर्मितीचे आदिकारण – पाऊस हवाच.]

(२९) सूर्य उगवला नाही तर…

[मुद्दे : सकाळी वेळेवर उठण्याचा त्रास नाही – रस्त्यावर घाईगडबड नाही – घामाच्या धारा वा उन्हाचा ताप नाही – उन्हामुळे ओढे – नदी – नाले आटणार नाहीत – कितीही वेळ टी. व्ही. पाहता येणे – दिवस नसल्याने शाळेतील मित्र नाहीत – ज्ञानाचा विकास नाही – कारखाने – कार्यालये नसतील – नोकऱ्या नाहीत – पाऊस नसल्याने शेती नाही – उपासमार – प्राणिसृष्टी धोक्यात – सूर्य जीवनदाता – तो हवाच.]

(३०) वृत्तपत्रे बंद पडली तर…

[मुद्दे : हा विचार मनात आणणारा प्रसंग – वर्तमानपत्रात आदल्या दिवसापर्यंतच्याच बातम्या – वाचकांच्या प्रतिसादाला मर्यादित जागा – ताज्या ताज्या घडामोडींच्या समावेशाने इलेक्ट्रॉनिक माध्यमे सत्य लवकर जगासमोर आणतात – बातम्यांची विश्वासार्हता कमी होण्याचा धोका – बातमी पुन्हा तपासून पाहण्याची संधी जाणार – बातम्यांचे स्पष्ट आकलन होण्यास मदत – वर्तमानपत्र कुठेही वाचता येते – वर्तमानपत्रे बंद होणे अशक्य.]

(३१) परीक्षा नसत्या तर…

[मुद्दे : परीक्षा नसत्या तर हा विचार मनात आणणारा प्रसंग – वर्षअखेरीला तीन तासांत तपासणी ही चुकीची पद्धत – परीक्षेमुळे विदयार्थ्यांमध्ये भेदभाव – परीक्षेचा चुकीचा अर्थ – परीक्षा नसेल तर अनागोंदी – मिळालेल्या ज्ञानाची तपासणी म्हणजे परीक्षा – जीवनात प्रत्येक क्षणाला परीक्षा – परीक्षा नसेल तर कामे अशक्य – प्रगती अशक्य.]

(३२) भ्रमणध्वनी (मोबाइल) बंद झाले तर…

[मुद्दे : काही कारणांनी मोबाइलवर बंदी – अनेक दुरुपयोग थांबले – गैरवर्तन नियंत्रणात – पण अल्पावधीतच हाहाकार – अनेक अडचणींना सुरुवात – संवाद थांबला – व्हिडिओ कॉन्फरन्सिंग बंद – म्हणून बैठकांमध्ये वेळाचा अपव्यय – कामांचा, निर्णयांचा वेग मंदावला – बँक सुविधांना वंचित – खरेदीविक्रीत अडथळे – आर्थिक मंदी – नोकऱ्यांमध्ये कपात – अभ्यासात, शासकीय कामांत अडथळे – नागरिकांच्या हातचे एक समर्थ साधन गायब.]

5. वैचारिक निबंध

(३३) स्त्री – कुटुंबव्यवस्थेचा कणा

[मुद्दे : कुटुंब हा समाजाचा महत्त्वाचा मूलभूत घटक – समाजाला टिकवून ठेवणारा – कुटुंबातील मुले, प्रौढ व वृद्ध या सगळ्यांची काळजी वाहिली जाते – म्हणून कुटुंब महत्त्वाचे – कुटुंबातील मुख्य स्त्रीमुळे कुटुंब टिकून राहते – मुलांच्या खाण्यापिण्याची, अभ्यासाची, भवितव्याची चिंता मुख्यतः स्त्रीच वाहते – वृद्धांच्या गरजांबाबत तीच दक्ष असते – घरातील सगळी माणसे भावनिकदृष्ट्या स्त्रीला बांधलेली – स्त्री नसेल तर घरातील वातावरण कोरडे होते; नाती विस्कटतात – स्त्रीच कुटुंबाला धरून ठेवते.]

(३४) समाज घडवण्यात युवकांची जबाबदारी

[मुद्दे : आज देशापुढे अनेक आव्हाने – या आव्हानांना तरुणच सामोरे जाऊ शकतात – उदा., भ्रष्टाचार – कोणत्याही परिस्थितीला तोंड देण्यास मानसिकदृष्ट्या तरुणच तयार असतात – ज्येष्ठ व्यक्ती तडजोडीला पटकन तयार होतात – यामुळे भ्रष्टाचाराला वाव – राजकारण – समाजकारण यांत सुधारणा आवश्यक – आधुनिक जीवनाला अनुसरून नवीन समाजरचना हवी – ज्येष्ठांना नवीन रचना झेपत नाही – उदयोग – व्यापारात धडाडी हवी – ज्येष्ठांपेक्षा तरुणच धडाडीने काम करू शकतात.].

(३५) संगणक साक्षरता : काळाची गरज

[मुद्दे : मानवी जीवनाच्या प्रत्येक क्षेत्रात संगणकाचा प्रवेश – संगणकाबद्दल अनेक तक्रारी – मात्र, संगणकाचे अनेक फायदे – पावलोपावली संगणकाची गरज – संगणक साक्षरता अटळ – – अन्यथा प्रगती नाही.]

(३६) आजच्या काळातील बदलते स्त्री – जीवन

[मुद्दे : स्त्री – परंपरा – दोन पिढ्यांतील अंतर – शिक्षणाचे , परिणाम – पाश्चात्त्य संस्कृतीचे अनुकरण – स्त्रीचे वळण – 3 स्त्रीचे नवे वळण – नवी स्त्री स्वावलंबी – पुरुषप्रधान । संस्कृतीचे वर्चस्व – विविध क्षेत्रांत आघाडी – स्त्री – मुक्तीची वाटचाल – परिवर्तन.]

(३७) विज्ञानयुगातील अंधश्रद्धा

[मुद्दे : खूप पूर्वीपासून अंधश्रद्धांचा पगडा – एकोणिसाव्याविसाव्या शतकांत विज्ञानाचा प्रसार – विज्ञानावर आधारित यंत्रसामग्री व उपकरणे यांचा वाढता वापर – जीवनाच्या प्रत्येक क्षेत्रात विज्ञानाचा वापर – पण वैज्ञानिक दृष्टीचा अभाव – अजूनही अंधश्रद्धा – अज्ञानी जनतेची फसवणूक, लुबाडणूक, पिळवणूक – प्रबोधनाची प्रचंड आवश्यकता.]

(३८) नववर्षाचे स्वागत

[मुद्दे : अलीकडच्या काळात फोफावलेला उत्सव – मागील वर्षाला निरोप व नववर्षाचे स्वागत – जातपात, धर्म, पंथ, भाषा वगैरे सर्व भेदांच्या पलीकडे जाणारा उत्सव – सर्व वयोगटांतील व्यक्ती सहभागी – पण अनिष्ट प्रवृत्तींचा आढळ – अनेक ठिकाणी केवळ धांगडधिंगा व धूम्रपान, मदयपान, अमली पदार्थांचे सेवन – याचे शुद्धीकरण आवश्यक.]

(३९) मुलगी झाली हो!
स्वागत करू या मुलीच्या जन्माचे!

[मुद्दे : मुलगी जन्मली की दुःख – स्त्रीला कमी लेखणे – मुलींना घरकामाला जुंपणे – मुलींच्या शिक्षणाला कमी महत्त्व – पण स्त्रीमुळे घराची प्रगती – स्त्री सुशिक्षित तर सगळे घर सुशिक्षित – अनेक उच्च पदांवर स्त्रिया समर्थपणे कार्यरत – स्त्रियांना समान हक्क आवश्यक – नाही तर देशाची प्रगती अशक्य – म्हणून ‘मुलगी झाली हो!’ या घटनेचे स्वागत करू या.]

(४०) संगणक : आपला मित्र

[मुद्दे : संगणकाच्या दुष्परिणामांची एक – दोन उदाहरणे – मुलांकडून होणारा दुरुपयोग – वृत्तींवर परिणाम – संगणकाचे उपयोग मुले कोणत्या कारणांसाठी करतात – संगणक मोकळेपणाने वापरू देणे व समजावून सांगणे – नवीन सुधारणांमुळे नवीन संकटे – म्हणून बंदी घालणे अयोग्य – संगणक आपला मित्र आहे – त्याचा योग्य उपयोग करायला शिकवणे आवश्यक.]

(४१) वृक्षवल्ली आम्हां सोयरी वनचरे

[मुद्दे : संत तुकाराम महाराजांची सुप्रसिद्ध उक्ती – त्या उक्तीतून वनस्पती, प्राणी, माणूस या सर्वांविषयीचे प्रेम व्यक्त – पृथ्वीवर फक्त माणूसच महत्त्वाचा नाही – अन्य जीवही महत्त्वाचे – सूक्ष्मातिसूक्ष्म जीवजंतूंपासून ते देवमाशासारख्या महाकाय प्राण्यांपर्यंत सर्वांना महत्त्व – यात पर्यावरणाचा समतोल – माणसाचे जीवन सुखकर होण्यासाठी, त्याच्या अस्तित्वासाठी पर्यावरणाचा समतोल महत्त्वाचा – झाडे लावा, झाडे जगवा.]

Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions व्याकरण अलंकार

Balbharti Maharashtra State Board Marathi Yuvakbharati 12th Digest व्याकरण अलंकार Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

Maharashtra State Board 12th Marathi Yuvakbharati Solutions व्याकरण अलंकार

12th Marathi Guide व्याकरण अलंकार Textbook Questions and Answers

कृती

1. खालील ओळींतील अलंकार ओळखून त्याचे नाव लिहा.

(१) वीर मराठे आले गर्जत!
पर्वत सगळे झाले कंपित!
(२) सागरासारखा गंभीर सागरच!
(३) या दानाशी या दानाहुन
अन्य नसे उपमान
(४) न हा अधर, तोंडले नव्हत दांत हे की हिरे।

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(५) अनंत मरणे अधी मरावी,
स्वातंत्र्याची आस धरावी,
मारिल मरणचि मरणा भावी,
मग चिरंजीवपण ये बघ तें.

(६) मुंगी उडाली आकाशी
तिने गिळिले सूर्यासी!

(७) फूल गळे, फळ गोड जाहलें,
बीज नुरे, डौलात तरू डुले;
तेज जळे, बघ ज्योत पाजळे;
का मरणिं अमरता ही न खरी?
उत्तर :
(१) अतिशयोक्ती अलंकार
(२) अनन्वय अलंकार
(३) अपन्हुती अलंकार
(४) अपन्हुती अलंकार
(५) अर्थान्तरन्यास अलंकार
(६) अतिशयोक्ती अलंकार
(७) अर्थान्तरन्यास अलंकार

2. खालील तक्ता पूर्ण करा.
Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions व्याकरण अलंकार 1
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions व्याकरण अलंकार 3

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3. खालील कृती करा.

(१) कर्णासारखा दानशूर कर्णच.
वरील वाक्यातील-
उपमेय ………………………….
उपमान ………………………….

(२) न हे नभोमंडल वारिराशी आकाश
न तारका फेनचि हा तळाशी पहिल्या ओळीतील-
उपमेय ………………………….
उपमान ………………………….

दुसऱ्या ओळीतील
उपमेय ………………………….
उपमान ………………………….
उत्तर :
(१) उपमेय : कर्ण (दानशूरत्व)
उपमान : कर्ण

(२) पहिल्या ओळीतील – उपमेय : नभोमंडल (आकाश)
उपमान : आकाश
दुसऱ्या ओळीतील – उपमेय : तारका
उपमान : तारका

4. खालील तक्ता पूर्ण करा.
Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions व्याकरण अलंकार 2
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions व्याकरण अलंकार 4

Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions व्याकरण अलंकार

अलंकार म्हणजे काय?

अलंकार म्हणजे आभूषणे किंवा दागिने. अधिक सुंदर दिसण्यासाठी व्यक्ती दागिने घालतात, त्याप्रमाणे आपली भाषा अधिक सुंदर, अधिक आकर्षक व अधिक परिणामकारक करण्यासाठी कवी (साहित्यिक) भाषेला अलंकाराने सुशोभित करतात.

एखादया माणसाचे शूरत्व सांगताना → तो शूर आहे → सामान्य वाक्य तो वाघासारखा शूर आहे → आलंकारिक वाक्य. ← असा वाक्यप्रयोग केला जातो.

अशा प्रकारे ज्या ज्या गुणांमुळे भाषेला शोभा येते, त्या त्या गुणधर्मांना भाषेचे अलंकार म्हणतात.

भाषेच्या अलंकारांचे दोन मुख्य प्रकार आहेत :

  • शब्दालंकार
  • अर्थालंकार.

आपल्याला या इयत्तेत

  • अनन्वय
  • अपन्हुती
  • अतिशयोक्ती
  • अर्थान्तरन्यास हे चार अर्थालंकार शिकायचे आहेत.

उपमेय आणि उपमान म्हणजे काय?
पुढील वाक्य वाचा व अधोरेखित शब्दांकडे नीट लक्ष दया : भीमा वाघासारखा शूर आहे.
‘भीमा’ हे उपमेय आहे; कारण भीमाबद्दल विशेष सांगितले आहे. भीमाला वाघाची उपमा दिली आहे.
‘वाघ’ हे उपमान आहे; कारण भीमा हा कसा शूर आहे, ते सांगितले आहे.

म्हणून,

  • ज्याला उपमा देतात, त्यास उपमेय म्हणतात.
  • ज्याची उपमा देतात, त्यास उपमान म्हणतात.

म्हणून,

  • भीमा → उपमेय
  • वाघ → उपमान
  • साधर्म्य गुणधर्म → शूरत्व.

अनन्वय अलंकार
पुढील उदाहरणांचे निरीक्षण करा व कृती सोडवा :

  • आहे ताजमहाल एक जगती तो तोच त्याच्यापरी
  • या आंब्यासारखा गोड आंबा हाच.
  • वरील दोन्ही उदाहरणांतील उपमेये – ताजमहाल, आंबा
  • वरील दोन्ही उदाहरणांतील उपमाने – ताजमहाल, आंबा

निरीक्षण केल्यानंतर वरील उदाहरणांत उपमेय व उपमान एकच आहेत, असे लक्षात येते.

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जेव्हा उपमेयाला कशाचीच उपमा देता येत नाही व जेव्हा उपमेयाला उपमेयाचीच उपमा देतात, तेव्हा अनन्वय अलंकार होतो. [अन् + अन्वय (संबंध) = अनन्वय (अतुलनीय)]

अनन्वय अलंकाराची वैशिष्ट्ये (लक्षणे) :

  • उपमेय हे अद्वितीय असते. त्यास कोणतीच उपमा लागू पडत नाही.
  • उपमेयाला योग्य उपमान सापडतच नाही; म्हणून उपमेयाला उपमेयाचीच उपमा दयावी लागते.

अनन्वय अलंकाराची काही उदाहरणे :

  • ‘झाले बहु, होतिल बहू, आहेतहि बहू, परंतु या सम हा।’
  • या दानासी या दानाहुन अन्य नसे उपमान
  • आईसारखे दैवत आईच!

अपन्हुती अलंकार

पुढील उदाहरणांचे निरीक्षण करा व कृती सोडवा :
उदा., न हे नयन, पाकळ्या उमलल्या सरोजांतिल।
न हे वदन, चंद्रमा शरदिचा गमे केवळ।।

वरील उदाहरणातील –

वरील उदाहरणांत उपमेयांचा निषेध केला आहे व उपमेय, उपमान हे उपमानेच आहे, अशी मांडणी केली आहे.

जेव्हा उपमेयाचा निषेध करून उपमेय हे उपमानच आहे, असे जेव्हा सांगितले जाते, तेव्हा अपन्हुती अलंकार होतो.

अपन्हुती अलंकाराची वैशिष्ट्ये (लक्षणे) :

  • उपमेयाला लपवले जाते व निषेध केला जातो.
  • उपमेय हे उपमेय नसून उपमानच असे ठसवले जाते.
  • निषेध दर्शवण्यासाठी ‘न, नव्हे, नसे, नाहे, कशाचे’ असे शब्द येतात.

अपन्हुती अलंकाराची काही उदाहरणे :

  1. ओठ कशाचे? देठचि फुलल्या पारिजातकाचे।
  2. हे हृदय नसे, परि स्थंडिल धगधगलेले।
  3. मानेला उचलीतो, बाळ मानेला उचलीतो।
    नाही ग बाई, फणा काढुनि नाग हा डोलतो।।
  4. हे नव्हे चांदणे, ही तर मीरा गाते
  5. आई म्हणोनि कोणी। आईस हाक मारी
    ती हाक येई कानी। मज होय शोकारी
    नोहेच हाक माते। मारी कुणी कुठारी.

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अतिशयोक्ती अलंकार
पुढील उदाहरणांचे निरीक्षण करा व त्यातील अतिरेकी (असंभाव्य) वर्णन समजून घ्या :
दमडिचं तेल आणलं, सासूबाईचं न्हाणं झालं
मामंजींची दाढी झाली, भावोजीची शेंडी झाली
उरलं तेल झाकून ठेवलं, लांडोरीचा पाय लागला
वेशीपर्यंत ओघळ गेला, त्यात उंट पोहून गेला.
दमडीच्या तेलात कोणकोणत्या गोष्टी उरकल्या हे सांगताना त्या वस्तुस्थितीपेक्षा कितीतरी गोष्टी फुगवून सांगितल्या आहेत.

जसे की, एका दमडीच्या (पैशाच्या) विकत आणलेल्या तेलात काय काय घडले? →

  • सासूबाईचे न्हाणे
  • मामंजीची दाढी
  • भावोजीची शेंडी
  • कलंडलेले तेल वेशीपर्यंत ओघळले
  • त्यात उंट वाहून गेला.

या सर्व अशक्यप्राय गोष्टी घडल्या. म्हणजेच अतिशयोक्ती केली आहे.
जेव्हा एक कल्पना फुगवून सांगताना त्यातील असंभाव्यता (अशक्यप्रायता) अधिक स्पष्ट करून सांगितलेली असते, तेव्हा अतिशयोक्ती अलंकार होतो.

अतिशयोक्ती अलंकाराची वैशिष्ट्ये (लक्षणे) :

  • एखाद्या गोष्टीचे, प्रसंगाचे, घटनेचे, कल्पनेचे अतिव्यापक फुगवून अशक्यप्राय केलेले वर्णन.
  • त्या वर्णनाची असंभाव्यता, कल्पनारंजकता अधिक स्पष्ट केलेली असते.

अतिशयोक्ती अलंकाराची काही उदाहरणे :

  1. ‘जो अंबरी उफाळतां खुर लागलाहे।
    तो चंद्रमा निज तनुवरि डाग लाहे।।’
  2. काव्य अगोदर झाले नंतर जग झाले सुंदर।
    रामायण आधी मग झाला राम जानकीवर।।
  3. सचिनने आभाळी चेंडू टोलवला।
    तो गगनावरी जाऊन ठसला।।
    तोच दिवसा जैसा दिसतो चंद्रमा हसला।।

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अर्थान्तरन्यास
पुढील उदाहरणांचे निरीक्षण करा व समजून घ्या :
‘बोध खलास न रुचे अहिमुखी दुग्ध होय गरल।
श्वानपुच्छ नलिकेत घातले होईना सरल।।
[खल = दुष्ट, अहि = साप, गरल = विष, श्वान = कुत्रा, पुच्छ = शेपटी]
दुष्ट माणसाला कितीही उपदेश केला तरी तो आवडत नाही, हे स्पष्ट करताना सापाला पाजलेल्या दुधाचे रूपांतर विषातच होते, हे उदाहरण देऊन ‘कुत्र्याची शेपटी नळीत घातली, तरी वाकडीच राहणार’, हा सर्वसामान्य सिद्धांत मांडला आहे.
एका अर्थाचा समर्थक असा दुसरा अर्थ ठेवणे, हा या अलंकाराचा उद्देश असतो.

एका अर्थाचा समर्थक असा दुसरा अर्थ शेजारी ठेवणे म्हणजेच ५ एक विशिष्ट अर्थ दुसऱ्या व्यापक अर्थाकडे नेऊन ठेवणे व सर्वसामान्य सिद्धांत मांडणे, यास अर्थान्तरन्यास अलंकार म्हणतात.

अर्थान्तरन्यास अलंकाराची वैशिष्ट्ये (लक्षणे) :

  • विशेष उदाहरणावरून एखादा सर्वसामान्य सिद्धांत मांडणे.
  • सामान्य विधानाच्या समर्थनार्थ विशेष उदाहरण देणे.
  • अर्थान्तर – म्हणजे दुसरा अर्थ. न्यास – म्हणजे शेजारी ठेवणे.

अर्थान्तरन्यास अलंकाराची काही उदाहरणे :

  1. तदितर खग भेणे वेगळाले पळाले।
    उपवन-जल-केली जे कराया मिळाले।।
    स्वजन, गवसला जो, त्याजपाशी नसे तो।
    कठिण समय येता कोण कामास येतो?
  2. होई जरी सतत दुष्टसंग
    न पावती सज्जन सत्त्वभंग
    असोनिया सर्प सदाशरीरी Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions व्याकरण अलंकार
    झाला नसे चंदन तो विषारी
  3. अत्युच्च पदी थोरही बिघडतो हा बोल आहे खरा
  4. जातीच्या सुंदरा काहीही शोभते.

Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions व्याकरण प्रयोग

Balbharti Maharashtra State Board Marathi Yuvakbharati 12th Digest व्याकरण प्रयोग Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

Maharashtra State Board 12th Marathi Yuvakbharati Solutions व्याकरण प्रयोग

12th Marathi Guide व्याकरण प्रयोग Textbook Questions and Answers

कृती

1. खालील वाक्यांतील प्रयोग ओळखा.

प्रश्न 1.
(a) मुख्याध्यापकांनी इयत्ता दहावीच्या गुणवंत विदयार्थ्यांना बोलावले.
(b) कप्तानाने सैनिकांना सूचना दिली.
(c) मुले प्रदर्शनातील चित्रे पाहतात.
(d) तबेल्यातून व्रात्य घोडा अचानक पसार झाला.
(e) मावळ्यांनी शत्रूस युद्धभूमीवर घेरले.
(f) राजाला नवीन कंठहार शोभतो.
(g) शेतकऱ्याने फुलांची रोपे लावली.
(h) आकाशात ढग जमल्यामुळे आज लवकर सांजावले.
(i) युवादिनी वक्त्याने प्रेरणादायी भाषण दिले..
(j) आपली पाठ्यपुस्तके संस्कारांच्या खाणी असतात.
उत्तर :
(a) भावे प्रयोग
(b) कर्मणी प्रयोग
(c) कर्तरी प्रयोग
(d) कर्तरी प्रयोग
(e) भावे प्रयोग
(f) कर्तरी प्रयोग
(g) कर्मणी प्रयोग
(h) भावे प्रयोग
(i) कर्मणी प्रयोग
(j) कर्तरी प्रयोग.

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2. सूचनेनुसार सोडवा

प्रश्न अ.
कर्तरी प्रयोग असलेल्या वाक्यासमोर ✓ अशी खूण करा.
(a) गुराख्याने गुरांना विहिरीपासून दूर नेले.
(b) सकाळी तो सरावासाठी मैदानावर गेला. [✓]
(c) विदयार्थ्यांनी कार्यक्रमाच्या सुरुवातीला स्वागतगीत गायले.
उत्तर :
(b) सकाळी तो सरावासाठी मैदानावर गेला. [✓]

प्रश्न आ.
कर्मणी प्रयोग असलेल्या वाक्यासमोर ✓ अशी खूण करा.
(a) सुजाण नागरिक परिसर स्वच्छ ठेवतात.
(b) शिक्षकाने विदयार्थ्यास शिकवले.
(c) भारतीय संघाने विश्वचषक स्पर्धा जिंकली. [✓]
उत्तर :
(c) भारतीय संघाने विश्वचषक स्पर्धा जिंकली. [✓]

प्रश्न इ.
भावे प्रयोग असलेल्या वाक्यासमोर ✓ अशी खूण करा.
(a) आज लवकर सांजावले.
(b) त्याने कपाटात पुस्तक ठेवले. [✓]
(c) आम्ही अनेक किल्ले पाहिले.
उत्तर :
(a) आज लवकर सांजावले. [✓]

Marathi Yuvakbharati 12th Digest व्याकरण प्रयोग Additional Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
उदाहरण वाचा. कृती करा : विदयार्थी पाठ्यपुस्तक आवडीने वाचतो.
(१) वाक्यातील क्रियापद. → [ ]
(२) पाठ्यपुस्तक आवडीने वाचणारा तो कोण? → [ ]
(३) वाचले जाणारे ते काय? → [ ]
(४) वरील वाक्यातील क्रिया कोणती? → [ ]
उत्तर :
(१) वाचणे
(२) विदयार्थी
(३) पाठ्यपुस्तक
(४) वाचण्याची

पुढील वाक्य नीट वाचा व अधोरेखित शब्दांकडे लक्ष दया :

  • समीर पुस्तक वाचतो.
  • वरील वाक्यात ‘वाचतो‘ हे क्रियापद आहे. त्यात वाचण्याची क्रिया दाखवलेली आहे.
  • वाचण्याची क्रिया समीर करतो.
  • वाचण्याची क्रिया पुस्तकावर घडते आहे.

Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions व्याकरण प्रयोग

जो क्रिया करतो, त्याला कर्ता म्हणतात. म्हणून समीर हा कर्ता आहे. ज्यावर क्रिया घडते, त्याला कर्म म्हणतात. म्हणून पुस्तक हे कर्म आहे.

म्हणून,
Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions व्याकरण प्रयोग 1

वाक्यात क्रियापदाचा काशी व कर्माशी लिंग-वचन-पुरुष याबाबतीत जो संबंध असतो, त्या संबंधाला प्रयोग म्हणतात.

मराठीत प्रयोगाचे मुख्य तीन प्रकार आहेत :

  • कर्तरी प्रयोग
  • कर्मणी प्रयोग
  • भावे प्रयोग.

कर्तरी प्रयोग

प्रश्न  1.
पुढील उदाहरणे वाचून कृती करा :
Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions व्याकरण प्रयोग 2
Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions व्याकरण प्रयोग 3
उत्तर :
(१) कर्त्याचे लिंग बदलले.
(२) कर्त्याचे वचन बदलले.
(३) कर्त्याचा पुरुष बदलला.

पुढील वाक्य नीट वाचा :
समीर पुस्तक वाचतो. (समीर कर्ता आहे.)
कर्त्याचे अनुक्रमे लिंग-वचन-पुरुष बदलू या.

  • सायली पुस्तक वाचते. (लिंगबदल केला.)
  • ते पुस्तक वाचतात. (वचनबदल केला.)
  • तू पुस्तक वाचतोस. (पुरुषबदल केला.)

Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions व्याकरण प्रयोग

म्हणजे,
कर्त्याच्या लिंग, वचन व पुरुष बदलामुळे अनुक्रमे वाचतो हे क्रियापद → वाचते, वाचतात, वाचतोस असे बदलले. म्हणजेच कर्त्याप्रमाणे क्रियापद बदलले.

जेव्हा कर्त्याच्या लिंग-वचन-पुरुषाप्रमाणे क्रियापद बदलते, तेव्हा कर्तरी प्रयोग होतो.

कर्तरी प्रयोगाची वैशिष्ट्ये (लक्षणे) :

  • कर्ता प्रथमा विभक्तीत असतो. (प्रत्यय नसतो.)
  • कर्म असल्यास ते प्रथमा किंवा द्वितीया विभक्तीत असते.
  • कर्तरी प्रयोगातील क्रियापद बहुधा वर्तमानकाळी असते.
  • क्रियापद कर्त्याच्या लिंग, वचन, पुरुषाप्रमाणे बदलते.

कर्मणी प्रयोग

प्रश्न  1.
पुढील उदाहरणे वाचून कृती करा :
Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions व्याकरण प्रयोग 4
उत्तर :
(१) कर्माचे लिंग बदलले.
(२) कर्माचे वचन बदलले.

पुढील वाक्य नीट वाचा :
समीरने पुस्तक वाचले. (पुस्तक कर्म आहे.)
कर्माचे लिंग व वचन बदलू या.

  • समीरने गोष्ट वाचली. (लिंगबदल केला.)
  • समीरने पुस्तके वाचली. (वचनबदल केला.)

म्हणजे,
कर्माच्या लिंग-वचन बदलामुळे अनुक्रमे वाचले हे क्रियापद → वाचली, असे बदलले.

Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions व्याकरण प्रयोग

म्हणजेच कर्माप्रमाणे क्रियापद बदलले.

जेव्हा कर्माच्या लिंग-वचनाप्रमाणे क्रियापद बदलते, तेव्हा कर्मणी प्रयोग होतो.

कर्मणी प्रयोगाची वैशिष्ट्ये (लक्षणे) :

  • (१) कर्ता बहुधा तृतीयेत असतो. (प्रत्यय असतो.)
  • (२) कर्म नेहमी प्रथमा विभक्तीत असते. (प्रत्यय नसतो.)
  • (३) कर्मणी प्रयोगातील क्रियापद बहुधा भूतकाळी असते.
  • (४) क्रियापद कर्माच्या लिंग-वचनाप्रमाणे बदलते.

भावे प्रयोग

प्रश्न  1.
पुढील वाक्यात रोखणे क्रियापदाचे योग्य रूप लिहा :

(a) सैनिकाने शत्रूला सीमेवर ………………………………..
(b) सैनिकांनी शत्रूला सीमेवर ………………………………..
(c) सैनिकांनी शत्रूना सीमेवर ………………………………..
उत्तर :
(a) रोखले
(b) रोखले
(c) रोखले.

प्रश्न  2.
पुढील वाक्यात बांधणे या क्रियापदाचे योग्य रूप लिहा :
(a) श्रीधरपंतांनी बैलांना ………………………………..
(b) सुमित्राबाईंनी गाईला ………………………………..
(c) त्याने घोह्याला ………………………………..
(d) आम्ही शेळ्यांना ………………………………..
उत्तर :
(a) बांधले
(b) बांधले
(c) बांधले
(d) बांधले.

Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions व्याकरण प्रयोग

पुढील वाक्य नीट पाहा :
समीरने पुस्तकास वाचले.
प्रथम कर्त्याचे लिंग-वचन बदलू या.

  • सायलीने पुस्तकास वाचले. (लिंगबदल केला.)
  • त्यांनी पुस्तकास वाचले. (वचनबदल केला.)

आता कर्माचे लिंग-वचन बदलूया.

  • समीरने गोष्टीला वाचले. (लिंगबदल केला.)
  • समीरने पुस्तकांना वाचले. (वचनबदल केला.)

म्हणजे,
कर्त्याच्या व कर्माच्या लिंग-वचन बदलाने क्रियापदाचे रूप बदलले नाही. ‘वाचले’ हेच क्रियापद कायम राहिले.

जेव्हा कर्त्याच्या व कर्माच्या लिंग-वचन-पुरुषाप्रमाणे क्रियापदाचे रूप बदलत नाही, तेव्हा भावे प्रयोग होतो.

भावे प्रयोगाची वैशिष्ट्ये (लक्षणे) :

  • कर्त्याला बहुधा तृतीया विभक्ती असते. (प्रत्यय असतो.)
  • कर्म असल्यास द्वितीया विभक्तीत असते. (प्रत्यय असतो.)
  • क्रियापद नेहमी तृतीयपुरुषी, नपुंसकलिंगी, एकवचनी असते. बहुधा ते एकारान्त असते.
  • क्रियापद कर्त्याच्या किंवा कर्माच्या लिंग-वचनाप्रमाणे बदलत नाही.

लक्षात ठेवा :

  • समीर पुस्तक वाचतो. → कर्तरी प्रयोग
  • समीरने पुस्तक वाचले. → कर्मणी प्रयोग Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions व्याकरण प्रयोग
  • समीर पुस्तकास वाचतो. → भावे प्रयोग

Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 8 रेशीमबंध

Balbharti Maharashtra State Board Marathi Yuvakbharati 12th Digest Chapter 8 रेशीमबंध Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

Maharashtra State Board 12th Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 8 रेशीमबंध

12th Marathi Guide Chapter 8 रेशीमबंध Textbook Questions and Answers

कृती

1. कृती करा.

प्रश्न अ.
Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 8 रेशीमबंध 1
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 8 रेशीमबंध 5

प्रश्न आ.
Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 8 रेशीमबंध 2
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 8 रेशीमबंध 6

प्रश्न इ.
Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 8 रेशीमबंध 3
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 8 रेशीमबंध 7

प्रश्न ई.
Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 8 रेशीमबंध 4
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 8 रेशीमबंध 8.1

2. कारणे शोधा व लिहा.

प्रश्न अ.
पाखरांचा चिवचिवाट सुरू झालेला नसतो, कारण…
उत्तर :
पाखरांचा चिवचिवाट सुरू झालेला नसतो; कारण नुकते कुठे तीन-साडेतीन वाजलेले असतात.

Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 8 रेशीमबंध

प्रश्न आ.
मानवाला निसर्गाची ओढ लागते, कारण…
उत्तर :
मानवाला निसर्गाची ओढ लागते; कारण माणसाच्या मनात आदिमत्वही भरून राहिलेले असते.

3. अ. पहाटेच्या वेळी बागेत प्रवेश केल्यानंतर लेखकाला खालील फुलांसंदर्भात आलेले अनुभव लिहा.

प्रश्न 1.
सायली –
उत्तर :
सायलीच्या इवल्या इवल्या पानांतून एक वेगळीच हिरवाई वाहू लागते.

प्रश्न 2.
गुलमोहोर –
उत्तर :
गुलमोहोराजवळ जावं तर त्यानं स्वागतासाठी, केशरी सडाच शिंपून ठेवलेला असतो

Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 8 रेशीमबंध

प्रश्न 3.
जॅक्रांडा –
उत्तर :
जॅक्रांडाची निळीजांभळी फुलं रक्तचंदनी चाफ्याशी बिलगून गप्पागोष्टी करत असतात.

प्रश्न 4.
चाफा –
उत्तर :
चाफ्यांजवळ जावं तर त्यांच्या फुलांचा एक वेगळाच मंद मंद गंध येत असतो; पण तो निशिगंधासारखा मात्र नसतो.

आ. वर्णन करा.

प्रश्न 1.
उत्तररात्रीचे आगमन
उत्तर :
मध्यरात्र उलटली की उत्तररात्र हलकेच आकाशात पाऊल टाकते. उत्तररात्रीची पावले मुळातच मुलायम, त्यात ती रात्र आपली मुलायम पावले हळुवारपणे, अलगद ठेवीत येते. कुणालाही चाहूल लागणे कठीण. मात्र लेखकांचे उत्तररात्रीशी अत्यंत जवळिकेचे नाते आहे. त्यामुळे तिच्या पावलांची मंद मंद नाजूक स्पंदने लेखकांच्या मनात उमटत राहतात. लेखकांना झोप लागत नाही. आपली झोप जणू पूर्ण झाली आहे, असेच त्यांना वाटत राहते.

Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 8 रेशीमबंध

प्रश्न 2.
पहाट व पाखरे यांच्यातील नात
उत्तर :
लेखकांना भोवतालचा निसर्ग माणसासारखाच भावभावनांनी भरलेला भासतो. पहाटेची घटना तशी साधीशीच. पहाट होत आहे. पाखरांचा बारीक बारीक आवाज सुरू झाला आहे. त्यांच्या हालचालींना सुरुवात होत आहे. पहाट हळूहळू पुढे सरकत आहे. या प्रसंगात लेखकांना मानवी भावभावनांचे दर्शन घडते. पाखरांचा बारीक बारीक आवाज म्हणजे त्यांची कुजबुज होय. ती जणू एकमेकांना विचारताहेत, ” पहाट आली का? ” पहाटेचे हळुवार येणे पाहून लेखकांना वाटते की, पाखरांना त्रास होऊ नये म्हणूनच जणू पहाट हळूच पाखरांना विचारते की, “मी येऊ का?” त्या दोघांमधले हळुवार कोमल नातेच लेखकांना या वाक्यातून व्यक्त करायचे आहे.

इ. खालील घटकांच्या संदर्भात पाठात आलेल्या मानवी क्रिया लिहा.

प्रश्न 1.

  1. वृक्ष – …………..
  2. वेली – …………
  3. फुले – ………..
  4. पाखरे – ………….

उत्तर :

  1. वृक्ष – डोळा लागलेला असतो.
  2. वेली – डोळा लागलेला असतो.
  3. फुले – विसावलेली, सुखावलेली असतात.
  4. पाखरे – गाढ झोपलेली असतात.

4. व्याकरण.

अ. खालील वाक्प्रचारांचा अर्थ सांगून वाक्यात उपयोग करा.

प्रश्न 1.
मन समेवर येणे-
उत्तर :
अर्थ – मन शांत व एखाद्या गोष्टीशी एकरूप होणे.
वाक्य – राहुल रात्रभर भरकटणारे मन प्रभातफेरीसाठी बाहेर पडल्यावर एकदम समेवर आले.

प्रश्न 2.
साखरझोपेत असणे-
उत्तर :
अर्थ – पहाटेच्या गाढ स्वप्निल निद्रेत असणे.
वाक्य – पहाटे मोहन साखरझोपेत असताना बाहेर पाऊस पडत होता.

आ. खालील वाक्यांत योग्य विरामचिन्हांचा उपयोग करा.

प्रश्न 1.
खरं तर पहाटच त्यांना विचारत असते की मी येऊ का तुम्हांला भेटायला
उत्तर :
खरं तर पहाटच त्यांना विचारत असते, की ‘मी येऊ का तुम्हांला भेटायला?’

Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 8 रेशीमबंध

प्रश्न 2.
निशिगंध म्हणजे निशिगंधच
उत्तर :
निशिगंध म्हणजे निशिगंधच!

इ. खालील वाक्यांचा प्रकार ओळखून सूचनेप्रमाणे तक्ता पूर्ण करा.

प्रश्न 1.
Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 8 रेशीमबंध 9
उत्तर :
वाक्यप्रकार → उद्गारार्थी वाक्य
विधानार्थी → वृक्षवेली आपल्याला तजेला आणि विरंगुळा देतात.

वाक्यप्रकार → विधानार्थी वाक्य
उद्गारार्थी → किती अनावर भरती येते आल्हादाला आणि हर्षोल्हासाला!

वाक्यप्रकार → होकारार्थी वाक्य
नकारार्थी → वाफे तर ओले नाहीतच.

ई. खालील तक्ता पूर्ण करा.

प्रश्न 1.
Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 8 रेशीमबंध 10
उत्तर :

सामासिक शब्द समासाचा विग्रह समासाचे नाव
पांढराशुभ्र शुभ्र असा पांढरा कर्मधारय
वृक्षवेली वृक्ष आणि वेली इतरेतर द्वंद्व
गप्पागोष्टी गप्पा, गोष्टी वगैरे समाहार द्वंद्व
सुखदुःख सुख किंवा दुःख वैकल्पिक द्वंद्व

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उ. खालील वाक्यांतील प्रयोग ओळखा व लिहा.

प्रश्न 1.

  1. खिडकी हलकेच उघडतो.
  2. मानवाला निसर्गाची ओढ लागून राहिली.
  3. तुम्हांलाही त्यातला आल्हाद जाणवेल.

उत्तर :

  1. कर्तरी प्रयोग
  2. कर्मणी प्रयोग
  3. भावे प्रयोग

5. स्वमत.

प्रश्न अ.
‘मानवाला निसर्गाची जी ओढ युगानुयुगांपासून लागून राहिली आहे, ती या आदिम, ॠजु, स्नेहबंधांमुळे तर नाही?…’ या विधानासंबंधी तुमचे मत लिहा.
उत्तर :
उत्तररात्रीचे दृश्य खरोखरच विलक्षण असते. सर्वत्र, सर्व काही शांतनिवांत असते. दिवसा इकडेतिकडे सतत धावणारी, कोणती ना कोणती कामे करीत राहणारी, एकमेकांशी बोलणारी, एकमेकांशी भांडणारी, एकमेकांवर प्रेम करणारी ही माणसे निवांत झोपलेली असतात. काहीजण दिवसा चिंतांनी ग्रासलेली असतात. काहीजण मिळालेल्या यशामुळे आनंदाच्या, सुखाच्या शिखरावर असतात. या सर्व भावभावना, सर्व सुखदु:खे उत्तररात्रीच्या क्षणांमध्ये विरून गेलेल्या असतात.

दुष्ट विचार, दुष्ट भावना आणि चांगल्या माणसांच्या मनातले चांगले विचार, चांगल्या भावना हे सर्व काही त्या क्षणी दूर निघून गेलेले असते. माणसे भांडतात तेव्हाचे त्यांचे भाव आठवून पाहा. सर्व त्वेष, द्वेष, राग, संताप उफाळून आलेला असतो. तीच माणसे उत्तररात्री या सर्व भावभावनांचे गाठोडे बाजूला ठेवून निवांत झालेली असतात. सज्जन व दुर्जन दोघेही शेजारी शेजारी झोपलेले असतील, तर त्यांच्यातला चांगला कोण व वाईट कोण हे नुसते पाहून ठरवताच येणार नाही. त्या क्षणी सर्वांचे मन निर्मळ, शुद्ध झालेले असते.

सर्व प्राणिमात्रांमध्ये, वनस्पतींमध्ये हाच शुद्ध भाव वसत असतो. आणि हा शुद्ध भाव अनादी काळापासून सर्वांच्या मनात वस्ती करून आहे. माणसाचे मन या मूळ भावनेकडेच धाव घेत असते. आदिम खूप खूप पूर्वीचे. ऋजू म्हणजे साधे, सरळ, निर्मळ, पारदर्शी. त्यात कोणतेही किल्मिष, वाईट भावनेचा लवलेशही नसतो. सगळ्यांच्याच ठायी हा भाव असल्याने सर्वजण एकमेकांशी हसतखेळत बोलू शकतात. एकमेकांच्या मदतीला धावतात. एकमेकांवर प्रेम करतात. त्या शुद्ध, निर्मळ भावनेने एकमेकांशी बांधले जातात. लेखकांना या वाक्यातून हेच सांगायचे आहे.

Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 8 रेशीमबंध

प्रश्न आ.
‘रेशीमबंध’ या शीर्षकाची समर्पकता तुमच्या शब्दांत लिहा.
उत्तर :
लेखकांचे निसर्गाशी अत्यंत कोमल, हळुवार, नाजूक नाते आहे. त्यांच्या मते, सर्व माणसांचेच तसे नाते असते. या हळुवार, कोमल नात्याचे दर्शन लेखक या पाठात घडवतात. हे नाते रेशमासारखे तलम, मुलायम आहे. म्हणून ते रेशीमबंध.

हे रेशीमबंध लेखकांनी अत्यंत मुलायमपणे, हळुवारपणे उलगडून दाखवले आहेत. नीरव शांततेत उत्तररात्र हळुवारपणे कोमल पावले टाकत येते. कोणाला चाहूलही लागत नाही. पण लेखकांच्या मनात त्या मुलायम पावलांची मंद मंद स्पंदने उमटतात. त्यांचे मन तितक्याच हळुवारपणे ती स्पंदने टिपते. त्यांच्या निसर्गाशी असलेल्या नात्याचा रेशमी मुलायम पण इथे जाणवतो.

साखरझोपेत जग विसावलेले असते. साऱ्या काळज्या-चिंता मिटून गेलेल्या असतात. मन सुखदुःखांच्या पलीकडे गेलेले असते. एक निर्मळ, शुद्ध असे स्वरूप मनाला प्राप्त होते. निसर्गाचा आत्माच त्यात असतो. लेखकांचे नाते या निर्मळपणाशी, त्या आत्म्याशी जडले आहे. त्यांना त्यांच्या नातीच्या शैशवातला नितळपणा जाणवतो.

या नितळपणाचा संबंध निसर्गाच्या आत्म्याशी, निर्मळपणाशी आहे. कोणालाही चाहूल लागू न देता पहाट अलगद अवतरते, पण लेखक अत्यंत संवेदनशील असल्याने त्यांना चाहूल लागते. त्या अनोख्या, नाजूक, तरल क्षणाचा लेखकांना अनुभव येतो. बागेतल्या वृक्षवेलींच्या रूपांनी, त्यांचे विविध रंग व सुगंध यांच्या रूपांनी लेखकांना स्वत:चे आदिमतेशी असलेले नाते जाणवते.

या पाठात लेखक निसर्गाशी असलेल्या स्वत:च्या नात्याचा शोध घेत आहेत. स्वतः प्रमाणे सगळीच माणसे निसर्गाशी कोमल, नाजूक, हळुवार भावनांनी बांधली गेली आहेत. ते बंध सहजासहजी दिसत नाहीत; दाखवून देता येत नाहीत. ते सूक्ष्म, तरल, कोमल भावनांचे बंध असतात. ते रेशमाप्रमाणे तलम, मुलायम असतात. म्हणून लेखक या बंधांना रेशीमबंध म्हणतात. संपूर्ण पाठाच्या केंद्रस्थानी हे रेशीमबंधच आहेत. म्हणून या पाठाला रेशीमबंध’ हे शीर्षक खूप साजते.

6. अभिव्यक्ती.

प्रश्न अ.
निसर्ग आणि मानव यांच्यातील परस्परसंबंध तुमच्या शब्दांत स्पष्ट करा.
उत्तर :
मला कळू लागले तेव्हापासूनचे सर्व आठवते. कधीही फिरायला जाण्याची कल्पना आली, सहलीला जाण्याची वेळ आली की, मला प्रचंड आनंद होतो. खरे सांगायचे तर मला एकट्यालाच असे वाटते, असे नाही. आमच्या वर्गातल्या सर्व मित्रमैत्रिणींना सहलीचा विषय आला की, अमाप आनंद होतो. सहलीला गेलो, निसर्गात गेलो की, खूप आनंद मिळतो. नदीत डुंबायला मिळाले तर कितीही वेळ डुंबत राहावेसे वाटते. तेच रानावनात भटकतानाही वाटत असते. झाडांच्या सोबत वावरताना कंटाळा येतच नाही. हिरव्यागार वृक्षवेलींनी सजलेला डोंगर पाहताना मन सुखावते. हे असे का होत असावे?

वनस्पती या सजीव आहेत; त्यांना माणसांसारख्याच भावभावना असतात. वनस्पतींनाही आनंद होतो, दुःख होते. त्यांच्यावर प्रेमाने हात फिरवला, तर त्याही सुखावतात, हे सर्व आता लहानथोरांपासून सर्वांनाच ठाऊक झाले आहे. प्रत्येक ऋतूशी माणसाचे भावनिक नाते निर्माण झाले आहे. म्हणूनच तर झाडे सुकून जाऊ लागली की माणसाचे मन कळवळते. वृक्ष नष्ट होऊ लागले की माणसाला दुःख होते. वृक्षतोड होताना दिसली की, माणसे खवळतात. शहरात माणसाला स्वत:चे वृक्षप्रेम जपता येत नाही, म्हणून माणसे कुंड्यांमध्ये रोपटी लावतात आणि त्यांचा आनंद घेतात. अमाप वृक्षतोड होऊ लागली, तेव्हा सुंदरलाल बहुगुणा या वृक्षप्रेमीने ‘चिपको आंदोलन’ उभारले. त्याला देशभर प्रचंड प्रतिसाद मिळाला.

लोकांच्या मनात हे एवढे वृक्षप्रेम दाटून आले, याचे कारणच हे की निसर्ग आणि आपण यांच्यात एक खोलवरचे नाते आहे. ज्या निसर्गाने माणसांना निर्माण केले, त्यानेच प्राण्यांना आणि वनस्पतींना निर्माण केले आहे. आपण सर्व निसर्गाची लेकरे आहोत. आपण, अन्य प्राणी आणि वनस्पती ही सर्व भावंडेच आहेत. आपणा सर्वांमध्ये हे असे रक्ताचेच नाते आहे. निसर्गच आपले पालनपोषण करतो. तोच अन्नपाणी देतो. तोच हवाही देतो. आपल्याला तोच जिवंत ठेवतो. आपल्या जगण्याचा आधारच निसर्ग हा आहे. हेच निसर्ग व मानव यांच्यातले नाते आहे.

Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 8 रेशीमबंध

प्रश्न आ.
डॉ. यू. म. पठाण यांच्या लेखनाची भाषिक वैशिष्ट्ये पाठाधारे स्पष्ट करा.
उत्तर :
डॉ. यू. म. पठाण यांच्या भाषेचे सर्वांत पहिले जाणवणारे वैशिष्ट्य म्हणजे त्यांची साधी, सरळ, भाषा स्वतःचा अनुभव ते पारदर्शीपणे व्यक्त करतात. उत्तररात्रीचे आकाशात पडणारे पाऊल हळुवारपणे, अलगद, मुलायम, कुणालाही चाहूल लागू न देणारे’ असे असते. पावलाचा हळुवारपणा, नाजुकपणा, मुलायम पण त्या वाक्यातून सहज प्रत्ययाला येतो. उदा., उत्तररात्र प्रवेश करते, त्याचे वर्णन करणारे वाक्य पाहा – ‘उत्तररात्रीने हलकेच आकाशात पाऊल ठेवलेलं असतं येथे पाऊल ‘पडत’ नाही किंवा ‘टाकले जात नाही. उत्तररात्र ‘हलकेच पाऊल ठेवते’ अत्यंत योग्य अशा क्रियापद योजनेमुळे भाषेतून व्यक्त होणाऱ्या अनुभवाचा प्रत्यय येतो. वाचकाला ती भाषा भावते. हे एक उदाहरण झाले. पण संपूर्ण पाठभर अशी अनुभवाचा प्रत्यय देणारी भाषा आढळते.

लेखकांना सृष्टीतले मानवेतर घटक कोरडे, भावनाविरहित वाटतच नाहीत. ते त्यांना माणसांप्रमाणेच भावभावनांनी भिजलेले, सजीव, चैतन्यपर्ण वाटतात. ते घटक वर्णनामध्ये मानवी रूपच घेऊन येतात. म्हणून पाखरे ‘हळूहळू डोळे किलकिले’ करून पाहतात. पहाटेच्या प्रकाशकिरणांना ‘खुणावतात ‘. पाखरे ‘कुजबुजली’. बोगनवेल ‘सळसळू’ लागते. दोन्ही वाफे ‘एकमेकांशी हितगुज’ करतात. मोगरा ‘खुदखुद हसतो’. तो कधी रुसून बसतो’. झाडे-वेली ‘भावुक होतात’ अशा रितीने सर्व घटक मानवी रूप घेऊन येतात. लेखन हृद्य बनते. लेखनातला अनुभव भावभावनांशी रसरशीत बनतो.

उत्तररात्री आगमन, सुख दुःखाच्या पलीकडे गेलेले मन, त्यांच्या नातीच्या शैशवातला नितळपणा, पहाटेचे अलवार आगमन असे अत्यंत तरल, मुलायम, नाजूक अनुभव प्रत्ययदर्शी होतात. आणखी एक वैशिष्ट्य बघा. असं कोणतं बरं नातं’, ‘का बरं म्हटलं असावं’ ही शब्दरूपे पाहा. ही छापील वळणाची शब्दरूपे नाहीत. ही दैनंदिन जीवनातली बोलण्यातली शब्दरूपे आहेत. एखादा माणूस आपल्या जिवलग मित्राशी जिवाभावाच्या गप्पागोष्टी करीत बसला असावा, तसे हा लेख वाचताना वाटत राहते. म्हणूनच संपूर्ण लेखात भाषेला एक वेगळाच गोडवा प्राप्त झाल्याचे दिसून येते.

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प्रश्न इ.
संत तुकाराम महाराज यांनी वृक्षवल्लींना ‘सोयरी’ असे म्हटले आहे, यामागील तुम्हांला समजलेली कारणे लिहा.
उत्तर :
थोडा वेळ बागेत बसले, रानात फेरफटका मारला की, मनाला खूप आल्हाद मिळतो. शहरात आखीव रेखीव रस्ते आणि तशाच आखीव रेखीव इमारती. इमारतीतल्या प्रत्येक घराचा चेहरा सारखाच. याउलट, रानावनात सौंदर्याची मुक्त उधळण असते. तिथे एक झाड दुसऱ्या झाडासारखे नसते. एक पान दुसऱ्या पानासारखे नसते. एक हिरवा रंग पाहा.

त्या एका हिरव्या रंगांच्या शेकडो छटांचे दर्शन तिथे घडते. हजारो आकार, हजारो रंग, हजारो आवाज, हजारो गंध. तिथे पंचेद्रियांच्या सुखाची लयलूट असते. किती विविधता! पक्षी, प्राणी, किडेमुंग्या यांच्या हजारो जाती. त्यांच्यातही रंग, आकार, हालचाली यांचे हजारो प्रकार. निसर्गातली ही विविधता मनाला मोहवते. मन त्या सौंदर्यात बुडून जाते. कृत्रिमतेची चढलेली पुटे हळूहळू गळून पडतात. मन मोकळे होते. सौंदर्याचा, आनंदाचा अनुभव घेऊ लागते.

तुकाराम महाराजांनी विठ्ठलभक्तीसाठी वनाचाच आश्रय घेतला. माणसात असलेल्या सर्व कुभावनांपासून मुक्ती मिळावी; आपला आत्मा त्या कुभावनांपासून मुक्त व्हावा; ईश्वराचे निर्मळ, सोज्वळ रूप दिसावे; त्याच्याशी एकरूप होता यावे; म्हणून त्यांनी वन गाठले. वनात गेले की मन आपसूक मुक्त होते. मनाची ही अवस्था ईश्वराकडे जाण्यासाठी उत्तम अवस्था. वनाचे सौंदर्य म्हणजे ईश्वराचे एक रूपच, त्या रूपाच्या सान्निध्यात राहावे, षड्रिपू चा त्याग करावा म्हणजे आपण अलगद ईश्वराच्या जवळ जाऊन ठेपतो.

आपल्याला सर्व सुंदर, निर्मळ, चांगलेच दिसते. या चांगुलपणाचाच आस्वाद घेत राहावा, असे वाटू लागते. म्हणजे ईश्वराच्या दर्शनातच, त्याच्या स्मरणातच आकंठ बुडून जावे अशी अवस्था होऊन जाते. तुकाराम महाराजांना वृक्षवल्ली सोयरी वाटली ती या कारणाने. या वृक्षवल्लींच्या ठायी माणसाचे दुर्गुण नसतात. ती ईश्वराची रूपे होत. त्यांच्या सहवासातच ईश्वरभक्ती फुलते. वृक्षवल्ली, सर्व वनश्री आपल्याला ईश्वराच्या वाटेवर आणून सोडतात. तुकाराम महाराज म्हणूनच वृक्षवल्लींच्या सान्निध्यात गेले. वृक्षवल्लींना सोयरी’ मानले.

उपक्रम :

अ. तुमच्या परिसरातील देशी व विदेशी फुलांची माहिती इंटरनेटच्या माध्यमांतून मिळवून ती तुमच्या कनिष्ठ महाविदयालयातील काचफलकात प्रदर्शित करा.

आ. हिवाळ्यातील उत्तररात्री किंवा अगदी पहाटेच्या वेळी तुमच्या परिसराचे निरीक्षण करा. पाहिलेल्या निसर्गसौंदर्याचे वर्णन शब्दबद्ध करा. ते वर्गात वाचून दाखवा.

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तोंडी परीक्षा.

शिक्षकांनी वाचून दाखवलेला उतारा ऐका. सारांश लिहा.

Marathi Yuvakbharati 12th Digest Chapter 8 रेशीमबंध Additional Important Questions and Answers

कृती करा.

प्रश्न 1.
Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 8 रेशीमबंध 1
Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 8 रेशीमबंध 2
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 8 रेशीमबंध 4

प्रश्न 2.
Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 8 रेशीमबंध 11
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Chapter 8 रेशीमबंध 12

कारणे शोधा व लिहा.

प्रश्न 1.
उत्तररात्र हळुवारपणे अलगद पाऊल टाकते; कारण ………
उत्तर :
उत्तररात्र हळुवारपणे अलगद पाऊल टाकते; कारण तिच्या आगमनाची चाहूल कोणलाही लागू नये, अशी तिची इच्छा असते.

प्रश्न 2.
लेखक डायनिंग टेबलजवळची खिडकी हलकेच उघडतात कारण ……….
उत्तर :
लेखक डायनिंग टेबलजवळची खिडकी हलकेच उघडतात कारण रात्रीच्या नीरव शांततेचा भंग होऊ नये, असे लेखकांना वाटत असते.

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प्रश्न 3.
पाखरांनी पंख फडफडल्याशिवाय पहाटदेखील आकाशात येत नाही; कारण ……….
उत्तर :
पाखरांनी पंख फडफडवल्याशिवाय पहाटदेखील आकाशात येत नाही; कारण पाखरांची झोपमोड होऊ नये, असे पहाटेला मनोमन वाटत असते.

प्रश्न 4.
निसर्ग आणि मानव यांना एकमेकांची ओढ लागलेली असते; कारण …………..
उत्तर :
निसर्ग आणि मानव यांना एकमेकांची ओढ लागलेली असते; कारण त्या दोघांमध्ये युगानुयुगे आदिम, ऋजू स्नेहबंध निर्माण झाले आहेत.

वर्णन करा :

प्रश्न 1.
1. पहाटेचे आगमन.
2. मोगऱ्यात घडणारे मानवी भावभावनांचे दर्शन.
3. उजाडत जाणाऱ्या पहाटेसोबत आल्हादाला येणारी भरती.
4. पहाट व पाखरे यांच्यातील नाते.
उत्तर :
1. पहाटेचे आगमन : उत्तररात्रीचा काळोख हळूहळू विरत जातो. हळुवारपणे उजाडू लागते. गुलमोहोरावरील घरट्यांतून, जैक्रांडाच्या फांदयांवरून पाखरे डोळे किलकिले करून पाहू लागतात. त्यांचा आपापसातला आवाज कुजबुजीसारखा भासू लागतो. हळूहळू एखादया उत्सवासारखा हा चिवचिवाट वाढत जातो. सायली, बोगनवेल, क्रोटन्स, गुलमोहोर, जॅक्रांडा हे सर्वच सळसळू लागतात. हलू डोलू लागतात. अशा प्रकारे पहाटेचे आगमन होते.

2. मोगऱ्यात घडणारे मानवी भावभावनांचे दर्शन : लेखकांचे निसर्गाशी असलेले अत्यंत हृदय असे नाते या उताऱ्यातून व्यक्त झाले आहे. भोवतालच्या वृक्षवेली, पाखरे, पहाट, सकाळ हे सर्व मानवेतर घटक माणसासारख्याच भावभावनांनिशी वावरू लागतात. म्हणूनच पाणी न मिळाल्यामुळे कोमेजलेला मोगरा लेखकांना रुसल्यासारखा भासतो आणि पाणी मिळाल्यावर कळया आल्या की खुदखुद हसल्यासारखा भासतो. झाडेवेली भावुक होतात. कधीतरी थोडीफार रुसलीफुगली तरी त्यांच्यावरून प्रेमाने हात फिरवला, त्यांना पाणी दिले की गोंडस फुले देऊन आपल्याला केवडातरी विरंगुळा, तजेला देतात. अशी मानवी भावनांची देवाणघेवाण लेखकांना जाणवत राहते.

3. उजाडत जाणाऱ्या पहाटेसोबत आल्हादाला येणारी भरती : उत्तररात्रीचा काळोख विरत जातो आणि पहाटेचा उजेड सुरू होतो. हा काळोख नेमका कोणत्या क्षणी संपतो आणि उजेड कोणत्या क्षणी सुरू होतो हे सांगणे केवळ अशक्य असते. इतका तो क्षण तरल असतो. त्या क्षणी लेखकांना अनोख्या, लोभसवाण्या नाजूक अनुभवाचा प्रत्यय येतो. ही आल्हाददायकता निसर्गाच्या सर्व घटकांमध्ये लेखकांना दिसते. झाडांच्या, वेलींच्या सळसळण्यात, हलण्याडोलण्यात दिसते. सुरुवातीला मंद मंद असलेला चिवचिवाट हर्षोल्हासाचे रूप धारण करतो. जणू आनंदाला, आल्हादाला आलेली भरतीच वाटते.

4. पहाट व पाखरे यांच्यातील नाते : लेखकांना भोवतालचा निसर्ग माणसासारखाच भावभावनांनी भरलेला भासतो. पहाटेची घटना तशी साधीशीच. पहाट होत आहे. पाखरांचा बारीक बारीक आवाज सुरू झाला आहे. त्यांच्या हालचालींना सुरुवात होत आहे. पहाट हळूहळू पुढे सरकत आहे. या प्रसंगात लेखकांना मानवी भावभावनांचे दर्शन घडते. पाखरांचा बारीक बारीक आवाज म्हणजे त्यांची कुजबुज होय. ती जणू एकमेकांना विचारताहेत, ” पहाट आली का?” पहाटेचे हळुवार येणे पाहन लेखकांना वाटते की, पाखरांना त्रास होऊ नये म्हणूनच जणू पहाट हळूच पाखरांना विचारते की, “मी येऊ का?” त्या दोघांमधले हळुवार कोमल नातेच लेखकांना या वाक्यातून व्यक्त करायचे आहे.

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केव्हा ते लिहा :

प्रश्न 1.
1. पहाट आकाशात हलकेच पाऊल टाकते, जेव्हा
2. पाखरांचा चिवचिवाट वाढत जातो, जेव्हा
उत्तर :
1. पहाट आकाशात हलकेच पाऊल टाकते, जेव्हा पाखरांच्या पंखांची फडफड त्याला ऐकू येते.
2. पाखरांचा चिवचिवाट वाढत जातो, जेव्हा पहाट हळूहळू उजाडत जाते.

म्हणजे काय ते लिहा :

प्रश्न 1.

  1. गुलमोहोरावरची पाखरे आपापसात कुजबुजू लागतात, म्हणजे जणू काही ………
  2. मोगऱ्याला चुकून एखादया दिवशी पाणी घालायचे राहून गेले, तर तो कोमेजू लागतो, म्हणजे जणू काही ……
  3. पाण्याचा शिडकाव झाला की दुसऱ्या दिवशी मोगऱ्याला कळ्या येतात, म्हणजे जणू काही …………

उत्तर :

  1. गुलमोहोरावरची पाखरे आपापसात कुजबुजू लागतात, म्हणजे जणू काही तो त्यांच्या आल्हादाचा उत्सव असतो.
  2. मोगऱ्याला चुकून एखादया दिवशी पाणी घालायचे राहून गेले, तर तो कोमेजू लागतो, म्हणजे जणू काही तो लेखकांवर रुसून बसतो.
  3. पाण्याचा शिडकाव झाला की दुसऱ्या दिवशी मोगऱ्याला कळ्या येतात, म्हणजे जणू काही तो कळ्यांच्या रूपाने लेखकांकडे पाहून खुदखुद हसू लागतो.

रेशीमबंध Summary in Marathi

शब्दार्थ :

  1. उत्तररात्र – मध्यरात्रीनंतरचा काळ.
  2. विरणे – विरविरीत होणे, विरळ होणे.
  3. असोशी – ओढ.
  4. आदिमत्व – आदिम म्हणजे पहिला, मूळचा, आदिमत्व म्हणजे मूळची अवस्था.
  5. ऋजू – सरळ, साधा, निर्मळ, पारदर्शी.
  6. आस – इच्छा.
  7. नितळ – गाळ, गढूळपणा नसलेले, स्वच्छ, शुद्ध.
  8. लोभस – उत्कटपणे आवडणारा.
  9. नजाकत – सुबकपणा.